फिर आयुषी
दोस्तो, शायद आपको आयुषी शर्मा याद होगी !
भूल गए ना?
कोई बात नहीं, मैं याद दिला देता हूँ :
इसे पढ़ लेना, आयुषी याद आ जाएगी।
मैं उसका सुनील भाई आज आपके सामने वापस आया हूँ लेकिन मुझे यह कहते हुए अच्छा नहीं लग लग रहा कि मुझे आज भी अपनी प्यारी बहन की चूत दुबारा नसीब नहीं हुई?
मेरी पहली कहानी जो आयुषी के कहने पर उसी की तरफ़ से मैंने लिखी थी उसमे मेरा नाम सुनील था लेकिन मेरा असली नाम अनुराग है, आपको झूठ बोलने के लिए माफ़ी चाहता हूँ।
अब मैं आपको ज्यादा बोर नहीं करूँगा, जाहिर सी बात है अन्तर्वासना पर हो तो थोड़ा गर्म मसाला ही चाहोगे फालतू बकवास नहीं।
आपको यह तो पता ही है आयुषी की शादी हो चुकी है और आज उसके पास एक बेटी भी है लेकिन जिस लंड के लिए वो तरसती है वो उसे पता है और जिस चूत के लिए मैं, वो मुझे पता है।
मुझे पता है कि उसकी चूत मुझे अब शायद ही हासिल हो? पर मैं हमेशा उसकी चूत को अपने ख्यालों में चोदता हूँ।
आज आपको दुबारा लिख रहा हूँ। लेकिन यह केवल कल्पना है जिसे सोच कर मैं आज भी मुठ मारता हूँ।
चलो बहुत हो गया, अब अपनी काल्पनिक कहानी शुरू करनी चाहिए।
मैं आयुषी को एक बैंक की परीक्षा दिलाने गया। मामी को मेरे से बहुत प्यार था इसलिए उन्होंने मुझे ही भेजा। परीक्षा दो घंटे में ख़त्म हो गई। हम जहाँ गए थे वहाँ एक बहुत ही प्यारा डैम (बांध) है।
उस समय उस डैम के पास पिकनिक मनाना बहुत ही मशहूर था।
वापिस आते समय आयुषी ने इच्छा जाहिर की- क्यों न डैम घूमने चलें?
अँधा क्या मांगे, दो आँखें !
और वो आयुषी खुद ही दे रही थी।
मैंने तुरंत हाँ कह दिया और हम डैम पर पहुँच गए। डैम का नज़ारा बहुत ही सुन्दर था, चारों तरफ हरियाली और पानी ही था। बहुत लोग डैम के इस मनोहर दृश्य का लुत्फ़ ले रहे थे।
मैंने आयुषी से कहा- अपुन ने डैम तो देख लिया, थोड़ा और घूमना हो तो बताओ, नदी में अन्दर चलते हैं?
वो तपाक से बोली- जरूर अनुराग।
मैंने कहा- घर लेट हो गए तो?
वो बोली- अरे मम्मी को पता है मैं तेरे साथ हूँ और वो तेरे साथ मुझे रात में भी छोड़ सकती है फिर क्या टेंशन?
मैंने कहा- चल ठीक है तो अपुन नाव करके नदी में आगे चलते हैं।
उसने हाँ कह दिया। हम नाव में नदी में निकल गए।
जैसा कि आप जानते ही हैं आयुषी शादीशुदा है वही नाविक ने समझा, कुछ दूर जाने के बाद वो बोला- शाहब, मैं आपको एक स्पेशल जगह ले चलता हूँ जहाँ आप दोनों अच्छे से मज़े कर लेंगे, मैं वहाँ से आपको वापस भी ले आऊँगा लेकिन मेरे को 500 रूपये चाहिएँ?
आयुषी ने मेरी तरफ देखा।
मैंने उससे हाँ कह दिया, मन में सोचा कि देखूँ तो वो खास जगह कौन सी है?
