मेरा हंसता खेलता सुखी परिवार-1

(Mera Hansta Khelta Sukhi Parivar-1)

This story is part of a series:

मेरा नाम अरविन्द है, मेरी उम्र 50 वर्ष, पिछली पीढ़ी का व्यवसायी और एक विधुर हूँ।
मेरी पत्नी माधुरी की कैंसर के कारण जल्दी मृत्यु हो गई थी, वह मुझे तीन बच्चों, बड़ी बेटी प्रियंका (अब 27), मेरा बेटा नील (अब 25), और छोटी बेटी अनुष्का (अब 22) का पालन-पोषण अकेले ही करने के लिए आज से 17 साल पहले ही छोड़ कर चली गई थी।

मैंने लगभग उन्हीं दिनों अपने एक मित्र के साथ मिल कर वैज्ञानिक उपकरणों का निर्यात व्यापार शुरू किया था, मेरे लिए अपने बच्चों की देखभाल इतनी आसान नहीं थी मगर माधुरी की दो छोटी बहनें अक्षरा और आलिया, मेरे बच्चों की मौसियों ने कभी हमें माधुरी की कमी महसूस नहीं होने दी।

माधुरी की असामयिक मृत्यु के वक्त अक्षरा और आलिया दोनों अविवाहित थी और बारी बारी से बच्चों की देखभाल के लिए हमारे साथ रहने आती रहती थी।

अक्षरा इस समय 41 साल की हो चुकी है और अपने पति व एक बेटी के साथ पटियाला में बहुत खुश है। इस उम्र में भी वो दिल और शरीर से युवा है, उसके पति प्राध्यापक हैं।

37 वर्षीया आलिया भी आजकल चण्डीगढ़ में अपने पति, एक बेटा एक बेटी के साथ सुखी जीवन बिता रही है। उसके पति का दवाइयों का बड़ा कारोबार है।

मैं जीवन भर अक्षरा और आलिया का शुक्रगुजार रहूँगा कि मेरी इन दोनों हसीन सालियों ने अपने विवाह से पहले और विवाह के बाद भी मेरे बच्चों के लिए समय निकाला, हम चारों को माधुरी की कमी खलने नहीं दी।
मुझे नहीं लगता कि कोई पुरूष अपनी सालियों के रूप में अक्षरा और आलिया से बेहतर कुछ पा सकता है।

मैं हमेशा से ही अति कामुक रहा हूँ, और यह बात मेरी माधुरी के साथ साथ अक्षरा और आलिया भी बहुत जल्दी ही जान गई थी।

दोनों ही पहले दिन से ही अपने जीजू को प्यार करती थी और मुझमें ही वे अपना पहला प्रेमी ढूंढने की कोशिश में लगी रहती थी।

मेरी माधुरी विवाह के समय अक्षतयौवना नहीं थी, और उसने अपनी दोनों जवाँ और हसीं बहनों अक्षरा और आलिया के अक्षत यौवन को प्राप्त करने में मुझे सहयोग देकर अपनी फ़टी योनि की क्षतिपूर्ति की थी।

खैर..इस समय मैं उस समय की कहानी नहीं बता रहा, उनके बारे में तो हम फ़िर कभी भी बात कर सकते हैं, अगर आप चाहेंगे तो, आज तो मैं इस नई पीढ़ी की बात करना चाह रहा हूँ, मेरी अदभुत पुत्रवधू सोनम (23) की !

