मैं अपने जेठ की पत्नी बन कर चुदी -5
(Mai Apne Jeth Ki Patni Ban Kar Chudi- Part 5)
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मैं चूत में लण्ड लिए हुए अभी लेटी थी और जेठ जी बड़े प्यार से मेरी पीठ सहला रहे थे, जेठ के चेहरे पर भी एक असीम आनन्द और संतुष्टि के भाव थे।
वासना का एक दौर तो खत्म था पर हमेशा के लिए जेठ से सेक्स का खेल शुरू हो चुका था और मैं भी जेठ जी से चुदा कर खुश थी, मुझे एक और बात की खुशी थी, घर में मेरी चूत को नया लण्ड मिल गया था।
तभी जेठ जी ने कहा- नेहा, तुमने मुझे आज जो खुशी दी है मैं इसका एहसान नहीं चुका सकता, आज से तुम मेरी बीवी हो, आज
तुमको चोद कर नेहा, मेरा लण्ड निहाल हो गया मेरी जान!
‘क्या भाई साहब? यह आप क्या कह रहे हो? इसमें एहसान की क्या बात है, आप मुझसे प्यार करते हो तो यह मेरा भी फर्ज है कि मैं भी आप को हर खुशी दूँ! आपको मेरी चूत कैसी लगी?’
‘बहुत अच्छा मेरी जान, मेरी रानी, अब तो तुम्हारी चूत हमारी है! बोलो है ना हमारी?’
‘हाँ भाई साहब यह आपकी है, जब चाहो आप इसे चोद सकते हो, पर मेरे पति के सामने वैसे रहना जैसे पहले थे, मैं नहीं चाहती कि उनको कुछ पता चले!’
मैं भी यही चाहता हूँ मेरी रानी!’ कहते हुए जेठ जी मुझे अपनी छाती से लगाकर चूमने लगे, तभी मेन डोर की घन्टी बज उठी और हम दोनों उछल पड़े, मैं बोली- आप जाकर दरवाजा खोलो, मैं अपने कमरे में जाती हूँ।
यह कहते हुए मैं अपने कपड़े लेकर भागी और रूम में पहुँच कर सीधे बाथरूम में घुस गई, जल्दी से फ्रेश होकर बाहर आई, फिर पूरी तरह तैयार होकर जब मैं रूम से निकली तो देखा कि जेठ जी से कोई मिलने आया है, उनके साथ का कोई अफसर था।
मैंने चाय नाश्ता ले जा कर टेबल पर रख दिया पर वह व्यक्ति बहुत हेन्डसम था, उसे देखते ही एक बार फिर मेरी चूत मचल उठी, मैं जितनी देर तक चाय निकालती रही उससे नयना चार करती रही।
वह भी कम नहीं था, वह भी जेठ जी से निगाह बचा कर मुझे घूर रहा था।
तभी किसी काम से जेठ जी अंदर रूम में गए कि वह एकाएक मेरी तारीफ कर बैठा- आप बहुत सुन्दर हो भाभी जी!
वह मुझे जेठ जी की पत्नी समझ रहा था शायद!
उसे जब चाय देने लगी तो उसका ध्यान केवल मेरी चूचियों पर था, मैं उसे ऐसा करते देख मुस्कुरा करके वहाँ से किचन में चली आई।
कुछ देर बाद मुझे जेठ जी ने बुलाया तो मैं वहाँ गई तो जेठ जी बोले- नेहा, आकाश कब आ रहा है? उसे फोन कर दो कि आज जल्दी आ जाए, आज मेरे अजीज दोस्त डिनर यहीं करेंगे!
‘जी भाई साहब!’ मेरे मुख से ये शब्द सुन कर वह मेरी तरफ प्रश्न वाचक निगाह से देखने लगा।
मैं वहाँ से जाने लगी, तभी जेठ जी ने कहा- नेहा, ये मिस्टर नायर है, इनका तबादला इसी शहर में हुआ है, अभी यह यहाँ नए हैं, जब तक इनका इंतजाम नहीं हो जाता, यहीं रहेंगे!