आयुषी की आँखों में कुछ प्रश्न थे लेकिन मेरी हाँ से वो शांत हो गए।
नाविक ने हमें एक ऐसी जगह छोड़ा जहाँ एक छोटा सा टापू था। हमें छोड़ने के बाद उसने अपना मोबाइल नम्बर दिया और कहा- शाहब, आप जब फ्री हो जाओ तो मुझे बुला लेना, मैं आपको वापस लेने आ जाऊँगा।
मैंने उसे 300 रुपये एडवांस में दिए, वो खुश होकर चला गया।
वो जगह वाकई में टापू जैसी थी जहाँ मैं और आयुषी ही थे, कोई देखने वाला नहीं था।
टापू पर उतरते ही आयुषी बोली- वाह भाई, मजा आ गया ! क्या जगह है !
मैंने बोला- अरे यह तो अपनी बहुत अच्छी पिकनिक हो गई, चल जो खाने को है वो निकाल?
मैं और आयुषी दोनों वहाँ बैठ कर खाना खाने लगे तभी वहाँ जोर से बारिश शुरू हो गई।
मैंने नाविक को फोन लगाया- अरे बारिश शुरू हो गई है, ऐसा ना हो यह टापू डूब जाए?
वो बोला- शाहब, आप मज़े करो, टापू नहीं डूबेगा।
उसका ऐसा कहने से मैं संतुष्ट हो गया।
बारिश के फुहारों ने आयुषी को ललचा दिया, वो मुझसे बोली- मैं थोड़ा भीग लूँ?
मैंने बोला- हाँ, क्यूँ नहीं।
मेरा इतना कहते ही वो बारिश में चली गई और नहाने लगी। जैसा चंचल उसका मन उससे कहीं चंचल उसका तन जिसे जो देखे उसकी आँखें उसे कभी ना भूल पाएँ।
आखिर मैं तो इन्सान ही हूँ जब किसी चंचल हसीना को देखूँगा मेरा मन तो डोलेगा ही, चाहे वो मेरी बहन आयुषी क्यों ना हो?
उसके भीगते बदन को देख कर मेरे लिंग महाराज ने उठना शुरू कर दिया। वो नादान कहाँ जानती थी कि मेरी स्थिति क्या है, मेरे से बोली- आओ ना भाई, तुम भी नहा लो !
मैंने कहा- मुझे अपने कपड़े गीले नहीं करने।
तो बोली- जब मैं अपनी दो हजार रूपये की साड़ी गीली कर सकती हूँ तो तुम्हें क्यों टेंशन हो रही है?
उसकी बात का कोई जवाब नहीं था मेरे पास फिर भी मैंने अपने कपड़ों को बचाने की कोशिश में कहा- मैं कपड़े गीले नहीं करूँगा।
वो कहाँ मानने वाली थी, बोली- कपड़े उतार कर आ जाओ।
मुझे थोड़ी सी झिझक हुई कि कपड़े उतार कर जाऊँगा तो मेरी फ्रंची चड्डी से लण्ड का उभार कहाँ जायेगा, जो अभी तक आयुषी के भीगते बदन को देखकर पूरी तरह खड़ा हो चुका था।
आयुषी की फिर आवाज़ आई- भैया क्यों शर्मा रहे हो आ जाओ ना?
