सम्भोग का सफर-2
(Sambhog Ka Safar-2)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_left सम्भोग का सफर-1
-
keyboard_arrow_right सम्भोग का सफर-3
-
View all stories in series
कथा : शालिनी भाभी
लेखक : अरुण
मैं जैसे ही कार में उसके पास बैठी, उसने मेरे गाल चूम के मेरा स्वागत किया, बोला- बहुत सुंदर और सेक्सी लग रही हो।
मैंने उसे उसकी सीट पर धकेलते हुए कहा- प्लीज़ चलो यार, पहले शहर से बाहर तो निकलो !
और हम चल पड़े।
हम अब हाइवे पर थे और फिर से बरसात शुरू हो गई थी, इस बार जोर से.. तेज बरसात के कारण बाहर अँधेरा हो गया था, मैं अपना सिर उसके कंधे पर रख कर बैठी हुई थी और बाहर हो रही बरसात मुझे सेक्सी बना रही थी, गर्म कर रही थी।
वो बहुत सावधानी से कार चला रहा था। बारिश की वजह से रास्ते पर बहुत कम वाहन थे और यह हमारे लिए बहुत ही अच्छा था।
उसने मेरे गाल पर चुम्बन लिया तो मैं अपना आपा खोने लगी, मैंने भी उसके गाल को चूमा।
गाड़ी चलते हुए उस ने मेरी चूचियों को दबाया, मैं जो चाहती थी, वो हो रहा था।
उसने फिर एक बार मेरी चूचियों को दबाया और मसला, इस बार जरा जोर से।
चलती गाड़ी में जितना सम्भव था, उतना मैं उससे चिपक गई। अब मेरी चूचियाँ उसके हाथ पर रगड़ खा रही थी।
मैंने उसके शर्ट के ऊपर का बटन खोल दिया, मेरी उँगलियाँ उसकी चौड़ी, बालों भरी छाती पर, उसकी मर्दाना निप्पल पर घूमने लगी। अरुण की छाती पर खूब बाल हैं, यह मुझे पहले से ही मालूम था, और मर्द के छाती के बाल मुझे बहुत ही ज्यादा पसन्द हैं इसलिए मैं उसके कंधे पर सर टिकाये उसके निप्पल को मसलने लगी और मैंने महसूस किया कि उसकी निप्पल मेरे सेक्सी तरीके के कारण कड़क हो गई थी।
मैंने एक के बाद एक, उसकी दोनों निप्पलों को मसला तो उसको मज़ा आया।
मैंने नीचे देखा तो पाया कि उसकी पैंट के नीचे हलचल हो रही थी मुझे शरारत सूझी और मैं मुस्कराते हुए उसकी निप्पल को छोड़ कर अपना हाथ नीचे ले गई।
मेरा एक हाथ उसकी गर्दन के पीछे था और मेरी चूचियाँ अभी भी उसके हाथ पर रगड़ खा रही थी, अब मेरा दूसरा हाथ उसकी पैंट के ऊपर, उसके तने हुए लण्ड पर था, उसके दोनों हाथ अभी तक स्टीयरिंग में बिज़ी थे लेकिन अब हम मेगा हाई-वे पर थे तो और कार एक ही गीयर में और आराम से चल रही थी, उसने स्पीड भी लिमिट में रखी हुई थी तो उसने भी अपना एक हाथ फ्री करते हुए मेरी जांघों के बीच में रख दिया था, और मेरा हाथ उसके पैंट के उभार पर था जिसमें उसका लण्ड फँस रहा था इसलिए उसने अपने पैरों की पोज़िशन ऐसी बना ली कि वो कार चलाता रहे और मैं उसके लौड़े से खेलती रहूँ।
मैं उसका खड़ा हुआ लण्ड मसल रही थी और उसको बाहर निकालना चाहती थी। मैंने उसकी जिप खोली तो उसने भी अपने खड़े हुए लण्ड को चड्डी से बाहर निकालने में मेरी मदद की।
कितना सुन्दर लण्ड है मेरे प्रेमी का… गहरे भूरे रंग का, करीब 7 इंच लम्बा होगा वो और शायद 3 इंच मोटा, तुम सोच रहे होंगे कि शालिनी को लण्ड की बड़ी पहचान है?