पता नहीं आपको मेरी बातें कैसी लग रही होंगी, कुछ को अजीब भी लग रहा होगा कि मैं अपने ही बेटे की पत्नी के बारे में लिख रहा हूँ।

अगर आपकी रुचि हो तो पढ़ते रहिए।

तो मेरे बेटे की शादी अभी सात महीने पहले ही हुई है। मेरी पुत्र वधू मेरे बेटे ने नहीं बल्कि मेरी दोनों सालियों ने पसन्द की थी।

लड़की मुझे भी खूब आकर्षक और रसीली लगी थी। साथ साथ सोनम की मम्मी के गर्मागर्म व्यव्हार ने भी मेरे विधुर मन-मानस के किसी कोने में एक आशा की किरण सी जगा दी थी।

हमारी पहली ही मुलाकात में उस महिला ने अपनी कई छोटी-बड़ी हरकतों से मुझे उसकी अन्तर्वासना से अवगत करा दिया था।

मैं कोई मूर्ख तो हूँ नहीं कि ये बातें ना समझ पाऊँ और फ़िर एक मूर्ख भी उसकी आँखों में देख कर समझ सकता है और एक बार जब अनायास ही हम किसी कारणवश उस कमरे अकेले रह गए थे तो तुरन्त उसका पल्लू फिसल गया था।
उस समय जब मेरी नजर उसके नन्हे से ब्लाउज पर पड़ी तो मैं अवाक रह गया, मैंने अपने पूरे जीवन में इससे छोटा ब्लाउज शायद पहले कभी नहीं देखा था।

मुश्किल से तीन इन्च की ज़िप लगी थी उसके सामने वाले दो हिस्सों को जोड़ने के लिए।

उसके बाद की मुलाकातें भी कम रोमांचक नहीं रही पर उसके बारे में फ़िर कभी।

जब मेरी शादी हुई थी तो मेरी हैसियत ऐसी नहीं थी कि मैं एक अच्छा हनीमून मनाने कहीं जा सकूँ।
पर आज मेरे पास, मेरे पुत्र नील के पास वो सभी सुख-सुविधाएँ, साधन हैं कि वो पूरी दुनिया में कहीं भी अच्छे से अच्छा हनीमून मनाने जा सकता था।

तो मैंने अपने बेटे बहू को बीस दिन के यूरोप टूअर पर भेजा।

सोनम मेरे इस उपहार से बहुत खुश हुई थी और हनीमून के लिए घर से निकलने वक्त उसने मुझे अपनी बाहों में कस कर जकड़ कर शुक्रिया अदा किया था।

और जब वे दोनों लौटे थे तो सोनम ने उससे भी बड़ा तोहफ़ा मुझे दिया था- उसने मुझे बाहों में जकड़ कर मेरे गाल पर अपने होंठ छाप दिए थे।
उस समय महसूस तो मुझे उसकी जीभ भी हुई थी अपने गाल पर ! पता नहीं मेरा वहम था या…!

आजकल तो मैं दफ़्तर तभी जाता हूँ जब कोई मीटिंग होती है या कोई दूसरा जरूरी काम ! मेरा बेटा हमारे हिस्सेदार के साथ मिल कर मेरा कारोबार बहुत बढ़िया तरीके से चला रहा है।

मैं अपने स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखता हूँ तो मैं अपना काफ़ी समय अपने घर में ही बनाए एक बड़े ज़िम में बिताता हूँ।

मैं क्लब में टेनिस खेलने के साथ साथ हफ़्ते में कम से कम तीन बार तैराकी अवश्य करता हूँ।

दोपहर को खाने के साथ बीयर और रात के खाने से पहले थोड़ी व्हिस्की लेना मेरी दिनचर्या का हिस्सा है।

अब चूंकि नील अपने काम में इतना व्यस्त है कि सोनम पूरे दिन में कई घण्टे मेरे साथ ही बिताती है।
उसने मुझसे पूछा भी कि क्या वह मेरे साथ मेरे जिम में, टेनिस, तैराकी में साथ आ सकती है तो मुझे उसे अपने साथ रखने में कुछ ज्यादा ही खुशी का अनुभव हुआ।
हम अक्सर साथ साथ शॉपिंग के लिए भी जाते तो एक बार क्या हुआ कि-

सोनम-नील की शादी को दो महीने ही हुए थे, हम मत्लब सोनम और मैं एक मॉल में स्विम सूट देख रहे थे, थोड़ा मुस्कुराते हुए, थोड़ा शरमाते हुए सोनम ने मुझे एक छोटी सी टू पीस बिकिनी दिखाई और पूछा- यह कैसी है पापा?

