अन्जान लड़की
वो आनन्द से छ्टपटा रही थी और आह-उह और जाने क्या क्या बोल रही थी।
प्रेषक : रोहित
दोस्तो, मैं अन्तर्वासना का नियमित और पुराना पाठक हूँ। अन्तर्वासना पर कहानियाँ पढ़कर मुझे भी अपनी कहानी आप लोगों को बताने की इच्छा हो रही है।
बात उन दिनों की है जब मैं बैंगलोर में पढ़ता था। मैंने बारहवी के बाद वहाँ इन्जिनियरिंग में दाखिला लिया था। तीसरे सेमेस्टर के इम्तिहान हो चुके थे।
हम तीन दोस्त एक कमरा किराये पर ले कर रहते थे। हमारा कमरा ग्राउन्ड फ़्लोर पर था।
एक दिन मेरी तबियत कुछ खराब होने के कारण मैं कॉलेज नहीं गया था। मेरे दोनो साथी कॉलेज के लिये जा चुके थे। दिन के दस बज रहे थे। मैं अपने कमरे में लेटा था। कमरे की खिड़की जो बाहर की ओर खुलती थी, मैंने अधखुली ही छोड़ दी थी।
अचानक किसी ने धीरे से खिड़की खोली। मैंने देखा तो कोई हाथ अन्दर करके इधर उधर कुछ खोज रहा था। मैंने देखा तो वो एक लड़की थी। मेरे उठते ही उसने अपना हाथ हटा लिया। मुझे देख कर वो भागने लगी तो मैंने उसे आवाज दी।
फ़िर मैं दरवाजा खोल के बाहर आया तो मेरी नजर सीधे उसकी चूचियों पर गई। उसका रंग सांवला था और उसने कपड़े भी गन्दे पहने थे। उसकी उम्र 18 साल की रही होगी।
मैंने उससे पूछा- क्या तुम चोरी कर रही थी?
तो उसने कुछ कहा जो मेरी समझ में नहीं आया। वो कन्नड़ बोल रही थी और मुझे वो नहीं आता है। मैं उसे ऊपर से नीचे तक देख रहा था। मेरे मन में अचानक एक ख्याल आया कि इसे पटाऊँ।
सच बोल रहा हूँ दोस्तो, उसे चोदने का खयाल मन में नहीं था। मैं अन्दर गया और अपने पर्स से दस का नोट निकाल कर उसे दिया और कहा कि कुछ खा लेना।
पता नहीं वो समझी कि नहीं पर उसने नोट ले लिया और दौड़ कर चली गई। मैं निराश हो गया। मैं काफ़ी देर तक दरवाजे पर खड़ा उसका इन्तजार करता रहा और आखिरकार वापस दरवाजा बन्द करके बिस्तर पर आ गया। शाम में मेरे दोस्त कॉलेज से आये लेकिन मेरे मन में सिर्फ़ वो लड़की ही थी।
रात भर मैं उसके बारे में सोचता रहा। सुबह जब दोस्तों ने उठाया तो मैं जागा। न जाने क्या हुआ मैंने आज भी कॉलेज नहीं जाने का निश्चय किया।
मेरे दोस्त जा चुके थे। मैं उठा और फ़्रेश होकर पास की बेकरी से चार पेस्ट्री खाने के लिये खरीद के कमरे पर वापस आ गया। अन्दर जा कर मैंने खिड़की खुली छोड़ दी और खिड़की से सारी चीज हटा दी। मैं मन ही मन सोच रहा था कि काश वो आज भी आए पर मुझे नींद आ गई।
अचानक खिड़की बजी तो मैंने देखा कि वो खड़ी थी मुझे देख कर वो मुस्कुराई। मैंने झट से जाकर दरवाजा खोला और अगल बगल देखा कि कोई नहीं था।
मैंने उसे अन्दर आने का इशारा किया तो वो झिझकते हुए अन्दर आ गई। आज उसके कपड़े साफ़ थे और वो बहुत सुन्दर और कमसिन लग रही थी।
मैं उससे बात करने की कोशिश कर रहा था और वो भी कुछ कुछ बोल रही थी लेकिन हम दोनों को एक दूसरे की बात समझ नहीं आ रही थी।
मैंने उसे कुर्सी पर बिठाया और उसे पेस्ट्री खाने को दी। मुझे बहुत डर भी लग रहा था। मैंने हिम्मत करके उसके कन्धे पर हाथ रखा तो वो धीरे से मुस्कुराई।
मेरी हिम्मत बढ़ने लगी और मैं उसकी पीठ पर हाथ फ़िराने लगा।
वो शान्त थी।
फ़िर मैंने उसका चेहरा पकड़ कर उसको चूम लिया।
वो कुछ नहीं बोली।
अब तक मेरी हिम्मत बढ़ चुकी थी। मैंने उसका सिर दोनों हाथ से पकड़ कर उसके होंठों पर अपने होंठ लगा दिए और उसे चूमने लगा। वो उठ कर खड़ी हो गई।
उसने मुझे बाहों में भर लिया। अब मैं सलवार के ऊपर से ही उसकी चुचियों को दबाने लगा। उसकी चूचियाँ टेनिस की गेन्द के आकार की थी। वो आह आह ! करने लगी और उसने मेरा हाथ पकड़ लिया।
मैं अपने होंठ उसके होठों से लगा कर चूसने लगा। मेरे हाथ उसके बदन को सहला रहे थे। फ़िर मैं अपना हाथों से उसकी चूतड़ पकड़ कर दबाने लगा।
उसे भी मजा आने लगा था शायद।
मैंने उसका सलवार खोल दिया और ब्रा भी निकाल दी। उसकी चूचियाँ देखकर मेरे तो जैसे होश उड़ गए।
बिल्कुल कसी हुई सन्तरे सी सख्त चूचियाँ और निप्पल मटर के दाने जैसे !
