कमाल की हसीना हूँ मैं-27

(Kamaal Ki Haseena Hun Mai- Part 27)

शहनाज़ खान 2013-05-19 Comments

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अभी दो महीने ही हुए थे कि मैंने अपने ससुर ताहिर अज़ीज़ खान जी को कुछ परेशान देखा।

“क्या बात है अब्बू… आप कुछ परेशान हैं?” मैंने पूछा।

“शहनाज़ ! तुम कल से हफ़्ते भर के लिये ऑफिस आने लगो !” उन्होंने मेरी ओर देखते हुए पूछा, “तुम्हें कोई परेशानी तो नहीं होगी ना, अपने पुराने काम को संभालने में?”

“नहीं ! लेकिन क्यों?” मैंने पूछा।

“अरे वो नई सेक्रेटरी अक्ल के मामले में बिल्कुल खाली है। दस दिन बाद पैरिस में एक सैमिनार है हफ़्ते भर का। मुझे अपने सारे पेपर्स और नोट्स तैयार करने हैं जो कि तुम्हारे अलावा और कोई नहीं कर सकता। तुम जितनी जल्दी अपने काम में एक्सपर्ट हो गई थीं, वैसी कोई दूसरी मिलना मुश्किल है।”

“लेकिन अब्बू… मैं वापस उस पोस्ट पर रेग्युलर काम नहीं कर सकती क्योंकि जावेद के आने पर मैं वापस मथुरा चली जाऊँगी।”

“कोई बात नहीं। तुम तो केवल मेरे सैमिनार के पेपर्स तैयार कर दो और मेरी सेक्रेटरी बन कर पैरिस में सैमिनार अटेंड कर लो। देखो, इंकार मत करना। तुम्हें मेरे साथ सैमिनार अटेंड करना ही पड़ेगा। ज़ीनत के बस का नहीं है ये सब। इन सब सैमिनार में सेक्रेटरी स्मार्ट और सैक्सी होना बहुत जरूरी होता है, जो ज़ीनत है नहीं। यहाँ के छोटे-मोटे कामों के लिये ज़ीनत रहेगी।”

“ठीक है मैं कल से ऑफिस चलूँगी आपके साथ।” मैंने उन्हें छेड़ते हुए पूछा, “मुझे वापस स्कर्ट तो नहीं पहननी पड़ेगी ना?” मैंने अपनी राय सुना दी उन्हें।

मैंने यह कहते हुए उनकी तरफ़ हल्के से अपनी एक आँख दबाई। वो मेरी बात सुन कर मुस्कुरा दिये।

“तुम्हारी जो मर्ज़ी हो, वो पहन लेना। कुछ नहीं पहनो तो भी ताहिर अज़ीज़ खान के बेटे की बीवी को लाइन मारने की हिम्मत किसी में नहीं होगी !” हम हँसते हुए अपने-अपने कमरों की ओर बढ़ गये।

उस रात मुझे बहुत अच्छी नींद आई। सपनों में मैं उस ऑफिस में बीते हर पल को याद करती रही।

मैं अगले दिन से ऑफिस जाने लगी। अब्बू के साथ कार में ही जाती और उनके साथ ही वापस आती। ऑफिस में भी अब सलवार कमीज़ या साड़ी में शालीनता से ही रहती। लेकिन जब केबिन में सिर्फ हम दोनों बचते तो मेरा मन मचलने लगता।

मैंने महसूस किया था कि उस वक्त ताहिर अज़ीज़ खान जी भी असहज हो उठाते। जब मैं ऑफिस में बैठ कर कम्प्यूटर पर सारे नोट्स तैयार करती तो उनकी निगाहों की तपिश लगातार अपने जिस्म पर महसूस करती।

मैंने सारे पेपर्स तैयार कर लिये। चार दिन बाद मुझे उनके साथ पैरिस जाना था। एक दिन खाना खाने के बाद मैं और अब्बू टीवी देख रहे थे। अम्मी जल्दी सोने चली जाती हैं।

कुछ देर बाद ताहिर अज़ीज़ खान जी ने कहा, “शहनाज़ पैरिस जाने की तैयारी करना शुरू कर दो। टिकट आ चुका है… बस कुछ ही दिनों में फ्लाईट पकड़नी है।”

“मैं और क्या तैयारी करूँ? बस कुछ कपड़े रखने हैं।”

