बहू-ससुर की मौजाँ ही मौजाँ-6
प्रेषिका : कौसर
सम्पादक : जूजाजी
मैंने कहा- बाबूजी प्लीज़… मुझे पता है आप क्या करना चाहते हैं… प्लीज़ ऐसा मत करिए… यह बहुत लंबा है….बाबूजी प्लीज़… ऐसा मत करना..!
और मैं चीखने लगी।
ससुर जी ने कहा- बहू, तुझे मुझ पर भरोसा होना चाहिए… ऐसा कुछ नहीं होगा और ये सब मैं तुझे मज़े देने के लिए ही कर रहा हूँ।
फिर उन्होंने वो पट्टी जिस पर बॉल लगी हुई थी। मेरे मुँह को ऊपर किया और मेरे बाल पकड़ कर मेरे मुँह में डाल दी और मेरे सर के पीछे वो पट्टी बाँध दी। मैं अब चिल्ला भी नहीं पा रही थी। मुँह के अन्दर वो बॉल थी।
मेरे चिल्लाने पर बस ‘गूं… गूं’ की आवाज़ आ रही थी…!
मैंने सर उठा कर देखा वो बाईब्रेटर पर बेबी आयल लगा रहे थे। फिर वो मेरे पीछे चले गए। मुझे अब कुछ पता नहीं चल रहा था कि वो क्या कर रहे हैं।
तभी उनकी उंगलियाँ मुझे अपनी चूत पर महसूस हुई। उन्होंने 2 उंगलियाँ मेरे अन्दर डाल दी थीं, वो सूखी थीं तो मुझे दर्द होने लगा… मैं ‘गूं… गूं’ करने लगी।
मुझे लगा कि उन्होंने काफ़ी सारा बेबी आयल अपने हाथ में लेकर मेरी चूत के ऊपर डाल दिया और फिर दोनों उंगलियाँ अन्दर-बाहर करने लगे।
अब मुझे उतना दर्द नहीं हो रहा था…तभी मुझे अपनी चूत के होंठों पर उस बाईब्रेटर का एहसास हुआ। बाबूजी हल्के-हल्के उसे मेरी चूत में डाल रहे थे पर उन्होंने उससे अभी ऑन नहीं किया था।
मुझे मेरी चूत में बहुत तेज़ दर्द होने लगा क्योंकि वो बाईब्रेटर करीब 3 इंच मोटा था।
मेरे मुँह से… ‘गूं… गूं’ ही निकल रहा था, मैं चीखना चाहती थी पर मेरा मुँह बँधा हुआ था।
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ससुरजी ने मेरे बाल अपने बायें हाथ से पकड़ लिए और अपने दायें हाथ से बाईब्रेटर को मेरी चूत में डालने लगे। मेरी चीख निकल रही थी, पर बाहर आवाज़ नहीं आ पा रही थी। करीब 3 इंच वो बाईब्रेटर अब मेरे अन्दर था। ससुर जी उससे धीरे-धीरे और अन्दर किए जा रहे थे।
‘उफफफ्फ़.. ओह…गगगघ…ओह्ह…!’ बहुत दर्द हो रहा था।
मुझे लगा कि आज मेरी चूत फट जाएगी।
ससुरजी- बहू… तू मेरी कुतिया है और आज तेरी चूत फाड़ दूँगा मैं, बड़ा मज़ा आ रहा है ना और अंदर ले। थोड़ी हिम्मत और रख…
अब उन्होंने एक तेज़ झटका मारा और वो बाईब्रेटर करीब 7 इंच मेरे अंदर समा गया।
मेरी आँखों के सामने अँधेरा छाने लगा, चूत में इतना दर्द हो रहा था कि ऐसा लगता था जैसे किसी ने उसमें लोहे की मोटी रॉड घुसा दी हो।
ससुर जी बाईब्रेटर को मेरी चूत में ही डाल कर मेरे आगे आ गए और मेरा मुँह उठा कर देखने लगे। मेरी आँखों से पानी आ रहा था और मुँह बँधा हुआ था।
