अहमदाबाद में मिली प्यारी गुजराती भाभी- 1

(Indian Bhabhi X Kahani)

आर्णव 1 2025-04-12 Comments

इंडियन भाभी X कहानी में मैंने एक भाभी की मदद की तो उनके घर आना जाना हो गया. एक बार मुझे उनके घर रुकना पड़ा. सुबह भाभी मुझे जगाने आई तो …

मेरे प्रिय पाठको! मेरा नाम आर्णव है।
मेरी उम्र 25 साल है और मैं अहमदाबाद (गुजरात) में एक प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर के तौर पर कार्यरत हूँ।

पिछले छह सालों से मैं अंतर्वासना की कहानियाँ पढ़ता आ रहा हूँ।
मुझे इस साइट से बहुत कुछ सीखने को मिला और बहुत मज़ा भी आया।

यह मेरी पहली कहानी है, तो अगर कुछ गलती हो जाए तो माफ कर देना।

इस इंडियन भाभी X कहानी के ज़रिए मेरा उद्देश्य आपको मेरा अनुभव साझा करना है, ताकि मैंने जो गलतियाँ कीं, वो आप लोग न करें और मेरा अनुभव आपके किसी काम आ सके।

दोस्तो, मेरी यह कहानी बिल्कुल सच्ची है और मेरी अपनी कहानी है।
हाँ, गोपनीयता के लिए सही नाम नहीं बता पाऊँगा, क्योंकि प्राइवेसी को मैं सबसे ज़्यादा महत्व देता हूँ।

यह कहानी दो साल पहले की है, जब मैं जॉब करने के लिए अहमदाबाद आया था।

अपने बारे में बता दूँ: मैं एक सामान्य परिवार से हूँ। मेरी पढ़ाई मेरे गाँव में हुई।
कॉलेज के फाइनल ईयर में था, तभी कोरोना की वजह से परीक्षा लेट हुई।

जैसे ही लॉकडाउन खुला, मैंने जॉब ढूँढना शुरू कर दिया।
अहमदाबाद में एक अच्छी कंपनी में जॉब मिल गई।

अब जॉब के लिए अहमदाबाद शिफ्ट होना था, तो मैंने कंपनी से 2 किलोमीटर दूर एक बॉयज़ हॉस्टल में जगह ले ली।

लेकिन हॉस्टल में ज्यादातर कॉलेज स्टूडेंट्स थे, तो मेरा टाइम सेट नहीं हो पा रहा था।
हर रोज़ सुबह भागदौड़ लगी रहती थी।

फिर भी एक महीने का रेंट दे दिया था, तो एक महीना तो निकालना ही था।
इस दौरान मैंने अगले महीने के लिए रूम ढूँढना शुरू कर दिया।

पर अब दिक्कत ये थी कि अहमदाबाद में बैचलर को कोई रेसिडेंशियल एरिया में रूम नहीं देता, और मुझे अकेले रहना था, शेयरिंग रूम मुझे नहीं चाहिए था।

काफी ढूँढने के बाद एक छोटा रूम और किचन मिल गया।
उस एरिया में ज्यादातर लोग रेंट पर रहने वाले थे।

मेरा रूम ऊपर के फ्लोर पर था।
नीचे कॉलेज स्टूडेंट्स थे लेकिन मेरा उनसे कोई लेना-देना नहीं था।
बातें भी बहुत कम होती थीं।

धीरे-धीरे मेरा रूटीन सेट होने लगा।
रोज़ सुबह काम पर जाओ, दोपहर का खाना तो कंपनी में मिल जाता था, शाम का खाना खुद बनाना पड़ता था।

जिंदगी अच्छी चल रही थी।

अब जिंदगी में कुछ कमी थी, तो वो थी लड़की की।
नीचे कॉलेज वालों की भी गर्लफ्रेंड थीं, मेरी ही नहीं थी।
तो मुझे लगा कि मुझे भी गर्लफ्रेंड बनानी चाहिए।

मैं रोज़ शाम को खाने के बाद बाहर जाने लगा।
मेरे घर से 10 मिनट की दूरी पर एक जगह थी, जहाँ खाना और फास्ट फूड बहुत अच्छा मिलता था।
पास में ही गर्ल्स हॉस्टल था, तो रात को लड़कियाँ वहाँ घूमने आया करती थीं।

