पति की सहमति से परपुरुष सहवास-1
(Pati Ki Sahmati Se Par Purush Sahvas- Part 1)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_right पति की सहमति से परपुरुष सहवास-2
-
View all stories in series
लेखिका: लीना वर्मा
संपादक एवं प्रेषक: तृष्णा प्रताप लूथरा
अन्तर्वासना के आदरणीय पाठको, आप सबको तृष्णा की ओर से सादर प्रणाम!
मेरे घर के पास की मार्किट में एक किरयाना स्टोर हैं जहाँ से मैं अपने घर के लिय किरयाना एवं दैनिक ज़रुरत का सामान खरीदा करती हूँ।
किरयाना स्टोर के मालिक रवि की पत्नी लीना उस स्टोर के संचालन में अपने पति की सहायता हेतु दिन तथा शाम को वहाँ बैठती है।
वैसे तो लीना ग्राहकों को निपटाने के लिए अधिकतर कैश काऊँटर पर ही व्यस्त रहती थी इसलिए किसी से भी अधिक बात नहीं कर पाती थी।
लेकिन जब स्टोर में भीड़ नहीं होती थी तब वह काऊँटर छोड़ कर मुझे खरीदारी में मदद कर देती थी और सारा समय बतियाती रहती थी।
इस कारण मेरी ओर उसकी अच्छी मित्रता हो गई थी और वह हर सामान में मुझे रियायत भी कर देती थी तथा अधिक सामान होने उसे मेरे घर तक पहुँचाने का प्रबंध भी कर देती थी।
तीन माह पहले एक दोपहर को लीना मुझसे मिलने मेरे घर आई थी तब मैं एक अर्ध-लिखित रचना पर काम कर रही थी इसलिए उसे सोफे पर बैठने के लिए कह दिया।
लेकिन वह सोफे पर बैठने के बजाये मेरे कंप्यूटर के पास कुर्सी डाल कर बैठ गई और मेरी रचना के कुछ अंश पढ़ कर कहा- तृष्णा जी, अच्छा तो आप ऐसी रचनाएँ भी लिखती है। मेरी भी इस प्रकार की एक समस्या थी जिसे मेरे पति रवि ने बहुत ही आसानी से हल कर दी थी।
उसके बाद लीना ने अपनी उस समस्या और उसके समाधान के बारे में मुझे बताया तथा मेरे सुझाव पर उसे अन्तर्वासना पर प्रकाशित करने के लिए सहमत भी हो गई।
एक माह के बाद लीना ने मेरे सुझाव के अनुसार अपने जीवन की उस समस्या तथा उसके समाधान का विवरण लिख कर मुझे दे दिया।
लीना द्वारा लिखी गई उस समस्या एवं उसके समाधान के विवरण का मैंने भाषा सुधार, व्याकरण शुद्धी तथा सम्पादन करके उसकी अनुमति से आप सब के लिए अन्तर्वासन पर प्रेषित कर रही हूँ।
लीना की रचना उसी के शब्दों में नीचे लिखी है:-
*****
मेरा नाम लीना है और मैं दिल्ली से जुड़े हुए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के एक छोटे से शहर में अपने पति रवि वर्मा के साथ रहती हूँ।
हमारा एक छोटा सा किरयाना स्टोर है और उसमें किरयाना वस्तुओं के साथ साथ दैनिक जरूरतों का अन्य सामान भी मिलता है।
पिछले दस वर्ष से यह स्टोर मेरे पति रवि और मेरे जेठ राजू मिल कर चलाते थे लेकिन चार वर्ष पहले आपस में कुछ अनबन हो जाने के कारण वह उससे अलग हो कर अपना नया काम शुरू कर दिया।
तब से इस स्टोर को रवि और मैं मिल कर सम्भाल रहे हैं जिसमे रवि सुबह सात बजे से दस बजे तक दुकान खोल कर ग्राहक को सम्भालते हैं।
घर का सुबह का काम निपटा कर दस बजे से मैं दुकान पर जा कर बैठती हूँ और रवि थोक बाज़ार में जा कर सामान लाते हैं तथा दूकान में यथा स्थान पर लगाते एवं सजाते हैं।
दोपहर एक बजे मैं घर जाकर खाना बनाती हूँ और दो बजे तक वापिस दूकान में आकर हम दोनों साथ साथ खाना खाते हैं।
उसके बाद मैं फिर घर चली जाती हूँ और शाम के छह बजे तक रवि अकेले ही दुकान का काम संभालते हैं।
शाम को छह बजे से मैं फिर से पति का हाथ बंटाने के लिए दुकान पर आ कर बैठती हूँ और रात नौ बजे घर वापिस जाती हूँ लेकिन रवि रात दस बजे के बाद ही दूकान बंद करके घर पहुँचते हैं।
