आज दिल खोल कर चुदूँगी -7
(Aaj Dil Khol Kar Chudungi-7)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_left आज दिल खोल कर चुदूँगी -6
-
keyboard_arrow_right आज दिल खोल कर चुदूँगी -8
-
View all stories in series
तभी सुनील बोले- चलो स्टॉप आ गया..
बस रुकी, मैं और सुनील बस से उतर कर चल दिए।
सुनील बोले- यहाँ से कुछ दूर जाना है एक रिक्शा कर लेते हैं।
तभी सुनील की निगाह मेरे पिछवाड़े पर गई।
सुनील बोले- नेहा जान ये भीग कैसे गई?
मैंने नाटक करते हुए चौंकी- अरे…ये कैसे हुआ… मुझे पता ही नहीं चला?
तभी एक रिक्शा मिला सुनील और मैं उस पर बैठ गए। सुनील रिक्शे वाले को जहाँ जाना था वहाँ की बोले, फिर बगल से मेरी चूत पर हाथ रख कर गीलेपन को छू कर नाक से सूँघ कर बोले- वाह रानी.. काम निपटा लिया.. लग रहा है कि बस में तुम्हारे पीछे वाले ने चोद कर माल छोड़ा है?
मैं क्या कहती, पर सुनील से बोली- साले ने अपना रस तो निकाल लिया और मेरी चूत को प्यासी छोड़ दिया।
सुनील ने मेरी तरफ प्यार से देखा, फिर सुनील बोले- रानी, तुम बिल्कुल गर्म हो गई हो, तुम्हारी चूत की सुगंध बता रही है कि साले ने तुम्हारे साथ गलत किया, चोदना नहीं था तो गर्म करके अपना माल क्यों छोड़ दिया।
मैं भी तपाक से बोली- अभी कौन सी देर हुई है, अभी तो दिन की शुरूआत है और आप भी तो हैं। मेरी चूत की गर्मी शान्त ना हो, यह तो हो ही नहीं सकता।
तभी हम लोग एक ऑफिस के सामने रुके, वह एक रियल स्टेट कम्पनी का ऑफिस था, मैं सुनील के पीछे ऑफिस में दाखिल हुई।
अन्दर पहुँच कर सुनील मुझसे बोले- नेहा तुम यहीं सोफे पर बैठो, मैं अन्दर सर जी से मिल कर आता हूँ।
मैं बोली- ओके सुनील..
वो वहीं बगल के एक केबिन में चले गए, मैं वहीं बैठी रही।
कुछ देर बाद एक लड़का आया और मुझसे बोला- मेम.. आप को सर जी ने अन्दर बुलाया है।
मैं उठी और उसी केबिन की तरफ चल दी और केबिन के दरवाजे पर दस्तक दी, अन्दर से ‘कम इन’ की आवाज आई और मैंने दरवाजे खोला।
मैं देखती रह गई, सामने एक बहुत ही जवान और आकर्षक युवक बैठा था।
वो एकदम गोरा स्मार्ट था, उसे देख मेरी गरम चूत में पानी आ गया और मैं भूल गई कि वो भी मुझे देख रहा है।
तभी वो आदमी बोला- आइए नेहा जी.. बैठिए।
तब मुझे आभास हआ और शर्मिन्दा हो गई।
सुनील बोले- नेहा जी, ये मिस्टर सुरेश सिंह हैं। यह रियल स्टेट कम्पनी का ऑफिस इन्हीं का है।
मैंने नमस्ते की, पर सुरेश जी ने हाथ आगे बढ़ा दिया।
मैंने भी हाथ मिलाया पर मेरी नियत तो खराब थी और चूत गर्म थी, इसलिए हाथ मिलाते ही मेरी चूत में गुदगुदी होने लगी, मुझे लगा कि मुझे बाँहों में लेकर, मेरी बस की छेड़-छाड़ की गर्मी को उतार दे।
यह सोचते हुए मैं सुनील के बगल के सोफे पर जा बैठी, सामने सुरेश जी थे और बीच में एक ऑफिस टेबल थी।
तभी कॉफ़ी आ गई, कॉफ़ी पीते हुए सुनील अपनी जमीन वगैरह के विषय में बात कर रहे थे और मैं उन दोनों की बात सुन रही थी, पर मेरा ध्यान सुरेश पर ज्यादा था, फिर कुछ नोटरी कागज पर सुनील और सुरेश ने दस्तखत किए और एक फाइल में रख दिए।
फिर सुरेश ने सुनील से कहा- नेहा जी बोर हो रही होगीं, क्यों ना आप नेहा जी को लेकर अपनी साइट भी देख आओ, क्यों नेहा जी..!
