देहाती यौवन-3

लेखिका : कमला भट्टी

मैंने धीरे धीरे उसकी योनि के ऊपर के उत्थित प्रदेश को सहलाया तो उसकी टाँगे खुदबखुद चौड़ी होती चली गई ! अब मेरी अंगुलियाँ उसके फ़ूले फ़ूले योनि प्रदेश का जायजा ले रही थी।

मेरी अंगुली हल्की सी योनि की फाड़ों को छूते हुए ऊपर नीचे हो रही थी और उसकी दबी दबी सिसकारियाँ निकल रही थी। अब मेरे नाग ने भी फन उठाना शुरू कर दिया था। मैंने धीरे से अपनी पैंट की चेन खोली, कच्छे की बारी में से परिस्थितिवश अर्ध-उत्तेजित शिश्न को बाहर निकाला, बाहर की ताज़ी हवा खाकर उसमें कुछ हिम्मत आना शुरू हुई। मैंने भी एक हाथ से उसे कुछ हिला कर झटके दिए पर अभी किला फ़तेह करने जितनी कठोरता नहीं आई थी उसमें ! मेरे द्वारा चेन खोलने की चरचराहट पुसी ने भी सुनी थी, थोड़ा चोंकी भी वो पर मेरी तरफ न देख कर अब नीचे गौर से देखना शुरू कर दिया था !

अब उसे पता था इस नाटक का आखिरी भाग शुरू होने वाला है, अपनी टांगें ज्यादा खोल दी थी उसने ! उसका घाघरा अब उसकी कमर के आस-पास था, उसकी गुदाज मोटी गोरी राने उस अँधेरे में भी चमक रही थी !

मैंने उसे हिला कर उसे कमरे में या एक तरफ चलने को कहा तो उसने तुरंत मना कर दिया, कहा- यहीं कर लो जो करना है, उस तरफ चल कर हमें किसी के अचानक ऊपर आने वाले का पता नहीं चलेगा ! यहाँ मैं नीचे ध्यान रख लूँगी, कोई अचानक आने के लिए सीढ़ियों की तरफ बढ़ेगा तो अपने पास काफी समय होगा अलग अलग और दूर दूर लेटने का !

मैं क्या कहता, मैंने समझ लिया कि आज तो इस कठोर फर्श पर ही अपने घुटने रगड़ने पड़ेंगे, नीचे कोई चादर ही नहीं बिछी हुई थी ! खैर मैंने आगे की बात सोचते हुए इस बार अपनी अंगुली को थूक से गीला किया और हल्का हल्का अन्दर-बाहर करते करते उसकी बहुत ही कसी हुई योनि में सरकानी शुरू की ! योनि चिकनी हो रही थी पर बहुत कसी थी, अंगुली बड़ी मुश्किल से अन्दर जा रही थी ! यानि अभी तक उसकी सिर्फ सील ही टूटी थी उसकी योनि कुंवारी जितनी कसी हुई थी।

मैंने मन ही मन में कहा- हे कामदेव, अब तो लाज आपके हाथ में है।

डर की वजह से नाग महाराज अपना फन पूरा उठा ही नहीं रहे थे तो इस कमसिन बाला का नया किला कैसे फ़तेह होना था ! पुसी को पता ही नहीं था मेरे मन में क्या चल रहा था, वो तो बेचारी आज अपने पति के अलावा दूसरे मर्द का स्पर्श पाकर बहुत रोमांचित हो रही थी ! अब मेरी अंगुली आराम से अन्दर-बाहर हो रही थी, शायद उसके योनि की दीवारों ने किसी नवागत के आगमन का स्वागत करने के लिए खुशी के आँसू निकाले थे !

अब उसकी टाँगें काफी चौड़ी हो गई थी, हल्के-हल्के उसके कूल्हे भी हिल रहे थे पर पठ्ठी कमान की तरह होकर नीचे जंगले में देख रही थी, उसकी नज़र नीचे बैठी महिलाओं और सीढ़ियों की तरफ थी कि कोई ऊपर न आ जाये !

