देहाती यौवन-2
लेखिका : कमला भट्टी
मैंने चुपचाप उसकी सख्त गोलाइयों को पकड़ा और शर्ट के ऊपर से ही मसलना शुरू कर दिया, मेरे होटों ने उसके होंठों को चूम लिया !
यह सब इतनी जल्दी हुआ कि वो समझे तब तक मैं उसके शरीर का भूगोल नाप चुका था ! वो हड़बड़ा कर उठी और मेरे पर क्रुद्ध और कठोर शब्दों में बोली- यह क्या कर रहे हो? तुम्हें शर्म नहीं आती? मुझे क्या ऐसी वैसी समझा है क्या?
पर उसकी ललचाती अदाओं के धोखे का गुस्सा था जो मेरे मुँह से फूट पड़ा, मेरे मुँह से भी गुर्राती सी आवाज़ निकली, मैं दबंग लड़ाकू और गुस्सैल ही था, डरना तो किसी से सीखा ही नहीं था, मैं गुर्राया- साली…. अभी तो मजे ले रही थी ! अपनी कमर मटका रही थी मेरे बिस्तर पर सोकर सेक्सी पोज दे रही थी? अब मादरचोद नखरे कर रही है? माँ चुदा ! भाग यहाँ से, जा कह दे जिसको कहना है?
वो भी मेरे गुस्से को देख कर सन्न रह गई अपनी मौसी के घर चली गई !
तभी कोई बच्चा वहाँ मुझे बुलाने आ गया कि दुल्हन की माँ मुझे बुला रही है।
अब मुझे जाना ही था, शायद उसने शिकायत कर दी हो वहाँ जाकर ! मुझे उन्हें समझाना तो था ही वर्ना वो मेरे घर भी आ सकते थे।
मैं भारी क़दमों से शादी वाले घर की तरफ चल पड़ा ! हाँ कैमऱा मेरे गले में ही लटका हुआ था !
मैं जब शादी वाले घर में दाखिल हुआ तो मेरा सामना दुल्हन की माँ से ही हुआ ! उसका मुस्कुराता चेहरा देख कर मैं समझ गया कि उसने इसको कुछ नहीं कहा है।
वो मुस्कुराते हुए बोली- मैंने कहा था न उनकी जी भर कर फोटो खींच देना, मैं और रील डलवा दूँगी, पुसी (छोटी वाली का नाम पुष्पा था जिसे घर पर पुसी कहते थे) को कुछ फोटो और खींचवाने हैं, वो कह रही है कि तुम फोटो खींचने में कंजूसी कर रहे हो।
मैंने चौंक के इधर उधर देखा तो वो छोटी वाली पटाका बरामदे के साथ लगी सीढ़ियों पर खड़ी थी जो छत पर जाती थी।
उसने मुस्कुरा कर कहा- यहाँ छत पर ही मेरी फोटो खींच दो।
और ऐसा बोल कर मेरे जवाब का इन्तजार किये बिना वो ऊपर चली गई।
मैंने मन ही मन अपने इष्ट देव को धन्यवाद दिया और कहा- यार मेरा काम तो करता है पर एक दो झटके देकर करता है, तेरी माया अपरम्पार है, हे इश्वर, तू बड़ा दयालु है !
ऐसा सोचते में छत पर गया तो वहा और कोई नहीं था ! सिर्फ पुसी मुस्कुरा रही थी !
वो दीवार के सहारे लग कर अपने दोनों हाथ उठा कर अंगडाइयाँ लेती हुई बोली- यहाँ इस पोज में मेरी फोटो खींचो !
मैं सीधा उसके पास गया और अपने दोनों हाथों में उसके उन्नत वक्ष थाम लिए जो उसके हाथ उठा लेने की वजह से ज्यादा ही उभर गए थे !
उसके मुँह से सिसकारी निकल गई- आआ आआआआ आ आअ ह हह ह हहह हहहह अरे ए ए ए ए ए ए तोड़ी काई ऐने?
(उखड़ेगा क्या इनको)
मैं भी कुछ गुस्से में बोला- मादरचोद, पहले क्या हुआ था? भेन्चोद गुस्सा करके क्यों आई थी जब ये सोचा हुआ था तो?
और ऐसे कहते मैंने उसके कन्धों में दांत गड़ा दिए। चेहरे पर निशान सबको दिख जाते न !
साथ ही उसकी गोलाइयों को जोर से मसल दिया !
वो ठेठ राजस्थानी भाषा में कराह कर बोली-अरीईईईईई थारा बाप ने दुखे रे एने धीरे दबा रे !
