जब वी मेट-1
दोस्तो ! मैं अपने मित्र सुमित को विशेष रूप से धन्यवाद कहना चाहता हूँ जिसने इस कहानी के हिंदी रूपांतरण में मेरी सहायता की।
…… प्रेम गुरु की कलम से
अरे तुम नहीं जानते ये अनुभवहीन चिकने लौंडे झड़ते जल्दी हैं पर दुबारा तैयार भी फटाफट हो जाते हैं। मुझे ये छत्तिसिये और चालिसिये तो बिल्कुल नहीं जमते। एक तो इन लोगों की दिक्कत यह होती है कि अपनी बीवी से डरते रहते हैं कि उसे पता ना चल जाए और दूसरे इन्हें दुनिया जहान की समस्याएं चिपकी रहती है। और ये पप्पू तो बस बिना किसी परवाह और लाग-लपट के सारे दिन और रात चूत और गांड के पीछे मिट्ठू बने रहते हैं। एक और बात है इनकी मलाई बड़ी मस्त होती है इसे पीकर तो औरत जवान ही बनी रहती है….
. …….. इसी कहानी में से
यह साला शाहिद कपूर दिखने में तो निरा पप्पू ही लगता है पर जिस तरीके से इसने फिल्म जब वी मेट में करीना कपूर का चुम्बन लिया है लगता है इसने जरुर इमरान हाशमी की शागिर्दी की होगी। और ये छमक छल्लो करीना कपूर भी कम नहीं है इसने भी जिस अंदाज़ में जी खोल कर अपने हुस्न के जलवे दिखाए हैं सब के लंड उसे सलाम-ए-इश्क करने लगे हैं। क्या मस्त चूतड़ हैं साली के ! एकदम पटाका लगती है। सैफ अली खान की तो बुढ़ापे में लाटरी ही लग गई है। वो तो इसकी मटकती गांड मार कर जन्नत का नज़ारा ही लूट लेगा। क्या किस्मत पाई है इस पटौदी के पप्पू ने भी।
एक बात तो साफ़ है करीना में भी पठानी खून है और सैफ अली में भी थोड़ा बहुत तो नबाबी शौक तो जरुर होगा। करीना की मटकती गांड का मज़ा तो वो जरुर लूटेगा। आप सभी तो बहुत गुणी हैं और अच्छी तरह जानते हैं कि पठान और नवाब दोनों ही गांडबाजी के बड़े शौक़ीन होते हैं।
सच कहूं तो एक बात की तो तसल्ली है कि अब हम जैसे शादीशुदा लोगों के लिए किसी जवान लौंडिया पर लाइन मारते समय इन दोनों का (सैफ और करीना का) उदहारण देना कितना आसान हो जाएगा। बस हम तो यही कहेंगे- लगे रहो सैफ भाई।
टीवी पर जब वी मेट फिल्म चल रही थी और मैं सोफे पर बैठा अपने लंड को हाथ में थामे बेबो करीना के नाम की माला जप रहा था। मधु आजकल जयपुर गई हुई है। सच कहूं तो आज करीना के मोटे मोटे गुदाज़ नितम्ब देख कर तो बस जी चाह रहा था है कि सोफे पर बैठे बैठे ही किसी मोटे चूतड़ वाली लौंडिया को अपनी गोद में ही बैठा लूं और अपना लंड उसकी फूल कुमारी (गांड) में डाल दूं या फिर उसे बेड पर उलटा लेटा कर उसके नितम्बों की खाई में अपना लंड डाल कर बस ऊपर पसर ही जाऊं।
मधु एक दो दिन में आने वाली है। ओह… इन दो दिनों से तो उसका कोई फ़ोन भी नहीं आया। कितनी लापरवाह हो गई है यह मधु भी। मैं अभी सोच ही रहा था कि मधुर के आते ही सबसे पहले मैं सारे काम छोड़ कर एक बार उसकी गांड जरुर मारूंगा कि मोबाइल की घंटी बजी …………
कोई अनजाना सा नंबर था। मधुर का तो यह नंबर नहीं हो सकता। पता नहीं इस समय कौन है।
मैंने फ़ोन ऑन करके जब हेलो बोला तो उधर से किसी महिला की आवाज आई “मिट्ठूजी कैसे हो ?”
“हेल्लो ! आप किस से बात करना चाहती हैं ?”
“मैना की याद आ रही है क्या ?”
“सॉरी मैंने आपको नहीं पहचाना ?”