अब मैंने भी अपने इष्ट देव को याद किया कि मेरी इस नवयौवना के सामने भद्द न पिटवा देना ! हिम्मत करके में उसकी टांगों के बीच आया, कपड़े पहने हुए ही थे, सिर्फ पेशाब करने वाले कच्छे के छेद और पैंट की चेन में से ही हमारे लिंगरू ठाकर (कम उठे हुए लिंग को हम यही कहते हैं) बाहर झांक रहे थे। मैंने धड़कते दिल से अर्ध उत्तेजित शिश्न को उसके गर्म योनि मार्ग से सटाया, अपने हाथ की एक अंगुली का सहारा दिए रखा और धीरे से दबाया उसने भी अपने कूल्हे उठा कर मेहमान का स्वागत किया !

पर धत्त तेरे की !

वो उस तंग गली में जाने के बजाय नीचे की तरफ मुड़ने लगा ! मेरे दिल की धड़कनें जैसे धाड़-धाड़ कर बंद हो जाएगी !

मैंने कहा- हे कामदेव, मदद करो, अगर यह नीचे फिसल गया तो रही सही अकड़ भी समाप्त हो जाएगी और यह लड़की आगे से कभी मेरे आगे यों टाँगें नहीं फ़ैलाएगी ! हमारी भाषा में कि यह लड़की कभी अपना घाघरा मेरे लिए नहीं बिछाएगी !

मैंने मन ही मन कामदेव को याद करते उनसे प्रार्थना करते दोनों हाथों से उसके कंधे पकड़ कर धक्का मारा, कामदेव भगवान् की कृपा से लिंग महादेव जो नीचे फिसल रहे थे, उनका मुँह ऐनाकोण्डा की तरह अपनी थूथन उठा कर योनि मार्ग में प्रवेश कर गए !

मेरे मन में हर्ष की एक लहर उठी, मैंने सब देवताओं को धन्यवाद दिया जिन्हें मैंने याद किया था !

अब लिंगमुण्ड यानि सुपारा तंग योनि में फंसा हुआ था पर अन्दर की भट्टी जैसी गर्मी और उसका पानी पीकर मोटा होता जा रहा था, उसकी अकड़ बढ़ती ही जा रही थी ! मेरे उस धक्के से पुसी के मुँह से हल्की सी दर्द भरी आआह निकली ! पर अब वो आनन्द में मग्न हो रही थी, शायद वो सोच रही थी कि अब पूर्ण प्रवेश कब करेंगे। वो धड़कते दिल और आशंकित हृदय से प्रतीक्षा कर रही थी कि न जाने कितना मोटा और लम्बा हो ! अभी तो उसे ज्यादा दर्द नहीं हुआ था पर वो सोच रही थी कि जब पूरा अन्दर जायेगा तब उसे पूर्णता का अहसास होगा !

उसने मेरे लिंग महाराज के न तो दर्शन किये था न ही छू कर देखा था । मैं भी अपने पिलपिले लिंग को कैसे उसके हाथ में देता ! वैसे मेरा ज्यादा मोटा और लम्बा है ही नहीं, मेरे लिए गर्व करने लायक बात है मेरा स्टेमिना, मैं जल्दी स्खलित नहीं होता !

यही खासियत मुझे लड़कियों और महिलाओं का चहेता बना देती है क्यूंकि मैं उनको पूर्ण रूप से संतुष्ट कर देता हूँ। अब उसके अन्दर फंसा हुआ लिंगमुंड फूल रहा था और पुसी की योनि की दीवारें मेरे धक्के न देने या बिना हिलने डुलने के बावजूद फ़ैल रही थी !

मेरा उतना फंसा हुआ ही फनफना रहा था और उसे भी अपनी योनि की दीवारें फ़ैलने का आनन्द आ रहा था !