सुरेश जी ऐसा बोल कर बाथरूम चले गए।
तभी मैं सुनील से बोली- क्या आप को बाहर जाना है?
सुनील ने कहा- जा कर देख लूँ, प्लाट कैसा है। तुम यहीं ऑफिस में रहो, मैं सुरेश से तुम्हारे विषय में बोला है कि आप वाराणसी से आई हो, यहाँ मेरे पास कुछ काम से आई हो, बाकी और कुछ नहीं कहा है, पर सुरेश सुन्दरता का दीवाना है, तुम यहाँ रह कर सुन्दरता का दीदार करा दोगी तो बाकी काम सुरेश पूरा कर देगा। तुम्हारी चूत की आग और पैसे की चाहत दोनों पूरी हो जाएगी और हाँ.. चूत चुदवा ही लेना.. सुबह की तरह अधूरी न रह जाना।
मैं बोली- देखती हूँ.. मैं कितना सुरेश जी के लौड़े को गर्म कर पाती हूँ।
तभी बाथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज आई तो हम चुप हो गए।
सुरेश बोले- क्यों भाई.. आप लोग जा रहे हो?
सुनील बोले- बॉस.. नेहा तो नहीं जा रही है, बोल रही है कि अगर कोई दिक्कत ना हो तो आपे ऑफिस में रह जाऊँ?
सुरेश जी बोले- नेहा आप कहीं भी रह सकती हो.. कोई दिक्कत नहीं है..
मैं मुस्कुरा दी।
फिर सुनील चले गए और सुरेश से बात करने लगी।
बात करते-करते सुरेश जी मेज के नीचे से अपने पैर से मेरे पैरों को हल्का-हल्का रह-रह कर सहला देते और मैं गुदगुदा उठती।
फिर मैं भी मेज पर झुक कर बैठ गई, ताकि मेरे रस भरे आम दिख सकें, मैं सुरेश को थोड़ा और आकर्षित और उत्तेजित कर सकूँ।
बातों के दौरान सुरेश मेरी सुन्दरता की तारीफ करते हुए कुर्सी से उठ कर मेरे पीछे आ गए, मेरे कन्धों पर हाथ रख सहलाने लगे और मैं सिसियाते हुए बोली- सर जी.. यह क्या कर रहे हो.. प्लीज ऐसा मत करो प्लीज..
सुरेश बोले- नहीं.. नेहा जी, मना मत करो.. एक बार तुम्हारे सुन्दरता का रस पीना चाहता हूँ.. एक बार पिला दो..