मैंने आँखों से ही ससुर जी से अर्ज की क्योंकि मेरे हाथ तो बँधे हुए थे। तभी ससुर जी फिर पीछे गए और करीब एक इंच बाईब्रेटर और अन्दर कर दिया।
मेरी जान निकलने लगी ‘उफफ्फ़…अहह…’ मैं तड़पने लगी।
तभी उन्होंने बाईब्रेटर ऑन कर दिया, वो मेरी चूत के अन्दर हिलने लगा, मुझे बहुत सनसनी होने लगी। मुझे लगा जैसे मेरी चूत से पानी भी बहने लगा था। वो बड़ा अजीब सा एहसास था… मेरी चूत के होंठ एकदम फ़ैल गए थे। मुझे लगा जैसे मेरे चूतड़ अपने आप ही बाईब्रेटर के साथ हिलने लगे। वो बाईब्रेटर का पूरा साथ दे रहे थे। मुझे बाईब्रेटर ऑन करने से थोड़ा दर्द कम हो गया था और मज़ा आने लगा था।
अब ससुर जी मेरे सामने आ गए। तभी उन्होंने मेरा मुँह खोल दिया।
‘उफ़फ्फ़… बाबूजी… प्लीज़… बचाओ मुझे.. उफफफ्फ़.. आहहओह…!’ मैं तड़प रही थी और वो सोफे पर बैठ कर मुझे देखने लगे।
मैंने कहा- प्लीज़ बाबूजी… ओह… बहुत दर्द हो रहा है, थोड़ा सा बाहर निकाल दो… प्लीज़..!
पर उन्होंने कुछ नहीं किया तो मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं… मुझे चूत में अब अजीब सा सुख मिलने लगा। बाईब्रेटर ऑन था। मैं अपने चूतड़ हिला-हिला कर पूरे मज़े लेने लगी।
‘उफ़फ्फ़…ओह..’
तभी ससुर जी ने मेरे बाल पकड़ कर मेरा मुँह ऊपर उठा दिया, मैंने देखा तो होश उड़ गए। उनका लण्ड आज पहली बार मेरी आँखों के सामने था। करीब 7 इंच लंबा और 2 ½ इंच मोटा, एकदम बेसबॉल के बैट की तरह लग रहा था।
उसके ऊपर का सुपाड़ा एकदम टमाटर की तरह लाल था।
ससुर जी- देख मेरा लण्ड कैसा सूखा पड़ा है बहू और तू बाईब्रेटर के मज़े ले रही है..! चल… चूस इसे..!
मैंने कभी अताउल्ला का लण्ड भी नहीं चूसा था, कोई लण्ड कैसे चूस सकता है.. ससुर जी यह क्या कह रहे थे?
मुझे बड़ी घिन आ रही थी, मैंने अपने होंठ नहीं खोले।
तभी ससुरजी ने मेरे बाल पकड़ कर मेरा मुँह ऊपर की तरफ खींच दिया। मैं दर्द से चीखी और तभी उन्होंने अपना लण्ड एक झटके में मेरे मुँह में डाल दिया, मेरी फिर आवाज़ बंद हो गई और मुझे लगा जैसे मेरी साँस ही रुक जाएगी। एकदम गर्म-गर्म लण्ड था उनका।
वो मेरे मुँह में झटके देने लगे, उन्होंने मेरे बाल अभी भी पकड़े हुए थे और पीछे से बाईब्रेटर ने मेरा बुरा हाल किया हुआ था।
ससुर जी- बहू, इससे आराम से चूस… देख तेरे दांत ना लगें इस पर…
मुझे लगा ससुर जी मुझे ऐसे नहीं छोड़ेंगे तो मैं क्या करती। मैंने उनका लण्ड अपने होंठों से चूसना शुरू किया, बड़ा अज़ीब सा लग रहा था। उनका लण्ड नमकीन सा था।
वो पूरा लण्ड बाहर निकाल लेते थे और फिर एकदम से मेरे मुँह में पूरा डाल देते थे, उनका लण्ड मेरे गले में चला जाता था और मेरा दम सा घुटने लगता था।
पर वो ऐसे ही करते रहे और पता नहीं मुझे भी क्या हुआ?
