अनजानी और प्यासी दिव्या-1

(Anjani Aur Pyasi Divya- Part 1)

ऋतु राज 2016-05-06 Comments

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मेरी पिछली कहानी
स्नेहल के कुँवारे बदन की सैर
को आप लोगों ने बहुत सँवारा, जिसके लिए मैं आप सभी पाठकों को तहेदिल से धन्यवाद कहता हूँ।

खैर.. अभी मैं आपका अधिक समय ना लेते हुए सीधे कहानी पर आता हूँ।

बात इसी दीवाली की है। जब मैं जबलपुर से अपने घर को लौट रहा था.. तब मुझे क्या पता था कि यह इतना लम्बा लगने वाला सफर एक सुहाने सफर में तब्दील हो जाएगा। लेकिन होनी को कौन टाल सकता है।

ट्रांसपोर्ट का काम होने की वजह से मुझे छुट्टी मिल नहीं रही थी। लेकिन मैंने फिर अपने दोस्त से कहकर अपना काम उसे सौंपकर मैं दीवाली के 2 दिन पहले जबलपुर से अपने घर की ओर निकल पड़ा। दीवाली का सीजन होने की वजह से ट्रेन में रिजर्वेशन नहीं मिल पाया.. तो मैंने ट्रेवल्स के जरिए सड़क मार्ग से जाना ही ठीक समझा। रास्ते में मुझे दो ट्रेवल्स बसें बदलनी थीं.. मैंने स्लीपर का टिकट बुक कराया और कमरे में आकर बैग पैक करके अगले दिन निकल पड़ा।

यात्रा में टाइम पास के लिए मैंने 1-2 सेक्सी मैगजीन भी ले ली थीं। अपनी सीट पर बैठने के बाद मैंने बस में देखा तो काफी सीटों पर लोग दिख रहे थे। गाड़ी चालू होने के बाद जब सभी अपनी सीटों पर बैठ कर सुस्ताने लगे.. तो मैं भी अपने बैग से मैगज़ीन निकालकर पढ़ने लगा। लेकिन सिर्फ मैगज़ीन से काम नहीं चलने वाला था.. क्योंकि सफर काफी लम्बा था। मेरे पास दूसरा कोई चारा भी नहीं था.. इसलिए मैं भी अपने लंड को सहलाते हुए मैगज़ीन का मजा ले रहा था।

गाड़ी शुरू होकर अभी एकाध घंटा ही हुआ होगा कि लगभग सभी लोग नींद के आगोश में चले गए थे। तभी मेरी नजर मेरे बाजूवाले के आगे की सीट पर पड़ी। इधर मैं अपने लंड को सहला रहा था और उधर एक हसीन कली मेरी तरफ ही देखे जा रही थी। उसे देखते ही मेरे लंड ने हलचल शुरू कर दी। वो काफी सेक्सी दिख रही थी। गुलाबी कमीज और काली सलवार में वो किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी।

मैंने पहले कन्फर्म कर लिया कि वो इधर ही देख रही है, तो मैंने भी उसे एक स्माइल देते हुए हाथ हिलाकर ‘हैलो’ बोला। तो उसने भी मुस्कुराते हुए ‘हाय’ कहा। मेरी तो लाइन क्लियर थी। अब मैं समय गँवाना नहीं चाहता था.. तो थोड़ी देर बाद मैंने उसे अपनी सीट पर आने के लिए कहा.. तो वो भी बेझिझक वहाँ से उठकर मेरी सीट पर आकर बैठ गई।

वो अपनी दीदी के यहाँ रहती थी और अभी दीवाली के लिए अपने घर जा रही थी। उससे पूछने पर उसने उसकी उम्र 28 बताई.. लेकिन उसे देखकर लगता ही नहीं था कि उसकी उम्र उतनी होगी। उसका फिगर भी काफी मेनटेन था। बातों-बातों में मैंने उसे उसका फिगर पूछा.. तो उसने कहा- खुद ही नाप कर देख लो। फिर न कहना कि मैंने गलत बताया।

मेरी तो जैसे लाटरी निकल आई। लेकिन हम दोनों चाहकर भी अभी कुछ नहीं कर सकते थे.. तो मैंने थोड़ी देर रुकना ही उचित समझा।

