साठा पे पाठा मेरे चाचा ससुर-4
(Satha Pe Patha Mere Chacha Sasur- Part 4)
इस सेक्सी कहानी के पिछले भाग
साठा पे पाठा मेरे चाचा ससुर-3
में आपने पढ़ा कि
मेरे चाचा ससुर बहुत खुश थे अपनी ही बहू से मुख मैथुन करके।
ठंडे से होकर वो मेरी बगल में ही गिर गए, उनका लंड धीरे धीरे ढीला पड़ रहा था, पर उससे कोई कोई बूंद वीर्य की अभी निकल रही थी, जिसे मैं अपनी जीभ से चाट चाट कर पी रही थी।
वो बोले- बहू, तुझे माल पीना बहुत पसंद है क्या?
मैंने कहा- जी पापा, मुझे ये बहुत टेस्टी लगता है, इनका तो मैं सारा पी जाती हूँ, पर आपका तो माल गिरता ही बहुत है, इसलिए पूरा नहीं पी पाई, थोड़ा इधर उधर भी बिखर गया है।वो पलटे और मेरे मुँह के पास मुँह करके बोले- तेरी हर प्यास बुझा दूँगा मेरी जान, तू भी क्या याद करेगी, किस मर्द से पला पड़ा है!
और वो मेरे गाल से अपना ही माल चाट गए।
अब आगे:
कुछ देर हम एक दूसरे को बांहों में भरे लेटे रहे।
फिर वो मेरे मम्मों से खेलने लगे- बहू, क्या मेरा भतीजा तुम्हें पूरी तरह से खुश नहीं कर पाता?
उन्होंने मेरे निप्पल को मसलते हुये पूछा।
मैंने कहा- पापा, खुश तो करते हैं, उनके प्यार में कोई कमी नहीं है, मैं उनसे पूरी तरह से संतुष्ट हूँ, मगर मेरी ही भूख ज़्यादा है, उन्हें अपने काम की टेंशन है, तो वो हफ्ते में सिर्फ एक दो बार ही करते हैं, मगर मुझे तो हर रोज़ चाहिए, इसलिए मुझे हर वक्त सेक्स की चाहत रहती है।
उन्होंने बड़े प्यार से एक बाप की तरह मेरे सर पर हाथ फेरा और मेरा माथा चूम कर बोले- घबरा मत बेटी, अब मैं तेरी हर इच्छा को पूरा कर दूँगा।
मैं भी खुश हो कर उनसे लिपट गई और उनके लंड को पकड़ कर हिलाने लगी।
वो बोले- और चाहिए?
मैंने कहा- हाँ, अभी तो सिर्फ ऊपर का मुँह तृप्त हुआ है, नीचे वाला मुँह तो अभी भी भूखा है।
चाचाजी ने मेरे होंठ अपने होंठों में ले लिए, चाहे मेरे सारे चेहरे पर उनके वीर्य की बूंदें गिरी थी जो बहुत सी उनके चेहरे पर भी लग गई, कुछ उन्होंने खुद भी चाट ली। होंठो से होंठ मिले तो जीभ से जीभ की भी मुलाक़ात हुई। वो मुझे चूस रहे थे और मैं उनको… वो मेरे मम्में मसल रहे थे और मैं उनका लंड!
मेरे बालों को सहलाते हुये वो बोले- कभी भैंस का दूध दुहा है?
मैंने कहा- नहीं!
वो बोले- देखा है किसी को भैंस का दूध दूहते हुये?
मैंने कहा- हाँ, देखा तो है।
वो बोले- तो मेरे लंड को भैंस का थन समझ कर इसे दूहो।
मैंने कहा- इतनी ज़ोर से?
वो बोले- हाँ, ज़ोर से ही मज़ा आता है, ऐसे धीरे धीरे हिलाने में कोई मज़ा नहीं।
मैंने ससुर जी के लंड को ज़ोर से पकड़ कर खींच खींच कर हिलाना शुरू किया, वो बोले- आह, मज़ा आ गया मेरी जान, और खींच!
मैं उनका लंड खींचती रही और उनका लंड सख्त होना शुरू हो गया और फिर से अपनी पूरी अकड़ में आ गया।
चाचा जी ने मेरी एक जांघ उठा कर अपनी जांघ पर रख ली और अपनी एक उंगली से मेरी चूत का दाना मसलने लगे। हाथ में एक मस्त लंड होंठ, यार के होंठों से होंठ मिले हों, और चूत में यार खुजली कर रहा हो, तो कितनी देर आप खुद पे काबू रख सकते हो। मैं भी अपने आप से अपना काबू खो बैठी और सीधी हो कर लेट गई.
