चिरयौवना साली-19
(Chir Yauwna Sali- Part 19)
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टीवी देखते देखते और एक दूसरे के साथ मस्ती करते सात बज गए! मेरी माहवारी के कारण कमर और पेट दुःख रहा था तो जीजाजी ने एक दर्द निवारक गोली दी!
मैं गोलियाँ कम लेती हूँ पर उन्होंने जोर देकर दे दी। थोड़ी देर बाद वास्तव में उसे मुझे राहत मिली!
फिर उन्होंने मुझे उल्टा लिटा कर मेरी कमर पीठ जांघों पर पैर रख कर दबाया इससे मुझे बहुत आराम मिला, कुछ देर हाथों से भी मालिश क़ी। मैं उनके सेवा भाव पर फ़िदा हो गई!
थोड़ी देर बाद हम खाना खाने गए और फिर कमरे में आकर अपने कपड़े बदल लिए यानि मैंने मैक्सी और उन्होंने बनियान-लुंगी क्योंकि अब हमें बाहर तो सुबह ही जाना था!
उस गोली से और जीजाजी क़ी सेवा से अब मेरा शरीर नहीं दुःख रहा था और में अपने को तरोताजा महसूस कर रही थी।
जीजाजी के हाथ मेरे स्तन सहला रहे थे, मेरी पीठ पर फिर रहे थे और वे मेरे स्तन भी चूस रहे थे, कभी दायाँ तो कभी बायाँ! वे मेरे स्तनों क़ी घुन्डियों को हल्के हल्के काट भी रहे थे इसलिए उनमे हल्का दर्द और मेरे जिस्म में करेंट साथ ही आ रहा था!
मुझे सब पता था कि आगे क्या होने वाला है, मेरी भी चुदाई क़ी इच्छा हो गई थी जीजाजी के लगातार उकसावे पर!
आखिर मैंने अपनी सेक्सी आवाज़ में उनसे पूछ ही लिया- आप फिर चोदोगे मुझे?
तो वे बोले- हाँ मेरी जान! अब तुझे चोदे बिना तो मुझे नींद ही नहीं आयेगी! थोड़ा दर्द मेरे लिए और सहन कर ले! मेरे लिए चुदाई नींद क़ी गोली क़ी तरह है, चुदाई नहीं करूँगा तो मुझे नींद ही नहीं आएगी!
अब मैं उन्हें क्या कहती, जबकि मेरा भी मन कर रहा था कि जीजाजी अपना डंडा मेरी चूत में फंसा कर मुझे खूब रगड़ें!
क्योंकि खून निकलने के कारण औरत कुछ अजीब सा महसूस करती है और माहवारी से पहले और माहवारी के समय औरत के चुदाने क़ी इच्छा बढ़ जाती है, मुझे तो माहवारी के एक दिन पहले जब चुदाने क़ी बहुत इच्छा होती है तब मुझे पता चल जाता है कि मेरी माहवारी आने वाली है इसलिए माहवारी में सिर्फ आदमी को ही खून देख कर घृणा हो जाती है बाकी औरत को इतनी परेशानी नहीं होती है चुदाने में!
मैंने ऐसे देखा जैसे मैं उनके काम के लिए ही तैयार हुई हूँ, मेरी तो कोई जरूरत नहीं है, फिर मैंने सवधानी से चड्डी और कपड़ा हटाया, अबकी बार कपड़े के खून लगा हुआ था पर जीजाजी तो साण्ड क़ी फुंफ़कार रहे थे, उन्हें कुछ नहीं दिख रहा था, उन्होंने फटाफट अपने कड़क हो चुके लण्ड पर कंडोम चढ़ाया और मेरी टांगों के बीच में आ गए।
मैं टांगें पहले से ऊँची करके लेटी थी, उन्होंने सुपारे को मेरी चूत के छेद में फंसा दिया। उनके लोहे क़ी तरह हो चुके लण्ड का आभास पाकर मुझे पता चल गया कि अब मेरी खैर नहीं है, पर मुझे चूत में मचमची भी हो रही थी यानि चूत लण्ड के लिए लपलप कर रही थी!
