दिल का क्या कुसूर-1
(Dil Ka Kya Kasoor- Part 1)
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वैसे तो संजय से मेरा रोज ही सोने से पहले एकाकार होता था। परन्तु वो पति-पत्नी वाला सम्भोग ही होता था।
उस दिन मेरी शादी की 11वीं सालगिरह थी। संजय ने मुझे बड़ा सरप्राइज देने का वादा किया था। मैं बहुत उत्सुक थी। कई बार संजय से पूछ भी चुकी थी कि वो मुझे क्या सरप्राइज देने वाले हैं?
पर वो भी तो पूरे जिद्दी थे। मेरी हर कोशिश बेकार हो रही थी।
संजय ने बोल दिया था कि इस बार सालगिरह घर में ही मनायेंगे किसी बाहर के मेहमान को नहीं बुलायेंगे बस हम दोनों और हमारे दो बच्चे।
मैं ब्यूटी पार्लर से फेशियल करवाकर बच्चों के आने से पहले घर पहुँच गई। हम मध्यम वर्गीय परिवारों की यही जिन्दगी होती है।
मैंने शाम होने से पहले ही संजय के आदेशानुसार उनका मनपसंद खाना बनाकर रख दिया। बच्चे कालोनी के पार्क में खेलने के लिये चले गये। मैं खाली वक्त में अपनी शादी के एलबम उठाकर बीते खुशनुमा पलों को याद करने लगी। तभी दरवाजे पर घण्टी बजी और मेरी तंद्रा भंग हुई।
मैं उठकर दरवाजा खोलने गई तो संजय दरवाजे पर थे। वो जैसे ही अन्दर दाखिल हुए, मैंने पूछा- आज छुट्टी जल्दी हो गई क्या?
और मुड़कर संजय की तरफ देखा। पर यह क्या? संजय तो दरवाजे पर ही रुके खड़े थे।
मैंने पूछा- अन्दर नहीं आओगे क्या?
वो बोले- आऊँगा ना, पर पहले तुम एक रुमाल लेकर मेरे पास आओ दरवाजे पर।
मेरे मना करने पर वो गुस्सा करने लगे। आखिर में हारना तो मुझे ही था, मैं रुमाल लेकर दरवाजे पर पहुँची।
पर यह क्या उन्होंने तो रुमाल मेरे हाथ से लेकर मेरी आँखों पर बांध दिया, मुझे घर के अन्दर धकेलते हुए बोले- अन्दर चलो।
अब मुझे गुस्सा आया- “मैं तो अन्दर ही थी, आप ही ने बाहर बुलाया और आँखें बंद करके घर में ले जा रहे हो… आज क्या इरादा है? मैंने कहा।”
“हा..हा..हा..हा..” हंसते हुए संजय बोले 11 साल हो गये शादी को पर अभी तक तुमको मुझे पर यकीन नहीं है।
वो मुझे धकेल कर अन्दर ले गये और बैडरूम में ले जाकर बंद कर दिया। मैं बहुत विस्मित सी थी कि पता नहीं इनको क्या हो गया है? आज ऐसी हरकत क्यों कर रहे हैं? क्योंकि स्वभाव से संजय बहुत ही सीधे सादे व्यक्ति हैं।
अभी मैं यह विचार कर ही रही थी कि संजय दरवाजा खोलकर अंदर दाखिल हुए और आते ही मेरी आँखों की पट्टी खोल दी।
मैंने पूछा, “यह क्या कर रहे हो आज?”
संजय ने जवाब दिया, “तुम्हारे लिये सरप्राइज गिफ्ट लाया था यार, वो ही दिखाने ले जा रहा हूँ तुमको !”
