हवाई जहाज में चूत को उंगली से चोदा
(Hawai Jahaj Me Chut Ko Ungli Se Choda)
दोस्तो, वैसे तो मुझे चूत और गाण्ड मारना दोनों ही पसंद है.. पर जो मजा चूत लेने में है.. वो सच में गाण्ड मारने में नहीं है। गाण्ड तो केवल चूत का विकल्प है.. मेरी कई कहानियाँ आपने पढ़ी होगीं,
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पर यह कहानी एक महिला के साथ मेरी मुलाकात की कहानी है.. आप इस कहानी का मजा लीजिए।
मुझे भारत से बाहर कैमरून जाना था.. मैं दिल्ली एयरपोर्ट से अपनी फ्लाइट के लिए इथियोपियन एयरवेज के जहाज का इंतजार कर रहा था। मेरे सभी कस्टम क्लियरेंस हो चुके थे.. जहाज भी समय पर आ चुका था। सभी सवारियाँ बारी-बारी से अपनी अपनी सीटों के क्रमानुसार अपनी-अपनी जगह पर बैठ रहे थे..
मैं भी जब अपनी सीट पर पहुँचा.. तो मैंने देखा कि मेरी सीट से दो सीट छोड़ कर उसकी सीट थी। मैंने कोई ज्यादा ध्यान नहीं दिया.. क्योंकि अब मैं 40 वर्ष का एक शादी-शुदा आदमी था और अब तो मैं एक नवजवान युवक का पिता भी था।
उस महिला की उम्र मुश्किल से 25 वर्ष रही होगी। हम सभी अपनी-अपनी जगह बैठ गए.. विमान में ज्यादा भीड़ नहीं थी और उसके और मेरे बीच में कोई भी अन्य यात्री नहीं आया था।
विमान के सभी द्वार बंद हो चुके थे.. और फ्लाइट उड़ने को तैयार थी.. तब उस महिला ने मुझसे पूछा- आप कहाँ जा रहे हैं?
मैंने उसे अपना गंतव्य बताया और उससे भी पूछा- आप कहाँ जा रही हैं?
उसने बताया कि उसका पति इथियोपिया में काम करता है और वो अपने ससुर के साथ उसके पास रहने जा रही है। तब तक मुझे जरा भी उसके प्रति कोई भी सेक्स का जुड़ाव नहीं हुआ था। फ्लाइट के उड़ने के बाद एयर होस्टेस ने हम लोगों का डिनर वगैरह सर्व किया..
उसके बाद फ्लाइट की सभी लाइटें बंद होने लगीं। कुछ लोग सो भी चुके थे और मैं भी दो पैग लगाकर सोने का मूड बना रहा था। मैंने देखा कि वो महिला अपने पैर ऊपर करके बैठी है.. जब उसने मुझे देखते हुए देखा.. तो बोली- नीचे रखे-रखे पैर दर्द करने लगे है.. क्या करूँ..
मैंने कहा- ये जगह खाली है.. आप अपने पैर इधर करके आराम से लेट जाओ।
मेरा कहना मानकर उसने वैसा ही किया.. थोड़ी ही देर में उसे वो स्थिति भी दु:खदायी लगने लगी। मैंने अपने आगे की सीट का बैक.. जिसमें हम लोग खाना रख कर खाते हैं.. उसे खोल दिया और उससे बोला- अब आप अपने पैर इस पर रख लो।
उसने जब पैर रखे.. तो मैं अपना सर पीछे रख कर सोने लगा।
लगभग 15 मिनट के बाद मुझे महसूस हुआ कि मैं अपने हाथ कहाँ रखूँ.. मैंने ज्यादा नहीं सोचा और उसके पैर के ऊपर ही हाथ रख दिए, उसने जरा भी विरोध नहीं किया।
उसके विरोध न करने से मेरे लौड़े की घंटियाँ बजने लगीं और मेरे दिमाग में वासना जागने लगी, मेरी आँखों से नींद गायब हो चुकी थी.. दारू का नशा उतर चुका था और बस अब मुझे चूत के अलावा कुछ नहीं दिख रहा था।
सारा ज्ञान.. विवेक.. न जाने कहाँ चला गया था।