वे थोड़ी देर रुके तो मैंने नीचे से धक्का मार दिया और उनका लण्ड थोड़ा और अन्दर सरक गया जीजाजी को मेरे उतावलेपन का पता चल गया इसलिए उन्होंने बिना किसी चेतावनी के दांत भींच कर एक जोरदार धक्का मेरी चूत में लगा दिया।
अचानक धक्के से मेरी कराह निकल गई और मैं आ…ह्ह्ह्हह और अपनी भाषा में दू…खे…रे… धीरे कर रे…म्हारा भोष्या ने फाड़ी काई रे…इन्हें फाड़ न्हाकी तो पाछे थने ही मजो कोणी आई इरे वास्ते इने प्रेम उ चोद और हावल काम ले!
जीजाजी ने भी कहा- म्हारी जान इ भोष्या ने इ डंडा उ ठोके जित्तो ही थोड़ो प्रेम उ मजो कोणी आई इरे वास्ते इन्हें आज तो इ डंडा उ फोडन दे!
और वे गपागप अपना लण्ड मेरी चूत में पेलते रहे, क्या मजाल कि उनके चोदने का अंदाज़ धीरे हुआ हो, वे दूने जोश में मेरी चुदाई करते रहे।
मैं वैसे तो जीजाजी क़ी इज्जत करती हूँ पर चुदाई के समय उनको सम्मान से नहीं बोलती हूँ, कभी कभी तो गालियाँ भी निकालती हूँ, वे भी गालियाँ निकालते हैं माँ बहन की, इससे सेक्स का मज़ा बढ़ जाता है हम राजस्थानी में चुदाई क़ी बातें करते रहे और उनकी चुदाई तूफानी रफ़्तार से चलती रही।
कमरा खप खप छप छप क़ी आवाजों से गूंज रहा था, मेरा पानी दो-तीन बार छुट चुका था।
आखिर जीजाजी ने भी झटका खाया और फिर 8-10 झटके उन्होंने धीरे धीरे लगाये अपना पानी पूरा झाड़ने के लिए और फिर हट गए, सावधानी से कंडोम निकला और गांठ लगा ली।
अब मैंने चूत क़ी तरफ देखा, इतनी देर चुदाई के कारण उसका मुँह खुला हुआ था और खून बहकर जांघ पर आ गया था और नीचे चादर पर भी एक बड़ा धब्बा खून का लग गया था!
हमने अपने गुप्तांग धोये चादर को उल्टा किया और चिपक के सो गए। थके हुए थे इस मेराथन चुदाई से इसलिए जल्दी ही नींद आ गई।
सुबह देर तक हम चिपक कर सोये रहे! अब इस हालत में चुदाई का कार्यक्रम तो होना नहीं था, ना उनका मन हो रहा था और ना ही मेरा!
वास्तव में माहवारी के समय औरत की हालत ख़राब हो जाती है और उसकी शक्ल ही बिगड़ जाती है, उसका मन नहीं लगता है और वो कुछ चिड़चिड़ी हो जाती है!
पर हम सच्चे प्रेमी की तरह चिपक के सो रहे थे, मुझे पता था मेरे बाल बिखर गए है और सुबह चेहरे का रंग भी उड़ा उड़ा सा था।
मुझे पता था कि जीजाजी को माहवारी के खून की बदबू भी आ रही होगी पर उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी।
सारी रात उन्होंने मुझे अपने सीने से चिपका कर सुलाया था और कई बार उन्होंने मेरे बालों, चेहरे और पीठ पर प्यार से हाथ फेरा था और मेरे साथ बिल्कुल किसी छोटे बच्चे की तरह व्यव्हार कर रहे थे, उनका हाथ रात में एक बार भी मेरे स्तन और जांघों पर नहीं गया था। उन्होंने चुम्बन भी मेरे सर और ललाट पर किए थे!