अब मेरे पास कोई रास्ता नहीं था, मैंने अपने कपड़े उतारे और केवल चड्डी में आयुषी के सामने जाकर नहाने लगा।
आयुषी के बारे में पहले भी बता चुका हूँ मैं आपको फिर भी बता दूँ, बला कि खूबसूरत है वो छरहरा बदन कमर कुछ ज्यादा नहीं बस 28″ होगी लेकिन उसके स्तन 32″ है। मछली आकार लिए हुए उसका शरीर किसी अप्सरा से कम नहीं लगता। वो कहते हैं ना कि हुस्न की कीमत वहाँ होती है जहाँ कद्रदान होते हैं। आयुषी को देख लो कद्रदान तुम अपने आप बन जाओगे।
आयुषी अभी भी बारिश से मज़े ले रही थी, मुझे देखकर बोली- भैया, आज तो मज़ा आ गया, आपने मुझे खुश कर दिया।
वो नादान बारिश में भीग कर अपने को ख़ुशी समझ रही थी, असली ख़ुशी तो अभी बाकी थी। मेरे लंड का उभार चड्डी में साफ़ दिख रहा था तो आयुषी क्यों ना देखे। चूँकि वो शादीशुदा थी तो जानती थी कि मेरी चड्डी के अन्दर क्या है, मुझसे बोली- भैया, मैं आपकी गर्लफ्रेंड नहीं बहन हूँ, अपने आपको कण्ट्रोल करो।
मैं सकपका के बोला- अरे, मैं तो कण्ट्रोल में हूँ तुझे ऐसा क्यूँ लग रहा है?
वो बोली- भैया, आपकी चड्डी बता रही है, उसे संभालो जरा !
मैं क्या कहता, शर्म से मेरा लंड शिथिल होने लगा और मैं एक पेड़ के नीचे बैठ गया, आयुषी अभी भी बारिश से अठखेलियाँ कर रही थी, उसका मन अभी भी बारिश में भीग रहा था, लगता था शायद जैसे उसके शरीर में गर्मी भरी है।
मुझे बैठा देखकर वो बोली- क्या भैया आप भी ना बिल्कुल मज़े नहीं कर रहे हो, मूर्ति बने हुए बैठे हो, देखो तो जरा क्या मौसम है, क्या नज़ारा है, तुम्हें कुछ होता नहीं है क्या?
मैं बोला- आयुषी, कुछ होता है इसलिए तो शांत बैठा हूँ।
आयुषी ने एक प्रश्नवाचक निगाह मेरी तरफ फेंकी और फिर बारिश में मस्त हो गई।
कब तक आखिर कब तक काबू रखता यारो ! क़यामत मेरे सामने थी और मैं मरना नहीं चाह रहा था। भला ऐसा सम्भव है? लिंग महाराज आयुषी को देखकर फिर से खड़े हो गए।
आयुषी की महीन सूती साड़ी से उसका ब्लाऊज़ और पेटीकोट साफ़ नज़र आ रहे थे। उसके ब्लाऊज़ से सफ़ेद रंग की ब्रा भी मेरी आँखों से छुपी नहीं थी, जो उसके मदमस्त और कसे हुए स्तनों को छुपाने में नाकामयाब दिख रही थी।
जब आयुषी जैसी मस्त जवानी सामने हो तो किसका ईमान ना डोले, मेरा भी डोल गया चाहे मैं उसका भाई क्यों ना था। अपने लण्ड को अपनी चड्डी से आजाद करते हुए मैं आयुषी के सामने जा खड़ा हुआ।
आयुषी आँखें फाड़कर मुझे कम मेरे लण्ड को ज्यादा को देखते हुए बोली- यह क्या भैया? मैंने तुम्हें बिल्कुल नंगा होने के लिए नहीं कहा था?