सुनकर मैं बहुत खुश हो गई, “कहाँ है…?” बोलती हुई मैं कमरे से बाहर निकली तो देखा ड्राइंग रूम में एक नई मेज और उस पर नया कम्प्यूटर रखा था। कम्प्यूटर देखकर मैं बहुत खुश हो गई क्योंकि एक तो आज के जमाने में यह बच्चों की जरूरत थी। दूसरा मैंने कभी अपने जीवन में कम्प्यूटर को इतने पास से नहीं देखा था। मेरा मायका तो गाँव में था, पढ़ाई भी वहीं के सरकारी स्कूल में हुई थी… और शादी के बाद शहर में आने के बाद भी घर से बाहर कभी ऐसा निकलना ही नहीं हुआ। हाँ, कभी कभार पड़ोस में रहने वाली मिन्नी को जरूर कम्प्यूटर पर काम करते या पिक्चर देखते हुए देखा था।
पर संजय के लिये इसमें कुछ भी नया नहीं था, वो पिछले 15 साल से अपने आफिस में कम्प्यूटर पर ही काम करते थे। मुझे कई बार बोल चुके थे कि तुम कम्प्यूटर चलाना सीख लो पर मैं ही शायद लापरवाह थी। परन्तु आज घर में कम्प्यूटर देखकर मैं बहुत खुश थी। मैंने संजय से कहा- इसको चलाकर दिखाओ।
उन्होंने कहा- रूको मेरी जान, अभी इसको सैट कर दूँ, फिर चला कर दिखाता हूँ।
तभी बच्चे भी खेलकर आ गये और भूख-भूख चिल्लाने लगे। मैं तुरन्त रसोई में गई। तभी दोनों बच्चों का निगाह कम्प्यूटर पर पड़ी। दोनों खुशी से कूद पड़े, और संजय से कम्प्यूटर चलाने के जिद करने लगे। संजय ने बच्चों को कम्प्यूटर चला कर समझया और समय ऐसे ही हंसी-खुशी बीत गया। कब रात हो गई पता ही नहीं चला।
मैं दोनों बच्चों को उनके कमरे में सुलाकर नहाने चली गई। संजय कम्प्यूटर पर ही थे।
मैं नहाकर संजय का लाया हुआ सैक्सी सा नाइट सूट पहन कर बाहर आई क्योंकि मुझे आज रात को संजय के साथ शादी की सालगिरह जो मनानी थी, पर संजय कम्प्यूटर पर व्यस्त थे। मुझे देखते ही खींचकर अपनी गोदी में बैठा लिया, मेरे बालों में से शैम्पू की भीनी भीनी खुशबू आ रही थी, संजय उसको सूंघने लगे।
उनका एक साथ कम्प्यूटर के माऊस पर और दूसरा मेरे गीले बदन पर घूम रहा था। मुझे उनका हर तरह हाथ फिराना बहुत अच्छा लगता था। पर आज मेरा ध्यान कम्प्यूटर की तरफ ज्यादा था क्योंकि वो मेरे लिये एक सपने जैसा था।
संजय ने कहा, “तुम चला कर देखो कम्प्यूटर !”
“पर मुझे तो कम्प्यूटर का ‘क’ भी नहीं आता मैं कैसे चलाऊँ?” मैंने पूछा।
संजय ने कहा, “चलो तुमको एक मस्त चीज दिखाता हूँ।” उनका बांया हाथ मेरी चिकनी जांघों पर चल रहा था। मुझे मीठी मीठी गुदगुदी हो रही थी। मैं उसका मजा ले रही थी कि मेरी निगाह कम्प्यूटर की स्क्रीन पर पड़ी। एक बहुत सुन्दर दुबली पतली लड़की बाथटब में नंगी नहा रही थी। लड़की की उम्र देखने में कोई 20 के आसपास लग रही थी। उसका गोरी चिट्टा बदन माहौल में गर्मी पैदा कर रहा था।
साथ ही संजय मेरी जांघ पर गुदगुदी कर रहे थे। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
तभी उस स्क्रीन वाली लड़की के सामने एक लम्बा चौड़ा कोई 6 फुट का आदमी आकर खड़ा हुआ… आदमी का लिंग पूरी तरह से उत्तेजित दिखाई दे रहा था। लड़की ने हाथ बढ़ा का वो मोटा उत्तेजित लिंग पकड़ लिया…
वो अपने मुलायम मुलायम हाथों से उसकी ऊपरी त्वचा को आगे पीछे करने लगी।
मैं अक्सर यह सोचकर हैरान हो जाती कि इन फिल्मों में काम करने वाले पुरुषों का लिंग इतना मोटा और बड़ा कैसे होता है और वो 15-20 मिनट तक लगातार मैथुन कैसे करते रह सकते हैं।
मैं उस दृश्य को लगातार निहार रही थी…
