औरतों की यौन-भावनाएँ-2
लेखक : जय कुमार
प्रथम भाग से आगे
कला झड़ गई और एक तरफ लुढ़क गई और मैं भी कला की बराबर में ही लेट गया क्योंकि मेरा काम तो ग्राहक को सन्तुष्ट करना था।
मैंने राहत की सांस ली कि कला जी इतनी जल्दी सन्तुष्ट हो गई।
मैं यही सोच रहा था कि 3-4 मिनट के बाद कला जी उठकर बैठ गई। मैं तो जानबूझ कर अपनी आँखें बन्द किये हुए लेटा था। तो कला जी कहने लगी- जय सो गये क्या ?
मैंने कहा- नहीं तो ! क्यों क्या हुआ?
तो कला कहने लगी- जय यार ! आपने तो मुझे इतनी जल्दी से ठंडा कर दिया ! आप तो कमाल के हो ! मैं आज बहुत दिनों के बाद बड़ी खुश हूँ ! चलो, एक एक पैग और लेते हैं।
मैंने कहा- जैसी आपकी मर्जी !
फिर हम दोनों ने एक एक पैग लिया और जो खाने के लिये था खाया।
हम दोनों नंगे ही एक दूसरे को देखते रहे, निहारते रहे।
मैं यही सोच-सोच कर हैरान था कि कला जी इस उम्र में भी सेक्स के प्रति क्या-क्या भावनाएँ रखती हैं !
कला ने कहा- जय, क्या सोचने लगे?
तो मैंने कहा- कला जी ! आप मुझे यह बताने का कष्ट करेंगी कि आप इस उम्र में भी सेक्स की इतनी इच्छा क्यों रखती हो।
कला बोली- जय, यह सोचना आप का काम नहीं है।
मैंने कहा- कला जी, माफ करना ! मैं आपको कष्ट नहीं देना चाहता !
तो कला बोली- नहीं जय ! मुझे नशा होने लगा है, आप मेरे पास आओ !
मैंने कला को बाहों में भर लिया और अपने होंठ कला के होठों पर रख दिये तो कला ने सहयोग करते हुए मुझे भी बाहों में भर लिया और हम दोनों एक दूसरे के शरीर से खेलने लगे।
3-4 मिनट के बाद मैंने कहा- कला जी बैडरुम में चलें?
तो कला कहने लगी- हाँ !
और मैं कला को बाहों में भरकर बैडरुम में ले गया। मैंने कला को बैड पर लिटा दिया। इसके बाद कला जी ने बहुत सारी बातें अपनी जिन्दगी के बारे में विस्तारपूर्वक बताई जिनको मैं भी सुनकर हैरान रह गया जो मैं आप लोगों को अपनी इस कहानी में या फिर अगली किसी कहानी में नहीं बताना चाहूँगा क्योंकि मेरा काम व्यव्सायिक है, मैं अपनी किसी भी ग्राहक की निजी जिन्दगी के बारे में नहीं बता सकता।
मैं अपनी कहानी आगे शुरु करता हूँ।
फिर मैंने कला के बदन को सहलाना शुरु किया। कभी किसी जगह से मसलता तो कभी किसी जगह से मसलता और कला के शरीर में भी उत्तेजना जगने लगा। कला भी मेरा साथ देने लगी।
कुछ देर के बाद मैं अपनी साइड बदल के 69 की पोजीशन में आ गया, कला की चूत को अपनी अँगुलियों से खोला और अपनी जीभ कला की चूत पर चलाने लगा तो कला के शरीर में उत्तेजना होने लगी और फिर मैं अपनी जीभ को कला की चूत में अन्दर तक डाल कर चोदने लगा तो कला की उत्तेजना बहुत ही ज्यादा बढ़ गई और कला ने मेरा लन्ड अपने मुँह में डाल लिया और मुँह से मेरे लन्ड से खेलने लगी। मेरा लन्ड अकड़ कर लोहे की रॉड की तरह से हो गया।
कुछ ही देर के बाद कला ने मेरे लन्ड को मुँह से निकालकर मुझे अपने से अलग किया, मेरे ऊपर सवार हो कर मेरे लन्ड को अपनी चूत पर रखा। चूत तो कला की गीली थी ही, बस एक ही बार में कला ने ऊपर से एक ऐसा धक्का मारा कि एक ही बार में किसी भी रुकावट के बिना लन्ड पूरा अन्दर पहुँच गया। कला को कुछ भी नहीं हुआ और मुझे लगा कि कला के ऊपर नशा कुछ ज्यादा ही हावी हो गया था।
बस फिर क्या था, कला के धक्कों की रफ्तार बढ़ने लगी और मेरे मुँह से भी सिसकारियाँ निकलने लगी। मैं भी मजे में बड़बड़ाने लगा और कला- और जोर से जोर से आ आ आ ईईईईईईईइ आइऐइ आऐ ऐऽऽअऽऽ करने लगी।
पर मुझे पूरा मजा देना कला के बस की बात नहीं थी। थोड़ी ही देर 5-7 मिनट में वो मेरे ऊपर गिर गई।
मैंने कहा- कला, क्या हुआ?
तो कला कहने लगी- यार जय, हिम्मत जवाब दे गई ! मजा बहुत आया !