मैंने सारी शर्म-लिहाज छोड़कर आयुषी से कहा- आयुषी, अब बहुत हो गया, मुझे अब तेरी चूत चाहिए, तभी मेरा लण्ड शांत होगा।
“क्या बात करते हो भैया, पागल हो गए हो क्या? अपनी चड्डी पहनो और जाओ यहाँ से !” आयुषी ने थोड़े गुस्से से कहा।
लिंग महाराज जब अपनी पर हों तो वो नहीं देखते कि बहन है या पत्नी।
मैंने आयुषी की बात को अनसुनी करते हुए उसे पकड़ लिया और उसे गले पर चूमने लगा। आयुषी मुझे दूर करने की कोशिश करने लगी- भैया होश में आओ ! भैया, प्लीज़ मुझे छोड़ दो ! मैं आपकी गर्लफ्रेंड नहीं हूँ।
आयुषी की बातों का मेरी वासना पर कहाँ असर होना था, मैंने अपना हाथ बढ़ाकर उसके स्तनों को वासना के भूखे भेड़िये की तरह दबाना शुरू कर दिया।
आयुषी मेरे को अपना भाई होने की याद दिला रही थी और मुझसे अलग होने की कोशिश कर रही थी। मैं वासना में तल्लीन उसकी बात को ना सुनते हुए अपना काम करते-करते उसकी चूत तक पहुँच गया। उसकी पैंटी के ऊपर उसकी चूत को सहलाते हुए जैसे ही मैंने अपनी उंगली उसकी चूत में डाली, मेरे गाल पर एक तेज तमाचा पड़ा।
आयुषी का गुस्सा चरम पर था- तुम भाई हो या राक्षस? देख भी नहीं रहे हो कौन हूँ मैं? तुम्हारी बहन हूँ मैं ! कोई रंडी नहीं जिसे तुम अपनी वासना में डुबाना चाहते हो। मैं तो सोचती थी कि मेरा भाई मेरा बहुत अच्छा दोस्त है, लेकिन मुझे क्या पता था तुम्हें भी औरों की तरह मेरा शरीर ही चाहिए, बहुत बड़ी गलती कर दी मैंने तुम्हारे साथ यहाँ आकर !
ऐसा कह कर वो थोड़ी दूर जाकर एक पेड़ के नीचे बैठ कर रोने लगी।
इतना कुछ होने के बाद लंड महाराज कहाँ खड़े रहने वाले थे बैठ गए वो भी। मैंने अपनी चड्डी पहनी और आयुषी से थोड़ी दूर जाकर पेड़ के नीचे बैठ गया। बारिश भी अब बंद हो चुकी थी। समझ नहीं आ रहा था क्या करूँ?
समय भी शाम के पाँच का हो गया था सो घर जाने की मेरे दिमाग में आई ऐसा सोचते-सोचते मैंने आयुषी के पास जाने के फैसला किया- आयुषी, चलो घर चलो ! मेरी बहुत बड़ी गलती है, हो सके तो मुझे माफ़ कर देना।
आयुषी ने अपने आँसू पौंछे और चुपचाप चल दी।
जहाँ हम थे उसी टापू से नदी की एक छोटी सी धार बह रही थी जिसमें एक आदमी के लेट के नहाने लायक पानी था।
आयुषी कुछ बोले बगैर उसी धार में जा लेटी, एक पत्थर पर सर रखकर उसने पूरा बदन उसी धार में डुबो दिया। धार की रफ़्तार ने …
…ने आयुषी की साड़ी, पेटीकोट को जांघों तक ऊपर कर दिया, मक्खन जैसी जांघें मेरे सामने नंगी थी और आयुषी गुस्से में या किसी मदहोशी में पानी में ऐसे ही पड़ी थी।
आयुषी का अंग-अंग शायद भगवान ने फुर्सत से बनाया था, उसकी जाँघों को देखकर मेरा लण्ड फिर से खड़ा हो गया, जबकि कुछ देर पहले आयुषी ने कितना कुछ कहा था। मैं अपने लण्ड के उभार को अपनी चड्डी में दबाता हुआ आयुषी के पास जाकर बोला- चलो, घर चलते हैं।
आयुषी ने मेरी आँखों में गहराई से देखा और खड़ी हो गई।
मैं चलने लगा।
मेरे पीछे से आयुषी की आवाज़ आई- रुको भैया !