मैं रोज़ वहाँ जाता, वहाँ बैठकर फोन चलाता और लड़कियों को ताड़ता रहता।
बात करने की हिम्मत तो थी नहीं।
मैं ठहरा गाँव का सीधा-सादा, सामान्य लड़का।

ऊपर से कभी काम के अलावा किसी लड़की से बात की नहीं थी।

इसे डर कहो या शर्म, मैं किसी लड़की से बात नहीं कर पाया।

बस, यही रोज़ का रूटीन हो गया।
जब भी फ्री होता या छुट्टी होती, वहाँ जाकर लड़कियाँ देखते रहना।

एक दिन की बात है, ऑफिस में छुट्टी थी।
मुझे बाज़ार से कुछ सामान लाना था, तो मैं बाज़ार गया हुआ था।
गर्मी का मौसम था।

वापस आ रहा था तो सोचा कि रूम पर जाकर क्या करूँगा, चलो वहीं अपनी जगह पर जाकर बैठता हूँ।

बस वहीं जाकर बैठकर मोबाइल देख रहा था कि मेरे सामने से एक औरत निकली।
शायद 30-32 साल की होगी। मुँह पर दुपट्टा बँधा हुआ था, सलवार-कमीज़ पहने हुए, हाथ में थैला था।
शायद बाज़ार से कुछ खरीदकर जा रही होगी।

पर मैं तो लड़कियाँ देखने आया था तो मैंने उन पर उतना ध्यान नहीं दिया।

वो चलते हुए मेरे सामने से निकलीं और मुझसे 6-7 फीट की दूरी पर गई होंगी कि उनके हाथ से सामान का बैग गिर गया।
मेरी नज़र उन पर गई, तो वो गिरने वाली थीं, पर उन्होंने अपने दोनों हाथ ज़मीन पर लगा दिए और वो वहीं ज़मीन पर बैठ गईं।

उनके सबसे नज़दीक मैं ही बैठा हुआ था, तो मैं तुरंत खड़ा हुआ और उनका हाथ पकड़कर पास के बेंच पर बिठाया।
उन्होंने दुपट्टा खोला तो पूरी तरह पसीने से भीगी हुई थीं।

मैं समझ गया कि उन्हें गर्मी की वजह से चक्कर आए हैं।
मैंने अपने बैग से पानी की बोतल निकाली और उन्हें पकड़ा दी।
वो कुछ ज़्यादा ही डर गई थीं।

इतने में आसपास के कई लोग मदद करने आ गए।
उनमें से दो औरतों ने उन्हें संभाला।

अब औरतें आ गई थीं तो मैंने वहाँ रुकना ठीक नहीं समझा और थोड़ी दूर आकर देखने लगा।

फिर उन्होंने उस औरत का पता पूछा, तो वहाँ एक औरत को वो पता मालूम था।
शायद वो उसी इलाके में रहती होगी।

तो उन्होंने रिक्शा बुलाया और वो दोनों उसमें बैठकर जाने लगीं।

मेरी बोतल अभी भी उस भाभी के हाथ में थी.
पर मैं माँगने की हिम्मत नहीं कर पाया और वो उसे लेकर चली गईं।

उस बात को 2-3 महीने बीत गए।
पहले की तरह मेरी जिंदगी चलने लगी।

ऐसे ही एक दिन, इतवार (रविवार) को मैं अपनी जगह पर बैठा था और अपने काम में लगा था (लड़कियाँ देखने का)!
कि मेरे सामने से एक एक्टिवा निकली और थोड़ी दूर जाकर रुक गई।

वो एक्टिवा एक औरत चला रही थी।
उसने रुककर पीछे मुड़कर मेरी ओर देखा।
चेहरे पर दुपट्टा और काला चश्मा होने से मैं कुछ समझ नहीं पाया।

उन्होंने एक्टिवा साइड पर लगाई और मेरी ओर चलकर आने लगीं।
उन्हें मेरी ओर आते देख मेरी फट रही थी।
फिर सोचा, शायद कोई दूर की रिश्तेदार होगी; पास आएगी, तो पहचान लूँगा।

वो अपने चेहरे से कपड़ा खोलते हुए मेरे पास आईं।

मुझे टेंशन हो रही थी और मैं उनकी ओर ही देख रहा था।

जैसे ही वो मेरे पास आईं, मैं खड़ा हो गया।
मैंने उन्हें पास से देखा, पर वो हमारी रिश्तेदार नहीं थीं।
मैं कन्फ्यूज़ था और उन्हें देखे ही जा रहा था।

