बेटा और देवर-1

(Beta Aur Devar- Part 1)

Antarvasna 2007-01-17 Comments

मेरी योनि के अन्दर घूमती उंगली ने मुझे मदहोश कर रखा था… स्स्स्स्सईई मेरी सिसकारी निकलने लगी… वो धीरे धीरे उन्गली अन्दर बाहर कर रहा था… पर मैं इतनी मस्त हो गई थी कि ना तो एक उंगली से गुजारा हो रहा था और ना ही इतनी कम स्पीड में अब मजा आ रहा था…

आज इन को क्या हो गया? इतनी देर से एक ही उंगली से करे जा रहे थे और वो भी इतनी धीरे धीरे… मेरी कामुकता इतनी बढ़ गई थी कि मैंने अपने आप ही उनकी दो उंगलियाँ पकड़ कर अपनी चूत में घुसेड़ कर जोर जोर से पेलने के लिये जैसे ही उनका हाथ पकड़ा… मैं सन्न रह गई… यह तो बड़ा मुलायम सा हाथ था… मेरे पति का हाथ तो घने बालों से भरा पड़ा है.

तभी मेरा दिमाग झन्नाया… मुझे याद आया कि मैं तो अपने एक रिश्तेदार के घर शादी में शामिल होने आई थी और खाली जगह देख कर कोने में सो गई थी। कमरे में अन्धेरा था, मैंने उसके हाथ को पकड़ कर दूर करना चाहा लेकिन मैं उस की ताकत के सामने हार गई, मेरा बदन कांपने लगा।

इस कमरे में तो मेरे आने से पहले तीन औरतें और एक छोटा सा बच्चा सो रहा था और कमरे में लाइट जल रही थी तो फ़िर यह कौन है? कब अन्दर आया और इतनी हिम्मत कर ली कि मेरे साथ यह सब?

मैं उस को पहचानने के लिये अपना हाथ उसके चेहरे पर ले गई तो वो मेरे कान में फ़ुसफ़ुसाया- मम्मी, मैं हूं बिल्लू!
मैं सन्न रह गई… यह मेरा अपना 12वीं में पढ़ने वाला 18 साल का बेटा ही मेरी चूत में उंगली घुसेड़ कर मज़े लूट रहा था।
“कमीने, यह तू क्या कर रहा है… शरम नहीं आती… अपनी माँ के साथ…? चल हटा अपना हाथ!” मैं उसके कान में फ़ुसफ़ुसाई।
“मम्मी, प्लीज… अब रहने दो ना… मजा आ रहा है।”

मैंने उसको समझाने की पूरी कोशिश की लेकिन वो अपनी जिद पर अड़ा रहा तो मैंने उस को जो कुछ भी करना है जल्दी करने को कहा।
बिना वक्त गवांये वो मेरे ऊपर आया… मेरी गीली चूत पर अपना लण्ड रखते ही धक्के मारने चालू किये, 6-7 धक्कों के बाद वो शान्त हो गया।

अगले दिन 11 बजे ऑटो से मैं और बबलू घर आये, रास्ते में हमारे बीच कोई बातचीत नहीं हुई। चूंकि उस दिन वर्किंग-डे था सो बबलू के पापा पड़ोस में चाबी देकर गये थे, पड़ोस से चाबी ले कर दरवाजा खोलने के बाद मैं अपने बेडरूम में गई और बबलू अपने रूम में। बैग से कपड़े निकाल कर मैं बाथरूम में चली गई।

कपड़े धोने और नहाने के बाद मैं हमेशा की तरह पेटिकोट और ब्लाउज पहनकर अपने बेडरूम में साड़ी पहनने के लिये गई। साड़ी पहनने से पहले मैं आगे की तरफ़ झुक कर तौलिए से अपने बाल सुखा रही थी कि तभी किसी ने पीछे से आ कर मेरी दोनों चूचियाँ जोर से भींच ली, उस का तने हुये लण्ड का स्पर्श मैंने अपनी गांड की दरार पर महसूस किया।
एक सेकेन्ड के लिये चौंकी… फ़िर अहसास हुआ कि बबलू के अलावा घर में कोई और है भी नहीं…

मैंने गुस्से में पलट कर जोर से उसके गाल पर एक जबरदस्त तमाचा जड़ा। उसने मेरी चूचियाँ इतनी जोर से दबाई थी कि मेरे आंसू निकल गये। वो मेरे तमाचे से बौखला गया… उसका चेहरा लाल हो गया… और जोर से चिल्ला कर बोला- चाचा से तो खूब करवाती हो… चिल्ला चिल्ला कर… मैं भी तो वही कर रहा था… फ़िर मारा क्यों…??