‘नायर जी, यह मेरे छोटे भाई की वाईफ है!’
मैंने नमस्ते कहा, उन्होंने भी नमस्ते कहा।
फिर मैं वहाँ से रूम में आकर पति को फोन कर के जानकारी दी, वे बोले- तुम सब्जी वगैरह लेकर खाना तैयार करो, मैं आता हूँ।
मैंने किचन में जाकर देखा कि क्या है और क्या नहीं है। फिर मैं भाई साहब से बोली- मैं सब्जी लेने जा रही हूँ।
मेरे जेठ बोले- तुम किचन में जाओ, मैं सामान ले आता हूँ।
मैं जेठ जी को बैग देकर चली आई, जेठ जी सामान लेने चले गए और मैं किचन का काम करने लगी।
इस समय मैं और नायर घर में अकेले थे, नायर की निगाह में मैं अपने लिए वासना के डोरे देख चुकी थी और यह भी महसूस किया था कि नायर एक रंगीन मिजाज के शख्स हैं, उनका व्यक्तित्व उनकी निगाह किसी को आकर्षित कर सकती है, मैं तो लण्ड चूत में लेते – लेते लण्ड की दीवानी ही हो चुकी थी, मेरा देर तक उनका देखना मेरी चूत कि आग भड़का रही थी, मैं इन्हीं ख्यालों में डूबी थी कि नायर ने मेरे पीछे से आवाज दी- मिस नेहा!
और मैं आवाज सुन कर चौंकते हुए पीछे हुई!
पर यह क्या? नायर बिल्कुल मेरे करीब था और मैं उससे पूरी तरह सट गई एक और झटका खा गई।
और जैसे ही मैंने दूर होना चाहा, मेरा पैर फिसला और मैं गिरने लगी पर मैं इस बार नायर की बाहों में थी, नायर ने मुझे पकड़ लिया था और मैं जैसे सुध बुध खोए नायर से चिपकी रही।
मेरा ध्यान तब टूटा जब नायर का लण्ड फुफकार कर मेरी चूत पर चुभने लगा, वैसे ही मुझे अपनी दशा का ध्यान आया, मैं नायर से छुट कर दूर खड़ी होकर गुस्से से बोली- नायर जी, यह क्या है? आप यहाँ क्या करने आए हैं? और कोई ऐसे पीछे खड़ा होकर पुकारता है? मैं हड़बड़ा गई, गिर जाती तो?
मैं जैसे ही चुप हुई, नायर बड़ी मासूमियत से बोला- मेरे रहते आप कैसे गिर जाती नेहा? पर मेरा ऐसा करने का कोई इरादा नहीं था,
मैंने दो तीन बार बाहर से ही पुकारा, पर आप पता नहीं किस ख्याल में डूबी थी, आपने सुना ही नहीं तो मुझे करीब आकर कहना पड़ा और आप मेरी वजह से डर गई, आई एम सो सॉरी नेहा! मुझे पानी चाहिए था!
कह कर नायर बाहर चला गया।
जब मैंने पानी ले जा कर दिया तो वह बोला- नाराज हो क्या? आप हो ही इतनी खूबसूरत कि हर कोई आपको किसी बहाने देखना चाहे मैं भी अपने को रोक नहीं पाया था!
मैं कुछ नहीं बोली और वहाँ से हटने लगी।
तभी उसकी एक आवाज और कान में पड़ी- तुम बहुत हॉट हो… पर मेरी किस्मत में कहाँ?
ये शब्द बोल कर नायर ने छुपे तौर पर सब जाहिर कर दिया, अब तो मुझे पूरा मौका मिल गया उसका जवाब देने का- नायर साहब, लक्ष्य पाने से पहले हार मान लेने वाले का किस्मत साथ नहीं देती… सफलता पाने के लिए प्रयास किया जाता है!
