आधी हकीकत आधा फसाना-3
(Aadhi Haquikat Aadha Fasana- Part 3)
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अब तक आपने पढ़ा..
मेरे दोस्त की बहन किमी ने मुझे हस्त मैथुन करते देख लिया.. फिर उसने अपनी शादी और सुहागरात की कहानी बताई।
अब आगे…
किमी ने आगे बताना शुरू किया- मैं रात भर की कामक्रीड़ा के बाद ऐसे ही सो गई थी और जब सुबह ‘खट’ की आवाज के साथ दरवाजा खुला, उसी के साथ ही मेरी नींद भी खुल गई।
मैंने देखा सामने सुधीर खड़े थे, मैं चौंक गई क्योंकि सुधीर तो मेरे साथ थे, पर वो दरवाजे से कैसे आ रहे हैं।
उहहह.. मुझे अब होश आया कि बीती रात मेरे साथ कुछ भी नहीं हुआ, असल में मैंने रात भर अपने सुहागरात के सपने देखे हैं। वास्तव में मेरी सुहागरात तो कोरी ही रह गई।
मैंने अकचका कर सुधीर से पूछा- आप रात भर नहीं आए..! और मैं भी आपका इंतजार करते करते सो गई थी।
उनका मुंह खुलते ही दारू की बदबू आई, उन्होंने कहा- वो दोस्तों के साथ कब रात बीत गई.. पता ही नहीं चला!
मैंने ‘कोई बात नहीं..’ कहते हुए उन्हें बिस्तर में लिटाया और सुला कर घर के काम-काज में लग गई।
इसी तरह की दिनचर्या चलने लगी थी, मैंने समझदारी से कुछ दिनों में अपने पति को छोड़कर घर के सभी सदस्यों को खुश कर लिया, सुधीर कभी रात को घर आते थे और कभी नहीं भी आते थे और तीन महीने बाद भी मेरी असली सुहागरात का वक्त नहीं आया था।
एक दिन काम करते करते जेठानी ने मजाक किया- क्यों देवरानी, फूल कब खिला रही हो?
मैंने भी गुस्से में कह दिया- गमले में आज तक पानी की बूंद नहीं पड़ी और आप फूल की बात करती हो?
जेठानी मेरी बात को झट से समझ गई, उसने कहा- फिर तो गमला प्यासा होगा, तू कहे तो मैं कुछ मदद करूं?
मैंने कहा- आप मेरी मदद कैसे करोगी?
उसने कहा- गाजर, मूली, बेलन ये सब कब काम आएंगे, तू कहे तो हम दोनों मजे ले सकते हैं।
मैं पढ़ी-लिखी लड़की थी.. मुझे ये सब बातें बकवास लगीं.. मैं भड़क उठी, तो जेठानी ने झेंप कर कहा- मैंने कोई जबरदस्ती तो नहीं की है, जब तुम्हारा मन हो मुझे बता देना!
मैं वहाँ से उठ गई और आगे इस बारे में हमारी बात भी नहीं हुई।
अब रोज रात मुझे रतिक्रिया के सपने आने लगे, मैं भले ही पढ़ी-लिखी लड़की थी, पर तन की जरूरतों के आगे किसका बस चलता है!
मेरी भी हालत ऐसी ही होने लगी।
एक रात को सपने देखते-देखते मैं अपनी योनि को सहलाने लगी और थोड़ी ही देर में मेरी योनि भट्टी की तरह गर्म हो गई। मैंने क्रमशः एक, फिर दूसरी उंगली योनि में डाल ली, पर मेरी वासना शांत होने के बजाए और भड़क उठी। अब मुझे जेठानी की बातें याद आने लगीं, फिर मैं चुपके से रसोई में जाकर एक गाजर उठा आई, पहले तो गाजर को थूक से गीला किया और योनि के ऊपर रगड़ने लगी। इसी के साथ मैं अपने दूसरे हाथ से अपने उरोज को सहला रही थी।
अब मेरी योनि लिंग मांग रही थी, तो मैंने गाजर के मोटे भाग को योनि के अन्दर प्रवेश कराना चाहा, जो तीन इंच मोटा होगा, उसकी लंबाई भी बहुत थी.. पर पतली होने के क्रम में थी।
गाजर को योनि में डालते हुए दर्द के मारे मेरी जान निकल रही थी.. उम्म्ह… अहह… हय… याह… पर गाजर अन्दर नहीं गई, तो मैंने दर्द को सहने के लिए अपने दांतों को जकड़ लिया और एक जोर का धक्का दे दिया। इससे गाजर मेरी योनि में तीन इंच अन्दर तक घुस गई और योनि से खून की धार बह निकली।
मेरी आँखों में आँसू आ गए, मैं डर गई.. मैंने अपनी सील खुद ही तोड़ी थी, पर अभी मेरा इम्तिहान बाकी था।
