चाची चार सौ बीस-1
(Chachi Char Sau Bees- Part 1)
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मैं उन दिनों अपनी चाची प्रियंका के यहाँ रतलाम में आई हुई थी। चाचा तो हमेशा की तरह अपनी यात्रा पर गये हुये थे। चाची मुझसे बहुत प्रेम रखती थी थी। घर में सबसे छोटी मैं ही थी। चाचा के यात्रा में जाने के बाद चाची अकेली रह जाती थी, वो कोई अपना साथी चाहती थी।
चाची कह रही थी कि कॉलेज की पढ़ाई यहीं रतलाम में रह कर ले। शायद इसका कारण था कि उनके अभी तक कोई बच्चा भी नहीं था।
मैं तो घर पर हमेशा एक छोटी सी फ़्रॉक पहना करती थी। इस उमर में भी मुझे चड्डी पहनने से बहुत खीज आती थी। माहवारी के दिनों में तो पहननी ही पड़ती थी पर आम दिनों में मुझे चड्डी पहनना अच्छा नहीं लगता था। हाँ, कभी कभी रात को सोते समय मेरी शमीज जरूर ऊपर उठ जाती थी पर लड़कियों का घर था सो कोई कुछ नहीं कहता था।
यहाँ पर भी चाची मुझे इस हालत में देख तो लेती थी पर कहती कुछ नहीं थी।
चाची प्रियंका के घर उनके पति के एक घनिष्ठ मित्र राजेश अक्सर आया जाया करते थे। वे चाची के लिये जरूर ही कुछ ना कुछ तोहफ़े लाया करते थे। एक बार तो मैंने भी उन्हें इठला कर कह दिया था कि राजेश अंकल मुझे तो आप कोई तोहफ़े देते ही नहीं हो। उसके बाद से वो मेरे लिये भी कुछ ना कुछ ले आते थे।
यूँ तो मैं भी जवान हो चली थी, मैं भी मन ही मन राजेश अंकल और चाची के चक्कर को समझने लगी थी, पर उससे मुझे क्या? यह उनका व्यक्तिगत मामला था। राजेश जी के आने पर मैं जानबूझ कर घर से बाहर चली जाया करती थी। उस दौरान वो दोनों क्या करते थे मुझे नहीं पता था। पर एक दिन तो मुझे पता चल ही गया। सो तो खैर पता चलना ही था।
चाचा शाम की ट्रेन से दिल्ली चले गये थे। रात को लगभग आठ-साढ़े आठ बजे राजेश अंकल आ गये थे। बहुत खुश थे वो … उनका आज नौकरी में प्रोमोशन जो हुआ था। चाची के लिये वो बहुत से तोहफ़े लाये थे।
मेरे लिये भी वो एक मोबाइल लाये थे। मेरे पास अभी तक कोई मोबाइल नहीं था सो मुझे बहुत अच्छा लगा।
बदले में उन्होंने मुझसे किस्सी भी ली थी और साथ में शरारत से मेरे चूतड़ भी दबा दिए थे। पर यह कोई नई बात नहीं थी। वो प्यार से मुझे कई बार चूतड़ पर चपत लगा देते थे, मुझे अपनी गोदी में भी खींच कर बैठा लेते थे, और तो और कई बार मुझे उनके लण्ड का उभार भी छू जाता था।
पर मैं सोचती थी कि अब लण्ड है तो वो नीचे चुभ गया होगा। चाची ये सब देख कर मुस्कराती रहती थी। वैसे उनकी ये सब हरकतें मेरे दिल को छू जाती थी। इसमें मुझे बहुत तरावट सी आ जाती थी।
चाची ने उनकी खुशी को दुगुनी करते हुये अलमारी से चाचा की व्हिस्की की बोतल निकाल दी। चाची ने जान करके तीन गिलास लगा दिये थे। तीनों में सोडा मिलाया और नमकीन के साथ परोस दिया।
राजेश अंकल ने मुझे अपने पास बुला लिया और अपनी गोदी में बैठाते हुये गिलासों को आपस में टकरा दिया और एक एक सिप ले लिया, फिर मुझे भी कहा- अपने अंकल के प्रोमोशन की खुशी में एक घूंट ले लो यशोदा।
मैंने भी उनकी गोदी में ठीक से सेट होते हुये एक घूंट ले लिया और कड़वाहट से अपना मुख बिगाड़ लिया। तभी मुझे आज तो उनके लण्ड का गाण्ड पर एक जोर का दबाव महसूस किया। मुझे बहुत गुदगुदी सी लगी। मैंने कुछ नहीं कहा अंकल से। मजा जो आ रहा था।
चाची छोटे छोटे घूंट ले रही थी और मुझे देख कर मुस्करा रही थी। एक जवान सी लड़की, किसी मर्द की गोदी में अमूमन तो यूँ बैठती नहीं है, पर यहाँ तो वो मुझे बैठा भी लेते थे और मस्ती भी करते थे। फिर मुझे भी तो ऐसे काम में बहुत मजा आता था।
… जहाँ तक चाची का सवाल था उन्होंने तो मुझे पूरी छूट दे रखी थी। कुछ ही देर बाद राजेश अंकल का लण्ड मेरी चूतड़ों के दोनों पटों में बीच मौजूदगी का अहसास दिलाने लगा था। मेरा मन विचलित होता जा रहा था।
तभी चुपके से चाची की आँख बचा कर अंकल ने मेरे छोटे से मम्मे पर जल्दी से हाथ फ़ेर कर दबा सा दिया। मेरे शरीर में बिजली सी कौंध गई।
मैंने अंकल की तरफ़ देखा, वो झेंप से गये। नतीजा यह हुआ कि उन्होंने मेरी गाण्ड से लण्ड को धीरे से निकाल दिया। मुझे बहुत बुरा लगा कि इतना मजा आ रहा था … मेरे देखने भर से वो घबरा से गये थे।
‘यशोदा, जरा काजू और निकाल दे पैकेट में से !’