अलग व्यवसाय के पहले वर्ष में उसे स्थापित करने के लिए तथा जेठ जी के स्टोर से प्रतिस्पर्धा के कारण हम दोंनो पूरा दिन दुकान के काम में ही व्यस्त रहते थे इसलिए हमारी यही नीरस दिनचर्या हो गई थी।
दिन भर दुकान की और थोक बाज़ार की भाग दौड़ से थके होने के कारण रवि घर पहुँचते ही खाना खाते और मेरी आवश्यकताओं की अनदेखी करके लम्बी तान कर सो जाते।
शुरू के चार-पांच माह तक तो मैंने रवि से कुछ नहीं कहा और अपनी ज़रूरतों को दबा कर उनकी तथा दुकान की देखभाल में अपने को व्यस्त रखती रही।
रात को जब भी मैं सहवास के लिए उनके पास जाती और उनको हाथ भी लगाती तो वह हमेशा मना कर देते या फिर अगले दिन करने का झांसा दे देते।
वह अगला दिन तो कभी नहीं आया और इस तरह मैं रोजाना ही अपनी अतृप्त वासना को दबा कर तथा अपना मन मसोस कर सोने की कोशिश करती थी।
कभी तो नींद आ जाती थी और कभी बिल्कुल ही नहीं सो पाती, अधिकतर मैं सारी सारी रात जागती और करवटें बदलती रहती थी।
छ्टे माह के शुरू में ही मेरी वासना की पूर्ति नहीं होने से मेरा मानसिक संतुलन बिगड़ने लगा तथा मेरे स्वभाव में थोड़ा चिड़चिड़ापन आ गया और अक्सर छोटी छोटी बात पर मेरा और रवि का झगड़ा भी होने लगता था।
अक्सर रात को जब भी मुझे वासना की अनुभूति होती तब मैं सोते हुए रवि को जगाने के लिए उनके लिंग को मसल कर खड़ा करने की कोशिश करती थी लेकिन वे थके होने का कारण बता कर मुझे अपने से दूर कर देते और करवट बदल कर सो जाते।
एक रात जब हम सोने लगे तब मैंने रवि से मेरी वासना की अग्नि को शांत करने के लिए कहा तो वह मान गए और हमने बड़े उत्साह से संसर्ग शुरू किया लेकिन रवि का शीघ्र ही वीर्य-पतन हो जाने के कारण मुझे आनन्द और संतुष्टि नहीं मिली।
उस प्रकरण में ना तो मैं चरम सीमा तक ही पहुंची और ना ही मेरी योनि से रस का स्राव ही हुआ।
मुझे संतुष्टि नहीं मिलने के कारण उस रात मैंने खीज और गुस्से में आ कर रवि को बहुत बुरा भला कहा तथा उन्हें नपुंसक तक भी कह दिया।
शायद मेरी यह बात रवि के मन को चुभ गई थी इसलिए उसने सुबह दुकान जाने से पहले मुझे कहा– तुम कुछ दिन प्रतीक्षा कर लो, तब तक मैं तुम्हारी वासना की शान्ति के लिए कोई ना कोई उपाय या प्रबंध ज़रूर कर दूंगा।
तीन दिनों के बाद रात के समय रवि ने मुझसे पूछा- क्या तुम अपनी वासना की संतुष्टि के लिए किसी परपुरुष से संसर्ग करने के लिए तैयार हो?
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
मुझे उनकी यह बात सुन कर थोड़ा असमंजस, खीज और क्रोध आया, लेकिन इससे पहले कि मैं कुछ कहूँ मेरी वासना मुझ पर हावी हो गई और मैं झट से बोली- हाँ, अगर तुम मुझे संतुष्ट नहीं कर सकते हो तो मुझे किसी और का सहारा तो लेना ही पड़ेगा। अगर यह प्रबंध तुम खुद ही कर दोगे तो अधिक बेहतर होगा क्योंकि इसमें तुम्हारी सहमति भी शामिल होगी।
कुछ देर के बाद जब मैंने रवि से पूछा की वह किस परपुरुष की बात कर रहा था तब उसने बताया- ऊपर वाले फ्लैट में जो अंकल रहते हैं, मैंने उनसे आज शाम को दुकान पर हमारी समस्या के बारे में बात करी थी। मैंने उनसे आग्रह भी किया है कि वह कम से कम सप्ताह में एक बार तुम्हारी तृष्णा की तृप्ति कर दिया करें तो हमारी गृहस्थी टूटने से बच जायेगी।
मैंने रवि से पूछ लिया- तो अंकल ने क्या उत्तर दिया है?