“हाय मैं मर जावां ! वाहे गुरु दी सोंह ! मेरे मिट्ठू जी तुहाडी एहो गल्लां ते मन्नू मार छडदी ने !”
“पर आप हैं कौन और किस से बात करना चाहती हैं ?”
“आय हाय… मैं दूजी वारि मर जावां… तुहाडी एहो गल्लां ते मैंनू बेचैन कर देंदियाँ ने ? पर तूं ते हरजाई ए !” (ओये होए … मैं दुबारा कुर्बान जाऊं ? तुम्हारी यही बातें तो मुझे बेचैन कर देती हैं ? पर तुम तो हो ही छलिया !)
“स.. सॉरी आप हैं कौन ?”
“हाय ! क्या अदा है ? तुम क्यों पहचानोगे तुम्हें तो उस मैना के सिवा कुछ दिखाई ही नहीं देता। पता नहीं ऐसा क्या है उसमें जो उसके मिट्ठू ही बने रहते हो !”
“ओह… न … नीरू ? … ओह… सॉरी मैंने पहचाना नहीं था… कैसी हो ?”
ओह… यह तो नीरू थी। आपको ‘अभी ना जाओ छोड़ कर….’ वाली निर्मला बेन पटेल तो जरुर याद आ गई होगी। कोई तीन साल पहले की बात है हमने गर्मियों की छुट्टियों में खूब मस्ती की थी।
“मैं ठीक हूँ तुम सुनाओ अभी भी मैना के साथ सोये हो या उसकी याद में मुट्ठ मार रहे हो ?”
“ओह… नीरू तुम बिल्कुल नहीं बदली ?”
“तुम तो इस मैना को भूल ही गए हो ?”
“अरे नहीं मैं भूला नहीं था बस थोड़ा व्यस्त रहा और तुम भी तो यहाँ से चली गई थी।”
“हाँ यार वो गणेश का काम यहाँ ठीक नहीं चल रहा था और फिर किट्टी के दादाजी का भी स्वर्गवास हो गया तो हमें सूरत शिफ्ट होना पड़ा।”
“ओह ! आई ऍम सॉरी”
“कोई बात नहीं और सुनाओ कैसा चल रहा है ? कोई नई मैना मिली या नहीं ?”
“नीरू सच में तुम्हारे साथ जो पल बिताये हैं वो तो मैं जीवन भर नहीं भूल सकता। मैं बहुत याद करता हूँ तुम्हें।”
“झूठे कहीं के ?”
“नहीं मैं सच कह रहा हूँ !”
“तो फिर मेरे पास आये क्यों नहीं ?”
“तुम बुलाओगी तो जरुर आऊंगा !”
“तुम तो छलिया हो, पूरे हरजाई हो ! तुम्हें भला मेरी क्या जरुरत और परवाह होगी?”
“नहीं ऐसी बात नहीं है, दरअसल…”
“ओह ! छोड़ो इन बातों को ! मेरा एक काम करोगे ?”
“हाँ… हाँ बोलो क्या काम है मैं जरुर करूँगा ?”
“किसी चिकने लौंडे या पप्पू का फ़ोन नंबर या मेल आई डी दो ना !”
“ऐसी क्या जरुरत पड़ गई?”
“आज सेक्सी बातें करने का बहुत मूड हो रहा है। सच में गणेश तो किसी काम का ही नहीं रहा आजकल। मैं बहुत तड़फती हूँ। कोई ऐसा बताओ जो सारी रात मेरे साथ चुदाई की बातें करता रहे और मौका मिलने पर सारी रात मुझे आगे और पीछे दोनों तरफ से खूब रगड़े।”
“पर इन चिकने और अनुभवहीन लौंडों में तुम्हें क्या मजा आएगा ?”
“अरे तुम नहीं जानते, ये अनुभवहीन चिकने लौंडे झड़ते जल्दी हैं पर दुबारा तैयार भी फटाफट हो जाते हैं। मुझे ये छत्तिसिये और चालिसिये तो बिल्कुल नहीं जमते। एक तो इन लोगों की दिक्कत यह होती है कि अपनी बीवी से डरते रहते हैं कि उसे पता ना चल जाए और दूसरे इन्हें दुनिया जहान की समस्याएं चिपकी रहती है। और ये पप्पू तो बस बिना किसी परवाह और लाग-लपट के सारे दिन और रात चूत और गांड के पीछे मिट्ठू बने रहते हैं। एक और बात है इनकी मलाई बड़ी मस्त होती है, इसे पीकर तो औरत जवान ही बनी रहती है।”
“ओहो ?”