यह कह कर उन्होंने मुझे अपनी गोदी से उतार दिया। पर वो भूल गये थे कि उनके लण्ड का उभार सभी को नजारा दिखा रहा है। मैंने देख लिया था चाची बार बार अपनी आँखों का इशारा उन्हें कर रही थी। फिर अंकल ने धीरे से अपना हाथ अपने लण्ड पर रख लिया था।
मुझे लगा कि चाची और अंकल को कुछ समय अकेले बिताने के लिये चाहिये था, सो मैंने बहाना किया- चाची मुझे नींद आ रही है … भोजन के समय मुझे जगा देना।
यह कह कर मैं तो अपने कमरे की तरफ़ बढ़ गई। फिर लाईट बन्द करके मैं लेट गई और अंकल के बारे में सोचने लगी। अचानक मुझे सब कुछ साफ़ होने लगा। अंकल मुझे चोदना चाहते हैं … तभी तो लण्ड को वो मेरी गाण्ड में चुभा रहे थे। … फिर मेरे मम्मे भी तो दबा दिये थे। मेरी तो चूत में अब खलबली सी मचने लगी।
उफ़्फ़्फ़ … ये तो सही बात लग रही है … वर्ना इतनी हिम्मत कौन करता है?
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मेरा दिल पिघलने लगा … तन में झनझनाहट सी होने लगी। ओ मेरे राम … तो चाची भी तो कहीं अंकल से … मैं एकदम से बिस्तर पर बैठ गई। तो क्या वो इसीलिये मुस्करा रही थी और इशारा कर कर रही थी।
मैं फ़ुर्ती से उठी और दरवाजे के पास परदे में चली आई।
मेरा दिल धक से रह गया … अंकल चाची की बगल में बैठे थे और चाची की चूचियाँ दबा रहे थे, साथ में चुम्मा चाटी में भी व्यस्त थे।
मेरी सांसें तेज होने लगी … यह क्या … चाची और अंकल … उफ़्फ़ … तो यह बात है।
मेरे तो तन बदन में जैसे आग लग गई। चढ़ती जवानी … फिर यह नजारा … मेरी चूत भी फ़ड़फ़ड़ा उठी। चूत में से पानी रिसने लगा।
तभी अंकल ने चाची का ब्लाऊज खोल कर उसकी एक चूची अपने हाथ में ले ली … हाय राम इतनी भारी और बड़ी चूची … चाची के मुख से सीत्कारें निकल रही थी। दोनों शायद नशे में यह भूल गये थे कि घर में कोई तीसरा भी है और उस पर भी जवानी का मौसम है।
मैंने निराशा से अपनी चूची देखी … छोटी सी … निप्पल गुलाबी-भूरा सा, फ़िलहाल तना हुआ कड़क सा।मैं धीरे से उनके सोफ़े के पीछे जाकर खड़ी हो गई। पर वे दोनों अन्जान अपने में खोये हुये। अंकल का तगड़ा लण्ड चाची के कोमल हाथों में दबा हुआ, ऊपर-नीचे चलता हुआ। मेरे दिल को घायल कर दिया …
फिर मैंने सोचा कि अभी तक दोनों का ध्यान भंग नहीं हुआ है … उनके जो मन में आये करने दो … वर्ना मन में इच्छा अधूरी रह जायेगी। मैंने धीरे से अपने कदम वापस पीछे खींच लिये और दरवाजे की आड़ में हो गई।
तभी दोनों नीचे कालीक पर आ गये। चाची ने अपना पेटीकोट व साड़ी ऊपर खींच ली … अपनी चूत को सामने से खोल दी। राजेश अंकल चाची की टांगों के मध्य आ गये और उनकी फ़ूली हुई चूत में धीरे से अपना लण्ड घुसा दिया।