उस की बात सुनकर मेरी जबान कुछ कहने से पहले मेरे हलक में अटक गई… मैं फटी आंखों से उस को देखती रही… मैं अवाक रह गई।
“बोलो ना! अब क्यों नहीं बोलती कुछ?” उसने गुस्से में कहा।

थोड़ी देर खामोश रहने के बाद मैंने थोड़े गुस्से और थोड़े प्यार के लहजे में उस से कहा- क्या बकवास कर रहा है तू? कौन चाचा और कैसा चाचा?
“सहारनपुर वाले चाचा और कौन? जब वो पिछली बार जब वो दोपहर में आये थे, मैंने सब अपनी आखों से देखा था… पहले दिन अपने बेडरूम में और आपने जबरदस्ती उन को एक दिन और रोका था… वही करने के लिये और दूसरे दिन गेस्ट रूम में…! मैंने दोनों दिन देखा था और उन के जाने के बाद आप बहुत उदास भी हुई थी।” उस ने उसी गुस्से वाले अन्दाज में कहा।

मेरे पैर काम्पने लगे… मैं सिर झुका कर बेड पर बैठकर सोचने लगी… अब क्या करूं…???
उसको समझाने के लिये हिम्मत कर मैंने उस की तरफ़ देखा… पर उस की निगाहें दूसरी जगह टिकी देख मैंने अपने पेट के नीचे देखा… मेरे पेटिकोट के नाड़ेघर के पास के कट की सिलाई उधड़ी होने के कारण मेरा पूरा झांट प्रदेश साफ साफ दिखाई दे रहा था।

मैं जल्दी से उस जगह पर अपना हाथ रख कर खड़ी हुई और पेटीकोट को घुमा कर नाड़ेघर को साइड में कर उसको पकड़ कर अपने साथ बिस्तर पर बिठाया और उस को समझने लगी- देख, देवर भाभी और जीजा साली के रिश्ते में कभी कभी ऐसा हो जाता है… पर तू तो मेरा बेटा है… मां बेटे के रिश्ते में यह सब पाप होता है… गाली भी होती है।
“झूठ मत बोलो मम्मी! राजू भी तो अपनी मम्मी के साथ कभी कभी करता है।” बबलू ने झल्ला कर कहा।
राजू बबलू की बुआ का लड़का जो बबलू से एक साल छोटा है.

इस बात से मैं और चौंकी और पूछा- तुझे कैसे पता ये सब…?

वो जब रात को सोने की जगह नहीं मिली तो राजू और मैं उस कमरे में गये जहाँ आप सो रही थी… आप का एक पैर मुड़कर एक साइड में और दूसरा पैर सीधा था, जिस वजह से आपकी साड़ी पूरी ऊपर सरकी हुई थी और पूरी नंगी लेटी हुई थी। मैंने जल्दी से लाइट बन्द की और राजू का हाथ पकड़ कर नीचे ले गया। राजू ने नीचे आकर कहा कि आप की चूत बहुत सुन्दर है और उसकी मम्मी की तरह काली नहीं है।

जब मैंने उस से पूछा कि तेरी मम्मी तो गोरी है तो फ़िर उनकी चूत काली कैसे हो गई? और तुझे कैसे पता?
तो उसने बताया कि पहले वो छुप छुप कर गुसलखाने में नहाते समय दरवाजे के नीचे की झिरी से देखता था और एक दिन उसकी मम्मी ने उसको पकड़ लिया और तब से वो कभी कभी अपनी मम्मी के साथ वही करता है जो चाचा ने आपके साथ किया था। उसने यह भी बताया कि उन के पड़ोस में रहने वाले जडेजा अंकल के साथ भी उस की मम्मी वही करती है।

उस ने मुझ से कहा कि मैं ऊपर जा कर चुपचाप आप की बगल में लेट जांऊ और अपनी उंगली में थूक लगा कर आप की चूत में डाल कर धीरे-धीरे घुमाऊँ… फ़िर आप अपने आप मुझे अपने ऊपर लिटा कर करने को कहोगी… लेकिन आपने तो ऐसा कुछ नहीं किया… उलटा रात को मेरा हाथ झटक दिया और अभी मेरे गाल पर तमाचा जड़ दिया…क्यों??

