ससुराल में सलहज की जोरदार चुदाई- 1
(Salhaj Ki Desi Chut Hindi Kahani)
देसी चूत हिंदी कहानी में मैंने अपने साले की जवान बीवी को ससुराल में चोदा. पहली बार की चुदाई में उसने थोड़े नखरे किये थे पर दूसरी बार वो खुद से चुदना चाह रही थी.
दोस्तो, मैं राहुल अपनी सलहज एकता की चुदाई की कहानी में एक बार आपका पुन: स्वागत करता हूँ.
आपने मेरी पिछली सेक्स कहानी
सलहज के साथ ससुराल में किया डिंग डाँग
में पढ़ा था कि मैंने कैसे एकता को अपने जाल में फंसाया और उसकी चूत बजाई.
अब उससे आगे देसी चूत हिंदी कहानी कहानी का मजा लें.
मेरे लिए एकता के साथ मेरी ससुराल में सेक्स करना, वो भी जब सभी लोग घर में उपस्थित थे, बहुत खतरनाक था.
पर मैं एकता की चूत के लिए इतना लालायित था और एकता इतने रसीले बदन की मालकिन थी कि ये रिस्क तो कुछ भी नहीं था.
मैं इस खतरे को बार बार भी ले सकता था.
तो कहानी पर वापस आते हैं.
एकता की चुदाई के बाद मैंने थोड़ी देर आराम किया और जैसा उसे दादी से निर्देश मिले थे, वो सोने से पहले मेरे लिए एक ग्लास दूध ले आयी.
मैं पलंग पर लेटा एकता की पैंटी को सूंघ रहा था और उसमें से आ रही मादक खुशबू से उत्तेजित हो रहा था.
एक बार को तो एकता ने ही मुझे आश्चर्य से देखा, पर फिर वो शायद समझ गई कि मेरे दिल में क्या है और वो दूध का गिलास रखकर जाने लगी.
आप तो जानते ही हैं कि मैं ऐसे कहां मानने वाला था.
मैंने झट से एकता को लपका और उसे बिस्तर पर बैठा दिया- कहां जाती हो मेरी जान, अभी तो पूरी रात बाकी है … और जब रात बाकी है तो बात भी बाकी है.
इतना कहकर मैंने अपने होंठ एकता के होंठों पर रख दिए और उसके चूचों को मसलता हुआ उसके होंठों को चूसने, चूमने और काटने लगा.
एकता मेरा साथ देने में अब भी संकोच कर रही थी.
मैंने एकता से पूछा- अब क्या संकोच है?
एकता- मैं आपको सिर्फ दूध का गिलास देने आई हूँ. माताजी मेरा इंतज़ार कर रही होंगी. मुझे जाने दो वरना दिक्कत हो जाएगी.
मैं- और नीचे जो नागराज फन उठाए बैठा है उनका क्या? एक बार यह तुम्हें डस ले, फिर चाहे जहां चली जाना.
एकता- नागराज का क्या है? इन्हें कोई और काम कहां? मौका मिले तो ये किसी को भी डस ले. अभी ये सब बात करने का समय नहीं, मुझे जाने दो.
मैं- तो पहले ये बताओ कि नागराज की इच्छा कब पूरी करोगी? मेरी रानी साहिबा एक बार इसको अपनी चूत में लेकर गीला कर दें … फिर चली जाना.
इतना कहते कहते मैंने एकता की चोली में हाथ डालकर उसकी घुंडियों को मसलना शुरू कर दिया था.
एकता मेरे हाथों को झटकती हुई बोली- इनको तो जो चाहिए, देते रहो … फिर भी इनकी चाहतें कभी पूरी ना होंगी. इनका तो यही लगा रहेगा.
फिर एकता मुझे धक्का देकर जाने लगी.
मैं- मैंने तुम्हें बोला था, मेरा उद्देश्य क्या है. सब कुछ खराब मत करना. अगर हमने चार पांच बार सेक्स किया तो तुम्हारी गोद भर सकती है.
इतना कहकर मैंने अपने लंड को लुंगी से आज़ाद करके एकता को दिखाते हुए अपना दांव फिर से खेल दिया.
एकता मां बनने की लालच में आती हुई बोली- कल मौका मिला तो देखूंगी. अभी कुछ नहीं हो सकता.
मैं- मैं जानता हूँ कि अंगद की मम्मी बहुत गहरी नींद सोती हैं. एक घंटे में अगर तुम नहीं आईं, तो मैं तुम्हारे कमरे में आ जाऊंगा और तुम्हें गोद में उठाकर जंगल की सैर कराऊंगा. पर जाने से पहले अपनी चूत का पानी तो पिलाती जाओ … मेरे सपनों की रानी!
