सीधी सादी लड़की ने भरे जिन्दगी में नए रंग- 1
(Desi Girl Hindi Kahani)
देसी गर्ल हिन्दी कहानी में एक इंजिनीयर लड़का पोस्टिंग पर आसाम गया तो कम्पनी से मिले घर की देखभाल एक आदमी और एक लड़की करती थी. यह कहानी इसी लड़की की है.
दोस्तो, आपको मेरी कहानियां पसंद आती हैं, ये आपसे मिलती मेल से पता लगता है.
बहुत लोग मुझसे या कहानियों के किरदारों से मित्रता करना चाहते हैं, ये व्यावहारिक नहीं है.
पर यह भी सही है कि जो पाठक इन कहानियों के नायक नायिकाओं में स्वयं को पाते हैं, वे ही कहानी का असली आनन्द उठा पाते हैं.
असल में मेरी कहानियां निरी काल्पनिक नहीं होतीं; कहीं न कहीं हम सभी की जिंदगी से जुड़ी किसी घटना पर आधारित होती हैं इसीलिए आपके दिल को छू जाती हैं.
खैर जुड़े रहिये अन्तर्वासना से और लुत्फ़ उठाते रहिये अपने अंदर उठ रही कामवासना का.
मेरी पिछली कहानी थी: तू भी बेवफा मैं भी बेवफा
आज की देसी गर्ल हिन्दी कहानी हर्ष की है.
हर्ष मजबूत कद-काठी का एक सामान्य परिवार से उठा इंजीनियर बना नवयुवक है.
उसके माता-पिता बचपन में ही गुजर गए, रिश्तेदारों ने पल्ला झाड़ लिया था, दूर के रिश्ते के ताऊज़ी ने उसे पाला, इंजीनियर बना दिया.
पर अब वे भी नहीं रहे.
हर्ष की अभी शादी नहीं हुई.
पहली पोस्टिंग आसाम में मिली.
सुदूर उसकी कंपनी को यहाँ वेयरहाउस बनाना है.
बस उसकी कार्य को शुरू करने के लिए कम्पनी ने उसकी पोस्टिंग यहाँ की है.
हर्ष गुवाहाटी एअरपोर्ट से टैक्सी लेकर शहर से बाहर बने कम्पनी के गेस्ट हाउस में पहुंचा.
गेस्ट हाउस क्या था, एक फार्म हाउस के अंदर बनी एक खासी बड़ी कोठी थी.
चूँकि वहां केवल एक चौकीदार बाहर बने सर्वेंट क्वार्टर में रहता था तो वहां सन्नाटा था.
रामू चौकीदार गाड़ी की आवाज सुनकर बाहर आया और हर्ष को नमस्ते करके उसका सामान लेकर कोठी में ले चला.
चौकीदार रामू एक अधेड़ उम्र का लुटा पुटा सा आदमी था.
चूँकि उसे हर्ष के आने की खबर पहले से थी तो उसने साफ़ सफाई बढ़िया कर रखी थी.
कम्पनी की साईट पास में ही थी तो हर्ष बिना रुके रामू को साथ लेकर उसी टैक्सी से साईट पर चला गया.
रामू ने चलते समय अपनी घर वाली को आवाज देकर कहा कि वह गेट अच्छे से बंद कर ले.
रामू अपनी साइकिल से गाड़ी से आगे आगे चला.
थोड़ी दूर ही साईट थी.
साईट पर काम तो बंद था पर कम्पनी का एक स्टाफ मुकेश और ठेकेदार मौजूद था.
रामू ने ऑफिस खोला.
आज तो हर जगह सफाई थी.
हर्ष से पहले जो इंजीनियर यहाँ ड्यूटी पर था, वह तो अक्सर ऑफिस में ही रात को रुक जाता था तो यहाँ रसोई और कमरे की पूरी व्यवस्था थी.
रामू ने हर्ष से पूछ कर चाय बनाने की तैयारी शुरू की और हर्ष उस ठेकेदार के साथ बन रही साईट पर घूमने चला गया.
चूंकि कम्पनी का दबाव था कि काम तेजी से शुरू किया जाए तो उसी के मद्देनजर हर्ष ने सारी प्लानिंग ठेकेदार से करी.
कम्पनी की एक बुलेट मोटरसाइकिल वहां थी जिसकी चाभी रामू ने हर्ष को दे दी.