उन्होंने मेरी ओर ध्यान से शायद 5 सेकंड देखा और बोलीं, “आप वहीं हैं ना, जिन्होंने उस दिन मेरी मदद की थी, जब मुझे गर्मी की वजह से चक्कर आ गए थे?”
हमारी बातें गुजराती में हुई थीं, पर आप लोगों को समझ में आए, इसलिए हिंदी में लिख रहा हूँ।

फिर मुझे याद आया, अरे हाँ, ये तो वहीं हैं। पर मैं कुछ बोल नहीं पाया, सिर्फ हाँ में सिर हिलाया।

उन्होंने कहा, “हाय, उस दिन मैं बहुत घबरा गई थी, तो आपको ठीक से देखा नहीं था। पर आज वहीं टोपी और बैग देखा, तो आपको पहचान लिया। सॉरी, उस दिन मैं आपको थैंक्स भी नहीं बोल पाई।”

गर्मी ज़्यादा होने से मैं सिर पर टोपी रखता था।

मैं बोला, “कोई बात नहीं जी, उस दिन मेरी जगह कोई और होता, वो भी यही करता। ये तो मैं खुशकिस्मत हूँ कि मुझे आपकी मदद करने का मौका मिला।”

बगल में लस्सी वाला ठेला लगा हुआ था।
तो भाभी ने वहाँ देखा और बोलीं, “लस्सी पीते हुए बात करें?”

मैंने हाँ कर दी.
तो उन्होंने दो लस्सी मँगवा दी और हम वहीं बैठकर बातें करने लगे।

उन्होंने मेरे बारे में सब कुछ पूछ लिया, जैसे कि नाम, कहाँ रहता हूँ, क्या काम करता हूँ? और साथ में अपने बारे में भी बताती चली गईं।
उन्होंने अपना नाम नीलम (बदला हुआ) बताया।

वो थोड़ा ज़्यादा बोलती थीं, मुझे ऐसा लगा।
लेकिन बातें अच्छी करती थीं।

वो अब अच्छे से खुल गई थीं। वो बातें करती जा रही थीं, मैं सुनता जा रहा था और बीच-बीच में उनके सवालों का जवाब देता रहता था।

बातें कुछ 15 मिनट चलीं.
फिर अचानक वो बोलीं, “उस दिन गलती से आपकी बोतल मेरे पास आ गई थी। आप ऐसा क्यों नहीं करते कि मेरे घर चलें? आप बोतल भी ले लेना और मेरे पति भी आपसे मिलना चाहते हैं, तो वो भी मिल लेंगे।”

अब मैं ठहरा शर्मीला … ऊपर से उनके साथ उनकी एक्टिवा पर?
तो मैंने मना कर दिया, “अभी मुझे थोड़ा काम है। आप एड्रेस दे दीजिए, मैं फिर कभी आ जाऊँगा।”
उन्होंने मुझे एड्रेस दे दिया और बोलीं, “याद करके ज़रूर आना।”

मैंने हाँ में सिर हिलाया।

मैंने एड्रेस देखा, तो वो मेरे घर से 5 मिनट की पैदल दूरी पर था।
खैर, मुझे जाना तो था नहीं।

फिर दो हफ्तों बाद संडे को मुझे बाहर जाकर खाने की इच्छा हुई, तो मैं ऐसे ही निकल पड़ा।

मैं जा रहा था कि पीछे से मुझे मेरे नाम से पुकारा।
मैंने देखा तो कोई भाई बाइक पर बैठे थे।

उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया। मैंने सोचा कि इनको मैं जानता नहीं, तो ये मुझे कैसे जानते हैं? खैर, चलकर देखते हैं।

मैं पास गया, तो पीछे वही नीलम भाभी बैठी थीं।

भैया बोले, “हाय, मैं सागर! आपसे कब से मिलने की इच्छा थी। थैंक्स भी कहना था।”
मैं बोला, “अरे, कोई बात नहीं जी।”

फिर थोड़ी देर ऐसे ही बात हुई, एक-दूसरे की जान-पहचान हुई।

फिर भैया बोले, “कहीं काम से जा रहे थे?”
मैं बोला, “नहीं, काम तो नहीं, पर आज कुछ अलग खाने का मन हो रहा था, तो बाहर खाने जा रहा हूँ।”

