जब संजना ने स्पेनिश लौड़ा लिया-2

(Jab Sanjna Ne Spanish Lauda Liya-2)

कहानी का पिछला भाग : जब संजना ने स्पेनिश लौड़ा लिया-1

यह कह कर उसने आँखों पर कपड़ा रखा और टाँगें फैला कर लेट गया। उसका लिंग अब मेरे सामने था और मेरी पहुँच में था, मैं जब चाहे उसे पकड़ सकती थी, चूम सकती थी, पर मैंने ऐसा नहीं किया। जब वो लेट गया तो मैं भी लेट गई।

मेरी साड़ी का पल्लू मेरी गोद में था और मेरे मम्मे मेरे लो-कट ब्लाउज से बाहर झाँक रहे थे।
‘संजू, क्या तुम यहाँ कभी नहाई हो?’ उसने पूछा।
‘हाँ..बहुत बार..!’
‘अकेली या अपने पति के साथ..!’
‘पति के साथ..!’
‘फिर तो बिकिनी भी नहीं पहनती होगी..!’
‘नहीं, हम तो खुल्लम-खुल्ला नहाते हैं..!’
‘उसके बाद..?’
‘उसके बाद खेतों में घुस जाते हैं..!’
‘खेतों में क्या करते हो..?’
‘शट-अप मार्क, ये हमारा प्राइवेट मामला है..!’

‘अरे मैंने तो वैसे ही पूछ लिया..!’
‘खेतों में क्या करेंगे, जो किया जा सकता है वो ही करते हैं..!’
‘मतलब सेक्स..!’
‘हाँ, पर तुम ये सब क्यों पूछ रहे हो..?’
‘वैसे ही, इतनी खूबसूरत और सेक्सी लेडी के अकेले में ऐसी सुनसान जगह पर एक साथ नंगे नहाने के बाद किस मर्द का सेक्स करने को दिल नहीं करेगा..!’
‘मार्क स्टॉप इट, तुम ये क्या बोल रहे हो..?’

‘प्लीज़ माइंड मत करना, हमारे यहाँ तो ये बातें नॉर्मल हैं.. सेक्स के बारे में हम अपने माँ-बाप, भाई-बहन सबसे बात कर सकते हैं, क्या तुम लोग नहीं करते..?’
‘बिल्कुल नहीं, हमारे यहाँ सेक्स कोई बात करने का विषय नहीं है..!’
‘ओह माय गॉड, इतने बैकवर्ड हो आप लोग..!’

मैं हँस दी, पर मेरा ध्यान मार्क के लिंग पर ही टिका था। मौसम सुहावना था। वैसे ही लेटे-लेटे मार्क सो गया। जब मैंने उसके खर्राटते सुने तो पता चला। फिर मैं भी उठी और थोड़ी दूर जाकर पेशाब करके आई, मगर इतनी दूर नहीं गई थी कि मार्क मुझे ना दिखता। जब मैंने बैठने से पहले अपनी साड़ी ऊपर उठाई तो बैठते वक़्त मेरे मन में ख़याल आया कि अगर इस वक़्त मार्क का तना हुआ लिंग नीचे हो तो क्या हो, वो सर्रर से मेरे अन्दर घुस जाएगा और मुझे कितना आनन्द आएगा।

पेशाब करने के बाद भी मैं वहीं उसी हालत मैं यूँ ही बैठी रही और मार्क को सोते हुए देखती रही। मैंने देखा कि सोते-सोते मार्क का लिंग खड़ा होने लगा था, मैं वहीं बैठी देखती रही और देखते-देखते उसका लिंग पूरा तन गया। करीब 9 इंच लंबा और ढाई-तीन इंच मोटा लिंग उसकी नाभि को छू रहा था।
मुझे लगा जैसे मेरी योनि में कुछ गीला-गीला सा होने लगा था। मैं उठी और मार्क के पास जा कर देखा, वो खर्राटते छोड़ रहा था।
मैंने उसे आवाज़ लगाई पर वो नहीं जगा, फिर मैंने उसे हिलाया पर वो फिर भी नहीं जगा, मतलब गहरी नींद में था।

मैं कुछ देर बैठी उसे देखती रही पर मेरा हाल बेहाल हो रहा था। काम मेरे सिर पर सवार हो चुका था, मैं अपनी सुध-बुध भूल रही थी। ना जाने कब मेरा हाथ अपने आप उठा और मैंने उसका लिंग पकड़ लिया।

मुझ पर मदहोशी छाने लगी, मेरी आँखें बंद होने लगीं, मैं बता नहीं सकती कि कब मैंने उसका लिंग अपने मुँह में ले लिया। उसके लिंग के सुपारे से मेरा मुँह भर गया। मैंने उसके लिंग की चमड़ी पीछे हटाई, एकदम लाल सुर्ख सेब जैसा उसका सुपारा..! मैं उसे जीभ से चाट रही थी और ज़्यादा से ज़्यादा अपने मुँह में समाने की कोशिश कर रही थी, पर इतना लंबा और मोटा लिंग मेरे मुँह में नहीं समा रहा था।

मेरी आँखें बंद थीं और मैं सिर्फ़ उस नायाब लिंग को चूसने के मज़े ले रही थी। जब मुझे अहसास हुआ कि कोई हाथ मेरे ब्लाउज के अन्दर घुस चुका है और मेरे मम्मों को मसल रहा है।
मैंने आँखें खोल कर देखा, मार्क उठ बैठा था और मुझे देख कर मुस्कुरा रहा था।
‘कैसा लगा, संजू?’

