दिल का क्या कुसूर-2
(Dil Ka Kya Kasoor- Part 2)
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संजय मेरे ऊपर आकर लगातार धक्के लगा रहे थे…
अब मेरा ध्यान कम्प्यूटर की स्क्रीन से हट चुका था… और मैं अपनी कामक्रीड़ा में मग्न हो गई थी…
तभी संजय के मुँह से ‘आह…’ निेकली और वो मेरे ऊपर ही ढेर हो गये।दो मिनट ऐसे ही पड़े रहने के बाद वो संजय ने मेरे ऊपर से उठकर अपना लिंग मेरी योनि से बाहर निकाला और बाथरूम में जाकर धोने लगे।
तब तक भी उस स्क्रीन पर वो लड़की उस आदमी से अपनी योनि चटवा रही थी ‘उफ़्फ़… हम्मंह…’ की आवाज लगातार उस लड़की के मुँह से निकल रही थी वो जोर जोर से कूद कूद कर अपनी योनि उस आदमी के मुँह में डालने का प्रयास कर रही थी।
तभी संजय आये और उन्होंने कम्प्यूटर बंद कर दिया।
मैंने बोला, “चलने दो थोड़ी देर?”
संजय ने कहा, “कल सुबह ऑफिस जाना है बाबू… सो जाते हैं, नहीं तो लेट हो जाऊँगा।”
अब यह कहने कि हिम्मत तो मुझमें भी नहीं थी कि ‘आफिस तो तुमको जाना है ना तो मुझे देखने दो।’ मैं एक अच्छी आदर्शवादी पत्नी की तरह आज्ञा का पालन करने के लिये उठी, बाथरूम में जाकर रगड़-रगड़ कर अपनी योनि को धोया, बाहर आकर अपना नाइट सूट पहना और बैडरूम में जाकर बिस्तर पर लेट गई।
मैंने थोड़ी देर बाद संजय की तरफ मुड़कर देखा वो बहुत गहरी नींद में सो रहे थे। उत्सुकतावश मेरी निगाह नीचे उसके लिंग की तरफ गई तो पाया कि शायद वो भी नाइट सूट के पजामे के अन्दर शान्ति से सो रहा था क्योंकि वहाँ कोई हलचल नहीं थी। मेरी आँखों के सामने अभी भी वही फिल्म घूम रही थी। शादी के बाद पिछले 11 सालों में केवल 3 बार संजय के साथ मैंने ऐसी फिल्म देखी, पता नहीं ऐसा मेरे साथ ही था, या सभी के साथ होता होगा पर उस फिल्म को देखकर मुझे अपने अन्दर अति उत्तेजना महसूस हो रही थी।
हालांकि थोड़ी देर पहले संजय के साथ किये गये सैक्स ने मुझे स्खलित कर दिया था। पर फिर भी शरीर में कहीं कुछ अधूरापन महसूस हो रहा था मुझे पता था यह हर बार की तरह इस बार भी दो-तीन दिन ही रहेगा पर फिर भी अधूरापन तो था ही ना…
वैसे तो जिस दिन से मेरी शादी हुई थी उस दिन से लेकर आज तक मासिक के दिनों के अलावा कुछ गिने-चुने दिनों को छोड़कर हम लोग शायद रोज ही सैक्स करते थे यह हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा बन चुका था। पर चूंकि संजय ने कभी मेरी योनि को प्यार नहीं किया तो मैं भी एक शर्मीली नारी बनी रही, मैंने भी कभी संजय के लिंग को प्यार नहीं किया। मुझे लगता था कि अपनी तरफ से ऐसी पहल करने पर संजय मुझे चरित्रहीन ना समझ लें।
सच तो यह है कि पिछले 11 सालों में मैंने संजय का लिंग हजारों बार अपने अंदर लिया था पर आज तक मैं उसका सही रंग भी नहीं जानती थी… क्योंकि सैक्स करते समय संजय हमेशा लाइट बंद कर देते थे और मेरे ऊपर आ जाते थे। मैंने तो कभी रोशनी में आज तक संजय को नंगा भी नहीं देखा था। मुझे लगता है कि हम भारतीय नारियों में से अधिकतर ऐसी ही जिन्दगी जीती हैं… और अपने इसी जीवन से सन्तुष्ट भी हैं। परन्तु कभी कभी इक्का-दुक्का बार जब कभी ऐसा कोई दृश्य आ सामने जाता है जैसे आज मेरे सामने कम्प्यूटर स्क्रीन पर आ गया था तो जीवन में कुछ अधूरापन सा लगने लगता है जिसको सहज करने में 2-3 दिन लग ही जाते हैं।
हम औरतें फिर से अपने घरेलू जीवन में खो जाती हैं और धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य हो जाता है। फिर भी हम अपने जीवन से सन्तुष्ट ही होती हैं। क्योंकि हमारा पहला धर्म पति की सेवा करना और पति की इच्छाओं को पूरा करना है। यदि हम पति को सन्तुष्ट नहीं कर पाती हैं तो शायद यही हमारे जीवन की सबसे बड़ी कमी है।