मैं उनकी एक नई छवि देख रही थी जो अपना सपना टूट जाने पर भी नाराज़ नहीं हुए थे और मैं उनकी इस अदा पर बलिहारी हुई जा रही थी!
मैं भी किसी छोटे बच्चे की तरह उनसे चिपक रही थी जैसे कोई छोटी बालिका अपनी माँ से चिपकती है! और वे भी मेरा दुलार कर रहे थे, एक दो बार उठ कर उन्होंने ग्लास भरकर पानी भी पिलाया और मुझसे तबियत के बारे में भी पूछा!
आठ बजे हम नींद से जगे, मैं उठ कर बाथरूम जाकर आई तब तक जीजाजी ने चाय का ऑर्डर दे दिया, मुझे अपने हाथों से चाय डाल कर दी!
मैं बस मोहित नजरों से उन्हें देख रही थी और किसी छोटे बच्चे की तरह इतरा कर बात कर रही थी और सोच रही थी कि इनकी सेवा का फल इन्हें जरूर देना है भले ही मुझे कितना ही दर्द हो!
पर अभी उनका कोई ऐसा इरादा नहीं लग रहा था।
मैं बाथरूम में फ़्रेश होने चली गई, जीजाजी पहले ही हो गए थे। मैं आई, तब तक जीजाजी ने मेरा मनपसंद नाश्ता मेज पर लगा दिया था यानि काजू की कतली और बीकाजी क़ी नमकीन!
मुझे भूख लग रही थी, हमने नाश्ता किया एक दूसरे को अपने हाथों से खिला कर!अब वे मुझे जीजाजी क़ी जगह मेरे पति जैसे लग रहे थे, अब मुझे कोई शंका या संकोच उनसे नहीं हो रहा था!
मैं कोई भी बात उनसे कर सकती थी जो अपने पति से भी नहीं करती थी, जैसे मैंने उन्हें कहा- मेरी चूत कभी लाल हो जाती है और खुजली भी चलती है!
तो वे बोले- शायद तुम्हें कंडोम से एलर्जी है, मैं अच्छी किस्म के कंडोम लूँगा!
फिर उन्होंने पूछा- तुम चूत में ज्यादा साबुन तो नहीं लगाती?
मैंने कहा- हाँ, लगाती तो हूँ!
तो बोले- फिर साबुन के कास्टिक की वज़ह से खुजली होती है, कई दिन बाद और काफी ज्यादा चुदाने से तेरी चूत में कट लग जाते हैं फिर साबुन से खुजली होनी शुरू हो जाती है। तुम चूत में साबुन मत लगाना, मैं यह ट्यूब दे रहा हूँ क़ुदार्मिस इसे अपनी चूत पर लगाना और सर्तिजिन गोलियाँ दे रहा हूँ इन्हें रोज़ एक लेना।
मैंने कहा- ठीक है!
जीजाजी कई तरह की दर्द, बुखार आदि की गोलियाँ रखते है और उन्हें कुछ इनका ज्ञान भी है क्यूंकि कई दवा की दूकान वाले और डॉक्टर इनके दोस्त हैं!
मैंने वह ट्यूब ले ली और माहवारी के बाद लगाने का वादा भी कर लिया!
जीजाजी ने कहा- माहवारी में वैसे भी सारी एलर्जी निकल जाती है!
मैंने कहा- ठीक है।
फिर जीजाजी नहाने चले गए!
जीजाजी के बाद मैं नहाने गई और खूब देर तक मल-मल कर नहाई! गर्म पानी से अच्छी तरह से चूत को भी धोया!
अब मैं जीजाजी को उनकी सेवा का ईनाम देना चाहती थी पर मुझे पता नहीं था कि वे उत्तेजित होंगे या नहीं। मेरी चुदाने की कोई इच्छा नहीं थी पर मैं उन्हें उत्तेजित कर संतुष्ट करना चाहती थी!