मैं वहाँ से चली आई, तब तक जेठ जी सामान लेकर किचन में आ गए और बैग मुझे देते हुए बोले- जान, रात में आ जाना, तुमको चोदने का बहुत मन कर रहा है, एक बार तुम्हारी बुर चोदने से तुमको चोदने की लालसा बढ़ गई है। मैं रात को इंतजार करूँगा।
मैं कुछ कहती, जेठ जी बाहर चले गए, मैं मन मार कर खाना तैयार करने लगी, पति भी आ चुके थे, सबने एक साथ खाना खाया और नायर की सोने की व्यवस्था जेठ जी के रूम में की गई।
मैं मेन गेट को लॉक करके जैसे ही रूम में जा रही थी, मुझे जेठ जी एक तरफ ले गए और बोले- मैं इंतजार करूँगा, तुम आना!
‘पर नायर है, कैसे होगा?’
जेठ जी बोले- तुम चुपचाप आधी रात को आना, हो जाएगा!
और जेठ जी चले गए।
मैं अपने रूम जाकर पूरी तरह नंगी होकर पति के बगल में लेट गई, पति तो मेरी चूत पेलने के लिए पहले से ही बिना कपड़ों के लेटे थे।
फिर हम लोग एक दूसरे से गुत्थम गुत्था होकर चूमने चाटने लगे, मैं पति का लण्ड मुँह में लेकर चूसने लगी और पति एक हाथ से मेरी चूत मसकते हुए लण्ड लालीपाप की तरह चुसवा रहे थे।
एकाएक पति ने कहा- लग रहा है कि किसी ने तुम्हारी चूत चोदकर गरमी निकाल दी है?
उनके इतना कहने से मैं डर गई पर बात बना कर बोली- आपके सिवा है ही कौन जो मेरी चूत की गरमी निकाले?
उसी समय पति ने मुझे नीचे लेकर मेरी चूत थोड़ी चाट कर मेरी बुर पर सीधे चढ़ाई कर दी, मेरी बुर पर लण्ड रखकर एक ही बार में लण्ड मेरी बुर में पेल दिया।
और मैं सोचने लगी कि मेरी पति से चुदाई के बाद जेठ से फिर चूत चुदेगी और वो भी नायर के रहते!
तो इस सोच से मैं ज्यादा गर्म होकर बुर उछालते हुए ‘आहह्ह सीसीसीइइइ आहह्ह्ह… चोद मेरे सनम, दिन की अधूरी चुदाई को मेरी चूत चोद कर पूरा करो… आहह्ह्ह ले पेल मेरी बुर… आहह्ह्ह!
और पति भी खूब गर्मजोशी से मेरी चूत पर शॉट लगा रहे थे और मैं बुर उठाकर पूरी कोशिश कर रही थी, लण्ड मेरी चूत की पूरी दीवार भेद कर मेरी बुर को चोद रहे पति भी मेरी चूची हाथों से गूंथते हुए मेरी चूत पर थाप पर थाप लगा रहे थे और मैं हर थाप को यही सोच रही थी कि यह जेठ जी का, अब नायर का थाप है!
मेरी चूत लण्ड खाते खाते भलभला कर झड़ने लगी- आहह्ह्ह सीइइइ उइइइ मम्म्म्मा आहह्ह्ह!
और मैं पति को भींच कर झड़ते हुए बुर पर लण्ड के धक्के खाती रही।
तभी पति ने बुर से लण्ड बाहर खींच कर मेरे मुँह में दे दिया और मैं लण्ड चाटने लगी और लण्ड मेरी मुँह में ही फायर हो गया।
पति ने झड़ते हुए लण्ड को गले तक सरका कर के वीर्य पूरा मेरे गले से नीचे कर दिया!!
अभी मेरी चुदाई बाकी है।
आप सबने जो मेरी पेंटी खोजी है, वे सब बनारस आ जाएँ, उनको इनाम में मेरी बुर चुदने को मिलेगी।
कहानी जारी है।
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