मेरे सीधे लेटते ही चाचाजी मेरे ऊपर आ गए, मैंने अपने आप अपनी टाँगें पूरी खोल दी, घुटने मोड़ लिए। चाचाजी ने मेरी चूत को पहले चूमा और फिर मेरे ऊपर छ गए। मैंने खुद उनका लंड पकड़ा और अपनी चूत पे रखा।
“तुम्हारी चूत तो फिर से पानी छोड़ रही है!” वो बोले।
मैंने उन्हें आँख मार कर कहा- अपने यार के स्वागत के लिए सभी रास्तों पर पानी छिड़का है कि यार आराम से अंदर आ जाए।
“तो लो फिर!” चाचाजी ने कहा और अपने लंड को धक्का मार मार कर मेरी चूत में घुसा दिया।
चाचाजी का लंड मेरे पति के लंड से थोड़ा सा मोटा और थोड़ा सा बड़ा था। या फिर पराया लंड था, इसलिए मुझे ही वहम हो गया हो, मगर वो मुझे अपने पति से ज़्यादा ज़बरदस्त लगे।
एक ‘आह…’ से मैंने उनके लंड का अपनी चूत में स्वागत किया।
वो बोले- अब हर बार मुझे यही प्यारी आह चाहिए!
और उन्होंने फिर धक्का मारा और अपने लंड को मेरी चूत में और गहरे उतारा। मजबूत मर्दाना लंड मेरी चूत की गहराई में समा गया। मैं तो बस इसी से तृप्त हो गई थी। चाचाजी ने मुझे अपनी बांहों में कस के भर लिया और नीचे से ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने लगे।
बहुत ही सख्त लंड था उनका, उनके आगोश में जकड़ी मैं ठीक से सांस नहीं ले पा रही थी और नीचे से वो मेरी चूत को छील देने की हद तक रगड़ रगड़ कर मुझे चोद रहे थे। कितनी देर मुझे वो ऐसे ही चोदते रहे और मैं बेबस लाचार सी उनके आगे हार मान रही थी, और सोच रही थी कि इस उम्र में भी इनमें कितना दम है, मैं तो फिर भी शादीशुदा हूँ, अगर कोई कच्ची कुँवारी लड़की मिल जाए, तो ये तो उसे चोद चोद कर ही जान से मार दें।
फिर चाचा जी बोले- बहू तुम्हें कौन सा पोज सबसे ज़्यादा पसंद है?
मैंने कहा- मुझे डोग्गी स्टाईल में चुदना पसंद है।
वो बोले- तो आ जा मेरी कुतिया, अब तुम्हें कुत्ती बना कर चोदूँगा।
वे पीछे हटे, उनका लाल टोपे वाला काला लंड मेरे चूत के पानी से भीग कर चमक रहा था। मैं उठ कर घोड़ी बन गई और वो मेरे पीछे आ गए, उन्होंने मेरे दोनों कूल्हे पकड़ लिए और अपना लंड मेरी चूत पे रखा, मैंने उनका लंड पकड़ कर सही से सेट किया, तो उन्होंने धक्का मार कर फिर से अपना लंड मेरी चूत में घुसेड़ दिया।
डोग्गी स्टाईल में चूत थोड़ी टाइट हो जाती है, तो इस बार लंड घुसने पर मैंने फिर से ‘आह…’ किया, तो चाचाजी ने एक जोरदार चपत मेरे चूतड़ पर मारी और बोले- बोल साली कुतिया, अब ठीक से घुसा न, अब देख कैसे मैं तेरी माँ चोदता हूँ।
मैंने हंस कर कहा- मेरी माँ या मुझे?
वो भी हंस कर बोले- अरे जब लंड खड़ा हो न, तो जो भी सामने आए बस उसी को चोद डालने को दिल करता है, तू आ गई तो तू सही, नहीं तो तेरी माँ सही। वो भी अभी कायम है, झेल लेगी मुझे।
मैंने कहा- बदमाश… किस किस पर नज़र है आपकी?
उन्होंने मेरे दूसरे चूतड़ पर ज़ोर से चपत मारी और बोले- अरे दो साल से तुम्हें बेटी कह रहा हूँ, और बेटी ही समझा है अपनी। अब अगर मैं अपनी बेटी को ही चोद रहा हूँ, तो और किसी को छोड़ूँगा क्या?
