मेहमानघर-2
लेखक : नितेश शुक्ला
अनजाने में मुझ से ज़रा ज़ोर से स्तन दब गया तो सुलू के मुँह से आह निकल पड़ी। मैंने स्तन छोड़ दिया।
पूर्वी सब देख रही थी…
वो बोली- भैया, ज़रा धीरे से दबाओ ना, अभी कच्चे हैं।
मैं- इतने बड़े और कच्चे? मौसी, तेरे स्तन कच्चे हैं क्या?
जवाब में उसने मेरा हाथ पकड़ कर फिर अपने वक्ष पर रख दिया। मैंने फिर स्तन सहलाए, दबोचे और मसल डाले।
इधर मेरे हाथ चूचियाँ मसल रहे थे और मुँह उसके होंठ चूस रहा था, उधर उसने मेरा खड़ा हुआ लंड पकड़ लिया। पूर्वी के हाथ भी अपनी पैंटी में घुसे हुए थे और उसके मुँह से सी..सी.. आवाज़ निकल रही थी। उसका चेहरा भी गुलाबी हो गया था।
मैंने उसे अपने पास बुला लिया। वो आकर मेरे पीछे बैठ गई और मुझसे चिपक गई, उसके छोटे छोटे कड़े स्तन मेरी पीठ से दब गये।
अब सुलू मौसी मेरा लंड सहलाने लगी थी, तन कर मेरा लंड पूरा सात इंच लंबा और लोहे जैसा कड़ा हो गया था। सुलू ने डोरी खोल कर पाजामा नीचे उतार दिया लेकिन कच्छे में से लंड बाहर निकाल ना सकी। तब मैंने ही कच्छा उतारा और जैसे ही लंड आजाद हुआ, मौसी ने तुरंत हथेली में थाम लिया।
देख कर पीछे से पूर्वी बोली- भैया, इतना बड़ा आपका लंड? मुझे डर लगता है।
मैं- तू देखती रहना, मौसी की चूत आराम से यह लंड ले सकेगी, है ना मौसी?
कुछ बोले बिना सुलू मेरी गोद से सरक कर ज़मीन पर आ बैठी। मैं सोफ़े पर बैठा रहा, पूर्वी मेरे पीछे बैठी थी। सुलू ने मुट्ठी में लंड पकड़ा हुआ था।
हौले हौले सुलू मुठ मारने लगी, लंड ने काम-रस बहाना शुरू कर दिया। सुलू ने लंड की टोपी ऊपर खींच कर मटका खुला किया और उस पर जीभ फिराई। लंड ने ठुमका लगाया, आगे झुक कर मौसी ने लंड का मत्था अपने मुँह में लिया और चूसने लगी, सिर हिला कर लंड को अंदर-बाहर करने लगी।
पीछे से पूर्वी बोली- भैया, मैं पकड़ लूं?
मैंने हाँ कहा तो अपनी कोमल उंगलियों में लंड की डण्डी पकड़ कर वो फिर बोली- भैया, यह तो तन कर लोहे जैसा हो गया है, आपको दर्द नहीं होता?
मैं- ना, दर्द नहीं होता, मजा आता है तू ऐसे ऐसे मुठ मार !
सुलू ने पूर्वी की कलाई पकड़ ली और दिखाया कि कैसे मुठ मारी जाती है।
मुट्ठी में लंड लिए पूर्वी मुठ मारने लगी लंड का मत्था ओर फूल गया। मौसी का मुँह भर गया, मौसी चूसती रही।
उन दोनों की हरकतों से मेरा लंड फटा जा रहा था, वो भरपूर लार उगल रहा था और ठुमके पर ठुमका लगा रहा था, मुझे लगा कि मैं मौसी के मुँह में ही झर जाऊँगा।
वो दोनों भी काफ़ी उत्तेजित हो गई थी।
अब मुझ से रहा नहीं गया, मैंने सुलू के मुँह से लंड निकाला और पूर्वी के हाथ से छुड़ा लिया, सुलू को उठा कर पलंग पर ले गया, उसे चित लेटा कर मैंने घाघरी की डोरी खींच दी।
शरम से उसने थोड़ी देर तक खुली हुई घाघरी पकड़े रखी लेकिन बाद में ख़ुद ही उसने अपने कूल्हे उठा कर उतारने दिया।
सुलू ने पेंटी नहीं पहनी थी, घाघरी हटते ही उसकी जांघें और भोस खुले हुए, मेरी उंगलियाँ उसकी चिकानी जांघें और काले झांट से ढकी हुई भोस के साथ खेलने लगी।
पूर्वी बोली- मौसी, तेरी भोस बहुत सुंदर दिखती है, और ये सुवास भी वहीं से आ रही है?
