दोस्ती का उपहार-2

दोपहर बाद जब सब खाना खाने के लिये जाने लगे तो मैंने उसे छेड़ने के लिये कहा- तुम्हें कुछ याद है नीतू?

उसने कहा- क्या सर?

मैंने कहा- कल तुमने मुझे कुछ देने के लिये कहा था !

तो उसने नादान बनते हुये मुझे छेड़ते हुए कहने लगी- मुझे तो कुछ भी याद नहीं है ! और फिर रात गई बात गई।

क्योंकि अभी एक दो औरतें बैठी थी इसलिए मैंने ज्यादा बात करना ठीक नहीं समझा और उनके जाने का इन्तजार करने लगा। थोड़ी देर बाद बाकी औरते भी जाने के लिये कहने लगी तो मैंने उन्हें भी जाने के लिये कह दिया। जब देखा आस-पास अब कोई नहीं है तो मैंने उसे कमरे में अन्दर चलने के लिये कहा। हम लोग पंचायत घर के बरामदे में बैठते थे और धूप हो जाने पर अन्दर कमरे में चले जाते थे। उसने कोई विरोध नहीं किया और अन्दर कमरे में बिछी चटाई पर मेरे बगल में आकर बैठ गई और अपना सिर मेरे कन्धे पर टिका लिया।

मैं समझ गया कि वो तैयार है और समझ गई कि मैं क्या करना चाह रहा हूँ। लेकिन मैं उसके मुँह से ही सुनना चाहता था इसलिये मैंने फिर उससे कहा- अब तैयार हो?

तो उसने कुछ नहीं कहा और शर्म से अपनी आंखे नीचे की और झुका ली।

मैंने शरारत से कहा- अगर तुम किस नहीं देना चाहती हो तो कोई बात नहीं, मैं फिर कभी तुम्हारी चुम्मी ले लूंगा।

तो उसने अचानक चौंक कर कहा- मैंने कब मना किया।

मैंने सोचा कि अब इसे ज्यादा तड़पाना ठीक नहीं है और उसे दरवाजे की ओट में ले गया और उसके गालो पर धीरे-धीर चूमना शुरू कर दिया। जब थोडी देर उसे चूमने के बाद उसकी थोड़ी झिझक खत्म हो गई तो मैं कमीज़ के ऊपर से ही उसकी चूचियों को दबाने लगा तो उसने कहा- यह मत करो।

मैंने कहा- क्यों?

नहीं, बस गुदगुदी होती है, पहली बार किसी ने इन्हें हाथ लगाया है। शायद इसीलिये ! उसने कहा।

लेकिन शायद उसे कुछ ज्यादा ही गुदगुदी हो रही थी इसलिये वो अपनी चूचियों को दबाने ही नहीं दे रही थी। बार-बार मेरा हाथ अपने हाथ से हटा रही थी। और मुझे बिल्कुल भी मजा नहीं आ रहा था। मैंने सोचा पहले जो मिल रहा हूँ उसके मजे ले लूँ, इन्हें बाद में भी दबा लूंगा।

मैंने अब उसके होंठों को चूसना शुरू कर दिया। थोड़ी देर तक उसके होंठों को चूसने के बाद वो थोड़ा-थोड़ा गर्म होने लगी। तो मैं अब नीचे सरकने लगा। मैंने उसके गले और सीने पर चूमना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे सूट के ऊपर से ही उसकी खुली चूचियो को चूमने लगा। साथ ही हाथ से उसकी चूचियों को भी बीच बीच में दबाता रहा। लेकिन वो अपनी चूचियो को पूरी तरह से दबाने नहीं दे रही थी। जिससे मुझे एक प्रकार की कमी सी लग रही थी जैसे कुछ अधूरा सा रह गया है।

