गुसलखाने का बंद दरवाज़ा खोला-2
(Bathroom Ka Band Darwaja Khola-2)
कहानी का पिछला भाग: गुसलखाने का बंद दरवाज़ा खोला-1
मैंने अपने घर से एक स्टूल ला कर उस खिड़की के नीचे रखा और उस पर चढ़ गया!
वहाँ से मैंने दरवाज़ा खोलने वाले संभावित उपकरणों का डिब्बा खिड़की के अन्दर उस स्त्री को पकड़ाने के लिए जैसे ही अंदर झाँका तो वहाँ का नज़ारा देख कर दंग रह गया!
मेरे हाथों से उपकरणों का डिब्बा और खिड़की दोनों ही छूटते छूटते बचे!
गुसलखाने के अन्दर वही सुन्दरी थी जिसे मैंने दो दिन पहले बालकनी से कपड़े उतार कर ले जाते देखा था वह उस समय गुसलखाने में बिलकुल नग्न खड़ी थी!
उसके हाथ में एक छोटा सा तौलिया था जिससे वह अपने जघन-स्थल पर रख कर अपनी योनि को छुपा रही थी और दूसरी हाथ एवं बाजू को उसने अपनी दोनों स्तनों के आगे रख कर उन्हें छुपाने की असफल कोशिश कर रही थी!
मैंने अपने सिर को खिड़की से बाहर ही रखते हुए उपकरणों के डिब्बे वाला हाथ अंदर डालते हुए उस स्त्री को डिब्बा पकड़ने को कहा।
जब उसने सिर्फ मेरा हाथ ही देखा तो खिड़की के पास आकर उस डिब्बे को दोनों हाथों से पकड़ लिया और नीचे रखने को झुकी!
उस समय मैंने अपना सिर खिड़की के अन्दर किया और उसकी नग्न जवानी के पूरी तरह दर्शन किये!
उसके दोनों स्तन बहुत ही गोरे थे तथा एकदम गोल गेंदों की तरह काफी कसे हुए, सख्त और ऊपर को उठे हुए लग रहे थे और उन दोनों पर काले रंग की बड़ी बड़ी चुचूक थी!
उन चुचूकों के चारों ओर लगभग डेढ़ इंच का काला घेरा था जो बहुत ही मनमोहक लग रहा था।
उसकी योनि किसी पाव-रोटी की तरह फूली हुई दिख रही थी और उसके ऊपर बहुत ही कम तथा छोटे छोटे काले रंग के बाल थे।
उसके शरीर को जब देखा तो ऐसा लगता था कि उसके शरीर पर एक नहीं चार चार नज़र-बट्टू लगे हुए थे!
एक उसके बाएँ गाल पर, दो उसकी छातियों पर और एक उसके जघन-स्थल पर लगाया गया हो!
मुझे खिड़की से अंदर झांकता देख कर उसने तुरंत तौलिये को अपने जघन-स्थल पर रख लिया और दूसरी बाजू से अपने स्तनों को ढांप लिया!
जब मैंने देखा कि वह गुसलखाने के एक कोने में जाकर खड़ी हो गई तब मैंने उससे पूछा- क्या मैं आपकी मदद के लिए इस झरोखे से अन्दर आ सकता हूँ?
उसने मेरी ओर मुस्करा कर देखा और कहा- आ जाइये अब कोई और रास्ता भी तो नहीं है अंदर आने के लिए।
मैंने उसे कहा- क्या आप थोड़ा कष्ट करके बाल्टी को इस खिड़की के नीचे सरका देंगी ताकि मैं उस पर अपने पांव टिका कर नीचे उतर सकूँ।
उसने मेरे कहे अनुसार बाल्टी को सरका कर खिड़की के नीचे कर दिया तब मैंने अपना एक पाँव और सिर को खिड़की के अन्दर करके अपने शरीर को मोड़ा तथा गुसलखाने के अन्दर कर दिया।
फिर मैंने अन्दर गए पाँव को थोड़ा नीचे कर के बाल्टी पर टिकाया और अपने बाकी के शरीर और दूसरी टांग को भी गुसलखाने के अंदर कर दिया।
गुसलखाने के अन्दर पहुँच कर मैं उस स्त्री की परेशानी और शर्मिंदगी को देख कर विचलित हो गया।
गुसलखाने में इधर उधर देखने पर जब मुझे उस स्त्री का तन ढकने के लिए कोई भी वस्त्र या वस्तु नहीं मिली तब मैंने अपनी टी-शर्ट उतार कर उसे दे दी और कहा– आप फिलहाल इसे पहन कर अपने तन को ढांप लीजिये।
उसने मुझसे वह टी-शर्ट नहीं ली क्योंकि अगर वह अपना हाथ बढ़ाती है तो वह नीचे से या फिर ऊपर से नग्न हो जाती है!
