पंख निकल आये-1
(Pankh Nikal Aaye-1)
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पाठको, आपके साथ-साथ मैं भी अन्तर्वासना की कहानियों का लुत्फ़ उठाता हूँ। एक कहानी मेरी ओर से भी आपको अर्पित है। इसकी प्रेरणा एक काल्पनिक पात्र ‘रति कन्या’ पर आधारित है। कहानी एक माला के सामान है, जिसके फूल सदियों से चले आ रही ‘नारी-पुरुष वासना’ या काम-मय सृष्टि की वास्तविकता है। बस नाम वगैरह बदल दिए जाते हैं। आशा है, अर्पित दो भाग, जो अपने आप में भी पूरी कहानी है, आपका मन बहलायेगें। यदि आपने इन्हें पसंद किया, तो आगे और शृंखला-बद्ध कहानियाँ भेजूंगा।
भोलेनाथ शांत हैं, फिर भला क्यों विश्व में युद्ध के बादल मंडराने लगे। उनका पिछला तांडव हुए अब पूरे सौ वर्ष हो गए हैं। उस बार, द्वितीय विश्व युद्ध में उन्होंने जम कर नर-संहार किया था। इस बार तो सृष्टि लुप्त होती नजर आती है, लेकिन ऐसा होगा नहीं। अन्तर्वासना के पात्र जीवित रहेंगे। सदियों से चले आ रही मानव-शृंखला की प्रारंभिक आवश्यकताओं को, या यूँ कहें कि उस शृंखला के बीज को, युद्ध उपरांत युग तक पहुँचायेंगे। फिर एक बार कोमल अंकुरों की हरियाली छायेगी, नए-नए पंख निकल आएंगे।
सन 2050 के आधुनिक युग में भी, जब सिंगल-मॉम होना आम बात हो चली है, रति अभी भी अपनी माँ के कड़े अनुशासन में रह रही है यहाँ तक की जींस-टॉप मत पहनो, हाई हील्स मत पहनो, गहरी लिपिस्टिक मत लगाओ। लड़कों से बात करना तो दूर की बात है, नजरें मिला कर भी वह किसी पुरुष से बात नहीं कर सकती।
जूनियर कालेज में आकर उसने माँ से कहा- मम्मी मेरी सारी फ्रेंड्स के पास पता नहीं कब से ब्लैक-बैरी हैं, कम से कम अब तो मुझे भी एक दिला दो।
बस इतनी सी बात पर माँ गुस्सा झाड़ने लगी- अभी से मोबाइल का तू क्या करेगी, तेरा कोई बॉय-फ्रेंड है जो तुझे अब यह खिलौना चाहिए? ख़बरदार जो कभी लड़कों को मुँह लगाया। हमारे घराने की लड़कियाँ शादी तक किसी अनजाने लड़के को हाथ नहीं लगाने देती।
इन्हीं लताड़नाओं के साथ उसकी माँ जल्दी जल्दी तैयार हो कर काम के लिए निकल गई। उसकी माँ स्वयं, स्वछन्द विचारों वाली, अविवाहित सिंगल-मॉम थी और अपेक्षा करती थी कि बेटी लड़कों से मित्रता भी न करे।
रति उदास होकर कालेज जाने के लिए तैयार होने लगी। वह व उसकी सहेलियाँ लगभग सभी साथ-साथ बालिग हो गई थी। उसकी सहेलियों के पास एक से एक बढ़ कर, पता नहीं क्या क्या सेक्स-खिलोने थे। बालिग होते ही उन सबके ‘पर’ निकल आये थे। सब लड़कियाँ टाईट ड्रेस पहनती, अपने कामुक फिगर की नुमाइश में लगी रहती। वह केवल रति ही थी, जिसकी ड्रेस ढीला-ढाला ब्लाउस और घुटनों तक की स्कर्ट होती।