परन्तु मैं संजय को उनकी इच्छाओं के हिसाब से पूरी तरह से सन्तुष्ट करने का प्रयास करती थी। यही सब सोचते सोचते मैंने आँखें बंद करके सोने का प्रयास किया। सुबह बच्चों को स्कूल भी तो भेजना था और संजय से कम्प्यूटर चलाना भी सीखना था। परन्तु जैसे ही मैंने आँखें बन्द की मेरी आँखों के सामने फिर से वही कम्प्यूटर स्क्रीन वाली लड़की और उसके मुँह में खेलता हुआ लिंग आ गया। मैं जितना उसको भूलने का प्रयास करती उतना ही वो मेरी नींद उड़ा देता।
मैं बहुत परेशान थी, आँखों में नींद का कोई नाम ही नहीं था। पूरे बदन में बहुत बेचैनी थी जब बहुत देर तक कोशिश करने पर भी मुझे नींद नहीं आई तो मैं उठकर बाथरूम में गई नाइट सूट उतारा और शावर चला दिया। पानी की बूंद बूंद मेरे बदन पर पड़ने का अहसास दिला रही थी। उस समय शावर आ पानी मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। काफी देर तक मैं वहीं खड़ी भीगती रही और फिर शावर बन्द करके बिना बदन से पानी पोंछे ही गीले बदन पर ही नाइट सूट पहन कर जाकर बिस्तर में लेट गई।
इस बार बिस्तर में लेटते ही मुझे नींद आ गई।
सुबह 6 बजे रोज की तरह मेरे मोबाइल में अलार्म बजा। मैं उठी और बच्चों को जगाकर हमेशा की तरह समय पर तैयार करके स्कूल भेज दिया। अब बारी संजय को जगाने की थी। संजय से आज कम्प्यूटर चलाना भी तो सीखना था ना। मैं चाहती थी कि संजय मुझे वो फिल्म चलाना सिखा दें ताकि संजय के जाने के बाद मैं आराम से बैठकर उस फिल्म का लुत्फ उठा सकूँ। पर संजय से कैसे कहूँ से समझ नहीं आ रहा था।
खैर, मैंने संजय को जगाया और सुबह की चाय की प्याली उनके हाथ में रख दी। वो चाय पीकर टॉयलेट चले गये और मैं सोचने लगी कि संजय से कैसे कहूँ कि मुझे वो कम्प्यूटर में फिल्म चलाना सिखा दें।
तभी मेरे दिमाग में एक आइडिया आया। मैं संजय के टॉयलेट से निकलने का इंतजार करने लगी। जैसे ही संजय टायलेट से बाहर आये मैंने अपनी योजना के अनुसार अपनी शादी वाली सी डी उनके हाथ में रख दी और कहा, “शादी के 11 साल बाद तो कम से कम अपने नये कम्प्यूटर में यह सी डी चला दो, मैं तुम्हारे पीछे अपने बीते लम्हे याद कर लूँगी।”
संजय एकदम मान गये और कम्प्यूटर की तरफ चल दिये।
मैंने कहा, “मुझे बताओ कि इसको कैसे ऑन और कैसे ऑफ करते हैं ताकि मैं सीख भी जाऊँ।”
संजय को इस पर कोई एतराज नहीं था। उन्होंने मुझे यू.पी.एस. ऑन करने से लेकर कम्प्यूटर के बूट होने के बाद आइकन पर क्लिक करने तक सब कुछ बताया, और बोले, “ये चार सी डी मैं इस कम्प्यूटर में ही कापी कर देता हूँ ताकि तुम इनको आराम से देख सको नहीं तो तुमको एक एक सी डी बदलनी पड़ेगी।”
मैंने कहा, “ठीक है।”
संजय ने सभी चारों सी डी कम्प्यूटर में एक फोल्डर बना कर कापी कर दी और फिर मुझे समझाने लगे कि कैसे मैं वो फोल्डर खोल कर सी डी चला सकती हूँ।
मैं अपने हाथ से सब कुछ चलाना सीख रही थी। जैसे-जैसे संजय बता रहे थे 2-3 बार कोशिश करने पर मैं समझ गई कि फोल्डर में जाकर कैसे उस फिल्म को चलाया जा सकता है। पर मुझे यह नहीं पता था कि वो रात वाली फिल्म कौन से फोल्डर में है और वहाँ तक कैसे जायेंगे।
मैंने फिर संजय से पूछा, “कहीं इसको चलाने से गलती से वो रात वाली फिल्म तो नहीं चल जायेगी।”
“अरे नहीं पगली! वो तो अलग फोल्डर में पड़ी है।” संजय ने कहा।
“पक्का ना…?” मैंने फिर पूछा।
तब संजय ने कम्प्यूटर में वो फोल्डर खोला जहाँ वो फिल्म पड़ी थी और मुझसे कहा, “यह देखो! यहाँ पड़ी है वो फिल्म बस तुम दिन में यह फोल्डर मत खोलना।”
मेरी तो जैसे लॉटरी लग गई थी। पर मैंने शान्त स्वभाव से बस, “हम्म…” जवाब दिया। मेरी निगाह उस फोल्डर में गई तो देखा यहाँ तो बहुत सारी फाइल पड़ी थी। मैंने संजय से पूछा। तो उन्हानें ने बताया, “ये सभी ब्लू फिल्में हैं। आराम से रोज रात को देखा करेंगे।”
