साली बना कर चोदा विधवा लड़की को
(Sali Bana Kar Choda Vidhva Ladki Ko)
हाय दोस्तो!
मैं अंतर्वासना वेबसाइट का नियमित पाठक हूं और मुझे इस पर प्रकाशित होने वाली सैक्सी कहानियां बेहद पसंद आती हैं। इन कहानियों से प्रभावित होकर मैंने सोचा कि क्यों न मैं भी अपनी एक सच्ची कहानी आप लोगों के सामने प्रस्तुत करूं! तो बस मैंने फौरन अपनी सोच पर अमल किया और यह कहानी आप लोगों के पढ़ने के लिये भेज रहा हूं। पढ़कर बताइये कि आपको कैसी लगी।
तो मुख्य विषय पर आते हैं अर्थात कहानी से जुड़ते हैं।
मेरा नाम राजाराम वर्मा है और मैं पीलीभीत का रहने वाला हूं। सौभाग्य से मैं स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद ही सरकारी नौकरी में लग गया था जिस पर अभी भी मैं काम कर रहा हूं।
इस समय मेरी उम्र 27 साल है और अभी तक मैं अविवाहित हूं। देखने में अच्छा खासा हूं। अगर कामदेव नहीं हूं तो बुरा भी नहीं लगता। जवान लड़कियों और औरतों को आकर्षित करने वाले सारे गुण मेरे अंदर विद्यमान हैं।
लड़के बीस साल का होते-होते सेक्स के सपने देखने लगते हैं; मैं भी देखने लगा था। अब तो मैं अच्छी खासी सरकारी नौकरी कर रहा था। पैसा पास था एन्जॉय करने के लिये। किसी को जवाबदेह था नहीं। ऑफिस में एक-दो लड़कियां भी काम करती हैं पर दुर्भाग्य से वे बिलकुल बहिनजी टाइप लड़कियां हैं। वे ऑफिस के मर्दों से सामान्य हंस-बोल लेती हैं पर इससे जरा सा आगे कोशिश करते ही लाल हो जाती हैं। मेरा एक सहकर्मी तो ऐसी ही एक कोशिश में चप्पलों से पिट चुका है। नौकरी भी जाते-जाते बची सो अलग।
बहरहाल उस सहकर्मी की हालत देखने के बाद मेरी ऑफिस की लड़कियों के साथ सामान्य हंसी मजाक और आंखें सेकने से आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं हुई, पर अपनी भावनाओं का क्या करूं, अपनी उम्र का क्या करूं … ये तो भड़कती ही हैं। तो मैं बस हर समय इसी जुगाड़ में लगा रहता था कि कैसे किसी लड़की को पटाया जाये।
वैसे तो रेड लाइट एरिया में इसका इलाज बड़ी आसानी से हो सकता था पर ऐसा मैं करना नहीं चाहता था; वहां रिस्क ही रिस्क था। अगर किसी को भनक लग गयी तो इज्जत तो जानी ही जानी थी साथ में ऐसी वेश्यायें पता नहीं किस-किस बीमारी का घर होती हैं। उनके साथ सहवास करने से पता नहीं क्या छूत मैं भी पाल लूं।
वह कहा जाता है न कि जहां चाह वहां राह। भगवान भी उसी की मदद करता है जो कोशिश करता है। भगवान ने मेरी प्रार्थना सुन ली। मेरी कोशिशें रंग लायीं और मेरे लिये एक बहुत ही मस्त माल का जुगाड़ हो गया।
हुआ यों कि मेरे एक दूर के रिश्तेदार भी मेरे ही ऑफिस में काम करते हैं। एक दिन उनके साथ आशा नाम की एक औरत आयी। उसका कुछ काम था जो मेरे ही पटल से सम्बन्धित था। रिश्तेदार ने मेरा उससे परिचय करवाया। मैंने यंत्रचालित से हाथ जोड़ दिये। वे मुझे क्या बता रहे थे मुझे समझ ही नहीं आ रहा था। मैं तो बस नदीदों की तरह उसे घूरे जा रहा था। क्या गजब की लग रही थी।
रिश्तेदार ने इसे ताड़ लिया और मुझे कोहनी मारी। मैं हड़बड़ा कर अपने आपे में आ गया। रिश्तेदार ने पुनः मुझे उसके बारे में बताया। मुझे बस इतना समझ आया कि आशा किसी रिश्ते से उनकी साली लगती है।
मैंने झट बात बनाई या साफ-साफ कहूं तो चारा डाला- अरे भाई साहब, आपकी साली है तो मेरी भी तो साली ही हुई न!
