सोफिया की मजबूरी
प्रेषक : जो हन्टर
रोज की तरह मैं और दिव्या अपने ऑफ़िस में बैठे हुये काम रहे थे। दिव्या हमेशा अपने कम कपड़ों में मुझे उत्तेजित करने का प्रयास करती रहती थी। उसे देख कर मैं भड़क भी जाता था और फिर वो चुद भी जाती थी पर अब असमय भी चुदाई करने में मजा नहीं आता था। पर आज मुझे ताऊजी फोन आया कि विक्की और सोफिया गोआ घूमने आ रहे हैं। दिव्या विक्की को नहीं जानती थी। उसके आने की सूचना पाकर मुझे बहुत ही खुशी हुई।
ठीक समय पर मैं अपनी कार लेकर दिव्या के साथ रेलवे स्टेशन पहुंच गया। ट्रेन आ चुकी थी। मैंने मोबाईल पर सोफिया को बता दिया था कि मैं और दिव्या बाहर खड़े इन्तज़ार कर रहे हैं। कुछ ही देर में एक बेहद खूबसूरत लड़की और एक सुन्दर सा हीरो जैसा लगने वाला लड़का दिखाई दिया। मेरा अनुमान सही था। वही दोनों सोफिया और विक्की थे। पहले तो वो दोनों बाहर खड़े हो कर यहाँ-वहाँ देखते रहे। दिव्या ने मुझे कहा,”शायद वो ही है … लड़का तो बड़ा मस्त है यार … “
“तुझे तो बस लण्ड ही देखता है … जा कर पता कर … ” दिव्या को तो मौका चाहिये था। कार से उतर कर सीधे उस लड़के पास गई। लड़का दिव्या को देखता ही रह गया। सोचने लगा कि ये अचानक एक जवान सी सुन्दरी उसके सामने कौन आ गई। मैं कार से उतर चुका था और उनकी तरफ़ देखा, वो आपस में कुछ बाते कर रहे थे और सोफिया का हाथ मेरी ओर लहरा उठा। आते ही सोफिया ने मुझे औपचारिक तौर पर किस किया, पर शरारत के साथ … अपनी चूचियाँ मेरी छाती से लगा कर मेरे बदन में सिरहन पैदा कर दी। मुझे तुरन्त मालूम हो गया कि ये खूबसूरत सी मेरी कजिन शरारती टाईप की है। विक्की और दिव्या साथ बैठ गये और सोफिया मेरे साथ आगे बैठ गई। मुझे लगने लगा कि कुछ समय तो बड़ा मजेदार निकलेगा।
घर पहुंचने पर शाम को हम घूमने का कार्यक्रम बनाने लगे। कुछ ही समय ने दिव्या ने विक्की से अच्छी दोस्ती कर ली। विक्की भी खुश था। इधर सोफिया भी मेरे साथ बहुत ही इनफ़ॉर्मल हो गई थी। कुछ ही समय में मुझसे खुल कर बातें करने लगी थी। दिव्या से मेरे सम्बंध के बारे में पूछने लगी थी। मैंने उसे खुलने पर स्पष्ट बता दिया था कि वो मेरी दोस्त है, आज कल वो मेरे साथ ही रह रही है, और इसमे कोई बुराई नहीं है। सोफिया भी मेरे खुलेपन से बहुत खुश थी … शायद वो अपनी इस यात्रा को मजेदार और मस्त बनाना चाहती थी। घर पहुंचने पर हमने लन्च लिया और वो दोनों आराम करने लगे। दिव्या मेरे साथ लेटी हुई सोफिया की बातें ही कर रही थी और मेरे मन की टोह ले रही थी।
शाम को हमने समुद्र के किनारे जाने का प्रोग्राम बना लिया और लगभग छः बजे हम चारों बीच की ओर रवाना हो गये। रास्ते में हमने दो-दो पेग काजू फ़ेनी के भी लिये और कुछ फ़्राई की हुई फ़िश और चिकन रख लिया था।
कुछ ही देर में हम बेनौलिम बीच पर पहुंच गये। लम्बा सा बीच था। कुछ और भी लोग वहाँ पर थे। हम लोग बीच के पास ही चादर बिछा कर बैठ गये। दिव्या तो अपने कपड़े उतार कर सिर्फ़ ब्रा और पेण्टी में ही समुद्र की ओर भाग ली, विक्की भी अपने कपड़े उतार कर सिर्फ़ अंडरवियर में दिव्या के पीछे हो लिया।
सोफिया ने मुझसे कहा,”आप नहीं चलोगे क्या ?”
“आप साथ चलोगी … ?”