ये कह कर मैंने फिर से एकता को दबोच कर पलंग पर पटक दिया और उसकी टांगों के बीच में बैठकर उसकी चूत की तरफ बढ़ गया.
अब तक मैंने एकता के घाघरे को ऊपर उठाते हुए उसको नीचे से नंगा कर दिया था.
एकता नीचे से नंगी थी क्यूंकि उसकी पैंटी तो मेरे पास थी और शायद उसको दूसरी पहनने का मौका नहीं मिला था.
मैंने उसको थोड़ी देर पहले ही चोदा था पर मेरी नज़र उसकी चूत को फुर्सत से पहली बार देख रही थी.
मैंने झट से अपना मुँह एकता की चूत पर रख दिया और उसकी चूत को चूसने चाटने लगा.
एकता इस समय बिल्कुल सहज नहीं थी पर मेरी कहानी पढ़ रही सभी भाभियां अच्छी तरह से जानती हैं कि जब चूत पर किसी मर्द की जीभ चलती है, तो औरत के शरीर में एक करंट सा दौड़ जाता है और वो चरम सुख के सागर में गोते खाने के अलावा और कुछ नहीं कर पाती.
एकता इस समय ना चाहते हुए भी मेरे सिर को पकड़ कर सहलाने लगी और बीच बीच में वो ऐसे खुद में धकेलती, जैसे मुझे अपनी चूत में समां लेना चाहती हो.
मैंने एकता की चूत से अपना मुँह हटाया और जैसे उस पर अपने हाथ से हल्के थप्पड़ से जड़ने लगा.
उसकी चूत गीली हो चुकी थी और उसमें से एक बहुत मादक सुगंध आ रही थी.
मैं यूँ तो पागल हुआ जा रहा था पर मैंने एकता को देखा तो समझ आया कि सारा आनन्द आज उसके ही हिस्से में था.
वो जैसे किसी मतवाली की तरह इस सबका मज़ा ले रही थी और उसका पूरा बदन कांपने लगा था.
एकता जाने क्या क्या बड़बड़ाने लगी थी- ओह राजाआआ … उह … लाल्ल्ल्ला जी, आप ये क्या कर रहे हो … शीइइइ … ओहह … ऐसे ही करते रहो राहुल … रुकना नहीं … ओहह … ओहह … आपने तो मुझे पागल ही बना दिया … मैंने ऐसा कुछ आज तक महसूस नहीं किया … ओहह … ओहह … ओहह!
यही सब कहते हुए एकता का झरना बह निकला और मैं उसके पानी को पीने की नाकाम कोशिश करने लगा.
मुझसे जितना हुआ, मैंने पिया और बाकी कुछ उसकी जांघों से होता हुआ नीचे बह गया.
पूरे कमरे में उसके काम रस की मादक खुशबू फ़ैल चुकी थी.
सिर्फ कमरे में ही नहीं, मेरी रूह-ओ-जिस्म में भी उसके कामरस की खुशबू समां चुकी थी.
एकता ने थोड़ी देर में खुद को संभाला और मुझे हटा कर खड़ी होती हुई बोली- माता जी के सोने के बाद कोशिश करती हूँ. वैसे तो वो गहरी नींद सोती हैं, पर कभी कभी बीच में उनकी नींद खुल जाती है. हमें ये खतरा नहीं लेना चाहिए.
मैं लंड हिलाते हुए बोला- ये सब बातें बाद में … पहले ये बता कि क्या अंगद ने ये सब नहीं किया?
एकता- ये सब … मतलब?
मैं- चूत चाटना, पीना वगैरह …
एकता- नहीं नहीं … वो ये सब नहीं करते. वो तो बस चूम लेते हैं नीचे … और वो भी कभी कभी …
मैं- और कभी कभी?
एकता- अब मैं चलती हूँ … कहीं माता जी ना आ जाएं … आपको नहीं पता, पर मैं यहां हूँ तो बहुत खतरा है.
मैं- वो सब मैं पहले ही सोच चुका हूँ. सबसे बड़ा खतरा तो मैंने सबके सामने ही ले लिया था. अब सब काबू में है … जैसे तुम, तुम्हारी देसी चूत, तुम्हारे गुब्बारे … सब कुछ मेरे काबू में हैं. तेरा पानी तो बह गया, अब मेरे बारे में भी तो सोच ले मेरी रन्नो!
एकता- सोचा तो तब जाएगा, जब मौका होगा. अभी माता जी जागी हुई हैं और मेरा इंतज़ार कर रही हैं. अभी मुझे जाने दो वरना दोबारा मौका नहीं मिलेगा.