पर मुझे पता था कि मेरी इस हालत पर वे सेक्स करने की इच्छा जाहिर नहीं करेंगे पर मुझे उनकी कमजोरी पता थी इसलिए मैंने उस दिन शेम्पू से सिर को धोया और बालों को झटका।
अब मेरे बाल शेम्पू की खुशबू में खुले अच्छे लग रहे थे। कुछ सर्दी महसूस हो रही थी पर मैंने ब्रेजरी और मैक्सी भी नहीं पहनी! चड्डी पहनने की मज़बूरी थी, मुझे अपनी चूत पर कपड़ा अटकाना था!
और मैं धुले और खुले बाल, बिना ब्रेजरी सिर्फ चड्डी पहने मतवाली चाल चलने की कोशिश और अपनी नशीली आँखों से जीजाजी की तरफ देखती देखती धीरे धीरे किसी फ़ैशन गर्ल की तरह चलती आई, अपने बदन को ठण्ड से काम्पने से रोकने के लिए बड़ी मशक्कत करनी पड़ रही थी। वैसे मेरी चाल मतवाली नहीं है क्योंकि मेरे कूल्हे मोटे नहीं है पर भरसक कोशिश की मैंने।
मैं किसी रंडी की तरह व्यवहार कर रही थी ताकि मेरे जीजाजी उत्तेजित हो जायें और अपना पानी निकाल लें! मुझे उनकी सेवा और लाड याद आ रहा था, मुझे पता था आज के बाद पता नहीं कब उनको इस सेवा फल देने का मौका मिले!
आखिर मेरी मेहनत रंग लाई और मैंने जीजाजी की आँखों में वासना की चमक देखी और उनके पास जाते ही ठण्ड से काम्पने लगी।
उन्होंने कहा- अरे तू उघाड़ी क्यूँ आई? सी लाग जाई नी।
अब उन्हें क्या पता मैं उघाड़ी उनके कारण ही आई। अब मैं कंपकपाते बोली- थां मने थांके कने कामला(कम्बल) में घालर सुवान (सुला) दो तो म्हारो सी ढब(रुक) जाई।
मेरे दांत बजने शुरू हो गए थे।
वास्तव में यार, प्यार में क्या क्या परीक्षा देनी पड़ती है, यह मुझे आज पता चला था!
उन्होंने फटाफट अपना कम्बल हटाया और मुझे लिटाने के लिए थोड़ा पीछे हटे। मैंने एक क्षण के लिए उनकी चड्डी में तम्बू बना देख लिया था और मन में खुश हो गई थी कि जो आज मेनका की तरह जो एक्टिंग की, उसका फल भी मिल गया था, जीजाजी का लौड़ा फनफना रहा था!
मुझे उन्होंने कम्बल में घुसा लिया था और मेरे ठंडी पीठ पर अपनी गर्म हथेली मल रहे थे। उनकी टांग भी मेरी जांघ पर थी और अब उनके हाथ मेरे चूचियों पर भी घूम रहे थे। उनके होंट मेरे ठण्डे होंटों को गर्म करने में लगे हुए थे और मैं मर्द की गर्मी को मान गई थी, दो मिनट में ही मेरी सर्दी छूमंतर हो गई थी।
मैं भी अब सर्दी दूर हो जाने पर सामान्य हो गई थी, मेरी नंगा शरीर उनकी बाँहों में मचल रहा था और मैं उनके चेहरे को चूम रही थी, उनके गालों पर जोर से काट कर उन्हें सीईईइ सीईईइ..आह्ह्ह.. करने पर मजबूर कर रही थी।
जबाब में वे मेरे कंधों और स्तनों के आस पास काट कर मुझे गर्म कर रहे थे!