हा हा… हा हा…
हाँ दोस्तो, यह बात सही है कि मुझे लण्ड की सही में बहुत ज्यादा पहचान है, अरुण का कड़क लण्ड, काफी कुछ बाहर निकल आया था गर्म, सख्त और मज़बूत। उसके लण्ड के सुपाड़े पर चमड़ी नहीं है इसलिए उसका पूरा गुलाबी सुपाड़ा बाहर की तरफ उभरा हुआ था और ऐसा लण्ड मुझे बहुत प्यारा लगता है।
मुझे उसके मर्दानगी भरे लण्ड को देखना और सहलाना अच्छा लग रहा था।
उसके लण्ड के सुपाड़े पर छेद पर पानी की एक बूँद आ गई थी जो आप जानते हैं यह चुदाई के पहले का पानी है जिसे प्री-कम कहते हैं।
उसने भी कार चलाते हुए मेरी चूत पर मेरी लेगिंग के ऊपर से ही हाथ फिराया जिससे मेरे बदन की गर्मी बढ़ने लगी और हमेशा की तरह मेरी चूत ने भी रस निकालना चालू कर दिया।
मुझे अरुण की एक बात और अच्छी लगी, वो यह कि जैसे उसका लण्ड कड़क हुआ तो वो और भी ज्यादा सावधानी से कार ड्राइव करने लगा।
मैंने धीरे से उसके खड़े लण्ड को पकड़ कर हिलाया, मेरे छूने से उस का कड़क लौड़ा और भी सख्त हो गया।
बाहर हो रही बरसात हमारी भावनाओं को भड़का रही थी और हम चलती कार में हमारा पसंदीदा काम करने लगे।
मैंने अरुण की आँखों में देखा तो उनमें मेरे लिए प्यार के सिवाय कुछ और नहीं था।
मैंने उसके लण्ड को पकड़ कर ऊपर नीचे करना शुरू किया, कुछ समय बाद मैंने अपना सिर नीचे करके उस के तनतनाते हुए लण्ड को अपने मुंह में लिया।
मैं अपनी जीभ उसके लण्ड मुंड पर घुमा कर उसके पानी का स्वाद लिया। उसका लण्ड चूसते हुए भी चलती कार में मेरा मुठ मारना लगातार चालू था। मुझे पक्का था कि कोई भी बाहर से नहीं देख सकता था कि अन्दर चलती कार में हम क्या कर रहे है।
कार के शीशे गहरे रंग के थे और बाहर बरसात होने की वजह से वैसे भी अँधेरा था।
बाहर बरसात और तेज होने लगी थी जो कार में हम दोनों को गर्म, और गर्म, सेक्सी बना रही थी।
मैं एक बार तो घर पर डॉक्टर और उसकी कामवाली को देख कर अपनी चूत अपनी ही उंगली से चोद चुकी थी और अब मैं चाहती थी कि लण्ड और चूत के मिलन से पहले उसके लण्ड को भी हिला हिला कर, मुठ मार कर उसके लण्ड का रस भी निकाल दूँ।
कार की छोटी जगह में झुक कर उसके लण्ड को चूसने में तकलीफ हो रही थी क्योंकि हिलने जगह बहुत ही कम थी।
उसने भी इस बात को समझा और मैं सीधी हो कर बैठ गई।
उसने फिर मेरी चूचियों को मसला और दबाया, मेरी चूत पर हाथ फिराया, मैंने बैठे बैठे उसके लण्ड को कस कर पकड़ा और शुरू हो गई, जोर जोर से मुठ मारने का काम करने को।
वो भी बार बार मेरी चूचियों से खेल रहा था, दबा रहा था, मसल रहा था और मेरी चूत पर भी हाथ फिरा रहा था।
चुदाई की, सेक्स की गर्मी बढ़ती गई, हम दोनों को ही मज़ा आ रहा था। मैं सोच रही थी कि उस के लण्ड का पानी जब निकलेगा, तब कार में, उसके कपड़ों पर फ़ैल जाएगा।
मुझे पता है कि लण्ड, बहुत दूर तक, बहुत तेजी से और बहुत सारा पानी निकालता है। मैं उसके लण्ड की मुठ मारने का काम कर रही थी और उसने कार में पड़ा छोटा तौलिया अपने हाथ में ले लिया।