“बिल्कुल हुई!” उन्होंने कहा।
आशा ने एक संकोच भरी मुस्कुराहट दी; उसने बात का बुरा नहीं माना था।
मैंने बात आगे बढ़ाई- तो जब ये मेरी साली हुई तो फिर इनका काम भला क्यों नहीं होगा। सबसे पहले होगा, आप निश्चिंत रहें।
“इसीलिये तो तुम्हारे पास लाया हूं।” भाई साहब ने मुस्कुराते हुए कहा। वे मेरे मनोभावों को बराबर ताड़ रहे थे।
फिर मैंने गम्भीरता से काम को समझा। काम समझने के साथ ही साथ मेरा दिमाग इस में भी व्यस्त था कि आशा के साथ बात आगे कैसे बढ़ाई जाये।
आखिरकार मैंने कुछ सोचते हुये कहा- ठीक है भाईसाहब, सारे कागज आप मेरे पास छोड़ दीजिये। मैं आराम से इन्हें देखकर बताता हूं कि कैसे क्या करना होगा।
“ठीक है!” कहते हुए भाई साहब ने अपने हाथ के कागज मुझे सौंप दिये, फिर आशा से कहा- बैग से बाकी के कागज भी निकालो।
आशा कुछ झिझकी तो भाई साहब ने मुस्कुराते हुए कहा- बेझिझक दे दो। अब तो यह भी तुम्हारा जीजा हो गया है।
आशा ने अपने हाथ में पकड़े झोले में से निकाल कर बाकी कागज भी मुझे सौंप दिये।
सारे कागजात को एक फाइल में करके दराज में रखते हुए मैं बोला- कल आ जाना, मैं आगे बता दूंगा कि कैसे क्या करना है।
“यार इसे क्यों बार-बार दौड़ाओगे?” भाईसाहब ने कहा।
मैं तो यही चाह ही रहा था। झट से अपना मोबाइल निकाला और बोला- तो ऐसा करो, अपना नम्बर दे दो मुझे, मैं फोन से बता दूंगा।
उसने मुझे नम्बर बता दिया।
मैंने नम्बर सेव करने से पहले उस पर घंटी दी। उसके झोले में पड़े मोबाइल ने फौरन रेस्पांड किया। उसने झोले से मोबाइल निकाला और देखने लगी। पुराना सा साधारण कीपैड वाला मोबाइल था।
“मैंने दी है घंटी। तुम भी मेरा नम्बर सेव कर लो।”
उसने मोबाइल मेरी ओर ही बढ़ा दिया- आप ही कर दीजिये। मुझे सही से समझ नहीं आता।
मोबाइल उसके हाथ से लेते हुए मैंने होशियारी से अपनी उंगलियों से उसकी उंगलियां दबा दीं और मोबाइल ले लिया। उतने से स्पर्श से ही मेरे शरीर में करेंट दौड़ गया था।
मैंने उसके मोबाइल में अपना नम्बर सेव किया और दूसरे दिन दोपहर तक बताने का पक्का वादा कर दिया।
वह बड़ी शालीनता से नमस्ते करके चली गयी। भाई साहब भी उसके साथ निकल गये।
हमारा ऑफिस भले ही एक था पर उस तीन मंजिला ऑफिस में मेरा कमरा ग्राउंड फ्लोर पर था और भाईसाहब का सबसे ऊपर की मंजिल पर।
आशा चली तो गयी थी पर मेरे दिल में हलचल मचा गयी थी। मेरी आंखों में उसका मस्त फीगर कौंध रहा था। रंग उसका भले ही सांवला था पर कटीले नैन-नक्श किसी को भी घायल कर देने की क्षमता रखते थे।
मैंने उसी दिन सारे कागजात को पढ़कर कायदे से समझ लिया। बहुत आसान काम था, कोई झंझट नहीं था। पर ऐसा मैं आशा से या भाई साहब से तो नहीं कह सकता था। उनके सामने तो मुझे समस्यायें ही समस्यायें गिनानी थीं तभी तो वह दबाव में आती।
दूसरे दिन लंच के समय मैं टहलते हुये एकान्त में निकल गया और उसके नम्बर पर फोन मिला दिया। फौरन फोन उठा जैसे वह मेरे फोन के इंतजार में ही बैठी हो।
“हैलो आशा जी नमस्ते।”
“नमस्ते भाईसाहब!”
