पति से बुझे ना तन की आग-1
(Pati Se Na Bujhe Tan Ki Aag- Part 1)
प्रणाम पाठको, कैसे हो! उम्मीद है सभी कुशल मंगल होंगे।
दोस्तो, वैसे मैं इस अन्तर्वासना की काफी पुरानी पाठक हूँ मगर आज पहली बार अपनी एक दिलचस्प सच्ची चुदाई रखने जा रही हूँ।
मेरी उम्र इस वक्त उनतीस साल है, मैं दो बच्चों की माँ हूँ लेकिन कोई कह नहीं सकता कि मेरी उम्र उनतीस होगी और मेरे दो बच्चे भी होंगे, लेकिन दोस्तो, है तो सच्चाई कि मेरे दो बच्चें हैं।
मेरे पति एक मिलट्री डेरी फार्म में मैंनेजर हैं, काफी मोटी कमाई है उनकी ऊपर से, हमारी लव-मैरिज हुई थी, उन्होंने शादी से पहले ठोक दिया था, तब उनके लौड़े में काफी जान थी, वो थे भी मुझसे चार साल बड़े, पैसा बहुत था, ठाठ-बाठ देख मैं उन पर लट्टू हो गई थी, वो भी मेरी जवानी के जाल में फंस गए, मैंने उनको अपने जिस्म से ऐसा लपेटा कि वो जिंदगी भर मेरे साथ लिपटने को तैयार हो गए थे।
खैर, वैसे वो मेरे पहला प्यार नहीं थे क्यूँकि मैं एक गर्म औरत हूँ और शादी से पहले तो क्या कहने थे।
पति से पहले भी मेरी जिंदगी में युवक आये। अपनी यह बात शुरु करने से पहले मैं आपको अपनी पहली ठुकाई के बारे में और अपने कुछ पहले यारों के बारे में थोड़ा बताना चाहती हूँ, उम्मीद है आपकी इजाज़त होगी!
मैं बहुत मनचली रही हूँ, ख़ास करके किशोरावस्था में काफी रसीली किस्म की लड़की रही हूँ। मेरा आकर्षण शुरु से ही मेरी छातियाँ रही हैं, आम लड़कियों से पहले मेरे स्तन विकसित होने लगे थे, देखते ही देखते वो नोकदार हो गए, जल्दी ही रसीले बन गए, उसी के ज़रिये कई मर्दों की पैंट में भूचाल ला देती थी।
गुप्ता जी का हमारे परिवार से ख़ासा प्यार लगाव था, वो एक तो पापा के दोस्त दूसरे हमारे पड़ोसी, उनका बेटा आलोक जवान था, इधर मैं जवान हो रही थी, कब हमारा टांका फिट हुआ, पता नहीं चला। मौका देख हम दोनों चुम्मा-चाटी करने लगे, वो मेरी टीशर्ट में हाथ घुसा मेरे मम्मों को दबाने लगा था, मेरे होंठ चूसने लगा था लेकिन ज्यादा मौका नहीं मिलता था।
मेरा कमरा पोर्च में था, वही मेरा स्टडी और बेडरूम था, छत से छत जुड़ती थी, तब मोबाइल हमारे पास नहीं थे लेकिन लैंडलाइन थे नीचे के फ़ोन की तार निकाल कॉर्डलेस छुपा ले जाती थी।
एक रात वो मुझे मिलने की जिद करने लगा, बोला- तू दरवाज़ा खुला रख, मैं अंदर घुस कर बंद कर लूँगा।
आग इधर भी थी, मैं मान गई।
पापा-माँ नीचे अपने कमरे में थे, छोटा भाई, दादा जी के साथ सोता था, बड़ी बहन वैसे ही हॉस्टल में थी, छोटा बल्ब जलता छोड़ मैंने लाईट बुझा दी, उसने मुझे बाँहों में कस लिया। पहली बार बिस्तर में थे दोनों, उसने अपनी टीशर्ट उतारी, उसकी चौड़ी छाती पर मर्दाने बाल थे, इधर मेरी कोमल छातियाँ! उसने मेरा टॉप उतार दिया। रात को मैं ब्रा नहीं पहनती इस लिए सीधे ही उसको दर्शन हो गए। उसने अपना लोअर उतार फेंका और साथ में अपना अंडरवीयर भी!
हाय माँ! उसका लौड़ा देख मैं शर्म से लाल होने लगी।
वो बोला- जानेमन, पकड़ ना!