मैंने फिर अपनी अकल लड़ाई। मैंने उसके दोनों हाथ अपनी कमर पर से हटाकर उन्हें ऊपर उठाकर दीवार के सहारे टिकाने को कहा और उसका सूट धीरे-धीर ऊपर उठाने लगा। उसने अन्दर कुछ नहीं पहना था ना ही समीज और न ही ब्रा। उसकी संतरे जैसी मोटी और पहाड़ जैसी खडी चूचियाँ देखकर पता नहीं मुझे क्या हुआ अचानक मैंने उन्हें अपने मुँह में ले लिया। चूची चूसने का यह पहला ही अनुभव था और मुझे पता भी नहीं था कि चूची को किस तरह से चूसना चाहिये। लेकिन शायद सब ठीक ही कहते है कि ये चीजें सिखाने की जरूरत नहीं होती। मैं उसकी चूची मुँह में लेकर उसके चने के दानों के समान छोटे-छोटे चुचूकों को अपनी जीभ से सहलाने लगा और दूसरे हाथ से उसकी दूसरी चूची दबाने लगा। जिससे उसे एक अजीब सी मस्ती चढ़ने लगी। पिछले आधे घंटे में उसने पहली बार मेरा चूची दबाने पर विरोध नहीं किया था। उसने अपने दोनों हाथों से मेरे सिर को पकड़कर अपने दोनों चूचियों पर इतने जोर से दबाया कि एक बार तो मैं सांस भी नहीं ले पाया।

उसे मस्ती चढ़ने लगी थी इसलिये मैंने खड़े होकर उसका कमीज़ उतार दिया। उसके बाद उसकी सलवार का नाड़ा खोलने लगा। उसने मेरा हाथ पकड़ लिया लेकिन फिर ना जाने क्या सोच कर छोड़ दिया और कोई विरोध नहीं किया। मैंने उसकी सलवार उतारी और उसके चूतड़ों को खूब कस कर दबाने लगा। उसके चूतड़ एकदम गोल और सख्त थे। मेरा लण्ड अब तक पूरी तरह से खड़ा हो चुका था और पैण्ट की चेन पर दस्तक दे रहा था। मैंने अपना लण्ड पैंट के ऊपर से ही उसके हाथ में पकडाया। लेकिन उसने अचानक ही उसे छोड़ दिया और कहने लगी- यह तो बहुत तेज हिल रहा है।

मैंने कहा- इसकी एक मनपसन्द चीज तुम्हारे पास है इसलिये ये खुशी से उछल रहा है।

वो समझ गई कि मेरा इशारा उसकी चूत की तरफ है और वो शरमा कर हंसने लगी।

अब मैंने भी अपने कपड़े उतार दिये और सिर्फ अण्डरवियर में रह गया। दोपहर के तीन बजे होने के कारण किसी के वहाँ आने की कोई सभांवना नहीं थी। इसलिये मैंने दरवाजा बन्द नहीं किया वरना लोगों को शक हो सकता था। मैंने उसे वहीं चटाई पर लिटा दिया और उसकी चूत के दर्शन करने लगां। उसकी चूत एक दम चिकनी थी जिस पर छोटे-छोटे से रोंये ही निकले थे। जिन पर हाथ फिराने में बहुत ही मजा आ रहा था।

उसकी चूत एकदम गीली हो चुकी थी। मैंने अपना अण्डरवियर उतार कर एक उसके चूतड़ों के नीचे रख दिया कि कहीं उसकी सील टूटने से खून निकले तो चटाई न खराब हो जाय और सबको पता चल जाय कि यहाँ क्या हुआ था।

मेरा लण्ड देखते ही वो बोली- सर आपका यह तो बहुत बड़ा और मोटा है मेरी छोटी सी इसमें तो घुसेगा ही नहीं।

मैंने कहा- देखती रहो, यह अपने आप इसमें घुस जायेगा। तुम बस चुपचाप लेटी रहो।

मैंने उसकी चूत के छेद पर अपने लण्ड को टिकाया लेकिन झटका नहीं मारा। वरना आस-पास कोई ना कोई उसकी चीख सुन सकता था। मैं उसके ऊपर सीधा लेट गया और दोनों हाथों से उसका चेहरा सीधा किया और उसके होठों को कसकर अपने होठों में दबाकर चूसने लगा। जब मैंने देखा कि उसने अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया है तो पूरा जोर लगाकर एक जोर का झटका दिया और लण्ड एकदम से 2 इंच तक उसकी चूत में घुस गया। वो दर्द से बिलबिलाने लगी लेकिन उसके होंठ मेरे होंठों के कब्जे में होने के कारण उसके मुँह से उसकी चीख नहीं निकली। मैंने एकदम से दो झटके और मारे और अपना पूरा 7 इंच का लण्ड उसकी चूत में जड़ तक उतार दिया।

