हुई चौड़ी चने के खेत में -2
(Hui Chaudi Chane Ke khet mein-2 )
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_left हुई चौड़ी चने के खेत में -1
-
keyboard_arrow_right हुई चौड़ी चने के खेत में -3
-
View all stories in series
लेखक : प्रेम गुरु
प्रेषिका : स्लिमसीमा (सीमा भारद्वाज)
प्रथम भाग से आगे :
“क्या उसने तुम्हारी कभी ग… गां… मेरा मतलब है…!” मैं कहते कहते थोड़ा रुक गई।
“हाँ जी ! कई बार मारते हैं।”
“क्या तुम्हें दर्द नहीं होता ?”
“पहले तो बहुत होता था पर अब बहुत मज़ा आता है।”
“वो कैसे ?”
“मैंने एक रास्ता निकाल लिया है।”
“क….क्या ?” मेरी झुंझलाहट बढ़ती जा रही थी। कम्मो बात को लंबा खींच रही थी।
“पता है वो कोई क्रीम या तेल नहीं लगता ? पहले चूत को जोर जोर से चूस कर उसका रस निकाल देता है फिर अपने सुपारे पर थूक लगा कर लंड अंदर ठोक देता है। पहले मुझे गांड मरवाने में बहुत दर्द होता था पर अब जिस दिन मेरा गांड मरवाने का मन होता है मैं सुबह सुबह एक कटोरी ताज़ा मक्खन गांड के अंदर डाल देती हूँ। हालांकि उसके बाद भी यह चुनमुनाती तो रहती है पर जब मैं अपने चूतडों को भींच कर चलती हूँ तो बहुत मज़ा आता है।”
अब आप सोच सकते हो मेरी क्या हालत हुई होगी। मेरा मन बुरी तरह उस मोटे लंड के लिए कुनमुनाने लगा था। काश एक ही झटके में जगन अपना पूरा लंड मेरी चूत में उतार दे तो यह जिंदगी धन्य हो जाए। मेरी छमिया ने तो इस ख्याल से ही एक बार फिर पानी छोड़ दिया।
कम्मो ने खाना बहुत अच्छा बनाया था। चने के पत्ते वाली कढ़ी और देसी घी में पड़ी शक्कर के साथ बाजरे की रोटी खाने का मज़ा तो मैं आज तक नहीं भूली हूँ। कम्मो ने बताया कि कल वो दाल बाटी और गुड़ का चूरमा बना कर खिलाएगी।
शाम के 4 बज रहे थे। हम लोग वापस आने के लिए जीप में बैठ गए तो जगन उस झोपड़े की ओर चला गया जहां कम्मो बर्तन समेट रही थी। वो कोई 20-25 मिनट के बाद आया। उसके चेहरे की रंगत से लग रहा था कि वो जरूर कम्मो को रगड़ कर आया है। सच कहूँ तो मेरी तो झांटे ही जल गई।
मेरा मन चुदाई के लिए इतना बेचैन हो रहा था कि मैं चाह रही थी कि घर पहुँचते ही कमरा बंद करके घोड़ी बन जाऊं और गणेश मेरी कुलबुलाती चूत में अपना लंड डाल कर मुझे आधे घंटे तक तसल्ली से चोदे। पर हाय री किस्मत एक तो गणेश देर से आया और फिर रात में भी उसने कुछ नहीं किया। उसका लंड खड़ा ही नहीं हुआ। मैंने चूसा भी पर कुछ नहीं बना। वो तो पीठ मोड़ कर सो गया पर मैं तड़फती रह गई। अब मेरे पास बाथरूम में जाकर चूत में अंगुली करने के सिवा और क्या रास्ता बचा था !
