जीजू

(Jiju)

कम उमर से ही मेरी सहेली ने मुझे यौन शिक्षा में प्रवीण कर दिया था। मैं चूत, लण्ड, चूचियों के बारे में सब जानने लग गई थी। उसके कम्प्यूटर पर अकसर चुदाई के सीन भी देखती रहती थी। मोमबत्ती से मजा लेना मेरी सहेली ने मुझे सिखा दिया था।

उन्हीं दिनों दीदी को देखने एक लड़का हरियाणा से आया हुआ था। बड़ा ही सुन्दर और बेहतरीन जिस्म का मालिक था वो। वो तो मेरी दीदी को देखते ही उस पर फ़िदा हो गया था। मैं भी दीदी की तरह ही सुन्दर दिखती थी। उसकी नजर मुझ पर भी पड़ी। उसकी टेढ़ी नजर मैं तुरन्त पहचान गई।

पापा ने उसे हमारे गेस्ट-रूम में ठहराया था। होने वाले जीजू को खाना देना, नाश्ता देना मेरा ही काम था। मुझे छोटी जान कर वो कभी कभी मुझे अपनी तरफ़ खींच कर प्यार भी कर लेता था। उसके इस व्यवहार से मुझे बहुत आनन्द आता था।

एक बार सवेरे जब मैं जीजू को नाश्ता देने गई तो मेरा दिल धक से रह गया। जीजू स्नान घर का दरवाजा खोले शावर में स्नान कर रहे थे। वो बिल्कुल नंगे थे। उनका मोटा और लम्बा लण्ड, सुपारा बाहर निकला हुआ, नीचे खड़ा हुआ झूम रहा था। उसका जिस्म गोरा और मांसल था। कसरती लगते थे वो ! आह ! कितना प्यारा लण्ड था !!! मैंने जिन्दगी में वास्तविक लण्ड पहली बार रूबरू देखा था। अचानक मेरी तन्द्रा टूटी और मैंने अपने कदम बाहर खींच लिये। अब बाहर से मैंने दरवाजा खटखटाया। अन्दर बाथरूम का दरवाजा बन्द होने की आवाज आई।

“नाश्ता लाई हूँ !”

जीजू की आवाज आई,”अन्दर आजा यशोदा, वहीं रख दे !” जीजू की आवाज ही मुझे सेक्सी लगने लगी थी।

मैं अन्दर आ गई और जीजू के बाहर निकलने का इन्तज़ार करती रही। मेरे मन में तो बस उनका लण्ड ही बस गया था। मैंने अपनी आँखें बन्द कर के अपनी चूत दबा ली।

“क्या हो गया यशोदा? बड़ी बेताब लग रही हो?” जीजू ने मुझे चूत दबाते देख लिया था।

“बस जीजू, कुछ देख लिया था और अब उसे लेने की इच्छा होने लगी है।” मैंने सोचा कि उस समझ में नहीं आयेगा।

पर वो तेज था, उसे क्या पता था कि मैं तो इस मामले में दीदी से भी आगे हूँ।

“हमें बताओ, हमारी साली को क्या चाहिये? हम देंगे !”

“बस जीजू आप ही दे सकते हो !” और मैंने एक रहस्मयी मुस्कान से उसे देखा।

वो शायद अन्दर चडडी नहीं पहने थे। उसका पाजामा लण्ड की जगह से उभरा हुआ था। मैं पकड़ी गई उसके लण्ड को निहारते हुये। सच पूछो तो वो मुझे ही निहार रहे थे। वो मेरे से चिपक कर बैठ गये। मैने भी कसर नहीं छोड़ी ! उसकी जांघों से सट कर उसके लिये चाय निकालने लगी। तभी उनकी एक बांह हमेशा की तरह मेरी कमर से लिपट गई और वो मुझे प्यार करने लगे। मेरी नजरें तो अब बदल चुकी थी, मैंने मौके का फ़ायदा उठाया। मैंने उनके होंठों पर चूम लिया।

भला वो कहाँ पीछे रहते, उन्होंने तो अपने होंठ मेरे होंठों से ही चिपका दिये।

मैं तो अपने होश ही खो बैठी। मुझे एक सुनहरा अवसर मिल रहा था। मैंने मौका हाथ से जाने नहीं दिया। इस पार या उस पार ! बस मेरा नन्हा सा नासमझ दिमाग यही सोच पाया।

मैंने उनके पजामे में हाथ डाल दिया, कड़क लण्ड को मैंने पकड़ लिया।

वो हतप्रभ से रह गए। उन्हें भी शायद लण्ड पर एक मीठा सा सुखद अहसास हुआ होगा।

“यशोदा, तुम कितनी शरीर हो, कितनी मस्त हो !” जीजू के स्वर में वासना का पुट था।

उनका हाथ मेरी छोटी छोटी छातियों के उभार पर आ गया। मैंने भी अपने नीम्बू सामने की ओर उभार दिये। मेरी चूचियाँ उन्होंने धीरे से सहला दी। मेरे मुख से एक सिसकारी निकल पड़ी।