रवि ने कहा- उन्होंने कहा है कि वह सोच कर उत्तर देंगे। लेकिन मुझे पूरी आशा है कि वह ज़रूर अपनी सहमति दे देंगे।
मैंने पूछा- तुमने उन बड़ी उम्र के अंकल से ही बात क्यों की? क्या कोई जवान पुरुष नहीं मिला था तुम्हें मेरे लिए?
तब रवि ने मुझे समझाया- उनसे बात करने के कई कारण है। पहला कारण है – जब वे दुकान पर आते हैं तब मैंने उनके पाँव छूते समय एक दो बार उनके लिंग को भी छुआ था। मुझे आभास हुआ था कि उनके लिंग में अभी भी बहुत ताकत है और मुझे पूर्ण विश्वास है कि वे तुझे पूरा संतुष्ट कर दिया करेंगे।
उसने आगे कहा- दूसरा कारण है – वह ऊपर वाली मंजिल में ही रहते हैं इसलिए उन्हें और तुम्हें एक दूसरे के घर आने जाने में कोई दिक्कत नहीं होगी तथा बाहर का कोई इंसान तुम दोनों को ऊपर नीचे आते जाते देख भी नहीं पायेगा।
फिर रवि ने एक महत्पूर्ण बात कही- तीसरा कारण है – अगर कोई बाहर का जवान पुरुष होगा तो वह तुम्हें ब्लैक-मेल कर सकता है। वह अपने किसी भी दोस्त को यह राज़ बता सकता है और तुम्हें उस दोस्त के साथ सम्बन्ध बनाने के लिए मजबूर कर सकता है। वह एक से अधिक दोस्तों के बता कर तुम्हारी अनुमति के बिना भी तुम्हें डरा धमका कर तुम्हारे साथ बहु-पुरुष संसर्ग भी कर सकते है।
आगे रवि ने कहा- चौथा कारण है – क्योंकि अंकल शादीशुदा रह चुके हैं इसलिए उन्हें स्त्री के साथ संसर्ग करके उसे संतुष्ट करने का काफी अनुभव भी है। वह तुम्हारी चाहत और तकलीफ का ध्यान रखते हुए तुम्हें बिना कोई असुविधा देते हुए बहुत ही प्रेम से तुम्हारे साथ संसर्ग करके तुम्हें पूर्ण आनन्द एवं संतुष्टि देंगे।
अंत में रवि ने कहा- पांचवा कारण है – अंकल अकेले ही रहते है और उनके घर में कोई आता जाता भी नहीं है। अंकल की कालोनी में इज्ज़त भी बहुत है, इसलिए वह अपनी और हमारी इज्ज़त के लिए कोई भी ऐसी बात नहीं करेंगे जिससे उनकी बदनामी हो।
अपनी सुरक्षा एवं संतुष्टि को नज़र में रखते हुए मुझे रवि द्वारा बताये गए पांच कारणों को सुन कर उन अंकल के साथ सहवास करने के लिए सहमत होना उचित लगा।
तब मैंने रवि से बोल दिया- ठीक है, मुझे अंकल के साथ सम्बन्ध बनाने में कोई ऐतराज़ नहीं होगा। अगर अंकल मेरे साथ सहवास करने की मान जाते है तो तुम मेरी ओर से उन्हें सहमति दे सकते हो।
मैंने उन अंकल को कई बार घर के ऊपर या नीचे जाते देखा हुआ था और कई बार वह दोपहर के समय दुकान पर आते थे और मुझसे सामान भी ले कर जाते थे।
अंकल एक इंजीनियर थे और अपने घर से ही परामर्श का कार्य करते थे तथा उनकी उम्र लगभग पैंतालिस वर्ष की थी और वह अकेले ही रहते थे क्योंकि उनकी पत्नी ने उनसे तलाक ले लिए था।
वे दिखने में बहुत ही स्मार्ट, तंदरुस्त और फुर्तीले इंसान लगते थे और कई बार मैंने उन्हें सुबह एवं शाम के समय पार्क में व्यायाम तथा टहल-कदमी करते हुए देखती थी।
उनका स्वभाव बहुत ही हंसमुख था और वह हमेशा मुस्कराते हुए ही बात करते थे तथा उनका व्यक्तित्व बहुत ही आकर्षक था।
एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी जब अंकल की ओर से कोई उत्तर नहीं मिला तब मैं कुछ निराश होने लगी थी।
तभी उस दिन शाम के समय मैंने उन्हें सामने पार्क में टहलते हुए देखा तो तुरन्त रवि को कहा- रवि, सामने पार्क में अंकल टहल रहे हैं, तुम वहाँ जाकर उनके साथ टहलते हुए उनका निर्णय क्यों नहीं पूछ लेते?