मैं- किसी ग़लतफहमी में मत रहना. अब तू मेरी बंदी है. चाहे दुनिया इधर की उधर हो जाए, मैं नहीं रुकने वाला मेरी रानी. अब जा और जल्दी से अपनी सास को ठिकाने लगा कर आ जा … और चाहे तो मेरे से नींद की गोली लेती जा और किसी चीज़ में मिला कर दे दे उनको. उसके बाद तो अगर मैं तुझे उनके बराबर में लिटा कर भी पेलूँगा, तो भी उनको भनक तक नहीं लगेगी.
एकता त्यौरी चढ़ाती हुई बोली- पगला गए हो क्या? ऐसा कुछ नहीं करना मुझे. वैसे भी वो खुद सोने के बाद किसी की सुध नहीं रखतीं. अब अगर आगे प्रोग्राम लगाना है, तो अभी मुझे जाने दो.
इतना कहकर एकता मुस्कुराती हुई कमरे से बाहर चली गयी और मुझे तड़पता हुआ, अपनी आग को खुद शांत करने के लिए वहीं छोड़ गई.
थोड़ी देर तो मैं एकता की पैंटी को सूंघता हुआ करवटें बदलता रहा.
पर जब मुझसे ना रह गया तो मैंने खुद अपने लंड को एकता की पैंटी में पकड़ कर मुट्ठी मारकर शांत किया.
आज जैसे समय रुक सा गया था और आगे बढ़ने का नाम ही नहीं ले रहा था.
एक एक पल पूरी पूरी रात के समान लग रहा था और मैं बार बार घड़ी की तरफ टकटकी लगाए एकता के आने का इंतजार कर रहा था.
एकता की कटीली जवानी को भोगने की तमन्ना अपने परवान पर चढ़ चुकी थी और अब इंतज़ार था तो बस उस पल का, जब मैं एकता के साथ प्यार करने वाला था.
यही सब सोचते सोचते जाने कब मुझे नींद आ गयी और जब मैं उठा तो रात के 2:00 बज रहे थे.
मैं उठ कर एकता के कमरे की तरफ बढ़ा और धीरे से उसके कमरे का दरवाजा खोलकर दबे पांव जाकर एकता को उठाने लगा.
अंगद की अनुपस्थिति में मेरी सास और एकता एक ही कमरे में सोते थे. इसी लिए मैंने एकता को उठाने के लिए पहले उसके मुँह पर हाथ रखा और फिर उसको उठाया, जिससे उसके मुँह से कोई आवाज़ ना निकले.
एकता मेरे हौसले को देखकर हैरान थी, पर शायद वो ये नहीं जानती थी कि चूत की भूख आदमी से क्या कुछ नहीं करा सकती.
मैंने एकता को इशारे से मेरे कमरे में आने को कहा.
परन्तु वो ऊपरी मन से मना कर रही थी.
पर उसकी आंखों की चमक से मैं समझ सकता था कि एकता भी डिंग-डोंग के इंतजार में हैं.
मैंने भी अपनी टशन दिखाते हुए एकता को इशारे से मेरे पीछे आने को कहा और मैं दबे पांव बाहर निकलकर अपने कमरे में चला गया.
मैं अपने कमरे में जाकर एकता का इंतज़ार करते हुए उसकी पैंटी से खेलने लगा और थोड़ी ही देर में मेरे सपनों की रानी एकता मेरे से अपनी चूत की ठुकाई कराने के लिए मेरे सामने खड़ी थी.
उसने झट से मेरे हाथ से अपनी पैंटी छीनने की कोशिश की पर नाकाम रही और सीधी अगर मेरी गोद में गिर गई.
मैंने बिना किसी देरी के एक बार फिर अपने होंठों को एकता के होंठों पर रख दिया.
मैं एकता के होंठों को बेदर्दी से चूसने लगा और बीच में तो एक बार मैंने उसके होंठों पर ज़ोर से काट भी लिया जिस पर वो तड़प कर रह गयी.
हमने करीब 10 मिनट तक एक दूसरे को चूसा होगा.
इस दौरान मैंने एकता के पूरे बदन का मुआयना अपने हाथों से किया और साथ ही उसकी नाइटी को उसकी कमर तक उठा दिया.
मुझे यह जानकर फिर से खुशी हुई कि एकता नीचे से अभी भी नंगी थी और उसने पैंटी नहीं पहनी थी.
मैं आराम से उसकी चूत को सहलाकर आगे की तैयारी में लगा था.
मैं इस बार एकता के साथ थोड़ा रफ होना चाहता था और मुझे पूरा यकीन था कि एकता को भी मेरा ये रुख बहुत पसंद आएगा.