‘बहुत बढ़िया, ये मेरी ज़िंदगी का अब तक का सबसे बड़ा लौड़ा है। मार्क तुम्हारे जितना लंबा और मोटा, मैंने आज तक ना देखा और ना ही लिया है..!’
‘क्या सिर्फ़ चूसोगी या!?’
मैं हँसी, ‘जब यहाँ तक आ गए हैं तो आगे जाने में क्या बाकी रह गया.. आज मैं सारी की सारी तुम्हारी हूँ..!’

मार्क ने मुझे कस कर बाँहों में पकड़ लिया, मुझे नीचे लिटा कर खुद मेरे ऊपर चढ़ गया। मैं उसका लिंग अपने पेट पर महसूस कर रही थी। उसने अपने होंठ मेरे होंठों पर रखे और हमने शुरुआत ही एक-दूसरे की जीभ चूसने से की। मैंने अपनी बाँहें उसके गिर्द कस कर जकड़ लीं। उसने दोनों हाथों से मेरे मम्मों को पकड़ लिया और ज़ोर-ज़ोर से दबाने लगा।

‘संजू, मैं तुम्हें बिल्कुल नंगी देखना चाहता हूँ, अपने कपड़े उतारो, प्लीज़..!’
मैं उठ कर खड़ी हुई और बोली- यह काम तुम्हारा है, अगर तुम मेरे कपड़े उतारोगे तो मुझे अच्छा लगेगा..!’

उसने बिना कोई देरी किए मेरी साड़ी खींच दी, फिर पेटिकोट का नाड़ा खोला, मैंने चड्डी नहीं पहनी थी, सो नीचे से मैं बिल्कुल नंगी हो गई। मार्क ने मेरे कूल्हों को दोनों साइड से पकड़ा और मेरी क्लीन शेव्ड योनि को चूम लिया।

मैंने मार्क का सिर पकड़ कर अपनी योनि से सटा लिया। वो मेरा इशारा समझ गया, थोड़ा नीचे झुका और मेरी योनि को अपने मुँह में भर लिया, मेरी आँखें बंद हो गईं और उसने अपनी जीभ से मेरी भगनासा को चाटना शुरू किया।

आनन्द से मैं सराबोर हो गई, मैं नहीं जानती कि मेरे मुँह से क्या-क्या शब्द निकल रहे थे।
मैंने अपना ब्लाउज और ब्रा भी निकाल दिए, अपने सारे गहने भी उतार कर फेंक दिए। अपने दोनों हाथों से मार्क का सिर पकड़ कर अपनी योनि ज़ोर-ज़ोर से उस पर रगड़ रही थी। मार्क अपनी जीभ से मेरी भग्नासा चाट रहा था। अपने दायें हाथ की दो ऊँगलियाँ उसने मेरी योनि में घुसा दीं और मेरी योनि के पानी से भिगो कर बायें हाथ की बीच वाली ऊँगली उसने मेरी गुदा में घुसा दी थी।
वो अपनी जीभ और दोनों हाथों को चला रहा था, मैं तड़प रही थी। अब मेरे लिए और सहना मुश्किल हो रहा था, मेरी टाँगें काँप रही थीं। मार्क की स्पीड बढ़ती जा रही थी।

अचानक मैं बेसुध हो कर गिर पड़ी, मेरी योनि से पानी के फुआरे छूट पड़े। मेरे गिरते ही मार्क मेरे ऊपर आ गया, इससे पहले कि मैं संभलती, मार्क ने मेरी टाँगें चौड़ी कर दीं, खुद बीच में आया और अपना लिंग मेरी योनि पर रख कर अन्दर धकेल दिया।

एक पर पुरुष का लिंग पहली बार मेरी योनि में दाखिल हुआ था। योनि गीली होने की वजह से सुपारा पूरा अन्दर आ गया था और जितनी मेरी योनि की चौड़ाई थी उतनी मार्क के लिंग की मोटाई थी। उसका लिंग पूरा कस कर फिट हुआ था। मैंने अपनी टाँगें मार्क की कमर के गिर्द लपेट लीं और बाँहों से उसे अपने ऊपर भींच लिया।