चाय पीकर हर्ष ने जब सारी जानकारी मुकेश से ली तो उसे अहसास हुआ कि मुकेश को कुछ आता जाता नहीं है और पिछले इंजीनियर ने काफी गड़बड़ की थी.
इसीलिए कम्पनी ने उसे हटा दिया.
खाने पीने की व्यवस्था में शहर से किसी होटल से ही दो वक्त का खाना आता था, नाश्ता खुद ही बनाना होता था.
हालाँकि रामू ने कहा- साहब, खाना मेरी घर वाली दीपा भी अच्छा बना सकती है क्योंकि शादी से पहले वह किसी रईस दंपत्ति की देखभाल में थी जो काफी भले थे. तो उन्होंने ही उसे पढ़ाया लिखाया और अच्छा रहन सहन सिखाया.
बाद में वह दंपत्ति अपने लड़के के पास अमेरिका चले गए तो बिन माँ बाप की दीपा को उसके मामा ने रामू के साथ कर दिया.
गाँवों में एसी स्थिति में कोई शादी वगैरा नहीं होती थी, बस लड़की उसके साथ भेज दी जाती थी.
उम्र का बहुत बड़ा फर्क था पर रामू की नौकरी अच्छी थी और गाँव में जमीन और मकान थे तो उसी लालच में दीपा के मामा ने दीपा को कुछ रूपये लेकर रामू के साथ कर दिया.
हर्ष को बड़ी बोरियत सी हो रही थी.
काम कुछ विशेष था नहीं करने को.
उसने रामू को कुछ रूपये दिए कि वह घरवाली से पूछकर चाय नाश्ते का और कुछ रसोई का सामान कोठी पर लाकर रख दे.
उसे बाहर का खाना पसंद नहीं तो केवल दिन का खाना होटल से आयेगा और रात को वह कोठी पर ही खायेगा.
हर्ष को कसरत का शौक था और फल फ्रूट पसंद थे तो उसने रामू को बता दिया कि कुछ फल लाकर रख दे.
रामू साइकिल से बाज़ार चला गया.
हर्ष ने मुकेश से पूरा ऑफिस व्यवस्थित करवाया और सारे कागजात चेक किये.
उसने मुकेश से पूछा कि साईट पर रात को कौन रहता है.
तो मुकेश बोला- कोई नहीं. और इसीलिए पिछले साहब रात को अक्सर यहीं रुकते थे. पर वे शराब के शौक़ीन थे और गंदा बोलते थे तो रामू और मैं उनसे दूर ही रहते थे.
मुकेश बताया गया- इसीलिए वे अक्सर पूरा समय यहीं ऑफिस में ही रहते, यहीं खाते पीते. लेबर की औरतों पर भी उनकी नजर अच्छी नहीं थी. पर फिर भी उन्हीं में से कोई उनकी मुंह लगी थी. वो ही यहाँ साफ़ सफाई और उनका खाना बनाती थी. साहब के जाने पर सब लेबर भी यहाँ से चले गए. अब ठेकेदार एक दो दिन में काम शुरू करने को कह रहा है तो लेबर भी आ जायेगी. पर हाँ रात को कम्पनी के किसी चौकीदार का रहना जरूरी है. आदमी भी लोकल ही चाहिए.
हर्ष दोपहर बाद वापिस कोठी पर आ गया.
उसका लंच आया रखा था.
रामू भी सामान लेकर आ गया था और उसकी घर वाली दीपा ने सारा सामान रसोई में व्यवस्थित भी कर दिया था.
तभी रामू ने सामान से बचे थोड़े रूपये हर्ष को लौटने चाहे तो हर्ष ने ये उसे ही दे दिए- तुम इनाम समझ कर रख लो.
रामू की बांछें खिल गयीं.
उसने अपनी घरवाली को आवाज देकर कहा- साहब का खाना गर्म कर दो.
दीपा आई.
हर्ष उसे देखकर चौंक गया.
कहाँ रामू … कहाँ दीपा.
दीपा बहुत साफ़ सुथरी, सभ्य, मध्यम कदकाठी की पर खूबसूरत असामी लड़की थी.
हर्ष यह सोचता रह गया कि रामू दीपा से कम से कम दोगुणी उम्र का होगा.
दीपा ने हर्ष के पाँव छूने चाहे तो हर्ष ने मना कर दिया कि वह इतना बड़ा नहीं है.
तब दीपा ने बहुत सलीके से खाना लगाया और हर्ष से पूछा- साहब आप बता दें क्या पसंद है, मैं सब कुछ बना लेती हूँ.