“तुमने फिल्म अभिनेत्री रेखा को नहीं देखा? साली 55 के पार हो गई है पर आज भी चिर यौवना बनी हुई है। साली आज भी चिकने लौंडों के साथ चिपकी ही रहती है इसीलिए तो इतनी खूबसूरत लगती है इस उम्र में भी… ”
“चलो नीरू … फिर तुम एक काम करो ….?”
“क्या ?”
“तुम कोई कहानी लिख कर किसी सेक्सी साईट पर क्यों नहीं भेज देती। उसमें अपना आई डी दे दो फिर देखो तुम्हारे पास तो ऐसे प्रस्तावों की लाइन लग जायेगी। कुंवारे तो छोड़ो, शादीशुदा लोग भी तुम्हारे सामने गिड़गिड़ायेंगे !”
“पर मुझे कहानी लिखना कहाँ आता है ?”
“चलो तुम मुझे अपनी पहली चुदाई का किस्सा बताओ मैं उसे कहानी का रूप देकर भेज दूंगा।”
“चलो ठीक है मैं अपनी पहली चुदाई का किस्सा सुनाती हूँ, तुम उसे कहानी का रूप देकर प्रकाशित करवा देना।”
और फिर नीरू ने बताना शुरू किया :
मैं निर्मला बेन पटेल तो शादी के बाद बनी हूँ पर उस समय तो मैं नीरू अरोड़ा ही थी। मैं पंजाबी परिवार से हूँ पर शादी गुजराती परिवार में हुई है। मेरी शादी से पहले हमारे परिवार में मेरे मम्मी-पापा और सिर्फ मैं ही थी। पापा का सूरत, बड़ोदा और वलसाड में ट्रांसपोर्ट का काम है। मम्मी कुशल गृहणी हैं और चुदाई की बड़ी शौक़ीन हैं। आप तो जानते हैं पंजाबी लड़कियां और औरतें चुदाई की बड़ी शौक़ीन होती हैं। पापा अक्सर ट्यूर पर रहते थे और जिस दिन वो आते थे रात को मम्मी और पापा देर रात गए तक चुदाई में लगे रहते थे। मैं छुप छुप कर मम्मी पापा की यह रास-लीला खूब मज़े लेकर देखा करती थी। इकलौती संतान होने के कारण मेरी परवरिश अच्छी तरह से हुई थी इसलिए मैं समय से पहले ही जवान हो गई थी।
भगवान् ने जैसे मुझे अपने हाथों से खुद फुर्सत में तराशा था और गूंथ-गूंथ कर मेरे अन्दर जवानी भर दी थी। मेरे कजरारे नैनों और घनी पलकों की छाँव में बैठ कर तो कोई मुसाफिर अपनी मंजिल ही भूल जाए। मेरे उरोज तो जैसे चोली में समाना ही नहीं चाहते थे। यौवन भरे, मांसल, छरहरे और गदराये हुए मादक स्तन और उनके अहंकारी चुचूक तो हर किसी को चूस लेने को आमंत्रित ही करते रहते थे जैसे !
