पति के दोस्त की दुल्हन बनकर सुहागरात

(Pati Ke Dost Ki Dulhan Bankar Suhagrat)

दोस्तो, मैं तृप्ति एक बार फिर से आपके सामने उपस्थित हुई हूं. पहले आप सब पाठकों को मेरा धन्यवाद. इसलिए क्योंकि मेरी पिछली कहानी
पति के दोस्त ने मातृत्व का सुख दिया
को आप सबने बहुत ही प्रेम दिया.

नए पाठक जो कि अभी ये कहानी पढ़ रहे हैं, उससे मेरा निवेदन है कि वे मेरी पहली उक्त को कहानी को पढ़ लें, ताकि उनको इस कहानी का शुरुआत से ही आनन्द मिल सके.

जैसा कि पिछली कहानी में आपने पढ़ा कि मैंने मयूर को पटा लिया था. मयूर मेरे पति के बहुत ही अच्छा दोस्त था. मैंने उसके साथ सेक्स संबंध बना लिए थे. जिसके फलस्वरूप मैं उसके बच्चे की मां बन गई थी. इस बच्चे की चाहत के चलते हम दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार भी करने लगे थे. हम दोनों ही आपसी सहमति से ये रिश्ता बरकरार रखना भी चाहते थे, इसलिए हम लोग जब भी टाइम मिलता, साथ में वक्त गुजार लेते हैं.

अब आगे की कहानी पर आते हैं:

पहले मैं एक बार फिर से कम शब्दों में अपना परिचय दे देती हूं. मैं तृप्ति पटेल, उम्र वही है, जो आप अभी मन में सोच रहे हो. फिगर 32-28-34 की है. मैं दिखने में भी बहुत खूबसूरत हूं. ऐसी कि पहली नजर में ही आप अपना दिल और सब कुछ … मुझ पर न्यौछावर कर दो.

मैंने सोचा कि क्यों ना मयूर से शादी करके उसे भी यहां बुला लूं और सब कुछ मेरे पति (प्रतीक) को बता दूं. लेकिन मन में एक ऊहापोह थी कि क्या प्रतीक मेरी भावनाओं को समझेगा? अगर उसने कहीं मुझे घर से बाहर निकाल दिया या बच्चा गिराने को कहा तो क्या होगा.

मुझे ये सब सोच कर बहुत डर लग रहा था. फिर मैंने सोचा कि जब प्रतीक का मूड एकदम खुशनुमा होगा, तब उनको बताऊंगी. तब भी मुझे डर बहुत लग रहा है.

ये सब बताने से पहले मैंने इस बाबत मयूर से बात करना ठीक समझा. मैं इस बारे में बताने के लिए उसको कॉल किया और कहा- मुझे तुम्हारी जरूरत है और बहुत याद भी आ रही है जान.
उसने भी मस्ती में कहा- आपका ये दीवाना थोड़ी देर में आपकी खिदमत में हाजिर हो जाएगा जानेमन.

थोड़ी देर बाद वो आया और उसने डोरबेल बजाई. मैंने जाकर दरवाजा खोला और उसे देख कर मुस्कुरा पड़ी.
अगले ही पल उसने मुझे गोद में उठा लिया और बोला- हमारे होते आप चलने की तकलीफ़ क्यों उठा रही हो जानेमन.

मैंने भी उसे प्यारी सी स्माइल देकर चूम लिया. वो मुझे उठाए हुए ही बहुत ही प्यार से मेरी चुम्मी का आनन्द लेने लगा. साथ ही वो मुझे चूमते हुए मेरे रूम में ले गया. कमरे में ले जाकर मयूर ने मुझे बेड पर लेटा दिया और मेरे साथ लिपट कर बैठ गया.

उसने कहा- हां अब बताओ जान कि आपने मुझे क्यों याद किया था?
मैंने मयूर को सब कुछ बताया कि मैं तुमसे शादी करना चाहती हूं और हम दोनों अपने होने वाले बच्चे के बारे में प्रतीक को बता देते हैं.

वैसे भी मयूर ने अब एक किराए का मकान ले लिया था. मकान क्योंकि परिवार के बिना घर नहीं होता, वो सिर्फ एक इमारत या सिर्फ बना हुआ मकान होता है. जब तक उसमें गृहस्वामिनी न हो तब तक उस मकान को मकान कहना अनुचित होता है.