तो भाभी बोलीं, “चलो हमारे घर, वहाँ खा लेना और हमारा घर भी देख लेना।”
भैया ने बोला, “हाँ चलो, हमारा घर सामने ही है।”

अब मेरे पास कोई ऑप्शन नहीं था।
भाभी भैया से बोलीं, “आप बाइक लेकर जाओ, मैं आर्णव को लेकर पैदल आती हूँ।”

घर सामने ही था, तो भैया मान गए। दो मिनट चलने पर हम उनके घर पहुँच गए। उनका घर अपार्टमेंट में तीसरे माले पर था। 3BHK घर, बहुत अच्छे से संभाला हुआ था।

उनके घर में उन दोनों के अलावा उनका बेटा था, रोहन।
वो शायद दस साल का होगा।

मैं और भैया वहीं सोफे पर बैठे।
भैया ने टीवी चला दी और मुझसे बातें करने लगे।
मेरे बारे में सब पूछने लगे और ढेर सारी बातें करने लगे।
भैया का स्वभाव बहुत अच्छा था।

थोड़ी देर में भाभी किचन से हम सबके लिए कोल्ड ड्रिंक लेकर आईं।

हमने कोल्ड ड्रिंक पी और फिर भाभी किचन में खाना बनाने चली गईं।
रोहन भी मुझसे अब घुल-मिल गया था, तो वो भी मेरे साथ खेलने लगा था।

बीच-बीच में भैया से मेरी बातें होती रहती थीं।
भाभी किचन से हमारी बातें सुन रही थीं।

लगभग आधे घंटे में खाना तैयार हो गया।
भाभी ने खाना लगा दिया और हमें खाने के लिए आवाज़ दी।

हम सब खाना खाने बैठ गए।
खाना खाते वक्त बातें चलती रहीं।

उन्होंने मेरे परिवार और गाँव के बारे में पूछा।
फिर अपने बारे में भी बताया।

भैया का परिवार गाँव में रहता है। भैया बड़ी कंपनी में सेल्स में अच्छी पोज़िशन पर हैं तो उन्होंने यहीं पर घर ले लिया।

भैया ने मेरी जॉब के बारे में पूछा।
मैंने भी कंपनी का नाम, मेरा वहाँ का काम और जॉब का टाइम बताया कि मैं शाम छह बजे फ्री हो जाता हूँ।

फिर भाभी ने मुझे बोला, “क्या तुम रोहन की ट्यूशन ले सकते हो? रोज़ शाम को सिर्फ़ एक घंटा, इसकी होमवर्क में मदद कर सकते हो? रोहन इंग्लिश मीडियम में पढ़ता है और मुझे सिर्फ़ बेसिक इंग्लिश आती है। तुम्हारे भैया को काम ही इतना होता है कि वो ध्यान नहीं दे पाते। कभी-कभी तो हफ्तों तक बाहर रहते हैं।”

भाभी गाँव की थीं।
भैया का भी परिवार गाँव में था।

भाभी ने केवल बी.ए. किया हुआ था, तो इंग्लिश में उतनी अच्छी नहीं थीं।

भैया भी बोले, “हाँ, हम रोहन की पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाते। तुम पढ़ा लोगे, तो अच्छा रहेगा। तुम्हारी फीस जो भी हो, वो ले लेना। वैसे तो वो कोचिंग भी जाता है, पर घर पर कोई ध्यान नहीं दे पाता।”

वैसे शाम को मैं फ्री ही रहता था, पर ज्यादातर अकेले रहना पसंद करता हूँ, क्योंकि तब मैं अपने आपको ज़्यादा टाइम दे पाता था।
पर अब मैं ना नहीं कर पाया।
मैं बोला, “अरे भैया, आप कैसी बातें कर रहे हैं? आप मेरे भाई जैसे हैं, आपसे फीस कैसे ले सकता हूँ? मैं रोज़ रात को रोहन को पढ़ाया करूँगा।”

मेरी बात सुनकर भैया-भाभी दोनों बहुत खुश हुए।

खाना खाने के बाद भाभी ने आइसक्रीम दी।
हम सबने आइसक्रीम खाई।

फिर मैंने जाने की इजाज़त माँगी तो भैया ने मना कर दिया कि अगर भैया माना है, तो थोड़ी देर और रुक जाओ। वैसे भी धूप ज़्यादा है, शाम को चले जाना।