अब मेरे सर से सेक्स का भूत उतर गया था, मैंने गाजर को निकालने के लिए उसे वापस खींची.. लेकिन गाजर टस से मस नहीं हुई।
फिर मैंने सोचा थोड़ा हिला डुला कर खींचती हूँ। मैंने इतनी तकलीफ के बावजूद गाजर को हिलाने के लिए उसे और अन्दर धकेली और फिर बाहर खींचने लगी, मेरी तो जान ही निकल गई, फिर भी गाजर को निकालना तो जरूरी था।
मेरे जोर लगाने से गाजर बीच से टूट गई… हाय राम.. ये क्या हो गया.. अब मैं क्या करूँ! गाजर का बहुत छोटा सा भाग लगभग डेढ़ इंच ही बाहर दिख रहा था। अब मुझसे गाजर निकालते भी नहीं बन रही थी और दर्द के मारे मेरी हालत और खराब हो रही थी।
अब मुझे बदनामी से लेकर दर्द खून और सभी चीजों की चिन्ता सताने लगी।
ऐसी हालत में अब मेरे पास जेठानी के पास जाने के अलावा कोई चारा नहीं था। ऐसे भी मैंने पूरे कपड़े तो उतारे नहीं थे सिर्फ पेंटी उतारी थी और साड़ी ऊपर करके मजे लेने में लगी थी, सो मैंने तुरंत साड़ी को नीचे किया और लंगड़ा कर चलती हुई जेठानी के कमरे के बाहर जाकर उसे आवाज लगाई।
फिर उसे बुला कर अपने कमरे में लाई और झिझकते हुए उसे अपनी साड़ी उठा कर अपनी योनि दिखाई और पूरी कहानी बताई।
मेरी जेठानी बहुत कमीनी थी, उसने सबसे पहले मेरे उस दिन के व्यवहार के लिए खरी खोटी सुनाई और कहा- तू तो बहुत अकड़ती थी ना, ले अब कुत्ते के लंड जैसा अटक गया ना तेरी चुत में.. और चुत फट गई.. सो अलग, देख तो तेरी चुत की कैसे धज्जियाँ उड़ गई हैं!
वो मुझे और ज्यादा डरा रही थी।
मैं उसके पैरों में गिर गई- दीदी मुझे बचा लो.. एक बार ये गाजर निकाल दो फिर आप जो कहोगी मैं करूँगी।
उसने कहा- सोच ले.. जो कहूँगी, वो करना पड़ेगा!
मैंने कहा- सोच लिया दीदी.. आप जो कहोगी, मैं वो करने को तैयार हूँ।
तो वो बोली- फिर ठीक है अब तू फिकर मत कर.. जा बिस्तर में लेट जा, मैं अभी गाजर निकालने का सामान लेकर आती हूँ।
मैं बिस्तर में लेट कर इंतजार करने लगी, जेठानी करीब दस मिनट बाद आई। उसके हाथ में नारियल तेल का डिब्बा और गाड़ी में रहने वाला पेंचकस आदि टूल थे। उसने उसे मेरे पैरों के पास रखा और थोड़ा ऊपर आकर मेरे दोनों कंधों को जकड़ लिया, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि जेठानी क्या कर रही है।
उसने मुझे जकड़ने के बाद आवाज लगाई- आ जाओ जी.. मछली जाल में कैद है..!
सामने से जेठ जी अन्दर आ गए।
‘हाय राम.. दीदी आपने जेठ जी को क्यों बताया? अब वो क्या सोचेंगे.. मैं तो कहीं की नहीं रही!’
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मैं योनि खोले टांगें फैलाए लेटी थी, मैंने हड़बड़ाने की कोशिश की, पर जेठानी ने मुझे जकड़ रखा था।
जेठ जी सामने आकर बोले- साली गाजर योनि में डालते समय लाज नहीं आई.. और अब नखरे दिखा रही है, शांति से पड़ी रह, इसी में सबकी भलाई है। देख.. केवल आधा इंच गाजर ही बाहर दिख रही है, ज्यादा हिलोगी तो वो भी अन्दर घुस जाएगी, फिर आपरेशन के अलावा कोई चारा नहीं रहेगा।
मुझे उनकी बात सही लगी.. मैंने जेठानी से कहा- हाँ, अब मैं नहीं हिलूँगी, मुझे छोड़ दो।
जेठानी के छोड़ते ही मैंने नजर योनि में डाली.. सही में डेढ़ इंच गाजर में से एक इंच और अन्दर घुस गई थी और योनि तो ऐसी लाल दिख रही थी मानो पान खाकर 50-100 लोगों ने एक साथ थूक दिया हो।
मैंने जेठ जी से कहा- अब आप ही कुछ कीजिए जेठ जी?