अब जब वो अपने पूर्ण आकार में आ गया तो मैंने थोड़ा और सरकाया तो मेरा लण्ड एक इंच और अन्दर सरका। मैं सीधा ऊपर उठा हुआ था उसकी टाँगें खुदबखुद मेरी कमर को लपेट रही थी। योनि के मोटे होंट लरज रहे थे, पसीना छोड़ रहे थे।

मैंने फिर से एक इंच बाहर खींचा, लिंग के साथ उसकी योनि की दीवारें भी जैसे थोड़ी ऊपर खिंच गई। मैंने अपना भाला अब ताकत से नीचे घोंपा ! पुसी के चेहरे पर ऐंठन मुझे साफ दिखाई दी, अब मेरा आधा अन्दर घुस गया था, उसकी टांगें जो मेरी कमर को पकड़े थी, अलग अलग हो गई ! अब मैंने भी देर न करते हुए थोड़ा फिर बाहर खींचा और कस कर धक्का लगा दिया। साथ ही अपने पूरे शरीर का बोझ जैसे नीचे धकेल दिया ! अब मेरा लिंग पूरा उसकी संकरी योनि में समायोजित हो गया था !

लिंग के दो साथी उसकी योनि की सहेली से जा भिड़े थे !

पुसी के चेहरे पर दर्द और आनन्फ़ साथ दिखाई दिया, उसकी पलकों से आँसुओं की बूँदें चमकी पर उसका चेहरा मुस्कुरा रहा था ! शायद उसके पति ने सिर्फ सील ही तोड़ी थी उसकी, शायद ज्यादा अन्दर नहीं जा पाया था क्यूँकि मेरा लिंग किसी शीशी के मुँह में कार्क की तरह फंसा हुआ था ! दो क्षण के लिए मैंने अपनी सांसें व्यवस्थित की और अपनी गाड़ी फर्स्ट गीयर में चलने लगा। गाड़ी बिल्कुल नई जो थी !

अब धीरे धीरे लिंग योनि में व्यवस्थित हो रहा था तो अब मैंने धक्कों की रफ़्तार बढ़ानी शुरू कर दी !

अब मेरे कूल्हे लयबद्ध तरीके से ऊपर नीचे हो रहे थे, मुझे कोई जल्दी नहीं थी, एक तो वैसे भी में जल्दी खलास होता ही नहीं था, गाड़ी स्टार्ट होने में भले ही देरी करे पर बंद जल्दी नहीं होती ! और मैं उसको पूरा आनन्द देना चाहता था ! अगर कोई आ भी जाये तो मैं हट भी सकता था, मेरे मन पर मुझे कंट्रोल था, मेरे लिए खुद के स्खलित होना कोई मायना नहीं रखता था ! वो तो मैं कभी अपने हाथ से भी हो सकता था ! अपना हाथ जी जगन्नाथ जी- मेरा बैंक जी यूको बैंक जी ! यह बात हमारे मन में हस्तमैथुन का सोचते ही आ जाती है।

अभी तो नयी नवेली यौवना सामने टाँगें फ़ैलाए लेटी हुई अपने पर सवारी करवा रही है, अपनी गर्दन को पीछे करके कमान की तरह होकर नीचे चौक में देखती इस स्थिति के कारण उसके वक्ष उभर कर मेरे मुँह के पास आ रहे थे ! मेरी जांघें उसकी मोटी गुदाज जांघों से टकरा कर ठंडी रात में समागम का मधुर संगीत पैदा कर रही थी ! सट-सट..सट-सट..सटा-सट….खप-खप…खप्प-खप्प…खपा-खप …भच -भच …!