जब भी मैं अपने उभरते यौवन को आईने में देखती तो खुद ही शरमा जाती थी। मुझे पता ही नहीं चला कि कब मेरी जांघें इनी चिकनी और मोटी हो गई थी और मेरे कूल्हों और छातियों पर चर्बी चढ़ गई थी। मैं कई बार बात कमरे में कपड़े उतार कर अपने नितम्बों को और छाती पर उगे उन दो अनमोल फलों को अचरज से देखा करती थी। कभी उन्हें दबा कर और कभी कभी मसलकर ! ऐसा करने से मुझे अज़ीब और असीमित आनंद की अनुभूति होती थी। मोहल्ले और कोलेज के लड़के तो मेरी छाती पर झूलते दो अनारों को देख कर आहें भरने पर मजबूर हो जाते थे। मेरे भारी भारी स्तन शमीज में से चमकते हुये सभी का मन को मोह लेते थे।
मेरे होंठों में जैसे शहद, आँखों में शराब और सारे जिस्म में खून की जगह फूलों का रस भरा था। अगर किसी की राहों में आ जाऊं तो इंसान क्या फरिश्तों का ईमान एक बार डगमगा जाए।
मैं जानती थी यह गदराया जिस्म, यह जवानी और यह नाज़ुक अंग सदा ऐसे नहीं रहेंगे। आपको बता दूं मैंने कम उम्र से ही हस्तमैथुन करना शुरू कर दिया था। कभी कभी तो मैं अपनी कच्छी उतार कर पहले तो अपनी छमक छल्लो पर हाथ फिराती और कभी उसकी छोटी छोटी गुलाबी कलिकाओं को होले से चौड़ा कर के अन्दर देखती थी। काम रस में भीगी गुलाबी रंगत लिए मेरी छोटी सी छमक छल्लो कितनी प्यारी लगती थी उस समय। मेरा जी चाहता था कोई इसे मुँह में भर कर चूम ले और फिर जोर जोर से चूसता ही चला जाए।
मेरे गोरे चिट्टे बदन पर बालों का तो नाम-ओ-निशान ही नहीं था। बस उस अनमोल खजाने पर छोटे छोटे घुंघराले से रेशमी बाल थे। जाँघों के बीच छिपे उस खजाने के अन्दर की तितली के दो छोटे छोटे पंखों की तरह फड़फड़ाती दो गुलाबी पट्टियां हमेशा काम रस से सराबोर रहने लगी थी। और वो किशमिश का दाना तो कभी कभी सूज कर अकड़ सा जाया करता था।
मैं थोड़ी शर्मीली जरुर थी, पर मैं चाहती थी कोई मुझे बाहों में भर कर भींच दे और मेरे होंठों का चुम्बन ले ले। हर लड़की और औरत को मोटे और लम्बे लंड से चुदाई की चाहत होती है।
एक बात बताऊँ ? मैं दस-एक साल की थी तब क्लास की बाकी लड़कियाँ तो सूखी सी ही थी पर मेरे नीबू निकल आये थे और नितम्ब भरे भरे से हो गए थे। और वो हरामी मास्टर मणि भाई देसाई तो बस मेरी कोई गलती ढूंढता ही रहता था और फिर मेरे नितम्बों पर इतनी जोर से चिकोटी काटा करता था कि मैं शर्म के मारे वाटर वाटर ही हो जाया करती थी।
मैंने जवानी में नया-नया पैर रखा था, मेरा दाना कूदने लगा था। अपने से बड़ी लड़कियों से मेरी दोस्ती थी। मैंने उनके साथ मिलकर कई बार कामुक फ़िल्में भी देखी थी। लगभग सभी लड़कियों का किसी न किसी लड़के के साथ चक्कर जरूर था। कईयों ने तो दो दो तीन तीन आशिक बना रखे थे। कुछ ने तो अपने चहेरे फुफेरे ममेरे भाइयों के साथ ही सम्बन्ध बना लिए थे। बस मैं ही मन मसोस कर रह जाती थी। मैं भी सेक्स करना चाहती थी पर ना तो कोई उपयुक्त साथी मिला और ना ही अवसर। दरअसल इसका एक कारण था। मेरे पापा बड़े दबंग किस्म के आदमी थे और मोहल्ले वाले सभी उनसे डरते थे। किसी की क्या मजाल कि मुझे आँख उठा कर देखे या हाथ लगाए। एक बार जब मैं तेरह साल की थी तो एक लड़के ने मेरे चीकुओं को भींच दिया था तो पापा ने उस लड़के की इतनी धुनाई की थी कि उन्हें हमारा मोहल्ला ही छोड़ कर जाना पड़ा था।
चूत में अंगुली करते करते और मोटे लंड की कामना में मैं कब 18 की हो गई पता ही नहीं चला। कहते हैं पहला प्यार और पहली चुदाई इंसान कभी नहीं भूलता। मैं भला उस चुदाई को कैसे भूल सकती हूँ जिसके बाद मेरी कमसिन छमक छल्लो पूरी तरह खिल कर जैसे कमल का फूल ही बन गई थी।