उन्होंने कहा- करूँगा तो मैं बहुत कुछ.. पर अभी सिर्फ ये गाजर निकाल देता हूँ।
मैं उनका इशारा समझ चुकी थी, पर अभी मेरे लिए गाजर निकलवाना ही सबसे ज्यादा जरूरी था।
जेठ जी ने तेल के डिब्बे को खोलकर मेरी योनि में तेल की धार पिचकाई और बहुत सारा तेल अन्दर तक डालने की कोशिश की, फिर जेठानी से कहा- तुम इसके दोनों पैर फैला के रखो, ध्यान रहे गाजर खींचते वक्त कहीं ये पैर सिकोड़े ना, क्योंकि दर्द बहुत ज्यादा होगा।
जेठानी ने मेरे दोनों पैर फैलाए और कहा- चुप रहना कुतिया.. अपनी ही करनी भोग रही है, ज्यादा चिल्लाना मत और अपना वादा याद रखना।
अब जेठ जी ने बड़ी सफाई से पेंचकस में गाजर को फंसाया और जोर लगा कर बाहर खींचने लगे।
दर्द के कारण मैं बेहोशी की स्थित में आ गई, अगर तेल ना डाला होता तो मैं सच में मर ही जाती।
उई माँ.. मैं तो मर गई रे.. कहते हुए मैं अचेत हो गई।
जब मुझे होश आया तो जेठानी मेरे सर के पास बैठी थी और सुबह होने वाली थी।
जेठानी ने कहा- चल अब तू आराम कर, रात की बात भूल जाना, ज्यादा सोचना मत.. हाँ लेकिन वादा याद रखना, मैं उसे जब चाहूं मांग सकती हूँ।
मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया और अनमने मन से ‘धन्यवाद दीदी’ कहा।
सुबह उठ कर मुझे चलने में तकलीफ हो रही थी, मैं जब अपने कमरे से बाहर निकली तो मैं जेठ जेठानी से नजरें नहीं मिला पा रही थी।
जेठानी ने पास आकर कहा- जो हुआ उसके लिए ज्यादा मत सोच और आज रात अपना वादा पूरा करने के लिए तैयार रहना।
मैंने तुरंत ही जेठानी से गिड़गिड़ाते हुए कहा- दीदी आप क्या चाहती हो, पहले वो खुल कर बताओ!
तो उसने कहा- अरे तुम इतनी भी तो भोली नहीं हो.. तेरे जेठ तेरे तुझे चखना चाहते हैं।
मैंने कहा- इसमें आपको क्या मिलेगा दीदी?
उसने कहा- हमारी शादी को हुए आठ साल हो गए और अभी तक बच्चा नहीं हुआ है.. इसलिए मैंने इक्कीस गुरुवार का व्रत रखा है, ताकि मैं ठाकुर जी को प्रसन्न कर सकूँ और इस बीच मैं अपने पति से संबंध नहीं बना सकती हूँ। लेकिन तेरे जेठ पर ये बंदिश लागू नहीं है, वो किसी दूसरे से संबंध बना सकते हैं। अगर मैं उन्हें ऐसा करने से रोकूँगी तो वो मेरा व्रत पूरा नहीं होने देंगे। वो तो रोज ही सेक्स करने वाले व्यक्ति हैं, वो इतने दिन नहीं रुक पायेंगे और फिर उनकी हालत मैं समझ सकती हूँ।
मैंने कहा- पर दीदी, आज तक मैंने किसी के साथ संबंध ही नहीं बनाए हैं और इसी कारण से सबसे पहले मैं अपने पति से संबंध बनाना चाहती हूँ, बस मुझे पति के साथ सेक्स संबंध बनाने तक की मोहलत दे दो.. प्लीज दीदी… फिर मैं अपना वादा पूरा करने के लिए तैयार हूँ।
जेठानी भी एक स्त्री ही थी, सो उसने मेरी व्यथा समझ कर ‘हाँ कह दी.. और कहा- अब तेरे खसम को जल्दी ही तेरे ऊपर चढ़वाती हूँ।
जेठानी ने मेरी मजबूरी समझी, इसलिए अब वो मुझे थोड़ी अच्छी लगने लगी।
मैं इस कहानी में समाज का असली चेहरा और सेक्स लाईफ के कमजोर पहलुओं को भी दर्शाने की कोशिश कर रहा हूँ, बस आप कहानी से जुड़े रहें, आपको मेरी इस कहानी में कहीं वेदना, तो कहीं उत्तेजना का रस बहता हुआ मिलेगा।
कहानी कैसी लग रही है,.. अपनी राय इस पते पर जरूर दें।
[email protected]
कहानी जारी रहेगी।
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