आज जूनियर कालेज में फ्री-डे था। अर्थात, रति की कई सहेलियाँ रंग बिरंगी, मिनी-वस्त्रों में आने वाली थी। सबको अपनी नुमाइश में सेक्सी-किक मिलता था। इस मामले में रति इतनी भोली थी, जैसे सहेली न होकर, वह उनकी छोटी बहन हो।
रति के वार्डरोब में कोई भड़काऊ ड्रेस थी ही नहीं। मन ममोस कर उसने पिछले साल का, स्कूल के दिनों का, एक टू-पीस सूट निकाला। इस बीच रति के स्तन तेजी से बढ़ गए थे। ब्लाउस थोड़ा तंग हो गया था और प्लेट-दार स्कर्ट लम्बाई में थोड़ी छोटी भी। चोली की जगह उसने पारदर्शी-सिल्क की हाफ-शमीज डाल ली, जो केवल नाभि के ऊपर तक पहुँच पाई।
जन्म-दिन पर शरारत करते हुए कुछ दिन पहले एक सहेली ने उसे लाल रंग की, उत्तेजक पेंटी भेंट की थी। आज पहली बार रति ने वो वाली पेंटी पहन ली। सामने दर्पण में आपने आप को निहारा तो एक शर्म भरी मुस्कराहट के साथ आँखें नीची हो गईं। सोचने लगी, पता नहीं वह किसके सामने रेशमी शमीज व सेक्सी पेंटी में यूँ खड़ी होकर अपना लुभावन अंग दिखा पायेगी।
बचपन से ही, रति को अपने अंग प्रदर्शन से मीठी-मीठी गुलगुली होती थी। शायद उसे पुरुषों की वासना भरी नजरों से कोई किक मिलता था। लेकिन घर के कड़े अंकुश की वजह से उसकी प्यास दबी की दबी रह गई थी।
कसे ब्लाउज़ में रति के बी-कप मम्मे, एक लचक लिए कैद हो गए। उसी तरह तंग-स्कर्ट में उसके अर्ध-गोलार्ध भी उभर आये। स्कर्ट, या यों कहें, मिनी-लहंगे का छोर रति की जांघों के मध्य तक ही पहुँचा। पीछे से लहंगा और ऊपर को उठ गया था। अपने आपको शीशे में देख कर रति को सेक्स और लज्जा की मिली-जुली अनुभूति हुई। वह अपनी उम्र से काफी कम की लग रही थी। फिर हल्का सा मेक-अप, श्रृंगार किया। उसके अधर, रसीले चेरी की तरह लाल थे। उन्हें किसी लिपस्टिक की जरूरत थी नहीं। फिर भी, ग्लॉस लगा कर वह कोई स्वर्ग से आई अप्सरा-कन्या लग रही थी।
पर्स लेकर वह निकलने ही वाली थी कि सामने दरवाजे की घंटी बजी। रति घबरा गई। सोचने लगी कि इस वक्त कौन आया है, और इन भड़काऊ वस्त्रों में उसे देख, क्या सोचेगा। दरवाजे तक पहुँचने में उसे सामान्य से ज्यादा वक्त लग गया।
तनिक कांपती हुई आवाज में उसने पूछा- कौन है?
‘रति, मैं हूँ!’ जानी पहचानी आवाज आई।
रति ने राहत की साँस ली। रोहित, उसकी माँ से काफी छोटा, दूर का रिश्तेदार था; जिससे रति की अच्छी पटती थी। माँ ने केवल ‘रोहित मामा’ से मिलने जुलने की छूट दे रखी थी। तनिक संकोच करके, रति ने दरवाजा खोल दिया, लेकिन स्वयं थोड़ा आड़ में छुप गई।
रोहित अंदर आ गया।
‘दीदी कहाँ है?’ पूछते हुए उसकी नजर रति पर पड़ी।
मामा की नजरों से रति जान गई कि वे उसे ताक रहे हैं। कुछ घबरा कर, कुछ शरमा कर उसने कहा- मम्मी आज जल्दी निकल गई। कुछ काम था क्या?
रोहित बोला- हाँ, काम तो था, लेकिन वो फिर हो जायेगा!