मयूर से मेरा मिलना अब बहुत ही कम मिलना हो पाता था, परंतु हम दोनों के बीच मैसेज वगैरह तो पूरे दिन चालू ही रहते थे. वो भी अब अच्छे खासे पैसे कमाने लगा था. उसकी एक बात बहुत ही अच्छी थी कि वो और मेरे पति आपस में बहुत ही अच्छे दोस्त थे, तो मयूर कभी भी हमारे घर आ जा सकता था. उसके आने से मेरे पति भी उसे कुछ नहीं कहते थे.

मैं कभी कभी बाजार भी उसके साथ ही चली जाती या घर का कोई काम होता, तो भी उसे बुला लेती थी.

वैसे भी मयूर ने अभी तक शादी नहीं की थी और वो करना भी नहीं चाहता था क्योंकि मयूर किसी लड़की को लाईक करता था और उस लड़की ने दूसरे किसी लड़के से शादी कर ली थी. इससे मयूर उदास हो गया था और उसी के प्यार में पूरी जिंदगी कुंवारा बैठने वाला था. बाद में जब मैं उसकी जिंदगी में आयी और मयूर को भी उसकी माशूका की तरह टाइम देने लगी. तो वो भी उस लड़की के गम से बाहर आ गया.

लेकिन उसने मुझसे कहा था कि मैं आपके अलावा किसी और से प्यार नहीं करूंगा और शादी भी नहीं करूंगा.

बाद में हमने फैसला किया कि हम दोनों शादी कर लेंगे, लेकिन पहले प्रतीक को सब कुछ बता देते हैं.

मैंने भी मन ही मन सोच रखा था कि किसी न किसी तरह मैं मयूर को वापिस घर ले आऊंगी और उसकी अधूरी दुनिया पूरी कर दूंगी.

आज वो मेरे पास आकर मेरे मम्मों का मजा लेने लगा. फिर मैंने उसे रोकते हुए शराराती अंदाज में कहा- अब जो भी होगा, वो शादी के बाद होगा मयूर जी.
मयूर ने मेरे दूध दबाते हुए कहा- अन्दर बाहर का खेल रहने भी दो, तो कम से कम इनसे तो खेलने दो ना.

मैंने भी हामी भर दी. आखिरकार मेरी जान उसी में तो बसती थी न, तो उसे मना कैसे कर सकती थी.

रात को हमने साथ में डिनर किया और फिर वो चला गया.

दो दिन बाद मैंने देखा कि प्रतीक का मूड बहुत अच्छा है और आज उसको छट्टी भी थी. तो मैंने मयूर को कॉल करके बुला लिया. मैंने उसको फोन पर ही कह दिया था कि आज हम दोनों प्रतीक को सब कुछ बता देते हैं.

वो मेरे घर आया, तो हम दोनों प्रतीक के पास गए. मैं प्रतीक की गोद में बैठ गई और उसके कान के पीछे उंगली घुमाने लगी.

मैं- प्रतीक, मुझे तुमसे एक बहुत ही जरूरी बात करनी है.
प्रतीक- मेरी जानू को क्या तकलीफ़ है?
ये कह कर वो मेरे बालों में उंगलियां फेरने लगा.

मैं- मैं जब आज डॉक्टर के पास अपने दोनों के टेस्ट रिपोर्ट लेने गई थी, तो उसने कहा था कि तुम्हारे शुक्राणु कम हैं.

प्रतीक ने हंसते हुए कहा- मतलब कि डॉक्टर ने तुमको मेरी झूठी रिपोर्ट दी थी. क्योंकि मैं तो बाप बनने वाला हूं . … सही है ना?
मयूर- नहीं … वो तुम्हारा बच्चा नहीं है.
प्रतीक ने थोड़े गुस्से के साथ मेरे सामने देखते हुए पूछा- क्या … क्या ये सच कह रहा है?

मैंने सिर्फ हां में अपना सिर हिलाया और इसी शर्म के कारण मेरी नजर नीचे झुक गई.