उसकी टांगें सीधी ही थी, मैं अपनी दोनों टांगों से उन्हें अलग अलग कर जितना दूर कर सकता था कर उन पर अपने पांव के पंजे जमा कर अपनी कमर को उछाल रहा था। अब उसके योनि मार्ग ने उलटी कर दी थी, वो सीधी होकर जोर से कांपी और मुझे जकड़ कर रोक सा दिया, अपना मुँह मेरे सीने में छिपा लिया।

मैं समझ गया कि इसकी गाड़ी छूट गई है !

यह मेरे लिए नई बात नहीं थी, जो हसीना मेरे नीचे होती, उसकी गाड़ी छुटते मैं हमेशा ही देखता !

फिर जब उसका बिजली की तरह लहकता बदन निष्प्राण सा लस्त-पस्त सा हो जाता, तब मेरे स्वाभिमान को संतुष्टि मिलती थी ! मेरे सामान्य रूप रंग और सामान्य लम्बाई मोटाई के लिंग की भरपाई में मैराथन दौड़ से करता था। मैं फिर भी ऊँचा-नीचा होता रहा, अब उसकी योनि बिल्कुल गीली हो गई थी, आसानी से लिंग अन्दर बाहर हो रहा था !

वो समझ गई थी कि यह घोड़ा अरबी है अभी और दौड़ेगा ! वो फिर कमान की तरह हो गई और अपनी आँखें नीचे की हलचल की तरफ जमा दी !

नीचे पंडित जी के मंत्र गूंज रहे थे, महिलाओं की गीतों की स्वर लहरिया आ रही थी, जंगले से थोड़ा-थोड़ा हवन का खुशबूदार धुंआ ऊपर आ रहा था, नीचे एक नवयौवना की शादी हो रही थी और ऊपर खुले में सख्त फर्श पर मैं पहले से सुहागरात मनाई हुई उस ग्रामीण बाला से फिर से सुहागरात मना रहा था जिसके अनजाने गवाह 70-80 महिलायें, पुरुष, एक दूल्हा-एक दुल्हन और पंडित, नाई भी थे।

अब ऊपर संगीत बदल गया था, यहाँ फच-फच…फुच-फुच…पिच-पिच..पुच-पुच…फच्च-फच्च…फुच्च-फुच्च..पिच्च-पिच्च..पुच्च-पुच्च…साथ ही पुसी की दबी दबी आहें कराहों का संगीत गूंज रहा था। मेरे भी सांसों की आवाज़ साथ ही लकड़ी पर कुल्हाड़ा चलाते लकड़हारे की हूऊम्म हूऊम्म जैसी आवाज़ें मेरे मुँह से भी निकल रही थी। अब मैं सिर्फ सुपारा अन्दर रख कर पूरा लिंग बाहर खींच रहा था और फिर पूरा गप्प से अन्दर जड़ तक घुसा देता, जब मेरा लिंग बाहर आता तो योनि की दीवारें आपस में चिपक जाती अन्दर जाने की बिल्कुल भी जगह नहीं रहती पर दूसरे ही क्षण मेरा लिंग उन्हें जुदा कर फिर से अन्दर जगह बना लेता, इसका गुस्सा वो उसे कस कर पकड़ कर निकालती पर इससे मेरा आनन्द दुगुना हो जाता !

अब उसका बदन फिर से कठोर हो गया था और वो लहक सहक कर अपने बदन को नागिन की तरह लहरा रही थी। मैं जब बाहर खींचता तो वो भी अपने कूल्हे पीछे कर लेती और जब में नीचे आता तो वो भी मेरा स्वागत करने के लिए अपने कूल्हे उठा देती और उसकी योनि मेरा पूरा लिंग निगल लेती !

उसकी योनि की दीवारें उसे कस लेती कि अब तो जैसे उसे वही रखेगी, बाहर जाने ही नहीं देगी पर अपना उद्दण्ड लिंग कहाँ किसी बंधन को मानता है, वो फिर उनसे छुट कर बाहर आ जाता, फिर वो सोचती अब इसे फिर से घर में घुसने ही नहीं देंगी पर वो उनके सुरक्षा किलों की धज्जियाँ उड़ा कर किले के अंतिम छोर तक पहुँच जाता !