मैंने बेशर्म हो कर अपना हाथ नीचे खिसकाया और उनकी चड्डी के ऊपर से ही उनके लण्ड को दबाने लगी जो बिल्कुल सीधा होकर उनके पेट से लगा हुआ था, ऊपर से चड्डी के बाहर आया हुआ था।
मैंने उनकी चड्डी उतरने की कोशिश की तो वे बेहद गर्म हो गए क्यूंकि वे कहते है तो भी मैं लण्ड को हाथ बहुत कम लगाती हूँ और आज खुद पकड़ रही थी! वे उत्तेजना से पागल हो रहे थे उनकी नाक से तेज सांसों की आवाज आ रही थी किसी साण्ड की तरह!
उन्होंने फटाफट अपनी चड्डी हटा दी और मेरे हाथों में फनफनाता लण्ड दे दिया। मैं उसे ऊपर नीचे करने लगी, वो बहुत सख्त हो रहा था और काफी मोटा भी लग़ रहा था, लण्ड का सुपारा पहाड़ी आलू की तरह हो रहा था मुझे मन ही मन में डर भी लग़ रहा था और मैं रोमांचित भी हो रही थी!
अब उनकी अंगुलियाँ मेरी चूत के ऊपर चल रही थी पर वे अभी मुझे चुदाने का कह नहीं रहे थे!
अभी उनके लण्ड को मुट्ठिया देते मुझे 1-2 मिनट ही हुआ था तो भी मैंने इतरा कर कहा- मेरी तो कलाई दर्द करने लग़ गई, आपके पानी कब आएगा?
तो वे हिचकिचाते बोले- हाथ से तुम्हें आधा घण्टा लग़ जायेगा। हाँ, अगर अन्दर डालूँ तो…! यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉंम पर पढ़ रहे हैं।
और वे कहते कहते रुक गए।
मैं मन ही मन मुस्कुरा दी, मुझे पता था कि उन्हें मेरी ऐसी स्थिति को देख कर मुझ से चोदने की बात कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी, पर मैंने मासूम सा सवाल किया- अन्दर डालने से तो आपका फटाफट निकाल जायेगा ना!
उन्होंने कहा- हाँ, मैं दो मिनट में निकाल लूँगा, तुम्हें ज्यादा परेशान नहीं करूँगा!
मैंने मन में कहा- अरे मेरे भोले राजा! परेशान करोगे तभी मुझे आनन्द आएगा!
अब मैं भी इस धींगा मस्ती में गर्म हो गई थी! मैंने उन्हें हटाकर सावधानी से अपनी चड्डी और कपड़ा हटाया खून तो दिख रहा था।
जीजाजी ने सही कहा था कि मैं तेरी नाली साफ कर दूँगा और उनके रात को नाली साफ करने की वजह से ही मेरे आम दिनों के मुकाबले ज्यादा खून आ रहा था पर पेट भी हल्का लग़ रहा था!
मैंने अपनी टांगें छत की तरफ कर दी थी और आने वाले तूफान का इंतजार करने लगी!
जीजाजी मेरे टांगों के बीच घुटनों के बल बैठ गए थे अपने अकड़े हुए लण्ड पर निरोध चढ़ा रहे थे।
निरोध चढ़ाने के बाद वे मेरी चूत पर झुके, मेरी चूत उत्तेजना से संकुचन करने लगी तो जीजाजी ने मुझे भरोसा देने के लिए मेरे नितम्ब थपथपा दिए, उससे मुझे कुछ राहत मिली और मैं शांत हुई।
अब जीजाजी अपने लण्ड को पकड़ कर बमुश्किल नीचे कर रहे थे, उनका सीधा खड़ा हुआ लण्ड जैसे उनकी ही पेट की नाभि में घुसेगा, ऐसा लग़ रहा था।
पर उन्होंने जोर लगा कर मेरी चूत के छेद पर अटकाया, उस पर ढेर सारा थूक उन्होंने पहले ही लगा दिया था और हल्का सा घिसा जिससे उनका थूक मेरी चूत पर भी लगा और फिर धीरे धीरे अपने लण्ड का दबाव मेरी चूत पर बढ़ाने लगे!