“मुझे शरम आती है दिव्या जैसे कपड़ों में … “
“मुझे तो नहीं आती है, ये देखो … ” मैंने अपने सारे कपड़े उतार दिये … बस अंडरवियर में था। पर ये भूल गया था कि मेरा लण्ड उस छोटे से अंडरवियर में साफ़ उठा हुआ नजर आ रहा था। सोफिया ने मेरे लण्ड के उभार को अच्छी तरह से निहारा और कुछ उत्तेजित हो गई।
“फिर तुम उधर देखो … मैं कपड़े उतार लेती हूँ … ” उसने भी शर्माते हुये अपने कपड़े उतार दिये। उसका गोरा बदन दमक उठा। ब्रा में से चूचियां जैसे उछल कर बाहर आने को बेताब हो रही थी। मेरा मन विचलित हो उठा। लण्ड और कड़ा हो गया।
उसकी बहुत ही छोटी सी पेण्टी में से उसके तराशे हुये चूतड़ और उसकी गोलाईयाँ मेरी जान निकाल रही थी। पतली कमर, उभरे हुये कामुक कूल्हे, तराशी हुई जांघें मुझे मदमस्त कर रही थी। जाने कब मेरे दोनों बाहें उठ गई उसे अपनी आलिंगन में लेने के लिये। और सोफिया भी मंत्र मुग्ध सी मेरी बाहों में सिमट आई। हमारे नंगे बदन आपस में छूते ही ही जैसे आग बनने लगे। सोफिया के होंठ मेरे गर्दन और होंठ के पास रगड़ खाने लगे। अपने चूतड़ों को दबा कर जैसे मेरे लण्ड का स्पर्श अपनी चूत से करने लगी। हम दोनों अब वही दरी पर लेट गये और एक दूसरे से लिपट कर जैसे लोट लगाने लगे। हम लोट लगाते हुये रेत पर आ गये हमें पता ही नहीं चला। मेरे हाथों ने ब्रा के ऊपर से ही उसकी एक चूची दबा दी … सोफिया सिसक उठी। दूसरी लोट में सोफिया मेरे ऊपर सवार थी और मुझे बेतहाशा चूमने लगी थी। मुझे उसकी चूत के पास कुछ कड़ा सा लगा। शायद इसी हालत में काफ़ी देर तक आनन्द में प्यार करते रहे थे।
“बस करो भई … ये एक समुद्र का तट है … कोई कमरा नहीं ” दिव्या की खनकती हंसी सुनाई दी। हमें समय का ध्यान ही नहीं रहा … वो दोनों वापस आ चुके थे। सोफिया को तो पहले कुछ समझ में नहीं आया फिर जैसे एक दम होश में आई। इतनी देर में विक्की की उत्तेजना बढ़ गई। उसने हमारी हालत देख कर दिव्या को दबोच लिया और उसकी गीली पेण्टी उतार दी। उधर दिव्या ने भी बेशर्मी से विक्की का लण्ड पकड़ लिया। अब विक्की और दिव्या भी नीचे दरी पर एक दूसरे को दबाये हुये चोदने की कोशिश कर रहे थे। सोफिया मेरे उपर से हट चुकी थी और मैं भी उठ खड़ा हुआ था। दोनों को बड़ी मुश्किल से खींच कर अलग किया।
अरे ये सब यहां नहीं … यहां से चलो अभी … दिव्या … चलो कपड़े पहनो, गश्ती जीप आ रही है।
“घर चलो ना … तुम्हें तो बस करने की लगी है … और ये सार्वजनिक स्थल है … ” विक्की को सोफिया ने समझाया, दिव्या अपने बदन पर से रेत साफ़ कर रही थी। मैंने यहाँ-वहाँ देखा … अधिकतर लोग जा चुके थे और एक गश्ती जीप की रोशनी नजर आ रही थी, जो पास आती जा रही थी। कपड़े पहन कर हम कार में बैठे ही थे कि वो गश्ती जीप पास में आकर रुकी,”ओह जो साहब … गुड इवनिंग … कैसे हो … “
“क्या यार … गोआ में रहो तो पूरे समय … रिश्तेदारो को घुमाते ही रहो … “
“हां यार ये तो गोआ में रहने की सजा है … ” और हंसता हुआ आगे बढ़ गया।
हम लोग रेत से निकल कर बाहर आये और कार में बैठ कर वापस मडगांव रवाना हो गये।
घर पर आते ही पोर्ट वाईन का एक एक पेग बनाया और सभी सोफ़े पर बैठ कर सिप लेने लगे। दिव्या और विक्की की शरारतें बढती जा रही थी। वो सब चुपके से कर रहे थे, पर मेरी तेज निगाहें उसकी हर हरकत देख रही थी। सोफिया भी मुझे चोरी चोरी देख रही थी। मैंने सोफिया का हाथ जान कर के दबाया। पर अप्रत्याशित रूप से उसने अपना हाथ खींच लिया। मुझे झटका सा लगा।
“क्या हुआ … ?”