मैं समझ चुकी थी कि अब अरुण ज्यादा देर अपना स्खलन रोक नहीं पायेगा और यह तौलिया उसने लण्ड से निकलने वाले पानी को फैलने से रोकने के लिया है।
वो कार चला रहा था और मैं उस के लण्ड पर मुठ मार रही थी, मुठ मारते मारते मैंने उसके लण्ड में और ज्यादा सख्ती, उसके लण्ड की नसें बहुत ज्यादा उभर आई थी, अब तो मुझे पता चल गया कि उसका पानी निकलने वाला है।
एक हाथ से वो ड्राइव कर रहा था और एक हाथ में अपने लण्ड के पास तौलिया पकड़े हुए था।
अचनक उसके मुंह से निकला ‘ऊऊह शालिनीइइइइ’ और उसने तौलिया अपने लण्ड के मुंह पर रखा।
मैंने जल्दी से तौलिया पकड़ कर उसके लण्ड पर लपेट दिया और फिर से उसके लण्ड को तौलिये के ऊपर से पकड़ लिया। उसका लण्ड पानी छोड़ने लगा जो तौलिये में जमा होता जा रहा था।
पानी निकालते हुए उसका लण्ड मेरे हाथ में नाच रहा था। मैं उसके लण्ड को कस कर पकड़े रही। उसके चेहरे पर संतोष के भाव थे और मैं खुश थी कि मैंने अच्छी तरह से मुठ मार कर उसके लण्ड को शांत किया था।
मैंने तौलिये से उके लण्ड को साफ़ किया और फिर उसने अपने लण्ड के पानी से भीगा हुआ तौलिया चलती कार से बाहर गीली सड़क पर, थोड़ी सी खिड़की खोल कर फ़ेंक दिया।
जब उसने खिड़की खोली तो पानी की कुछ बूँदें अन्दर आई, हमें अच्छा लगा।
उसका लण्ड अभी भी आधा खड़ा, आधा बैठा था, न ज्यादा कड़क, न ज्यादा नर्म। आप जानते हैं कि हमेशा ही खड़े लण्ड को थोड़ी कोशिश के बाद चड्डी और पैंट से बाहर निकाला जा सकता है, पर खड़े लण्ड को वापस चड्डी और पैंट में डालना मुश्किल है।
नर्म लण्ड को आसानी से वापस कपड़ों के अन्दर डाला जा सकता है।
उसने वापस अपना नर्म लण्ड अपनी जिप के अन्दर, पैंट में, चड्डी में डाल लिया।
मेरी चूत भी पानी छोड़ चुकी थी और अंदर सब कुछ गीला गीला हो गया था, मेरी चूत के होंठ और जांघों का जोड़ उस चिकनाई की वजह से आपस में फिसलने लगे थे।
अरुण तो एक बार स्खलित होने से रिलेक्स हो गया था लेकिन मेरी चूत में आग लग गई थी और मुझे चुदवाने की जबरदस्त इच्छा होने लगी।
और अजमेर तो अभी काफी दूर था, मैंने अरुण से कहा- प्लीज़ यार, मुझे चुदाई चाहिए अभी, कैसे भी करो, कुछ भी करो।
मैंने उससे कहा- क्या हम हाइवे पर कार में चुदाई कर सकते हैं?
तो उसने मुस्करा कर जवाब दिया- अगर मैं तुमको हाइवे पर कार में चोदूंगा और इस मौसम और अँधेरे में कोई मेरी कार की पीछे से गाण्ड मार देगा तो?
मैं उसकी बात सुन कर हंस पड़ी लेकिन अपनी बात पर अड़ गई।
अरुण बोला- यार, अब ऐसे किस होटल में चलें, यहाँ कोई भी ऐसा सेफ होटल नहीं है और शालिनी तुम्हारी हालत ऐसी हो रही है कि सब देखते ही समझ जाएँगे कि हम चुदाई के लिए कमरा ले रहे हैं, और जानू तुम्हें तो मालूम है कि देश का आजकल क्या हाल हो रहा है, गड़बड़ लोग मिल गए न तो, वो मुझे बाँध के पीट के तुम्हारे साथ सामूहिक देह शोषण कर सकते हैं, प्लीज़ जानू, कंट्रोल करो अपनी चूत को।
मैं गुस्से में बोली- साली यह चूत मेरे कंट्रोल में होती तो क्या मैं चुदक्कड़ शालिनी होती, मुझे साली इस चूत ने ही तो बिगाड़ा है जो आज मैं तुम्हारे साथ इस कार में हूँ, प्लीज़ कुछ करो यार अरुण !