उसने मुझे अपने ऊपर से हटाने की पूरी कोशिश की लेकिन मुझे इस बात की उम्मीद थी इसलिये मैंने उसके कंधों को अपने हाथों से पकड़ रखा था। मैंने एक हाथ से उसकी चूची को दबाना शुरू कर दिया और तब तक दबाता रहा जब तक उसका चूत में हो रहे दर्द से तड़पना रूक नहीं गया। फिर मैंने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिए।

5 मिनट बाद ही उसकी चूत का दर्द खत्म हो गया और मुझे कमर से पकड़ कर अपनी अन्दर समेटने की कोशिश करने लगी। मैं समझ गया कि अब वो पूरे जोश में है इसलिये मैंने धक्कों की रफ्तार बढ़ा दी और पूछा- कैसा लग रहा है?

तो उसने कहा- पता नहीं कैसा लग रहा है, पर अच्छा लग रहा है !

और अपनी आंखें बन्द कर ली।

मैंने भी पूरे जोश के साथ उसे चोदना जारी रखा। 5-7 मिन्ट बाद मैं झड़ गया इस बीच वो एक बार झड़ी चुकी थी और दूसरी बार मेरे साथ झड़ गई।

मैं जल्दी से उसके ऊपर से उठा और उससे पूछा- तुम ठीक हो? अपने घर जा सकती हो?

गाँव की लड़कियों की बात ही कुछ और होती है। वो फौरन उठकर खड़ी हो गई और अपने कपड़े पहनने लगी। पर उसके चलने में कुछ लंगडाहट थी। अब मेरी नजर अपने अण्डरवियर पर पडी जो बीच में खून से गीला हो गया था। मैंने अपने अण्डरवियर को उठाकर खिडकी से बाहर फेंक दिया और अपने बाकी के कपड़े पहनने लगा। उसके चेहरे पर थकान के निशान दिखाई देने लगे थे। मैंने सोचा इसे जल्दी से घर भेज देना चाहिये। क्योंकि अभी चुदाई के मजे में दर्द कम महसूस हो रहा है, थोड़ी देर बार जब चुदाई का नशा उतरेगा तो चला भी नहीं जायेगा। इसलिये मैंने उसे घर जाने के लिये कह दिया। उसके जाते ही मैंने चैन की सांस ली। चलो मामला कहीं से भी नहीं बिगड़ा वरना मजे के चक्कर में मैंने इधर-उधर देखा भी नहीं कि कहीं कोई हमे देख तो नहीं रहा।

लेकिन जैसे ही मैं लेट रहा था कि पंचायत घर के पीछे वाले घर में रहने वाली कजरी नामक की एक औरत आ गई। वैसे तो मैं उसे आंटी ही कहता था लेकिन मुझे पता नहीं था कि उसकी नीयत मुझ पर पहले से ही खराब थी। वैसे देखने में वो कुछ बुरी भी नहीं थी। 23-24 साल की भरे शरीर की औरत थी लेकिन गाँव की लड़कियों की शादी तो 16-17 साल की उम्र में ही कर दी जाती है। इसलिये उसके तीन बच्चे हो चुके थे। बडे बच्चे की उम्र लगभग 5-6 साल के बीच थी। उनका पति ट्रक चलाता था और 2-3 महीने में ही घर आता था।

मैं जब भी उसे आंटी कहता तो वो मुझे टोक देती- मुझे आंटी मत कहा करो, मुझे भाभी कहा करो।

लेकिन क्योंकि मैं शहर में ही रहता था और अभी जल्दी ही इण्टर के एग्जाम दिये थे और मेरी उम्र भी कम ही थी इसलिये हर शादीशुदा औरत को आंटी ही कहता था।

मैंने पूछा- आंटी आप यहाँ कैसे? और इस वक्त?