रवि ने कोई उत्सुकता नहीं दिखाते हुए कहा- वह जब निर्णय कर लेंगे तो अपने आप ही बता देंगे।
मुझे रवि पर खीज आ गई और मैं आवेश में आकर बोली- तुम समझते क्यों नहीं, यह हमारी गरज है इसलिए हमें ही जाकर उनसे पूछना पड़ेगा।
मेरी बात सुन कर रवि पार्क में अंकल के पास गया और कुछ देर उनके साथ टहलते हुए बात कर के जब वापिस दुकान पर आया तब मैंने उससे पूछा- अंकल ने क्या कहा?
तब रवि बोला- अंकल ने आज रात को हमें अपने घर पर मिलने के लिए बुलाया है। रात को दुकान बंद करने के बाद हम दोनों को उनके घर पर ही जाना है।
रवि की बात सुन कर मुझे बहुत अचम्भा हुआ और मैंने उससे पूछा- अंकल ने तो सब कुछ मेरे साथ ही करना है तो फिर तुम्हें क्यों बुलाया है?
रवि बोला- मुझे नहीं मालूम क्यों बुलाया है, जब वहाँ जायेंगे तब पता चल जाएगा।
उसके बाद मैं चुपचाप दुकान में आने वाले ग्राहकों को संभालने लगी और मन ही मन रात को अंकल के घर क्या होगा इसके सपने भी संजोने लगी।
क्योंकि मेरी वासना मुझे व्याकुल करने लगी थी इसलिए मैं पार्क में बने जन-सुविधा शौचालय में जा कर उंगली-मैथुन भी कर आई थी।
रात नौ बजे के बाद जब दुकान पर ग्राहक आने कम हो गए तब हमने सारा सामान समेटना शुरू कर दिया और साढ़े नौ बजे तक सब कुछ निपटा कर दुकान को बढ़ा दिया।
हम पहले अपने घर गए और वहाँ से खाना खाकर जब अंकल के घर पहुँचने पर रवि ने दरवाज़े पर लगी घंटी दबाई तब अन्दर से अंकल की आवाज़ आई- कौन है?
रवि ने उत्तर दिया- जी मैं, रवि और लीना।
अंकल ने कहा- दरवाज़ा खुला है दोनों अन्दर बैठक में आ जाओ और बाहर के दरवाज़े की अन्दर से चिटकनी लगाते आना।
हमने उनके कहे अनुसार दरवाज़े को अन्दर से चिटकनी लगा कर जब बैठक में प्रवेश किया तब देखा कि अंकल अपने लैपटॉप पर कुछ काम कर रहे थे।
उन्होंने हमें कहा- थोड़ा ज़रूरी काम कर रहा हूँ। तुम दोनों आराम से बैठो मैं अभी काम समाप्त कर के आता हूँ।
हम दोनों अलग अलग सोफे पर उनके ओर मुँह कर के बैठ गये और उनके कार्य के समाप्त होने की प्रतीक्षा करने लगे।
उस समय मेरे मन में बहुत से मधुर और सुहाने विचार आ रहे थे और मैं उन में इतना खो गई कि मुझे पता ही नहीं चला कि कब अंकल मेरे पास आ कर बैठ गए।
मेरी विचारों की तंद्रा को अंकल के स्वर ने तब तोड़ा जब उन्होंने पूछा- लीना, कैसी हो?
मैंने कहा- जी, ठीक हूँ।
तब उन्होंने रवि से पूछा- तुम दोनों पीने के लिए क्या लोगे? कुछ ठंडा या फिर गर्म।
मैंने और रवि ने एक साथ ही बोल पड़े- जी नहीं, कुछ नहीं चाहिए।
लेकिन वह माने नहीं और उनके बार बार कहने पर हमने ठंडे के लिए कह दिया तब वह फ्रिज में से मेरे लिए लिम्का और रवि एवं अपने लिए बियर ले आये।
थोड़ी देर में जब हमने अपने पेय पी लिए तब अंकल आराम से सोफे पर बैठने के बाद पूछा- अब तुम दोनों बताओ कि तुम्हारी समस्या क्या है?