मैं उसकी चूचियाँ दबाने लगा और बीच बीच में उसके निप्पल को चूसने लगा। मैं एक को हाथ से दबाता और मसलता था तो दूसरे को चूसने लगता था। उसने आँखें बन्द कर ली और वो आह उह करने लगी।
मैंने उसे छोड़ दिया और मैंने एफ़-एम पर गाना चालू कर दिया।
मैं फ़िर उसे चूमने और चूसने लगा। मुझसे रहा नहीं जा रहा था, मैंने उसे छोड़ दिया और अपने सारे कपड़े उतार कर उसके सामने नंगा हो गया। मेरा लंड जो लगभग 7″ का है, तना हुआ था और उसमें से पानी निकल रहा था। मैंने ब्लू फ़िल्म में देखा था कि लड़का-लड़की एक दूसरे का लन्ड और बुर चाटते हैं।
उसने मेरा लन्ड पकड़ लिया और हिलाने लगी।
मैंने उसका बाल पकड़ के उसे बैठा दिया और उससे मुँह में लेकर चूसने के लिये बोला, लेकिन उसने मना कर दिया। मैं उसकी चूचियाँ जोर जोर से दबाने लगा। वो पागल हुई जा रही थी।
उसने भी अपने सारे कपड़े उतार दिये। मैं उसकी चूत देखने के लिये बेताब हो गया, मैंने उसको कुर्सी पर बैठा कर उसकी टान्गें खोल दी। उसकी चूत साफ़ नजर आ रही थी।
हल्के काले बाल थे उसकी चूत पर, चूत की पतली दरार मेरे सामने ही थी मैं अपनी उन्गली उसकी चूत के ऊपर फ़िराने लगा। वो सिसकारियाँ भरने लगी तो मैंने उसकी टाँगें थोड़ी और फ़ैला कर अपनी उन्गली थोड़ी अन्दर करके उसके चूत के गुलाबी हिस्से को सहलाने और मसलने लगा।
उसकी चूत गीली हो गई थी और उससे एक खुशबू सी आ रही थी। मैं अपने होंटों से उसकी चूत को चूम लिया और अपनी जीभ से चाटने लगा।
वो जोर जोर से मचलने लगी।
मैं खड़ा हुआ और अपना लंड उसके मुँह के पास करके उसे चूसने को बोला तो वो धीरे धीरे अपने होंठों और जीभ से मेरा लन्ड चाटने लगी। मैं उसको लेकर बेड पर आ गया वो पीठ के बल लेट गई और उसने अपनी टान्गें फ़ैला दी।
वो कुछ बोल रही थी और मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था।
मुझसे अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था, मैं उसकी टान्गों के बीच में बैठ गया और अपने लन्ड का सुपारा उसकी चूत पर लगा दिया। वो भी बेताब थी, उसने मुझे टान्गों का घेरा बना कर जकड़ लिया था और अपने चूतड़ उठा कर अपनी चूत मेरे लन्ड पर दबाने लगी।
रहा तो मुझसे भी नहीं जा रहा था, मैंने अपना लन्ड उसकी चूत पर रख कर दबाया तो वो फ़िसल गया। दुबारा जोर से दबाया तो लन्ड
उसकी चूत में आधा अन्दर तक घुस गया। उसकी सील पहले से टूटी थी लेकिन उसकी चूत बहुत कसी हुई थी। ऐसा लग रहा था जैसे मेरा लन्ड किसी ने जोर से मुट्ठी में पकड़ रखा हो।
मुझे मजा आ रहा था। मैं अपना लन्ड अन्दर बाहर करने लगा और एक बार और जोर से पेला तो लन्ड पूरा अन्दर तक चला गया। वो छ्टपटा रही थी और आह-उह और जाने क्या क्या बोल रही थी।
मैं उसका कमर पकड़ के उसके चूत में लन्ड अन्दर बाहर करने लगा। मैं उसे जोर जोर से चोद रहा था और वो गान्ड हिला कर साथ दे रही थी। हम दोनों पसीने से लथपथ हो रहे थे। अचानक मुझे लगा कि मेरा निकलने वाला है और मैं काफ़ी तेज गति से और जोर जोर से उसको चोदने लगा। फ़िर मेरा माल उसकी चूत में काफ़ी अन्दर ही निकल गया।
मैं निढाल होकर उसके ऊपर लेट गया और उसकी चुच्ची को मुँह में लेकर चूसने लगा। उसने मुझे कस के जकड़ लिया और फ़िर वो भी निढाल हो गई। मैं उसकी बगल में लेट गया और उसकी चूचियों से खेलने लगा।
वो आँखें बन्द करके पड़ी थी।
15 मिनट बाद मैं उसके ऊपर फिर चढ़ गया और एक बार फ़िर उसको चोदा, अबकी बार मैंने उसे लगभग 20 मिनट तक चोदा। फ़िर हम उठे और अपने अंग साफ़ करके हमने कपड़े पहन लिये।
मैंने उसे 50 रुपये दिये और वो खुश हो कर चली गई। फिर वो दुबारा कभी नहीं आई। मुझे पता नहीं चला कि वो कौन थी।
शायद वो कूड़ा कचरा चुनने वाली थी या शायद कोई और लेकिन वो गरीब थी। उसने 60 रुपये में मुझे जो मजा दिया था वो लाजवाब था। इस घटना को लगभग 9 साल हो चुके हैं।
अब मेरी शादी हो गई है और मैं जमशेदपुर में एक कम्पनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत हूँ।
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