घर के लौड़े-7
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Ghar ke Laude-7
रानी- बस ज़्यादा तेवर मत दिखाओ… मैं जानती हूँ तू यहाँ क्यों आया है। अब चुपचाप अपना काम कर और चलता बन मुझे नींद आ रही है।
विजय- क.. कौन सा काम?
रानी- इतना भी पागल मत बन.. आधी रात को तू मेरे कमरे में क्या माँ चुदाने आया है… साला बहनचोद.. मुझे चोदने आया है ना.. तो क्यों बेकार में वक्त खराब कर रहा है.. चल निकल अपने कपड़े.. आज तुझे असली मज़ा देती हूँ। तेरे हरामी बाप ने कल से लेकर आज
तक मुझे इतना बेशर्म बना दिया है कि एक रंडी भी अपने ग्राहक को इतना मज़ा नहीं देती होगी जितना मैं तुझे आज दूँगी।
अब विजय के पास बोलने को कुछ नहीं था वो चुपचाप बिस्तर पर बैठ गया। मैं उसके पास गई और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए।
दो मिनट के चुम्बन के बाद विजय मेरे मम्मों को दबाने लगा, मेरी चूत को सहलाने लगा।
मैं भी कहाँ पीछे रहने वाली थी, मैंने उसके लौड़े को पजामे के ऊपर से दबाने लगी।
विजय- उफ साली वाकयी में तू बड़ी गजब की चीज है… चल अब नंगी हो जा अब बर्दाश्त नहीं हो रहा है।
हम दोनों नंगे होकर बिस्तर पर लेट गए और एक-दूसरे को चूमने, चूसने लगे। विजय का लंड फुंफकारने लगा, तब मैंने झट से उसको
मुँह में ले लिया और बड़ी अदा के साथ उसको चूसने लगी।
विजय- उफ़फ्फ़ आह कक साली.. आहह.. मज़ा आ गया ओए.. काट मत अईए.. हरामजादी क्या हो गया तुझे.. आहह.. ला मुझे भी तेरी चूत का स्वाद चखने दे उई..
मैं लौड़े को मुँह से निकाले बिना ही घूम गई और विजय के ऊपर आ गई। अब मेरी चूत विजय के मुँह पर थी, जिसे वो बड़ी बेदर्दी से चूसने लगा था।
करीब 15 मिनट तक ये चूत और लंड चुसाई का प्रोग्राम चलता रहा। अब तो विजय का लौड़ा लोहे की रॉड जैसा सख़्त हो गया था और मेरी चूत आग की भट्टी की तरह जल रही थी।
मैंने लौड़े को मुँह से निकाला और घूमकर लौड़े पर बैठ गई.. ‘फच’ की आवाज़ के साथ पूरा लौड़ा मेरी चूत में समा गया।
एक हल्की सिसकी के साथ मैं आसमानों में पहुँच गई।
लगातार दस मिनट तक मैं लौड़े पर कूदती रही.. विजय अपना आपा खो बैठा और मेरी चूत में झड़ गया। उसके साथ ही मेरा भी फव्वारा निकल गया। हम दोनों एक-दूसरे को देख कर मुस्कुराने लगे।
रानी- क्यों भाई.. मज़ा आया ना?
विजय- उफ़फ्फ़ तू मज़े की बात कर रही है… मुझे समझ नहीं आ रहा मैंने कौन से अच्छे काम किए थे… जो घर बैठे तुझ जैसी कमसिन कली मुझे चोदने को मिल गई। अब तो रोज रात तेरी चूत और गाण्ड के मज़े लूँगा… साली क्या गाण्ड है तेरी… सच कहूँ तेरी चूत से ज़्यादा गाण्ड मस्त है।
रानी- ओ मेरे प्यारे भाई.. तो रोका किसने है.. अब मैं पूरी आप की ही हूँ जब चाहे चोद लेना… आ जाओ अब गाण्ड भी मार लो… मन की मन में मत रखो।
विजय- अरे साली रुक तो अभी लौड़ा ठंडा हुआ है.. इतनी जल्दी कहाँ इसमें रस आएगा थोड़ा सबर कर…
रानी- अरे भाई क्या बात करते हो.. मेरे होते हुए ये कैसे ठंडा पड़ सकता है.. अभी तुमने अपनी बहन का कमाल कहाँ देखा है… पापा ने मुझे सब सिखा दिया है कि सोए लंड को कैसे जगाया जाता है।
विजय- अच्छा दिखाओ तो अपना कमाल.. एक बात तो है पापा हैं बड़े ठरकी… एक ही दिन में तुझे पक्की रंडी बना दिया। मैं तो शाम को ही समझ गया था जब पापा ने तेरी तारीफ की थी।
रानी- हाँ ये बात तो है.. पापा बड़े हरामी हैं.. लेकिन चुदाई का उनका तरीका ऐसा है कि कोई भी लड़की उनको ना नहीं बोल सकती… क्या आराम से चोदते हैं, कसम से मज़ा आ जाता है।
विजय- चल अब तू पापा के गीत गाना बन्द कर और अपना कमाल दिखा… मैं भी तो देखूँ ऐसा कौन सा जादू करेगी तू… कि इतनी जल्दी मेरा सोया लंड खड़ा हो जाएगा।
मैंने एक हल्की सी मुस्कान दी और विजय के लौड़े के सुपारे पर अपनी जीभ घुमाने लगी.. साथ ही मैं उसकी गोटियों को सहलाने लगी। कभी लंड को मुँह में लेकर चूसती तो कभी उसके गोटियों को मुँह में लेकर चूसती..