मैं भी शायद अपने में खो गई थी, ससुरजी का लण्ड चूसे जा रही थी और बाईब्रेटर के साथ अपने चूतड़ हिलाए जा रही थी।
अब मुझे बड़ा अच्छा महसूस हो रहा था। मैं पागल सी हो गई थी।
तभी उन्होंने अपना लण्ड मेरे मुँह से निकाल लिया और उन्होंने वो काले रंग का कॉलर पट्टा जिसमें चैन लगी थी, मेरे गले में डाल दिया और मेरे पीछे चले गए। ऐसा लग रहा था कि जैसे मैं उनकी कुतिया हूँ और वो मुझे पकड़े हुए हैं, बाईब्रेटर अब भी मेरे अन्दर था।
ससुर जी ने बाईब्रेटर हल्के-हल्के बाहर निकाल लिया, मुझे ऐसा लगा जैसे अन्दर से मेरी जान निकल गई और तभी उन्होंने अपना लण्ड मेरी चूत में डाल दिया। चूत गीली तो थी ही आराम से अन्दर चला गया।
उन्होंने मेरी चैन खींची तो मेरा सर ऊपर हो गया और वो मेरी चूत में बुरी तरह धक्के मारने लगे। मैं सच में उस समय एक कुतिया की तरह लग रही थी जो बड़े मज़े से चुदवा रही हो।
ससुर जी- बहू… वाहह… ओह तुझे चोदने में बड़ा मज़ा आता है बेटा… वाहह… क्या कुतिया है रे मेरी…
वो ऐसे बोले जा रहे थे और कभी मेरे बालों को कभी पट्टे की चैन को खींच रहे थे तो कभी मेरे चूचुकों को बड़ी बुरी तरह मसल देते थे।
मैं भी पागलों की तरह हाँफने लगी।
15 मिनट तक वो मेरी चूत में धक्के मारते रहे और मैं वैसे ही बँधी पड़ी रही। मेरे मुँह से भी बड़ी सिसकारियाँ निकल रही थीं।
अब उन्होंने स्पीड बढ़ा दी थी, बड़ा अच्छा महसूस हो रहा था और सच में ऐसा लग रहा था जैसे कुतिया पर कुत्ता चढ़ गया हो।
मुझसे कंट्रोल नहीं हुआ और मैंने पानी छोड़ दिया।
ससुरजी भी हाँफने लगे और एक गर्म पानी की धार मेरी चूत में महसूस हुई।
मुझे बेहोशी से होने लगी… वो मेरे ऊपर से तभी हटे और मेरे हाथ और पैरों को खोल दिया।
मैं एकदम वहीं गिर पड़ी, उन्होंने मुझे अपनी गोदी में उठाया और जल्दी से मेरे बेडरूम में लेजा कर मुझे बेड पर डाल दिया।
मैं पानी-पानी की आवाज़ लगा रही थी।
ससुरजी फ़ौरन मेरे लिए पानी लाए। मैंने पानी पिया। फिर घड़ी में देखा तो रात के करीब साढ़े नौ बज रहे थे।
मेरे अन्दर बिल्कुल हिम्मत नहीं थी, मैंने आँखें बंद कर लीं और लेट गई।
ससुरजी ने मुझे चादर उढ़ा दी और अपने कमरे में चले गए।
फिर मुझे नींद आ गई और मैं सो गई।
थोड़ी देर बाद ससुर जी ने मुझे जगाया करीब रात के गयारह बजे होंगे, उनके हाथ में एक गिलास में दूध था।
उन्होंने कहा- ले बेटा, तूने कुछ खाया नहीं है, चल दूध पी ले…
मैं भी एकदम भूखी थी, चुपचाप दूध लिया और पी लिया और फिर लेट गई। ससुर जी अपने कमरे में चले गए और मैं फिर सो गई। मेरी आँख खुली तो सुबह के आठ बज रहे थे, शायद मेरी तबियत ठीक नहीं थी, मुझे थोड़ा बुखार था और जिस्म भी दुख रहा था, बड़ी मुश्किल से उठी।
मैं अभी भी बिल्कुल नंगी थी, मैं बाथरूम जाना चाहती थी, मुझसे बिल्कुल चला नहीं जा रहा था, मेरी चूत में बड़ा दर्द हो रहा था और वो सूजी सी हुई थी, हाथ-पैरों में ससुरजी ने जहाँ डोरी बाँधी थीं, वहाँ भी दुख रहा था।
मैं गुसलखाने में फ्रेश होकर आई, पर नहा ना सकी क्योंकि मुझे बुखार था, फिर अपने कमरे में आ गई और फिर लेट गई।
तभी ससुर जी आ गए। उन्होंने मुझे छुआ तो मुझे बुखार था।
उन्होंने कहा- बेटा, तुझे तो बुखार है!