“ये कपड़े वहाँ नहीं चलेंगे !” उन्होंने कहा, “ऑर्गनाइजिंग कंपनी ने सैमिनार का ड्रेस कोड रखा है और उसकी कॉपी अपने सारे केंडीडेट्स को भेजी है। उन्होंने ड्रेस कोड स्ट्रिक्टली फॉलो करने के लिये सभी कंपनियों के रिप्रिसेंटेटिव्स से रिक्वेस्ट की है। जिसमें तुम्हें… यानि सेक्रेटरी को सैमिनार के वक्त लाँग स्कर्ट और ब्लाऊज़ में रहना पड़ेगा। शाम को डिनर और कॉकटेल के समय माइक्रो स्कर्ट और टाईट शर्ट पहननी पड़ेगी विदाऊट… अंडरगार्मेंट्स !” उन्होंने मेरी ओर देखा।

मेरा मुँह उनकी बातों से खुला का खुला रह गया।

“शाम को अंडरगार्मेंट्स पहनना अलाऊड नहीं है। दोपहर और ईवनिंग में पूल में टू पीस बिकिनी पहननी पड़ेगी और पैरों में हर समय हाई-हील्स पहने होने चाहिये… कम से कम चार इंच हाई हील वाले।”

“हाई हील्स तो ठीक है लेकिन…?” मैंने थूक का घूँट निगल कर कहा, “मेरे पास तो इस तरह के सैक्सी ड्रेसेज़ हैं नहीं और आपके सामने मैं कैसे उन ड्रेसेज़ को पहन कर रहूँगी? ”

“क्यों क्या प्रॉब्लम है?”

“मैं आपकी बहू हूँ !” मैंने कहा।

“लेकिन वहाँ तुम मेरी सेक्रेटरी बन कर चलोगी !” ताहिर अज़ीज़ खान जी ने कहा।

“ठीक है सेक्रेटरी तो रहूँगी लेकिन इस रिश्ते को भी तो नहीं भुलाया जा सकता ना !” मैंने कहा।

“वहाँ देखने वाला ही कौन होगा। वहाँ हम दोनों को पहचानेगा ही कौन। वहाँ तुम केवल मेरी सेक्रेटरी होगी। एक सैक्सी और…” मुझे ऊपर से नीचे तक देखते हुए आगे बोले, “हॉट! तुम वहाँ हर वक्त मेरी पर्सनल नीड्स का ख्याल रखोगी जैसा कि कोई अच्छी सेक्रेटरी रखती है… ना कि जैसा कोई बहू अपने ससुर का रखती है।”

उनकी इस बात की गंभीरता को भाँप कर मैंने अपना सिर झुका लिया।

“तुम परेशान मत हो… सारा अरेंजमेंट कंपनी करेगी ! तुम कल मेरे साथ चल कर टेलर के पास अपना नाप दे आना। बाकी किस तरह के ड्रेस सिलवाने हैं और कितने सिलवाने हैं… सब मेरा हैडेक है।”

अगले दिन मैं उनके साथ जाकर एक फेमस टेलर के पास अपना नाप दे आई। जाने के दो दिन पहले ताहिर अज़ीज़ खान जी ने दो आदमियों के साथ एक बॉक्स भर कर कपड़े भिजवा दिये।

मैंने देखा कि उनमें हर तरह के कपड़े थे और हर ड्रेस के साथ मेल खाते हाई हील के सैंडल भी थे। कपड़े काफी कीमती थे। मैंने उन कपड़ों और सैंडलों पर एक नज़र डाल कर अपने बेडरूम में रख दिये। मैं नहीं चाहती थी कि मेरी सास को वो एक्सपोज़िंग कपड़े दिखें। पता नहीं उसके बारे में वो कुछ भी सोच सकती थीं।

शाम को उनके वापस आने के बाद जब मैंने उन्हें अकेला पाया तो मैंने उनसे पूछा, “इतने कपड़े ! सिर्फ मेरे लिये हैं?”

“और नहीं तो क्या ! तुम वहाँ मेरी सेक्रेटरी होगी और मेरी सेक्रेटरी सबसे अलग दिखनी चाहिये। तुम हर रोज एक नये डिज़ाईन का ड्रेस पहनना। उन्हें भी तो पता चले हम हिन्दुस्तानी कितने शौकीन हैं। तुमने पहन कर देखा उन्हें?”