आपको बता दूँ जिस कमरे में हम ठहरे थे उसका बाथरूम साथ लगे कमरे के बीच साझा था और उसका दरवाज़ा दोनों तरफ खुलता था। मैंने अपनी पनियाई चूत में कोई 15-20 मिनट अंगुली तो जरूर की होगी तब जाकर उसका थोड़ा सा रस निकला। अब मुझे साथ वाले कमरे से कुछ सीत्कारें सुनाई दी। मैंने बत्ती बंद करके की-होल से उस कमरे में झाँका। अंदर का नज़ारा देख कर मेरा रोम रोम झनझना उठा।
मंगला मादरजात नंगी हुई अपनी दोनों टांगें चौड़ी किये बेड पर चित्त लेती थी और उसने अपने नितंबों के नीचे एक मोटा तकिया लगा रखा था। जगन उसकी जाँघों के बीच पेट के बल लेटा हुआ मंगला की झांटों से लकदक चूत को जोर जोर से चाट रहा था जैसे वो झोटा उस भैंस की चूत को चाट रहा था। जैसे ही वो अपनी जीभ को नीचे से ऊपर लाता तो उसकी फांकें चौड़ी हो जाती और अंदर का गुलाबी रंग झलकने लगता। मंगला ने जगन का सर अपने हाथों में पकड़ रखा था और वो आँखें बंद किये जोर जोर से आह्ह…. उह्हह…. कर रही थी। मुझे जगन का लंड अभी दिखाई नहीं दिया था। अचानक जगन ने उसे कुछ इशारा किया तो मंगला झट से अपने घुटनों के बाल चौपाया हो गई और उसने अपने चूतड़ ऊपर कर दिए।
झूले लाल की कसम ! उसके नितंब तो मेरे नितंबों से भी भारी और गोल थे। अब जगन भी उठ कर उसके पीछे आ गया। अब मुझे उसके लंड के प्रथम दर्शन हुए। लगभग 8 इंच का काले रंग का लंड मेरी कलाई जितना मोटा लग रहा था और उसका सुपारा मशरूम की तरह गोल था।
अब मंगला ने कंधे झुका कर अपना सर तकिये पर रख लिया और अपने दोनों हाथ पीछे करके अपनी चूत की फांकों को चौड़ा कर दिया और अपनी जांघें थोड़ी और चौड़ी कर ली। चूत का चीरा 5 इंच का तो जरुर होगा। उसकी फांकें तो काली थी पर अंदर का रंग लाल तरबूज की गिरी जैसा था जो पूरा काम-रस से भरा था। जगन ने पहले तो उसके नितंबों पर 2-3 बार थपकी लगाई और फिर अपने एक हाथ पर थूक लगा कर अपने सुपारे पर चुपड़ दिया। फिर उसने अपना लंड मंगला की चूत के छेद पर रख दिया। अब जगन ने उसकी कमर पकड़ ली और उस झोटे की तरह एक हुंकार भरी और एक जोर का झटका लगाया। पूरा का पूरा लंड एक ही झटके में घप्प से मंगला की चूत के अंदर समां गया। मेरी तो आँखें फटी की फटी रह गई। मैं तो सोचती थी कि मंगला जोर से चिल्लाएगी पर वो तो मस्त हुई आह…याह्ह…करती रही।