“ओ…के…अब यह कम्प्यूटर बंद कैसे होगा…” मैंने पूछा क्योंकि मेरे लायक काम तो हो ही चुका था।
संजय ने मुझे कम्प्यूटर शट डाउन करना भी सिखा दिया। मैं अब वहाँ से उठकर नहाने चली गई, और संजय भी आफिस के लिये तैयारी करने लगे।
संजय को आफिस भेजने के बाद मैंने बहुत तेजी से अपने घर के सारे काम 1 घंटे में निपटा लिये। फ्री होकर बाहर का दरवाजा अन्दर से लॉक किया। कम्प्यूटर को संजय द्वारा बताई गई विधि के अनुसार ऑन किया। थोड़े से प्रयास के बाद ही मैंने अपनी शादी की फिल्म चला ली। कुछ देर तक वो देखने के बाद मैंने वो फिल्म बन्द की और अपने फ्लैट के सारे खिड़की दरवाजे चैक किये कि कोई खिड़की खुली हुई तो नहीं है।
सबसे सन्तुष्ट होकर मैंने संजय का वो खास वाला फोल्डर खोला और उसमें गिनना शुरू किया कुल मिलाकर 80 फाइल उसके अन्दर पड़ी थी। मैंने बीच में से ही एक फाइल पर क्लिक कर दिया। क्लिक करते ही एक मैसेज आया। उसको ओ.के. किया तो फिल्म चालू हो गई। पहला दृश्य देखकर ही मैं चौंक गई। यह कल रात वाली मूवी नहीं थी। इसमें दो लड़कियाँ एक दूसरे को बिल्कुल नंगी लिपटी हुई थी।
यह देखकर तो एकदम जैसे मुझे सन्निपात हो गया! यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
ऐसा मैंने पतिदेव के मुँह से कई बार सुना तो था… पर देखा तो कभी नहीं था। तभी मैंने देखा दोनों एक दूसरे से लिपटी हुई प्रणय क्रिया में लिप्त थी।
एक लड़की नीचे लेटी हुई थी… और दूसरी उसके बिल्कुल ऊपर उल्टी दिशा में। दोनों एक दूसरे की योनि का रसपान कर रही थी…
मैं आँखें गड़ाये काफी देर तक उन दोनों को इस क्रिया को देखती रही। स्पीकर से लगातार आहहह… उहह… हम्मम… सीईईईई… की आवाजें आ रही थी। मध्यम मध्यम संगीत की ध्वनि माहौल को और अधिक मादक बना रही थी। मुझे भी अपने अन्दर कुछ कुछ उत्तेजना महसूस होने लगी थी। परन्तु संस्कारों की शर्म कहूँ या खुद पर कन्ट्रोल… पर मैंने उस उत्तेजना को अभी तक अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। परन्तु मेरी निगाहें उन दोनों लड़कियों की भावभंगिमा को अपने लगातार अंदर संजो रही थी।
अचानक ऊपर वाली लड़की ने पहलू बदला नीचे वाली नीचे आकर बैठ गई। उसने नीचे वाली लड़की की टांगों में अपनी टांगें फंसा ली!
“हम्म्मम…!” की आवाज के साथ नीचे वाली लड़की भी उसका साथ दे रही थी…आह… दोनों लड़कियाँ आपस में एक दूसरे से अपनी योनि रगड़ रही थी।
ऊफ़्फ़…!! मेरी उत्तेजना भी लगातार बढ़ने लगी। परन्तु मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ? कैसे खुद को सन्तुष्ट करूँ? मुझे बहुत परेशानी होने लगी। वो दोनों लड़कियाँ लगातार योनि मर्दन कर रही थी। मुझे मेरी योनि में बहुत खुजली महसूस हो रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे मेरी योनि के अन्दर बहुत सारी चींटियों ने हमला कर दिया हो…योनि के अन्दर का सारा खून चूस रही हों… मैंने महसूस किया कि मेरे चुचूक बहुत कड़े हो गये हैं। मुझे बहुत ज्यादा गर्मी लगने लगी। शरीर से पसीना निकलने लगा।
मेरा मन हुआ कि अभी अपने कपड़े निकाल दूं। परन्तु यह काम मैंने अपने जीवन में पहले कभी नहीं किया था इसीलिये शायद हिम्मत नहीं कर पा रही थी मेरी निगाहें उस स्क्रीन हटने को तैयार नहीं थी। मेरे बदन की तपिश पर मेरा वश नहीं था। तापमान बहुत तेजी से बढ़ रहा था। जब मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ। तो मैंने अपनी साड़ी निकाल दी। योनि के अन्दर इतनी खुजली होने लगी। ऊईईईई… मन ऐसा हो रहा था कि चाकू लेकर पूरी योनि को अन्दर से खुरच दूं।
कहानी जारी रहेगी।
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