आवारगी-3

माया देवी 2005-12-05 Comments

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प्रेषिका : माया देवी

इस घटना के बाद मैं खुद ही सेक्स संबंधों के प्रति आवश्यकता से अधिक झुकती चली गई।

जब तक उस स्कूल में रही तब तक प्रिंसीपल और डबराल सर के साथ मैने अनेक बार सम्बन्ध बनाये, किसी नये व्यक्ति से संबंध बनाने की जिज्ञासा तो मुझे रहती थी किन्तु मैं नये व्यक्ति से जुड़ने की पहल नहीं करती थी, हालांकि कई हम-उम्र लड़के कई बार मुझसे फ्रेंडशिप करने का प्रयास कर चुके थे, लेकिन जो परिपक्व अनुभव मुझे डबराल सर और प्रिंसीपल से मिला था उसकी तुलना में ये लड़के बिलकुल मूर्ख लगते थे।

एक लड़का जो कि काफी हेंडसम और अच्छी शक्ल सूरत का था, उसका नाम राजेन्द्र था, उसने कई बार मुझे अनेक प्रकार से अप्रोच किया कि मैं उससे एकांत में सिर्फ एक बार मुलाक़ात कर लूँ ! अंततः एक दिन मैने उससे मिलने का फैसला कर ही लिया और मौका देख कर स्कूल की काफी बड़ी बिल्डिंग के उस कमरे में उसे बुला लिया जो हमेशा ही सूना पड़ा रहता था।

राजेद्र ठीक समय पर कमरे में पहुँच गया, उसके चेहरे पर प्रसनत्ता के भाव टपक रहे थे। उसने मुझे पहले ही से वहाँ पाया तो एकदम घबरा कर बोला- हेलो…. ! हेलो…..रजनी ! ….सोरी …. ! मुझे आने में जरा देर ही गई।

मैं उसकी घबराहट को देख कर मुस्कुराई, मुझे डबराल सर और प्रिंसीपल सर के अनुभव ने मेरी उम्र से काफी आगे निकाल दिया था।

कमरे का दरवाजा बंद करके सिटकनी चढ़ा दो ! मैने कहा।

मैं एक मेज़ से नितंब टिकाये खड़ी थी, राजेन्द्र ने दरवाजा बंद करके सिटकनी चढ़ा दी और मेरे पास आ खड़ा हुआ।

हाँ…. ! अब बताओ राजेन्द्र कि तुम मुझसे अकेले में क्यों मिलना चाहते थे? मैं उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में झाँक कर बोली।

राजेन्द्र एक उन्नीस बीस की उम्र का अच्छे शरीर का लड़का था, उसने स्कूल ड्रेस वाली पेंट शर्ट पहन रखी थी।

वो क्या है कि ….. मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ ….. राजेन्द्र बोला।

दोस्ती… ? वो किसलिए…….? मैंने प्रश्न किया।

अं…. मेरे प्रश्न पर वो थोड़ा चौंका और फिर बोला- जिस लिए की जाती है उस लिये.. !!.

यही तो मैं भी जानना चाहती हूँ कि दोस्ती किस लिए की जाती है और वो दोस्ती ख़ास कर जो तुम जैसे हेंडसम और स्मार्ट लड़के मेरी जैसी भारी सेक्स अपील वाली लड़की से करते हैं ….. मैंने होठों पर एक रह्स्यमयी मुस्कान सजा कर कहा।

क्या …. क्या मतलब है तुम्हारे कहने का …. ! उसने बिगड़ने का अभिनय किया।

मैंने कहा- मतलब तो आइने की भाँति बिलकुल साफ़ है ! हाँ यह बात अलग है कि तुम आसानी से उसे स्वीकार नहीं करोगे ….. इसलिए तुम्हारे मुझसे दोस्ती करने के उद्देश्य को मैं ही बता देती हूँ- तुम या स्कूल के कई अन्य लड़के मुझसे इसलिए दोस्ती करना चाहते हो ताकि वो मेरी उभरती जवानी का मजा लूट सकें, मेरे उफनते यौवन के समुद्र में गोते लगा सकें !

मैंने आगे कहना जारी रखा- केवल हाँ या नहीं में उत्तर देना …. क्या मैंने गलत कहा है ……. ! क्या तुम्हारी नजरें मेरी शर्ट में से उत्तेजक ढंग से उभरते भारी स्तनों को ताकती नहीं रहती? क्या तुम स्कर्ट में ढके मेरे नितंबों पर दृष्टि टिका कर यह हसरत नहीं महसूस करते कि काश यह सुडौल ढलान हमारे सामने साक्षात प्रकट हो जाएँ !