मैंने पीछे देखा, आयुषी बिल्कुल भीगी हुई मेरी तरफ देख रही थी। अगले ही पल जो मैंने सोचा नहीं था वो हो गया। आयुषी ने अपनी साड़ी और पेटीकोट ऊपर कर मेरी आँखों के सामने अपनी पैंटी उतारी और मेरे मुँह पर मार दी, और फिर उसी धार में लेट गई।
मैं उसे एकटक देख रहा था। सोच रहा था कि यह आयुषी का खुला निमंत्रण है या गुस्सा?कुछ देर में ही मुझे जवाब मिल गया। आयुषी ने पानी लेटे-लेटे ही अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए। ब्लाऊज़ और ब्रा फेंकने के बाद उसने अपने स्तन सहलाने शुरू कर दिए।
हे लिंग महादेव ! तेरे को कैसे बस में करूँ, डर रहा था कहीं मेरा चड्डी में ही ना निकल जाए। नज़ारा जो मेरे सामने था वो किसी को भी निपटाने के लिए काफी था।
आयुषी का अब एक हाथ उसकी चूत पर आ चुका था और उसकी हल्के बालों वाली चूत से खेल रहा था।
मैं तो दुनिया से दूर कहीं दूसरी दुनिया में था, तभी आयुषी ने मुझे कहा- अब केवल देखोगे ही या मुझे चोदोगे भी?
उसके ऐसा बोलने के बाद मुझे एहसास हुआ कि मैं कोई सपना नहीं देख रहा हूँ।
मैंने आव देखा ना ताव ! चड्डी उतारी और पागल कुत्ते की तरह जाकर आयुषी की चूत को चाटने लगा।
आयुषी जो पहले से मस्त हो चुकी थी बोली- भैया, तुम से चुदाने की सोचकर ही मैं यहाँ आई थी, तुम्हें पता है कि अमित (आयुषी का पति जो कि बी एस एफ में है) 6 महीने से यहाँ नहीं आया, मेरी चूत में बहुत जोर की खुजली हो रही थी, तीन महीने से उंगली से काम चला रही थी, लेकिन तुमने जिस तरह जल्दी से मुझे चोदना चाहा वो अच्छा नहीं लगा। अब मैं तुम्हारी हूँ मेरी चूत तुम्हारी है जम कर चोदो।
उसके ऐसा कहते ही मेरे में एक नई जवानी दौड़ आई और मैंने उसको लगभग उसको उसकी टांगों से उठाकर उल्टा करते हुए खड़े होकर उसकी चूत में लण्ड पेल दिया।
अब क्या था, लण्ड गया तो अब कहाँ आयुषी बहन ?
“साली, कुतिया बहुत परेशान किया तूने अपनी चूत के लिए !”
आयुषी- तू पागल था साले ! चूत तो तेरी ही थी, जब चाहता तब ले लेता !
मैं- आज नहीं छोड़ूगा तुझे, तेरी चूत की प्यास बुझा दूँगा।
ऐसा कहते हुए मैंने उसको घोड़ी बना दिया और अपना जानवर की तरह उसकी कसी चूत में पेलता रहा।
आयुषी की चुदाई कई तरीके से करने के बाद मैंने नाविक को बुला लिया। आयुषी अभी भी नंगी पानी में लगभग बेहोश सी पड़ी थी।
नाविक ने आते ही मुझे बाद में आयुषी को पहले देखा बोला- शाहब, जगह कैसी थी?
मैंने कहा- बहुत अच्छी ! तुझे इनाम देने को मन कर रहा है !
नाविक घिघिया कर बोला- जैसी आपकी इच्छा शाहब।
उसे नहीं पता था कि उसे इनाम क्या मिल रहा है।
मैंने आयुषी की तरफ इशारा करते हुए कहा- जा, यह तेरा इनाम है !
उसने नंगी पड़ी आयुषी तीन बार चोदा।
वो बहुत खुश हुआ, उसने मेरे से पैसे भी नहीं लिए। आयुषी और हम रात नौ बजे घर पहुँचे तब तक उसको होश आया !
[email protected]
What did you think of this story??
Comments