आठ महीने से चुदाई की भूखी
रोहन मल्होत्रा
दोस्तो, मेरा नाम रोहन है, उमर 26 साल है, मैं दिखने में बहुत स्मार्ट हूँ, हरियाणा का रहने वाला हूँ।
अन्तर्वासना पर यह मेरी पहली कहानी है जो बिल्कुल सच है।
बात उन दिनों की है जब एक साल पहले मैं दिल्ली में जॉब करता था। मैं दो दिन के लिये हरियाणा अपने घर गया था। वहाँ से फ़िर मुझे वपिस दिल्ली आना था।
मैं शाम को अम्बाला स्टेशन पर पहुँचा, ट्रेन आने वाली थी और मेरी निगाहें किसी न किसी औरत को देख रही थीं।
तभी मैंने देखा कि एक औरत मेरी तरफ़ देख रही थी। उसकी उमर 30 के आस-पास होगी। उसके चूतड़ों को मैं देखता ही रह गया, एकदम गोल-मटोल थे जो चलने पर ऊपर-नीचे हो रहे थे, दिल कर रहा था कि जाकर दबा दूँ।
तभी ट्रेन आ गई।
मैं उस औरत के साथ-साथ अन्दर गया। ट्रेन में काफी भीड़ थी, मैं उस से चिपक कर खड़ा हो गया।
इसी दौरान गाड़ी चल पड़ी। तभी मैंने महसूस किया कि मेरा लण्ड खड़ा हो गया है जो कि बिल्कुल उसकी गाण्ड के बीच में चिपका हुआ था।
गाड़ी तेज चल रही थी जिससे यात्री इधर-उधर हिल रहे थे, मुझे मजा आ रहा था। भीड़ होने के कारण मेरे हाथ कभी-कभी उसकी गर्दन को छू जाते थे।
उसको भी मजा आने लगा, वो भी मेरे लण्ड पर दबाव डालने लगी।
मैंने तभी उसके चूतड़ों पर हाथ लगा दिया, बहुत मुलायम थे। मेरा लण्ड उसकी गाण्ड में धंसा जा रहा था, मैं पागल सा होने लगा था।
थोड़ी देर बाद उसने मुझसे पूछा- यह ट्रेन सोनीपत कब पहुँचेगी?
मैंने कहा- यह तो सोनीपत रुकेगी ही नहीं!
तब उसने कहा- मुझे तो सोनीपत जाना है।
मैंने कहा- फ़िर तो पानीपत उतर कर, वहाँ से लोकल ट्रेन पकड़ लेना।
उसने कहा- सर्दी का समय है इसलिये ट्रेन में लोग भी कम होंगे सो रात को मैं अकेले कैसे जाऊँगी?
मैंने कहा- कोई बात नहीं मैं आपके साथ चला चलूँगा।
यह कहकर मैंने उसके कूल्हे दबा दिए। शायद वो भी यही चाहती थी, तभी उसने ‘हाँ’ कर दी।
फ़िर हम पानीपत उतर गए, काफी रात हो गई थी, वहाँ पहले से ही लोकल ट्रेन खाली थी, हम उसमें चढ़ गए।
तभी ट्रेन चल दी, मैंने देखा कि सर्दी ओर रात के कारण उस डिब्बे में कोई नहीं था। इस बात से मैं बहुत खुश हो गया।
इसी दौरान गाड़ी ने गति पकड़ ली और मैंने दरवाजा बन्द कर दिया, फ़िर उसके साथ सट कर बैठ गया। वो पहले ही गर्म हो चुकी थी। उसने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया और अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए।
मैं पागलों की तरह उसके होंठ चूसता रहा और मेरे हाथ उसके शरीर पर घूमने लगे।
मैं हब्शी की तरह उस पर टूट पड़ा, ऐसे जैसे कि किसी ने बरसों से खाना ना खाया हो।
उनके स्तनों को मैं इतने ज़ोर-ज़ोर से दबा रहा था कि वो बुरी तरह थरथरा रही थी। उसका एक हाथ मेरे लण्ड को सहलाने लगा और मैं उसकी चूचियों को दबाते हुए बुर पर हाथ फ़ेरने लगा और वह अपनी दोनों जाँघों के बीच मेरे हाथ को दबाने लगी।
तभी ट्रेन रुक गई वो भी एक सुनसान जगह पर! अब तो मेरी खुशी का ठिकाना ही नहीं था!