मैंने ऐसा कहा तो वह चुप होकर दृष्टि चुराने लगा।

मैंने मन ही मन उसकी मनःस्थिति का मजा सा चखा !

फिर बोली- चुप क्यों हो गए? अरे भई, ये तो एक कॉमन सी बात है .. जैसे तुम मुझसे सिर्फ इसलिए दोस्ती करना चाहते हो कि मेरे यौवन को चख सको, वैसे ही मैंने भी तुम्हें आज अकेले में इस लिए बुलाया है कि मैं भी देख सकूँ कि तुम्हारे जैसे लड़के में कितना दम है! क्या तुम मुझे वो आनंद दे सकते हो जिसकी मुझे जरुरत है ! कम-ऑन ! जो तुम देखना चाहते हो मैं स्वयं ही दिखा देती हूँ।

यह कहते हुए मैंने अपनी शर्ट को स्कर्ट में से निकाल कर उसके सारे बटन खोल दिये।

अब मेरे स्तन पहले से काफी भारी हो गये थे, इसलिए जालीदार ब्रा पहनने लगी थी।

शर्ट के खुलने से मेरी गुलाबी रंग की ब्रा दिखने लगी, उसकी झीनी कढ़ाईदार जाली में से भरे भरे गुलाबी स्तन झाँक रहे थे, गहरे गुलाबी रंग की उनकी चोटियाँ थोड़ी और ऊँची उठ आई थी, कारण था डबराल द्बारा इनका अत्यधिक पान, यानी मेरी योनि से ज्यादा वे मेरे स्तनों को चूसा करते थे, इस कारण चोटियाँ भी नुकीली हो गई थी और स्तन भी वजनी हो गये थे।

राजेन्द्र की आँखें फटे फटे से अंदाज में मेरे ब्रा से ढके स्तनों पर जम गई, उसने अपने शुष्क होते होठों पर जीभ फिराई।

कम-ऑन …. तुम्हें पूरी छूट है ….. जो करना है करो ….. मैंने उससे कहा और शर्ट को बाजुओं से निकाल कर मेज़ पर रख दिया।

ओह रजनी ……. ! यू आर सो ग्रेट ! यह उद्दगार व्यक्त करता हुआ राजेन्द्र बढ़ा और उसने मेरे स्तनों को हाथों में संभालते हुए अपने शुष्क होंठों को मेरे लरजते नर्म अधरों पर रख दिये। मैंने उसकी कमर में हाथ डाल दिये और उसकी शर्ट का हिस्सा उसकी पेंट में से खींच कर उसकी टी शर्ट में हाथ डाल उसकी पीठ को सहलाने लगी, मेरी पतली अंगुलियां उसकी पेंट की बेल्ट के नीचे जाकर उसके नितंबों को छू आती थी।

राजेन्द्र ने काम-प्रेरित होते हुए मेरी ब्रा के हूक खोल दिये, मेरी ब्रा ढीली हो गई, राजेन्द्र ने दोनों कपों को स्तनों से नीचे कर दिये, मेरे गुलाबी रंग के दोनों काम पर्वत इधर उधर तन गये, राजेन्द्र उन्हें मसलने लगा तो मैं बोली- उफ…. ओह्ह ….. इनके निप्पलों को चूसो …..! चूसो राजेन्द्र ! ….. हाथ की जगह अपने होंठों से काम लो ….. उफ …..

यह कहते हुए मेरे हाथों ने उसकी पेंट की बेल्ट खोल कर उसकी पेंट को नीचे सरका दिया, पेंट उसकी मजबूत जांघों में फंस कर रुक गई, उसने एक टाईट फ्रेंची अंडरवियर पहन रखा था, मैं उसकी फ्रेंची को भी नीचे सरकाने लगी।

राजेन्द्र भी पीछे नहीं रहा था, उसने मेरे स्तनों को दुलारते दुलारते मेरी स्कर्ट को ऊपर करके मेरी पेंटी नीचे सरका दी थी जिसे मैंने पैरों से बिलकुल निकाल दिया, उसके हाथ अब मेरी जाँघों को सहलाते सहलाते मेरी फड़फड़ाती योनि से भी अठखेलियाँ कर आते थे, मैं बार बार मचल उठती थी, मेरे शरीर में कामुक प्यास जागृत हो चुकी थी।

उसी प्यास ने मुझे बुरी तरह झुलसाना शुरू कर दिया था, राजेन्द्र के अंडरवीयर को नीचे करके मैंने उसके लिंग को अपने हाथों में ले लिया, लिंग तप रहा था मानो जैसे मेरे हाथों में जलती हुई लकड़ी आ गई हो।

लेकिन यह क्या मैं चिहुंक उठी !