तो मैं कहने लगा- कला, कोई बात नहीं ! आपका काम हो गया !
तो कला कहने लगी- हाँ जय, मेरा तो हो गया पर आपका तो नहीं हुआ ! मैं आपको ऐसे थोड़े ही जाने दूंगी। अब आप मेरे ऊपर आ जाओ !
तो मैं कहाँ रुकने वाला था, मैंने कला को नीचे डाला और अपना लन्ड कला की चूत पर रखा और एक ही बार में पूरा का पूरा अन्दर तक डाल दिया। पर कला ने उफ तक नहीं की और मैं भी कला की चूत में जबरदस्त धक्के पे धक्के लगाने लगा।
कला कहने लगी- जय और जोर से ! जोर आ आ म्म्म्म म एम अम मेमेमे मेए आ अ अ
पता नहीं क्या क्या कहने लगी। मैं भी अपना काम खत्म करने की सोच रहा था पर मेरा छुटने का नाम ही नहीं ले रहा था।
मैंने कहा- कला जी, आप बिस्तर से नीचे आ जाओ !
तो कला कहने लगी- जय, क्या विचार है?
तो मैंने कहा- विचार तो नेक ही है !
तो कला कहने लगी- आप चाहते हो कि मैं कुतिया बन जाऊँ?
मैंने कहा- नहीं कला जी ! मैंने ऐसा तो नहीं कहा।
तो कला कहने लगी- जय, मैं सब कुछ समझती हूँ, लो, मैं अपने आप ही कुतिया बन गई ! डालो मेरी चूत में अपना लन्ड।
और कला अपने दोनों हाथ बैड पर रख कर झुक गई। मैंने भी अपना लन्ड कला की चूत में पीछे से डाल दिया और पहले धीरे-धीरे धक्के मारने शुरु किये तो कला को भी मजा आने लगा। फिर मैंने अपने धक्कों की रफ्तार बढ़ानी शुरु कर दी और कला अपने मजे से मदहोश होने लगी, पता ही नहीं क्या क्या बड़बड़ाने लगी।
मुझे मजा तो आ रहा था पर पता ही नहीं मैं चरम सीमा तक नहीं पहुँच पा रहा था और कला अपने मजे में पूरी की पूरी मदहोश होती जा रही थी। एक ही झटके में कला की आवाज तेज हुई और कला की चूत ने पानी छोड़ दिया पर मेरा छुटने का नाम ही नहीं ले रहा था।
मैंने कहा- कला जी, अगर आप कहो तो क्या मैं अपना लन्ड… !
इतने में ही कला कहने लगी- जय, आप मेरी गान्ड की बात कर रहे हो ना ?
मैंने कहा- हाँ कला जी !
तो कहने लगी- जय, बैड के ऊपर क्रीम रखी है। वो पहले अच्छी तरह से लगाओ !
फिर मैंने अपने लन्ड और कला की गान्ड पर क्रीम लगाई और अपना लन्ड कला की गांड पर रखा और जोर से धक्का मारा और मेरा आधा से ज्यादा लन्ड कला की गान्ड में पहुँच गया। कला थोड़ी कसमसाई पर ज्यादा कुछ नहीं बोली। फिर मैं अपने लन्ड को वहीं पर आगे-पीछे करने लगा और थोड़ी सी देर के बाद में मैंने एक जोर से धक्का मारा और मेरा लन्ड पूरा का पूरा कला की गान्ड में पहुँच गया जड़ तक।
कला को थोड़ा दर्द हुआ पर ज्यादा नहीं ! कला बोली कुछ नहीं और मैंने पहले धीरे धीरे से धक्के लगाने शुरु किये और फिर पूरी रफ्तार कर दी जब तक मेरा जोश खत्म नहीं हुआ। कला भी आ ईईईईइआआईइआईएएइएइदिदिल्ल्ल्ल्ल ग्ग्ग्गएएए करके मेरा पूरा साथ देती रही।
जैसे ही मेरा छुटने को हुआ तो मैंने कहा- कला, मेरा निकलने वाला है, कहाँ निकालूँ?
कला ने कहा- जय, आप मेरी ही चूत में छोड़ना !
तो मैंने कहा- ठीक है कला जी, आप बैड पर पर चलो।
कला बैड पर लेट गई और मैंने कला की दोनों टांगों को ऊपर उठाया और अपनी कमर के ऊपर रखा और जोर से धक्का मारा। पूरा का पूरा लन्ड कला की चूत में ऐसे गया कि पता ही नहीं चला। मैं भी जोर जोर से धक्के लगाने लगा और कला भी मेरा पूरा उत्साह बढ़ाने लगी और उसने अपनी दोनों टांगों को मेरी कमर पर कस लिया।3-4 मिनट में ही मैं कला की चूत में झड़ गया और कला के ही ऊपर लेट गया।
थोड़ी देर के बाद मैंने कला से कहा- कला जी, मैं अब चलता हूँ ! आप सन्तुष्ट हो या नहीं ?
तो कला ने कहा- जय, क्या बात कर दी, आपने तो मुझे जन्नत की सैर करा दी ! और मुझे क्या चाहिए था।
कला जी ! मेरी फीस दो और मैं निकलता हूँ !
तो कला ने मेरी फीस दी और मैं अपने घर चला आया।
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