“भई ये तो गलत बात है!” मैंने छेड़ते हुए कहा।
“क्या … क्या हुआ?” मेरी बात सुनकर वह सकपका गयी। उसकी बढ़ती हुयी घबराहट मुझे फोन पर ही महसूस हो गयी थी।
“अरे भाई मैं तुम्हारा जीजा होता हूं और तुम भाई साहब बोल रही हो। गलत बात है या नहीं। साली से तो मैं कुछ मजाक-वजाक कर सकता हूं पर तुम उसका मौका ही नहीं देना चाहतीं लगता।”
मेरी बात सुनकर उसे चैन आया कि फाइल में कोई समस्या नहीं थी।
“नहीं जीजा जी! ऐसी कोई बात नहीं है। आपको जीजा जी कहने की अभी आदत नहीं पड़ी सो अनजाने में मुंह से निकल गया।” उसने शर्माते हुये उत्तर दिया।
“तो ऐसा करो … शाम को साढ़े छः बजे के करीब मेरे घर आ जाओ। वैसे कहां पर रहती हो तुम?”
उसने मुझे अपने घर का पता बताया।
“अरे यह तो पड़ोस में ही है। कोई मुश्किल नहीं।”
“जी पर आपका घर कहां है?” उसने पूछा।
मैंने अपने किराये के घर का पता उसे बता दिया।
“जी जीजाजी! यह तो पास में ही है। मैं आ जाऊँगी। वैसे हो तो जायेगा न काम?”
“अरे होगा कैसे नहीं। अब अगर साली का काम भी नहीं हुआ तो लानत है मेरे ऊपर। थोड़ी समस्यायें हैं पर हो जायेगा।”
“कैसी समस्यायें?” वह फिर घबरा उठी।
“अरे कुछ नहीं। सब फोन पर नहीं बताया जा सकता न। आसपास कोई कुछ सुन ले और कहीं शिकायत कर दे तो मेरी तो नौकरी पर बन आयेगी। समझ रही हो न!”
“जी! आ जाऊंगी ठीक साढ़े छः बजे।” उसने उत्तर दिया। फिर जोड़ा- नमस्ते जीजा जी!
“नमस्ते साली जी! तो ठीक है। फिर शाम को मिलते हैं।” कहकर मैंने फोन काट दिया।
मेरा मन तो नहीं कर रहा था पर इससे अधिक उस समय बात नहीं कर सकता था। कोई भी ताड़ सकता था कि साला लड़की पटा रहा है और फिर लंच टाइम भी खत्म हो गया था और मुझे अपने पटल तक पहुंचना था।
वह शाम के अपने कहे मुताबिक ठीक साढ़े छः बजे मेरे घर पर मौजूद थी। मेरा घर सुविधाजनक है। मैं ऊपर की मंजिल में अकेला रहता हूं। दो कमरे, रसोई बाथरूम का सेट है। नीचे की मंजिल मकान मालिक के पास है पर उसमें हमेशा ताला बंद रहता है। मकान मालिक मेरठ में रहते हैं। मैं हर महीने उनके एकाउंट में किराये की रकम ट्रासफर कर देता हूं। मतलब पूरी प्राइवेसी है।
वह आई तो मैंने उसे कुछ फर्जी समस्यायें बताकर एक एप्लीकेशन लिखवाई। उसने मेरे बताये मुताबिक लिख दी। फिर बोली- अच्छा जीजा जी चलती हूं, फिर कब आना है?
“अरे अभी कैसे चलती हो। पहली बार आई हो, ऐसे ही भेज दूंगा तो कहोगी कि लो जीजा ने चाय तक को नहीं पूछा।” मैंने उसे हाथ पकड़ कर वापस बैठाते हुये कहा।
वह बैठ गयी। मैं कुछ देर उसका हाथ पकड़े ही रहा और उसके नर्म मुलायम हाथ का रोमांच अनुभव करता रहा। फिर हाथ छोड़कर उठते हुये बोला- बस पांच मिनट बैठो, मैं चाय बनाकर लाता हूं।
“अरे, आप क्यों बनायेंगे? मैं बना लाती हूं। बस आप मुझे बता दीजिये सब … कहां क्या है।”
मैंने फिर उसके कंधे पर अपने हाथों से दबाव डालते हुये थाड़ा सा मेजबानी की दुहाई दी। अंदर से तो यही चाहता था कि वह भी मेरे साथ रसोई में चले।
हम दोनों रसाई में आ गये। छोटी सी रसोई थी। बार-बार हमारे शरीर एक-दूसरे से लड़ रहे थे; बार-बार मेरा मन कर रहा था कि उसे दबोच लूं पर पहली ही बार में ज्यादा आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं हो रही थी। धीरे-धीरे पटाऊंगा, मैं सोच रहा था।