मैंने कहा- पूर्वी, तू ऊपर आ जा ! मौसी तुझे फ़्रेच किस सिखाएगी और तू उसकी निप्पल भी चूसना।
गोरी गोरी भरपूर जांघें देख कर मेरा लंड और ज़्यादा तन गया, दो जांघों के बीच खड्डा सा हो गया था, जिसके तल में था मौसी का सबसे रसीला अंग, उसकी भोस !
जब जांघें जोड़ कर रखती थी तब भोस का थोड़ा हिस्सा ही दिखाई दे रहा था। मैंने जांघें चौड़ी करने की कोशिश की लेकिन नाकामयाब रहा।
शर्म से सुलू ने जांघें सटाए रखी, खोलने नहीं दी।
मैंने कहा- मौसी, तू पूर्वी को फ़्रेंच किस सिखा !
सुलू ने तुरंत अपना मुँह पूर्वी के मुँह से लगा दिया, वो दोनों किस करती रही और मैं हाथ से जांघें सहलाते हुए स्तन पर चुंबन करने लगा, काफ़ी देर तक निप्पल भी चूसी। हौले हौले मैं उसके पेट पर और पेट पर से जाँघ पर चुंबन करने लगा। उसको गुदगुदी होने लगी और जाँघ की पकड़ नर्म पड़ी। अब मेरा हाथ दो जाँघ बीच जा सका। मैंने हौले से जांघें चौड़ी की, इस बार उसने विरोध किया नहीं।
बाद में उसने ख़ुद पाँव ऊपर उठा लिए। उत्तेजना से सूजे हुए बड़े होंठ वाली सुलू की भोस कामरस से गीली थी, गुलाबी रंग के कोमल छोटे होंठ सूज कर दरार से बाहर निकल आए थे, तीन इंच लंबी दरार के अगले कोने में उसकी क्लैटोरिस थी, क्लैटोरिस एक इंच लंबी होगी, मोटी क्लैटोरिस का मत्था छोटी सी चेरी जैसा था और काम रस से चमक रहा था। पेड़ू पर और बड़े होंठ के बाहरी भाग पर काले घुंघराली झांट थी जो उसने काट रखी थी। भोस से ख़ुशबू आ रही थी। जैसे मैंने भोस पर चुंबन किया, सुलू कूद पड़ी, बाल पकड़ कर मेरा सर हटा दिया।
मैंने मौसी की पिक्की को छोड़ा नहीं, उंगलियों के हल्के स्पर्श से बड़े होंठ सहलाने लगा। क्लैटोरिस को ज़्यादा कड़ी होती हुई मैं देख रहा था। थोड़ी देर भोस सहलाने के बाद मैंने फिर मेरे होंठ क्लैटोरिस से चिपका दिए। मौसी पूर्वी साथ फ़्रेंच किस में लगी हुई थी इसलिए इस बार उसने मेरा सिर हटाया नहीं।
मैं अब जीभ से क्लैटोरिस टटोल सका और होंठों बीच लेकर चूस सका।
सुलू के नितंब हिलने लगे, भोस के होंठ चौड़े करके मैंने दो उंगलियाँ चूत में डाली और जी-स्पोट ढूँढ लिया। क्लैटोरिस चूसते चूसते मैंने जी-स्पोट सहलाया।
सुलू से सहा नहीं गया, उसने पूर्वी के कान में कुछ कहा।
मैं- क्या कहती है मौसी?
पूर्वी- कहती है कि अब कितनी देर लगाओगे? भैया, क्यूं तड़पाते हैं बेचारी को? डाल भी दीजिए ना आपका लंड !
मैं- मौसी, तैयार हो?
वो कुछ बोली नहीं, आँखें बंद कर मुस्कुराती रही। पूर्वी बगल में खड़ी देखने लगी, मैं सुलू की जांघों बीच खड़ा हो गया, उसके नितंबों के नीचे एक छोटा तकिया रख दिया जिससे पिक्की मेरे लंड के लेवल में आ सकी। एक हाथ में मैंने लंड पकड़ा और दूसरे से भोस चौड़ी की, लंड का मत्था चूत के मुँह पर रख कर मैंने हल्का दबाव दिया, मत्था चूत के मुँह में जा फँसा।
सुलू की चूत गीली थी और लंड का मत्था भी गीला था। फिर भी लंड को अंदर घुसने में देर लगी, मैंने पूछा- दर्द होता है क्या?
