रिश्तेदारी में कुंवारी लड़की की बुर चुदाई- 1
(Dehati Chudai Ki Kahani Hindi Me)
देहाती चुदाई की कहानी में पढ़ें कि मैं अपनी मामी की बहन के घर अपनी फुफेरी बहन का रिश्ता लेकर गया. मामी की बहन मुझसे पहले ही चुद चुकी थी.
दोस्तो, मैं भगवानदास उर्फ़ भोगु एक बार फिर से आपकी सेवा में हाजिर हूँ.
आपको मेरी पिछली सेक्स कहानी
ममेरे भाई बहनों की रातभर चोदम चोद चली
व उससे पहले की कहानियों के जरिए मालूम हो चुका था कि किशोरावस्था से ही महिलाएं अपनी वासना पूरी करने हेतु मुझे इस्तेमाल करती रहीं.
इसलिए मैं चूत का आशिक बन गया था और घर बाहर हर जगह मैं चूत की सम्भावना तलाशता रहता था.
मैं सामान्य डील-डौल का 7 इंच लम्बा लंडधारी साधारण नवयुवक हूँ. कुछ तो बात जरूर है कि दोस्तों और रिश्तेदारों में मैं नारियों को वशीभूत कर लेता हूँ.
महिलाओं के बीच मैं काफी मशहूर हूँ इसलिए अपने दोस्तों और रिश्तेदारों में चोदने के लिए मुझे कोई न कोई चूत मिल ही जाती रही.
कभी कभी कोई महिला अपनी काम वासना में असंतुष्ट सहेली या भाभी दीदी को भी शामिल करा लेती रही.
अपनी मेरी एक सेक्स कहानी
मौसेरे, फुफेरे भाई बहनों की खुली चुदाई
में आपने पढ़ा था कि एक कमरे में दो फुफेरे भाइयों ने अपनी तीन मौसेरी और सगी बहनों के साथ मिल कर सेक्स का धमाल किया था.
अब आगे इसी संदर्भ में एक बार जीवन की एक और सच्ची देसी सेक्स कहानी लेकर हाजिर हूं.
यह देहाती चुदाई की कहानी तब की है जब मैं अपनी फुफेरी बहन रीना के रिश्ते की बात लेकर अपने एक दूर के रिश्तेदार के यहां गया था.
यह उस समय की बात है, जब मैं कालेज में प्रथम वर्ष के दशहरे की छुट्टियों में अपने गांव गया था.
गांव में हम लोगों की खेती-बाड़ी, बुआ का परिवार सम्भालता था.
बुआ के साथ उनके लड़के दीपक (22) और दो बेटियां रीना(20) एवं रंजू रहती हैं.
फूफाजी एक लोको-पायलट हैं, जो अपनी जॉब के चलते अधिकतर बाहर ही रहते हैं.
ऐसे में बुआ ने मुझे एक दूर के रिश्ते में जाकर रीना के रिश्ते के लिए एक लड़के की जांच पड़ताल के लिए कहा.
हालांकि पिछली गर्मियों में दोनों फुफेरी बहन की चूत और गांड चुदाई मैंने उनके सगे भाई के साथ मिल कर की थी.
अबकी बार भी मैं तैयार था.
फिर भी एक नई जगह नई चूत की सम्भावना लिए अपनी खटारा यामाहा लिए, पता ढूँढता पहुंच गया.
ये हवेली छोटी किंतु सुंदरता लिए एक पोखरा के किनारे स्थित थी.
शिष्टाचार भेंट और औपचारिक बातचीत के दौरान मैंने यहां आने का कारण बताया कि मैं अपने फुफेरी बहन के लिए आपके बेटे का रिश्ता मांगने आया हूँ.
बुजुर्ग दंपति ने मेरी खूब आवभगत की और जरूरी पूछताछ में बताया कि लड़का पास ही शहर में सिंचाई-विभाग में कार्यरत है और घर में, एक विवाहित बड़ा भाई एवं एक छोटी कुंवारी बहन चेतना सहित कुल छह सदस्य हैं.
शादी ब्याह की बात सुनकर घर में माहौल खुशनुमा लग रहा था.
घर की महिलाओं ने फुफेरी बहन की एक झलक देखने की इच्छा जताई.
मेरे मोबाइल में रीना के कई फोटो थे; उनको दिखाने के लिए मैं आंगन में गया.
मेरी आंखें सबकी ऊंचाई-गहराई नापने में लगी थीं कि इनमें कमजोर कड़ी कौन है.
एक नज़र में मेरी बहन रीना सब महिलाओं को पसंद आ गई.
बातों बातों में पता चला कि घूंघट में बड़े भाई साहब की पत्नी हमारी मामी की बहन हैं तो वह शर्मा कर उठकर जाने लगीं.
मैंने उनका हाथ पकड़ बैठा लिया.
वो शायद झेम्प गई थीं क्योंकि तीन साल पहले मामी के घर पर उनकी सबसे छोटी बहन की मुलाक़ात हुई थी जिनको मैंने होली में भांग पिलाकर एक बार चोदा था.
इसलिए जब पर्दा हटा तो राज खुल गए.