कांपते हाथों से मैंने उसका लौड़ा पकड़ा, उसने मेरा पाजामा भी अलग कर दिया, साथ ही पैंटी को भी! हल्का सा रोयाँ मेरी चूत के आसपास था, उसका हाथ लगते मैं बेकाबू होने लगी, उसने सुपारे को उस पर लगाया और रगड़ा। मैं और कामुक हो गई, वो ऊपर आकर अपना लौड़ा मेरे होंठों से रगड़ने लगा।
‘यह क्या?’
‘बस तुझे मजा आएगा! मुँह तो खोल!’ उसकी जिद से मैं हार गई और उसके लौड़े को मुँह में लेना ही पड़ा लेकिन जल्दी मुझे स्वाद आने लगा।
उसने कहा- चल सीधी लेट जा!
उसने मेरी जांघें फैला दोनों टांगों को अपने कंधों पर रख लिया, सुपारे को थूक से गीला करके उसने झटका दिया। मेरी तो फटने लगी, तीखा दर्द उठा।
उसने पलक झपकते हाथ से मेरा मुँह बंद कर दिया और नीचे से जोर का झटका लगाया, चीरता हुआ खंजर घुसने लगा, मैं रोने लगी पर वो कहाँ रुका, उसने घर्षण करना चालू कर दिया तो मुझे चैन मिला। अब उसकी रगड़ मुझे रोमांचित करने लगी थी, हाय क्या कहूँ! औरत बनने का सुख इतना मस्त होता। हाँ, दर्द तो इसका शुरुआती हिस्सा है लेकिन फिर जो मिलता है, वो मुझे इसको चूत में लेकर मालूम पड़ा।
अब मौका मिलते वो मुझे खुल कर रौंदने लगा, उसके मोटे लौड़े ने मेरी चूत का बाजा बजा दिया था। वैसे तो अक्सर लड़का, लड़की से जब दिल भर जाता है, बाहर और मुँह मरने लगता है, इधर मैं अब उससे मिल मिल कर बोर होने लगी थी, तभी घर से बाहर मेरा दूसरा चक्कर चला, विवेक नाम था उसका!
हट्टा-कट्टा था वो, लड़ाई झगड़े वाली लाइन में शामिल था वो, सब लड़कों का नेता था, वो जानता था कि मेरा पहले भी किसी लड़के से चक्कर था, उसको बस मेरी जवानी का रस पीना था, मुझे मस्त करना था, ठोकना था यह कह लो!
हमारी मुलाकातें सार्वजनिक स्थानों में हुई और आखिर एक दिन उसने अपने किसी दोस्त के घर का इस्तेमाल किया, वहाँ ले जाकर उसने मुझे नंगी कर दिया और मेरा अंग-अंग सहलाया, मेरे मम्मों को पिया और मेरी जवानी को मसला। उसका लौड़ा किसी से कम नहीं था, आठ इंच से ज्यादा ही होगा उसका लौड़ा जिसको मैंने जी भर कर चूसा और फिर अपनी चूत मरवाई।
ऐसे ही कई लड़कों के साथ मेरे चक्कर चले और मैंने और भी लौड़े अपनी चूत में डलवाए और आखिर में जिस पर रुकी वो थे मेरे पति थे, एक तो वो अमीर थे ऊपर से मुझसे थोड़े बड़े भी थे, हमारी मुलाक़ात एक पार्टी में हुई, जहाँ मेरा गदराया जोबन उनको ले डूबा, वो मुझ पर फ़िदा हो गए। मैंने भी उनको पूरी पूरी लाइन दी थी कि वो मेरी तरफ खिंचते चले आये थे।
वो अपने एक मिलिट्री अफसर की पार्टी में वहाँ आये थे, वेटर के ज़रिये उन्होंने अपना नंबर पास करवा दिया जिसको मैंने ख़ुशी ख़ुशी पकड़ लिया, मेरे पास मोबाइल नहीं था, मैंने होटल से निकल उनको फ़ोन किया उन्होंने एक बार फिर अपने प्यार का इज़हार किया, मैंने थोड़े नखरे ज़रूर किए, कुछ भावुक शब्द उन्होंने मुझे कहा कि वो रूम नंबर एक सौ चार में मेरा इंतज़ार कर रहे हैं।
मैंने कहा- यह सब सही नहीं होगा, शादी से पहले किसी भी मर्द से सीधा कमरे में मिलना मुझे सही नहीं लगता।
वो बोले- मैं तुझसे पसंद करने लगा हूँ और वादा करता हूँ कि जल्दी मैं तुझे अपनी रानी बना लूँगा। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉंम पर पढ़ रहे हैं।
किस्मत से मैंने काफी दिनों से अपनी चूत की झांटें नहीं हटाई थी, कुछ दिनों से लौड़ा ना लेने की वजह से थोड़ी कसी हुई भी थी तो बार बार आश्वासन देने के बाद मैं कमरे में गई, उन्होंने शेम्पेन के साथ मुझसे हाथ माँगा और एक रिंग पहना दी, फ़िर उन्होंने मुझे बाँहों में जकड़ लिया।
मैंने वहाँ भी थोड़ा विद्रोह किया लेकिन उनकी मर्दानगी से हार मैंने हथियार डाल दिए, एक एक कर हम दोनों के कपड़े उतरने लगे, उन्होंने दारु भी पी रखी थी।
पहले पहले मैंने खूब नखरे दिखाए, कोई पहल नहीं की, उन्होंने मेरा निप्पल चूसा, मैं सिसकारने लगी।
उन्होंने कहा- तू चूत का मुंडन नहीं करती क्या?