उनका लोहे जैसा हो चुका लण्ड मेरी चूत का स्पर्श पाकर किसी सांप की तरह फुफकार रहा था और वो जीजाजी के बोझ से जो वे अपने लण्ड पर अपनी गाण्ड भींच कर लगा रहे थे। उससे वो मेरी चूत के किसी अवरोध को नहीं मान कर अन्दर और अन्दर घुसता जा रहा था।
अभी तक उन्होंने धक्का नहीं लगाया था बस दबाव देते जा रहे थे और उनका लण्ड मेरी चूत में निर्विरोध जा रहा था!
मैं सोच रही थी- और कितना घुसेगा अन्दर?
मेरी चूत की फांकों ने उसे बुरी तरह से कसा हुआ था पर वो उन्हें धकेलता हुआ अन्दर जाये जा रहा था। मुझे जीजाजी का लण्ड लम्बा और मोटा लग़ रहा था। शायद उनकी उत्तेजना की वजह से!
अब मेरे मुँह से डरती सी आवाज निकल रही थी- और कितोक है थान्को बारे हाल ताई? अबे घनो इतो ही घालो मारे दुखे ठेठ बचादानी रे कने पुग्गो!
और जीजाजी मुझे पुचकार रहे थे, मेरे नितम्ब थपथपा रहे थे जैसे अन्दर जगह खाली कर अपना लण्ड एडजस्ट कर रहे हों और पुच पुच कर कह रहे थे- अबे तो थोड़ोक है थारे कित्ती वार गलायेड़ो है यूँ काई डरे गेली राधा तुई तो कियो क थारा धणी रो तो म्हाराऊ ही लान्ठो है पचे इत्ती कई डरे बस अबार म्हारी गोलियाँ थारे दूंगा सु अड़ जाई पचे बस में बारे खान्छु और माइने गालू और थने भी मजो आव्णों शरु वे जाई!
जीजाजी ने जब तक पूरा अन्दर नहीं घसा लिया, तब तक जोर से दबाते रहे, मेरी आहों-कराहों, मिन्नतों पर कोई ध्यान ही नहीं दिया! हाँ, कभी कभी मेरे गालों पर हाथ फेर कर, नितम्ब सहला कर, मुझे पुचकार कर, मेरे गाल चूम कर मुझे दर्द सहने की हिम्मत देते रहे!
उन्होंने अभी तक एक बार भी बाहर नहीं खींचा था, सिर्फ अन्दर ही अन्दर जोर से दबा रहे थे। उसे दबाने में अपने कूल्हों का जोर काम में ले रहे थे।
हालाँकि मेरी योनि की दीवारें संकरी हो रही थी पर उनका लिंग जोर लगाकर ज़बरदस्ती घुसा जा रहा था! अब जब उनकी तोप के दो पहिये मेरी गुदा से टकराए तो मैं समझ गई कि अब उनका लिंग जड़ तक घुस चुका है!
अब वे बिना हिलेडुले मेरे ऊपर पसरे हुए लम्बी लम्बी सांसें ले रहे थे, उनका लण्ड मेरी चूत में पूरा धंसा हुआ था।
मैंने भी राहत की साँस ली, अब मुझे चुहल सूझी, मैंने उनसे कहा- क्या हुआ? इतना ही है क्या? और नहीं है डालने के लिए? ऐसा करो, अपनी गोलियाँ भी अन्दर डाल दो, कितना छोटा है तुम्हारा!
मेरे इस मजाक पर वे मुस्कुराये और बोले- साली अभी तो थोड़ा कम डालने का कह रही थी और अब बातें आने लग गई? तू रुक, अभी तुझे इतना रगड़ूंगा कि तुम्हें अपनी माँ और नानी दोनों याद आ जाएगी।
मैंने जल्दी से कहा- अरे, मैं तो मजाक कर रही थी, आप मेरी हालत को समझ कर मुझ पर दया रखना!
तो जीजाजी के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई, अब वे तो नहीं हिल रहे थे पर उनका लण्ड अन्दर झटके खा रहा था और मेरी चूत भी संकुचन कर उसका स्वागत कर रही थी। साली मेरी चूत भी मेरे बस में नहीं है, वो भी मेरे मन की बात जीजाजी को बता रही थी कि मुझे चुदने की कितनी इच्छा है!