ऐसा कहते हुए उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर अपने पास खींच लिया और मैं भी मस्ती में झूमती हुई उनके सीने से जा लगी।
फिर वहीं पास पड़े सोफे पर मुझे लेकर बैठ गए और कुर्ती के ऊपर से मेरी चूचियाँ दबाने लगे।
आज सुबह से ही मेरी बुर चुदना चाह रही थी, मैंने भी एक हाथ से उनका लण्ड पकड़ कर दबा दिया।
मेरे इतना करते ही उन्होंने एक झटके में ही मेरी कुर्ती उतार दी और अगले ही पल मेरी ब्रा भी उतार दी।
अब वो मेरी चूची पीने लगे, मैं भी अपने आमों को चुसाते हुए सिसकारने लगी।
वो चूमते हुए नीचे की ओर आते हुए मेरे मम्मों को दबाए जा रहे थे।
मेरी चूत पानी-पानी हो गई।
फिर सुरेश उठ अपने सारे कपड़े उतार फेंके और मेरी लैगीज भी सरका दी और मेरी चूत पर मुँह रख कर बुर चाटने लगे।
मेरी चूत ने पहले से ही पानी छोड़ा हुआ था क्योंकि मैं स्वयं भी तो चुदना चाह रही थी, वो भी पूरी नंगी हो कर, मस्ती से शरीर को उसके हवाले करके जी भर कर अपनी प्यास बुझाना चाहती थी।
अब हम दोनों कुछ ही पलों में पूरे नंगे हो चुके थे।
मेरा दिल फिर से लण्ड के चूत में घुसने के अहसास से धड़क उठा।
उसने मुझे अपनी बाँहों में कस कर ऊपर उठा लिया और अब मैंने भी शरम छोड़ दी, अपनी दोनों टाँगें उसकी कमर से लपेट लीं।
उसका लण्ड मेरी गाण्ड पर फिर से छूने लगा।
उसने मुझे सोफे पर पटक दिया। मैंने भी उसे झटके से पलट कर नीचे कर दिया और उस चढ़ बैठी और अपनी चूचियाँ उसके मुँह में ठूंस दीं।
‘मेरे सुरेश.. मेरा दूध पी ले जरा… जोर से चूस कर पीना।’
मैंने उसके बालों को जोर से पकड़ लिया और चूचियाँ उसके मुँह में दबाने लगी।
उसका मुँह खुल गया और मेरे कठोर चूचुकों को वो चूसने लगा।
मेरा हाल बुरा होता जा रहा था, चूत बेहाल हो चुकी थी और लण्ड लेने को लपलपा रही थी, पानी की बूंदें चूत से रिसने लग गई थी। लण्ड को निगलने के लिए चूत बिल्कुल तैयार थी।
उसने दोनों हाथों से मेरे चूतड़ भींच लिए, मेरी चूत के आस-पास उसका लण्ड तड़पने लगा।
मैं थोड़ा सा नीचे सरक गई और लण्ड को चूत के द्वार पर अड़ा लिया।
अब देर किस बात की बात की… उसके लण्ड ने एक ऊपर की ओर उछाल मारी और मेरी चूत ने उसके लण्ड को लीलते हुए, नीचे लण्ड पर दबा दिया।
उसका मस्त लौड़ा “फ़च” की आवाज के साथ भीतर तक रास्ता बनाता हुआ जड़ तक बैठ गया।
मैंने अपनी चूचियाँ उसके मुँह से निकालीं और अपने होंठ से उसके होंठ दबा लिए।
‘आह्ह्ह्ह ठोक दिया ना.. ईह्ह्ह..’ मेरी चूत में उसके लण्ड का मीठा-मीठा अहसास होने लगा था।
‘आपका जिस्म कितना मस्त है.. चोदने लायक..’ उसके मुँह से ‘चोदना’ शब्द बड़ा प्यारा लगा।
मुझे लगा कि सुरेश मुझसे इसी भाषा में मुझसे बोले, सो मैंने भी जानबूझ कर ऐसी भाषा का प्रयोग करना शुरु कर दिया- तेरा लण्ड भी सॉलिड है।
‘रानी, तेरी चूत भी कितनी प्यारी है।’
मैं उसके लण्ड पर अपनी चूत मारने लगी। लण्ड बहुत ही प्यारी रग़ड़ मार रहा था।
मुझे चूत-घर्षण करते हुए चुदाने में आनन्द आ रहा था।
कुछ देर ऐसे ही चुदने के दौरान सुरेश ने मुझे ऊपर कर लिया।
मैं सीधी बैठ गई और ‘धच’ से उसके लण्ड पर चूत मारी और खुद ही चीख पड़ी।