भाभी ने भी बोला, “रोहन को भी तुम्हारे साथ खेलने में मज़ा आ रहा है, रुक जाओ।”

मैं रुक गया और रोहन के साथ स्नेक एंड लैडर (साँप-सीढ़ी) खेलने लगा।

थोड़ी देर बाद भैया ने भी जॉइन किया।
फिर भाभी भी काम पूरा करके हमारे साथ खेलने आ गईं।

हमने काफी टाइम तक ये खेला।

फिर भाभी चाय बनाकर ले आईं।
हम सबने चाय पी, फिर थोड़ी देर ऐसे ही बातें करते रहे।

रोहन पढ़ाई करने बैठा था, तो मैं उसकी मदद करने लगा।
उसका ट्यूशन आज से ही शुरू कर दिया।

भैया अपने लैपटॉप में कुछ कर रहे थे और भाभी एक बार रोहन को चेक करके अपने काम में लग गईं।

कुछ डेढ़ घंटे तक पढ़ाई चली, फिर मैं काम के बहाने वहाँ से निकल गया और अपने रूम पर आ गया।

फिर दूसरे दिन मैं ऑफिस से रूम पर गया, फ्रेश हुआ, खाना बनाया, खाना खाकर भाभी के घर जाने को निकल गया।

निकलते हुए नौ बज गए।
वहाँ पहुँचा, तो वो लोग खाना खा रहे थे।

भाभी ने मुझे खाना खाने के लिए बैठने को कहा।
मैं बोला, “मैं अभी ही खाना खाकर घर से निकला।”

भाभी ने पूछा, “खाना तुम खुद बनाते हो?”
मैंने हाँ कहा।

तो भाभी बोलीं, “कल से तुम हमारे यहाँ खाना खाओगे।”

भैया भी बोले, “हाँ, तुम हमारे लिए इतना कुछ कर रहे हो, तो हम भी इतना तो कर ही सकते हैं। कल से खाना यहीं खा लेना।”

मैं क्या बोलता? इससे अच्छा मेरे लिए क्या हो सकता था.

मैं वहीं सोफे पर बैठकर मोबाइल यूज़ करता रहा।
तब तक उन्होंने खाना खा लिया।

फिर मैं और रोहन होमवर्क के लिए उसके रूम में चले गए।

करीब दस बजे भाभी हम दोनों के लिए दूध का ग्लास लेकर आईं।
अभी भाभी ने टी-शर्ट और पायजामा पहना हुआ था, जबकि दिनभर सलवार-कमीज़ में थीं।
शायद सोने के टाइम के लिए भाभी ने चेंज किया होगा।

दूध पीने के बाद रोहन सो गया, तो मैं भी भैया से बोलकर अपने रूम में आ गया।

दूसरे दिन मैं ऑफिस से आकर फ्रेश होकर सीधे भाभी के घर चला गया।
तब सात बजे थे।

भाभी खाना बनाने में लगी थीं।
मैं वहीं बैठ गया।

भाभी मेरे लिए पानी लेकर आईं।

फिर मैं रोहन के साथ खेलने लगा।
करीब साढ़े आठ बजे भैया आए।
वो फ्रेश हुए, हम सबने खाना खाया।

एक बात बता दूँ, भाभी खाना बहुत अच्छा बनाती हैं।

फिर वहीं रोहन की पढ़ाई, फिर अपने रूम पर आ गया। ऐसे ही चार-पाँच महीने निकल गए।
भैया को लगभग हर महीने में एक बार ऑफिस के काम से बाहर जाना पड़ता था। कभी दो दिन के लिए, कभी एक हफ्ते के लिए, कभी और भी ज़्यादा दिन के लिए।

ऐसे ही एक बार भैया बाहर गए हुए थे। उनको गए दो दिन हो गए थे कि मैं ऑफिस से निकल रहा था और भैया का फोन आया, “आर्णव, जब तक मैं नहीं आता, तब तक रात को मेरे घर पर रुक सकते हो?”
मैं बोला, “क्या हुआ भैया? कुछ प्रॉब्लम है क्या?”
भैया, “अरे कुछ नहीं, कल रात को नीचे वाले फ्लैट में चोरी हो गई, तो नीलम डरी हुई है। और अभी गाँव से कोई आ नहीं पाएगा। मुझे अभी एक हफ्ता और लगेगा। तुम रुक जाओगे, तो बड़ी मेहरबानी होगी!”