विजय की हालत खराब हो गई। कुल 5 ही मिनट में उसका लौड़ा पिलपिले आम से कड़क केला बन गया।
विजय- अरे वाहह.. मेरी रानी तूने तो कमाल कर दिया.. चल अब घोड़ी बन जा। तेरी गाण्ड आज बड़े प्यार से मारूँगा।
मैं घोड़ी बन गई और विजय ने अपना लौड़ा मेरी गाण्ड में घुसा दिया।
उफ़फ्फ़.. कितना मज़ा आया मुझे.. आपको क्या बताऊँ।
दोस्तों गाण्ड मारने के बाद विजय ने दो बार और मेरी चूत और गाण्ड मारी। मेरे जिस्म में अब ज़रा भी ताक़त नहीं बची थी.. मैं थक कर चूर हो गई। विजय भी निढाल सा होकर वहीं ढेर हो गया था।
हम दोनों की कब आँख लग गई पता भी नहीं चला। सुबह 6 बजे मेरी आँख खुली तो मैंने जल्दी से विजय को उठाया और खुद गुसलखाने में घुस गई।
करीब आधा घंटा बाद जब मैं बाहर आई तो मैंने देखा कि विजय जा चुका था। मैं भी अपने काम में लग गई।
सुबह का दिन तो सामान्य गुजरा फिर वही शाम आई और आज अजय सबसे पहले आ गया। मैंने उसको खुश कर दिया। उससे दो बार चूत और गाण्ड मरवाई, फिर रात को पापा और विजय ने मज़े लिए।
दोस्तों अब रोज-रोज की चुदाई का क्या हाल बताऊँ आप को.. बस यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहा।
अब तो मैं लंड की आदी हो गई थी।
उफ़फ्फ़ सॉरी.. लंड की नहीं लंडों की.. अब ये घर के लौड़े मेरी जिंदगी बन गए थे।
करीब दो महीने तक यह सिलसिला चलता रहा तीनों ने मिलकर मेरी चूत का भोसड़ा और गाण्ड को गड्डा बना दिया था मगर एक बात है अब तक तीनों एक-दूसरे से छुपे हुए थे।
ख़ासकर अजय को पापा के बारे में कुछ पता नहीं था। अब तो मेरे मज़े ही मज़े थे, घर का काम तो आज भी मैं ही कर रही हूँ।
हाँ.. मगर अब कोई ना कोई मेरी मदद कर देता है.. जैसे कि अजय आया और उसका मन है चोदने का तो मैंने कह देती हूँ कि कपड़े धोने में मेरी मदद करो.. ताकि मैं जल्दी फ्री हो जाऊँ और हम मज़े से चुदाई कर सकें और हाँ.. अब तो कोई ना कोई मेरे लिए तोहफा भी ले आता.. अच्छे कपड़े और ब्रा पैन्टी सब कुछ जो मैं चाहती हूँ।
विजय ने मुझे ब्लू-फिल्म भी दिखाई उसमें एक साथ दो आदमी एक लड़की को चोद रहे थे। मेरा बहुत मन हुआ और मैंने एक प्लान बनाया।
जब 28 नवम्बर की शाम, मैं घर में अकेली थी, तभी अजय वहाँ आ गया और उसने मुझे अपनी बाँहों में ले लिया।
रानी- अरे रूको ना… क्या कर रहे हो.. हटो अभी नहीं…
अजय- मेरी जान.. कसम से बाहर एक मस्त कंटीला माल देख कर लौड़ा फुंफकार मारने लगा.. अब वो तो मेरे कहाँ हाथ आने वाली है..