हम अलग हुए तो मैंने एकता से अपने लंड को मुँह में लेकर गीला करने के लिए कहा जिस पर एकता ना-नकुर करने लगी.
मैंने एकता से पूछा कि क्या कभी उसने अंगद का बिल्ला मुँह में नहीं लिया?
एकता- कैसी कैसी बातें कर रहे हो आप? ये बातें भी कोई किसी से करता है क्या?
मैं- ये तो बस शुरूआत है मेरी जान … आगे आगे देखो होता है क्या?
एकता- मेरे से ऐसी कोई आशा मत रखना. मैं अपने और अंगद के बारे में आपको कुछ नहीं बताने वाली.
मैं- मेरा मन सिर्फ सुनने का नहीं, देखने का भी है और मैं जानता हूँ कि तुम मेरा दिल नहीं तोड़ोगी.
एकता मुँह बिचकाती हुई बोली- जाने क्या-क्या बोले जा रहे हो. मैं आपसे आपके और दीदी के बारे में पूछूं, तो आपको कैसा लगेगा?
मैं- तुम कहो तो अभी एक वीडियो भी दिखा देता हूँ. मैं और तुम्हारी दीदी तो कई बार सेक्स करते हुए वीडियो भी बनाते हैं.
एकता- मैं आपके जैसी बेशर्म नहीं और ना आपके जैसे खुले विचारों की हूँ.
मैं- चलो, ये सब बातें तो बाद में होंगी. अभी तुम मेरे लंड को मुँह में लो और गीला करो वरना अगर मैंने इसको सूखा ही तुम्हारी चूत में डाला, तो ये तुम्हारी चूत को ऐसे चीरेगा जैसे कोई चाकू मक्खन को चीरता है. वैसे भी तुमने आठ महीनों से सेक्स नहीं किया है, तो तुम उस बेरुखी को आसानी से झेल नहीं पाओगी.
एकता- जो बेरुखी आपने अभी 2 घंटे पहले दिखाई थी, अगर मैं उसे झेल गई तो अब कुछ नहीं होगा. अब आप चाहे चीरो या काटो, सभी चीजों का आनन्द मुझे ही आएगा. आपको तो सिर्फ मेहनत करनी है, वो भी एक मजदूर की तरह!
मैं- बड़ी मज़ेदार बातें कर रही है. शाम में तो ऐसे नखरे कर रही थी कि मुझे हाथ भी नहीं लगाने दे रही थी. चल अब बातें बहुत हो गईं मेरी रानी. अब चुपचाप लंड को मुँह में लेती है, या दो चांटे खाकर ही मानेगी.
इतना कहते कहते मैंने एकता के बालों को पकड़कर उसको अपने लंड की तरफ धकेला.
एकता को शायद मेरे से ऐसी बेरुखी की आशा नहीं थी, पर क्या आपको लगता है कि बिना बेरुखी के वो मुझे शाम में भी उसकी चूत को चोदने देती?
शुरू करने के लिए तो एक बार बेरुखी करनी पड़ती है.
थोड़ा समय लगा एकता को … मगर उसने मेरे लंड को चूमना शुरू कर दिया था.
जब इतना हो रहा था तो मैं आश्वस्त था कि अभी लंड को चाटा और चूसा भी जाएगा.
मैंने पहले ही आपको बताया कि आज मेरा मन थोड़ा रफ होने का था, तो मेरा पूरा ना सही, पर थोड़ा तो जंगली होना बनता था.
खैर … देखते ही देखते एकता मेरे लंड को चाटने लगी थी और मैंने उसकी नाइटी में हाथ डालकर उसके नंगे चूचों से खेलना शुरू कर दिया था.
मेरे मन में शरारत सूझी और मैंने एकता की घुंडियों को ज़ोर से पकड़ कर मसल दिया.
इससे एकता चिहुंक उठी.
एकता मुझे देखते हुए गुस्से से पूछने लगी- ये क्या कर रहे हो? मुझे इस सब की आदत नहीं … आप कोई काम आराम से नहीं कर सकते क्या?
मैं- मन तो आज बहुत जंगली है मेरी जान!
एकता- तो अपना जंगलीपन कहीं और जाकर दिखाओ. यहां यह सब नहीं चलने वाला राहुल जी … और आप चाहें तो दादी को भी आवाज दे सकते हो. देख लो खुद … आपने मुझे क्या से क्या बना दिया है!
इतना कह कर एकता मुस्कुराने लगी.