मैंने एक-दो बार अनजाने में उसके पैरों पर हाथ से सहलाया भी.. ये दिखाते हुए कि मैं नींद में हूँ.. पर वास्तव में मैं उसको टटोल रहा था।
जब कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो मैं और आगे बढ़ा.. अगले दस मिनट में मैं उसकी चिकनी जांघों के पास उसकी सलवार के ऊपर से सहला रहा था। ये तो मैं जान चुका था कि ये भी जाग रही है और उसको मजा भी आ रहा है।
जब मुझे पक्का विश्वास हो गया कि लाइन साफ है.. तो मैंने सहलाते-सहलाते उसकी चूत पर ऊपर से हाथ फिराना शुरू किया और महसूस किया कि उसका बदन हल्का-हल्का कांप रहा है।
अन्दर उसने पैंटी पहनी हुई थी.. जिसकी वजह से मैं उसकी चूत को खुलकर नहीं सहला पा रहा था.. और इधर मेरा लंड अपने पूरे शवाब पर था।
मैंने एक हाथ से उसकी सलवार को खोला.. दूसरे हाथ से लंड बाहर निकाला और हवाई जहाज में मिला हुआ कम्बल अपने लंड के ऊपर डाल लिया।
सारी लाईट बंद थीं.. पर मैं जाग रहा था और वो भी सोने का नाटक कर रही थी।
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मेरा हाथ उसकी पैंटी के अन्दर पहुँच कर हल्के-हल्के बालों वाली एक छोटी सी चूत को सहलाने लगा था। चूत पर मटर का दाना भी ज्यादा बड़ा नहीं था.. चूत की कलियाँ भी ज्यादा बड़ी नहीं थीं.. पर चूत बिलकुल गीली थी। उस गीली चूत में मैंने ‘गपाक’ से अपनी एक उंगली घुसा दी.. और उंगली को गोल-गोल नचाने लगा।
ज्यादा जगह तो थी नहीं.. इससे ज्यादा के लिए उसे उठाना पड़ता और सहयोग करना पड़ता.. पर वो सोने का नाटक करती रही।
मैं एक हाथ से कभी चूत में उंगली करता.. कभी उसके भगनासे को सहलाता.. दूसरे हाथ से मैं अपने लंड को लगातार हिलाता जा रहा था।
मुझे ये सब करते-करते लगभग दस मिनट हो चुके थे।
एकाएक उसने जोर की अंगड़ाई सी ली.. और बहुत जोर-जोर से दो-तीन बार कांपी और मेरे हाथ को ऐसा लगा.. जैसे उसने मूत दिया हो। जैसे ही मुझे लगा कि ये तो खल्लास हो गई.. मेरा लंड भी अपने पूरी शक्ति से सारा माल बाहर कम्बल में फेंकने लगा और जब तक दोस्तों मैं अपने आपको सम्हालता.. वो महिला उठ कर बैठ गई।
मेरी गाण्ड फट गई कि क्या अब ये बवाल मचाएगी.. पर उसने अँधेरे में तुरंत अपनी सलवार को पुनः सही करके पहना और उठ कर आगे चली गई।
मैं अपने को किसी होने वाली अनहोनी के लिए तैयार करने लगा.. पर 5 मिनट के बाद एक दूसरा कोई व्यक्ति आया.. और उस सीट पर बैठ गया।
मैंने उससे कहा- ये सीट किसी और की है।
उसने मुझसे कहा- उन्होंने ही मुझे कहा है यहाँ बैठने के लिए.. वो मेरी सीट पर बैठी हैं.. शायद मेरे बगल वाले उनके रिलेटिव हैं.. तो मैं यहाँ आ गया हूँ।
मेरी जान में जान आई.. फ्लाइट जब इथियोपिया पहुँची.. तो हम सब उतरने लगे.. वो मुझसे आगे-आगे उतर रही थी जब हम लोग एअरपोर्ट की लाबी में पहुँचे तो वो मुझ से काफी दूर थी.. पर उसने मुझे वहीं से एक ‘टाटा’ किया और गेट से बाहर चली गई।
वो कौन थी.. अब कहाँ है.. मुझे नहीं पता।
दोस्तो, आपके ईमेल का हमेशा की तरह इंतजार करूँगा।
अमित शर्मा
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