मैंने जब उसे एक बार फिर टी-शर्ट पहनने को कहा तो उसने कहा- आप मेरी हालत तो देख रहे है इसलिए आप ही इसे मुझे पहना दीजिये।
उसकी बात को समझते हुए मैंने उस टी-शर्ट को उसके गले में डाल दी और उसे अपनी बाजू टी-शर्ट में डालने के लिए कहा!
वो जैसे ही अपनी बाजू हिला कर टी-शर्ट में डालने लगी उसके दोनों स्तन नग्न हो गये और उनमें से एक मेरे हाथ को भी छू गया!
इसके बाद उसने अपना नीचे जघन-स्थल पर रखा हुआ हाथ भी हिलाया और टी-शर्ट में डाला तब मुझे नज़दीक से वहाँ के भी पूर्ण दर्शन हो गए!
जब तक उसने टी-शर्ट को नीचे खींच कर अपने स्तनों को ढका और तौलिये को फिर अपनी योनि पर रखा तब तक उस स्त्री के शरीर के सबसे आकर्षक एवं मूल्यवान अंग मेरे दर्शन के लिए खुले रहे!
उस नज़ारे को देख कर मैं बहुत ही उत्तेजित हो गया और मेरा लिंग तन कर खड़ा हो गया और उसने मेरे लोअर को तम्बू की तरह ऊँचा कर दिया।
मैंने जल्दी से दूसरी ओर मुड़ कर एक हाथ से अपने लिंग को नीचे की ओर दबा कर लोअर को ठीक किया और फिर मुड़ कर उसको देखा!
शायद उसने मेरे लिंग को मेरा लोअर उठाये हुए देख लिया था इसलिए मुझे देख कर वह मुस्कुरा रही थी।
जब वह और मैं कुछ सुविधापूर्ण स्तिथि में हो गए तब मैंने दरवाज़े की ओर देखा और उसे खोलने की कोशिश करने लगा।
दरवाज़े में लगे लैच के पेचों को खोल कर उसके अनेक हिस्सों को एक एक कर के अलग किया और फिर चौखट में फसी कड़ी को खींच कर निकाला!
आधे घंटे के परिश्रम के बाद ही मैं उस दरवाज़े को खोल कर उस सुन्दरी को गुसलखाने से बाहर निकाल पाया!
दरवाज़े के खुलते ही वह सुन्दरी एक पिंजरे से छूटे पंछी की तरह उड़ कर अपने कमरे में पहुँची!
उसने सब से पहले मेरी टी-शर्ट के ऊपर ही अपना गाउन पहन लिया और फिर मेरी ओर पीठ कर के नीच के शरीर पर पैंटी पहनी!
मैं गुसलखाने के दरवाजे के पास बैठा उसका लैच ठीक करते हुए वह नज़ारा देख रहा था और मन ही मन मुस्करा रहा था!
मैंने लैच को ठीक कर के दरवाजे में लगाने के बाद जब उसे परीक्षण करने के लिए कहा तो वह बोली- आप ही परीक्षण कर लो मैं दुबारा से वह जोखिम नहीं ले सकती।
तब मैं गुसलखाने के अन्दर जा कर दरवाज़े को तीन चार बार बंद किया और फिर खोल कर बाहर आया तब जाकर उसे दरवाज़ा ठीक होने का विश्वास हुआ!