‘ओके !’ अरुण बोला- मौसम ऐसा है तो क्यों न कार में ही चुदाई की जाए।
मैं मान गई कार में चुदवाने को क्योंकि मैंने कभी कार में नहीं चुदवाया था, मैं भी कार में चुदवाने का अनुभव लेना चाहती थी।
मुझे हमेशा अलग अलग पोजीशन में, अलग अलग जगह में चुदवाने में बहुत मज़ा आता है।
अरुण को अजमेर के रास्ते का अच्छा खासा आईडिया था, वो यहाँ आता जाता रहता था, तो वो कोई सुरक्षित जगह देखने लगा और मुझे बोला- रानी, एक जगह है आगे बहुत मस्त, जहाँ हम दोस्तों ने एक बार पिकनिक की थी, बीयर वगैरा पी थी।
और फिर कोई 2-3 किमी आगे आने के बाद वो बोला- लो डार्लिंग, आ गई अपनी मंज़िल !
और उसने कार हाइवे से नीचे उतार कर पेड़ों के झुण्ड की तरफ बढ़ा दी। आखिर उसने कार वहाँ खड़ी की जहाँ चारों तरफ घने पेड़ थे। मैंने देखा कि हमारी कार दो बड़े पेड़ों के बीच खड़ी थी। हम हाइवे से ज्यादा दूर भी नहीं थे और वो रास्ता ऐसा था कि हाईवे से कोई और हमारी तरफ आता तो सबसे पहले वो हमें दिखाई दे जाता और हम कार स्टार्ट करके उससे पहले ही वहाँ से रवाना हो सकते थे। मुझे अरुण की सेक्स को लेकर यह सावधानी और समझदारी, बहुत पसंद आई क्यूंकि सेक्स करते समय मन में कोई डर या वहम नहीं होना चाहिए, तभी चुदाई का मज़ा आता है।
और यह जगह इस हिसाब से बहुत मस्त थी, क्यूंकि यहाँ आते ही मेरी चूत में खलबली सी मच गई जैसे कि वो और मैं किसी बैडरूम में चुदाई के लिए आ गये हों।
यहाँ पर चारों तरफ पानी भरा था, बड़े बड़े पेड़ों के बीच हमारी नीली कार को इस मौसम में और घने बादलों की वजह से दिन में ही अँधेरे का सा अहसास था तो ऐसे में हाइवे से देख पाना संभव नहीं था।
यह एक बहुत महफूज़ जगह थी, पहली बार कार में चुदाई करने के लिए।
भारी बरसात लगातार हो रही थी और हम बड़ी बड़ी पानी की बूंदों को हमारी कार की छत पर गिरते हुए सुन सकते थे।
वहाँ पहुँचते ही अरुण ने मुझे बाहों में भर लिया और कस के मेरे होठों पर एक लंबा सा चुम्बन करने लगा- शालिनी माय डार्लिंग, पूरे साल भर के प्रयास और मिन्नतों के बाद आज यह दिन आया है कि तुमने मुझ पर मेहरबानी की है।
मैंने भी उसके चुम्बन का जवाब कस के उस से लिपट के उसे अपने उन्नत उभारों में भींचते हुए दिया- अरुण यार, समझा करो, कोई लड़की कैसे किसी अनजान मर्द से चुदवाने का फैसला कर सकती है, अब मैंने तुम्हे जांच लिया परख लिया, तो मैं तुम्हारी बाहों में हूँ,
तुम सही में बहुत स्वीट हो, अरुण, तुम्हारी कहानियाँ पढ़ पढ़ के ही में समझ गई थी कि तुम असल में भी मस्त फॉर प्ले और गज़ब सेक्स करते होंगे।
‘अब जल्दी बताओ जानू चुदाई कैसे करनी है, क्यूंकि अजमेर भी समय से पहुँचना है।’
मैं बोली- कार में कैसे करेंगे? पिछली सीट पर?
अरुण- पिछली सीट पर कर सकते है पर इस छोटी कार में जगह बहुत कम है। मैं सोच रहा हूँ कि क्यों न आगे की सीट पर किया जाए जिस पर तुम बैठी हो। हम सीट को पीछे करके जगह बना सकते हैं।
मैं- इस सीट पर? कैसे होगा इतनी कम जगह में?