मैं भूल गई थी कि उसका लण्ड मोटा और अधिक लंबा था, वो तो मेरी बच्चेदानी से जोर से टकरा गया था।
इस दर्द के साथ बहुत ही जोर का आनन्द भी आया।
‘सुरेश उई.. ईईसीओ.. सीसीईईईसीई चुद गई.. तेरे लण्ड से.. राजा बहुत मजा आ रहा है.. तू भी नीचे से मार ना चोद दे राजा मेरी चूत को फ़ाड़ दे आआहह.. सीईई… राजा मैं आज सुबह से ही चुदासी हूँ.. चोदो ओर चोदो मोटे लण्ड से आह्ह… मेरी प्यारी चूत को.. मादरचोद.. इस चूत को चोद डाल तू.. मुझे आज चोद-चोद कर निहाल कर दे…’
मैं गालियाँ बोल-बोल कर अपने मन की भड़ास निकाल रही थी।
मेरे दिल को ऐसा करने से बहुत सुकून आ रहा था।
मैंने कुछ रुक कर फिर से ऊपर से चूत को फिर से उछाला और एक नया और सुहाना मजा लम्बे लण्ड का मिल रहा था।
फिर तो ऊपर से ‘धचा..धच’ लण्ड के ऊपर अपने आप को पटकते चली गई।
सुरेश चोदते हुए बोला- गालियाँ देती हुई बहुत प्यारी लग रही है.. आजा अब मैं तेरी माँ चोद देता हूँ.. भोसड़ी की.. रण्डी कुतिया.. ले चुदवा ले अपनी चूत को.. भोसड़ी में खा मेरा लौड़ा.. चुदवा ले।
मैं भी मस्त हो कर कहने लगी- मेरे प्यारे हरामी मादरचोद.. मेरी भोसड़ी चोद दे… बस अब मुझे नीचे दबा ले और साली चूत की चटनी बना दे।
अब हम दोनों ने पलटी मार ली और वो मेरे ऊपर सवार हो गया।
उसकी कमर, मैंने सोचा भी नहीं था, ऐसी जोर-जोर से चलने लगी कि बस मुझे स्वर्ग का आनन्द आ गया।
मैं तबियत से चुदने लगी।
‘हाय मेरे चोदू.. चोद मुझे.. राजा मेरी फ़ुद्दी को मसल डाल… चूत फ़ाड़ दे मेरी।’
मैं अनाप-शनाप बकते हुए चुद रही और चुदाई का भरपूर मजा ले रही थी।
‘आह, मेरी रानी तेरी चूत का चोद आज मेरा लौड़ा मस्त हो गया.. रानी.. जी भर के आज चुदवा ले.. जी भर के मेरी कुतिया.. छिनाल.. साली.. रण्डी.. आह्ह्ह्हऽऽ’
उसकी प्यारी सी मीठी गालियाँ मुझे नया आनन्द करा रही थीं।
मेरे शरीर में तरावट आने लगी, सारा जिस्म मीठे जोश से भर गया, मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं कभी ना झड़ूँ.. बस जिन्दगी भर चुदाती ही रहूँ.. यह मजा किसी और चुदाई से अलग था, कुछ जवानी का जोश और मीठी-मीठी गालियों की मीठी चुभन थी।
मैं भी आज जी खोल कर सारी गन्दी से गन्दी गाली सुनते हुए चुद रही थी।
अब मेरा जिस्म ऐंठने लगा और आनन्द को मैं और बर्दाश्त नहीं कर सकी… मेरी चूत जोर से झड़ने लगी।
मेरी चूत में लहरें उठने लगीं, तभी सुरेश ने मेरे ऊपर अपने आपको बिछा लिया और लण्ड को चूत में भीतर तक दबा लिया।
उसके कड़कते लण्ड ने मेरी बच्चेदानी को रगड़ मारा और चूत में उसका वीर्य छूट पड़ा।
वो अपने लण्ड को बार-बार वीर्य निकालने के लिए दबाने लगा।
वीर्य से मेरी चूत लबालब भर चुकी थी।
वो निढाल हो कर एक तरफ़ लुढ़क पड़ा।
मैंने भी मस्ती में अपनी आंखें बन्द कर ली थीं।
सारा सुख और आनन्द और दिन भर की तड़प, चूत की प्यास शान्त हो गई थी।
मैं लम्बी-लम्बी साँसें लेते हुए पड़ी रही.. मेरी चूत से वीर्य निकलते हुए मेरी गांड तक पहुँच रहा था।
मेरी कहानी कैसी लगी, जरूर बताना।
What did you think of this story??
Comments