उस लड़की की उंगलियाँ पूरी तरह से तने हुए लिंग पर बहुत प्यार से चल रही थी…
आह…
तभी मुझे अहसास हुआ कि मैं तो अपने पति की गोदी में बैठी हूँ ! उन्होंने मेरा बांया स्तन को बहुत जोर से दबाया जिसका परिणाम मेरे मुख से निकलने वाली ‘आह…’ थी।
संजय मेरे नाइट सूट के आगे के बटन खोल चुके थे… उनकी उंगलियाँ लगातार मेरे दोनों उभारों के उतार-चढ़ाव का अध्ययन करने में लगी हुई थी। मैंने पीछे मुड़कर संजय की तरफ देखा तो पाया कि उसके दोनों हाथ मेरे स्तनों से जरूर खेल रहे थे परन्तु उनकी निगाह भी सामने चल रहे कम्प्यूटर की स्क्रीन पर ही थी।
संजय की निगाह का पीछा करते हुए मेरी निगाह भी फिर से उसी स्क्रीन की तरफ चली गई। वो खूबसूरत लड़की बाथटब से बाहर निकलकर टब के किनारे पर बैठी थी। पर ये क्या… अब वो मोटा लिंग उस लड़की के मुँह के अन्दर जा चुका था, वो बहुत प्यार से अपने होठों को आगे-पीछे सरकाकर उस आदमी के लिंग को लॉलीपाप की तरह बहुत प्यार से चूस रही थी।
मैंने महसूस किया कि नीचे मेरे नितम्बों में भी संजय का लिंग घुसने को तैयार था। वो पूरी तरह से उत्तेजित था।
मैं खड़ी होकर संजय की तरफ घूम गई, संजय ने उठकर लाइट बंद कर दी और मेरा नाइट सूट उतार दिया।
वैसे भी उस माहौल में बदन पर कपड़ों की जरूरत महसूस नहीं हो रही थी। मैंने कम्प्यूटर की स्क्रीन की रोशनी में देखा संजय भी अपने कपड़े उतार चुके थे। उनका लिंग पूरा तना हुआ था। उन्होंने मुझे पकड़ कर वहीं पड़े हुए सोफे पर लिटा दिया… वो बराबर में बैठकर मेरा स्तनपान कर रहे थे, मैं लगातार कम्प्यूटर पर चलने वाले चलचित्र को देख रही थी… और वही उत्तेजना अपने अन्दर महसूस भी कर रही थी।
बाथटब पर बैठी हुई लड़की की दोनों टांगें खुल चुकी थी और वो आदमी उस लड़की की दोनों टांगों के बीच में बैठकर उस लड़की की योनि चाटने लगा। मुझे यह दृश्य, या यूँ कहूँ कि यह क्रिया बहुत पसन्द थी, पर संजय को नहीं। हालांकि संजय ने कभी कहा नहीं पर संजय से कभी ऐसा किया भी नहीं। इसीलिये मुझे ऐसा लगा कि शायद संजय को यह सब पसन्द नहीं है।
वैसे तो संजय से मेरा रोज ही सोने से पहले एकाकार होता था। परन्तु वो पति-पत्नी वाला सम्भोग ही होता था, जो हमारे रोजमर्रा के कामकाज का ही एक हिस्सा था, उसमें कुछ भी नयापन नहीं था।
पर जब उत्तेजना होती थी… अब वो भी अच्छा लगता था।
अब तक संजय ने मेरी दोनों टांगें फैला ली थी परन्तु मेरी निगाह कम्प्यूटर की स्क्रीन से हट ही नहीं रही थी। इधर संजय का लिंग मेरी योनि में प्रवेश कर गया… तो मुझे… आह… अहसास हुआ कि… मैं कितनी उत्तेजित हूँ…
संजय मेरे ऊपर आकर लगातार धक्के लगा रहे थे…
अब मेरा ध्यान कम्प्यूटर की स्क्रीन से हट चुका था… और मैं अपनी कामक्रीड़ा में मग्न हो गई थी…
तभी संजय के मुँह से ‘आह…’ निेकली और वो मेरे ऊपर ही ढेर हो गये।
दो मिनट ऐसे ही पड़े रहने के बाद वो संजय ने मेरे ऊपर से उठकर अपना लिंग मेरी योनि से बाहर निकाला और बाथरूम में जाकर धोने लगे।
तब तक भी उस स्क्रीन पर वो लड़की उस आदमी से अपनी योनि चटवा रही थी ‘उफ़्फ़… हम्मंह…’ की आवाज लगातार उस लड़की के मुँह से निकल रही थी वो जोर जोर से कूद कूद कर अपनी योनि उस आदमी के मुँह में डालने का प्रयास कर रही थी। तभी संजय आये और उन्होंने कम्प्यूटर बंद कर दिया।
कहानी जारी रहेगी।
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