अब मैं उस को क्या जवाब देती…? कुछ समझ में नहीं आया। अपनी उस गलती को याद करने लगी जब घर में उसके होते मैंने अपने देवर से… पर मैं करती भी क्या…? मेरे देवर का लण्ड था ही ऐसा जो एक बार देख ले चुदाये बिना रहना मुश्किल और एक बार चुदवा लिया तो जहन में आते ही चूत कुलबुलाने लगती है।

मेरी शादी के चार या पांच महीने बाद एक दिन सहारनपुर में उन्हीं के घर में मौका पाकर उसने मुझ से सम्बन्ध बनाने चाहे…
मेरे टालमटोल करने के बावजूद उसने एक रात मेरे कमरे में आ कर अपनी हसरत पूरी करनी चाही… और पूरी हो भी गई लेकिन बेचारे को आधे में ही भागना पड़ा क्योंकि दूसरे कमरे में लाइट जलने पर वो मेरे ऊपर से उतर कर बाहर भाग गया था। जिस कमरे में मैं सोई थी और बगल वाले कमरे (देवर और उनकी बहन का कमरा) के बीच में छत के पास एक रोशनदान था जहाँ से लाइट जलने का पता चला।

उस रात जो आठ दस धक्के मेरी चूत पर पड़े थे, उन को मैं आज तक नहीं भूल पाई हूँ। ऐसा लग रहा था जैसे एक के पीछे एक दो दो लण्ड अन्दर जा रहे हों और बाहर निकल रहे हों। एक दिन पहले पीरियड से फ़्री होने के कारण ठुकाई के लिये आतुर मेरी चूत और ऊपर से आठ दस धक्कों की रगड़ से और भड़की आग की तड़प से मैं पूरी रात सो नहीं पाई थी।

एक हफ्ता वहाँ रहते हुये हम दोनों ने बहुत कोशिश की लेकिन असफलता ही हाथ लगी और एक दिन मेरे पति आ कर मुझे अपने साथ दिल्ली ले आये।

आज से दो महीने पहले (जिस दिन की याद बबलू ने आज दिलाई) दोपहर को खाने के वक्त वो हमारे घर आये अपनी लड़की से कोई कोर्स करवाने के सिलसिले में मेरे पति से सलाह लेने!

उसको देखते ही मेरी काम पिपासा जाग गई… अठारह साल पहले पड़े आठ दस धक्कों की रगड़ याद आते ही चूत रानी मस्तानी हो चली थी। मेरे पति उस वक्त आफिस गये थे। बबलू खाना खाकर अपने कमरे में लेटा था। मैंने दो थालियों में खाना परोस कर डायनिंग टेबल पर रखा और दोनों (देवर और मैं) बैठकर खाना खाने लगे।

खाना खाते खाते मेरी निगाह बार-बार उसकी टांगों के बीच अटक जाती, जिसे भांप कर देवर ने मेरे पैर पर पैर मारा… मैंने जब उसकी तरफ़ देखा तो उसने मैक्सी ऊपर सरकाने का इशारा किया।

मैंने आंख और सिर हिला कर नहीं में इशारा किया तो वो कुर्सी और नजदीक खिसका कर अपना एक पैर मेरी मैक्सी के अन्दर डालकर मेरी टांगों के बीच में लाकर पैर के अंगूठे से मेरी चूत टटोलने लगा… और उसके आग्रह पर मैंने कुर्सी से उठकर अपनी मैक्सी ऊपर कर उसको अपनी… के दर्शन कराये और बैठ कर खाना खाने लगी।

मेरा देवर तेज दिमाग वाला इंसान है, उसने लुंगी के नीचे कुछ नहीं पहना था, वो बीच में से लुंगी फ़ैलाकर अपने अजूबे लण्ड को निकाल कर मेरी तरफ़ देखते देखते खाना खाने लगा। खाना खत्म करने के बाद मैं किचन से आम लेकर आई।

