चुत की खुजली और मौसाजी का खीरा-3
(Chut Ki Khujli Aur Mausaji Ka Kheera- Part 3)
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धीरे धीरे मौसाजी अपना हाथ मेरी गांड पर घुमाने लगे, शायद उनको स्पर्श से ही पता चल गया होगा कि मैंने पैंटी नहीं पहनी है। मेरी तरफ से कुछ भी विरोध न होने पर उनकी हिम्मत और बढ़ गई और मेरे दोनों नितम्बों पर अपने हाथ साफ किये और मैंने भी उनको रोका नहीं।
“थैंक्स फ़ॉर हेल्पिंग बेटा, मेरी इतनी हेल्प पहले किसी ने नहीं की थी!” ऐसा कहते हुए उन्होंने अपने हाथ मेरे बालों पर फिराए।
“मौसी नहीं है तो आप की पूरी जिम्मेदारी मेरी है, आप को क्या चाहिए वह देना मेरा काम है.”
“थैंक्स नीतू!” कहकर वे अपने हाथ मेरे गालों पर ले आए और मेरे गालों को सहलाने लगे। एक नाजुक पल हम दोनों के बीच में पैदा हो गया था। मैंने भी अपने हाथ उनके हाथों पर रख दिए, हम दोनों भी एक दूसरे के आँखों में देख रहे थे।
अचानक ही मौसा जी अपना चेहरा मेरी तरफ लाने लगे वैसे मैं भी मेरा चेहरा उनकी तरफ ले जाने लगी। मेरा रिस्पांस पा कर मौसा जी अपने होंठ मेरे होठों के नजदीक ले आये। हम दोनों एक दूसरे की गर्म सांसों को महसूस कर सकते थे, मेरी दिल की धड़कन बढ़ गई थी। आगे क्या होने वाला है सोच कर मेरी सांसें ज़ोरों से चलने लगी, पहली बार हम दोनों में यह नाजुक परिस्थिति पैदा हो गई थी।
‘धडाम … धडाम …’ अचानक ज़ोरों से बिजली कड़की, हम दोनों ने चमक कर बाहर की ओर देखा, बाहर ज़ोरों की बारिश हो रही थी, आंधी भी थी। हमने फिर से एक दूसरे के तरफ देखा.
मौसा जी जरा पीछे हटे, अच्छा हुआ कि बिजली कड़क गयी, नहीं तो आज मेरा और मौसा जी का चुम्बन हो गया होता!
हे भगवान … मेरे पचास साल के मौसा जी मुझे किस करने जा रहे थे और मैं भी उन्हें साथ देने चली थी।
कुछ समय बाद फ्रिज से आइस निकलने की आवाज आई और मैंने फ्रिज की तरफ देखा, हमारी आँखें फिर से मिली और मैं फिर से शर्मा गयी।
मैंने कटा हुआ खीरा और गिलास टेबल पर रखा अभी मौसा जी विहस्की की बोतल और बर्फ ले कर मेरे पास खड़े हो गए गए।
“थैंक्स नीतू …” कहकर उन्होंने अपना हाथ मेरे कंधे पर रख कर सहलाया।
“गुड नाईट अंकल, ज्यादा मत पियो!” कह कर मैं वहाँ से बाहर चली आयी।
किचन से बाहर निकलते ही मैंने एक दीवार के आड़ लेकर उस खीरे को मेरी मुनिया से बाहर निकाल लिया, उस खीरे ने मेरी जान ही निकाल दी थी। उसी खीरे को लेकर मैं बैडरूम में जाने लगी तो मुझे मेरी पैंटी का ख्याल आया, ओह शिट … पैंटी तो रसोई में ही रह गई है। अगर मौसा जी को वह दिख गयी तो?
मैं झट से पीछे मुड़ी और किचन की तरफ वापिस जाने लगी।
“आह … नीतू … आह!”