वह अब रति को ऊपर से नीचे ऐसे देख रहा था मानो स्कैनिंग कर रहा हो। रति लज्जा से सिमट रही थी।
बाहर हवा के झोंके चल रहे थे। अधखुला दरवाजा रह रह कर फ्रेम से ठोकर खा रहा था। कुछ सोच कर रोहित ने दरवाजा बंद नहीं किया, बस भिड़ा कर छोड़ दिया।
‘तू कहीं जा रही थी क्या?’ रोहित ने पूछा।
‘जी मामाजी, आज कालेज में फ्री डे है’। मामा के चेहरे में एक मुस्कराहट खिल आई।
सकपका कर रति ने सफाई देनी चाही- आज सब लड़कियाँ तनिक माडर्न ड्रेस में आयेंगी।
मामा की चुप्पी उसे खल रही थी। वह आगे बोली- मेरे पास कोई नई ड्रेस तो थी नहीं, इसलिए स्कूल की.., मेरा मतलब, इसलिए पिछले साल की ही पहन ली।
उदासी, लज्जा व ग्लानि से रति के चहरे पर ऐसे भाव छा गए, मानो किसी बच्ची को रसोई से लोली चोरी करते हुए मामा ने पकड़ लिया हो।
उधर रोहित की स्थिति खराब हो रही थी। उसने रति को सदैव अपनी छोटी सी भांजी ही समझा था, लेकिन आज वो मानो अचानक बड़ी हो गई थी। ढीले-ढाले कपड़ों में रति की कामुक तनाकृति पर कभी उसका ध्यान ही नहीं गया था। आज उसके कसे ब्लाउज़, आम के आकार वाली चूचियाँ और मिनी-स्कर्ट से उभरे चूतड़ देख कर रोहित का लंड खड़ा हो रहा था।
रोहित के होंठ सुर्ख हो उठे, उसने जीभ फिरा कर उन्हें गीला किया। उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि आगे क्या बोले। रोहित की आँखों में शुद्ध-अशुद्ध भाव आ जा रहे थे।
रति, मामा की आँखों के भाव समझ न सकी। आज वे खिलखिला नहीं रहे थे, तनिक गंभीर थे। कहीं नाराज तो नहीं हैं, मम्मी को शिकायत तो नहीं कर देंगे। किसी जाल में फंसी हिरणी की नजरों से मामा को ताका।
गंभीर आवाज में मामा ने पूछा- तूने अपने आप को शीशे में देखा कि कैसी लग रही है?
बस इतना सुनना था, रति रुआंसी हो गई। आँखों की कोर पर आंसू आ आये- अंदर जाकर मैं कपड़े बदल लेती हूँ।’
इसी के साथ सिसकते हुए बोली- प्लीज़! मम्मी से कुछ मत कहना!
डर भरा, अबोध चेहरा देख कर रोहित के कठोर होते लिंग पर सनसनाहट हुई। रति की परवाह न करके, उसने एक हाथ पैन्ट के अंदर डाल, मुन्ने-राम को व्यवस्थित किया और दो तीन झटके भी दे दिए।
फिर कहा- पहले जरा घूम कर दिखा, मैं भी तो देखूं कैसी लग रही है!
रति घूम कर रोहित की ओर पीठ कर खड़ी हो गई। पीछे से उठा हुआ मिनी-लहंगा ऐसा लग रहा था कि मानो नग्न चूतड़ दिखाने का निमंत्रण दे रहा हो। रोहित की नजरें रति की पीठ पर अन्वेषण कर कुछ खोज रही थी। उसे ब्रा-स्ट्रेप नहीं दिखा।
‘तूने ब्रा भी नहीं पहनी है क्या?’ यह कहते हुए रोहित ने रति की पीठ पर हाथ फेरा, मानो स्ट्रेप ढूंढ रहा हो।
मामा का हाथ पीठ पर सरकते ही रति की रुलाई फ़ूट गई। सिसकती आवाज में उसने उत्तर दिया- जी मैं अभी तक शमीज ही पहनती आई हूँ।
फिर कहा- आप कहेंगे तो अब से ब्रा पहन लिया करुँगी।
रोहित अब रति के पीछे चिपक गया। मानो कुछ समझाना चाहता हो- जरा देखें तो सही, तेरी चूचियों को अभी सहारे की जरूरत है भी या नहीं?