मेरी साँसें तेज हो गई थी और दिल की धड़कने बेकाबू सी होने लगी थी। मेरी आँखों में जैसे लालिमा सी उतर आई थी। मुझे तो पता ही नहीं चला कब मेरे हाथ अपनी चूत की फांकों पर दुबारा पहुँच गए थे। मैंने फिर से उसमें अंगुली करनी चालू कर दी। दूसरी तरफ तो जैसे सुनामी ही आ गई थी। जगन जोर जोर से धक्के लगाने लगा था और मंगला की कामुक सीत्कारें पूरे कमरे में गूँजने लगी थी। बीच बीच में जगन उसके मोटे नितंबों पर थप्पड़ भी लगा रहा था। वो धीमी आवाज में गालियाँ भी निकाल रहा था और मंगला के नितंबों पर थप्पड़ भी लगा रहा था। जैसे ही वो उन कसे हुए नितंबों पर थप्पड़ लगाता नितंब थोड़ा सा हिलते और मंगला की सीत्कार फिर निकल जाती।
वो तो थकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। दोनों ही किसी अखाड़े के पहलवानों की तरह जैसे एक दूसरे को हारने की कोशिश में ही लगे थे। जैसे ही जगन धक्का लगता मंगला भी अपने नितंब पीछे की ओर कर देती तो एक जोर की फच्च की आवाज आती। उन्हें कोई 10-12 मिनट तो हो ही गए होंगे। जगन अब कुछ धीमा हो गया था। वो धीरे धीरे अपना लण्ड बाहर निकालता और थोड़े अंतराल के बाद फिर एक जोर का धक्का लगता तो उसके साथ ही मंगला की चूत की गीली फांकें उसके लण्ड के साथ ही अंदर चली जाती।
मैंने कई बार ब्लू फिल्म देखी थी पर सच कहूँ तो इस चुदाई को देख कर तो मेरा दिल बाग-बाग ही हो गया था। मेरी आँखों में सतरंगी तारे जगमगाने लगे थे। मैंने अपनी चूत में तेज तेज अंगुली करनी चालू कर दी। मेरे ना चाहते हुए भी मेरी आँखें बंद होने लगी और मैं एक बार फिर झड़ गई।
अब जगन ने मंगला के नितंबों पर हाथ फिराया और दोनों गोलों को चौड़ा कर दिया उसके बीच काले रंग का फूल जैसे मुस्कुरा रहा था। उसने धक्के लगाने बंद नहीं किये थे। हलके धक्कों के साथ वो फूल भी कभी बंद होता कभी थोड़ा खुल जाता। अब वो अपना एक हाथ नीचे करके मंगला की चूत की ओर ले गया। मेरा अंदाज़ा था कि वो जरुर उसकी चूत के दाने को मसल रहा होगा। अब उसने दूसरे हाथ का अंगूठा मुँह में लेकर उस पर थूक लगाया और फिर मंगला की गांड के छेद में घुसा दिया।
इसके साथ ही मंगला की एक किलकारी कमरे में गूँज गई………. ईईईईईईईईईईईईइ…………
शायद वो झड़ गई थी। कुछ देर वो दोनों शांत रहे फिर जगन ने अपना लण्ड बाहर निकल लिया। चूत रस से भीगा लण्ड ट्यूब लाइट की दूधिया रोशनी में ऐसा लग रहा था जैसे कोई काला नाग फन उठाये नाच रहा हो। उसका लण्ड तो अभी भी झटके खा रहा था। मुझे तो लगा यह अपना लण्ड जरुर मंगला की गांड में डालने के चक्कर में होगा। पर मेरा अंदाज़ा गलत निकला।
“मंगला….तेरी चूत तो अब भोसड़ा बन गई है।”
“अबे बहनचोद ! इस मूसल लण्ड से रोज चुदाई करेगा तो भोसड़ा नहीं तो क्या डब्बी ही बनी रहेगी ?”
“सच कहता हूँ मंगला एक बार गांड मरवा ले ! बाबो सा री सौगंध तू चूत मरवाना भूल जायेगी !”
“जाओ कोई और ढूंढ़ लो मुझे अपनी गांड नहीं फड़वानी !”