और फिर एक जोरदार चपत मेरी गांड पर पड़ी।
वो मेरे दोनों कूल्हों को बड़ी मजबूती से पकड़ कर मसल रहे थे, और बार बार मेरे चूतड़ों बार चांटे मर रहे थे।
मुझे भी उनका इस तरह से मुझे मारना, प्रताड़ित करना अच्छा लग रहा था। मार मार के मेरे दोनों चूतड़ उन्होंने लाल कर दिये, धक्के मार मार कर मेरी चूत। फिर उन्होंने मेरे दोनों चूतड़ खोल कर मेरी गांड के छेद पर थूका।
मैंने कहा- नहीं, अभी नहीं, अभी मुझे इसी में मज़ा आ रहा है। ये काम फिर कभी करेंगे।
वो बोले- अरे पगली, तेरी गांड थोड़े ही मारने जा रहा हूँ मैं, मैं तो तेरा मज़ा और दुगना कर रहा हूँ।
उसके बाद उन्होंने अपनी एक उंगली थूक में भिगो कर मेरी गांड में डाल दी। उंगली से मुझे कोई खास तकलीफ तो नहीं हुई, पर एक अजब सा रोमांच हुआ। नीचे उनका मोटा लंड मेरी चूत पेल रहा था और ऊपर उनकी उंगली मेरी गांड को पेल रही थी। वो बार बार थूक कर अपनी उंगली और मेरी गांड को गीला करते रहे।
एक तरह से डबल चुदाई से मैं तो बिलबिला उठी, मैंने कहा- चाचाजी, लगता है मैं झड़ने वाली हूँ।
वो बोले- तो झड़ जा साली कुतिया, ले अब झड़!
और उन्होंने न सिर्फ अपने धक्कों का ज़ोर बढ़ा दिया, बल्कि अपनी उंगली निकाल कर अपना अंगूठा मेरी गांड में घुसेड़ दिया, और वो भी बिना थूक लगा के… इस एकदम के दर्द से मैं ऐसा तड़पी कि अगले ही पल मेरा तो स्खलन हो गया।
मैं आगे को गिरने लगी तो चाचाजी ने मेरे सर के बाल पकड़ लिए, मैं आगे भी नहीं गिर सकती थी। बाल खींचने का दर्द, गांड में घुसे अंगूठे का दर्द और चूत में पत्थर जैसे सख्त लंड कर दर्द। मगर मैं ऐसा झड़ी कि जैसे पहले कभी मुझे सेक्स में इतना मज़ा आया ही न हो। मैं खुद अपनी कमर को आगे पीछे हिला हिला कर अपनी गांड ज़ोर ज़ोर से चाचाजी की कमर पर मार रही थी- चोदो चाचू, चोद दो, चोद दो, मार लो मेरी, जान से ही मार दो यार!
और मैं उनके शिकंजे में फंसी तड़पती रही, उन्होंने मुझे चोदना नहीं छोड़ा। मैं अपना पानी गिरा कर शांत हो गई, मगर वो लगे रहे। फिर जब मैं बिल्कुल ढीली पड़ गई तो उन्होंने मुझे छोड़ दिया। मैं बेड पे औंधी लेटी थी, वो मेरे ऊपर लेट गए, मेरी टाँगें खोली और फिर से अपना लंड मेरी चूत में डाल कर मुझे चोदने लगे।
कोई 5-6 मिनट की चुदाई के बाद उन्होंने अपना माल मेरी चूत और गांड पर गिरा दिया और वैसे ही मेरे ऊपर गिर गए। उनके दिल की तेज़ धड़कन मैं अपनी पीठ पर महसूस कर रही थी।
कुछ देर बाद मैं उठी और बाथरूम में जा कर नहाने लगी। वो भी उठ कर आए और मूत कर चले गए। मैं नहा कर बिल्कुल नंगी, उनके सामने से गुज़री, अपनी कमरे में गई और अलमारी से नए कपड़े निकालने लगी।
वो भी मेरे पीछे पीछे मेरे कमरे में आए और मुझे अपना बदन पौंछते और कपड़े पहनते हुये देखने लगे।
मैंने पूछा- क्या देख रहे हो चाचाजी?
वो बोले- अपनी नन्ही सी जान को सजते सँवरते देख रहा हूँ।
मैंने उनके सामने ही ब्रा पहनी, पेंटी पहनी, नई साड़ी निकाली, ब्लाउज़ पेटीकोट पहना, साड़ी बांधी।
वो मुझे देख कर अपना लंड हिलाते रहे बस!
जब मैं सारा मेकअप करके फिर से फ्रेश तैयार होकर उनके सामने खड़ी हुई और बोली- कैसी लग रही हूँ मैं?
वो बोले- अगर यही सब कुछ तेरी चाची करती तो आज वो मेरे साथ होती, बेवकूफ औरत को पता नहीं क्या बीमारी थी, साली मुझसे ही शर्माती रहती थी।
मैंने आगे बढ़ कर उनको अपने गले से लगा लिया- डोंट वरी चाचू यार, अब मैं हूँ न… मैं आपके पति पत्नी के सब अरमान पूरे कर दूँगी और आप मेरी सब इच्छाएँ पूरी करते रहना!
कह कर मैंने उनके होंटों का एक चुम्बन लिया तो मेरी थोड़ी सी लिपस्टिक उनके होंठो पर लग गई.
और किचन की ओर जाते हुये मैंने उनसे पूछा- चाय पियोगे?
वो बोले- हाँ, शांति (उनकी पत्नी का नाम) पीऊँगा।
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