बोले बिना उसने मेरे कूल्हे अपनी ओर खींचे और चूत सिकोड़ कर लंड का मत्था दबाया, हल्के दबाव से मैंने सरकाते हुए आधा लंड चूत में उतार दिया।
मैं रुक गया, लंड ने ठुमका लगाया और चूत को ओर चौड़ी कर दिया। मैंने लंड वापस खींचा और रुके बिना ऐसे ही अंदर डाल दिया। अबकी बार पूरा लंड चूत में घुसने पर ही मैं रुका। लंड ने फिर ठुमका लगाया, चूत ने सिकुड़ कर जवाब दिया। सुलू ने मुझे अपने बदन पर खींच लिया और मुँह से मुँह चिपका कर ज़ोरों से फ़्रेंच किस करने लगी।
मैं हाथों के बल ऊपर हुआ, दोनों के पेट बीच से भोस की ओर देखते हुए मैंने लंड निकाला। सुलू के हाथ मेरे कूल्हों पर थे, उसने मुझे रोक दिया, पूरा लंड निकालने ना दिया, लंड का मत्था चूत के मुँह में आने तक मैंने लंड निकालाऔर लंड से ठुमका मरवाया। ठुमके से लंड थोड़ा सा ओर मोटा हुआ और चूत का मुँह ओर चौड़ा कर दिया. चूत ने भी सिकुड़ कर लंड का मत्था दबाया, सर्र सर्र करके फिर से मैंने लंड चूत में उतार दिया। यह खेल हम काफ़ी देर तक खेलते रहे, चूत और लंड काम रस से लथपथ हो गये। हमारी उत्तेजना बढ़ती रही।
अब मैंने हल्के धक्कों से सुलू मौसी को चोदना शुरू किया। शुरुआत में संभल कर लंड डालता रहा क्यूंकि उसकी चूत छोटी थी और मेरा लंड था मोटा।
जैसे जैसे चुदाई चली, वैसे वैसे चूत खुली होती चली, काम रस भी बहता चला और लंड आसानी से अंदर-बाहर होने लगा। लंड की मोटाई से भोस की दरार गोल बन गई थी और क्लैटोरिस खींच कर चूत की ओर आ गई थी। इससे हुआ क्या कि लंड के हर धक्के के साथ क्लैटोरिस लंड की डण्डी के साथ घिसने लगी। सुलू ने मुझे बाद में बताया था कि ऐसी हरकत से उसे बहुत मजा आता था, क्लैटोरिस से निकला बिजली का करंट सारे बदन में फैल जाता था। मेरे धक्के के साथ साथ वो भी अपने नितंब इस कदर हिलाती थी कि जिससे चूत के हर कोने तक लंड का मत्था पहुँच जाए। हौले होले मेरे धक्के की रफ़्तार बढ़ने लगी
देखते देखते में सुलू की योनि फट फट फटाके मारने लगी, वो मछली की तरह छटपटाने लगी, मेरे हाथों और कंधों पर दाँत गाड़ दिए, नाख़ून से मेरी पीठ खरोंच डाली। मैं तेज़ और गहरे धक्के से चोद रहा था और वो भी नितंब घुमा-घुमा कर लंड का मंथन कर रही थी। फिर भी वो परम आनन्द पर नहीं पहुँच पा रही थी। मुझे लगा कि उसका ओर्गैस्म करवाए बिना ही मैं झर जाऊँगा।
मैंने पूर्वी से कहा- पूर्वी, उंगली से देख तो ज़रा मौसी की क्लैटोरिस कैसी है।
हमारे पेट बीच हाथ डाल कर पूर्वी ने मौसी की भोस टटोली, मेरे धक्के चालू ही थे, इस दौरान जैसे पूर्वी ने क्लैटोरिस छुआ कि सुलू को ज़ोरों का ओर्गैस्म हो गया, अपने हाथ पाँव से वो मुझसे लिपट गई, कूल्हों से झटके देने लगी, चूत से लंड निचोड़ने लगी, उसका सारा बदन तीस सेकंड के लिए अकड़ गया, उसके रोएँ खड़े हो गये, आँखें मिंच गई और मुँह से लार निकल पड़ी।
वो बेहोश सी हो गई, ओर्गास्म का आफ़्टर शोक दो मिनट तक चला।
मेरे लंड ने भी हार क़बूल कर ली, चूत की गहराई में लंड को दबाए हुए मैं ज़ोर से झरा। मेरे वीर्य से सुलू की सिकुड़ी चूत छलक गई।मैंने लंड निकाला और सुलू शिथिल होकर पलंग पर ठीक से लेटी रही। मैंने बाथरूम में जाकर पेशाब किया और लंड धोया।
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