राजेन्द्र का लिंग तो मुश्किल से छः साढ़े छः इंच का था वह भी पूरी तरह उत्तेजित अवस्था में, मोटाई भी कोई ख़ास नहीं थी, इतने छोटे आकार प्रकार के लिंग से मेरी योनि क्या खाक संतुष्ट होनी थी, मुझे तो कम से कम आठ नौ इंच का लण्ड चाहिए था और अगर डबराल सर के जैसा बलिष्ठ हो तब तो कहना ही क्या ! इतने छोटे लिंग से ना तो मुझे ही कुछ मज़ा आना था और ना ही राजेन्द्र को !

मैं उसके लिंग-मुंड को सहला कर बोली- राजेन्द्र ये क्या ! तुम्हारा लिंग तो बहुत ही छोटा है, मुझे तो उम्मीद थी कम से कम नौ इंच का लिंग तो होगा ही ! इसीलिए तो मैने तुम्हें यहाँ बुलाया !

क्या ? ….राजेन्द्र चौंक उठा, उसने मेरे स्तनों से अपना मुख हटा लिया, उसकी आँखों में अपमान के से भाव थे, उसे मेरे शब्दों पर सख्त हैरानी हुई थी।

क्या…… क्या ? तुम अपने लिंग को मेरी योनि में डाल कर देख लो, ना तो तुम्हे मज़ा आएगा और ना ही मुझे, तुम्हें तो मज़ा मैं मज़ा फिर भी दे दूंगी…….लेकिन मेरे क्या होगा, मैंने उसके लिंग को सहलाना नहीं छोड़ा था।

तो क्या इतनी बड़ी है तुम्हारी योनि…..? उसने हैरत से प्रश्न किया।

तुम डाल कर स्वयं देख लो….. ! मैंने कहा।

मेरे उकसाने पर राजेन्द्र नें अपना लिंग मेरी योनि में लगा कर एक हल्का सा सा ही धक्का दिया था की उसका पूरा का पूरा लिंग मेरी योनि में ऐसे समा गया जैसे वह किसी पुरुष का लिंग ना हो कर कोई पैन हो, मुझे कुछ अहसास भी नहीं हुआ।

हैं….. !!! राजेन्द्र चौंका, उसने लिंग बाहर निकाल लिया।

क्यों….? क्या हुआ….? मैंने कहा, तो वह शरमा गया, उसे अपने लिंग के छोटे आकार पर शर्म आ रही थी।

इधर आओ…. ! मैंने उसका हाथ पकड़ कर दीवार की और बढ़ते हुए कहा- तुम्हें तो मज़ा आ जायेगा ! मैं अपनी जाँघों को बिलकुल भींच कर दीवार से पीठ लगा कर कड़ी हो जाउंगी तब तुम अपने लिंग को मेरी योनि में डाल कर घर्षण करना ! लेकिन हाँ…. शाट ऐसे जबरदस्त होनें चाहिए कि पता लगे कुछ……. ! दूसरी बात, मेरे स्तनों को चूसते रहना……….. ! मुझे स्तन पान में बहुत मज़ा आता है…… !

यह कहते हुए मैं दीवार से पीठ लगा कर खड़ी हो गई और मैंने अपनी जांघें भींच ली और राजेन्द्र के लिंग को अपनी टाईट हो गई योनि के मुख पर लगा लिया, अब कुछ पता लगा कि योनि में कुछ प्रविष्ट हुआ है।

राजेन्द्र ने अपने हाथों से मेरी कमर पकड़ कर मेरे स्तनों को चूसना भी शुरू कर दिया था, वह कामुक ध्वनियाँ छोड़ने लगा था, उसकी साँसें भभकने लगी थी।

वह तेज तेज शाट मारने लगा तो मैं भी सिसकारियों के भंवर में फंस गई, उसका लिंग बेशक छोटा था किन्तु उसके शाट इतने बेहतरीन होते जा रहे थे कि मैं उस पर फ़िदा हो गई, मुझे आनंद आने लगा था, मेरे हाथ राजेन्द्र के कन्धों पर जम गए थे और राजेन्द्र ने उत्तेजना के वशीभूत मेरे स्तनों पर अपने दांत के निशान तक डाल दिए थे।

चरम सीमा पर पहुँच कर राजेन्द्र के धक्के इतने शक्तिशाली हो गए थे कि मुझे अपनी हड्डियाँ कड़कडाती महसूस होने लगी, मेरे कंठ से कामुक ध्वनियाँ तीब्र स्वर में फूटने लगी, अचानक ही मैंने अपनी जांघें खोल दी, राजेन्द्र का तपता लिंग बाहर निकाल कर अपने मुंह में डाल लिया।

राजेन्द्र ने मेरे मुंह में ही अंतिम धक्के मारे और स्खलित हो गया, उसका उबलता वीर्य मेरे कंठ में उतर गया, वह मेरे ऊपर निढाल सा हो गया, मैं उसके लिंग को चाटने लगी।

फिर जब दो चार क्षणो में उसकी चेतना लोटी तो मैंने उससे कहा- राजेन्द्र, वो उस कोने में जो फावड़े का लकड़ी का दस्ता पड़ा है वो उठा लाओ…..

