यौनसुख से वंचित पाठिका से बने शारीरिक सम्बन्ध -3
(Yaun Sukh Se Vanchit Pathika Se Bane Sharirik Sambandh-3)
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उस रात घर जाने से पहले मैं फ़ैसला कर चुका था कि मुझे तो हाँ ही कहना है।
यह फ़ैसला करने के बाद मैं कुछ निश्चिंत सा हो गया था और वैसे भी मुझे काफ़ी टाइम हो चुका था किसी के साथ करे हुए पत्नी तो 7- 8 साल से ना के बराबर ही रूचि लेती थी, इसलिए मुझे भी सेक्स की भूख तो थी ही और बिना मेहनत के कोई खुद ही राज़ी हो जाए तो फिर तो क्या ही कहना।अगले दिन करीब 10:30 बजे उसका फ़ोन आया, मैं भी करीब खाली सा ही था तो मैंने भी आज बड़े रोमांटिक लहजे में जवाब दिया- क्या हाल है जानेमन?
वो बहुत चहक कर बोली- तो आपका फ़ैसला हमारे हक़ में हो ही गया।
तो मैं भी मज़ाक के लहजे में ही जवाब दिया- बहुत ताक़त है औरत में… जब वो विश्वामित्र जैसे तपस्वी की तपस्या भंग कर सकती है तो मैं कौन सा सूरमा हूँ जानू!
‘अच्छा जी? तो फिर कब आ रहे हो अपनी मेनका से मिलने?’
मैं बोला- आज मिल सकती हो क्या?
वो तुरंत बोली- बिल्कुल… कितने बजे?
मैंने कहा- करीब एक बजे मैं फ्री हो जाता हूँ और पाँच बजे तक फ्री होता हूँ, सवा एक बजे मैं आपसे कहाँ मिलूँ?
वो बोली- मैं आपका इंतज़ार पैसिफ़िक माल के सामने करूँगी!
मैंने बोला- बाइक कहाँ छोड़ूँ?
तो उसने कहा- पैसिफ़िक की पार्किंग में ही लगा देना, वापसी मैं आपको वहीं पर छोड़ दूँगी।
आज मैंने अपना सारा काम जल्दी जल्दी निपटा लिया था और करीब 12:40 पर ही मंजरी को फोन कर दिया कि मैं निकल रहा हूँ और करीब 10 मिनट में पेसिफिक पहुँच जाऊँगा।
उसने सिर्फ़ इतना कहा- ओ. के. आप आओ मैं आपको वहीं पर मिलती हूँ।’
मुझे वहाँ पहुँचने में सिर्फ़ 10-12 मिनट लगे।
मैं जब अपनी बाइक पार्क करके बाहर निकला तो वो अपनी कार में मेरा इंतज़ार कर रही थी, मैंने उसे नहीं देखा पर उसने मुझे देख लिया था।
जैसे ही मैं उसकी कार के पास पहुँचा, उसने कार का दरवाज़ा खोलकर मुझे आवाज़ दी- सर जी इधर…
मैंने चौंक कर उसे देखा और गाड़ी में बैठ गया।
उसने क्रीम रंग का सलवार कमीज़ पहना हुआ था और मेकअप भी नहीं करा हुआ था, पर बिना मेकअप के भी वो बहुत आकर्षक लग रही थी।
वो गाड़ी को मध्यम गति से चलाती हुई वसुंधरा में ले गई और एक कोठी जिसकी दीवारें काफ़ी ऊँची थीं, के सामने कार रोक दी।
कार से उतर कर गेट खोला और कार गेट से अंदर कर के बरामदे में पार्क कर दी।
करीब 300 गाज का प्लाट था जिसमें करीब 150 गज में एक छोटी सी कोठी बनी हुई थी और बाहर की दीवार के साथ क्यारी बनी हुई थी जिसमें कई प्रकार के फूल लगे हुए थे।
वो कार से उतरी और गेट को अंदर की तरफ से बन्द करके ताला लगा दिया।
तब तक मैं कार से उतर कर क्यारियों में लगे फूलों को देख रहा था।
मंजरी मेरे पास आई और मेरी कलाई पकड़ कर बोली- आओ अंदर चलें!
मैं उसके साथ चल दिया।
उसने पर्स में से चाबी निकाली और अंदर का दरवाज़ा खोला, हम दोनों एक साथ अंदर प्रवेश कर गये।
सामने ड्राइंग रूम था जिसमें काफ़ी कीमती सोफे और सेंटर टेबल रखी थी, पर्दे आदि भी ऐसे लगे थे जैसे बहुत सोच समझ कर रंग चुना गया हो।
ड्राइंग रूम के सामने परदा लगा था जिसके पार का कुछ भी नहीं दिख रहा था।
मैं वहीं सोफे पर ही बैठ गया, पर वो तुरंत किचन में गई और पानी लेकर आई।
मैंने पानी पिया, एक गिलास उसने भी पिया और बोली- आओ अंदर चलें।
अब तक हमारे बीच में कोई खास बातचीत नहीं हुई थी गाड़ी में भी बस हालचाल पूछने से ज़्यादा कोई बात नहीं हुई थी।
सही कहूँ तो मैं थोड़ा सा नर्वस था और मैं कुछ भी करने से पहले उसके साथ थोड़ा सहज होना चाहता था। उसने भी इस बात को महसूस कर लिया था, वो बोली- क्या पियेंगे आप?