उसने इतराते हुये कहा- मैंने तुम्हें कितनी बार कहा है कि मुझे आंटी नहीं भाभी कहा करो।

मैंने कहा- ठीक है आंटी, मेरा मतलब भाभी।

और वो मेरे पास ही चटाई पर आकर बैठ गई। उन्होने मुझसे पूछा- नीतू को क्या हुआ?

मैं एकदम उनकी तरफ देखने लगा लेकिन वो धीर-धीरे शैतानी हंसी हंस रही थी।

मैंने कहा- कुछ नहीं ! क्यों?

नहीं वो लंगड़ाकर चल रही थी और बहुत थकी हुई सी लग रही थी।

मैंने कहा- हाँ वो गडढे में फिसल गई थी शायद तभी उसके चोट में लग गई होगी। इसलिये मैंने उसे घर भेज दिया।

वह हंसते हुए बोली- तुम्हें नहीं पता उसे क्या हुआ। मैं बताती हूँ कि उसे क्या हुआ। उसने अभी ही चुदवाया है इसलिये दर्द की वजह से लंगडा रही है।

मैं एकदम पसीने से भीग गया- आपको कैसे पता? यह सब कब हुआ?उसने कहा- मैं जानती हूँ यह सब किसने किया है क्योंकि मेरा मकान दो मंजिला है और उससे दूर तक दिखाई देता है और फिर चौपाल(पंचायत घर) तो बिल्कुल मेरे घर के आगे है। चैपाल की बाउन्डी होने के कारण नीचे से तो कोई नहीं देख सकता था लेकिन दूसरी मंजिल से कमरे के अन्दर खिड़की से सब दिखाई दे रहा था इसलिये मैं तुम्हारा यह अण्डरवियर भी अपने साथ लाई हूँ।

उसने साड़ी के नीचे से छुपाया हुआ मेरा अण्डरवियर निकालकर मेरे सामने रखते हुये कहा।

मैं घबराहट के कारण बुरी तरीके से पसीने से भीग गया था। मैंने उनके सामने लगभग गिड़गिड़ाते हुये कहा- भाभी, किसी से कहना मत ! वरना पता नहीं क्या होगा।

वो हंसने लगी और बोली- अगर किसी को बताना ही होता तो तुम्हारे पास अकेले थोडे ही आती? दो-चार लोगों को साथ लेकर आती।

अब मेरा डर तो कम हो गया था लेकिन घबराहट और बढ़ गई कि पता नहीं अब क्या होने वाला है।

उसने कहा- इसमें शरमाने वाले क्या बात है इस उम्र में तो सभी ऐसा करते हैं और फिर मेरी शादी तो 16 साल की उम्र मे ही हो गई थी।

अब मैं निश्चिंत हो गया कि भाभी किसी से कहने वाली नहीं है वरना अब तक यहाँ इतनी आराम से बैठकर बात नहीं कर रही होती।

मैंने सोचा हो सकता कि अपना कोई काम करवाना चाह रही हो, मैंने उससे खुलते हुये कहा- बताओ आपको क्या चाहिये।

उसने कहा- तुम !

मेरे पैरों के नीचे से जमीन निकल गई, जी मैं? मैं आपका मतलब नहीं समझा।

उस समय तक मुझे यह उम्मीद नहीं थी कि एक पूरी जवान औरत मुझसे यह सब करने के लिये कह सकती है। यह बात नहीं थी कि ऐसा होता नहीं है लेकिन मेरी उम्र करीब 18 साल ही थी और गाँव में मुझसे अच्छे खासे लम्बे-चौड़े मर्द थे जो उस जैसी पूरी जवान औरत के लिये काफी थे। लेकिन उसे मुझमें क्या दिलचस्पी थी, यह मेरी समझ मे नहीं आया। हालांकि मेरा शरीर अच्छा खासा कसरती थी और उम्र से दो साल बड़ा लगता था। लेकिन फिर भी मैं अपने आपको इस लायक नहीं समझता था कि एक तीन बच्चो की माँ को सन्तुष्ट कर पाता, कुंवारी लड़कियों की बात अलग होती है।

