कमीने यार ने बना दिया रंडी-1

(Kamine Yaar Ne Bana diya Randi- Part 1)

शाहीन शेख 2019-12-24 Comments

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दोस्तो, मेरा नाम शाहीन शेख है, मैं अभी सिर्फ 30 साल की हुई हूँ। शादीशुदा हूँ, लेकिन अभी तक माँ नहीं बन पाई हूँ। शादी को 6 साल हो गए हैं, और मेरे शौहर पिछले 6 साल से ही
अपना पूरा ज़ोर लगा रहे हैं। मगर फिर भी मेरी गोद खाली है।

अब आप सब के लिए ऐसी कोई ऑफर नहीं है. कहीं आप लोग मुझे मेल भेजने लगें कि अगर मेरे शौहर इसमें कामयाब नहीं हुये, तो आप मेरी कोख हरी कर सकते हो।

मैंने जब माँ बनना होगा, तो अपने शौहर से बनूँगी क्योंकि मैंने अपने एक एक्स बॉय फ्रेंड पर भरोसा किया था, मगर साले ने मुझे एक अच्छी भली शरीफ घरेलू औरत से एक रंडी का लेबल मेरे माथे पर लगा दिया। इसलिए बाहर वाले पर तो मैं किसी भी सूरत में यकीन नहीं कर सकती।

हाँ, अगर आपकी दिलचस्पी इस बात में है कि मैं एक सीधी साधी घरेलू औरत से रंडी कैसे बन गई, तो वो मैं आपको बता सकती हूँ।
लीजिये पढ़ लीजिये, और अगर आप मेरी दास्तान पढ़ते हुये अपना औज़ार हिला कर मेरे नाम से अपना माल गिराना चाहो तो आप बड़े शौक से ये काम कर सकते हो।
मुझे बड़ी खुशी होगी कि हिंदुस्तान के कितने मर्दों का माल मेरी एक अदा पर कुर्बान हो जाता है।

मैं शाहीन शेख हैदराबाद की रहने वाली हूँ। पैदा भी इसी शहर में हुई और शादी भी इसी शहर में हो गई। मेरे मायके और ससुराल में कोई ज़्यादा दूरी नहीं है। बचपन से ही मैं बड़ी खूबसूरत रही
हूँ। गोरा रंग, खूबसूरत नाक नक्श। मैं कभी भी बहुत भरे बदन की नहीं रही; हमेशा से ही पतली रही हूँ; स्लिम एंड अट्रेक्टिव।

मेरी आँखें, मेरी नाक, मेरे गाल, मेरी स्माइल, लंबे बाल, बल खाती कमर, लंबी संगमरमरी टाँगें … मेरा सभी कुछ हमेशा से ही मर्दों को मेरी ओर खींचता रहा है। मेरे तो एक कज़िन भी मुझ
पर खूब लाइन मारते थे।

दिल तो मेरा भी करता था कि किसी से पट जाऊँ। मगर मन में एक बात यह भी चलती थी कि मैं अपने शौहर के पास वैसी ही जाऊँ, जैसी मेरी अम्मी ने मुझे पैदा किया था। इसलिए मैंने कभी किसी को लाइन नहीं दी।
स्कूल में कॉलेज में मैं बहुत से लोगों की चाहत थी, मगर सबकी चाहत उनके दिल में ही रह गई।

सिर्फ एक लड़का था आफताब, जो खुद भी इतना हसीन था कि मैं दिल ही दिल में उससे मोहब्बत करती थी। और इसी बात को उसने मेरी आँखों में पढ़ लिया. और जब उसने मुझे प्रोपोज किया तो मैं ना चाहते हुये भी हाँ कह बैठी।

उसके बाद उसने मुझे बहुत से तोहफे दिये जो मैंने आज तक संभाल कर रखे हैं।

हमारा अफेयर करीब डेढ़ साल चला, मगर इस डेढ़ साल में मैंने उसे सिर्फ एक किस दी। हाँ किस करते वक्त उसने ज़बरदस्ती मेरे बुब्बू दबा दिये, जिसका मैंने बहुत गुस्सा किया।

बस ऐसी करते करते के बाद मेरी शादी की बातें घर में चल निकली, जल्दी ही मेरे लिए एक लड़का भी मिल गया।

मैंने अपनी शादी की बात अफ़ताब को बताई तो वो रो ही दिया और बोला- शाहीन, मेरी बड़ी चाहत थी कि तुम मेरी बीवी बनो, और हम दोनों अपनी सुहागरात मनाएँ। मगर अब तुम किसी और की बीवी बनके किसी और के बिस्तर में होगी और मैं यहाँ बैठा अपनी किस्मत को रो रहा होऊंगा। तुम ही बताओ, तुमसे मोहब्बत करके मुझे क्या मिला?