प्रतीक ने मेरे सिर को उठाते हुए मुझसे पूछा- सब कुछ साफ़ साफ़ बताओ ना.
मैं- जब मैंने ये रिपोर्ट पढ़ी थी, तो मुझे बहुत दुख हुआ था और मैं रोने लगी क्योंकि इस हिसाब से तो मैं कभी मां नहीं बन सकती थी. फिर मैंने सोचा कि क्यों न मैं किसी और के साथ सेक्स करके मां बन जाऊं … लेकिन किसी अपने के साथ ही ऐसा करना ठीक रहेगा. तो मैंने सोचा कि मयूर ही ठीक रहेंगे.

प्रतीक मयूर के सामने गुस्से की नजर से देखने लगा.

मैं प्रतीक का मुँह उंगलियों से मेरी तरफ करते हुए बोली- उसमें उसकी कोई गलती नहीं है. उसको मैंने ही कहा था. क्या तुम नहीं देखना चाहते थे कि मैं भी दूसरी औरतों की तरह मां बनूं?

इसके बाद प्रतीक गुसा होता या कुछ कहता, मैंने औरतों वाला ड्रामा शुरू कर दिया और उसे बांहों में भर कर रोने लगी.

प्रतीक- रुको, मुझे कुछ सोचने दो.
मैं- मैं सब ठीक कर दूंगी जानू … मैं उससे शादी कर लूंगी और तुम्हें कोई ऐतराज ना हो, तो हम तीनों एक साथ रहें लेंगे. वैसे भी वो बेचारा मेरे सिवा किसी और लड़की को देखता भी नहीं है. आगे तुम्हारा फैसला … जैसा तुम कहोगे … हम लोग वैसा ही करेंगे.

इतना कह कर मैं वहां से रोते हुए अपने कमरे में चली गई.

थोड़ी देर बाद प्रतीक कमरे में आया.
प्रतीक- अच्छा तुम बताओ कि तुम क्या चाहती हो?
मैं- सिर्फ मुझे माफ कर दो और इस नन्हीं सी जान को इस दुनिया में आने दो. इसमें इसकी और मयूर की कोई गलती नहीं है. मैंने ही उसे ये सब करने के लिए उकसाया था. तुम्हें जो सजा देनी है मुझे दे दो.

प्रतीक- साफ़ साफ़ बताओ, तुम क्या चाहती हो?
मैं- यही कि मैं मयूर से शादी कर लूं ताकि वो भी लाइफ का मजा ले और जिंदगी भर कुंवारा ना रहे. मैं इससे हमारे रिश्ते पर कोई आंच नहीं आने दूंगी बल्कि हम तीनों को साथ में रहने में और भी ज्यादा मजा आएगा. जानू अगर तुम चाहो, तो ये सब हो सकता है.

प्रतीक थोड़ी देर सोचते हुए बोला- ठीक है मैं तुम्हारी मयूर से शादी कराऊंगा.
मैं- उसे तो बुलाओ, वो अपनी गलती है ऐसा सोच कर वहीं का वहीं हॉल में खड़ा है. उसे भी तो ये खबर सुना देते हैं न.

फिर हमने मयूर को ये खबर सुनाई. वो तो सिर्फ मुझे ही देखता रहा. फिर हम लोग शादी के तैयारी में जुट गए.

पूरे विधि विधान के हिसाब से मूहर्त निकाला, जो कि एक हफ्ते के बाद का था. मैं बहुत खुश थी कि मेरे पति हमारी शादी के लिए मान गए थे.

हम सब शादी की तैयारी करने लगे. शादी का जोड़ा, गहने और भी बहुत कुछ खरीद लिया.

आखिरकार वो दिन आ ही गया, जब मैं मयूर की होने जा रही थी. मैं बिल्कुल दुल्हन की तरह तैयार हुई और जब बाहर आई, तो प्रतीक ने मुझे देखते ही एक प्यारा सा चुम्बन किया ताकि मुझे अहसास हो जाए कि वो हर वक्त मेरे साथ है. मैंने भी जबाव में उसे एक प्यारा सा लंबा सा किस किया.

फिर मैं शादी वाली जगह प्रतीक के साथ आ गई और उससे मिलने के बाद मैं बाजू के कमरे में पंडितजी के बुलावे का इंतज़ार करने लगी.

जब पंडित जी ने बुलाया, तो प्रतीक मुझे लेने आया और मयूर के पास ले गया.