मुझे अपने बाप के नाम की गाली सुनकर और गुस्सा आ गया !
मैंने और जोर से उसके कंधों में काटा एक हाथ से उसके वक्ष जोर से खींचे एक हाथ से उसकी लम्बी चोटी को पीछे की तरफ खींचा वो थोड़ी कमान की तरह हो गई।
और बोला- मादरचोद, अगर अबकी बार मेरे माँ या बाप को याद किया या उन्हें गाली दी तो तेरी माँ चोद दूँगा !
मैं कभी भी अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं करता था और मेरे साथ हमेशा इगो प्रोब्लम रही, मैं कोई भी काम करता तो किसी से दब के नहीं रहता था !
उसकी आँखों के कोरों से थोड़े आँसू झिलमिला उठे पर वो मुस्कुरा कर बोली- अरे, अब मैं ऐसे नहीं बोलूंगी, मुझे पता चल गया कि तुम्हें गुस्सा बहुत आता है !
मैंने भी यह सुना तो मेरा गुस्सा काफूर हो गया और मैंने उसके कंधों को सहला दिया जिस पर शर्तिया मेरे दांतों के निशान पड़ गए होंगे !
फिर मैंने बड़े प्यार से उसके होटों की चुम्मी ली उसकी पीठ को पकड़ कर अपने सीने से चिपटा लिया वो भी बेल की तरह मुझसे लिपट गई !
अब सारे गिले शिकवे दूर हो गए थे ! अब ज्यादा देर वहाँ ठहरना खतरे से खाली नहीं था, शादी वाला घर था, कोई भी ऊपर आ सकता था !
अभी लड़के बारात रवाना होने वाली थी और बाद में लड़की की आने वाली थी !
शादी इसी शहर में थी !
मैंने पुसी से कल के लिए मेरे एक दूसरे सूने पड़े घर में आने का वादा लिया जहाँ हमारा ट्रेक्टर और उसका सामान पड़ा रहता था !
और आखिरी बार उसका चुम्बन लिया मेरा आवारा हाथ उसके घाघरे के ऊपर से ही त्रिभुज को सहला आया था !
अधिकांश देहाती बालाओं की तरह उसने पैंटी नहीं पहनी थी !
क्या गुदाज अहसास था, खूब उभरा हुआ मांसल सा अहसास, जैसे पाव रोटी हो !
वो उठी उसका बदन काँप उठा, टाँगें थरथरा उठी !
मैं फटाफट नीचे आ गया और उनके काम करने लगा। मैंने ध्यान दिया कि वो अपने आप को सामान्य कर एक मिनट बाद नीचे आई थी !
अब उसकी गहरी आँखें कई बार मेरी आँखों से टकराती तो एक मादक मुस्कान उसके होटों पर आ जाती, मुझे अपने दिल को संभालना भारी पड़ जाता ! मैं अब उसके ख्यालों में ही था कि मेरी किस्मत कब बुलंद होगी !
थोड़ी देर वहा कुछ काम किया और फिर वहाँ से लड़के की बारात रवाना हुई, पास के मोहल्ले में ही जानी थी !
दूल्हे की माँ ने कहा- अभी तुम मेरे बेटे की बारात में चले जाओ, वहाँ इसके फोटो खींच लेना, फिर जब वो शादी के मंडप में बैठ जाये तब यहाँ आ जाना, तब तक मेरी बेटी की बारात भी आ जाएगी। फिर यहाँ इस शादी के फोटो ले लेना !
मैं बारात में रवाना हो गया। दूल्हा घोड़ी पर था बाकी को तो पैदल ही जाना था ! साथ में औरतें लड़कियाँ भी थी जिनमें मेरी जान भी थी !
रास्ते में कुछ फोटो खींचे और जब वहाँ पहुँच कर दूल्हा शादी के मंडप में बैठ गया तो कुछ बाराती वहाँ रुके, बाकी सभी वापिस दुल्हन की बारात का स्वागत करने वापिस घर आ गए क्यूंकि दो भाई बहनों की शादी थी ना !
सब औरतें लड़कियाँ भी वापिस आ गई थी, मैं भी आ गया, अब मेरे लिए वहाँ क्या रखा था !
यहाँ आया तो यहाँ भी बारात आ गई थी, कुछ फोटो ली और जब वे भी शादी के मंडप में बैठ गए तो मैं भी छत पर चला गया जहाँ कई औरतें और लड़कियाँ बातें कर रही थी, कुछ लेटी हुई थी ! उन सबको अब शादी होने के बाद कन्यादान (हथलेवा) का इन्तजार था जिसमें वे सब अपनी तरफ से दुल्हन को रुपये, चाँदी के गहने, बर्तन आदि का दान करके फिर दुल्हन का मुँह देख कर खाना खाना चाहती थी ! अब कम से कम 2 घंटे का इन्तजार था !