इन्ही शब्दों के साथ रोहित के हाथ रति की बाँहों के नीचे से निकल कर सामने पहुँच गए।
रति घबराई हुई थी, जल्दबाजी से वह बिदक सकती थी। यह सोच रोहित ने पहले रति की संकरी कमर घेरते हुए उसके पेट पर हाथ फिराया। इस आलिंगन में वह पूरा का पूरा रति के पीछे चिपक गया। उसका चेहरा रति के घुंघराले बालों के इर्द गिर्द मचलते हुए, नव-बालिग, कमसिन, कोमल त्वचा को सूंघने लगा। उसका पैंट में तना हुआ टट्टू, मिनी-लहंगे से छुपी गाण्ड की दरार में जा लगा।
रोहित ने अपने सीने को थोड़ा आगे कर दबाव डाला। रति को कुछ सामने झुकना पड़ा। उसके अर्थ-गोलार्ध पीछे हुए तो आभास हुआ कि एक अनजाना, गुदगुदा, तंतु उसकी पृष्ठ-घाटी में रगड़ रहा है।
इसी बीच रोहित ने हाथ ऊपर सरकाते हुए रति की अम्बियों को नीचे से तौल लिया। नई-नई पनपी अम्बियों में कोई लटकन नहीं था, केवल कामुक लचक थी। रोहित आगे-पीछे होकर अम्बियों की लचक तोलता रहा।
वह बोला- सच में, तुझे अभी कोई चोली की जरूरत नहीं।
यह सुन कर रति को थोड़ी राहत मिली। कम से कम मामा इस बात से तो नाराज नहीं होंगे कि उसने ब्रा क्यों नहीं पहनी। रोहित का हाथ और ऊपर खिसक आया, मानो वह अब रति के उभरते मम्मों के आकार का अनुमान लगा रहा हो।
अचानक रति की दाईं गर्दन में एक गहरा चुम्बन देकर वह बोला- तेरे स्तन आम के समान बन रहे हैं। बहुत कम लड़कियों के होते हैं ऐसे!
फिर जैसे मजाक कर रहा हो, बोला- कालेज में लड़कों की नजरों से इन्हें छुपाये रखना, नहीं तो कोई उन्हें चूस खायेगा।
यह कहते हुए, रोहित ने रति के चुचूक टटोल लिए। चुचूकों पर रोहित की अंगुलियाँ ऐसे फिरने लगी मानो कोई निपुण सितारवादक टंकार दे रहा हो।
रति के शरीर में बिजली का करेंट सा दौड़ गया। गले में गीला चुम्बन, गांड की दरार में किसी अनजाने अंग का स्पर्श और कुंवारी चूचियों पर पहला-पहला पुरुष-मर्दन!
इतना सब इतने कम समय में सहन कर पाना मुश्किल था। नव-युवाकांशाओं को प्राप्त करने को अग्रसित हो रहे, वासना से ओत-प्रोत, कामुक-शारीर को रोहित का आलिंगन मनमोहक लग रहा था। लेकिन माँ के अंकुशों की याद ताजा थी। उसकी अंतरात्मा कचोट रही थी कि वह कहीं कुछ गलत तो नहीं कर रही।
वह जन्म से अपने अंग-प्रदर्शन की प्यासी थी। मन की गहराई में यह कामना थी कि हर पुरुष उसे भूखी नजरों से ताके। रोहित के माध्यम से उसकी यह तृष्णा संतुष्ट हो रही थी। उसकी अंतरात्मा में मिश्रित रंग बदल-बदल कर आ जा रहे थे। वह भयभीत थी और लज्जित भी कि मामा उसका उपभोग कर रहे हैं। साथ ही साथ उसके शरीर से मीठी-मीठी धाराएं बह रही थी, जिनका उसने पहले कभी अनुभव नहीं किया था। उसकी वर्षों की दबी ज्वाला प्रज्वलित हो रही थी।
हिम्मत करके कोमल हाथ रोहित के हाथों पर भींच कर रति बोली- अब मुझे छोड़िये, यह सब ठीक नहीं है।
कुछ रुक कर बोली- माँ को पता चल गया तो बहुत नाराज होगी।
यह सुन रोहित की उत्तेजना बढ़ गई। पुरूष की काम-वासना आलिंगन में फंसी नारी की विवशता देखकर भड़क जाती है। उसने रति की गरदन पर दूसरी तरफ भी गहरा चुम्मा दे दिया। साथ ही साथ उसके कठोर होते चुचूकों को अपनी अंगुली व अंगूठे में भींच कर मसल दिया।
रति के शरीर से काम-उत्तेजना का दूसरा करेंट गुजरा। उसके कंठ से वासना भरी कराह निकली, मानो आलिंगन में फंसी नारी अपनी विवशता से प्रज्वलित हो रही हो। वक्ष और गर्दन का भाग पीछे को मुड़ गया। लज्जा एवं आनन्द से आंखें मुंद गई। उसकी दशा देख रोहित का वज्र सामान लिंग, चूतड़-खाई के अंदर ही अंदर उचकने लगा।
शेष अगले भाग में!
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