किचन का काम निपटा कर मैं बाहर आकर उसके पास बैठ कर उसके घर परिवार के बारे में जानकारी लेने लगी।
“तुम बैठक में जाकर सो जाओ, मैं अपने कमरे में जाकर थोड़ा सुस्ता लूं!” कहते हुये जैसे ही मैं उठी, उस ने खींच कर मुझे अपनी गोद में बिठा लिया, एक हाथ से मेरी एक चूची दबा दी।

“पागल हो गये हो देवर जी! जवान लड़का घर में है… छोड़ो ना…” मैंने विनती की।
उसने मुझे छोड़ दिया। मैं उठ कर अपने कमरे में चली गई। अन्दर जा कर मुझे पछतावा होने लगा। अठारह साल बाद ऊपर वाले ने मौका दिया था और मैंने गंवा दिया। मैं कुछ सोच कर पलटी ही थी कि देवर ने मुझे अपनी बाहों में ले लिया।

मन ही मन बल्लियों उछलते हुये मैंने नाटक करते हुये कहा- रुको देवर जी, मैं बबलू को देख कर आती हूँ।
“उसकी चिन्ता तुम मत करो मेरी जानेमन भाभी… मैं देख कर आया हूँ… वो अपने बिस्तर पर उल्टा हो कर सो रहा है।”
“छोड़ो तो सही… दरवाजा तो बन्द कर दूं!” मैंने कहा।

देवर बाहों में पकड़े पकड़े मुझे दरवाजे के पास लाया, अपने आप कुन्डी बन्द की और उसी अवस्था में ले कर बिस्तर पर आया… मुझे लिटाया… मेरी मैक्सी ऊपर सरका कर मेरे पैरों को फ़ैलाया और एक झटके में मेरी चूत की चुम्मी ले कर बोला- सच भाभी, भगवान की कसम, इन अठारह सालों तक कैसे कैसे बरदाश्त किया… उस दिन जल्दी जल्दी में कुछ मजा नहीं आया और मैंने तो तुम्हारी फ़ुद्दी के दर्शन भी नहीं किये थे।

मेरी चूत रस भरी की तरह अन्दर से भर चुकी थी, मैं किसी तरह भींच भींच कर पानी को बाहर निकलने से रोक रही थी। मैं आज तसल्ली से उसके लण्ड को देखना चाहती थी कि उस का आकार ऐसा क्यों है…??

मैं उठ कर बैठते ही अपना हाथ लम्बा कर उसकी लुन्गी के अन्दर ले गई… उसके लण्ड को पकड़कर लुन्गी से बाहर निकाल कर नजदीक से देखने लगी।

उसके लण्ड का टोपा नुकीला, टोपा खत्म होते ही (रिंग के पास से) फूला हुआ, 2 1/2 इंच के बाद जैसे 1/2 इंच की गांठ बंधी हो (पूछने पर देवर ने बताया कि बचपन में फोल्डिन्ग पलंग में उसकी लुली फंस गई थी, सात टांके आये थे, जिस कारण टांके वाली जगह से वो एक दम पतला और गिठा के आकार का हो गया था), उसके बाद तीन इंच पीछे की तरफ़ मोटा और जड़ के पास से आधा इंच पतला यानी कुल मिला कर करीब सात इंच लम्बा।

आज मुझे पता चला कि जिस रोज अठारह साल पहले इसने पहली बार मेरी चूत में डाला था उस वक्त मुझे क्यों अजीब लग था।

मेरे हाथ में ही उसका लण्ड झटके मारने लगा… इधर बैठे-बैठे मेरी चूत से फ़क से पानी पेशाब की तरह बाहर निकल गया और मेरे नीचे बेड सीट गीली हो गई। मेरी वासना पूरी तरह जाग चुकी थी…मैं बेड पर लेटी और बोली- आओ ना देवर जी… जल्दी करो… कहीं बबलू जाग ना जाये।
मैं आज अठारह साल पहले की भड़की आग को शान्त करना चाहती थी तसल्ली से।

