दूसरी सुहागरात… यार के साथ
(Dusri Suhagraat... Yaar Ke Sath)
सम्पादक- राज कार्तिक शर्मा
दोस्तो… आपकी शालिनी आपके लिए एक बार फिर से अपनी मस्ती की दास्ताँ लेकर आई है।
भूले तो नहीं ना मुझे?
हाँ जी… आपकी वही शालिनी भाभी… जयपुर वाली!
बहुत दिनों से आपके बीच नहीं आ सकी, आप सबकी बहुत याद आ रही थी।
आज मैं आपको अपनी दूसरी सुहागरात के बारे में बताना चाहती हूँ। बहुत दिनों से तमन्ना थी कि आप सबसे यह साँझा करूँ पर समय ही नही मिल रहा था।
आज रात को बैठे बैठे बहुत मन किया तो लिखने बैठ गई अपनी दूसरी सुहागरात की दास्ताँ।
दूसरी सुहागरात का नाम सुनकर कुछ दोस्त हैरान होंगे पर यह सच है।
पहली शादी मैंने मेरे माँ-बाप की मर्जी से की थी पर उस शादी से मुझे सब कुछ मिला पर पति के प्यार के साथ साथ पति का समय नहीं मिला था।
मैंने अपनी कहानियाँ अन्तर्वासना पर डाली तो मेरे पास अपने चाहने वालों की एक लम्बी सूचि तैयार हो गई थी, बहुत मेल आते और लगभग सभी मुझे चोदने की तमन्ना मन में रखते, कोई अपना लंड आठ इंच का बताता तो कोई बारह इंच का।
पर उन्हीं में से एक था प्रतीक… वो चुदाई की कम, प्यार की बातें ज्यादा करता।
पता नहीं क्या खास था उसमें कि जब उसने मेरी फोटो मांगी तो मैं इन्कार नहीं कर पाई।
मेरी फोटो देखने के बाद तो जैसे वो मेरा दीवाना ही हो गया था, उसका अपने प्रति प्यार देख कर मेरे मन के किसी कोने में उसके लिए प्यार पनपने लगा था। तभी तो जिस दिन उस से चैट नहीं हो पाती, उस दिन मैं उसको याद कर कर के तड़प जाती थी।
प्रतीक जानता था कि मैं शादीशुदा हूँ पर फिर भी जब भी हम चैट करते, वो मुझ से शादी करने की बात करता। अब उस दीवाने को मैं कैसे समझाती कि शादी दो बार नहीं हुआ करती।
प्रतीक जयपुर के पास का ही रहने वाला था तो अब वो अक्सर मुझ से मिलने जयपुर आता था पर उसने कभी भी सेक्स के लिए नहीं कहा।
प्रतीक के बारे में बता दूँ, वो पच्चीस छब्बीस साल का छ: फुट का हटा-कट्टा नौजवान है। देखते ही मेरा तो जैसे दिल आ गया था उस पर। उसको देख कर मेरी चूत में पानी आने लगता था…
पर वो था कि जैसे मेरे दिल की बात ही नहीं समझता था, उसको तो बस मेरे संग शादी की ही बात याद रहती थी।
एक दो बार मैंने उसको चुदाई करने के लिए उकसाया भी पर वो कहता- मेरी जान, जब मेरी तुम संग शादी हो जायेगी तो ही मैं तुम्हारी चुदाई करूँगा और तुम संग सुहागरात मनाऊँगा।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
उसी दौरान एक बार मेरे पति को कंपनी के काम से दस-पंद्रह दिन के लिए बाहर जाना पड़ा तो मेरे मन में विचार आया कि क्यों ना मैं प्रतीक से भी शादी कर लूँ। इस बहाने वो मेरा ख्याल भी रखेगा और मुझे चुदाई के लिए भी लंड की तलाश नहीं करनी पड़ेगी।
फिर तो हर रोज सुहागरात हो सकती है, वो भी बिना किसी हिचकिचाहट के!