मेरे कानों में मौसा जी के दबे हुए सीत्कार पड़े और मेरे पैर वहीं थम गए।
बाहर से ही किचन मैं झांक कर देखा तो मेरे होश उड़ गए।
अंदर मौसा जी एक कुर्सी पर बैठे थे और अपने दोनों पैर दूसरी कुर्सी पर रख कर लुंगी के ऊपर से ही अपने लंड को सहला रहे थे। उनके दूसरे हाथ में एक स्पेशल चीज थी, वह कुछ और नहीं मेरी ही पैंटी थी। वे मेरी पैंटी को अपने नाक के पास ले जाते और उसको सूंघते और दूसरे हाथों से अपने लंड को सहला रहे थे।
वैसे देखें तो मुझे वहाँ से निकल जाना चाहिए था पर अब मेरे मन में भी मौसाजी का खीरा देखने की इच्छा होने लगी थी। उनका लंबा लंड मैंने अपने गांड पर दो बार महसूस किया था, पर अब मुझे उसे देखने का लालच था।
‘मौसा जी कब लुंगी खोलेंगे’ इसका इंतजार करने लगी थी।
मौसाजी को जैसे मेरी मन की बात पता चल गई और उन्होंने अपनी लुंगी निकाल दी, उनका लंड बिना किसी पर्दे के छत की ओर तन कर खड़ा था। मैं अपने हाथ में पकड़े खीरे से उनके लंड की तुलना करने लगी.
सच में उनका लंड खीरे जितना लंबा और बड़ा था। इस खीरे के ठंडे स्पर्श से कही ज्यादा सुख मौसा जी के गर्म लंड से मिल सकता था, मैं तो अपने मौसा जी का लंड चुत में लेने के बारे में सोचने लगी थी। उनका लंड देख कर मुझे भी कंट्रोल करना मुश्किल हो रहा था और मैंने हाथ में पकड़े हुए खीरे को फिर से मुनिया में डाला और अंदर बाहर करने लगी।
“ओहऽऽऽऽ नीतू … मेरी … सेक्सी … नीतू …”
सामने मेरे मौसा जी मेरे नाम की माला जपते हुए जोर जोर से मुठ मार रहे थे और दरवाजे के इस पार मैं उनके लंड को देखते हुए मेरी चुत में खीरे को अंदर बाहर कर रही थी। मन तो हो रहा था कि किचन में चली जाऊँ और उनका लंड अपनी चुत में डाल कर लंड पे उछल कूद करूँ, पर बड़ी मुश्किल से मैंने अपने आपको कंट्रोल किया हुआ था।
“नीतू … मैं … आ गया … ओह … नीतू!”
मौसाजी अपना लंड जोर से हिला रहे थे और तभी उनके लंड से एक पिचकारी छुटी, ऊपर उड़ते हुए उनके पेट पर जा गिरी। मैं उनके लंड से उड़ते फव्वारे को आँखें फाड़ कर देख रही थी और उतने ही जोश में खीरे को अंदर बाहर कर रही थी, और मेरा भी बांध छुटा और चुत का रस जांघों से होते हुए जहाँ जगह मिली वहाँ पर बहने लगा। एक अलग ही लेवल का ओर्गास्म था वह … उसका पूरा श्रेय मौसा जी का था।
मेरे पैर तक कर लड़खड़ाने लगे और मैंने किसी तरह दरवाजे को पकड़ कर अपने आप को संभाल लिया।
कुछ समय बाद मौसा जी भी होश में आ गए और उन्होंने एक ही घूंट में पूरा गिलास खत्म कर दिया, मेरी पैंटी को फिर से अपनी नाक के करीब ले गए और उसकी खुशबू सूंघी। फिर मौसा जी ने मेरी ही पैंटी से वीर्य को साफ किया, मुझसे पहले मेरी पैंटी मौसा जी के वीर्य तक पहुँच गयी थी।
मैं भी दबे पांव वहाँ से निकली और अपने बैडरूम में गयी। थकान के वजह से मैं कब सो गई पता ही नहीं चला।
“धुप्प … खल …” अचानक आवाज सुनाई दी और मेरी नींद टूटी. घड़ी मैंने देखा तो सुबह के आठ बजे हुए थे, मुझे कॉलेज जाने में देर होने वाली थी।
मैंने नीचे जाकर देखा तो रसोई में संगीता कांच के टुकड़े इकट्ठे कर रही थी, मेज पर रखा कांच का जग टूट गया था।
“सॉरी दीदी, मेरे हाथ से छूट गया!” वह रोती हुई सूरत बनाकर बोली।
“कोई बात नहीं संगीता … मैं नया लेती आऊंगी!” मैं उसे बोली.