अब मैं भैया और भाभी के थोड़ा करीब आ गया था।
उन्हें इस तरह रिक्वेस्ट करते देखकर मना नहीं कर पाया, मैंने कहा, “भैया, आप ज़रा भी चिंता न करें। आप जब तक नहीं आते, मैं आपके घर रुक जाऊँगा।”

भैया ने थैंक्स बोलकर फोन रख दिया।

मैं घर आया, फ्रेश हुआ, थोड़े कपड़े और कुछ सामान लेकर भाभी के घर पहुँच गया।

भाभी मुझे देखकर खुश हो गईं और मुझे अपना कमरा दिखाया और फ्रेश होने को कहा।

मैंने अपना सामान अरेंज किया और बाहर आ गया।
आज भैया नहीं थे, तो खाना आठ बजे शुरू हो गया।

भाभी खाना खाते हुए बोलीं, “अच्छा हुआ तुम रुकने के लिए आ गए। मैं तो सुबह से डरी हुई थी।”
मैंने कहा, “अरे भाभी, मैं कहाँ दूर हूँ? पास में ही तो रहता हूँ। जब भी ज़रूरत हो, एक कॉल कर दिया कीजिए।”

उस दिन भाभी ने खाना खाते वक्त बहुत बातें कीं।

अब मैं रोज़ वहीं भाभी के घर से ऑफिस जाने लगा।

अब अगले दो दिन ऑफिस की छुट्टी थी और मैं छुट्टी के दिन लेट उठता हूँ।
तो उस रात रोहन को पढ़ाने के बाद अपने रूम में जाकर मूवी देखने लगा.
तो रात को बहुत लेट हो गया।

सुबह ऑफिस जाना नहीं था तो अगले दिन का अलार्म बंद करके सो गया।

सुबह भाभी ने मुझे जगाया।
मेरी आँख खुली तो भाभी मेरे रूम से बाहर निकल रही थीं।

वो बिना मेरी तरफ देखे बोलीं, “चाय-नाश्ता तैयार है, फ्रेश होकर आ जाओ।”

मेरी नींद खुली।
मैं बेड पर बैठ गया।

अचानक मेरा ध्यान गया कि मेरा एक हाथ चड्डी के अंदर था।

दरअसल, मैं रात को शॉर्ट्स पहनकर सोता हूँ।
तो हुआ ऐसा कि मेरा एक हाथ चड्डी के अंदर था। लिंग पूरी तरह तना हुआ, अपने विशाल आकार में था और लिंग का आगे का हिस्सा पेट की ओर चड्डी से बाहर निकल रहा था।
अब मुझे लगा कि शायद भाभी ने ये देख लिया होगा इसलिए मेरी ओर देखे बिना चली गईं।

अब मेरी पूरी तरह से फट रही थी।

मैं उठा, फ्रेश हुआ, पर अब बाहर जाने की हिम्मत नहीं थी।

थोड़ी देर वहीं बेड पर बैठा रहा कि भाभी ने नाश्ता करने के लिए आवाज़ दी।

अब क्या करता? डरते हुए बाहर निकला और टेबल पर जाकर बैठ गया।

भाभी नाश्ता लगा रही थीं।

वो बिना मेरी तरफ देखे अपना काम करते हुए बोलीं, “कब से इंतज़ार कर रही हूँ।”
मैंने सिर्फ़ सॉरी बोला।

भाभी: “ठीक है, अब नाश्ता कर ले.”
मैंने हाँ में सिर हिलाया।
रोहन स्कूल चला गया था।

भाभी मुझसे बातें किये जा रही थीं, पर एक बार भी उन्होंने मेरी आँखों में या मेरे चेहरे की ओर नहीं देखा।
शायद वो नॉर्मल होने की कोशिश कर रही थीं, पर नज़रें नहीं मिला पा रही थीं।

पर मेरी तो आवाज़ ही नहीं निकल रही थी, पूरी तरह फटी पड़ी थी।

वह दिन ऐसा ही बीतता चला गया। भाभी बातें करतीं, मैं हाँ या ना में जवाब देता।
इंडियन भाभी X कहानी के 5 भाग हैं.
आप अपने विचार हर भाग पर बताएं.
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इंडियन भाभी X कहानी का अगला भाग:

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