मैंने उससे पूछा- तो तुम क्या चाहते हो मुझसे?
वो बोला- मैं झूठ नहीं बोलूँगा शहीन, मैं मरने से पहले सिर्फ एक बार तुम्हें हासिल करना चाहता हूँ, ज़ोर से नहीं, मोहब्बत से, जब तुम अपनी खुशी से अपना ये खूबसूरत जिस्म मेरे हवाले कर दो।

मुझे उसकी ये बात बुरी लगी, मैंने कहा- बस, सिर्फ मेरा जिस्म। क्या है मोहब्बत है तुम्हारी?
वो बोला- अगर तुम मेरी मोहब्बत को आज़माना चाहती हो, तो मैं तुम्हें अभी अपनी जान दे कर भी दिखा सकता हूँ। मगर हर इंसान की एक ख़्वाहिश होती है। मैं जानता हूँ कि तुम्हारा दिल मेरे पास है। मगर अगर ये जिस्म भी मुझे मिल जाएगा तो मुझे लगेगा कि मैं तुम्हें पा लिया। तुम मेरी बीवी बन गई। मुझे तुम्हारा जिस्म एक आशिक की तरह नहीं, एक शौहर की तरह चाहिए।

मैंने कहा- देखो आफताब, अभी तो मैं अपना ये जिस्म सिर्फ अपने शौहर को ही दूँगी। मगर मैंने भी तुमसे मोहब्बत की है, तो ये वादा करती हूँ कि अगर मुझे कभी कोई ऐसी ज़रूरत हुई कि मुझे अपने शौहर के सिवा किसी और मर्द की आगोश में जाना पड़ा, तो वो मर्द तुम होओगे।
वो बोला- और अगर न ज़रूरत महसूस हुई तो?
मैंने कहा- फिर कोई वादा नहीं।
आफताब बोला- तो फिर मैं तुम्हारी उस ज़रूरत का इंतज़ार करूंगा।

उसके बाद हम दोनों हमेशा के लिए अलग हो गए। फिर कभी नहीं मिले।

घर आने पर पता चला कि लड़के वाले शादी जल्दी मांग रहे हैं। मैंने भी जल्दी से शादी करने को ही तवज्जो दी. और फिर तो कुछ ही अरसे में मेरी शादी भी हो गई।

शौहर अलताफ़ का नगीनों और मोतियों का कारोबार है तो घर में पैसे की कोई कमी नहीं। बड़ा सारा घर है, गाड़ियाँ हैं, नौकर हैं। लड़के वालों की सिर्फ एक फरमाइश थी कि लड़की बहुत हसीन हो, और उनकी इस शर्त को मैं उनकी सोच से भी ज़्यादा पूरा करती थी।
तो शादी की हमसे ज़्यादा जल्दी उनको थी।

शादी के बाद हम अपने ससुराल पहुंचे। अगले दिन हमारी सुहागरात भी हुई।

उस रात पहली बार मुझे वो हसीन दर्द मिला जिसे मैं आज तक याद कर कर के खुश होती हूँ क्योंकि मैंने अपने शौहर के चेहरे पर वो खुशी देखी थी. जब मैं उनके नीचे पड़ी तड़प रही थी, एक मोटा लंबा और सख्त लंड, मेरी चूत को फाड़ कर अंदर घुस रहा था।
जहां तक मैंने अपनी पतली सी उंगली नहीं ली, वहाँ इतना मोटा ज़ालिम लंड अंदर ही अंदर घुसता जा रहा था। बेशक मैं 24 की हो गई थी, मगर सीलबंद चूत तो किसी भी उम्र में फटे, दर्द तो होता ही है।

अपना पूरा ज़ोर लगा कर शौहर ने मुझे कली से फूल बना दिया।

अगले दिन भी मुझे दर्द था मगर शौहर को इंकार नहीं कर सकती थी।

अगले दिन, अगली रात … फिर हर रोज़ दिन में दो तीन बार ये सब चलता ही रहा। मेरा दर्द, मेरी तकलीफ कब खत्म हो गई और कब मैं खुद भी नीचे से कमर उठा उठा कर मारने लगी, कब मैं जोश में आ कर चीखने चिल्लाने लगी। मुझे पता नहीं चला।

अब तो मैं खुद इंतज़ार करती कि कब मेरे शौहर आयें और कब वो मुझे चोदें।

फिर शौहर ने मुझे अपना लंड चुसवाना शुरू किया, वो भी मेरी चूत चाट लेते थे। मैं भी उनके लंड, आँड गांड सब चाट लेती। वो भी मेरे होंठों को चूसते हुये नीचे को जाते, मेरे मम्मे चूसते, मेरा पेट, कमर, जांघें, चूत, गांड, पीठ, सब कुछ चाट जाते, काट काट कर खा जाते।