मंगला घोड़ी बने शायद थक गई थी वो अपने नितंबों के नीचे एक तकिया लगा कर फिर चित्त लेट गई। चूत पर उगी काली काली झांटें चूत रस से भीग गई थी। अब जगन फिर उसकी जाँघों के बीच आ गया और उसने अपना लण्ड हाथ में पकड़ कर उसकी चूत में डाल दिया। जब जगन उसके ऊपर लेट गया तो मंगला ने अपने दोनों पैर ऊपर उठा लिए। जगन ने अपना एक हाथ उसकी गर्दन के नीचे लगाया और एक हाथ से उसके मोटे मोटे उरोजों को मसलने लगा। साथ ही वो उसके होंठों को भी चूसे जा रहा था। मंगला ने उसे कस कर अपनी बाहों में जकड़ लिया। ऐसा लग रहा था जैसे दोनों गुत्थम-गुत्था हो गए थे। जगन के धक्कों की रफ़्तार अब तेज होने लगी थी।
मेरी चूत ने भी बेहताशा पानी छोड़ दिया था और ज्यादा मसलने के कारण उसकी फांकें सूज सी गई थी। मेरा मन कर रहा था कि मैं अभी दरवाज़ा खोल कर अंदर चली जाऊं और मंगला को एक ओर कर जगन का पूरा लण्ड अपनी चूत में डाल लूँ। या फिर उसको चित्त लेटा कर मैं अपनी छमिया को उसके मुँह पर लगा कर जोर जोर से रगडूं ! पर ऐसा कहाँ संभव था। लेकिन अब मैंने पक्का सोच लिया था कि चाहे जो हो जाए, मुझे कुछ भी करना पड़े मैं इस मूसल लण्ड का स्वाद जरुर लेकर रहूँगी।
उधर जगन ने धक्कों की जगह अपने लण्ड को उसकी चूत पर रगड़ना चालू कर दिया। मैंने मस्तराम की प्रेम कहानियों में पढ़ा था कि इस प्रकार लण्ड को चूत पर घिसने से औरत की चूत का दाना लण्ड के साथ बहुत रगड़ खाता है और औरत बिना कुछ किये धरे जल्दी ही झड़ जाती है। मंगला की सीत्कारें बंद बाथरूम तक भी साफ़ सुनाई दे रही थी।
अचानक मंगला की एक जोर की कामुक सीत्कार निकली और वो जोर जोर से चिल्लाने लगी,”ओह… जगन… अबे साले…जोर जोर से कर ना.. ओ….आह मेरी माँ उईई…माँ….. और जोर से मेरे राजा….या…..उईईईईई….”
अब जगन ने जोर जोर से धक्के लगाने शुरू कर दिए। मंगला ने अपने पैरों की कैंची सी बना कर उसकी कमर पर लपेट ली। जैसे ही जगन धक्के लगाने के लिए ऊपर उठता, मंगला के चूतड़ भी उसके साथ ही ऊपर उठ जाते और फिर एक धक्के के साथ उसके नितंब नीचे तकिये से टकराते और धच्च के आवाज निकलती और साथ ही उसके पैरों में पहनी पायल के रुनझुन बज उठती।
“जगन मेरे सांड…मेरे…राज़ा……अब निकाल दो….आह्ह्ह……..”
लगता था मंगला फिर झड़ गई है।
“ले मेरी रानी…. (उस भैंस का नाम भी रानी था ना ?) आह्ह…. अब मैं भी जाने वाला हूँ…. आह…यह्ह्ह्ह…….”
“ओ म्हारी माँ …. मैं … मर गई री ईईईइ …..”
और उसके साथ ही उसने 5-6 धक्के जोर जोर से लगा दिए। मंगला के पैर धड़ाम से नीचे गिर गए और वह जोर जोर से हांफने लगी जगन का भी यही हाल था। दोनों ने एक दूसरे को अपनी बाहों में जकड़ लिया और दोनों की किलकारी एक साथ गूँज गई और फिर दोनों के होंठ एक दूसरे से चिपक गए।
कोई 10 मिनट तक वो दोनों इसी अवस्था में पड़े रहे फिर धीरे धीरे एक दूसरे को चूमते हुए उठ कर कपड़े पहनने लगे। मुझे लगा वो जरुर अब बाथरूम की ओर आयेंगे। मेरा मन तो नहीं कर रहा था पर बाथरूम से बाहर आकर कमरे में जाने की मजबूरी थी। मैं मन मसोस कर कमरे में आ गई।
पढ़ते रहिए !
धन्यवाद सहित
वास्ते प्रेम गुरु आपकी स्लिमसीमा (सीमा भारद्वाज)
What did you think of this story??
Comments