चाय पीते-पीते मैंने उसके बातों ही बातों में उसके बारे में तमाम जानकारियां ले लीं। यह तो कागजों से ही पता चल गया था कि वह विधवा है। उसका पति ब्लॉक ऑफिस में चतुर्थ क्लास कर्मचारी था। साल भर पहले अचानक एक एक्सीडेंट में उसकी मृत्यु हो गयी थी। उसी के फंड के सिलसिले में कागज थे।
हमारे सरकारी कार्यालयों में ऐसे केसों में भी बिना रिश्वत के काम नहीं होता और रिश्वत देने की उसके पास क्षमता नहीं थी। इसलिये वहां के बड़े बाबू उसे साल भर से टहलाये पड़े थे। तभी भाई साहब उसे मेरे पास यहां हेड ऑफिस लेकर आये थे।
अब छुपाऊं क्या, रिश्वत तो मैं भी लेना चाह रहा था। बड़े बाबू तो एक ही बार लेते पर मैं तो बार बार लेना चाह रहा था। पर मुझे विश्वास था कि मेरी रिश्वत उसे भी उतनी ही प्रसन्नता देगी जितनी मुझे। अभी उम्र ही क्या थी उसकी पचीस साल की। भरपूर जवानी बिना पति के कैसे कटती है यह बताने की जरूरत नहीं है। एक साल से प्यासी औरत को फुसलाना मुश्किल नहीं होने वाला था।
एक लड़की थी उसकी। केजी में पढ़ रही थी। चार साल हुये थे उसकी शादी को।
चाय पीकर वह फिर चलने के लिये उठी और सकुचाती हुई बोली- फिर कब आऊं मैं जीजा जी?
मैंने दो दिन बाद आने के लिये कह दिया।
“अच्छा नमस्ते जीजा जी। थैंकू!” वह अपनी अधकचरी अंग्रेजी में शुक्रगुजार हुई।
“अरे इसमें थैंक्यू की क्या बात है! तुम मेरी साली हो। तुम्हारा काम तो मुझे करना ही है। पर एक बात है …”
“क्या जीजा जी?”
“सालियां ऐसे थैंक्यू कहते अच्छी नहीं लगतीं।”
“मैं समझी नहीं जीजा जी।” साली सब कुछ समझ रही थी पर बन नहीं रही थी।
मैंने अपने हाथ फैला दिये और उसकी ओर आगे बढ़ गया।
वह एक बार तो सकुचाई पर पीछे नहीं भागी। दूसरे ही पल उसका गदराया हुआ यौवन मेरी बांहों में था।
“सालियां ऐसे कहती हैं थैंक्यू!” मैंने मुस्कुराते हुये उसकी आंखों में झांकते हुये कहा।
“शर्म लगती है जीजा जी।” कहते हुये उसने अपनी नजरें झुका लीं।
“अरे शर्म अभी दूर हुई जाती है। कहा नहीं है- जिसने की शरम, उसके फूटे करम।” कहते हुये मैंने अपने एक हाथ से उसकी ठुड्डी ऊपर उठाई। अब उसके होंठ बिलकुल मेरे होठों के करीब में थे। मैंने धीरे से उसके होठों पर झुका। उसने एक बार पलकें उठाईं पर फिर बन्द कर लीं।
मैंने अपने होंठ उसके होठों पर रख दिये और एक भरपूर चुम्बन ले लिया।
उसकी सांसें भी भारी होने लगीं। मेरी तो हो ही रही थीं।
“अब जाने दीजिये जीजा जी। नहीं तो बेकार में सासू मां चिंता करेंगी। बच्ची भी परेशान होगी।” उसने कहा। पर फिर भी उसने अपनी ओर से मुझे हटाने की कोशिश नहीं की थी।
दो दिन बाद वह फिर अपने वादे के मुताबिक मेरे घर पर हाजिर थी। उस दिन मैंने उसे पांच बजे ही बुलाया था।
उसके आते ही मैंने उसे बांहों में भर लिया। उसने कोई प्रतिरोध नहीं किया; हम दोनों एक दूसरे के होठों की शराब पीते रहे। मैं धीरे धीरे उसके पूरे शरीर पर अपने हाथ फिराने लगा था। मेरे अंदर नशा चढ़ने लगा था। उसका शरीर कम्बख्त था ही ऐसा मादक 36-26-36 की फीगर देख कर कौन पागल नहीं हो उठेगा।
वह भी साल भर की प्यासी थी। उसे भी मजा आ रहा था। मैंने रास्ता साफ देख कर उसकी साड़ी खोलना शुरू कर दिया।
“ये क्या कर रहे हैं?” उसने मदहोश से स्वर में कहा पर मुझे रोकने की कोई कोशिश नहीं की।