हर्ष ने उसे परखने के लिए पूछा- कॉफ़ी बना सकती हो?
दीपा ने मुस्कुरा कर कहा- बहुत बढ़िया बना सकती हूँ.
हर्ष ने कहा- बनाओ.
रामू दूर नीचे बैठा बस गंदे दांत निकालकर मुस्कुरा रहा था.
उसके मन ही मन लड्डू फूट रहे थे कि आज रात पीने का जुगाड़ साहब ने कर दिया, अब आज उसे दीपा से भीख नहीं मांगनी पड़ेगी.
दीपा ने हर्ष को कॉफ़ी देते हुए पूछा कि रात को क्या खायेंगे, बता दें ताकि वह बाज़ार से सामान ले आये.
हर्ष ने उसे बताया कि वह सब कुछ खा लेता है, बस मसाले हल्के हों.
दीपा ने फिर रामू से कहा- मैं बाज़ार जाकर सामान ले आती हूँ.
तो रामू ने उससे कहा- तुम यहीं रुको, हमें बता दो हम लाकर दे देते हैं.
हर्ष ने दीपा को रूपये दे दिए कि रसोई का सामान तुम अपनी मर्जी से मंगाती रहना और जब रूपये ख़त्म हो जाएँ तब और ले लेना.
दीपा खुश हो गयी.
इतना विश्वास उसे दो साल बाद किसी से मिला.
उसने रामू को लिस्ट बनाकर दे दी और उसे सख्ती से कहा- इन पैसों का मुझे हिसाब देना, अपनी दारू मत ले आना इन से!
रामू हँसते हुए बोला- उसका इंतजाम तो साहब ने पहले ही कर दिया है.
तभी रामू चला गया.
दीपा गेट बंद कर आई तो हर्ष ने उससे कहा- तुम भी अपने लिए चाय बना सकती हो.
पर दीपा ने मना कर दिया.
वह उसके कमरे को ठीक करने लगी.
दीपा ने उससे कहा- आप अटेची का सामान निकाल दें तो मैं अलमारी में लगा दूंगी.
हर्ष ने दीपा से पूछा- क्या रामू रोज पीता है? और तुम इतनी सभ्य और साफ़ सुथरी, रामू के घर कैसे आ गयी.
पहले तो दीपा चुप रही, फिर धीरे से बोली- साहब, नसीब में जो लिखा होता है, वही मिलता है.
उसकी आवाज़ भर आई थी.
हर्ष ने उसे प्यार से कहा- मेरा मकसद तुम्हारा दिल दुखाने का नहीं था, बस एसे ही पूछ लिया.
दीपा वहीँ नीचे बैठ गयी.
हर्ष ने उससे बहुत कहा कि कुर्सी पर बैठ जाओ पर वह नहीं बैठी, कहने लगी- साहब अब आदत छूट गयी.
तब हर्ष से हमदर्दी पाकर दीपा ने अपनी कहानी बतानी शुरू की.
वह बचपन में बहुत अच्छे इंग्लिश स्कूल से पढ़ी थी.
पर आठवीं क्लास में उसके माता पिता दोनों एक एक्सीडेंट में खत्म हो गए.
पिता कोई प्राइवेट नौकरी में थे.
चूंकि उसके माता पिता की लव मैरिज थी तो किसी रिश्तेदारी में कोई सम्बन्ध नहीं थे.
अब वह पूरी दुनिया में अकेली थी.
उसे उसके मामा अपने साथ ले गए पर मामी का व्यवहार बहुत ख़राब था.
वह उससे पूरे घर का काम करवाती और गंदा बोलती थी.
उसके मामा जिस फैक्ट्री में चौकीदार थे, उसके मालिक बहुत अच्छे लोग थे; अकेले पति पत्नी रहते थे.
एक लड़का था, वो विदेश में था.
अचानक उनकी निगाह मुझ पर पड़ी और बस मैं उनके घर काम पर जाने लगी.
उन्होंने मेरी कहानी सुनकर मुझे अपने घर पर ही रख लिया.
पूरा घर मैं ही संभालती थी और वे दोनों मुझे बेटी की तरह बोलते और प्यार देते थे.
उन्होंने मुझे पढ़ने के लिए कहा तो मैं प्राइवेट एक्ज़ाम देती हुई 12वीं तक पढ़ ली.
बी ए में एडमिशन भी ले लिया था.