और जिस तरह से यह पूछते हुए उसने मेरी ओर देखा, तो दोस्तो, मेरे जीवन में शायद इससे उत्तेजक अदा किसी लड़की या औरत ने नहीं दिखाई थी।
उसके चेहरे पर मुस्कान थी, आँखों में शरारत भरा प्रश्न था, उसकी यह कामुक अदा मुझे मेरे अन्दर तक हिला गई।

मैंने बिना एक भी पल गंवाए उसकी कमर पर अपने दोनों हाथ रखे और दबाते हुए कहा- हाँ ! इसमें तुम लाजवाब लगोगी, तुम्हारी ही फ़िगर है इसे पहनने के लिए एकदम उपयुक्त !

वो खिलखिलाई- मैं तो बस मजाक कर रही थी पापा ! मैं इसे आम स्विमिंगपूल में कैसे पहन सकती हूँ?

‘लेकिन जान ! मैं मजाक नहीं कर रहा !’ मैंने अपना एक हाथ उसकी कमर के पीछे लेजा कर, दूसरा हाथ उसके कूल्हे पर रखकर उसे अपनी तरफ़ दबाते हुए कहा- हमारा क्लब एक विशिष्ट क्लब है और यहाँ पर काफ़ी लड़कियाँ और महिलाएँ ऐसे कपड़े पहनती हैं। और वीक-एण्ड्स को छोड़ कर अंधेरा होने के बाद तो शायद ही कोई क्लब में होता हो ! तुम इसे उस वक्त तो पहन ही सकती हो !

अब तक मेरा ऊपर वाला हाथ भी नीचे फ़िसल कर उसके चूतड़ों पर आ टिका था।
यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।

मैंने सेलगर्ल की ओर घूमते हुए वो बिकिनी भी पैक करने को कह दिया।

अगली सुबह सोनल मेरे साथ ज़िम में थी, उसकी छरहरी-सुडौल काया से मेरी नजर तो हट ही नहीं रही थी।
उसने भी शायद मेरी घूरती नजर को पहचान लिया था, तभी तो उसके गुलाबी गाल और लाल लाल से हो गए थे, और ज्यादा प्यारे हो गए थे।
वो मेरे पास आकर मेरे गले में एक बाजू डालते हुए बोली- जब आप मेरी तरफ़ इस तरह से देखते हैं ना पापा ! मुझे बहुत शर्म आती है पर अच्छा भी बहुत लगता है।

उसने अपना चेहरा मेरी छाती में छिपा लिया, मैं उसकी पीठ थपथपाते हुए उससे जिम में रखी मशीनों के बारे में बात करने लगा कि उन्हें कैसे इस्तेमाल करना है और उनसे क्या नहीं करना है।

उसे मेरी बातें तुरन्त समझ आ जाती थी और अपनी बात भी मुझसे कह देती थी।

हमने ज़िम में थोड़ी वर्जिश करने के बाद आराम किया, फ़िर नाश्ता करके टेनिस के लिये क्लब आ गये।

उसे टेनिस बिल्कुल नहीं आता था तो मैंने उसे रैकेट पकड़ना आदि बता कर शुरु में दीवार पर कुछ शॉट मार कर कुछ सीखने को कहा। गयारह बजे तक हम वापिस घर आ गए और आते ही वो तो बगीचे में ही कुर्सी पर ढेर हो गई।

मैं उसके पास वाली कुर्सी पर बैठ गया और पूछा- क्या मैंने तुझे ज्यादा ही थका दिया?

उसने कहा- नहीं पापा, ऐसी कोई बात नहीं !