मैंने पहली बार लंड का स्वाद 19 वें साल में चखा था। आप सभी अपने हथियार पकड़ कर रखना क्यूंकि यह कथा पढ़कर आप सब लोगों के खड़े लंड से पानी जरुर निकल जाएगा। और हाँ मेरी सहेलियों आप अपनी कच्छी नीचे करके अपनी छमक छल्लो में अंगुली या बैंगन जरूर करती रहना इससे कहानी पढ़ने का मज़ा दुगना हो जाएगा।
बात इस तरह हुई कि मैं फ़िरोज़पुर अपने मामा के घर गई थी। मामा रेलवे में अधिकारी हैं सो अकसर बाहर रहते हैं। मामा के परिवार में मामा मामी के अलावा सिर्फ उनका एक बेटा निखिल ही था। निखिल की उम्र उस समय 20 के आस पास रही होगी। मैंने बहुत दिनों के बाद उसे देखा था। मैं तो उसे देखती ही रह गई। वो तो पूरा सजीला जवान बन गया था। उसका बदन बहुत गठीला हो गया था और इतना खूबसूरत लग रहा था कि कोई भी लड़की उस कामदेव पर मर ही मिटे। हालांकि वो मेरा ममेरा भाई था पर भाई बहन का रिश्ता अपनी जगह है और जवानी का रिश्ता अपनी जगह है … जब लण्ड और चूत एक ही कमरे में मौजूद हैं तो संगम होगा कि नहीं ? तुम्हीं सोचो ? मेरा मन उस से चुदवा लेने को करने लगा।
वह भी मेरी फिगर और कमर की लचक के साथ नितम्बों की थिरकन पर मर ही मिटा था। कहते हैं यौनाकर्षण दुनिया की सबसे ताक़तवर शक्ति होती है। इसे हराना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होता है। तन के मिलन की चाह बडी नैसर्गिक है। सुन्दर स्त्री की देह से बढ़कर भ्रमित करने वाला कोई और पदार्थ इस संसार में नहीं है।
और वो भी तो बस मेरे पास बने रहने का कोई ना कोई बहाना ही ढूंढता रहता था। जिस अंदाज़ में वो मेरे वक्ष और नितम्बों को घूरता था, मुझे पक्का यकीन हो गया था कि उसके मन भी वही सब चल रहा है जो मेरे मन में है। जब हम अकेले होते तो मैं कई बार उसके सामने थोड़ा झुक जाया करती थी और फिर उसकी आँखें तो मेरे गोल गोल नागपुरी संतरों जैसे उरोजों और उनकी गहरी घाटी पर से हटने का नाम ही नहीं लेती थी। (मैंने उन दिनों जान बूझकर ब्रा और पेंटी पहनना छोड़ दिया था बस कुरते के नीचे समीज पहना करती थी ) कभी कभी मैं टॉप और कैप्री पहन लेती थी तो उसमें से झांकती मेरी पुष्ट जांघें और उस अनमोल खजाने को देखकर तो वो बावला ही हो जाया करता था। मेरी कामुक कमर की लचक और मेरा पिछवाड़ा देखकर तो उसके सीने में हाहाकार ही मच जाती होगी।
वैसे तो उनका घर ज्यादा बड़ा नहीं था, दो कमरे और हाल था। मामा मामी एक कमरे में सोते थे और मैं निखिल वाले कमरे में। निखिल हाल में पड़े दीवान पर सो जाया करता था। उस रात मामा चार-पांच दिन बाद आये थे और वो दोनों जल्दी ही अपने कमरे में सोने चले गए। अब आपको यह बताने की जरुरत नहीं है कि वो कमरे में क्या कर रहे होंगे।
मैं और निखिल दोनों टीवी देख रहे थे। रात के लगभग 11.30 बज गए थे। निखिल ने चाय पीने का पूछा तो मैंने कह दिया मुझे कोई चाय साय नहीं पीनी !
ओह … यह निखिल भी एक नंबर का लोल ही है …. सामने पूरी दूध की डेयरी है और यह चाय के चक्कर में पड़ा है?
मेरे मन में तो आया कह दूं- छोड़ो चाय-साय ! कभी दूध-सूध भी पी लिया करो।
टीवी पर कोई सेक्सी फिल्म चल रही थी। मेरी छमक छल्लो चुलबुलाने लगी थी और मैं उसे ऊपर से ही सहला और दबा रही थी। यही हाल निखिल का था। उसका पजामा तो टेंट ही बना था। वो भी अपने पप्पू को दबा और मसल रहा था। मेरा अनुमान था कि उसका मस्त कलंदर कम से कम 7-8 इंच का तो जरूर होगा।
थोड़ी देर बाद मैंने उठते हुए एक मादक सी अंगडाई ली और निखिल से कहा- मैं सोने जा रही हूँ !
तो वो बोला,”प्लीज, थोड़ी देर रुको ना कितनी मस्त फिल्म चल रही है !”
“अरे क्या खाख मस्त है ? देखो ना पिछले आधे घंटे में बस दो बार किस किया है… हुंह… बकवास फिल्म है.. मुझे नहीं देखनी मैं सोने जा रही हूँ !” मैंने बुरा सा मुँह बनाया और कमर पर हाथ रख कर वहीं खड़ी रही, गई नहीं।
“ओह.. तो क्या तुम्हें किस पसंद नहीं है ?”