फिर उसे एक मिनट की कहकर मैं सीधा टिकट चेकर के पास गया और उसे थोड़े पैसे देकर हम दोनों के लिए पीछे वाली डबल सीट का इंतजाम कर लिया।

फिर गाड़ी में देखा तो आधे से ज्यादा लोग तो बूढ़े दिख रहे थे। एक दो फैमिली भी थीं.. तो मुझे कोई खतरा नहीं था।
अपनी सीट पर आकर मैंने उससे कहा- मैंने हमारे लिए पिछली डबल बेड वाली सीट बुक कर दी है.. तो चलें अपनी सीट पर..
‘हाँ.. देर किस बात की है.. चलो जल्दी।’ उसने कहा।

तो हम दोनों ही अपना सामान लेकर पीछे की ओर चल दिए। अपनी सीट पर पहुँचकर मैंने दोनों का सामान सीट के नीचे रख दिया। तभी उसने अपनी बैग में से एक चादर निकाल ली और हम अपनी ऊपर वाली सीट पर चढ़ गए।

बातों-बातों में मैं उसका नाम बताना तो भूल ही गया, उसने उसका नाम दिव्या बताया था।

तो हम अपनी सीट पर आराम से बैठ गए और परदा लगा दिया। जैसा कि आप सब जानते हैं स्लीपर बस में हर सीट के लिए परदे लगे रहते हैं। अब टिकट चेकर तो आने से रहा.. क्योंकि मैंने उसे पहले ही बता दिया था कि वो हमें डिस्टर्ब ना करे।

परदा लगाने के बाद हम फिर इधर-उधर की बातें करने लगे। बातें करते-करते हम एक-दूसरे के अंगों को छेड़ रहे थे.. तभी मैंने उसके मम्मों को दबाते हुए उससे कहा- तुम्हारे ये दूध एक-एक किलो के तो होंगे ही।
इस पर वो भी हँस पड़ी और कहने लगी- तो जनाब को अब इनका वजन भी करना है। पहले साइज़ पता करनी थी और अब वजन भी चाहिए।

इतना कहकर उसने हम दोनों पर चादर ओढ़ा दी.. जिससे अगर किसी ने परदा हटा भी दिया.. तो किसी को पता न चले कि अन्दर क्या चल रहा है। चादर ओढ़ने के बाद तो मैं एकदम बिन्दास होकर अपने हाथ उसके शरीर पर चला रहा था। अब तक उसके हाथ भी मेरे लन्ड तक पहुँच गए थे। हम दोनों ही बाहर से एक-दूसरे के मजे ले रहे थे।

फिर मैंने अपने हाथ उसके स्तनों से नीचे ले जाकर उसकी कमर पर इर्द-गिर्द फिराने लगा। मजे की बात तो यह थी कि अब तक हम दोनों में से किसी ने भी किस लेने के लिए पहल नहीं की थी और बस अंगों से छेड़छाड़ कर रहे थे और हमारी बातें भी जारी थीं।

लेकिन अब हम दोनों के सब्र का बांध टूटने लगा था और हम एक-दूसरे की ओर आकर्षित होते जा रहे थे। अब मैंने अपना एक हाथ उसके सर के बालों पर रख दिया और उसके बालों सहलाने लगा था.. तो मेरा दूसरा हाथ उसके स्तनों को निचोड़ रहा था।

वो भी मस्त होकर एक हाथ से मेरा लंड दबा रही थी और दूसरे हाथ से मेरी छाती पर उंगलियों के जाल बुनने लगी थी।

फिर मैंने एक झटके के साथ उसे अपनी ओर खींचकर उसके मुलायम से होंठों को अपने होंठों से कैद कर लिया। मेरे इस हमले से वो थोड़ा घबरा गई.. लेकिन जल्द ही सब समझकर मेरा साथ देने लगी।

आखिर आग भी तो दोनों तरफ लगी हुई थी। कभी वो मेरे निचले होंठ को चूसती.. तो कभी मैं उसके निचले होंठ को चूसता। हम एक-दूसरे के होंठों को छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे हमारे होंठ आपस में सिल गए हो। हम तो तब जाकर रुके.. जब गाड़ी अपने स्टॉप पर रुकी।