मैंने प्रतीक को बता दिया कि मेरे पति बाहर जा रहे हैं तो प्रतीक अगले ही दिन मेरे पास जयपुर आ गया।
सुबह से शाम तक वो शादी की तैयारी में लगा रहा और फिर शाम को हम दोनों ने एक मंदिर में जाकर शादी भी कर ली।
वो मेरे लिए एक बहुत ही महंगा और खूबसूरत शादी का जोड़ा लेकर आया था और साथ में एक सोने का बहुत ही खूबसूरत मंगलसूत्र।
औरत तो इन चीजों की वैसे ही दीवानी होती है पर मुझे तो बाद प्रतीक के साथ सुहागरात का इंतज़ार था।
शादी की रस्में पूरी करने के बाद प्रतीक मुझे एक होटल में ले गया जहाँ उसने पहले से ही एक कमरा बुक करवाया हुआ था।
मेरे दिल की धड़कनें बढ़ गई थी। वैसे तो आप जानते ही हैं कि मैं कई लंड अपनी चूत को चखा चुकी थी पर आज सच में सुहागरात वाली फीलिंग आ रही थी, तभी तो मेरी चूत रानी में भी एक अजीब सी गुदगुदी मुझे महसूस हो रही थी।
कमरा पूरा फूलों से सजा हुआ था।
कमरे में आते ही प्रतीक ने मुझे बेड पर बैठाया और खुद बाथरूम में चला गया। मैंने भी प्रतीक को सुहागरात वाली फीलिंग देने का मन बनाया और एक लम्बा सा घूँघट निकाल कर बेड पर ऐसे बैठ गई जैसे नई दुल्हन अपने पति के इंतज़ार में बैठती है।
पांच मिनट के बाद प्रतीक कमरे में आया तो मुझे ऐसे घूँघट में बैठे देख खुश हो गया, वो आकर बेड पर मेरे पास बैठ गया और धीरे धीरे मेरा घूँघट उठाने लगा।
मैंने शरमा कर अपनी आँखें बंद कर ली।
प्रतीक ने मेरी ठुड्डी को अपने हाथ से ऊपर उठाया और बोला- शालू… मेरी जान आँखें खोलो…
मैंने शरमाते हुए ना में गर्दन हिला दी तो उसने बिना कुछ बोले अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। सच में मैं एक बार के लिए तो लरज गई… सच में सुहागरात वाला ही अहसास हो रहा था, मेरे होंठ शर्म के मारे कांप रहे थे।
मेरा नया पति मुझे ऐसे देख कर मन ही मन खुश हो रहा था।
होंठों पर एक हल्का सा चुम्बन करने के बाद प्रतीक ने मेरी शादी वाली चुनरी उतार कर एक तरफ रख दी और फिर मेरी साड़ी का पल्लू भी हटा दिया।
मैंने शर्मा कर अपने ब्लाउज में छुपी हुई चूचियों को अपनी बाहों में छुपा लिया।
‘तुम बहुत खूबसूरत हो शालू… बहुत दिनों से इस दिन का इंतजार कर रहा था… आज भगवान् ने मेरी सुनी है… अब और ना तड़पाओ… जल्दी से आ जाओ मेरी बाहों में…’
इतना सुनते ही मैं एकदम से उठी और प्रतीक के गले से लग गई। प्रतीक ने भी अपनी मजबूत बाहों का घेरा मेरी कमर पर बना लिया और मुझे जोर से अपनी बाहों में जकड़ लिया, मेरी चूचियाँ प्रतीक के सीने में गड़ी जा रही थी।
प्रतीक ने मेरे माथे पर चुम्बन लिया और फिर मेरी आँखों को चूमा, एक हाथ से मेरे गोरे गोरे गालों को सहलाते हुए एक बार फिर मेरे होंठो का रसपान करने लगा।
मैंने भी अपनी बाहों का हार प्रतीक के गले में डाल दिया था।
कुछ देर ऐसे ही रहने के बाद प्रतीक ने मुझे अपने से अलग किया और उसने अपने हाथ मेरी मस्ती के मारे कड़क हुई चूचियों पर रख दिए। मैंने थोड़ा शर्माते हुए प्रतीक के हाथ को वहाँ से हटाना चाहा पर प्रतीक ने मेरी चूचियों को कपड़ों के ऊपर से मसलते हुए मुझे बेड पर लेटा दिया।
बेड पर लेटाने के बाद प्रतीक के हाथ मेरे ब्लाउज के हुक खोलने में व्यस्त हो गये।
ब्लाउज खुलते ही मेरी ब्रा में कसी हुई चूचियाँ प्रतीक की आँखों के सामने थी। प्रतीक मेरी चूचियों को अपने हाथों से सहलाता रहा और फिर झुक कर उसने अपने होंठ मेरी चूचियों के बीच बनी दरार पर रख दिए और जीभ से ऐसे चाटने लगा जैसे किसी मक्खन के गोले को चाट रहा हो।