यह मार्क के लिए इशारा था कि मैं उसे अपने अन्दर चाहती हूँ।
उसने अपनी कमर चलानी चालू की और अपना आधे से ज़्यादा लिंग मेरी योनि में उतार दिया, पर इससे ज़्यादा आगे उसका लिंग नहीं जा रहा था। उसने मेरे होंठो पर अपनी जीभ फेरनी शुरू की, जिसे मैंने अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी।

मार्क अब पूरे अधिकार के साथ मुझसे संभोग कर रहा था। मैंने भी उसका भरपूर साथ दिया। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे आज मैं पहली बार सेक्स कर रही हूँ। इतना मोटा के पूरा फंस कर जा रहा था और इतना लंबा के अन्दर जैसे मेरे कलेजे से जा कर टकरा रहा था। बेशक़ मुझे काफ़ी तक़लीफ़ हो रही थी, पर दर्द का जो मज़ा होता है वो अपना होता है। आज मुझे फिर से पहली बार जैसा अनुभव हो रहा था। देखने में मार्क पतला-दुबला सा था पर उसमें दम बहुत था।

ना जाने कितनी देर वो मुझे भोगता रहा, मैं उसके नीचे पड़ी तड़पती रही, मचलती रही और कसमसाती रही। उसे मेरे दर्द का कोई अहसास ना था, उसे सिर्फ़ अपने मज़े से मतलब था और मर्दों की यही अदा मुझे पसंद थी।

मार्क पसीने से भीग चुका था, उसने अपनी पूरी जान लगा रखी थी, तभी उसका भी छूट गया और उसने अपने गर्म गर्म वीर्य की पिचकारी मेरे अन्दर ही छुड़वा दी।
मेरी योनि उसके वीर्य से भर गई, वो निढाल होकर मेरे ऊपर ही गिर गया। कितनी देर वो मेरे ऊपर पड़ा रहा, मैं उसके दिल की धड़कन महसूस कर रही थी।

करीब 5-7 मिनट बाद वो उठा और साइड में लेट गया। मैं उठ कर बैठी और देखा कि उसका वीर्य चू कर मेरी योनि से बाहर आ रहा था। मैंने अपनी उंगली से उसका थोड़ा सी वीर्य चाटा।

‘अगर तुम्हें ये पसंद है, तो पहले बतातीं… मैं तुम्हारे मुँह में झड़ता और तुम मेरा सारा वीर्य पी जातीं..!’
‘कोई बात नहीं.. अभी तो दोपहर ढल रही है, एक बार फिर सही..!’
‘ये बात.. तो पहले नहा लें, फिर..!’
‘यस, बड़ी गर्मी लग रही है..!’

मार्क ने मुझे गोद में उठाया और पानी की हौद में डाल दिया और खुद भी अन्दर आ गया। हम दोनों, बिल्कुल नंगे खूब नहाए और पानी से खूब खेले। जब बाहर निकले तो नंगे ही जाकर मैट पर लेट गए।
‘मार्क, तुम एक शानदार मर्द हो, तुमसे सेक्स करके मुझे बहुत खुशी हुई..!’
‘थैंक्स, अगर तुम्हें मैं अच्छा लगा..!’
‘पर ये बताओ, तुम्हारी बीवी से तुम्हारा डाइवोर्स क्यों हुआ?’
‘तुम यकीन नहीं करोगी..!’
‘क्या?’

वो कहती थी कि तुम्हें चोदना नहीं आता, उसकी सेक्स की भूख इतनी थी कि हर रोज़ उसे 2-3 बार सम्भोग चाहिए था और मेरे काम की वजह से ये संभव नहीं था। उसकी चूत में हर वक़्त आग लगी रहती थी। शादी के बाहर उसके 3 बॉय-फ्रेंड्स और भी थे, जिनसे वो रेग्युलर चुदाई करती थी…!’
‘तो, फिर क्या हुआ?’
‘मैंने ही उसे छोड़ दिया कि जाओ तुम आज़ाद हो, अब जिस से चाहो उस से उतना सेक्स करो..!’
‘पर मेरे लिए तो तुम ही बड़े धाँसू निकले, मुझे तो लगता है कि जो संतोष मुझे आज मिला है, पहले कभी नहीं मिला..!’
‘तो आ जाओ, फिर एक बार और सही..!’

यह कह कर मार्क मेरे ऊपर आ गया। उसका सिर मेरी योनि की तरफ था। मैंने अपनी टाँगें चौड़ी कर दीं और उसने मेरी योनि को अपने मुँह में भर लिया और अपनी जीभ से मेरी योनि, यहाँ तक की मेरी गुदा भी चाटने लगा।

मैंने भी उसका ढीला लिंग अपने हाथ में पकड़ा, उसकी चमड़ी पीछे की और उसका सुपारा बाहर निकाल कर लिंग मुँह में ले लिया।
अब हम दोनों फिर एक शानदार चुदाई के दौर के लिए तैयार थे।

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