अपने ही पति के साथ जोर आजमाइश
दोस्तो, मेरा नाम रोमा है और मैं मुंबई में रहती हूँ। मेरी पहली कहानी भतीजे ने दूर की सर्दी आपने पढ़ी।
अब मैं आपको अपनी एक और कहानी बताने जा रही हूँ। यह बात मेरी शादी के कुछ समय बाद की है। जब मैंने अपनी अन्तर्वासना कामेच्छा पूरी करने के लिए अपने ही पति के साथ जोर आजमाइश कर ली।
कैसे किया, यह भी सुनिए।
मेरी शादी को करीब 4 महीने हुये थे, हम दोनों मियां बीवी अलग अलग प्राइवेट कम्पनीज़ में जॉब करते थे। शादी के बाद भी मैंने जॉब नहीं छोड़ी। इसका फायदा यह हुआ कि घर में हम दोनों के पास इतने पैसे हो जाते थे कि खुल कर खर्च करते थे, मगर दिक्कत यह थी कि दोनों के काम में बिज़ी होने के कारण दोनों एक दूसरे को कम ही टाइम दे पाते थे।
ऐसे में जहाँ एक आम शादीशुदा जोड़ा शादी के बाद 4 महीने में 400 बार सेक्स लेता है, हम तो बस 20-25 बार ही कर पाये थे। अब उम्र चढ़ती जवानी, ऊपर से मुंबई में अपने फ्लैट में रहना, किसी की भी कोई दखलअंदाजी नहीं, तो हमारे पास तो एंजॉय करने का वक़्त ही वक़्त होना चाहिए था!
मगर असल में था बिल्कुल इसके उल्टा।
सुबह 9 बजे घर से निकलते, शाम को 7-8 बजे घर में आते और प्राइवेट कंपनी में तो काम की इतनी टेंशन होती है कि बस इतना ज़्यादा थके होते कि बाहर से ही खाना मँगवाते और सो जाते।
बहुत बार तो ऐसा भी होता कि दोनों बिल्कुल नंगे एक दूसरे की बाहों में लेटे लेटे एक दूसरे को देखते सहलाते सो जाते, दोनों में से किसी में भी इतनी ताकत न बचती के सेक्स कर ले।
सिर्फ छुट्टी वाले दिन ही दिन में 3-4 बार कर लेते।
ऐसे ही चलता रहा मगर न जाने क्यों इस बार मेरे पति ने छुट्टी वाला दिन भी ऐसे ही बहाने से बना कर निकाल दिया।
मैं शनिवार को ही दफ्तर से मूड बना के आई थी कि पति से कहूँगी के खाना बाद में खाएँगे, पहले एक ट्रिप लगाते हैं, उसके बाद खाना खाएँगे, फिर सोने से पहले एक बार और करेंगे और सो जाएंगे।
मगर पतिदेव दफ्तर का काम घर पे उठा लाये, बहुत ज़रूरी काम है, कह कर देर रात तक लगे रहे, मैं बिस्तर में उनके इंतज़ार में नंगी लेटी लेटी सो गई।
सुबह फिर किसी दोस्त के पास चले गए, दोपहर को आए, तो फिर काम।
मुझे बड़ा गुस्सा आया कि इतना काम!
मैंने साफ साफ कह दिया- देखो यार, काम तो करो, पर मेरा भी तो ध्यान करो?
वो बोले- क्या हुआ?
‘क्या हुआ, अरे यार एक हफ्ते से मैं प्रोग्राम बना रही हूँ, मेरा दिल कर रहा है और तुम पूछ रहे हो क्या हुआ, काम को छोड़ो, पहले मुझे पढ़ के देखो!’ मैंने खीज कर कहा।
मगर पति ने फिर से बहाना सा बना दिया और अपने काम में लग गए।
मुझे बहुत गुस्सा आया मगर फिर भी मैंने हिम्मत नहीं हारी, सिर्फ उनको रिझाने के लिए, कभी सेक्सी ब्रा पेंटी पहन कर कभी बिल्कुल नंगी हो कर भी मैं उनके आस पास घूमती फिरती रही मगर उन्होंने कोई खास ध्यान नहीं दिया।
फिर मैंने पूछा- सुनो, तुम्हारा कोई बाहर या ऑफिस में तो कोई चक्कर नहीं है क्या, जो तुम बाहर कर आए और मुझे इगनोर कर रहे हो?
मगर उन्होने मेरी इस बात को भी कोई तवज्जो नहीं दी- सुनो रोमा, मेरा किसी से कोई चक्कर नहीं है, सिर्फ ये ज़रूरी काम है, मुझे ये प्रोजेक्ट तैयार करके हर हाल में मंडे को ऑफिस में देना है, और इतना टाइम किसके पास है जो बाहर का कोई चक्कर चलाता फिरे, जब मैं तुम्हें तो टाइम दे नहीं पा रहा हूँ।
उनकी बात भी सही थी, मैं खीज कर उनकी तरफ पीठ करके लेट गई।
मगर कब तक?