इस कमरे में ऐसी छोटी-मोटी अनेक चीजें पड़ी रहती थी, जैसे फावड़ा, तसला, रस्सी, टूटी बेंचें या चटकी टेबल, उन्हीं चीजों में से एक फावड़े का लकड़ी का दस्ता मुझे दिखाई दे गया था, मेरी आँखें उसे देखते ही चमक उठी थी।

क्यों….? राजेन्द्र ने पूछा।

लेकर तो आओ…. ! मैं बोली।

मैंने अपने नग्न तन को ढकने का प्रयास नहीं किया, शरीर पर मात्र स्तनों के नीचे फंसी ब्रा थी और नितंबों पर स्कर्ट थी जिसके नीचे पेंटी नहीं थी।

राजेन्द्र अपनी पेंट ऊपर कर चुका था, वह फावड़े का दस्ता ले आया, यह ढाई तीन फुट का गोलाई वाला डंडा था, एक ओर की मोटाई दो-ढाई इंच थी, दूसरी ओर की तीन चार इंच थी,

मैंने उसके हाथ से डंडा ले लिया और गंदे फर्श पर ही चित्त लेट गई, मैंने स्कर्ट पेट पर चढ़ा कर डंडे के पतले वाले सिरे को अपने ढेर सारे थूक में भिगो कर अपनी योनि पर लगाया और हल्के से दबाव से ही डेढ़ दो इंच तक योनि में समां गया, मुझे उसकी कठोर मोटाई के कारण अपनी जांघें पूरी खोलनी पड़ी।

राजेन्द्र ! इसे धीरे धीरे आगे पीछे करते हुए मेरी योनि में घुसाओ….. ! मैंने राजेन्द्र से कहा।

राजेन्द्र हैरत से मुझे देख रहा था, वह मेरे निकट बैठ गया और उसने डंडा पकड़ लिया और मेरे कहे अनुसार उसे आगे पीछे करने लगा, वह बड़े ही संतुलन के साथ यह क्रिया कर रहा था, उसे मालूम था कि डंडे के टेढे मेढे होने से मेरी नाजुक योनि को नुकसान पहुँच सकता है इसलिए वो बहुत एहतियात के साथ डंडे को आगे बढ़ा रह था।

मैं अब सिसकारी भरने लगी थी, मुझे जांघें और ज्यादा या यूँ कहिये की संपूर्ण आकार में खोलनी पड़ रही थी, मैं अपने हाथों से ही अपने स्तनों को मसले डाल रही थी, डंडे के कठोर घर्षण ने मुझे शीघ्र ही चरम पर पहुंचा दिया और मैं स्खलित हो कर शांत पड़ती चली गई।

राजेन्द्र ने डंडे को योनि से निकाल कर उसके उतने हिस्से को जितना कि मेरी योनि में समाने में सफल हो गया था उसे देख कर कहा…. ग्यारह बारह इंच… माई गाड… रजनी डार्लिंग तुम्हारे आगे कौन पुरुष ठहरेगा ! तुम तो पूरी कलाई डलवा सकती हो अन्दर….क्या तुम्हें दर्द नहीं होता इतनी लंबाई से?

उफ…मैं बैठ गई और बोली- कैसा दर्द डीयर…. ! मेरा तो वश नहीं चलता वरना ऐसे कई डंडे अन्दर कर लूँ .. ! मेरी योनि में जितनी लंबी और जितनी मोटी चीज जाती है मुझे उतना ही ज्यादा मजा आता है, चलो अब… ! काफी देर हो गई !

मेरे शब्दों पर वह मुझे आश्चर्य से घूरता रह गया था, उसके बाद हम वहाँ से चले आये थे।

इस प्रकार अपनी योनि के साथ भाँति भाँति के अजीब ढंग के प्रयोग करते करते मेरा समय निकल हो रहा था कि विदेश से मेरी दोनों भाभी आ गई, वे अंग्रेज थीं, वे एक माह के लिए हिन्दुतान घूमने आई थी।

फ़िर क्या हुआ ?

अगले भाग में पढ़िए !

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