प्रतीक की जीभ के स्पर्श से मेरे अन्दर भी वासना के कीड़े दौड़ने लगे थे और मैंने प्रतीक के बालों में हाथ फेरते हुए उसके मुँह को अपनी चूचियों पर दबा लिया।
प्रतीक के हाथ मेरी चूचियों के साथ साथ मेरे नंगे पेट पर भी घूम घूम कर मेरे मखमली शरीर का आनन्द ले रहे थे।
प्रतीक के हाथों में ना जाने कैसा जादू था कि मैं उतेजना के मारे सिसकारियाँ भरने लगी थी।
तभी प्रतीक ने मेरी चूचियों को ब्रा से बाहर निकाल लिया और फिर मेरी दायीं चूची के निप्पल को अपने होंठो में दबा कर चूसने लगा। मुझे अब मज़ा आने लगा था तभी तो मेरी चूत में भी अब पानी भरने लगा था।
कुछ देर चूचियों का मर्दन करने के बाद प्रतीक उठा और उसने अपने कपड़े उतारने शुरू किये। मैंने आज से पहले प्रतीक का लंड नहीं देखा था, मैं उत्सुक निगाहों से प्रतीक के लंड के दर्शन की प्रतीक्षा करने लगी।
और जब प्रतीक ने अपना अंडरवियर नीचे किया तो प्रतीक का फनफनाता लंड देख कर मेरी तो बांछें खिल उठी। लगभग दस इंच लम्बा और तीन इंच से ज्यादा मोटा लंड मेरी आँखों के सामने था। शायद यह उन सब लंडों से ज्यादा लम्बा और मोटा था जो मैंने आज से पहले अपनी चूत में लिए थे।
लंड देख कर ही मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया था।
पूरा नंगा होने के बाद प्रतीक के हाथ अब मेरे कपड़ों का बोझ कम करने में व्यस्त हो गये और कुछ सेकंड्स में ही प्रतीक ने मुझे भी नंगी कर दिया। प्रतीक ने शायद चूत पहली बार देखी थी तभी तो वो बहुत ही उत्सुकता से मेरी जांघों के पास बैठ कर मेरी चूत को ध्यान से देख रहा था।
मैं भी मेरे भोले सनम के लिए आज अपनी चूत को चमका कर आई थी और कुछ चमक मेरे चूत से निकले पानी ने बढ़ा दी थी।
साफ़ चिकनी गुलाबी चूत प्रतीक की आँखों के सामने थी, उसने जैसे शर्माते हुए मेरी चूत पर अपनी ऊँगली से छू कर देखा- वाह… क्या शानदार और चिकनी चूत है तुम्हारी शालू… बिल्कुल ब्लू फिल्म की हीरोइन जैसी!
अपनी चूत की तारीफ़ सुनकर मैं थोड़ी शरमाई।
प्रतीक ने झुक कर मेरी जांघों और नाभि को अपनी जीभ से चाटना शुरू कर दिया, शायद वो मेरी चूत को भी ब्लू फिल्म की तरह चाटना चाहता था पर क्यूंकि शायद यह उसका पहला मौका था तो वो थोड़ा झिझक रहा था।
तभी मैंने पहल करने की सोची और हाथ बढ़ा कर उसके मूसल जैसे लंड को अपने हाथों में पकड़ कर सहलाना शुरू कर दिया।
प्रतीक तो जैसे सातवें आसमान पर पहुँच गया। सच में लंड बहुत मस्त था। मुझे लंड मसलता देख वो भी मेरी चूत के आसपास अपनी ऊँगली घुमाने लगा और फिर उसने अपनी बीच वाली ऊँगली मेरी चूत में घुसा ही दी।
मैंने प्रतीक के लंड को पकड़ कर अपनी तरफ खींचा तो उसने अपना लंड मेरी तरफ कर दिया।
मैंने बिना देर किये उसके लंड के सुपारे को अपनी जीभ से चाट लिया और उसको अपने होंठों में दबा लिया।
प्रतीक की अपने लंड पर मेरे होंठो से स्पर्श मात्र से ‘आह…’ निकल गई।
जब मैंने प्रतीक के लंड को अपने मुँह में भर कर चूसना शुरू किया तो प्रतीक मस्ती के मारे झूम उठा और उसी मस्ती में उसने भी अपनी जीभ मेरी चूत पर रख दी और मेरी चूत से निकल रहे कामरस को शहद की तरह चाटने लगा।
‘आह्ह्ह… चाटो मेरे राजा… बहुत तड़पाया है तुमने… आज खा जाओ मेरी चूत… बना लो मुझे अपनी रानी…’
मैं मस्ती के मारे बड़बड़ाने लगी थी… लंड का स्वाद सच में लाजवाब लग रहा था… अगले लगभग पंद्रह मिनट तक मैं प्रतीक का लंड चूसती रही और प्रतीक भी मेरी चूत का शहद चाटता रहा।
मेरी चूत दो बार पानी छोड़ चुकी थी जिसे प्रतीक चाट गया था। अब मेरी चूत लंड का स्वाद लेने को तैयार थी तो मैंने प्रतीक को अपने ऊपर आने को कहा।