कुछ भी हो, लिंग और योनि के इस लड़ाई में हम दोनों को तो अथाह आनन्द ही आ रहा था ! अब उसके मुँह से आहों-कराहों के साथ अनर्गल ही निकल रही थी- अरीई ईई मजो आवे रीई ईईईए म्हारो धणी (पति) तो एक मिनट में ही ठंडो पड्ग्यो…म्हने ठा (पता) ही कोणी कि इमे इत्तो मजो हे ! आज तू महने बेमोल खरीद ली हे रे हहहहहहहह एईईईईईईए करया ही जा रे म्हने तो मजो ही मजो आवे !

अब वो जंगले से नीचे नहीं देख रही थी, हालाँकि मेरी नज़र थी पर मैंने उसे मजाक में कहा- तू अब नीचे नहीं देख रही है, कोई आ गया तो?

जबाब में वो मेरे सीने में अपना मुँह रगड़ती बोली- अरे अबे म्हाराऊ अंतरों नहीं राहिजे, माँ चुदाई आने वाले की म्हने थारू चिपन दे रे म्हारे कई ठा कई हियो हे नीचे मच मच करे हे !

मुझे पता चला अब उसके मचमची आने वाली है, मेरी नज़र में ये है कि कोई लड़की एक दो बार स्खलित हो जाती है तो उसके ऊपर ऊपर का ही पानी निकलता है पर लगातार उसे गरम करके जो बार पानी निकलता है वो जैसे उसका सारा स्टॉक खत्म हो जाता है और वो पूर्ण रूप से संतुष्ट होती है, कई महिलायें तो उनके पति की स्तम्भन शक्ति की कमजोरी के कारण जिंदगी भर मचमची प्राप्त नहीं कर पाती ! यह स्खलन महिला के एक दो मिनट का होता है, उस वक़्त आप रुक जाओ या स्खलित हो जाओ तो वो पागलों की तरह करने लग जाएगी, आपको नाखूनों से कोंच लेगी, नीचे से खुद धक्के मारेगी, गालियाँ निकालनी शुरू हो जाएगी।

मैं स्खलित तो नहीं हुआ पर कई महिलाओ के साथ इस स्थिति में शरारत से रुक कर ये बातें पता की हैं। तो यहाँ तो मैंने ऐसा किया ही नहीं था, लगातार घस्से मार रहा था, उसे जैसे जुडी का बुखार हो गया था वो वैसे कांप रही थी, मुझे पता चल गया कि इसकी मंजिल नज़दीक ही है, अब मैं भी अपने नल को खोलने की सोचने लगा। मुझे पता था अभी दिमाग को इस बारे में लगाऊँगा तो भी 2-3 मिनट लगेंगे, मुझे पता है कि इस दीर्घ पानी निस्तारण क्रिया के बाद कोई लड़की या महिला किसी को 5-10 मिनट तक अपने योनि के अन्दर घर्षण तो दूर स्पर्श भी नहीं करने देगी ! और बाद में समय नहीं था कि मैं अपनी क़ुतुब मीनार को 5-10 मिनट हवा में घुमाऊँ और फिर उसे गरम करके अन्दर डाल दूँ ! मैं भी उस सेक्सी वातावरण में अपना दिमाग लगा कर अपनी पिचकारी छोड़ने की जुगत में था।

वो कंपकंपा रही थी, मैं भी तूफानी गति से धक्के मार रहा था, उसकी टाँगें मेरी कमर में फंस गई थी, मुझे धक्के देने के साथ उनका बोझ भी पड़ रहा था ! पर वो मुझे फूल की तरह हल्की लग रही थी!