“नहीं, मैंने अभी तक इन्हें ट्राई करके तो देखा ही नहीं।”

“कोई बात नहीं ! आज रात खाना खाने के बाद तुम्हारा ट्रायल लेते हैं।” फिर मुस्कुरा कर बोले, “अपनी सास को जल्दी सुला देना।”

रात को खाना खाने के बाद अम्मी सोने चली गई। अब्बू ने खाना नहीं खाया, उन्होंने कहा कि वो खाने से पहले दो पैग व्हिस्की के लेना चाहते हैं। अम्मी तो इंतज़ार ना करके खुद खाना खाकर उन्हें मेरे हवाले कर के चली गईं।

मैंने सारा सामान सेंटर टेबल पर तैयार करके रख दिया। वो सोफ़े पर बैठ कर धीरे-धीरे ड्रिंक्स सिप करने लगे। वो इस काम को लंबा खींचना चाहते थे जिससे अम्मी गहरी नींद में सो जायें। उन्हें ड्रिंक करते देख मेरा भी ड्रिंक पीने का मन तो हुआ पर मैंने कभी अब्बू के सामने ड्रिंक नहीं की थी।

मैं उनके पास बैठी उनके काम में हैल्प कर रही थी कुछ देर बाद उन्होंने पूछा, “तुम्हारी अम्मी सो गईं? देखना तो सही।”

मैं उठ कर उनके बेडरूम में जाकर एक बार सासू जी पर नज़र मार आई। वो तब गहरी नींद में सो रही थी। मैं सामने के सोफ़े पर बैठने लगी तो उन्होंने मुझे अपने पास उसी सोफ़े पर बैठने का इशारा किया। मैं उठ कर उनके पास बैठ गई।

उन्होंने कुछ देर तक मुझे निहारा और फिर कहा, “जाओ शहनाज़… और एक-एक कर के सारे कपड़े मुझे पहन कर दिखाओ।”

यह कहते हुए उन्होंने अपना ड्रिंक बनाया। मैं उठ कर अपने बेडरूम में चली गई। बेडरूम में आकर बॉक्स खोल कर सारे कपड़ों को बिस्तर के ऊपर बिछा दिया।

मैंने सबसे पहले एक ट्राऊज़र और शर्ट छाँटा। उसके साथ उसके साथ के हाई हील के सैंडल पहन कर कैट-वॉक करते हुए किसी मॉडल की तरह उनके सामने सोफ़े तक पहुँची और अपने हाथ कमर पर रख कर दो सेकेंड रुकी और फिर झुक कर उन्हें बो किया और धीरे से पीछे मुड़ कर उन्हें अपने पिछवाड़े का भी पूरा जायज़ा करने दिया और फिर मुड़कर पूछा, “ठीक है?”

उन्होंने मुस्कुरा कर कहा, “सैक्सी.. म्म्म्म…!”

मैं वापस अपने कमरे में आ गई फिर दूसरे कपड़े पहन कर उनके सामने पहुँची… फिर तीसरे…! बनाने वाले ने बड़े ही खूबसूरत डिज़ाईन में सारे कपड़े सिले थे। जो रेडीमेड थे उन्हें भी काफी नाप तोल करके सिलेक्ट किया होगा क्योंकि कपड़े ऐसे लग रहे थे मानो मेरे लिये ही बने हों। जिस्म से ऐसे चिपक गये थे मानो मेरे जिस्म पर दूसरी चमड़ी चढ़ गई हो।

ट्राऊज़र्स के बाद लाँग स्कर्ट्स और ब्लाऊज़ों की बारी आई। ताहिर अज़ीज़ खान जी मेरे शो को दिल से एन्जॉय कर रहे थे। हर कपड़े पर कुछ ना कुछ कमेंट पास करते जा रहे थे।

लाँग स्कर्ट्स के बाद माइक्रो स्कर्ट्स की बारी आई। मैंने एक पहना तो मुझे काफी शर्म आई। स्कर्ट्स की लम्बाई पैंटी के दो अंगुल नीचे तक थी। टॉप भी मेरी गोलाइयों के ठीक नीचे ही खत्म हो रही थी। टॉप्स के गले भी काफी डीप थे। मेरे आधे बूब्स सामने नज़र आ रहे थे। मैंने ब्रा और पैंटी के ऊपर ही उन्हें पहना और एक बार अपने जिस्म को सामने लगे फुल लेंथ आइने में देख कर शरमाती हुई उनके सामने पहुँची।

कहानी जारी रहेगी।

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