फ़िर मैंने अपना लण्ड बाहर निकाल कर उसके हाथ में दे दिया। उसने मेरे लंड को मुँह में भर लिया और लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी। ऐसा लगा जैसे मैं तो जन्नत में पहुँच गया होऊँ।
फ़िर मैंने उसका ब्लाउज खोल दिया और उसके मम्मों के चूचुकों को चूसने लगा।
उत्तेजनावश हम 69 की पोजीशन में आ गए। मैं उसकी चूत को चाट रहा था और वो मेरा लंड चूस रही थी। मेरा लंड उसके मुँह में पूरा अन्दर चला गया।
मैंने अपनी जीभ से उनकी चूत की फांकों को चौड़ा किया और उसकी मदनमणि को टटोला, वो बिल्कुल ऐसे थी, जैसे कोई मोटा सा अनार या किशमिश का फूला हुआ सा दाना हो।
मैंने उस पर पहले तो जीभ फिराई बाद में उसे दांतों से दबा दिया।
उसकी हालत तो पहले से ही ख़राब थी- ओह… जोर से चूसो… ओह… मैं तो गई ऊईई… माँ…!
कोई 5-7 मिनट की चुसाई के बाद मुझे लगा कि अब इसकी चूत चुदने के लिए तैयार है !
तो मैंने अपना लंड उसकी चूत पर टिकाया और उसकी भग्नासा पर लंड का सुपाड़ा रगड़ना शुरू किया, तो वह अपनी गांड को ऊपर उठाने लगी कि लण्ड जल्दी से उसकी चूत में घुस जाए पर मैं उसको तड़पाना चाहता था और उसके मुँह से सुनना चाहता था।
जब लंड को रगड़ा तो वह तड़प उठी और बोली- अब और मत तड़पाओ… इसको मेरी चूत में डाल दो.. मेरी चूत को फाड़ दो..! मैं पिछले आठ महीनों से नहीं चुदी हूँ, आज इसकी चुदने की सारी ख्वाहिश पूरी कर दो..!
इसी दौरान गाड़ी चल पड़ी। मैं अपना लण्ड चूत के मुख पर रख कर ऊपर-नीचे घिसता रहा और फ़िर जोर से एक झटका दिया तो आधा लण्ड अन्दर घुस गया।
फ़िर मैंने एक और धक्का मार कर अपना लंड एक ही बार में पूरा-का-पूरा उसकी चूत में डाल दिया।
वह चिल्ला पड़ी, मैंने तुरन्त उसकी चीख को अपने होंठों से दबा दिया और धीरे-धीरे अपने लंड को अन्दर-बाहर करने लगा।
अब वह कामुक सिसकियाँ ले रही थी।
कुछ ही धक्कों के बाद अब वह छूटने वाली थी और उत्तेजना के मारे बड़बड़ा रही थी, “और ज़ोर से.. और ज़ोर से…!”
मैं अब लम्बे-लम्बे झटके देने लगा और दो मिनट के बाद हम दोनों एक ही साथ झड़ गए। कुछ देर निढाल रहने के बाद हम ठीक से बैठ गए।
वो मेरे लंड को हाथ में लेकर आगे-पीछे करती रही और मैं उसको चूमता रहा।
इतने में सोनीपत आ गया। ट्रेन से उतरते समय उसने मुझे चूमा, मैंने उसका नम्बर ले लिया और फ़िर वो उतर गई।
मैं दिल्ली आ गया, सारे रास्ते मैं उसके साथ की चुदाई की फिल्म फिर से अपने दिमाग में ब्लू-फिल्म की तरह बार-बार चलाता रहा। फ़िर मैंने 15 दिन बाद उसके घर जाकर उसकी चुदाई कैसे की, यह अगली कहानी में बताऊँगा।
आपको मेरी पहली कहानी कैसी लगी कृपया अपनी टिप्पणी मुझे अवश्य मेल करें।
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