यह मेरे लिये एक नया तरह का अनुभव था। मैंने सोचा कि हो सकता है शायद उसका कुछ और मतलब हो मैं बेकार ही डर रहा हूँ इसलिये मैंने मजाक भरे लहजे में फिर पूछा- मेरा आप क्या करोगी? मैं तो एक 18 साल का लड़का हूँ आपके लिये बेकार हूँ।

उसने कहा- काफी हद तक तुम ठीक कह रहे हो, लेकिन तुम्हारे अन्दर एक खास बात है कि तुम इस गाँव के बाहर के लड़के हो और पूरे सम्मानित व्यक्ति हो और हर घर में तुम्हारा आना जाना है। तुम पर कोई शक भी नहीं करेगा और बात फैलने का खतरा भी नहीं है क्योंकि तुम किसी को नहीं बताओगें और अगर तुमने बताने की कोशिश भी की तो तुम्हें ज्यादा नुकसान होगा मुझे नहीं। जबकि गाँव के किसी आदमी के साथ ऐसा करने पर खतरा मुझे ज्यादा है। इसलिये तुम्हें जब भी मैं बुलाऊँ, तुम्हें मेरे घर आना पड़ेगा और मेरे साथ भी वही करना पड़ेगा जो तुम अभी नीतू के साथ कर रहे थे, वरना तुम जानते हो कि मैं क्या करूँगी।

मेरे पास उनकी बात मानने के अलावा और कोई चारा नहीं था इसलिये मैंने हाँ कह दी। लेकिन मेरा झुका हुआ चेहरा देखकर उन्होने मेरा चेहरा अपने हाथों में उठाया और चूमते हुये बोली- घबराओ मत ! मैं तुम्हें ज्यादा परेशान नहीं करूंगी और कभी किसी तरह की परेशानी हो तो मेरे पास चले आना।

उसकी आखिरी बात मेरी फिर समझ में नहीं आई, मैंने पूछा- कैसी परेशानी?

अरे बुद्धू ! अगर फिर कोई लड़की चोदनी हो तो मेरे घर चले आना ! वरना फिर कोई चौपाल में देख लेगा तो परेशानी हो जायेगी। क्योंकि हर कोई मेरी तरह दिलदार नहीं होता ! और फिर से शैतानी हँसी हँसने लगी।

तभी सामने से मेरी टीम की दो सदस्य आती हुई दिखाई दी तो उन्होने कहा- अब लोग आने लगे हैं इसलिये मैं जा रही हूँ। लेकिन आज रात को तुम घर नहीं जाओगे, आज रात को चौपाल पर ही रूक जाना क्योंकि मौसम खराब है और अन्धेरा जल्दी हो जायेगा। तुम्हारे बारे में सबको पता है कि तुम कभी-कभी गाँव में ही रूक जाते हो। मैं जब भी रात को इशारा करूँ, तुम्हें मेरे घर में आना पड़ेगा। मैंने लाचारी में हाँ करने में ही भलाई समझी।

बच्चों के सो जाने के बाद उस रात उसने मुझसे तीन बार चुदवाया। और जब भी वो मुझसे कहती है मुझे उसे चोदना पड़ता है। क्योंकि मेरे कई राज वो जानती है। लेकिन उसने मुझे कभी भी जरूरत से ज्यादा परेशान नहीं किया और नई-नई लड़कियों को चोदने के लिये वो मुझे अपने घर की दूसरी मंजिल पर एक कमरा भी देती है और पूरा ध्यान रखती कि किसी को कुछ पता न चलने पाये। कई बार उसने कई लड़कियों को मेरे लिये पटाया भी और मुझसे चुदवाया भी। हम दोनों एक दूसरे की जरूरत पूरी करते थे, मैं उसकी और वो मेरी।

दोस्तो, आपको यह कहानी कैसी लगी। मुझे जरूर बताना।

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कहानी का अगला भाग: दोस्ती का उपहार-3

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