उनके हुस्न का जलवा देख कर मैं दंग रह गया.
वो तो एकदम से बदल गई थीं. उनका नाम शैली था और वो 24 साल की एक गदर माल थीं.
उनकी झील जैसी गहरी आंखें, सुराहीदार गर्दन से सटी बड़ी गोल गोल कठोर चूचियां. नीचे संगमरमर की तरह तराशी हुई गहरी नाभि के साथ लचकती कमर … आह क्या कहने थे.
जब वो चलती थीं तो चौड़े चूतड़ इस कदर कहर बरपा रहे थे कि क्या कहूँ.
उनकी 34-30-36 की अद्भुत देसी काया मेरे लंड की वासना भड़का रहे थे.
दूसरी तरफ उनकी कमसिन ननद चेतना (19) की जवान मेरे सामने थी.
उसके दो रसीले नर्म चूचे, पतली कमर के नीचे थिरकते गोल गोल गद्देदार चूतड़ों के साथ कमाल की माल थी. उसकी 32-28-34 की मादक काया भी कम नहीं लग रही थी.
मैं मन ही मन सोच रहा था कि आज इन दोनों में से किसी की चूत नसीब हो जाए!
इसलिए बहुत सावधानी से दोनों को मैं बातों से कुरेदने लगा.
तभी बुढ़िया अम्मा लाल तरबूज खाने को लेकर आई और ये जानकर बहुत खुश हुई कि उनकी बड़ी बहू मेरे मामीजी की सगी बहन है.
फिर शैली मामी ने घर के साथ मामी की भी हालचाल पूछे.
मैं उनकी रिश्तेदारी में निकला, तो हम दोनों अब खुल कर बतियाने लगे और इसी बीच उन्होंने आज रात रुकने को कह दिया.
और मैं पहले से ही किसी तरह यहां रुकने की जुगाड़ में था.
शाम ढले, शैली के पति अमरचंद अपनी ड्यूटी बजा कर आए तो जरूरी शिष्टाचार के साथ सारी बातें बताईं.
हाथ मुँह धोकर उन्होंने सबके साथ चाय पी, फिर अंधेरा घिरते ही एक पारिवारिक बैठक के बाद शादी के लिए सभी राजी हो गए.
खुशखबरी थोड़ी ही देर में बुआ और मामी तक पहुंच गई जबकि मैं अभी भी आश्वस्त हो नहीं पाया था.
चेतना से पता चला कि शैली भाभी ने अपनी बहन को फोन पर रीना के साथ रिश्ते तय होने की सूचना दे दी है.
कुछ देर बात करने से महसूस हुआ कि चेतना की कच्ची उम्र के साथ सेक्स ज्ञान भी कच्चा है.
अब मेरी अंतिम आशा शैली मामी पर ही टिकी हुई थी जिन्हें यहां चोद सकना बहुत मुश्किल था … क्योंकि सारी रात तो वो अपने पति के साथ रहने वाली थीं.
तकरीबन सात बजे शैली मामी के पति अमरचंद ने पूछा- कुछ लेंगे क्या?
तभी मेरी तंद्रा भंग हुई.
मैंने देखा कि वो एक आरएस का क्वाटर और चखना लिए खड़े हैं.
मैंने हामी में सिर हिलाया और कहा- चलिए बाजार से घूम आते हैं.
अमरचंद जी ने पौआ खत्म करके चलने का कहा.
तो हम दोनों पौआ खत्म करके बाजार आ गए.
उधर से मैंने एक रायल स्टैग की फुल बोतल खरीद ली.
अमरचंद ने कहा- तुम यहीं रुको मैं अभी आता हूँ.
वो कुछ तली हुई मछलियां लेने चले गए थे.
उनके जाते ही मैं सामने मेडीकल स्टोर से कुछ सेक्स की गोलियां भी ले लीं.
अमरचंद ने बताया कि घर में अम्मा बाबूजी को छोड़कर सभी खाते तो हैं लेकिन घर में नॉनवेज नहीं पकाते हैं.
बाजार से वापस आकर मैं बठक में अम्मा-बाबूजी के पास रुक गया.
कुछ इधर उधर की बातों के साथ बाबूजी ने लड़की देखने की अपनी उत्सुकता प्रकट की.
तो देखने दिखाने का कार्यक्रम अगली एकादशी को तय हुआ.
तभी चेतना आकर बोली- भैया, आपको भाभी ने अन्दर बुलाया है.
मैं जाने के लिए अंधेरे में चेतना के पीछे हो लिया और सतर्कता से उसके चूतड़ों पर हाथ फेरा ही था कि उसने पलट कर एक मुक्का मेरी छाती पर जमा दिया.
मैं एकदम से सन्न रह गया और आंगन में पहुंचते ही मैंने उलाहना देते हुए शैली से कहा- मामी, तुम्हारी ननद मुझे काट ही खाएंगी.
एक बार फिर से चेतना ने मुझे धकेल कर पूछा- ए तुमने मामी कैसे बोल दिया.
बड़ी सहजता से मैंने कहा- मामी की बहन मामी ही हुई न!