देवर ने नीचे खड़े-खड़े मेरी चूत पर हाथ फ़ेरते हुये एक उंगली अन्दर सरका दी।
मैं बरदाश्त नहीं कर पाई… मैं समय बरबाद नहीं करना चाहती थी… उस को जोर से खींचते हुये मैंने अपने ऊपर लिटा कर कहा- बड़े कमीने हो तुम…! करते क्यों नहीं…??
“इतनी जल्दी क्या है मेरी जान…? तुमने तो मेरा तसल्ली से देख लिया… मैं भी तो देखूँ अपनी भाभी की मस्तानी फ़ुद्दी को…” वो बड़े इत्मिनान से बोला।

मेरी चूत से लगातार बूंद बूंद कर पानी रिस रहा था। हर औरत समझ सकती है कि ऐसा कब होता है और ऐसा होने पर अगर लण्ड नहीं मिले तो वो कुछ भी कर सकती है… कुछ भी। पर मैंने प्यार से काम लेना ही ठीक समझा और उसकी छाती पर उंगली फेरते हुए कहा- एक बार कर लो ना… फ़िर जी भर के देख लेना मेरे राजा।
“क्या कहा भाभी… जरा एक बार फिर बोलना जरा!” देवर बोला।

“मेरे राजा… एक… बार… कर लो… मेरी नीचे वाली तड़प रही है… उसके बाद जी भर कर जैसे मर्जी हो देखते रहना…” आधा बेशर्मी और आधा शरमाते हुये मैंने कहा और उसकी छाती में अपना मुँह छुपा लिया।
देवर- हाय मेरी जान… मुझे पता है तुम्हारी फ़ुद्दी टपक रही है… एक बार देखने दो…
मुझे खीज सी होने लगी थी- क्या है देवर जी… तंग मत करो ना… बोला तो है एक बार कर लो फिर जितना मर्जी देख लेना… कहते हुये मैं लेटे लेटे नीचे से अपने आप को एडजस्ट करने के बाद फ़िर कहा- अब नहीं सहा जा रहा है देवर जी… क्यों मेरा मजा खराब कर रहे हो… करो ना… नहीं तो मैं ऐसे ही झड़ जाऊँगी…

“अच्छा यह बात है!” कहते हुये देवर ने पहले मेरी चूत के बाहर रिसे प्री-कम से अपने लण्ड के टोपे को गीला किया और फ़िर रखते ही गपा…क से घुसेड़ दिया।

मैं शायद इसी वक्त के लिये अटकी थी… मैं तो नीचे से फ़ुदकने लगी… आआआआ अभी आधा लण्ड ही अन्दर घुसा था कि मैं तो झड़ गई। मेरा मूड खराब हो गया…
मेरा बिगड़ा चेहरा देख देवर बोला- अब क्या हुआ…? जो तुम चाहती थी, वो तो हो गया फ़िर…

“बहुत गन्दे और कमीने हो तुम देवर जी!” मैंने कहा- कब से बोल रही थी… तुम हो कि माने ही नहीं, अब तुम भी जल्दी से अपना पानी झाड़ो और दूसरे कमरे में चले जाओ।
“पर हुआ क्या, कुछ बताओगी भी?” देवर ने पूछा।
“मैं तुम्हारे डंडे के साथ मज़े लेना चाहती थी पर तुमने तो सारा काम ही खराब कर दिया!” मैंने कहा।
“बस इतनी सी बात…! अरे मेरी जान…! सब्र करो! ऐसा मजा दूंगा कि भाई साहब को भूल जाओगी और सपने में भी याद करोगी तो चूत से पानी टपकेगा!” देवर ने कहा।

मेरे ऊपर से उतरने के बाद उसने मेरी मैक्सी से मेरी चूत को साफ़ किया और दोनों पैरों के बीच में आने के बाद मेरे चूतड़ों के नीचे अपनी दोनों हथेलियों को रख कर अपना मुँह मेरी चूत पर रखकर चाटने लगा। कुछ ही पलों में मैं उत्तेजित हो गई… चूत चटवाने का यह मेरा पहला अनुभव था… लाजवाब अनुभव!
मेरी चूत के अन्दर फ़िर से सरसराहट होने लगी।

आगे क्या हुआ? जानने के लिए कहानी का अगला भाग : बेटा और देवर-2

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