मेरा प्रेमी-3
कहानी का पिछला भाग: मेरा प्रेमी-2
मनोहर अपनी हथेली से मेरी सलोनी चूत को सहलाने लगा, जिससे मैं चुदवाने को बुरी तरह बैचैन होने लगी, मेरी चूचियों में तनाव आ गया और निप्पल से दूध टपकने लगा, जिससे मेरी चूचियाँ भीग गई। उस समय मैं एकदम रसीली हो गई और मेरी चूत में पानी भर आया और अन्दर से वो कुलबुलाने लगी।
तभी मनोहर ने मुझसे पूछा,” भाभी अब करूँ ना ?”
” मैं रोक कहाँ रही हूँ तुम्हें ? चाहे जैसे करो, मैं मना नहीं करुँगी !”
बस मेरा इतना कहना क्या था कि उसने मेरी दोनों जाँघों को अपने कन्धों पर चढ़ा लिया और अपने भारी भरकम लंड के गोल सुपारे को मेरी चूत के मुँह पर रख कर पूरी ताकत से चांप दिया, लंड चूत को दो फांक करता बड़ी तेजी से अन्दर घुसने लगा, उस समय मैं अपने बदन को ऐंठने लगी क्योंकि उसका लंड जरूरत से ज्यादा कड़ा हो गया था। जैसे ही पूरा लंड मेरी चूत में घुसा, मैं आह … आ… ओह … ओह… करने लगी। वो तुंरत मेरी छाती पर औंध गया और बारी बारी से मेरी दोनों चूचियों को मुँह में डाल कर चूसने लगा।
मैं गुदगुदी से भर गई, वो मेरी चूचियों को छोड़ कर बैठ गया और अपने लंड को पूरा बाहर खींच कर जब पूरी ताकत से ठाप पर ठाप मार जड़ तक अन्दर बाहर करने लगा तो कुछ देर बाद ही मेरी चूत से छलछला कर पानी आने लगा और उस चिकने पानी से भीग कर उसका लंड लोहे की रॉड की तरह अन्दर बाहर आने जाने लगा। मुझे इतना मजा आने लगा जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी।
वो झकझोर झकझोर कर मुझे चोदने लगा, मैं अपने होशो-हवास में नहीं रह गई थी। काफी देर बाद जब दूसरा राउंड खत्म हुआ तो मैं पूरी तरह तृप्त होकर उससे बोली,” राजा, मैं अब बुरी तरह थक गई हूँ, मुझे नींद आ रही है !”
जब वो जाने लगा तो मैं उसे पकड़ कर बोली,” सुबह चले आना, जाओ अब सोने का मजा लो, अब तो तुम मेरे देवर हो !”
मनोहर चला गया और सुबह को मुझे एक किताब देकर कहा- इसे अकेले में पढ़ना ! बहुत मज़ेदार है।
सचमुच वो किताब आग ही थी, अभी दो चार पेज ही पढ़ पाई थी कि पूरे बदन में वासना की लहर दौड़ गई, पढ़ते पढ़ते चूत पसीजने लगी, ऐसा लगा जैसे उसमें कोई कीड़ा रेंग रहा है। मैं अपने हाथ से चूत से निकलते पानी को बार बार पोंछने लगी। अब मुझे मनोहर की जरूरत महसूस होने लगी थी। इसी बीच मनोहर भी खुद आ पहुंचा, उसने देखा मेरी तबीयत पहले से अधिक खराब हो गई थी, अंग अंग में चुदाई का नशा चढ़ गया था, मैं बार बार अपने हाथ से चूत से निकलते पानी को पोंछती रही।
वो आते ही बोला,” भाभी है ना किताब मजेदार !”
उसकी आवाज सुन कर मेरी चेतना लौटी और मैं बोली,” तुम कब आये यहाँ, यह किताब है या आग………..समूचा शरीर जला कर रख दिया है !”
” आखिर मैं किस मर्ज़ की दवा हूँ, मेरे रहते तुम्हारे बदन में आग कैसे भरी रह सकती है ! अभी तुम्हारे बदन की आग ठण्डी करता हूँ !”
और मनोहर ने तुंरत दरवाजा बन्द कर मुझे नंगा कर दिया, अपनी लुंगी भी खोल कर एक ओर फेंक दी और मेरी घोड़ी पर लगाम कस दिया।
मैं आह….आह…..ओह……याह …..करती रही और उसने मुझे पसीने पसीने कर दिया तब छोड़ा।
मैं एक ही बार में तृप्त हो चुकी थी और वो भी मुझे चोद कर खुश हो रहा था, उसने मेरी चूत को इस तरह रौंद डाला था जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी।
इस प्रकार जब तक मेरे पतिदेव बाहर से नहीं आ गये वो मेरे तन से खूब खेला।
जिस दिन पतिदेव आये और रात में जब मुझे चोदने के लिये नंगा किया और चूत में लंड डाला तो मेरी चूत देखी तो घबरा गये, वो मुझसे पूछने लगे,” तुम्हारी चूत में बहुत परिवर्तन आ गया है, यह पहले जैसे नहीं लग रही है?”
” पहले जैसी नहीं तो फ़िर कैसी लग रही है तुम्हें ?”
” पहले संकरी थी अब काफी फैली हुई लग रही है !”
” केवल अन्दर से फैली है या बाहर से भी ?”
” बाहर से तो वैसी ही है मगर अन्दर से समुन्दर हो गई है।”
” तुम्हें कोई भ्रम हो गया है जी, पहले चार बच्चे पैदा कर लो, फ़िर भ्रम करना, मैं तो ज्यों की त्यों हूँ, मुझमें कोई परिवर्तन नहीं आया है, तुम्हारा लंड छोटा है तो मैं क्या करूँ !?”
” हो सकता है भ्रम हो !?”
” जब बच्ची नहीं थी तो तुमने मुझ पर कभी शक नहीं किया था और अब शक कर रहे हो?”
” डार्लिग मकान मालिक का लड़का बहुत चालू दीखता है, उससे बच कर रहना, उसका चरित्र ठीक नहीं लगता !”
” वो तो मुझसे बात भी नहीं करता है, मैं तो एक बच्ची से ही परेशान रहती हूँ, मुझे किसी से बात करने की फुरसत ही कहाँ है ?”
सुबह पतिदेव के जाते ही मनोहर कमरे में आकर मुझे बाहों में भर कर चूम लिया, मैं कसमसाने लगी, उसने मुझे नंगा कर खुद भी नंगा हो गया और मुझ पर सवारी कर ताबड़तोड़ ठाप मारने लगा। मैं उसकी बांहों में समाती चली गई, उसने जी भर के मुझे चोदा।
मैं भी तृप्त हो गई !
उसके साथ इतना मजा आता था कि उसे छोड़ने का मन ही नहीं होता था।
रात को पतिदेव चोदते हैं पर बिलकुल मजा नहीं आता, सुबह उनके जाते ही मनोहर आ जाता है और अपने मोटे लंड से जम कर चोदता है, मेरी और अपनी प्यास बुझा जाता है।
अब तो मेरा मन अपने पतिदेव को छोड़ कर मनोहर से शादी कर लेने का मन कर रहा है, मनोहर भी मुझसे शादी करने को तैयार है, अब देखते हैं आगे क्या होता है !
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