तभी अमरचंद ने अपने कमरे से आवाज़ लगाई- भांजे साब इधर आओ.
बाज़ी हाथ से निकलते देख कर चेतना का चेहरा उतर गया तो शैली ने मज़ा लेने के लिए कहा- आपकी बहन चेतना से छुटकारा मिले तो अन्दर जाए.
इतने में तीन चार मुक्के चेतना ने फिर जड़ दिए.
जाते जाते मैंने शैली मामी को चुदाई के लिए एक मूक निमंत्रण दे दिया, जिसका उन्होंने जवाब तो नहीं दिया मगर ना भी नहीं कहा.
मैं अब दूसरी तरफ गया तो करीने से सजाए कमरे में एक बड़ा हिस्सा खाली था, अमरचंद वहां दरी बिछाकर बैठे हुए मेरा इंतजार कर रहे थे.
उधर ननद-भाभी डिनर की तैयारी में रसोई में चली गईं और बाहर बैठक में अम्मा बाबूजी बतियाने में मशगूल थे.
हम लोगों ने चखना कुछ जरूरत से ज्यादा ले लिया था इसलिए कुछ मछलियां एक प्लेट में निकाल लीं और नज़र बचाकर उन पर दो फीमेल सेक्स की गोलियां ग्लास से चूरा बना कर छिड़क दिया.
फिर मैंने आवाज़ लगाई- मामी, आकर कुछ ले जाओ, लेकिन कोई नहीं आया.
तभी अमरचंद ने बताया कि शाम के समय इस वक्त कमरे में कोई नहीं आ सकता, तुम ही जाकर दे आओ.
मछलियां देने गया तो बरामदे में सिर्फ शैली मामी भाजी काट रही थीं, चेतना नहीं थी.
इसलिए मैंने मामी को बांहों में भर कर कसकर होंठों को चूम लिया.
मैंने कहा- आज की रात तुम मेरी हो.
मेरी पकड़ से छूटते हुए मामी ने कहा- भूल जाओ, कोई देख लेगा. अभी वापस जाओ.
अब धीरे-धीरे एक एक पैग चुस्की लेते हुए पीना शुरू हुआ.
मैं जानबूझकर अपना छोटा और अमरचंद का बड़ा पैग बनाने लगा, जिससे कि वो टल्ली हो जाएं.
रात के नौ बजने वाले थे, अब अमरचंद सुध-बुध खो चुके थे लेकिन अभी भी तकरीबन चार पैग व्हिस्की बची थी.
घर का माहौल जानने के लिए सु-सु के बहाने बाहर निकल आया.
मेरा सामना चेतना से हुआ जो मुझे किसी अपराधी समझ कर घूर रही थी.
बाहर बैठक में अम्मा बाबूजी अपने अपने बिस्तर पर विराजमान हो गए, शायद भोजन कर चुके थे.
मुझे देख कर अम्मा ने पूछ लिया- खाना खाया कि नहीं.
उत्तर में न कहकर मैं वापस आ गया.
शैली मामी कुछ बात पर बड़बड़ा रही थीं.
चेतना उनके पीठ पीछे खड़ी थी.
मुझे आता देख कर उन्होंने बात को बदल दिया और खाने का आग्रह किया.
शैली मामी की आंखों में लाल डोरे तैर रहे थे, पता नहीं क्रोध के थे या वासना के.
इसलिए माहौल को हल्का करने के लिए मैंने कहा- मामी जल्दी खाना लगाओ, जोरों की भूख लगी है.
फिर बा़की बचे दो दो पैग लगा कर हमने तो भरपेट भोजन कर लिया.
लेकिन अमरचंद ने खाना खाया कम, गिराया ज्यादा.
किसी तरह उन्होने हाथ मुँह साफ़ किया और दरी पर लोट गए.
मैं भी दरी पर लोट गया.
शैली मामी आईं और चुपचाप सारे बर्तन समेट कर रसोई में चली गईं.
मेरी कुछ कहने की हिम्मत न हुई.
रात गहराने लगी थी. बाहर से बर्तनों की आवाज सुनाई देना बंद हो गई थी.
मेरी आंखों में नींद कहां थी. अब तक कुछ ठीक लक्षण नहीं दिखाई दे रहे थे.
थोड़ी हिम्मत करके पास बेसुध पड़े अमरचंद को झकझोर कर तसल्ली की कि लाइन क्लियर है.
अब मैं आंगन में आ गया.
झींगुरों की आवाज के अलावा सामने के कमरे से एक तेज़ चलती सांसों की आवाज सुनाई दी.
सतर्क कदमों से मैंने अन्दर झांका तो मेरा माथा ठनका.
दोस्तो, आपके भोगु के नसीब में आज उसकी पसंद के दो माल सामने गुत्थम गुत्था थे.
अब उन दोनों में से कौन पहले मेरे लंड का इस्तेमाल करने वाली थी, ये मैं देहाती चुदाई की कहानी के अगले भाग में लिखूंगा.
आप मुझे मेल करना न भूलें.
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देहाती चुदाई की कहानी का अगला भाग: रिश्तेदारी में कुंवारी लड़की की बुर चुदाई- 2
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