और वो फ़ौरन मेरे लिए बुखार और दर्द की दवा ले आए, उन्होंने वो दी और मैंने चुपचाप ले ली।
मैं चादर में उस समय भी नंगी ही थी।
ससुर जी ने मेरी अलमारी खोली और सब कपड़े देखने लगे, मुझे शर्म आने लगी।
उन्होंने मेरी अलमारी से एक काले रंग की पारदर्शी ब्रा और काले रंग की पैन्टी निकाली और फिर एक सफ़ेद रंग का टॉप और एक पजामा निकाल कर बेड पर आ गए।
उन्होंने मेरी चादर हटाई और बड़े प्यार से मुझे खुद ही ब्रा, पैन्टी और टॉप, पजामा पहना दिया। मैं भी एक छोटे बच्चे की तरह उनसे कपड़े पहन रही थी।
फिर वो मेरे लिए नाश्ता लेकर आए और अपने हाथ से खिलाने लगे। मुझे लगा कि कल रात तो मेरी इतनी बुरी हालत कर दी और आज ससुर जी इतना प्यार दिखा रहे हैं..!
ससुर जी- बहू, मैं स्कूल जा रहा हूँ। तू अपना ख्याल रखना, मैं जल्दी ही आ जाऊँगा।
वो कह कर चले गए और मैंने उठ कर दरवाजा बन्द कर लिया, फिर मैं अपने बेड पर आकर फिर आराम से सो गई।
करीब एक बजे मैं उठी, अब कुछ ठीक लग रहा था, बुखार भी नहीं था।
मैंने रसोई में जाकर अपने लिए और ससुरजी के लिए खाना बनाया और उनके आने का इन्तजार करने लगी।
मेरे दिमाग़ में बार-बार कल जो कुछ हुआ वो आ रहा था पर मैं सब कुछ भूल जाना चाहती थी इसलिए उस बारे में कुछ नहीं सोच रही थी।
ससुर जी दो बजे आए, उन्होंने मुझे कुछ नहीं कहा, मैंने उनका खाना लगा दिया और अपने कमरे में आ गई।
मैं फिर करीब साढ़े पांच बजे उठी तो शाम की फिर चिंता होने लगी कि आज ससुर जी को चाय कैसे देने जाऊँ, उनकी बात बार-बार याद आ जाती थी कि शाम को मैं उनके पास नंगी होकर चाय देने जाऊँ।
तभी ससुरजी खुद मेरे कमरे में आ गए।
बोले- बहू.. अब तबियत कैसी है?
मैंने कहा- अभी ठीक है, मैं वो चाय लेकर आने वाली थी ड्राइंग रूम में..!
यह मैंने डरते हुए कहा।
ससुर जी- बेटा.. कोई बात नहीं, तेरी तबियत ठीक नहीं है, तू आराम कर ले और तू इस टॉप में सुंदर लग रही है। ऐसे ही रहना बस..!
यह कह कर वो चले गए।
कहानी जारी रहेगी।
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