सुबह सारे बदन पर उनके काटने के निशान होते। जिन्हें देख कर मैं उनसे और भी मोहब्बत करने लगती।

हमारी ज़िंदगी एक हसीन ख्वाब की तरह गुज़र रही थी। मगर ख्वाब बुरा हो या हसीन उसे एक ने एक दिन मुकम्मल होना होता है।
और फिर मेरा हसीन ख्वाब भी मुकम्मल हो गया।

शादी के एक साल बाद ही मुझसे भी यही उम्मीद की जाने लगी कि मैं भी एक प्यारे से बेटे की माँ बनूँ। बेशक मेरे शौहर हर बार अपना माल मेरे अंदर ही गिरा रहे थे, और उनका माल आता भी
बहुत सारा और बहुत गाढ़ा था। मगर फिर भी ना जाने क्यों, मेरी कोख हरी नहीं हो रही थी।

हर महीने लाल रंग के सैनीटरी पैड मैं फेंक रही थी। मैं हर बार यही दुआ करती के इस बार मुझे महीना ना आए। मगर कहाँ जी … महीना तो हर महीने तय तारीख पर आ रहा था। फिर घर में मेरी सास ने मुझे यहाँ वहाँ दिखाना शुरू किया, इससे पूछ, उससे पूछा।

फिर जब एक डॉक्टर के कहने पर हम दोनों के टेस्ट हुये, तो पता चला कि कमी इनमें थी, मुझमें नहीं।
फिर इनका इलाज शुरू करवाया गया। ये भी बड़ी परेशानी में थे और उससे ज़्यादा नामोशी में … क्योंकि टेकनिकली ये साबित हो चुका था कि ये मर्द नहीं नहीं।

मगर मैं जानती थी कि ये नामर्द भी नहीं हैं। मैं इनके साथ पूरी खुश थी। ये भी पूरी मुस्तैदी के साथ दवाई खा रहे थे और बाकी सब बातों का भी पूरा ख्याल रख रहे थे। मगर मैं फिर भी खाली गोद थी।

एक बार एक शादी में मुझे इनकी मामी मिली। देखने में बहुत खूबसूरत, पढ़ी लिखी, खुद बिज़नस संभाल रही थी।
वो मुझसे बोली- अरे काहे के चक्कर में पड़ी है; चुपचाप बकरा बदल ले।
मैंने वो बकरे वाला इंगलिश जोक सुन रखा था, तो मैंने कहा- अरे मामी जी ऐसे कैसे?
वो बोली- क्यों क्या दिक्कत है। अब मेरे दोनों बेटे मेरे बॉयफ्रेंड के हैं। आज तक किसी को पता चला? तू भी चुपचाप किसी और के बीज से अपनी ज़मीन हरी कर ले।

पहले तो मुझे मामी जी की बात बहुत बुरी लगी। मगर उस रात मैं कितनी देर तक इस बारे सोचती रही, तो सुबह तक मैं एक नतीजे तक पहुँच चुकी थी।

उस दिन मैं अपने मायके गयी, और वहाँ अपनी एक पुरानी डायरी में लिखा अपने पुराने बॉयफ्रेंड का नंबर ढूंढ कर निकाला। फिर अपने घर वापिस आते हुये मैंने बाज़ार से उसे फोन किया और उस से बात करी।

शादी के 2 साल बाद वो मेरी आवाज़ सुन कर बहुत खुश हुआ।

पहले तो यहाँ वहाँ की बातें करती रही। मगर वो मेरे दिल की बात जान गया और उसने मुझसे मिलने की बात कही। मैंने भी थोड़ी सी आना कानी के बाद मिलने के लिए हाँ कर दी।

अब घर में मुझे कोई दिक्कत नहीं थी, मैं अक्सर अकेली घर से बाहर आ जा सकती थी। हाँ इतना ज़रूर था कि मैं बुर्का पहन कर जाती थी। घर में सलवार कमीज़ और शादी ब्याह में साड़ी वगैरह पहन लेती थी।

तो मैंने उस से तीन दिन बाद मिलने का प्लान बनाया। घर से पंजाबी सूट के ऊपर से बुर्का पहन कर मैं अपने घर से निकली। करीब 20 मिनट के सफर के बाद मैं अपने पुराने यार के घर के सामने खड़ी थी।

मैंने बेल बजाई, उसने दरवाजा खोला, मुझे दरवाजे पर खड़ा देख, उसने मुझे वहीं अपनी आगोश में ले लिया।