कसी हुई योनि में घर्षण करने से मेरे लिंग के सुपारे पे जो चमड़ी पूरी तरह से उलटी नहीं होती है मेरे वहाँ भी कट गया था जो टीस दे रहा था, मेरे घुटने छिल गए थे, वहाँ से भी हल्का हल्का खून निकल कर जम गया था पर इस स्वर्गीय आनन्द के सामने ये जख्म मामूली थे !

अब वो बिल्कुल मेरे सीने में घुस गई थी, अपना सर मेरे साथ ही ऊँचा-नीचा कर रही थी। जमीन पर सिर्फ उसके कूल्हे या थोड़े सी पीठ ही टिकी हुई थी ! अब वो छूट रही थी, उसके मुँह से किलकारियाँ सी निकल रही थी पर वो मेरे सीने में घुट रही थी, उसने शर्ट के ऊपर से ही मेरे सीने में हल्का सा काट लिया था, उचक कर मेरे कान को काटा, साथ ही भरपूर गाल पर 3-4 चुम्बन दिए, होंट नहीं चूसे। मैं भी अब पिचकारियाँ छोड़ रहा था और धक्के भी मार रहा था। मेरी पिचकारी ने उसकी योनि को भर दिया था, उसके गर्भ का मुझे डर नहीं था, वो शादीशुदा ही थी ! लेकिन उसकी मस्ती उतरी और उसने अपने जांघों में चिपचिपा महसूस होते ही नारी सुलभ स्वाभाव के साथ मुझे धक्का दिया, कोई भी लड़की अपने पति के अलावा किसी दूसरे का वीर्य अपने योनि में कम पसंद करती है !

उसके अचानक धक्का देने की वजह से मेरे वीर्य के कुछ छींटे मेरे शर्ट पर भी लग गए, मैं अब वहाँ से हट गया, वो भी दूर हो गई, एक चारपाई पड़ी थी उस पर जाकर किसी शरीफ लड़की की तरह सो गई और अपनी सांसें व्यवस्थित करने लगी !

अब मैं फटाफट अपने जूते पहन कर नीचे आ गया, मेरी पैंट की चेन के पास हम दोनों के संयुक्त पानी का धब्बा बन चुका था जिसे मैंने अपना शर्ट बाहर निकाल कर छिपा लिया ! वैसे मैं हमेशा कमीह पैंट के अन्दर ही रहता हूँ। पर शर्ट पर भी तो मेरी पिचकारी के धब्बे थे, उनके इलाज के लिए मैंने मटके से पानी लिया और पीने के बहाने थोड़ा पानी अपने शर्ट पर गिरा लिया, अब सारे धब्बे एक जैसे हो गए थे ! अब जब पानी सूखेगा तो वो पानी भी सूख जायेगा !

थोड़ी देर में अपनी जान्घें पौंछ कर पुष्पा भी नीचे आ गई, शायद उसके ससुराल की कोई औरत थी, उसने घूंघट निकाल लिया ! पर उसके झीने घूँघट में मेरी तरफ ताकती आँखें मुस्कुराते होंट मुझे दिख रहे थे !

कहते हैं ना- कितनी भी ओट करो, घूँघट से चंचल नैन छिपाए ना छिपें !

यानि अब वो ज्यादा सेक्सी लग रही थी !

जिन औरतों ने कन्यादान दिया था, वे सभी भूखी थी, उन सबको मैंने और दूसरे लोगों ने खाना परोसा ! पुसी भी खाना खा रही थी। मैं बार बार उसको ही परोसने के लिए जा रहा था !

वो फटाफट खाना खाकर शादी वाले घर में आ गई, बाकी की औरतें आराम से खाना खा रही थी, इक्का दुक्का औरतें घर में थी, पर वे नीचे थी। पुसी फटाफट छत पर चली गई और मैं पीछे पीछे ! वो वहाँ जाकर खटिया पर लेट गई पर मैं हमारे समागम वाले स्थान पर लेट गया। पुसी ने तिरछी होकर मेरी तरफ देखा, मैंने आने का इशारा किया, उसने इशारो में कहा कि कोई आ जायेगा !

