और वो चली गई- भाग 2

(Hindi Kahani: Aur Vo Chali Gai- Part 2)

दोस्तो, आपने मेरी सेक्सी कहानी के पिछले भाग
और वो चली गई- भाग 1
में पढ़ा कि ऑफिस की ट्रेनिंग के दौरान मेरी शहज़ाद से मुलाकात हुई, अब आगे पढ़ें!

अगले एक महीने तक हम सिर्फ फ़ोन पर बातें करते रहे लेकिन जैसे-जैसे दिन बीत रहे थे वैसे-वैसे हमारी मिलने की तड़प बढ़ती जा रही थी. हमने तय किया कि हम महीने में एक बार मिलेंगे.
शनिवार को बैंक का हाफ डे होता था. शहज़ाद बैंक से छुट्टी करके सीधा भोपाल शताब्दी से शाम को ग्वालियर पहुँच जाता. मैं भी घर से कोई न कोई बहाना बना कर जैसे किसी का बर्थडे है या किसी सहेली की निकाह है कह कर निकल जाती. सारी रात हम खूब सेक्स करते. सेक्स के दौरान मैं उससे अपने बूब्स को खूब मसलवाती और खूब चुसवाती और 2-2 घंटे तेल मलवाती थी. कई बार तो शहज़ाद मेरी टांगों के बीच में बैठ जाता और अपना लंड चूत में डाल लेता लेकिन आगे पीछे नहीं करता और बैठे-बैठे मेरे बूब्स की खूब मालिश करता.
अगली सुबह शहज़ाद शताब्दी से ही वापिस चला जाता. बीच में दो बार मैं भी ऑफिस की कांफ्रेंस का बहाना बना कर भोपाल गई.

सिर्फ इन 6-7 महीनों में ही मेरा पूरा शरीर भी भर गया, बूब्स का साइज़ दुगुने से भी ज्यादा हो गया मेरे गाल भी अब गुलाबी हो गए.

लगभग एक साल बीत गया अब हमने सोचा कि हमें निकाह कर लेना चाहिए. हम दोनों ने अपने घर वालों के सामने निकाह का प्रस्ताव रखा. हम दोनों के परिवार पिछड़े ख्यालों के तो नहीं थे पर ज्यादा आधुनिक विचारों के भी नहीं थे. समस्या यह आई कि हमारी जाति नहीं मिलती थी. हम खान थे और उनका परिवार कसाई जाति से था.
खैर थोड़ी सी कोशिश के बाद दोनों के परिवार मान गए और तय हुआ कि न ग्वालियर में और न ही भोपाल में निकाह करेंगे अपितु झाँसी में बिना किसी शोर-शराबे के निकाह करेंगे ताकि जाति-पाति का शोर मचाने वाले दूर ही रहें.
निकाह के बाद हम दोनों शहज़ाद के परिवार में नहीं रहेंगे और घर से दूर शहर में अलग मकान ले कर रहेंगे. भोपाल बहुत बड़ा शहर है किसी किस्म के शोर-शराबे का खतरा कम है.

एक महीने बाद फरवरी में हमारे निकाह की तारीख पक्की हुई. हमारी किस्मत देखिये निकाह से 10 दिन पहले शहज़ाद की बदली इंदौर हो गई. भोपाल शहर में अलग रहने का झंझट ही खत्म.
मैंने शहज़ाद को सलाह दी कि वो जल्दी से इंदौर में ड्यूटी ज्वाइन करके छुट्टी ले ले. इधर से मैं अपने ऑफिस में इंदौर ट्रान्सफर की अर्जी दे दूंगी.

निकाह के बाद एक सप्ताह हमने माउंट आबू में हनीमून मनाया या यूँ कहें कि घूमे-फिरे क्योंकि हनीमून तो हम पिछले एक साल से मना ही रहे थे. फिर हम दोनों ने ड्यूटी ज्वाइन कर ली.

मेरी अर्जी पर ट्रान्सफर के आर्डर आते-आते एक महीना लग गया, तब तक हम दोनों का अलग रहना हमारी मजबूरी बन गया. लेकिन तब तक शहज़ाद ने इंदौर में एक 3 बेडरूम सेट एक अच्छी सी सोसाइटी में किराये पर ले लिया. हम दोनों को पैसे की कोई कमी तो थी नहीं इसलिए हमने 3 बेडरूम सेट लिया.

अप्रैल के दूसरे सप्ताह मेरे ट्रान्सफर के आर्डर आये और मैं इंदौर पहुँच गई. जिस दिन मैं इंदौर पहुंची, उस दिन सबसे पहले हमने जम कर सेक्स किया. कोई नवविवाहित जोड़ा एक महीने बाद मिल रहा हो तो आप समझ ही सकते हैं कि सेक्स के लिए वो कितना तड़पे होंगे.

शाम छ: बजे मैं इंदौर पहुंची. शहज़ाद मुझे लेने के लिए आया हुआ था. जैसे ही हम घर के अंदर दाखिल हुए शहज़ाद ने दरवाज़ा भी बंद नहीं किया और मुझे उठा लिया और मेरे होठों पर होंठ चिपका कर ही मुझे बेडरूम में ले गया. एक मिनट में ही हम दोनों नंगे हो कर 69 की अवस्था में आ गए उस दिन पहली बार हम 69 हुए और पहली बार मैंने शहज़ाद का लंड और शहज़ाद ने मेरी चूत चूसी.
लगभग आधा घंटा हम ऐसे ही रहे. शहज़ाद का लंड और उसकी झांटों का सारा एरिया मेरी लार और थूक से पानी-पानी हो चुका था जिसमें एक बार निकला हुआ उसका वीर्य भी मिक्स था.
यही हाल उसके मुंह के आसपास के एरिया का था जहाँ मेरी चूत से निकला हुआ पानी बह कर बिस्तर की चादर चादर तक पहुँच गया था.

जब दूसरी बार शहज़ाद का पानी गिरने को हुआ तो उसने मुझे सीधा करके नीचे किया और लंड मेरी चूत में डाल दिया. मैं उत्तेजित तो थी ही, मैंने टांगें उठा कर शहज़ाद की कमर पर लपेट ली. 5-7 झटकों में ही हम दोनों स्खलित हो गए.

पसीने से हमारा बुरा हाल था, हम बिस्तर पर आधा घंटा पड़े रहे, फिर दोनों उठ कर इकट्ठे नहाए और उसके बाद डिनर के लिए निकल गए. वापिस आ कर हम जल्दी ही सो गए क्योंकि मैं इतने लम्बे सफर के कारण थकी हुई थी.
उस रात हमने 2 बार सेक्स किया.

अगले दिन हमारी और लोगों की तरह ही दिनचर्या शुरू हो गई.

बाकी अगले भाग में

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और वो चली गई- भाग 3

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