“अपना हाथ दूर रखो … “
“पर वहां समुद्र के किनारे तो … “
“वो तो बस मुझे कुछ हो गया था … सॉरी … जो … ” सोफिया उठ कर चली गई। मैं निराशा से उसे देखता रह गया। दिव्या ने पलक झपकते ही सारा मामला समझ लिया। वो तुरन्त मेरे पास आ गई।
“जो … मैं तो हू ना … उससे अधिक सुन्दर … उससे अधिक मजा दूंगी … ” विक्की भी उठ कर मेरे पास आ गया।
“जो मैं दीदी को समझाता हूँ … ” विक्की को अपना कार्यक्रम भी बिगड़ता नजर आया।
“नहीं विक्की … ये दिल के सौदे है … तुम दोनों मस्ती करो … जाओ … ” मैंने उठते हुये कहा।
“चलो दिव्या … अन्दर चलते हैं … “विक्की ने दिव्या का हाथ पकड़ा … दिव्या ने उसे देखा और गुस्से में बोली,”मेरा जो दुखी है और तुम्हें … जाओ , अब सो जाओ … मैं जो के साथ रहूंगी।” दिव्या ने अपना फ़ैसला सुना दिया।
“दिव्या प्लीज … विक्की को ऐसा मत कहो … उसे खुशी दो … जाओ, दोनों मजे लो और दो !” मैंने कहा और अपने कमरे में चला आया।
मन में थोड़ी सी बैचेनी सी लगी। यूं तो मैंने कई लड़कियों को चोदा था सो आज सोफिया चुदने को नहीं मिली, तो इतना बुरा नहीं लगा। कुछ ही देर में सब कुछ भूल कर मैं गहरी नींद में सो गया। अचानक रात को मेरी नींद किसी की आहट से खुल गई। उसी समय कमरे की बत्ती भी जल गई। देखा तो सोफिया सामने खड़ी थी।
“जो … बुरा लग गया ना … मुझे माफ़ कर दो … ” नींद में अलसाया सा भी उसकी सूरत देख कर मुझे हंसी आ गई।
“अरे नहीं नहीं … ये सब कुछ नहीं … मुझे आपकी फ़ीलिंग्स का ध्यान रखना चहिये था … ” मैंने उस बात को हवा उड़ाते हुये कहा।
“नहीं … मैं सच में बीच पर आप पर मोहित हो उठी थी … और मेरे मन में भावनायें जाग उठी थी … “
“मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था … पर भूल जाईये उस बात को … “
“कैसे भूल जाऊँ … विक्की और दिव्या तो मौज कर रहे है … पर मैं अभागी … हाय रे मैं माहवारी से हूँ … क्या करती … मुझे माफ़ कर दो … ” वो मेरे बिस्तर के सिरहाने आ कर बैठ गई … और मेरे बालों से खेलने लगी।
“सोफी … ऐसे समय में ये होता है … और असमंजस की स्थिति होती है … ” मैंने उसे सामान्य करने की कोशिश की … । पर उसका चेहरा मेरे होंठो की तरफ़ बढ़ता ही गया और अब उसके नरम होंठ मेरे होंठों से प्यार कर रहे थे। एक व्हिस्की का भभका मेरे नाक के नथुनों से आ टकराया। पर वो अपने पूरे होश में थी। मैंने अपनी आंखें बंद कर ली और अधरपान का आनन्द लेने लगा। मैंने धीरे धीरे उसे कमर से पकड़ कर अपने शरीर से लिपटाना आरम्भ कर दिया। बिना कोई विरोध किये वो मेरे ऊपर आकर लेट गई और अब अब हम एक दूसरे की आगोश में थे। उसकी चूत ऊपर से ही मेरे लण्ड के ऊपर जोर मार रही थी … पर अब मुझे उसके लगाये गये नेपकिन का अहसास होने लगा था। मुझे कुछ भी करते हुये डर लग रहा था कि कहीं मेरी किसी भी हरकत से नाराज ना हो जाये।
सोफिया की बैचेनी बढ़ने लगी, उसने मेरे हाथ खींच कर अपने स्तनों पर रख दिये। साधारण साईज़ के स्तन थे … पर निपल कठोर और तने हुये थे … कुछ बड़े से लग रहे थे। मैंने उसकी चूंचियाँ धीरे धीरे सहलाना और गुदगुदाना आरम्भ कर दिया। उसके मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी …
अब वो मेरे बिस्तर पर मेरी बगल में लेट गई थी। वो मुझे बहुत ही प्यार से देख रही थी … उसकी चूंचियों के सहलाने और निपल को हल्के से मलने पर उसे बहुत आनन्द आ रहा था। उसने मुझे देखा और नजरें दबा कर इशारा किया … और उसका हाथ धीरे से मेरी चड्डी के ऊपर आ गया और हौले से मेरे लण्ड को दबा दिया। कुछ अजीब सी स्थिति थी … चूत पर लाल पट्टा चढ़ा था और उसका मन चुदने को कर रहा था … या कुछ ओर ही … । उसके पतले से सफ़ेद पाजामे पर हाथ घुमाते ही मालूम हो गया कि … पट्टा लगा हुआ था। वो मेरे लण्ड को अब दबाने और सहलाने लगी थी। मेरी छोटी सी चड्डी में से अब मेरा लण्ड नहीं समा रहा था। साईड से सोफिया ने मेरा लण्ड खींच कर निकाल लिया और अब उसके साथ खेलने लगी। कभी वो मुठ मारती और कभी वो लण्ड को अपने शरीर से रगड़ती। उसके निपल और सारे उभारों को मैं सहला कर दबा रहा था। उसकी सिसकारियाँ बढ़ रही थी। मेरा लण्ड भी उत्तेजना के मारे फ़ूल रहा था। सोफिया के आंखो में वासना के गुलाबी डोरे उसकी उत्तेजना को दर्शा रहे थे।
मैंने अपनी सहन शीलता खो दी और सोफिया की चूत दबा डाली। वो एकदम से सिमट गई और एक जोर से सिसकारी भरी और झड़ने लगी। मुझे अहसास हुआ कि शायद वो यही चाह रही थी। अपनी आंखें बंद किये वो झड़ने का आनन्द लेने लगी। मैंने भी उसका शरीर को सहलाना और दबाना जारी रखा। धीरे धीरे सोफिया सामान्य होने लगी। उसका हाथ मेरे लण्ड पर कस गया। मेरे लण्ड में उसके हाथों से मीठी सी सुरसुराहट जागने लगी। मैंने सोफिया को प्यार से अपने शरीर से लिपटा लिया और प्यार करने लगा।
मुठ मारते मारते मेरा लण्ड भी कड़कने लगा … मुझे लगने लगा कि अन्दर से माल अब निकला ही चाहता है। मेरे चूतड़ हिल हिल कर उसके मुठ मारने में सहायता करने लगे … और मेरे उफ़नते हुये लण्ड ने अपनी सीमा तोड़ते हुये अपना रस उसके हाथों में निकाल दिया। उसका हाथ मेरे वीर्य से भर गया। पर उसका हाथ चलता रहा और मेरे लण्ड से रस रह रह कर छलकता रहा। मेरा पूरा लण्ड वीर्य से भर गया … सोफिया का हाथ भी मेरे लसलसे वीर्य से भर गया था। उसने मेरे नाभि के आस पास वीर्य रस को फ़ैला दिया और अपना गीला हाथ मेरे गालो पर रख कर मुझे चूम लिया। उसने जल्दी से अपना पजामा उतारा और नेपकिन को उतार दिया। मैंने तुरन्त अपना मुख दूसरी ओर कर लिया। उसने मुझे देखा और मुस्करा उठी।
“जो … अपना लण्ड तो चड्डी में छिपा लो वर्ना नजर लग जायेगी … ।” दिव्या की हंसी सुनाई दी और नया नेपकिन सोफिया की ओर उछाल दिया।
“अरे रात के दो बज रहे है … तुम सोये नहीं … ?”
“आज की रात कौन सोता है … पर जो, आखिर आपने सोफिया को पटा ही लिया ना … ” दिव्या ने कटाक्ष किया।
“नहीं सोफिया ने मुझे पटा लिया … उसे देखो, उसकी मजबूरी … उसकी सादगी … उसका अन्दाज़” मैंने सोफिया की तारीफ़ की।
“नहीं, जो बहुत समझदार और प्यारा है … उसने मेरे साथ बहुत प्यार किया , मेरी रजामन्दी से !”
दिव्या और विक्की दोनों खुश हो गये। सारा मामला ठीक हो गया था। सोफिया ने मुझे प्यार से चूमा और मुझे अकेला छोड़ कर इठलाते हुये अपने कमरे में चली गई। दिव्या भी विक्की के साथ चली गई। मैं अब ये सोचता हुआ सो गया कि जब सोफिया की माहवारी समाप्त होगी तो मैं उसे किस किस तरह से चोदूंगा। ये सोचते सोचते कुछ समय में ही मैं निंद्रा के आगोश में खो गया।
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