“हाय अल्लाह!” मेरा तो कलेजा धक्क से रह गया। मेरा शौहर जो मुझसे जी जान से मोहब्बत करता है और मैं भी जिसे अपनी जान से ज़्यादा प्यार करती हूँ। उसको छोड़ कर उससे फरेब कमा कर मैं अपने यार से मिलने आई हूँ। कितनी गिरी हुई हूँ मैं।
ये सोच कर मेरी आँखों में आँसू आ गए।

वो मुझे अपनी बांहों के घेरे में ही मुझे अंदर ले गया। मुझे सोफ़े पर बैठाया, मेरा नकाब खोला और पीने के लिए पानी ला कर दिया।
उसने पूछा- क्या हुआ शाहीन, रोई क्यों?
मैं क्या बताती, सिर्फ इतना कहा- कुछ नहीं।
वो बोला- अरे कुछ तो … क्या हुआ बता न?

मैं कुछ न बोली, थोड़ा और रोई, तो उसने मेरा सर अपने सीने से लगा लिया और मैंने अपने आंसुओं के साथ अपनी सारी वफ़ा को भी बहा दिया।

आफताब ने मेरे माथे पर चूमा और मुझे खूब हौंसला दिया और मेरे लिए चाय भी बनाई। थोड़ा संभालने के बाद मैंने घर देखा, वैसा ही बेतरतीब।
मैंने पूछा- शादी नहीं की?
वो बोला- तुझसे ही करनी थी। तू चली गई तो किस से करता।
मैं हल्के से मुस्कुरा दी।

कुछ देर हम अपनी पुरानी बातें करते रहे, इधर की उधर की, फालतू की, बेमतलब की। मगर मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी कि मैं आफताब से अपने दिल की बात कर सकूँ।

कुछ देर बाद उसने ही पूछ लिया- शौहर से कैसी चल रही है?
मैंने कहा- बहुत अच्छी, बहुत मोहब्बत करते हैं मुझसे!
वो बोला- और बच्चे?
मैंने सिर्फ ना में सर हिलाया।

वो समझ गया और बोला- मैं कुछ हेल्प कर सकता हूँ?
मैं क्या कहती चुप रही।

तो वो उठ कर मेरे पास आकर बैठ गया और मेरे कंधे के ऊपर से अपनी बांह घुमा कर बोला- देखो, मैंने तुम्हें हमेशा ही अपनी जान से ज़्यादा प्यार किया है। तुम अपने दिल की कोई भी बात मुझसे कह सकती हो। डरो मत, मुझ पर यकीन रखो।
और उसने मुझे अपनी आगोश में लेकर मेरी पीठ सहलाते हुये मेरे गाल पर चूम लिया।

मुझे डर सा लगा। एक ऐसा शख्स जिसके साथ दो साल पहले मैं अपनी शादी के सपने बुन रही थी, जिसको मैं अपना तन मन सब कुछ सौंप देना चाहती थी, आज उसके छूने से मुझे डर लग रहा था।

वो आगे बढ़ता गया और उसने मेरा चेहरा अपने हाथों में पकड़ कर मेरे लबों को चूम लिया।

मैं बेशक घबरा रही थी मगर मैंने उसे रोका नहीं क्योंकि मेरे मन में दो बातें चल रही थी, पहली कि मुझे एक बच्चा चाहिए, बस और कुछ नहीं, चाहे वो बच्चा मुझे किसी भी कीमत पर मिले।

मगर साथ की साथ मेरे मन में ये बात भी चल रही थी कि यार एक बच्चे के लिए क्या ज़रूरी है कि मैं कोई ऐसा गलत काम करूँ, जिसके लिए मेरी नज़रें मेरे शौहर के आगे नीची हो जाएँ। मेरे शौहर भी तो कोशिश कर ही रहे थे, एक साल से वो लगातार दवाई खा रहे थे. और तो और वो एक इंफर्टिलिटी सेंटर में भी पता कर के आए थे. वहाँ भी उन्होंने हमसे वादा किया था कि वो अपनी तकनीक से हम दोनों को औलाद का सुख दे देंगे।
फिर क्यों मैं अपने ज़मीर, अपने किरदार से गिर कर अपने माथे पर लगाने जा रही हूँ। बेशक मेरे शौहर को पता न चले, पर मैं … मैं तो सब कुछ देख रही हूँ। मेरा परवरदिगार देख रहा है। मुझे लगा जैसे मुझे इस जगह पर सांस लेना मुश्किल हो रहा है।

मैंने अपने आपको आफताब की गिरफ्त से आज़ाद करवाया और बोली- मुझे जाना है।

कहानी जारी रहेगी.
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