गाड़ी रुकते ही हम एक-दूसरे से हट गए, उसने कहा- जरा यह तो पता करके आओ कि अगला स्टॉप कितनी देर बाद आएगा।

मैं उसका इशारा समझ गया। अब उससे रुका नहीं जा रहा था। मैंने नीचे उतर कर पानी की बोतल ली और पूछने पर पता चला कि अगला स्टॉप 15 मिनट की दूरी पर है और उससे अगला 2 घंटे की दूरी पर है। यानि अगले स्टॉप के बाद हम असली मजे ले सकते थे.. तब तक तो हमें सिर्फ ऊपरी मजा ही लेना था।

गाड़ी फिर से चलने लगी और मैं अपनी सीट पर दिव्या के पास आकर बैठ गया और उसे भी यह बात समझा दी। लेकिन वह इतनी गर्म हो चुकी थी कि उससे अब रुकना असम्भव हो गया था। तो मैंने चादर ओढ़ ली और उसकी सलवार का नाड़ा ढीला करके अन्दर हाथ डाल दिया। उसकी चूत पानी छोड़ रही थी जिससे उसकी पैन्टी गीली हो चुकी थी।

मैंने अपना एक हाथ उसके बालों को सहलाते हुए गर्दन से लेकर अपनी ओर खींच लिया और दूसरे हाथ से उसकी चूत को पैन्टी के ऊपर से सहलाना जारी रखा।
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अब उसके मुँह से कामुक सिसकारियाँ निकल रही थीं.. तो मैंने देर न करते हुए उसके होंठों से अपने होंठ मिला दिए और इसी के साथ अपने हाथ को पैन्टी के साइड से अन्दर घुसाकर उसकी चूत सहलाने लगा।
वो तो बस पागल हुए जा रही थी और मुझे अपने ऊपर लेने की कोशिश करने लगी थी।

लेकिन मैं अभी कोई रिस्क नहीं लेना चाह रहा था तो मैंने बैठे-बैठे ही उसकी चूत में उंगली डाल दी और अन्दर-बाहर करने लगा।
वो अपनी टाँगें पसारे हुए थी.. जिससे मुझे कोई तकलीफ न हो।

मैं उसके साइड में बैठकर उसकी चूत में उंगली कर रहा था। मैं कभी अपनी उंगलियाँ उसकी चूत से बाहर निकाल लेता.. तो कभी पूरे अन्दर तक घुसा देता और बीच-बीच में उसके क्लाइटोरिस को भी रगड़ देता था।
वो मेरी पीठ पर अपने नाख़ून गाड़े जा रही थी और दूसरे हाथ से मेरे लौड़े को मसल रही थी।

मैंने भी जल्द से उंगली निकाल कर एक साथ दो उंगलियाँ अन्दर डाल दीं और जोर-जोर से अन्दर-बाहर करने लगा।
मैं उसके चेहरे पर.. गर्दन पर.. कान के पास किस करते हुए दूसरे हाथ से उसके मम्मों को भी दबा रहा था।

थोड़ी ही देर में उसका शरीर अकड़ने लगा और उसकी चूत ने अपना लावा उगल दिया, मेरा हाथ उसके चूतरस से सन गया था।
मैंने उसे अन्दर ही उसकी पैन्टी से पोंछकर हाथ बाहर निकाल लिया और वो एकदम निढाल हो कर वहीं पस्त हो गई।

फिर मैंने उसके होंठों को चूमकर उसे चादर से ढक दिया और अपने ऊपर से चादर हटाकर कपड़े ठीक किए और थोड़ी देर के लिए खिड़की खोल दी.. ताकि ठंडी हवा अन्दर आ जाए।

मेरा लंड अभी भी तना हुआ था.. लेकिन मैं सही समय का इंतजार कर रहा था। तभी गाड़ी रुकी.. यानि अगला स्टॉप आ गया था और मेरा इंतजार खत्म होने वाला था।

मेरी कहानी आपको कैसी लगी मुझे जरूर बताइए। आप अपने मेल मुझे नीचे लिखे ईमेल आईडी पर भेज सकते हैं…
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