इसलिए तेरे पास आ गया.. चल आजा.. अब ठंडा कर दे मुझे.. उसके बाद जो तेरी मर्ज़ी वो करना…
रानी- अच्छा साले यह बात है बाहर से गर्म होकर यहाँ ठंडा होने आया है.. चल हट.. नहीं चुदवाती मैं.. पहले मेरा एक काम करो..
अजय- तू जो बोलेगी मैं कर दूँगा लेकिन प्लीज़ पहले चुदवा ले ना यार…
रानी- नहीं.. बोला ना.. पहले मेरा काम उसके बाद चुदाई…
अजय- अच्छा बोल.. साली तू नाटक बहुत करती है आजकल…
रानी- देख तू तो जानता ही है कि तुम दोनों भाई मुझे चोदते हो.. शाम को तुम, रात को वो.. मैंने एक ब्लू-फिल्म देखी है, उसमें दो आदमी एक साथ लौड़ा डालते हैं.. मुझे वैसे ही चुदना है। अब तू बोल क्या बोलता है?
अजय- साली.. तू पागल हो गई क्या? मैं भाई के साथ तुझे कैसे चोद सकता हूँ नहीं.. नहीं.. ये ठीक नहीं होगा…
रानी- अरे डरता क्यों है? मैंने विजय से बात कर ली है.. उसी ने कहा है कि मैं तेरे को राज़ी कर लूँ और तू सोच कर देख कितना मज़ा आएगा…
अजय- क्या भाई ने ऐसा कहा.. तब तो ठीक है और हाँ मज़ा तो बहुत आएगा यार.. मगर कब और कैसे हम चुदाई करेंगे?
रानी- वो सब तू मेरे पर छोड़ दे.. बस मैं जब कहूँ तू तैयार रहना और हाँ विजय से इस बारे में अभी कोई बात मत करना.. पहले मैं कोई अच्छा सा दिन देखूँगी उसके बाद हम ये सब करेंगे ओके..
अजय- ओके.. मेरी रानी.. अब तो आजा.. मेरे लौड़े में तनाव बढ़ता जा रहा है।
रानी- अरे मेरे राजा भाई.. फिकर क्यों करता है.. मैं हूँ ना.. आज तू मेरे मुँह को चोद कर पानी निकाल ले… मेरी चूत ने लाल झंडी दिखा रखी है हा हा हा हा…
अजय- हट साली.. ये क्या हर महीने का तेरा नाटक है.. चल एक काम कर चूत नहीं तो गाण्ड ही सही.. निकाल कपड़े।
रानी- नहीं भाई… समझो आज चूत पूरी खून फेंक रही है.. कपड़े निकाले तो गड़बड़ हो ज़ाएगी।
अजय- ओह्ह.. ले देख मेरा लंड कैसे तरस रहा है.. अब मुँह से ही सही.. ले चूस.. मेरी जान.. आज तो तेरे मुँह को चोद कर ही काम चला लूँगा।
मैंने बड़े प्यार से अजय के लंड को चूसना शुरू कर दिया। अजय को मज़ा आने लगा, तब मैंने होंठ कस कर बंद कर लिए और उसको इशारा किया कि अब झटके मार..। वो कहाँ पीछे रहने वाला था.. लग गया मेरे मुँह को दे दनादन चोदने और दस मिनट में मेरे मुँह में झड़ गया।
अजय- आहह उईईइ उफ़फ्फ़.. साली तेरी इसी अदा पर तो मैं फिदा हूँ.. क्या मज़ा दिया है.. लगा ही नहीं कि मुँह को चोदा है… साली चूत से ज़्यादा मज़ा दे दिया तूने.. तो वाहह.. मेरी राण्ड बहना.. क्या मज़ा आया मुझे.. चल आज तेरे को आइस्क्रीम लाकर देता हूँ.. बस अभी गया और मेरी प्यारी रानी के लिए आइस्क्रीम लाया।
अजय के जाने के बाद मैं रात के खाने की तैयारी में लग गई।
लगभग 15 मिनट बाद अजय चॉकलेट की आइस्क्रीम ले आया, हमने मज़े से वो खाई।
कहानी जारी रहेगी।
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