बिना कुछ किए भी मेरी चूत गीली हुई पड़ी थी।
थोड़ी देर पड़ी सोचती रही, फिर उठ कर किचन में गई, यह देखने कि कोई मूली, गाजर, बैंगन या कुछ और मिले जो पति को दिखा दिखा कर अपनी चूत में लूँ।
मगर ऐसी कोई चीज़ मुझे नहीं मिली तो पैर पटकती वापिस आ कर बेड पे लेट गई।
उंगली से करने की कोशिश की मगर बात नहीं बनी।
एक बार फिर पति से विनती की- जानू, आओ न यार, यूँ नहीं सताते!
मगर पति ने सिर्फ मुस्कुरा कर टाल दिया।
दुखी, प्यासी और तड़पती हुई मैं न जाने कब सो गई।
रात को करीब 3 बजे फिर से आँख खुली, पेशाब का ज़ोर पड़ रहा था, उठ कर बाथरूम में चली गई।
पेशाब करके उठी, बाथरूम में लगे फुल साइज़ शीशे में अपने आप को देखा, गोल बूब्ज़,पतली कमर, चौड़े कूल्हे, चिकनी जांघें, अच्छी तरह से वीट लगा कर चिकनी की हुई चूत, बगलों में भी कोई बाल नहीं, टाँगे-बाहें सब वेक्स की हुई, और सबसे बड़ी बात, खूबसूरत चेहरा।
फिर ऐसा क्या था, जो मेरे पति को आकर्षित नहीं करता, इतना किसी और मर्द को देखने भर को मिल जाए, तो वो तो मेरा गुलाम बन जाए।
जब वापिस आई तो देखा, पति बेड पूरी तरह से हाथ पाँव फैला कर लेटे सो रहे थे और चड्डी में उनका लंड सलामी दे रहा था।
मेरे दिमाग में एक शरारत आई। मैंने अपनी अलमारी खोली और उसमें से अपने दुपट्टे निकाले और बड़ी सफाई से अपने पति के हाथ पाँव बेड के चारों पाँव से बांध दिये।
जब बांध दिये तो फिर उनकी चड्डी भी उतारने की कोशिश की, मगर जब नहीं उतरी तो कैंची से काट दी।
वाह, अब उनका तना हुआ लंड मेरे सामने था।
मैंने एक हाथ से अपनी चूत को सहलाया और दूसरे हाथ से उनका लंड पकड़ कर अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी। मुझे लंड चूसना बहुत अच्छा लगता है।
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मगर मेरी इस हरकत से पति की नींद खुल गई, जब उन्होंने उठना चाहा तो उठ नहीं पाये, क्योंकि उनके हाथ पाँव बंधे थे।
‘रोमा, यह क्या कर रही हो? खोलो मुझे!’ वो बोले।
‘देखो जानू, जब मैंने तुमसे रिकवेस्ट की थी तो तुमने नहीं मानी, अब तुम्हारी रिकवेस्ट को मैं नहीं मानूँगी, बस चुपचाप लेटे रहो, और जो मैं करती हूँ, मुझे करने दो!’ कह कर मैं फिर से पति का लंड चूसने लगी।
दरअसल मैं तो उनका लंड चूस कर उनका मूड बनाना चाह रही थी। थोड़ी देर चूसने के बाद मैं उनकी छाती पे चढ़ बैठी और अपनी चूत उनके मुँह में घिसा दी- ओह मेरी जान,चाटो इसे और मार डालो मुझे!
मैंने अपने पति से कहा।
मगर उनका शायद अभी भी मूड नहीं था, उन्होंने नहीं चाटी।
मैं अपनी चूत का दाना भी मसल रही थी और जोश में आकर मैंने कुछ ज़्यादा ही ज़ोर से अपनी चूत उनके मुँह पे रगड़ दी।
गुस्से में आकर उन्होंने मेरी चूत के होंठों पे अपने दाँत से काट लिया, वो भी ज़ोर से।
बहुत दर्द हुआ मुझे, मगर उनके काटने से मज़ा भी आया।
मैं उठी और उठा कर पीछे को हुई, मैंने अपने पति का लंड पकड़ा और मारा एक चांटा उनके लंड पे!