पर उसके चेहरे के हाव भाव से साफ़ नजर आ रहा था कि वो थक चुकी है, मैं उसकी कुर्सी के पीछे खड़ा हुआ और उसके कंधे और ऊपरी बाजुएँ सहलाते हुए बोला- टेनिस प्रैक्टिस कुछ ज्यादा हो गई !

वो बोली- पापा, कई महीनों से मैंने कसरत आदि नहीं की थी ना, शायद इसलिए !

मैंने कुछ देर उसकी बाजू, कन्धे और पीठ सहलाई तो वो कुर्सी छोड़ खड़े होते हुए बोली- पापा, आप कितने अच्छे हैं।

यह कहते हुए उसने मुझे अपनी बाहों में भींच लिया। मैंने भी उसके बदन को अपनी बाहों के घेरे में ले लिया और कहा- मेरी सोनम भी तो कितनी प्यारी है !

कहते हुए मैंने उसके माथे का चुम्बन लिया और जानबूझ कर अपनी जीभ से मुख का थोड़ा गीलापन उसके माथे पर छोड़ दिया।

‘पापा, मैं कितनी खुशनसीब हूँ जो मैं आपकी बहू बन कर इस घर में आई !’

‘आप यहीं बैठ कर आराम कीजिए, मैं चाय बना कर लाती हूँ !’ कहते हुए सोनम मुड़ी।

मैं कुर्सी पर बैठ कर सोचने लगा- मैं भी कितना खुश हूँ सोनम जैसी बहू पाकर ! आज कितना अच्छा लगा सोनम के साथ !

तभी मन में यह विचार भी आया कि उसके वक्ष कैसे मेरी छाती में गड़े जा रहे थे जब वो मेरी बाहों में थी।

ओह ! जब सोनम चाय बनाने के लिए जाने लगी तो मेरी नजर उसके चूतड़ों पर पड़ी, उसका टॉप थोड़ा ऊपर सरक गया था और शायद टेनिस खेलने से उसकी सफ़ेद निक्कर थोड़ी नीचे होकर मुझे उसके चूतड़ों की घाटी का दीदार करा रही थी।
अब या तो उसने पैंटी पहनी ही नहीं था या फ़िर पैन्टी निक्कर के साथ नीचे खिसक गई थी।
मेरी अन्तर्वासना जो पहले ही कुछ कुछ जागृत हो रही थी, अब तो यह देखते ही छलांगें मारने लगी।

मैं भूल गया कि यह मेरी पुत्र वधू है, मैं उठ कर उसके पीछे रसोई में गया, उसके पीछे खड़े होकर उसे चाय बनाते देखने लगा। मेरी निक्कर का उभार उसके कूल्हों के मध्य में छू रहा था !

उसने पीछे मुड़ कर अपने कन्धे के ऊपर से मेरी आँखों में झांका और बोली- पापा, मैं तो चाय लेकर बाहर ही आने वाली थी।

उसने मेरे लिंग के पड़ रहे दबाव से मुक्त होने के लिए अपने चूतड़ थोड़े अन्दर दबा लिए और मैं उसकी टॉप और निक्कर के बीच चमक रही नंगी कमर पर अपनी दोनों हथेलियाँ रख कर बोला- मैं कुछ मदद करूँ?

मेरे इस स्पर्श से उसे एक झटका सा लगा और वो मेरी ओर देखने के लिए मुड़ी कि उसके चूतड़ मेरे लिंग पर दब गए, मेरा उत्थित लिंग उसके पृष्ठ उभारों के बिल्कुल बीच में जैसे घुस सा गया।

उसे मेरी उत्तेजना का आभास हो चुका था पर कोई प्रतिक्रिया दिखाए बिना वो बोली- चलिए पापा ! चाय तैयार है।

वो मेरे आगे आगे चलने लगी और मैं उसके पीछे पीछे उसकी नंगी कमर और ऊपर नीचे होते कूल्हों पर नजर गड़ाए चलने लगा।

कहानी के अगले भाग की प्रतीक्षा कीजिए।

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