जब मैं बाहर आई, तो मयूर मुझे देख कर दंग रह गया और धीरे से बोला- ऊम्म … आहह … मेरी तृप्ति को किसी की नजर ना लगे.
मैं भी शर्मा गई.
वो भी बड़ा ही सेक्सी लग रहा था.

विधि विधान के अनुसार शादी शुरू हुई. हम दोनों ने अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे लिए. बाद में पंडित जी ने मयूर से मेरी मांग में सिंदूर भरने को कहा. तभी मैंने अपनी आंखें बंद कर लीं और सिर्फ इस पल का आनन्द उठाने लगी. वो फीलिंग ऐसी थी कि मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती.

बाद में हम दोनों ने इस हसीन पल की बहुत सारी सेल्फ़ी भी लीं.

रात को तकरीबन 9 बजे हम सब घर आए और घर के गेट से ही मयूर ने प्रतीक के सामने मुझे अपनी गोद में उठा लिया.

प्रतीक ने स्माइल करते हुए कहा- आज तुम्हारा दिन है मयूर, जी लो इस दिन को.
मयूर ने प्रतीक का धन्यवाद किया.

प्रतीक ने भी कहा- तुमने हमारे खानदान को वारिस दिया है, तो मैं इतना तो कर ही सकता हूं ना अपने सबसे करीबी दोस्त के लिए. अब हम दोनों मिल कर अपनी पत्नी का मजा लेंगे.
वे दोनों मुस्कुराने लगे.

मयूर मेरे सामने देख कर कहने लगा कि मेरा बस चले तो मैं तुम्हारे पांव जमीन पर छूने ही ना दूं.
मैंने उसकी इस बात पर उसको सामने से नजर भर कर देखते हुए एक प्यारी सी स्माइल दे दी.

मुझको बहुत सारे मर्दों ने अपनी गोद में लिया है … लेकिन मयूर की गोद में जो मजा आता था ना … वो मुझे कभी किसी और की गोद में कभी नहीं आया था.

प्रिय पाठक आप यदि मेरी इस बात का अर्थ न समझे हों, तो इसको मैं बाद में कभी आपको लिखूँगी.

बाद में हम मयूर के कमरे में चले गए उसने कमरा एकदम बहुत ही अच्छी तरह से सजा रखा था. मैं एक नई नवेली दुल्हन की तरह ही जाकर बेड पर बैठ गई. मैंने घूंघट मुँह तक ले लिया.

थोड़ी देर बाद मयूर कमरे में आया. वो प्रतीक से कुछ बात करके आया था. उसके साथ प्रतीक भी कमरे के दरवाजे तक आया था. प्रतीक ने हम दोनों को बेस्ट ऑफ लक कहा और वहां से अपने कमरे में सोने चला गया.

अब हमारी सुहागरात प्रारंभ हो गई.

आह … क्या बड़ी ही मस्त फीलिंग थी. मेरा घूंघट उठाकर मयूर मेरी गोद में लेट गया और मेरे चेहरे को काफी देर तक देखता रहा. उसने एक हाथ से मेरे चेहरे को नीचे की तरफ झुकाया और मुझे किस करने लगा. वो कभी मेरे गाल पर चुम्बन लेता, तो कभी होंठ पर चूमता, तो कभी गले पर … तो कभी कान के पीछे.

मैं लगातार एक अलग अहसास से गर्म होती जा रही थी. मैंने भी उसे बहुत ही टाईटली अपनी बांहों में भर लिया.

मयूर ने मेरी चूचियों को कपड़ों के ऊपर से मसलते हुए मुझे बेड पर लेटा दिया. बेड पर लेटाने के बाद उसके हाथ मेरे ब्लाउज के हुक खोलने में व्यस्त हो गए. मेरा ब्लाउज खुलते ही ब्रा में कसी हुई मेरी चूचियां उसकी आंखों के सामने उछलने लगी थीं.
वो मेरी रसीली चूचियों को अपने हाथों से सहलाने लगा. फिर झुक कर उसने अपने होंठ मेरी चूचियों के बीच बनी दरार पर रख दिए और जीभ से मेरी दूध घाटी को ऐसे चाटने लगा जैसे वो किसी मक्खन के गोले को चाट रहा हो.