“नहीं… ऐसी बात नहीं है पर … पर…”
“पर क्या ?”
“ओह.. छोड़ो ..!”
“नीरू … प्लीज बताओ ना ?”
निखिल ने मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझे नीचे बैठाने लगा। मैं तो कब की ऐसे अवसर की तलाश में थी। मैंने इस तरह अपना हाथ छुडाने की कोशिश की कि मैं उसकी गोद में गिर पड़ी। उसका मस्त कलंदर तो मेरे मोटे मोटे नितम्बों के बीच ठीक फूल कुमारी के छेद से लग गया। मेरी छमक छल्लो के अन्दर सरसराहट सी होने लगी। मेरा सारा शरीर झनझना उठा, पहली बार दिल में एक इच्छा जागी कि उसके लंड के ऊपर ही सारी उम्र बैठी रहूँ कभी ना उठूँ। मेरा दिल तो जैसे गार्डन-गार्डन ही हो गया था।
मैं भोली बनती हुई जोर से चिल्लाई “ऊईइ… मम्मी…”
“क्या हुआ ?”
“ओह ! कुछ चुभ रहा है !”
“कहाँ ?”
“ओह्ह… नीचे ! पता नहीं इतना नुकीला और मोटा सा क्या है ?”
“अरे.. वो… ओह… कुछ नहीं…है… प्लीज बैठो ना थोड़ी देर !”
उसकी आँखों में लाल डोरे तैरने लगे थे। उसकी साँसें तेज हो रही थी और नीचे उसका 7 इंच का लंड उछल कूद मचा रहा था।
मैं सब जानती थी पर भोली बनते हुए मैंने कहा,”निखिल अगर मुझे गोद में बैठाना है तो पहले इस चुभती हुई चीज को हटा दो प्लीज !”
“ओह… नीरू … प्लीज तुम खुद ही हटा दो ना !”
मैं झट से खड़ी हो गई और उसके इलास्टिक वाले पजामा खींच कर नीचे कर दिया। उसने चड्डी तो पहनी ही नहीं थी। मेरी आँखों के सामने 7 इंच का काला लंड फुंक्कारें मार रहा था।
“हाई राम… इतना बड़ा…..?” सहसा मेरे मुँह से निकल गया।
उसका 7 इंच का लंड किसी मस्त सांड की तरह झूम रहा था मेरी तो आँखें ही फटी रह गई। वो तो ऐसे झटके मार रहा था जैसे ऊपर छत को फाड़ कर निकल जाएगा। मैंने सकुचाते हुए उसे अपने हाथ में पकड़ लिया। मैं तो उसे छू कर जैसे मदहोश ही हो गई थी। निखिल के मुँह से एक मीठी सीत्कार निकल गई और उसके लंड ने जोर से एक ठुमका लगाया। उसके टोपे पर प्रीकम की बूँदें ऐसे चमक रही थी जैसे कोई छोटा सा सफ़ेद मोती हो। वो तो इतना प्यारा लग रहा था कि मेरा मन उसे मुँह में लेने को करने लगा।
“ओह… नीरू कमरे में चलें क्या ?”
“ओह.. हाँ” मैं अपने ख्यालों से जागी।
निखिल ने टीवी और लाईट बंद कर दी और अपनी बाहें मेरी और फैला दी। मैं दौड़ कर उसके गले से लिपट गई और उछल कर उसकी गोद में चढ़ गई। मैंने अपनी दोनों टांगें उसकी कमर के चारों और लपेट ली। उसका तना हुआ लंड मेरी नितम्बों के बीच की दरार में लगा था। इस ख्याल से ही मेरी छमक छल्लो ने पानी छोड़ दिया। निखिल ने अपनी मुंडी थोड़ी सी नीचे झुका दी तो मैंने अपने होंठ उसके होंठों से लगा दिए।
आह… जैसे ही उसने मेरे गुलाबी होंठों को चूसना चालू किया। उसके लंड ने नीचे घमासान ही मचा दिया और मेरी छमक छल्लो ने भी दनादन आंसू बहाने चालू कर दिए।
वो मुझे गोद में उठाये ही कमरे में आ गया।
अन्दर जीरो वाट का बल्ब जल रहा था।
कहानी का शेष भाग अन्तर्वासना पर ही !
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