मुझे लगा कि जैसे मेरी छाती पर किसी ने छुरा घोंप दिया हो। एक धीमी सी आह मेरे मुख से निकल पड़ी। फिर तो जैसे मुझ पर कयामत सी आ गई। अंकल जोश में आ कर चाची को भचाभच चोदने लगे थे।
मेरा तो अंग अंग जैसे पिघलने लगा। मैं बराबर चाची की चुदाई देखती रही … मेरी चूत में मीठी मीठी सी खुजली जाग उठी। चूत में से पानी चूने लगा। मुझे लगा कि कोई आ कर मेरी चूत में भी अपना मोटा सा लण्ड ठूंस दे, मुझे पेल दे … चोद चोद कर बेहाल कर दे।
तभी चाचा के लण्ड से मैंने फ़ुहार सी निकलती देखी। चाची बेहाल सी दोनों टांगे नीचे कालीन पर फ़ैलाये हुये निश्चल सी पड़ी थी, अंकल कह रहे थे- प्रियंका … यार एक बार यशोदा का भी मजा ले लूँ तो मन ठण्डा हो जाये।
‘तो ले लो ना … देखा नहीं … तुम्हारी हरकत का वो कितना मजा ले रही थी।’
‘अरे पर बच्ची है, छोटी है … बेचारी को कहीं चोट वोट लग जायेगी।’
हुंह ! कहाँ से बच्ची है … जरा टांग उठा कर देख लेना … मस्त तैयार फ़ुद्दी है।’
‘सच …? तो मेरी मदद कर देना जरा उसे चोदने में !’
‘बोलो, क्या मदद चाहिये?’
‘बस तुम साथ रहना, ताकि वो ठीक से चुदवा ले।’
‘अरे ! ये तो मुझे चोदने की बात कर रहे हैं। मजा आ गया … अरे जल्दी से आकर मुझे चोद डालो ना। मेरा दिल तो खुशी के मारे नाच उठा। देखे तो कैसे करते है ये सब ? अगर उनसे नहीं बना तो खुद ही नंगी हो कर अपनी चूत उन्हे सौंप दूंगी ! भई ! जल्दी करो ना …
चाची ने अपने कपड़े ठीक किये और बोली- चलो, पर देखना … जबरदस्ती नहीं करना…
वो कुछ कहे उसके पहले मैं अपने बिस्तर पर जल्दी से जाकर लेट गई, अपनी शमीज कमर से ऊपर उठा ली, अपने सुन्दर और गोल सी गाण्ड पूरी ही उघाड़ दी।
कमरे में आकर चाची ने लाईट जला दी। ट्यूब लाईट की रोशनी में कमरा जगमगा उठा। मेरी गोरी गाण्ड भी उस रोशनी में चमक उठी। अंकल की आँखें चमक उठी। मैंने जल्दी से अपनी थोड़ी सी खुली आँखें बन्द कर ली और उस मोहक पल का इन्तज़ार करने लगी।
‘यशोदा … सो गई क्या?’
‘उंह्ह … चाची, क्या है? ओह, खाना लग गया क्या?’
‘देख अंकल तुझे कुछ कहना चाह रहे हैं।’ फिर चाची पीछे मुड़ी और जाने लगी।
अंकल ने तुरन्त चाची का हाथ पकड़ लिया, चाची रुक गई।
‘अंकल आप तो नंगे हैं !’ मैं जान करके हंस पड़ी। उनका लण्ड सख्त था। सीधा खड़ा था। अंकल तो पूरी तैयारी के साथ थे शायद !
प्रियंका, जरा इसके हाथ थामना तो !’
चाची ने मेरे दोनों हाथ ऊपर खींच कर दबा दिये। अंकल मेरी टांगों की तरफ़ आ गये और उन्हें पकड़ कर दोनों और चौड़ा दिये। मेरी चूत खुल गई। अंकल का लण्ड हाय राम … कैसा कड़क और तन्नाया हुआ था। दिल में तेज खलबली मची हुई थी। मैं अपनी धड़कनों को कंट्रोल करने की भरपूर कोशिश कर रही थी।
कहानी जारी रहेगी।
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