मेरे द्वारा दोबारा कहने के बावजूद भी उसने परीक्षण करने से मना कर दिया।
वह हंस कर कहने लगी- आगे से मैं जब भी इस गुसलखाने में जाऊँगी तब मैं इस दरवाज़े को तो कभी भी बंद नहीं करुँगी! क्या पता यह आज की तरह फिर बिगड़ जाए और मुझे सहायता के लिए पुकारना पड़े।
मैंने भी हँसते हुए कहा- सहायता के लिए मैं हमेशा उपलब्ध रहूँगा लेकिन आप के घर में तो सिर्फ आप और आप के पति ही रहते है इसलिए आप को तो दरवाज़ा बंद करने की आवश्यकता ही नहीं होनी चाहिए।
मेरी बात सुन कर वह भी हंस पड़ी और कहा- हाँ, आप ठीक ही कह रहे हैं!
अच्छा अब आप अन्दर बैठक में आ कर बैठ जाइए तब तक मैं आप के लिए गर्म गर्म चाय बना कर लाती हूँ।
मैंने कहा- ठीक है, आप जा कर चाय बनाइये और मैं तब तक गुसलखाने के वे तिरछे शीशे लगा कर बैठक में आता हूँ! हाँ, मेरे लिए चाय बिना दूध और चीनी की ही बना कर लाना क्योंकि मैं सिर्फ काली चाय ही पीता हूँ।
मेरी बात सुन कर वह बोली- आप काली चाय पीते हैं? तभी तो आप के शरीर पर चर्बी का नाम ही नहीं है! यह तिरछे शीशे लगाने का काम आप चाय पीने के बाद ही करना क्योंकि आपको शीशे पकड़ाने के लिए मेरी सहायता की ज़रूरत पड़ सकती है।
मुझसे रहा नहीं गया और मैंने कह दिया- नहीं, अभी तो मुझे इस काम के लिए तो आपकी ज़रूरत नहीं पड़ेगी लेकिन भविष्य में अगर किसी काम के लिए आपकी ज़रुरत पड़ी तो आपको सहायता के लिए अवश्य पुकारूँगा।
मेरी बात सुन कर वह चुप हो गई और चाय बनाने के लिए रसोई में चली गई!
जब तक वह चाय बना कर लाती तब तक मैंने गुसलखाने के तिरछे शीशे लगा दिए और अपना सभी सामान समेट कर उपकरणों के डिब्बे में डाल कर बैठक में आ कर बैठ गया।
फिर मैंने और उसने चाय पीते हुए एक दूसरे से अपना परिचय कराया!
तब उसने बताया की उसका नाम नेहा है और वह देहली में पली बड़ी हुई है तथा उसने वहीँ से आई टी इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी करी है!
उसकी शादी तीन माह पहले हुई थी और तब से वह अपने पति के साथ बैंगलोर में रहने के लिए आ गई।
जब मैंने उसके पति के बारे में पूछा तो उसने बताया कि उनका नाम संजय है और वह भी एक आई टी इंजिनियर है तथा बैंगलोर की एक आई टी कंपनी में कार्य करता है!
उसने यह भी बताया शादी से पहले वह भी गुड़गाँव में एक आई टी कंपनी में काम करती थी।
मेरे पूछने पर की वह अब यहाँ पर काम क्यों नहीं करती है तो उसने बताया कि उसने एक दो जगह इंटरव्यू दिए है और उनके नियुक्ति पत्र की प्रतीक्षा कर रही है!
इसके बाद जब मैं अपने घर जाने के लिए तैयार हुआ तब नेहा से कहा- मेरी थोड़ी सहायता कर दो।
उसने पूछा- अब तुमको क्या सहायता चाहिए?
मैंने कहा- मुझे बालकनी तक जाने का रास्ता बता दो और कृपया मेरी टी-शर्ट भी वापिस कर दो! अगर कोई मुझे इस घर से नंगा जाते हुए देखेगा तो पता नहीं तुम्हारे और मेरे बारे में क्या क्या बातें फैलायगा।
मेरी बात सुन कर वह शर्मा गई और कहा- क्षमा करना, मैं तो इसे उतारना ही भूल गई थी!