“जीजू, मैंने आपका लण्ड देख लिया था, बस वही चाहिये !” मैंने वासना से भर कर कहा।

मैंने उनका लण्ड ऊपर-नीचे कर के मुठ सा मारा।

“देख यशोदा, मजाक नहीं करना, माना कि जीजा साली का रिश्ता ऐसा ही होता है, पर बस मजाक को मजाक ही रहने दे।”

मेरे नासमझ दिमाग को एक झटका सा लगा। सही तो कह रहा है, वो तो दीदी के लिये आया है, मैं यह क्या करने लगी थी। मुझे बड़ी शर्मिन्दगी सी हुई। मैं अपना चेहरा छुपा कर कमरे से भाग आई। बाहर आते ही देखा कि दीदी कालेज जाने को स्कूटी के पास खड़ी थी। मुझे देख कर वो गेस्ट रूम में आ गई। मुझे उसने देखा, मैंने वहाँ से जाने का बहाना किया। वो कमरे में चली गई। मैं झट से वापस आई और झांक कर देखा। जीजू दीदी को चूम रहे थे। शायद दीदी के मम्मे भी दबा रहे थे। मेरे दिल में एक मीठी सी टीस उठ गई। मैं दौड़ कर अन्दर कमरे में आ गई और लम्बी लम्बी सांसें लेने लगी, दिल धाड़-धाड़ कर के धड़क रहा था। लगता था कि दिल गले में आकर अटक गया है। मैं जा कर बिस्तर पर औंधे मुह लेट गई। तभी पापा और मम्मी भी अपने काम पर जाने लगे।

“यशोदा, संजय का ख्याल रखना, हम दो बजे तक आ जायेंगे।”

मैं चौंक गई। अब घर में कोई नहीं था। मेरे दिल में तरह तरह के ख्याल आते रहे। दिल वासना से भर उठा। मेरा नासमझ दिल जीजू के साथ के लिये तड़प उठा। घर में भी कोई नहीं था। उसका लण्ड मेरे दिलो-दिमाग पर छाता गया। मेरी चूत गीली होने लगी। मैं मन से विवश हो गई। मेरे कदम स्वतः ही गेस्ट रूम की ओर बढ़ गये।

मेरे दिल में चोर था, इसलिये मेरी एकदम से हिम्मत नहीं हुई कमरे में कदम रखने की। बस दिल जोर जोर से धड़क रहा था। शायद पहली बार ऐसा ही होता होगा। मैंने दरवाजा खटखटाया। जीजू एक लुन्गी में सामने थे।

मैं अपना सर झुकाये अन्दर आ गई। जीजू ने कमरा बन्द कर दिया और चिटखनी लगा दी। मेरा दिल एक बार फिर धड़क उठा। तभी जीजू ने पीछे से आकर मेरी कमर थाम ली और अपने से चिपका लिया।

आह ! उन्होंने अन्दर चड्डी नहीं पहनी थी शायद ! उनका ताकतवर लण्ड मेरी गाण्ड में चुभने लगा था।

“तो यशोदा, तुम मानोगी नहीं ! बोलो, मुझसे क्या चाहती हो?”

“जीजू, कुछ नहीं, बस यूँ ही मुझे थामे रहो !” मैं सिसक उठी।

“पर तुम सिर्फ़ थामे रहने के लिये तो नहीं आई हो ना, अब आई हो तो मुझे भी मस्ती लेने दो।”

मेरी गाण्ड में जीजू का लण्ड जैसे अन्दर ही घुसा रहा था। मेर चिकना सफ़ेद पजामा लण्ड के साथ मेरी गाण्ड में घुसा जा रहा था। उसका हाथ अब मेरे सफ़ेद कुरते में घुस गया और कमर को सहलाते हुये मेरी छातियों की ओर बढ़ने लगा।

मैं किसी मर्द के पहले स्पर्श से पूरी ही कांप गई।

एक मधुर सा, गुदगुदी भरा मीठा सा अनमोल अहसास !

मैं निहाल हो गई।

मेरे स्तनों की नरम घुण्डी जो अब कड़ी हो गई थी, उसे जीजू की अंगुलियाँ हौले-हौले मसल रही थी। तेज मीठी गुदगुदी के कारण मेरी चूत में जैसे आग लग गई।

“यशोदा, क्या इरादा है ?” उसकी गरम सांसें मेरे गले से टकरा रही थी।

“जीजू, अपना मर्द मेरी मुनिया में पिरो दो, जीजू, मुझे मार डालो बस, अब नहीं रहा जाता है।” मेरे मुख से अचानक यह सब जाने कैसे निकल पड़ा। चुदाने की चाह मुझे अंधा किये दे रही थी।

“पर यशोदा तू तो छोटी है, अभी नहीं !”