मैं ऊपर गया तो वो कच्ची देहातन पुसी अपनी बहन और एक दो औरतों के साथ एक तरफ छत पर लेटी हुई थी ! छत पर अँधेरा था और काफी औरतें थी तो उसे पता था कि मुझे पता नहीं चलेगा कि वो कहाँ है।
उसने जान बूझ कर अपनी बहन से जोर से बोल कर बात की तो मुझे उसका पता चल गया ! वो दो-चार लड़कियाँ और औरतें जो उसके साथ की थी, बाकी की महिलाओं से कुछ हट कर सो रही थी। मैं सीधा उनके पास चला गया, दूसरी महिलाओं ने मेरा नोटिस नहीं लिया ! मेरे गले में कैमरा भी लटका हुआ था और वो समझ रही थी शायद ये बाद और फोटो खीचेंगे, उसके अलावा वो मुझे जानती भी थी ! तो मुझे कोई परेशानी नहीं हुई पुसी के पास बैठ कर बाते करने में।
थोड़ी देर में करीब करीब सब नींद के आगोश में थी, कोई इक्का-दुक्का महिला ही उनींदी सी थी ! मैं भी पुसी के पास बैठा बैठा अपने हाथ सेंक रहा था ! मेरे हाथ पुसी के वक्ष पर घूम रहे थे वो लेटी हुई थी और में बैठा हुआ था, अँधेरे में किसी को मेरा हाथ नहीं दिख रहा था। करीब आधे घंटे से मैं उसको सहला रहा था, उसके पेट, कमर, गाल पर मेरा हाथ चल रहा था !
मेरी आँखें अब अँधेरे की अभ्यस्त हो चुकी थी इसलिए मैं उसके काफी नजदीक था तो उसके चेहरे की उत्तेजना भी नज़र आ रही थी।
मुझे लगता था कि मेरे सिद्धहस्त हाथों ने उसके योनि मार्ग को कई बार गीला कर दिया होगा ! अब मुझ से कंट्रोल नहीं हो रहा था, छत पर एक कमरा भी बना हुआ था पर गर्मी की वजह से उसमें कोई सोया नहीं था ! मैंने फुसफुसा कर उसे कमरे में चलने को कहा ताकि हम अपने दहकते बदनों की कामाग्नि बुझा सके ! पर उसने बाकी की सोई हुई महिलाओं की तरफ इशारा कर मना कर दिया कि कोई जगी हुई हो सकती है।
करीब 15-20 महिलायें थी, मैंने भी सोचा कि ऐसा हो सकता है और कमरे की गर्मी भी मुझे पता थी, वहाँ ऐसे ही नहीं ठहर सकते फिर सुपरफास्ट गाड़ी चलाएँगे तब क्या हालत होगी !
मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था एक क्षीण सी आशा थी कि शायद यह कल मेरे दूसरे मकान में आ जाये !
पर उसने फुसफुसा कर मेरे टेंशन को कम कर दिया उसने धीरे से मुझे कहा- जब कन्यादान होगा तो ये सारी महिलाएँ नीचे जाएगी अपनी अपनी भेंट देने, तब यहाँ कोई नहीं रहेगा और फिर तो ये खाना खाकर ही ऊपर आएँगी, उस दररान अपना काम हो सकता है।
मेरे दिमाग की बत्ती जल चुकी थी, मैंने जोर से उसकी गोलाइयों को सहला कर उसे धन्यवाद दिया ! जबाब में वो भी गर्वपूर्ण मुस्कुरा दी क्यूंकि उसने मेरे जैसे होशियार शहरी की समस्या सुलझाई थी !
अब मुझे कन्यादान का इन्तजार था हालाँकि मेरे हाथ उसे लगातार गरम करते रहे ! तभी पंडित जी ने कन्यादान का बुलावा दिया तो मैंने और पुसी ने सब महिलाओं को कन्यादान देने का कहा, सब औरतें और मैं भी नीचे गया, मुझे भी कन्यादान में रुपये देने थे।
घर के चौक में शादी हो रही थी, चौक के ऊपर हवा और धूप आने का लोहे का जंगला लगा था जहाँ से मुझे पुसी नीचे देखती दिखाई दे रही थी ! अब छत पर सिर्फ वो अकेली ही थी वो अपनी योजना के मुताबिक़ नीचे नहीं आई थी।
मैं नीचे आया तो दुल्हन के पिताजी बोले- मास्टर जी, आप यह पैन-कोपी ले लो और जो भी इसके कन्यादान में आता हो इसमें लिख लो !मेरे सर पर जैसे बम फूटा, मैंने सोचा अगर मैं यहाँ बैठ गया तो मेरी नयी नवेली दुल्हन छत पर इन्तजार ही करती रह जाएगी !