लो मैं अभी उतार देती हूँ।
फिर उसने वहीं खड़े खड़े अपना गाउन खोल कर नीचे किया और मेरी टी-शर्ट उतार कर मुझे दे दी!
फिर अपना गाउन फिर पहन कर वह मेरे पास आई और मेरा हाथ पकड़ कर कहा- क्या तुम मुझे, आज की घटना के बारे में किसी को भी नहीं बताने का वचन दे सकते हो? मैं नहीं चाहती की हम दोनों के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को आज की घटना के बारे में कुछ भी ज्ञात हो!
उसकी बात सुन कर मैंने उससे पूछा- क्या तुम यह बात अपने पति को भी नहीं बातोगी?
उसने तुरंत उत्तर दिया- नहीं, मैं मरते दम तक इस बात का उल्लेख किसी से नहीं करुँगी।
मैंने पूछा- तुम यह बात अपने पति से क्यों छुपओगी?
तो उसने कहा- अगर बताऊँगी तो मुझे तुम्हारे सामने नग्न खड़े रहने और तुम्हारी टी-शर्ट पहनाने की बात भी बतानी पड़ेगी पता नहीं वे इसका क्या मतलब निकालने लगें और मेरी बात पर विश्वास भी करते भी हैं या नहीं! मेरी नई नई शादी हुई है और मैं नहीं चाहती कि मेरी शादीशुदा जीवन के शुरुआत में ही कोई अड़चन आ जाये।
उसकी बात सुन कर मैंने उसे वचन दे दिया- नेहा, मैं तुम्हें वचन देता हूँ कि तुम्हारी अनुमति के बिना मैं भी मरते दम तक आज के प्रसंग को किसी भी तीसरे इंसान से साझा नहीं करूँगा।
मेरा वचन सुन कर उसने एक छोटी बच्ची की तरह ख़ुशी से उछलते हुए ताली बजाई और आगे बढ़ कर मेरे गाल को चूम लिया!
मैंने भी उसके चुम्बन के उतर में उसका गाल को चूम लिया और उससे पूछा- नेहा, जब मैंने तुमसे अपनी टी-शर्ट मांगी थी तब तुमने मेरे सामने ही नग्न हो कर उसे उतार कर मुझे दे दी थी! तुम दूसरे कमरे में जा कर भी तो उसे उतार सकती थी?
उसने कहा- मुझे तुम पर पूरा विश्वास हो चुका था! आधे घंटे से अधिक मैं पूर्ण नग्न स्तिथि में तुम्हारे साथ एक सात फुट लम्बे और साढ़े पांच फुट चौड़े गुसलखाने में बंद रही थी और उस अविधि में तुमने मुझे हाथ लगाना तो दूर मेरी ओर देखा भी नहीं था! सबसे बड़ी बात मेरी नग्नता को छुपाने के लिए तुमने अपनी टी-शर्ट भी उतार कर मुझे पहनने को दी थी!
जब मैंने तुम्हे मुझे टी-शर्ट पहनाने के लिए कहा तब भी तुमने मेरे किसी भी अंग को नहीं छुआ, न ही छूने की कोशिश करी! मैंने देखा था कि लोअर के अन्दर तुम्हारे लिंग के उत्तेजित होने के बाबजूद भी तुमने अपने आप को कैसे संयम में रखा था! कोई दूसरा इंसान होता तो उस समय अपना संयम खो कर मेरा क्या हाल करता इसका तो मेरे लिए अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है! मेरी तो उस बारे में सोच कर ही रूह कांप जाती है।
मैं उसकी बात सुन कर चुप हो गया और अपना सामान उठा कर बालकनी में चला गया।
वहाँ से मैंने स्टूल को भी उठाया और बालकनी लांघ कर अपने घर पहुँच गया! घर के अन्दर जाने से पहले मैंने नेहा को एक बार पीछे मुड कर देखा और फिर उसे “बाई” कह कर घर के अन्दर चला गया!
कहानी का अगला भाग: गुसलखाने का बंद दरवाज़ा खोला-3
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