मैंने जल्दी से अपना पजामा उतार दिया और अपनी चूत उसके सामने कर दी, उसमें प्यार की भूखी योनि से अपना बाहर निकलता हुआ रस दिखाया, योनि के द्वार को खोल कर दिखाया। मेरी बेशर्मी पर एक बार तो जीजू का सर भी झुक गया, उसने अपना मुख दूसरी तरफ़ कर लिया।

“ये सब क्या छोटे हैं जीजू, एक बार अपने डण्डे को पास तो लाओ, सब भूल जाओगे !”

मेरे बोलों से, मेरे चेहरे से, मेरे हावभाव से सिर्फ़ वासना के ही भाव छलके जा रहे थे। वो भी कोई दिल के इतने पक्के नहीं थे कि सामने खड़ी नंगी लड़की को यूँ ही छोड़ दें। उन्होंने मुझे उठाया और अपने बिस्तर पर पटक दिया। अपने बालों पर लगाने वाला तेल निकाला और मेरी गाण्ड पर चुपड़ दिया। दूसरे ही क्षण वो मेरी पीठ पर सवार थे। मेरी तेल से सनी हुई गाण्ड में उनका लण्ड प्रवेश करने लगा था। दूसरे ही पल उसका सख्त लण्ड मेरी गाण्ड में पूरा उतर गया था।

“यशोदा तकलीफ़ तो नहीं हुई?” जीजू संभल कर गाण्ड चोद रहे थे।

“नहीं, मजा आ रहा है, मैं तो मोमबत्ती से… ” मैं तो दूसरी दुनिया की सैर कर रही थी।

“ओह, फिर ठीक है।”

जीजू ने मेरी गाण्ड चोदना आरम्भ कर दिया था। मैं आनन्द से मस्त हुई जा रही थी। मेरी कसी हुई गाण्ड ने उनका रस जल्दी निकाल दिया था।

अब दौर शुरू हुआ लण्ड चुसाई का !

फ़िल्मों की तरह मैंने रण्डियों के स्टाईल में उसका लण्ड खूब चूसा, उनके अण्ड भी खूब चाटे। जीजू ने भी मेरी छोटी सी चूत का चूस चूस कर खूब आनन्द लिया। मेरे नीम्बुओं का भी रस खूब चूसा। जब वो फिर से मस्त हो उठे तो मैंने अपनी प्यासी चूत उनके सामने न्यौछावर कर दी।

उनका मोटा लण्ड मेरी नर्म और गीली, प्यार के रस से भरी हुई चूत के अन्दर सरक गया। उन्होंने बड़ी सावधानी से लण्ड को धीरे धीरे अन्दर ठेला।

“जीजू, यूँ क्या, मस्त चोदो ना !” मेरी बेताबी बहुत बढ़ गई थी।

“अरे झिल्ली फ़ट जायेगी तो बहुत दर्द होगा !”

“झिल्ली… मेरे जीजू, वो तो कभी की मोमबत्ती की भेंट चढ़ चुकी है ! अब तबीयत से मारो !” मैंने बेशरमी से उसे लण्ड पेलने को कहा।

जीजू तो हंस दिये,”मैं तो कब से यही सोच रहा था कि कच्ची कली को कली ही रहने दूँ, पर तू तो … भई वाह… “

अब उनका लण्ड मेरी चूत में बड़ी तेजी से चलने लगा। मैं अपनी जिन्दगी का पहला लण्ड खा रही थी। मुझे आज मोमबत्ती और लण्ड में फ़र्क नजर आ गया था। वो कहाँ पत्थर जैसी, इधर उधर लग भी जाती थी और यह लण्ड, मेरी मां ! इतना प्यारा, ऊपर से नर्म, अन्दर से पत्थर जैसा कड़क और गर्म, सुपारा चोदते समय दाने को मस्त रगड़ मारता था।

फिर जीजू ने मेरी छाती को मसल दिया, मेरे अंग-अंग की मालिश सी कर दी। यह सब मोमबत्ती में कहाँ। मर्द की चुदाई तो बनी ही लड़कियों के लिये है। वो हमें भचाभच करके जब चोद देता है तो फिर से चुदाने की इच्छा होने लग जाती है।

मैं उस दिन जीजू से दो बार चुदी और एक बार मस्त गाण्ड भी उन्हें भेंट चढ़ाई।

अब जीजू तो मुझसे जिद करने लगे कि शादी करूंगा तो मेरे से ही। मैं उन्हें समझाती रही कि मेरी दीदी तो मुझसे भी मस्त हैं। उसकी ताजी सील आपको तोड़ने को मिलेगी। फिर मैं तो आपकी गोदी में हूँ ही, जब चाहे चोद लेना ! वैसे भी साली तो आधी घर वाली होती है, आप पूरी मान लेना।

जीजू के लिये तो मेरी बातें मज़ाक सी हो गई, दिन भर वो मुझे चुटकी ले कर कहते ही रहे- आधी नहीं पूरी घर वाली, गोदी में बैठेगी।

मैं तो शरमा कर बस भाग जाती।

What did you think of this story??

Click the links to read more stories from the category जीजा साली की चुदाई or similar stories about

You may also like these sex stories

Download a PDF Copy of this Story

जीजू

Comments

Scroll To Top