मुझ पर उस घर में कोई रोकटोक नहीं थी.
वे मुझे अपने साथ ही बिठाकर खाना भी खिलाते.
अचानक सब कुछ बदल गया.
उनके बेटे की अमेरिका में तबियत खराब हो गयी.
वह शराब बहुत पीता था.
तो वे अंकल आंटी सब कुछ बेच बाच कर अमेरिका ही चले गए.
वे मेरे नाम पांच लाख की एफडी भी बना गए.
मेरा मामा समझदार था.
उसने एफडी वाली बात किसी को नहीं बतायी और मामी के प्रकोप से बचने के लिए और कुछ पैसों के लालच में उसे रामू के साथ कर दिया.
एफ डी आज भी मेरे पास चल रही है.
बैंक में मेरा खाता है. अंकल उसमें पैसे भेजते रहते हैं तो पैसे की कोई दिक्कत नहीं है.
बस आदमी किसी मतलब का नहीं.
प्यार तो बहुत करता है मुझे … बस गंदा रहता है और पीता है.
वैसे आज तक कभी ऊंची आवाज में भी नहीं बोला मुझसे!
बल्कि मैं ही उसे डांटती रहती हूँ.
हर्ष ने उससे पूछ ही लिया- तुम लोगों के कोई बच्चा नहीं है.
दीपा चुप रही. हाथ मसलती रही.
और कुछ पल बाद पैर के अंगूठे से जमीं कुरेदती हुई धीमे से बोली- साहब, बच्चा तो तभी होगा जब मेरा आदमी कुछ करेगा. उसके बस का कुछ नहीं है. उसने आज तक मुझे उस तरह कभी छुआ भी नहीं है, नशे में उससे कुछ होता नहीं … पर मुझे अपनी सुरक्षा के लिए किसी खूंटे से तो बंधा होना जरूरी था. मैं अकेली जान कहाँ जाती.
अब दोनों चुप थे. हर्ष ने अटेची खोल दी.
ज्यादा सामान नहीं था.
दीपा ने सब व्यवस्थित कर दिया.
रामू भी आ गया था.
वह अपनी आदतानुसार बाहर बैठा हाथ जोड़े बस मुस्कुरा रहा था.
हर्ष ने दीपा और रामू से कहा- तुम अब अपने क्वार्टर में जा सकते हो. अपना खाना बना लो. मैं खाना 8 बजे करीब खाता हूँ. तो सुबह जो खाना होटल से आया था, वो बचा था. ये बचा खाना बेकार जाएगा तो आज रात को तो मैं इसी से अपना काम चला लूँगा.
इस पर दीपा ने बड़े अधिकार से कहा- क्यों खायेंगे बासी खाना. मैं ताज़ा अच्छा बना कर खिलाऊंगी. आप होटल का खाना भूल जायंगे.
वह बचा हुआ खाना अपने साथ ले जाने लगी यह बोल कर- इसे मैं खा लूंगी.
हर्ष को उसकी बातों में बड़ा अपनापन लगा.
तब हर्ष बाथरूम गया.
तो वहां एक टॉवेल टंगा था पुराना.
दीपा ने उसे बताया कि चूँकि सर्वेंट क्वार्टर में नहाने का कमरा नहीं है तो वह नहाने के लिए यही बाथरूम इस्तेमाल कर लेती थी. पर अब नहीं करेगी. अब वह क्वार्टर में ही बाल्टी भर कर नहा लेगी.
हर्ष ने कहा- नहीं, तुम इसे इस्तेमाल जैसे करती आई थीं, करती रहना. मुझे कोई आपत्ति नहीं है.
दीपा सात बजे करीब पुनः आकर खाना बना गयी थी.
खाना वाकयी बहुत स्वादिष्ट था. खाना खाकर हर्ष मोबाइल से इधर उधर बात करने लगा.
दीपा ने किचन सब साफ़ कर दिया और जाते समय हर्ष से बोली- साहब कोई भी काम हो, रात को कॉफ़ी पीनी हो तो मुझे आवाज दे दीजिएगा या रामू के मोबाइल पर घंटी कर दीजियेगा.
देसी गर्ल हिन्दी कहानी 4 भागों में आयेगी.
पढ़ते रहें और अपनी राय मुझे भेजते रहें.
[email protected]
देसी गर्ल हिन्दी कहानी का अगला भाग: सीधी सादी लड़की ने भरे जिन्दगी में नए रंग- 2
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