मैंने कहा- अभी कुछ नहीं, थोड़ी देर बाद!
मंजरी- क्या लेंगे?
मैंने कहा- कुछ भी ले लेंगे, हार्ड ड्रिंक नहीं लेता मैं!
तो वो खुश होती हुई बोली- वाउ… मुझे भी शराब की स्मेल पसंद नहीं हैं।
एक दो मिनट हमारे बीच में खामोशी छाई रही, मैं सोच रहा था, वो बात शुरू करे और शायद वह भी यही बात सोच रही थी।
थोड़ी देर बाद मेरे मन में यह बात आई कि मैं पुरुष हूँ तो पहल मुझे ही करनी होगी क्योंकि महिलाएँ अक्सर शरमाती हैं और यह लज्जा ही उनका गहना है।
पानी पीने के बाद अभी गिलास मेरे हाथ में ही था और मंजरी भी मेरे पास ही खड़ी थी तो मैंने उसके हाथ से ट्रे पकड़ कर सेंटर टेबल पर रख दी और बोला- आप भी बैठो ना!
वो सोफे पर ही मेरे से थोड़ा सा हट कर बैठ गई तो मैं उसकी तरफ़ को थोड़ा सा सरक गया, वो भी मेरी तरफ को थोड़ा सा झुकी और अपना सिर मेरे कंधे पर रख दिया।
उसकी साँसें थोड़ी सी तेज़ हो चुकीं थीं, मैं समझ गया था कि औपचारिकता में पड़ूँगा तो बहुत समय लगेगा सहज होने में तो मैंने अपना बायां हाथ उसकी पीठ पर से लेते हुए उसकी कनपटी पर रखा और उसे अपनी तरफ को दबाया।
उसने अपना शरीर ढीला छोड़ दिया और मेरे साथ और चिपक गई।
मैं सोच रहा था जो काम भावनाएँ कर सकती हैं शायद शब्द नहीं कर सकते और यही सब सोचता हुआ मैं उसके और निकट हो गया, उसकी साँसों की गति और बढ़ चुकी थी और उसने आँखें बंद कर लीं थीं।
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मैंने उससे बिल्कुल चिपकते हुए अपना दायां हाथ भी उसके गिर्द लपेट दिया और उसे अपनी बाहों में कसने लगा, अब मेरी साँसें भी गर्म होने लगी थीं।
अनायास ही मैंने अपना दायां हाथ उसके शरीर से हटा कर उसकी ठुड्डी के नीचे रखा और उसका चेहरा ऊपर को किया और उसके माथे पर एक चुम्बन कर दिया।
तब उसने भी अपने दोनों हाथ मेरे इर्द गिर्द लपेट दिए, उसके होंठ कंपकंपा रहे थे।
जैसे ही मैंने उसकी आँखों की ओर देखा तो उसकी आँखों में आँसू थे।
मैंने बहुत प्यार से उसकी आँखों से वो मोती अपनी जुबान से उठा लिए।
उसके आँसुओं का वो खारा और नमकीन स्वाद मुझे उस वक्त बहुत ही अच्छा लगा था।
जैसे ही मैंने ऐसा किया, उसने मुझे बहुत ज़ोर से अपनी बाहों में कस लिया और हिचकियाँ लेकर रोने लगी, एक पल के लिए मेरे मन में आया कि शायद वो अभी मानसिक तौर पर इस सम्बन्ध के लिए तैयार नहीं है, मैंने अपनी पकड़ थोड़ी ढीली की पर उसने मुझे और ज़ोर से कस लिया।
तब मुझे महसूस हुआ कि वो ज़्यादा भावुक ही गई है तो मैं अपना एक हाथ उसके बालों में फ़िराना शुरू कर दिया और दूसरे हाथ से उसकी पीठ सहलाने लगा ताकि उसे थोड़ा सा भावनात्मक संबल मिल सके।
मेडिकल प्रोफ़ेशन में होने के कारण मैं जानता हूँ किसी का मन रोने से बहुत जल्दी हल्का हो जाता है तो मैंने उसे चुप होने के लिए नहीं कहा, बस उसका सिर और पीठ सहलाता रहा।
लगभग 5 मिनट रोने के बाद उसकी रुलाई कुछ कम हो गई, अब मैं उठा और उसकी रसोई में जाकर फ्रिज में से पानी निकाल कर लाया और उसके वाले गिलास में डाला और गिलास उसे होंठों से लगा दिया।
जब वो पानी पी चुकी तो मैंने गिलास उसके हाथ से लिया और टेबल पर रख दिया और उसका चेहरा अपने हाथों में लेकर उसके गालों पर से उसके आँसू चाटने शुरू कर दिए।
कहानी जारी रहेगी।
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