मैंने उसके बालों में हाथ फेरते हुए उसके मुँह को अपनी चूचियों पर दबा लिया. उसके हाथ मेरी चूचियों के साथ साथ मेरे नंगे पेट पर भी घूम घूम कर मेरे मखमली शरीर का आनन्द ले रहे थे.
उसके हाथों में ना जाने कैसा जादू था कि मैं उत्तेजना के मारे हमेशा सिसकारियां भरने लगती थी.

तभी उसने मेरी चूचियों को मेरी खुली हुई लटकती ब्रा से बाहर निकाल लिया. अब वो मेरी दायीं चूची के निप्पल को अपने होंठों में दबा कर चूसने लगा. मुझे भी मज़ा आने लगा था. तभी मेरी चूत में भी पानी आने लगा था.

कुछ देर चूचियों का मर्दन करने के बाद वो उठा और उसने अपने कपड़े उतारने शुरू किए.

मैं उत्सुक निगाहों से उसके लंड के दर्शन की प्रतीक्षा करने लगी. जब उसने अपना अंडरवियर नीचे किया, तो उसका फनफनाता लंड देख कर मेरी तो बांछें खिल उठीं. शायद यह उन सब लंडों से ज्यादा लम्बा और मोटा था, जो मैंने आज से पहले अपनी चूत में लिए थे.

मयूर का लंड देख कर ही मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया था. पूरा नंगा होने के बाद उसके हाथ अब मेरे कपड़ों का बोझ कम करने में व्यस्त हो गए. कुछ ही सेकंड्स में ही उसने मुझे भी नंगी कर दिया.

उसने झुक कर मेरी जांघों और नाभि को अपनी जीभ से चाटना शुरू कर दिया. तभी मैंने हाथ बढ़ा कर उसके मूसल जैसे लंड को अपने हाथों में पकड़ कर सहलाना शुरू कर दिया.

मयूर तो जैसे सातवें आसमान पर पहुँच गए. मुझे लंड मसलता देख, वो भी मेरी चूत के आसपास अपनी उंगली घुमाने लगा. फिर उसने अपनी बीच वाली उंगली मेरी चूत में घुसा ही दी.

मैंने उसके लम्बे लंड को पकड़ कर अपनी तरफ खींचा, तो उसने अपना लंड मेरी तरफ कर दिया. मैंने बिना देर किये उसके लंड के सुपारे को अपनी जीभ से चाट लिया और उसको अपने होंठों में दबा लिया.

अपने लंड पर मेरे होंठों के स्पर्श मात्र से उसके मुँह से एक मदभरी ‘आह …’ निकल गई.

जब मैंने उसके लंड को अपने मुँह में भर कर चूसना शुरू किया, तो उसने भी 69 में आकर अपनी जीभ मेरी चूत पर रख दी और वो मेरी चूत से निकल रहे कामरस को नमकीन शहद की तरह चाटने लगा.

“आह्ह्ह … चाटो मेरे राजा … बहुत तड़पाया है तुमने … आज खा जाओ मेरी चूत … बना लो मुझे अपनी रानी …” मैं मस्ती के मारे बड़बड़ाने लगी थी. आज मयूर के लंड का स्वाद सच में लाजवाब लग रहा था.

अगले लगभग पंद्रह मिनट तक मैं मयूर का लंड चूसती रही और वो भी मेरी चूत का शहद चाटता रहा. इसी दौरान मेरी चूत दो बार पानी छोड़ चुकी थी, जिसे वो चाट गया था.

अब वो मेरी टांगों के बीच में आ गया और अपने लंड का सुपारा मेरी चूत पर रगड़ने लगा. मेरी चूत भी मुँह खोल कर उसके लंड को खा जाने के लिए तैयार हो गई थी.

तभी उसने अपना लंड मेरी चूत पर दबा दिया. मयूर का लंड बहुत मोटा था, जिस कारण मेरी चूत खुल गई थी. उसने अगले ही एक जोरदार धक्का लगा दिया और लगभग आधा लंड मेरी चूत में समा गया.

उसका ये धक्का बहुत करारा था, तो मेरी चीख निकल गई- हाय्य … फट … गईईई मेरी तो … धीरे मेरे राजा.

पूरा लंड जाते ही वो रुक गया और मेरी चूचियों को मसलते हुए मेरे होंठ चूसने लगा. कुछ पल बाद मैंने नीचे से अपनी गांड उछाल कर उसको आगे बढ़ने का इशारा कर दिया.