अब उन्होंने अपने लण्ड को थोड़ा बाहर खींचा तो साथ में मेरी चूत की दीवारें भी साथ खिंची, ऐसा लग रहा था जैसे मेरी चूत की दीवारें और उनका लण्ड साथ में चिपक गया हो और वे उसे छोड़ना ही नहीं चाहती थी!
लेकिन वे जोर लगा कर उसे ऊपर खींच रहे थे और फिर से अन्दर धंसा देते थे, 8-10 बार इस अन्दर बाहर से मेरी चूत ने भी पानी छोड़ दिया और उनका लण्ड भी ऐसे एडजस्ट हो गया जैसे यात्रियों के ठसा ठस भरे डब्बे में कोई नया यात्री आकर धक्कों से एडजस्ट हो जाता है।
अब उनका लण्ड आराम से अन्दर-बाहर हो रहा था, मेरी टांगें उनकी कमर पकड़ रही थी इसलिए वे ज्यादा ऊँचे होते तो मेरे कूल्हे भी बिस्तर छोड़ देते जैसे मैं झूले पर झूलते हुए चुदवा रही थी, और उनका लण्ड गचागच घुस रहा था।
सारा कमरा फच फच, खप खप की आवाजों से गूंज रहा था साथ में मेरी आह उह, धीरे और उनकी वाह मज़ा आ गया, तू तो सेक्स की देवी है मेरी जान, मैं सारी ज़िन्दगी तेरी चूत में लण्ड डालकर रखना चाहता हूँ, कितना मज़ा आ रहा है, ऐसा बोले जा रहे थे और दनादन धक्के मारते जा रहे थे।
मुझे भी बहुत आनन्द आ रहा था, उनके धक्कों की रफ़्तार बढ़ती ही जा रही थी और इस मस्ती में मेरी भी आँखें बंद थी।
कभी कभी जब उनका झटका बहुत गहरे तक लगता और अन्दर दर्द की लहर दौड़ जाती तब मेरी आँखें खुल जाती और मुँह से आह निकल जाती।
तब थोड़ी देर तक जीजाजी सावधानी से धक्के लगाते पर 1-2 मिनट बाद फिर से वही हो जाता।
मेरे कितनी ही बार पानी निकल गया था और स्खलन भी 1-1 मिनट तक हुआ था!
पर अब करीब 15 मिनिट हो गए थे तो मैं परेशान हो गई थी, मुझे मज़ा कम और दर्द ज्यादा हो रहा था, मैं फिर से उन्हें उनका वादा याद दिला रही थी- थे कियो नि में सिर्फ दो मिनट चोदु थांका दो मिनट इत्ता लम्बा हेवे कई? अबे थान्को पाणी काड ल्यो नि तो में धक्को दे र नीचे पटक देउला अबे म्हारे दुखे ऍन ही भोष्यो दुखे और थांका भाचीडा और नि खा सकू में!
जीजाजी बस एक मिनट, एक मिनट कर रहे थे, उनका लण्ड बहुत भारी हो गया था और जैसे मेरी चूत की धज्जियाँ उड़ाने में लगा था।
मैं मेनका बनकर पछता रही थी और वो यह बात कह भी रहे थे- साली पहले तो उघाड़ी हेर गाण्ड मटकाती मटकाती चाले मने केवे थान्को म्हारा धणी सु तो छोटो और पतलो है और केवे और घालो गोळ्या भी घाल दो अबे चुदाता मौत आवे अबे में म्हारो पाणी निकल्या बिना तो में थने छोडू कोणी ,तू मने थारे ऊपर सु हतावानो छोड़ मने आगो ही नहीं कर सके तू थारा भोस्या सु म्हारो लण्ड भी बाहर नहीं निकाल सके कोशिश कर देख ले थोड़ी देर सीधी सीधी पड़ी रह अबार म्हारी पिचकारी छुट जाई पाछे थने छोड़ देवू!