मैंने कहा- जी नहीं, हाँ, गर्मी के दिनों में ज़रूर!
‘ओये होए! मेरी रानी!’
उनका लौड़ा देख मेरी चूसने की इच्छा होने लगी लेकिन नहीं, मैंने खुद को वहीं रोक लिया।
जब उन्होंने मेरे अंदर घुसाया तो मैंने सांसें खींच ली और दर्द का नाटक करने लगी- प्लीज़ रहने दो ना! मैं इसको सह नहीं पाऊँगी।
बोले- बेबी, अभी तुझे मजा आएगा!
देखते ही उनका लौड़ा चलने लगा और मुझे मजा भी आने लगा और फिर वो मेरे दीवाने हो गए, आये दिन वो मुझे रौंदने लगे। फिर मेरे घर जाकर शादी का प्रस्ताव रख दिया। वो एक सरकारी पद पर नियुक्त थे, इससे मेरे भी परिवार वालों को क्या इतराज़ था, बात दोनों घरों तक गई तो मैं एक दिन उनकी दुल्हन बन कर उनके आंगन में चली गई।
उनका तबादला जम्मू में हो गया, मैं वहीं उनके साथ जाकर रहने लगी। पहले ही महीने में पेट से हो गई, मेरी सासू माँ नहीं हैं इसलिए मुझे मायके आना पड़ा।
यहाँ आलोक से मेरे संबंध फिर बनने लगे, मैंने पहली बार बेटी को जन्म दिया। छिला मायके में काट मैं वापस जम्मू चली गई।
वहाँ से उनकी बदली श्रीनगर हो गई, उनको कभी कभी द्रास और कारगिल जाना पड़ता था, जिंदगी निकल रही थी, लेकिन जब मैं मायके जाती तो बाहर मुँह मारने से नहीं हटती थी।
समय बीता, मैंने एक और बच्चे को जन्म दिया अबकी बार बेटे को जन्म दिया, लेकिन मेरे दोनों बच्चे बड़े आपरेशन से हुए इसलिए मेरी चूत कसी थी, अब मैं और वासना की भूखी हो गई, अब मेरा दिल और सेक्स करने के लिए करता। पति में वो दम-ख़म नहीं रहा था, फ़िर उनकी नौकरी ही ऐसी थी।
तभी श्रीनगर में ही मैं पति के दफ्तर में काम करने वाले क्लर्क की तरफ खिंची चली गई और मौका पाकर उसका मोटा लंबा लौड़ा चूत में डलवाया। यह जब भी गाड़ी के साथ जाते, मैं दोनों बच्चों को सुला देती और उस क्लर्क के साथ रासलीला रचाने लगी।
उसका तबादला हो गया तो मैंने अपनी प्यास बुझाने के लिए घर में काम करने आने वाले नौकर बिट्टू को पटाना चाहा वो मेरे घर में दूध देने आता और सुबह, दोपहर, रात का खाना बनाने के लिए आता।
एक रात जब वो खाना बनाने आया, वैसे तो वो जान चुका था कि मैं क्या चाहती हूँ।
कहानी जारी रहेगी।
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