मैं आंख चढ़ाते हुए बोला- मेरी चूत और मुझको ही म्याऊं! अभी तो पिंजरे से निकली भी नहीं है और पंख फड़फड़ाने शुरू!
एकता- आपने ही तो कहा, जब करना है तो क्यों ना इसे मन से किया जाए. मैंने आपकी बात के बारे में बहुत सोचा और यही मन बनाया कि अगर इससे मैं मां बन जाती हूँ तो यह मेरे लिए एक आशीर्वाद होगा.
मैं- ऐसी बात है तो मेरे को थोड़ा जंगली होने से क्यों रोक रही है … करने दे ना!
एकता- अगर मैंने आपको खुली छूट दे दी, तो आप पता नहीं क्या कर दोगे! भूलना मत, घर में और लोग भी हैं.
मैं आंख मारते हुए बोला- जो भी करूँगा, उससे तुम्हें मज़ा बहुत आएगा. तुम अपने जीजा को इस जिंदगी में तो नहीं भूलने वाली!
एकता- आपने ऐसा कोई काम किया ही नहीं कि आपको भुलाया जाए.
उसके इतना कहते कहते मैंने फिर से एकता को अपने लंड की तरफ धकेला और इस बार अपना पूरा लंड एकता के मुँह में ठूंस दिया.
एकता को इसकी बिल्कुल उम्मीद नहीं थी और अब जब मेरा लंड उसके गले में जा धंसा था, तो वो हूं हूं करके तड़प रही थी.
एकता की खांसी उसके गले में ही घुट कर रह गयी और उसकी आंखें लाल हो चली थीं.
कुछ ही देर में जब एकता की आंखों से आंसू टपके, तब कहीं जाकर मैंने एकता के मुँह से अपना लंड बाहर निकाला.
इसके बाद एकता लम्बी लम्बी सांस लेती हुई अपना मुँह ढक कर खांसने लगी.
मुझे एकता सवालिया निगाहों से देख रही थी और मेरे चेहरे पर एक अलग सी ख़ुशी थी.
एकता चाहती तो होगी कि मेरी गांड पर लात मारे और कमरे से बाहर चली जाए, पर अब उसकी डोर मेरे हाथों में थी … और उसको इस बात का पूरा आभास भी था.
एकता की सांसों के साथ उसकी छातियां भी ऊपर नीचे हो रही थीं और उसके मोटे ताज़े चूचे जो अभी तक उसकी नाइटी की कैद से आज़ाद नहीं हुए थे, मुझे बहुत लुभा रहे थे.
उसकी आंखों से आंसू और मुँह से राल बह रही थी … और ये सब मुझे बड़ा सुख दे रहा था.
अब मैंने एकता को उसकी नाइटी की कैद से आज़ाद किया और पहली बार वो मेरे सामने पूरी नंगी थी.
एकता का नंगा बदन ऐसे था जैसे बनाने वाले ने बहुत फुर्सत से उसको तराशा हो.
रसीला बदन, मोटे चूचे, बड़ा काला सिक्का, उनके बीच में कोमल से निप्पल. उसके शरीर का हर कटाव जैसे एकदम परफेक्ट. गोल सुन्दर नाभि, साफ़-सोना और चिकना बदन, घुमावदार उभरी हुई गांड, हल्का काला रंग लेती हुई गुलाबी चूत जिस पर हल्के हल्के बाल थे.
सुडौल टांगें और क्या क्या बताऊं यहां?
मुझे तो लिखते हुए इस समय भी ऐसा लग रहा है, जैसे मैं उसको साक्षात अपने सामने देख रहा हूँ.
एकता जरूर ये सोच रही होगी कि जाने अब ये जंगली और क्या क्या करेगा और अन्दर ही अन्दर उसकी कंपकंपी भी छूट रही होगी.
मुझे भी ये सब सोचकर बड़ा रोमांच हो रहा था कि एकता इस समय दोनों तरह की अनुभूति ले रही है, मतलब सुख की भी … और डर की भी.
जैसे कोई लड़की अपनी सुहाग की रात के समय रोमांचित तो होती है, पर उसको अपनी हिंदी चूत के फटने का डर भी सता रहा होता है.
अब मैंने एकता को थोड़ा रानियों की तरह प्यार करने का मन बनाया.
दोस्तो जो मैं एकता के साथ करने वाला था, उसे देसी चूत हिंदी कहानी कहानी के अगले हिस्से में तफसील से लिखूंगा.
मेरी कहानी के इस भाग पर मुझे आपके ईमेल और कमेंट्स का बेसब्री से इंतजार रहेगा.
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देसी चूत हिंदी कहानी का अगला भाग: ससुराल में सलहज की जोरदार चुदाई- 2
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