साथ में वो गालियाँ भी निकाल रहे थे।
मैं समझ गई कि अब उनके आने वाला है क्यूंकि उनके जब आने वाला होता है तब उनके मुँह से गालियाँ निकलती हैं, वे मादरचोद और थारी माँ ने चोदू आआ ओहह्ह्ह्हह कर रहे थे! मैं भी उनका साथ देकर आ उहह्ह्ह्ह कर रही थी और उन्हें जोश दिला रही थी और कह रही थी- मारी माँ ने छोडो और मारी बहन ने और मने ही चोद चोद धपायदो! मुझे अब मज़ा तो नहीं आ रहा था पर मैं दिखावा कर रही थी, मुझे पता था कि उनका इससे जल्दी निकलेगा, इसलिए सेक्सी बातें भी कर रही थी और उनकी आँखों में आँखें डाल कर बड़े ही कातिल अंदाज़ से मुस्कुरा रही थी।
अब उनका चेहरा विकृत हो रहा था, मुझे पता था कि यह चरम सुख के लक्षण है, चरम सुख में आते ही स्त्री-पुरुषों के चेहरे विकृत हो जाते हैं तभी सेक्स का आनन्द आँखें बंद कर के करने में ही आता है!
फिर वे जोर से भैंसे की तरह डकारने लगे, मुझे बहुत जोर से भींच लिया और झटके खाने लगे। उनके धक्कों की गति बिल्कुल कम होती होती रुक गई और फिर वे जैसे घुड़सवारी से उतरते वैसे उतरे, सावधानी से कंडोम उतारा जो पूरा खून से तरबतर था।
मेरी टांगें खुली थी, जांघों पर भी खून लग गया था और चूत खुली ही रह गई थी, मुझे उसके अन्दर हवा लगने का अहसास हो रहा था। मैंने उठ कर चादर का हाल देखा तो उस पर जैसे कलर करने वाले ने फव्वारा मारा हो, वैसे मेरा खून लगा था।
मैंने कहा- यह चादर देख कर होटल वाला सोचेगा कि इस पर किसी कमसिन लड़की की सील टूटी है।
यह सुनकर जीजाजी मुस्कुरा दिए और बोले- यार, तुम ही कमसिन लड़की ही हो! जब भी तुम्हें चोदता हूँ, तुम्हारी चूत चिपकी हुई ही मिलती है, हर बार मुझे म्हणत करनी पड़ती है।
मैंने उन्हें कहा- होटल वाला क्या सोचेगा, इसलिए इसको फिर से उलटी कर देते है ताकि आते ही तो उसको यह खून नहीं दिखे।
फिर हमने उसको जो पैरों की तरफ था उसे सर की तरफ किया साथ में उलटी भी बिछा दी। अब वो मेरे खून के फव्वारे तकियों के नीचे आ गए थे!
फिर मैं दोबारा नहा कर आई। इस बार बाथरूम से कपड़े पहन कर आई और बिल्कुल सीधी सीधी चलते चलते किसी शरीफ लड़की की तरह!
हा हा हा हा!
अब मैं फिर से उन्हें भड़का कर कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती थी, पहले ही मेरा राम राम करते पीछा छुटा था!फिर हमने कमरा खाली किया, मैं लिफ्ट से सीधे नीचे रेस्टोरेंट में, जीजाजी चाबी देकर और हिसाब कर के आये!
हमने वहाँ खाना खाया और बस से अपने गाँव चले दिए। रास्ते में उनका गाँव आने पर वे उतर गए और मैं अपने गाँव चली गई सीधी शरीफ लड़की की तरह जो अपनी ड्यूटी कर के आई हो जबकि चुदाई के कारण मेरी चूत में रह रह कर दर्द की लहर दौड़ रही थी जो मुझे रोमांचित कर रही थी।
कहानी जारी रहेगी।
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