मैं- अब किस बात का इंतज़ार है मेरे पतिदेव … अब शुरू हो जाओ और मिटा दो सारी खुजली मेरी चूत की … और बुझा लो प्यास अपने लंड की.

ये सुनते ही मयूर शुरू हो गया और पहले धीरे धीरे … फिर लम्बे लम्बे धक्के देने लगा. उसका मोटा मूसल मेरी चूत में धमाल मचा रहा था.

लगभग हर धक्के पर मैं कराह उठती थी, पर इतना मज़ा आ रहा था कि लिख कर बताना बहुत मुश्किल है.

“उम्म्ह… अहह… हय… याह… चोदो मेरे राजा … जोर से चोदो … फाड़ दो अपनी दुल्हन की चूत … मना लो सुहागरात … आह्ह्ह्ह … फाड़ डालो …”

मैं मस्त हुई गांड उछाल उछाल कर उसके लंड को अपनी चूत में ले रही थी. वो भी मस्त होकर मुझे चोद रहा था. सच में मेरे नए पति मयूर मेरी क्या मस्त चुदाई कर रहे थे … मेरी चूत को तो मज़ा ही आ गया था.

मोटे लंड का एहसास भी मुझे मेरी पहली सुहागरात पर हुई चुदाई की याद दिला रहा था.

मयूर का मोटा लंड फंस फंस कर मेरी चूत में जा रहा था. चूत की चिकनी दीवारों को रगड़ता हुआ अन्दर बाहर हो रहा था.

आखिर दस मिनट की चुदाई के बाद उसके धक्कों की स्पीड बहुत तेज हो गई, मैं समझ गई कि अब मयूर अपने लंड के रस से मेरी चूत की प्यास बुझाने ही वाला है.

लगभग पंद्रह बीस धक्के और लगे और मेरी चूत से झरना फ़ूट पड़ा, साथ ही मयूर के लंड से गर्म गर्म वीर्य की बरसात मेरी चूत के अन्दर होने लगी थी.

मैं तो प्यार के मारे मयूर से लिपट गई और उसको अपनी बांहों और टांगों में जकड़ लिया. मैं उसके लंड से निकले रस को अपनी चूत की गहराइयों में महसूस करना चाहती थी. उसके लंड से बहुत पानी निकला था … मेरी पूरी चूत भर गई थी.

हम दोनों थक कर चूर हो गए थे, दोनों एक दूसरे की बांहों में लिपट कर लेटे रहे.

कुछ देर बाद वो उठा और बाथरूम में जाकर फ्रेश होकर आ गया. कमरे में आते ही मयूर मेरे होंठ चूसने लगा. फिर उसने मुझे भी फ्रेश होकर आने को कहा, लेकिन मैंने मना कर दिया.

मैंने उसे बताने के लिए कातिल सी और सेक्सी सी स्माइल दी कि मैं अब क्या चाहती हूं.

वो भी समझ गया और हम दोनों का दूसरा दौर शुरू हो गया. भरपूर चुदाई के बाद थकान होना लाजिमी था. सो उसके बाद में हम ऐसे ही सो गए.

जब मैं उठी, तो घड़ी की ओर देखा, सुबह हो गई थी. वो भी मेरे साथ ही जग चुका था.

बाद में मैं नहा कर तैयार हुई और उसके नाम का और मेरे पहले पति दोनों के नाम का सिंदूर मांग में भर लिया.

हमारी तीनों की जिंदगी ऐसे ही सुख से बीतने लगी. माफ़ करना तीनों की नहीं चारों की, मेरे पेट में जो अभी प्यारा सा बच्चा है, उसे कैसे भूल सकती हूं.

दोस्तो, कैसी लगी मेरी दो पति के साथ वाली सेक्स कहानी, मुझे जरूर बताइए और कोई सुझाव हो तो वो भी बिना संकोच के जरूर भेजिए. मैं उस पर, जितना हो सकेगा, उतना अमल करने की कोशिश करूंगी. और हां मुझे माफ़ कीजिएगा … क्योंकि मैं सबको ईमेल का रिप्लाई नहीं दे पाती.

एक बार फिर से आप सभी पाठकों का मेरा यानि तृप्ति पटेल का बहुत बहुत धन्यवाद. मेरा ईमेल एड्रेस है.
[email protected]

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