अरुण- ठीक है, हम यहाँ शुरू करते हैं। अगर जरूरत हुई तो पिछली सीट पर चले जायेंगे। मैं कुछ बता नहीं सकता क्योंकि मैंने कार में कभी नहीं किया है, आज पहली बार है।
मैं- मेरा भी तो पहली बार है, ठीक है, हम पहली बार ट्राई करते हैं साथ साथ।
एकांत और बाहर का बरसाती मौसम हमारे तन बदन में आग लगा रहा था। एक तो हम दोनों वैसे ही स्वभाव से सेक्सी है और ऊपर से यह मौसम। हम दोनों ही जानते है कि समय और जगह कैसे सही इस्तेमाल किया जाता है।
हम लोग सेक्सी बातें कर रहे थे और कार में, हाइवे के पास और बरसात के मौसम में एक मजेदार चुदाई के लिए तैयार हो रहे थे।
वहाँ पेड़ों के बीच कार में बैठे बैठे हमको हाइवे पर आती जाती गाड़ियों की रोशनी दिखाई दे रही थी पर हमें पता था कि कोई भी हम को देख नहीं पायेगा।
चुदाई के लिए जगह बनाने के लिए उसने मुझे मेरी सीट पीछे करने को कहा। मैंने सीट पीछे की तो वो करीब करीब पीछे की सीट को छू गई।
अब मेरी सीट के सामने काफी जगह हो गई थी। मैं अभी भी सोच रही थी कि इस सीट पर वो मुझे कैसे चोदेगा।
अब मैंने सीट की पीठ को पीछे धकेला तो मैं अधलेटी पोजीशन में हो गई।
वो बोला- डार्लिंग! हम केवल अपने नीचे के कपड़े ही उतारेंगे ताकि हम आराम से चुदाई कर सकें। अगर अचानक कोई आ गया तो ऊपर के कपड़े पहने होने की वजह से हम नंगे नहीं दिखेंगे।
मैं उसकी बात समझ कर मान गई, हालांकि चुदवाते समय मुझे शरीर पर कपड़े बिल्कुल भी पसंद नहीं हैं, मैं पूरी नंगी होकर ही चुदवाना पसंद करती हूँ पर मैं मौके की नजाकत को समझ रही थी इसलिए ऊपर के कपड़े बदन पर रख कर चुदवाने को राज़ी हो गई।
उसने अपनी पैंट और चड्डी उतार कर पिछली सीट पर फ़ेंक दी। अब केवल वो अपनी शर्ट पहने हुए था। मैंने देखा कि उसका लण्ड धीरे धीरे खड़ा हो रहा था जैसे उस में हवा भरी जा रही थी।
उसका लण्ड लम्बा होता जा रहा था, मोटा होता जा रहा था और ऊपर की ओर उठ रहा था।
मैंने भी अपनी लेगिंग और चड्डी उतार कर पिछली सीट पर उसके कपड़ों पर फ़ेंक दिए।
अब मैं भी ऊपर केवल अपना ढीला सा कुर्ता पहने हुए थी।
मेरी मांसल, एकदम दूध जैसी गोरी और मक्खन जैसी चिकनी जांघें और मदमस्त कूल्हे देख कर वो बावरा हो गया, मैंने कल ही अरुण को पूरे मज़े देने के लिए अपनी टांगों की फुल वैक्सिंग करवाई थी, झांटों के बाल छोड़ दिए थे क्यूंकि अरुण से फोन सेक्स से मुझे आईडिया था कि उसे चूत पे बाल पसंद हैं।
और उस बदमाश अरुण ने सही में सबसे पहले हाथ लगा कर मेरी चूत के बाल ही चेक किये, मैंने उसके हाथ पर थप्पड़ जमाया और कहा- सच में बहुत कमीने हो तुम, ऐसे किसी औरत की चूत पर डायरेक्ट हाथ नहीं लगाते हैं।
पर उसने हाथ नहीं हटाया बल्कि बालों को पकड़ कर उसकी लम्बाई का जायज़ा लेने लगा।
मैंने उसे बलपूर्वक पीछे धकेला और कहा- अरुण मेरे राजा, सिर्फ छूने से ही काम चलाओगे क्या? मैं तो तुम्हें न जाने क्या क्या देने वाली हूँ, थोड़ा सब्र से काम करो और चुदाई के लिए जगह बनाओ।
यह बात उसकी भी समझ में आ गई और इसके बाद उस जंगल में मंगल का जो खेल हुआ वो आप लोग इस किस्से के अगले भाग में जरूर पढ़ना, और अपनी इस सेक्सी चुदक्कड़ शालिनी राठौर भाभी और मेरे नये चोदू अरुण को मेल करते रहना।
अरुण
akm99502@ gmail.com
What did you think of this story??
Comments