“वही जो करना चाहिये।” कहते हुए मैंने उसकी साड़ी उतार कर चारपाई पर फेंक दी और ब्लाउज के ऊपर से ही उसके बड़े-बड़े दूध थाम कर मसलने लगा।
उसके मुंह से कराहें निकलने लगीं, उसकी छाती उठने गिरने लगी।
फिर मैंने उसका ब्लाउज भी उतार दिया। अब वह सिर्फ पेटीकोट और ब्रा में मेरे सामने थी। मैंने अपने होंठ उसकी ब्रा से झांकती छाती पर रख दिये। और धीरे-धीरे नीचे सरकने लगा। उसके सारे बदन में रह रह कर सिहरन दौड़ने लगी। उसकी ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ और जोर होने लगी।
मैं घुटनों के बल नीचे बैठ गया और अपने होंठ उसकी नाभि पर रख दिये। अपने दोनों हाथों को नीचे लाते हुये मैंने उसका पेटीकोट ऊपर उठा दिया और उसकी नंगी जांघों पर हाथ फेरने लगा।
“अब मत तड़पाइये जीजा जी!” अचानक उसके मुंह से बेसाख्ता निकला।
अब क्या था। मैंने उसे कपड़ों से पूरी तरह आजाद कर दिया। आह क्या बदन था।
फिर मैंने उससे मेरे कपड़े उतारने को कहा। उसने शर्माते शर्माते अपना काम शुरू कर दिया। जैसे ही उसने मेरा अंडरवियर उतारा मेरा फुफकारता हुआ आठ इंच का अजगर अपनी जीभ लपलपाने लगा। उसने उसे कुछ पल सहलाया और फिर अचानक अपनी छातियों के बीच दबा लिया। आह मेरे लंड की तो लॉटरी निकल आई थी।
फिर उसने अचानक मेरे लंड को अपने मुंह में गपक लिया और मुख चोदन करने लगी। साली एक्सपर्ट थी। मुझसे रहा नहीं गया, मैंने कह ही दिया- पूरी एक्सपर्ट हो तुम तो साली जी।
उसका पूरा मुंह तो मेरे लंड से भर हुआ था जवाब कैसे देती, बस गूं-गूं कर पायी।
फिर मैंने उसे बगलों से पकड़ कर उठा लिया। और उसके पूरे बदन पर अपने हाथ और होंठ फिराने लगा।
वह सिसकारियां भरने लगी और वैसे ही सिसकारते हुये बोली- ये बहुत बड़े चुदक्कड़ थे। हमेशा रात-रात भर चोद कर मेरी भी आदत खराब करके खुद चले गये। अब आप ही बताओ मैं क्या करूं! साल भर से कैसे अपनी प्यास को कन्ट्रोल कर रही हूं, मैं ही जानती हूं।
“अरे तो अब कोई जरूरत नहीं कन्ट्रोल करने की।”
कहते हुये ही मैं अपनी पोजीशन में आ गया। आज तक तो मुझे अपना हाथ जगन्नाथ का ही सहारा था आज पहली बार मेरे लंड ने किसी जवान औरत की छाती में उछलकूद मचाई थी। फिर उसके मुंह में मस्ती की थी और अब उसकी चूत में धमाल मचाने जा रहा था।
उस दिन मैंने स्वर्ग का आनंद लिया। उसे भी मजा आया। पर उसने मुझे वीर्य चूत में नहीं निकालने दिया। पहले ही कह दिया था कि जैसे ही झड़ने लगूं बता दूं। तो जैसे ही मैं झड़ने को हुआ मैंने बता दिया। उसने झट लंड को अपने मुंह में ले लिया और चूस-चूस कर सारा वीर्य गटक गयी।
उस दिन के बाद से आज तक हमारे वैसे ही मस्त संबंध चले आ रहे हैं। पहले मैं कंडोम का इस्तेमाल करता था पर अब तो उसने ऑप्रेशन ही करवा लिया है तो कोई चिंता ही नहीं है।
उसका काम मैंने महीने भर में ही करवा दिया था।
कोशिश करके मैंने उसे अपने ही ऑफिस में संविदा पर लगवा दिया है। हमारी छुट्टी तो पांच बजे ही हो जाती है। पर आप तो जानते ही हैं सरकारी ऑफिसों का हाल। हम लोग चार बजे तक हर हाल में ऑफिस से निकल आते हैं। घर में अपनी सास को उसने सात बजे छुट्टी होने की बात बता रखी है। तो फिर तीन घंटे हम रोज पूरी मस्ती करते हैं। और हां इस बीच जल्दी से वह मेरे लंड के साथ-साथ मेरे पेट के खाने का भी इंतजाम कर देती है।
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