मैंने कहा- मुझे सब दिखाई दे रहा है, कोई आएगा तो भाग कर वहाँ चली जाना !

अब कामदेव मुझ पर मेहरबान थे, अब नाग देवता फुन्कारें मार रहे थे, मैंने सोचा आज इस बन्दूक को पूरी तरह से खाली कर देनी है।

मेरे बार बार बुलाने से वो आ गई और पहले वाली जगह पर सो कर मुझसे चिपक गई ! मैंने भी उसको लिपटा लिया इस बार नीचे ध्यान में रख रहा था !

मैंने उसके घाघरे में हाथ डाल कर ऊपर खिसकाया ही था कि एक आदमी मुझे सीढ़ियों की तरफ आता दिखाई दिया। मैंने सोचा वो ऊपर आएगा।

मैंने पुष्पा को कहा और वो तीर की उठ कर अपनी खटिया पर जाकर लेट गई !

और साला वो ऊपर आया ही नहीं, एक सीढ़ी चढ़ कर ही वापिस चला गया। अगर मैं एक क्षण नहीं कहता तो पुसी नहीं भागती फिर तो मैंने बार बार कहा पर वो नजदीक नहीं आई।हालाँकि बाद में आधे घंटे तक कोई नहीं आया ! मेरे किस्मत कहीं कहीं धोखा भी दे जाती है जो पुसी के मामले में हुआ ! फिर कभी मुझे वो नसीब नहीं हुई !

थोड़ी देर में औरतों के आने के बाद में अपने घर चला गया ! उसका पति भी जल्दी आकर उसे ले गया !

एक बार मैं उसके गाँव गया, रात भर वहाँ रुका भी पर सोते वक़्त उसकी और मेरी चारपाई के बीच उसकी माँ सोई ! रात को में जगा भी उसे जगाने के लिए उस पर पानी भी फेंका, वो जगी भी पर अपनी माँ की तरफ इशारा कर असमर्थता व्यक्त कर दी !

फिर कई महीनों के बाद उसके गाँव गया, वो अकेली थी, उसने चाय भी पिलाई पर पेट उसका पूरा ढोल हो रहा था, नौवां महीना चल रहा था ! मैंने उसे सिर्फ चुम्बन देने का कहा पर उसने डर कर मना कर दिया कि कही मैं शुरू ना हो जाऊँ ! हालाँकि उसकी स्थिति देख कर में ऐसे नहीं करता !

उसका मेरे प्रति अविश्वास देख कर मेरा दिल टूट गया फिर मैं वहाँ नहीं गया ! अब से कुछ दिन पहले उसके भाई का विवाह था तो मैं वहाँ थोड़ी देर के लिए गया था, वो 28-30 साल की उम्र में ही काफी बड़ी लग रही थी !

किसी ने कहा कि वो बहुत चालू किस्म की हो गई है, पति तो उसके काम का था नहीं तो और क्या करती वो ! सस्ती सी लिपस्टिक लगाये अच्छी नहीं लग रही थी !

मैंने एक बार पूछा- पुसी, हमें भूल गई हो शायद?

उसका जबाब था- तुम भूलने वाली चीज नहीं हो !

पर मैंने मन में जो देहाती पुसी की छवि थी वो चूर चूर हो गई !

तो दोस्तो, यह थी जीजाजी के प्यार की कहानी !

आप कहोगे कि जब जीजाजी ने तुम्हें अपनी आपबीती सुनाई तो क्या महसूस हुआ?

तो मेरा जबाब है कि मुझे कोई जलन नहीं हुई, उस वक़्त तो वो मेरे प्रेमी भी नहीं थे ! इसके अलावा भी उन्होंने कई बातें बताई थी वो भी मैं आपको कभी फुर्सत में बताऊँगी !

आपने मेरी इतनी बकवास कहानी पढ़ी उसके लिए धन्यवाद !

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देहाती यौवन-3

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