‘अइई…’ पति के मुँह से चीख निकली।
‘क्यों अपनी बारी आई, और जब मेरे दाँत से काटा था, तब क्या मुझे दर्द नहीं हुआ था? ये लो’ कह कर मैंने एक और चांटा उनके लंड पे मारा।
न सिर्फ लंड पे बल्कि एक दो हल्के हल्के चाँटे उनके आँड पे भी मारे, हर बार उनके मुँह से चीख निकली।
मेरे मन को भी संतुष्टि हुई, मेरी चूत अब भी दुख रही थी, मगर दर्द की परवाह न करते हुए मैंने उनका लंड सीधा किया और अपनी चूत उसके ऊपर रखी और धीरे धीरे करके उनका सारा लंड मेरी चूत निगल गई।
‘आह!’ क्या संतुष्टि हुई, जब प्यासी चूत को लंड का भोजन मिला, अंदर तक भर गई।
मैंने अपने दोनों हाथ अपने पति के सीने पे टिका दिये और खुद ही अपनी कमर आगे पीछे हिला हिला कर चुदने लगी।
‘हुआ क्या है तुम्हें आज?’ पति ने पूछा।
‘पागल हो गई हूँ, कितने दिनों से इसके लिए तरस रही थी, आज मेरी इच्छा पूरी हुई है।’ मैंने कहा।
सच में खुद चुदाई करवाकर बहुत मज़ा आ रहा था, जब जोश आता मैं अपने पति के सीने पर मुट्ठियाँ भर लेती, जिनसे उनका सीने का मांस मेरे हाथों में भर जाता और उनके मुँह से सिसकी सी निकल जाती।
सच में उनकी हालत देख कर मन में तरस भी आता, बंधे हुये हाथ पाँव, हिल भी नहीं पा रहे थे, ऊपर से उनकी मर्ज़ी के बिना सेक्स। मगर मेरे तो मज़े ही मज़े थे।
सच में मुझे तो बहुत मज़ा आ रहा था।
पहले मैं घुटनों के बल बैठी आगे पीछे हिल हिल के लंड ले रही थी, मगर इससे लंड की मूवमेंट मेरी चूत में कम लग रही थी, तो मैं पाँव के बल बैठ गई, जैसे पोट्टी करने के लिए बैठते हैं, उसके बाद मैं अपनी कमर ऊपर उठाती और फिर नीचे बैठ जाती, इस मोशन से लंड की मूवमेंट मेरी चूत में ज़्यादा हो गई।
यह तरीका बढ़िया था, मैं ऐसी ही करने लगी, मगर इसमे जोर ज़्यादा लग रहा था। मगर मैंने हिम्मत नहीं हारी।
पति की हालत तो मुझसे भी ज़्यादा पतली थी, वो तो बस 5 मिनट तक ही रोक पाये, और उसके बाद उनके लंड से उनके माल की पिचकारियाँ मेरी चूत के अंदर चल गई।
बहुत आनन्दमयी एहसास हुआ जब गर्म गर्म वीर्य की फुहारें मुझे अपनी चूत के अंदर महसूस हुईं।
मैं ज़ोर लगाती रही, मगर मेरे झड़ने से पहले पतिदेव का लंड ढीला पड़ने लगा और फिर अपने आप ही पिचक से बाहर निकल गया।
मुझे बड़ी निराशा हुई, मैंने अपने पति का एक हाथ खोला- सुनो, मेरा अभी हुआ नहीं है, मेरा भी करो!’ मैंने कहा।
पतिदेव ने उंगली मेरी चूत में डाल कर ज़ोर ज़ोर से आगे पीछे करना चालू किया, उंगली में लंड जैसा मज़ा तो नहीं था, पर 2-3 मिनट की उंगली की चुदाई ने मुझे भी झाड़ दिया।
जब मेरा पानी छूटा तो मैं तो बेड से नीचे ही लटक गई और धीरे से फिसल कर फर्श पे जा गिरी।
मेरी तसल्ली हो चुकी थी, अब मुझे और कुछ नहीं चाहिए था, नीचे कार्पेट पे ही पड़ी रही।
फिर पति ने आवाज़ लगाई, ‘ए रोमा, मेरे हाथ पाँव तो खोल दे यार?
मैंने बड़े बेमन से उठी, अभी मैं इस हैंगआउट का और मज़ा लेना चाहती थी।
पति के हाथ पाँव खोल कर मैं उनके साथ ही लेट गई और कब सो गई पता ही नहीं चला।
सुबह जब उठी, तो पति चाय बना कर लाये, ‘गुड मॉर्निंग डार्लिंग!’ पति ने कहा।
‘गुड मॉर्निंग!’ मैंने भी कहा।
पति ने लोअर और टी शर्ट पहनी हुई थी, जबकि मैं बिल्कुल ही नंगी थी।
मैं उठ कर बाथरूम गई, पेशाब किया, कुल्ला किया और वापिस बेडरूम में आ कर चादर लेकर बैठ गई और चाय पीने लगी।
‘रात तो तुम बहुत ही वाइल्ड हो गई थी?’ पति ने कहा।
‘हाँ’ मैंने मुस्कुरा के कहा- अगर शेरनी भूखी होगी, तो शिकार करके ही खाएगी!
मगर अंदर ही अंदर मैं सोच रही थी कि क्या सेक्स इतनी शक्तिशाली चीज़ है जो किसी भी इंसान को क्या से क्या बना देती है।
सच में मुझे बहुत शर्म सी भी आ रही थी।
उसके बाद मैंने आज तक ऐसे नहीं किया और न ही कभी पति ने मौका दिया कि मैं दोबारा उनके साथ ऐसा कर सकूँ।
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