मुझे चुप देख कर रवि बोला- अंकल, मैंने आपको बता चुका हूँ कि मैं दिन भर काम करते हुए इतना थक जाता हूँ कि रात को लीना के साथ संसर्ग नहीं कर पाता हूँ। अगर मैं कोशिश भी करता हूँ तो जैसे वह चाहती है वैसे नहीं कर पाता हूँ। मैं उसे संतुष्ट तो बिल्कुल ही नहीं कर पाता हूँ क्योंकि मेरा शीघ्र-पतन हो जाता है। खाना खाते ही मुझे नींद आने लगती है इसलिए कई बार तो मैं लेटते ही गहरी नींद में सो जाता हूँ।
तब अंकल ने पूछा- क्या तुम बता सकते हो कि लीना किस तरह सेक्स करना पसंद करती है?
रवि ने उत्तर दिया- वह चाहती है कि मैं पहले उसकी उरोजों को चूसूं। फिर उसकी योनि में उंगली करने के उपरान्त उसे चाट कर उत्तेजित करूँ। उसके बाद मैं अपना लिंग उससे चुसवाऊँ तथा अंत में उससे संसर्ग करूँ।
अंकल ने कहा- रवि, तुम्हें इसमें दिक्कत क्या है? लीना कुछ अलग या ज्यादा तो नहीं मांग रही है।
तब रवि ने कहा- मुझे योनि को चूसना और चाटना नहीं आता और अच्छा भी नहीं लगता। मैं अपना लिंग बिल्कुल भी नहीं चुसवाना चाहता हूँ क्योंकि अक्सर चूसते समय लीना अपने दांतों से उसे काट लेती है जिससे मुझे बहुत तकलीफ होती है। लीना द्वारा लिंग चूसे जाने से मैं कुछ अधिक उत्तेजित हो जाता हूँ और इसी कारण मेरा शीघ्र-पतन भी हो जाता है।
रवि की बात सुनने के बाद अंकल मेरी ओर घूमे और मुझसे कहा- लीना, अब तुम बताओ कि तुम्हारी क्या समस्या है?
जब शर्म के मारे मैं चुप रही और अपने सिर झुका कर बैठी रही तब अंकल मेरे पास आ कर बैठ गए और मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा- देखो लीना, मैंने तुम दोनों को यहाँ तुम्हारी समस्या का हल ढूँढने के लिए ही बुलाया है। अगर तुम संकोच करोगी और चुप रहोगी तो मैं तुम्हारी मदद कैसे कर पाऊँगा। तुम्हें जो कहना हो वह खुल कर कहो तभी तो हम तुम्हारी व्यथा समझ पायेंगे और उसका हल निकाल पायेंगे।
अंकल की बात सुन कर मैं शर्म का घूँघट उतार कर बोल पड़ी- अंकल, मैं तो रवि से बहुत प्यार करती हूँ और शादी के बाद से अब तक सिर्फ उससे ही संसर्ग करती आई हूँ। मैं हमेशा उसके साथ ही सम्भोग करना चाहती हूँ लेकिन अगर उसके साथ सहवास में मुझे आनन्द एवं संतुष्टि नहीं मिले तो मैं क्या करूँ? यह बात मैं रवि से नहीं कहूँ तो और किस से कहूँ?
तब अंकल ने पूछा- तुम क्या चाहती हो?
मैंने कहा- अंकल मैं चाहती हूँ कि रवि संसर्ग शुरू करने से पहले मेरे उरोजों को एवं योनि को तब तक चूसे जब तक मैं अच्छी तरह से उत्तेजित नहीं हो जाती।
अंकल ने कहा- रवि तो कहता है कि उसे योनि चूसनी नहीं आती तथा उसे योनि चूसना अच्छा भी नहीं लगता।
तब मैंने कहा- तो ये सीखते क्यों नही? मैंने कई बार इनसे कहा है कि उनको जैसी भी चूसनी आती है वैसे ही चूस देवें और जो कमी होगी मैं बता दूंगी जिसे वह अगली बार सुधार लें। लेकिन ये तो योनि के पास अपना मुख तक नहीं ले जाते और आज तक उसे चूसना तो छोड़ो इन्होंने तो उसे कभी छुआ तक नहीं है। बस अपना लिंग उसमे डाल कर थोड़ा हिल लेते हैं और फिर योनि के अन्दर उससे थूकवा कर करवट बदल कर सो जाते हैं।
अंकल ने पूछा- तुम और क्या चाहती हो?