वो तो जैसे इसके लिए कब से तैयार था, वो झट से मेरी टांगों के बीच आ गया और अपने लंड का सुपारा जो चूसने के बाद लाल टमाटर जैसा लग रहा था, मेरी चूत पर रगड़ने लगा।
मेरी चूत भी मुँह खोल कर उसके लंड को खा जाने के लिए तैयार हो गई थी।
तभी प्रतीक ने अपना लंड मेरी चूत पर दबा दिया।
लंड बहुत मोटा था जिस कारण मेरी चूत खुल गई थी, मैं आनन्दित थी कि आज एक मस्त मूसल से मेरी चूत की चटनी बनने वाली है।
मैंने प्रतीक को धक्का लगाने के लिए कहा तो प्रतीक ने एक जोरदार धक्का लगा दिया और लगभग आधा लंड मेरी चूत में समा गया। धक्का बहुत करारा था तो मेरी चीख निकल गई ‘हाय्य्य य्य… फट… गईईई मेरी तो… धीरे मेरे राजा…’
प्रतीक एक क्षण के लिए रुका और फिर एक और जोरदार धक्का लगा कर अपना दस इंच का मूसल मेरी चूत में उतार दिया। लंड सीधा मेरी बच्चादानी से जाकर टकराया था, मैं तो जैसे बेहोश होते होते बची थी।
पूरा लंड जाते ही प्रतीक रुका और मेरी चूचियों को मसलते हुए मेरे होंठ चूसने लगा।
काफी देर तक जब प्रतीक आगे नहीं बढ़ा तो मैंने नीचे से अपनी गांड उछाल कर उसको आगे बढ़ने का इशारा किया- अब किस बात की इंतज़ार है मेरे पतिदेव… अब शुरू हो जाओ और मिटा दो सारी खुजली मेरी चूत की और बुझा लो प्यास अपने लंड की!
सुनते ही प्रतीक शुरू हो गया और पहले धीरे धीरे और फिर लम्बे लम्बे धक्कों के साथ मेरी चूत के परखच्चे उड़ाने लगा।
मोटा मूसल मेरी चूत में धमाल मचा रहा था, लगभग हर धक्के पर मैं कहरा उठती थी पर इतना मज़ा आ रहा था कि लिख कर बताना बहुत मुश्किल है ‘आह्ह्ह्ह… उम्म्मम्म… ओह्ह्ह… चोदो मेरे राजा… जोर से चोदो… फाड़ तो अपनी दुल्हन की चूत… मना लो सुहागरात… आह्ह्ह्ह… फाड़ डालो….”
मैं मस्त हुई गांड उछाल उछाल कर प्रतीक के लंड को अपनी चूत में ले रही थी, प्रतीक भी मस्त होकर मुझे चोद रहा था।
क्या मस्त चुदाई कर रहा था प्रतीक… मज़ा ही आ गया था।
मोटे लंड का एहसास भी मुझे मेरी पहली सुहागरात पर हुई चुदाई की याद दिला रहा था, मोटा लंड फंस फंस कर चूत में जा रहा था, चूत की चिकनी दीवारों को रगड़ता हुआ अन्दर बाहर हो रहा था।
आखिर दस मिनट की चुदाई के बाद प्रतीक के धक्कों की स्पीड बहुत तेज हो गई, मैं समझ गई कि अब प्रतीक अपने लंड के रस से मेरी चूत की प्यास बुझाने ही वाला है।
इधर मेरी चूत भी अब प्यार की बारिश से प्रतीक के लंड को ठंडा करने को तैयार थी।
लगभग पंद्रह बीस धक्के और लगे और मेरी चूत से झरना फ़ूट पड़ा, साथ ही प्रतीक के लंड से गर्म गर्म वीर्य की बरसात मेरी चूत के अन्दर होने लगी थी।
मैं तो मस्ती के मारे प्रतीक से लिपट गई और उसको अपनी बाहों और टांगों में जकड़ लिया।
मैं प्रतीक के लंड से निकले रस को अपनी चूत की गहराइयों में महसूस करना चाहती थी। बहुत पानी निकला था प्रतीक के लंड से… पूरी चूत भर गई थी।
हम दोनों थक कर चूर हो गए थे, दोनों एक दूसरे की बाहों में लिपट कर लेटे रहे।
कुछ देर बाद प्रतीक उठा और बाथरूम में जाकर फ्रेश होकर आया और आते ही मेरे होंठ चूसने लगा।
कुछ ही पलों में चुदाई का दूसरा दौर शुरू हो गया और फिर तो सारी रात प्रतीक मेरी चूत की अपने मूसल से चुदाई करता रहा और मैं भी मस्त होकर दिल खोल कर चुदी और अपनी दूसरी सुहागरात मनाई।
मेरी यह कहानी कैसी लगी जरूर बताना। आपके जवाब का इंतज़ार रहेगा।
आपकी अपनी शालिनी … आपकी अपनी भाभी
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