उसने भी रोना बंद किया और साफ सफाई करने लगी।
मैंने रसोई के दरवाजे से बाहर की तरफ देखा, मौसाजी बाहर से हमें ही देख रहे थे। वे गार्डन में कुछ काम कर रहे थे, हम दोनों की आँखें मिली तो उन्होंने नजर चुरा ली और वे फिर से अपने काम में लग गए। उनका नजर चुराना मुझे थोड़ा अजीब लगा।
फर्श पर देखा तो मिट्टी भरे पैरों के निशान थे जो गार्डन से अंदर आ रहे थे और वापस भी जा रहे थे, शायद बाहर से कोई अंदर आया था और वापस भी चला गया था।
हैरानी वाली बात यह थी कि उन निशानों को पौंछा गया था पर वे ठीक से साफ़ नहीं हुए थे।
मैंने संगीता के पैरों की ओर देखा तो उसने पैरों में चप्पल पहनी हुई थी और वो तो साफ थी, मतलब ये उसके पैरों के निशान नहीं थे।
संगीता की ओर देखा तो उसके कंधे पर भी मिट्टी लगी थी, वह तो रसोई में थी फिर उसके कंधे पर मिट्टी कैसी?
पैरों के निशान भी किसी आदमी के थे और उस वक्त वहाँ पर एक ही आदमी था … मौसा जी … वे अंदर आये थे क्या?
फिर वह बाहर क्यों चले गए?
मैंने संगीता की ओर देखा, उसने घाघरा चोली पहनी थी और ओढ़नी को अपने बालों में फंसाई थी। थोड़ी सी सावली संगीता आज पहने हुए फिट ड्रेस में एकदम सेक्सी लग रही थी। कांच उठाते हुए उसकी पीठ पर से ओढ़नी नीचे गिर गयी और मुझे उसकी पीठ दिखी, उसकी चोली को पीछे से डोरियाँ थी। सबसे ऊपर की डोर खुली हुई थी, बाकी डोरियाँ किसी ने जबरदस्ती खोलने की कोशिश की हो … ऐसा लग रही थी।
मुझे मौसा जी पर शक होने लगा, शायद वही बाहर से अंदर आये हों और संगीता के ऊपर जबरदस्ती करने लगे हों और उसी में जग गिर गया हो।
पर ऐसा होता तो संगीता चिल्लाई होती!
मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। वैसे भी मुझे देर हो रही थी इसलिए मैं जल्दी से तैयार हो गयी और कॉलेज चली गई।
शाम को कॉलेज से आने के बाद मैं अपने काम में लग गयी, कल का खीरा अभी भी मेरे ही रूम में था तो आज वापिस किचन में जाने की जरूरत नहीं थी। अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद कपड़े उतार कर उसी खीरे से अपनी मुनिया को शांत किया और नंगी ही सो गई।
“धडाड … धूम … धडाड … धूम”
जोर से बिजली कड़कने की आवाज से मेरी नींद टूटी, मैंने टेबल लैंप चालू किया तभी वापस कुछ टूटने की आवाज आई। मैंने झट से ब्रा पैंटी पहन ली और ऊपर से नाईटी पहन कर रूम के बाहर आई।
“नीतू क्या हुआ?” मौसा जी दौड़ कर मेरे पास आते हुए बोले।
“पता नहीं मौसा जी जोर की आवाज हुई … ”
जैसे मौसा जी मेरे पास पहुँचे फिर से जोर से बिजली कड़की, मैंने डरते हुए मौसा जी को पकड़ लिया।
“रिलैक्स नीतू … मैं हूं न … ” वे मेरी पीठ सहलाते हुए बोले।
मैं थोड़ा रिलैक्स हो गयी तो मुझे महसूस हुआ वो मेरी पीठ सहलाते हुए मेरे नाईटी के पतले कपड़े के ऊपर से ही मेरी ब्रा की पट्टी को ढूंढ रहे थे, उनकी उस हरकत की वजह से मेरी धड़कन तेज होने लगी थी।
“मौसा जी, क्या हुआ होगा?” मैंने उन्हें पूछा।
“चलो न देखते हैं.” हम दोनों एक दूसरे को बांहों में पकड़े हुए ही दरवाजे की तरफ गए, बाहर देखा तो गार्डन में बड़े पेड़ की एक टहनी नीचे पड़ी थी और उसकी आवाज आई थी।
“अरे … रे … तेज हवा की वजह रे टहनी टूट गयी.” मौसा जी दुखी होते हुए बोले, दो दिन पहले ही उन्होंने उस जगह पर छोटे पौधे लगाए थे।
“मौसा जी,दो दिन पहले ही आप ने वहाँ पर गुलाब के पौधे लगाए थे ना?” मैं उन्हें याद दिलाते हुए बोली।
“हाँ बेटा, टहनी हटानी होगी, नहीं तो पौधे मर जायेंगे.” मौसा जी ने झट से छतरी उठायी और गार्डन में जाने लगे।
बारिश में खड़े होकर एक हाथ से छतरी पकड़कर दूसरे हाथ से टहनी को हटाने का प्रयास करने लगे, पर एक हाथ से टहनी नहीं हट रही थी इसलिए मौसा जी ने छतरी को बाजू में रख दिया और दोनों हाथों से टहनी को धक्का देने लगे।
उनका भीगा टीशर्ट उनके प्रयासों को मुश्किल बना रहा था इसलिए उन्होंने अपना टीशर्ट भी उतार दिया। बारिश में भीगा हुआ उनका कसरती शरीर को देखकर मैं फिर से उत्तेजित होने लगी।
नीचे लुंगी गीली होकर उनके कमर से चिपक गयी थी, लुंगी से उनकी अंडरवियर दिखने लगी थी और उनकी टांगों के बीच बने तम्बू से मेरी आँखों में चमक आ गयी थी।
वे पूरी ताकत से टहनी को हिलाने का प्रयास कर रहे थे पर उनकी ताकत कम पड़ रही थी। मैंने आस पास देखा तो वहां दूसरी छतरी नहीं थी तो मैं बिना छतरी के ही उनकी मदद करने उनके पास गयी।
“बेटा तुम क्यों आयी?” मौसा जी ने पूछा।
“अकेले से हिल नहीं रही थी तो मदद करने आ गयी,” मौसा जी ने हा में सिर हिलाया और टहनी धकेलने लगे।
हम दोनों जोर लगा रहे थे पर टहनी हिल नहीं रही थी, मैंने मौसा जी की ओर देखा तो मौसा जी मुझे ही देख रहे थे। उनकी आँखों में वासना भरी थी, मैंने अपनी ओर देखा तो मुझे भी समझ आ गया।
नाईटी घुटनों तक लंबी जरूर थी पर बीच में जांघों तक कट था और उसमें से मेरे गोरी जांघें दिख रही थी। बारिश की वजह से मेरी पतली नाईटी भीग कर पारदर्शी हो गयी थी और उसमें से मेरी ब्रा और पैंटी दिख रही थी, मेरी ब्रा भी गीली होकर मौसा जी को मेरे निप्पल्स और स्तनों का आकार अच्छे से दिखा रही थी।
मेरे प्रिय पाठको, आपको मेरी हॉट कहानी कैसी लग रही है? मुझे मेल कर के बतायें।
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