मैंने उत्तर दिया- मैं इन्हें कई बार बता चुकी हूँ कि मैं क्या चाहती हूँ और आज आपके सामने एक बार फिर बता देती हूँ। मैं चाहती हूँ कि ये मुझे अपने लिंग को खूब चूसने दे। अगर कभी उत्तेजना की हालत में मेरा दांत लग गया था तो मुझे बता देते ताकि मैं और भी अधिक सावधानी से चूसूं। हर स्त्री की सबसे प्यारी वस्तु उसके पति का लिंग होता है, जो उसे जीवन के सबसे बड़े सुख, आनन्द और संतुष्टि की अनुभूति कराता है तो वह क्यों उसको नुकसान पहुँचाना चाहेगी?
मैंने आगे कहा- मैं तो रवि के लिंग को अपनी जान से भी अधिक प्यार करती हूँ तो फिर मैं उसको नुकसान पहुंचा कर अपना ही अनिष्ट क्यों करुँगी। दूसरी बात है कि रवि के लिंग में से निकलने वाला रस मुझे बहुत स्वादिष्ट लगता है इसलिए मैं चाहती हूँ कि रवि मुझे उस रसपान से वंचित नहीं रखे। मैंने तो रवि को कई बार कहा है कि पहले मेरे दांतों वाले मुँह में अपना रस डालने के बाद ही मेरे बिना दांतों के मुँह में अपना रस उड़ेल दिया करें, लेकिन यह मानते ही नहीं।
मैं बिना रुके बोलती रही- मैं चाहती हूँ कि रवि मेरे शरीर की जो भी ज़रूरतें है वह अच्छी तरह से पूरी करे और मुझे जीवन का सबसे बड़ा सुख, आनन्द और संतुष्टि दे। लेकिन रवि ने मुझे यह सुख, आनन्द और संतुष्टि दे सकने की कभी चेष्टा ही नहीं करते हैं।
मेरी बात सुन कर अंकल कुछ देर के लिए चुप हो गए और कभी मुझे तथा कभी रवि की ओर देखने लगे।
फिर उन्होंने अपना गला साफ़ करते हुए कहा- तुम दोनों की बात सुनने के बाद मैं यह महसूस करता हूँ कि तुम दोनों अपनी जगह सही हो और तुम जो चाहते हो वह भी मिलना चाहिए लेकिन कुछ पाने के लिए कभी कभी कुछ छोड़ना भी पड़ता है।
अंकल ने आगे बोलते हुए कहा- पहली बात यह है कि तुम दोनों को अपनी नापसंद की जिद छोड़नी पड़ेगी और एक दूसरे की पसंद के लिए जो जिसे चाहिए वह उसे देना पड़ेगा।
अंकल की बात सुन कर रवि ने सोफे से उठते हुए कहा- मैं साफ़ साफ़ कहना चाहूँगा कि मैं जितना कर रहा हूँ वह बता दिया है और सिर्फ उतना ही करूँगा और उससे अधिक कुछ नहीं करूँगा। इसीलिए तो मैंने आप से अनुरोध किया था कि आप लीना के साथ वह सब करें जो वह चाहती है जिससे उसे मन-चाहा आनन्द एवं संतुष्टि मिले ताकि हमारी घर गृहस्थी बनी रहे।
उसके बाद रवि से कमरे के दरवाज़े के पास खड़े हो कर कहा- अंकल, मैं लीना से बहुर प्यार करता हूँ और उसे खुश देखना चाहता हूँ। इसलिए अगर वह यौन सुख, आनन्द एवं संतुष्टि प्राप्ति के लिए आप से सम्बन्ध बनाती है तो मुझे कोई परेशानी और आपत्ति नहीं है। मैं स्वेच्छा से आप दोनों को इस गतिविधि के लिए अपनी सहमति देता हूँ।
इससे पहले अंकल और मुझ में से कोई उसे कुछ बोल सके रवि तेज़ी से बाहर का दरवाज़ा खोल कर सीढ़ियाँ उतर कर घर चला गया।
कहानी जारी रहेगी।
[email protected]
What did you think of this story??
Comments