मैंने ऊपर जंगले की तरफ देखा, पुष्पा की आँखों में भी प्रश्नवाचक भाव थे पर मेरे दिमाग ने भी फटाफट काम किया उस दुल्हन का एक भाई शादी के लिए गया हुआ था पर बड़ा भाई वहीं खड़ा था, वो भी 19-20 साल का था। मैंने फटाफट उसे कोपी और पैन दिया और कहा- अरे तुमने भी तो दसवीं क्लास पास की है, तुम लिखो, पता भी चल जायेगा कि हिसाब में तुम कितने होशियार हो !
उसके पिताजी और माँ की नज़रों में मेरे लिए प्रंशसा के भाव उभरे ! ऊपर झुक के नीचे चौक में देखती पुसी के चेहरे पर भी मुस्कान उभरी !
उस लड़के को सबसे पहले मैंने पैरों की अँगुलियों में जो चांदी की बिछिया पहनते हैं वो मैंने अपनी तरफ से दुल्हन को कन्यादान के लिए दी साथ ही 100 रुपये भी दिए ! हमारे यहाँ ऐसा ही रिवाज़ है कि हमारे मोहल्ले की लड़की की शादी होती है तो सारे मोहल्ले वाले उसे कुछ न कुछ देते है भले ही वो उसके परिवार या उसकी जाति की ना हो !
तो मैंने अपना नाम और चीजें लिखवाई और कहा- मैं अपने बूट ऊपर ही भूल आया हूँ, वो लेकर आता हूँ !
(जो मैंने जानबूझ कर ऊपर छोड़े थे) नीचे मैं सिर्फ मोज़े ही पहने आ गया था !
अब बाकी की औरतें भी अपने अपने रुपये बर्तन या कोई चीज जो दुल्हन के लिए लाई थी, वो देने और लिखवाने लग गई थी ! अब मुझे पता था कि यहाँ शादी पूरी होने में एक घंटा लगना था !
और यहीं से सब खाना खाने जायेंगे, ऊपर अभी कोई आने वाला नहीं है।
मैं ऊपर गया तो वो बाला मेरा ही इन्तजार कर रही थी, वो उस जंगले से नीचे देखती लेटी हुई थी मैं भी धीरे से उसके पास लेट गया, वो मुझसे लिपट गई !
मैंने उसे अपने सीने से लिपटाया और जोरों से भींच लिया ! अभी तक मेरा विचार अभी उसके साथ सेक्स करने का नहीं था, मैंने सोचा कि कुछ चूमा चाटी कर लेते हैं ! मेरे दिमाग ने अभी कबूल नहीं किया था कि इस स्थिति में इस शादी वाले भरे-पूरे घर में सेक्स भी हो सकता है क्या? मेरे दिमाग में तो यही था कि यह कल आएगी मेरे दूसरे मकान पर, वहीं धींगा मस्ती होगी।यही सोच कर मैं उसके बदन को सहला रहा था, उसकी सांसें तेज हो रही थी पर वो होशियारी से नीचे भी नज़र रख रही थी ! उसने बताया कि यहाँ से हम सबको देख सकते हैं, यहाँ तक कि छत पर आने वाली सीढ़ियाँ भी यहाँ से दिखाई देती हैं और जो भी ऊपर आता दिखाई देगा हम अलग अलग सो जायेंगे !
मेरा दिमाग उसकी होशियारी का कायल हो गया। अब मैं भी कभी कभी नीचे देख लेता था पर उसकी नज़र तो एकटक नीचे ही थी ! मैं अब उसके पूरे शरीर को सहला रहा था, ओढ़नी तो उसकी कभी की सरक गई थी, मैं उसके कब्जे के ऊपर से ही उसके वक्ष दबा रहा था, उसके चेहरे पर वासना का तूफ़ान दिखना शुरू हो गया था !
अब मेरे हाथों ने उसके घाघरे को धीरे धीरे ऊपर करना शुरू कर दिया था, उसने मेरे हाथ को रोकने की कोई कोशिश नहीं की। उसका बदन थरथरा रहा था।
हाँ, उसने अपनी जांघों को भींच लिया था पर मैं एक कुशल शिकारी था, मेरे पास वर्षों का अनुभव था !
कहानी जारी रहेगी।
What did you think of this story??
Comments