अनोखी चूत चुदाई की वो रात-1
(Anokhi Choot Chudai Ki Ek Raat- Part 1)
मित्रो, कहानी कहने से पहले मैं इस कहानी की सत्यता के बारे में आप सब से शेयर कर लूँ, यह कहानी मेरी, सुकांत की नहीं बल्कि
मेरे किसी ख़ास दोस्त की है जिसका नाम मैं नहीं लिख रहा हूँ और रानी उसी की धर्मपत्नी का नाम है।
एक शाम जब हम दोनों दोस्त हम प्याला हम निवाला हुए तो अंगूर की बेटी ने उसके मुंह से यह सत्य कहलवा ही दिया जिसे मैं कहानी के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ।
यह सब उसी की साथ घटित हुआ है, मैंने तो बस अपने शब्द दिये हैं और इस ढंग से लिखा है कि जैसे कथा का मुख्य पात्र मैं ही हूँ।
अब आगे पढ़िये कहानी को शब्द मेरे हैं, जुबान मेरे मित्र की है जिसने ये सब भोगा है।
मित्रो, मैं एक सरकारी विभाग में उच्च पद पर कार्यरत हूँ, मेरे रिटायर होने में बस अब कुछ ही वर्ष शेष हैं। मैंने अपना सारा जीवन सादगी और कर्मठता से जिया है, अपनी पत्नी के अलावा कभी भी किसी दूसरी के साथ इसके पहले सम्भोग नहीं किया था और न ही मैं इन चक्करों में कभी पड़ा।
हाँ, कभी कभी अपने इस दोस्त के साथ महीने दो महीने में पीने पिलाने का दौर चल जाता है बस!
मेरे घर में मेरी पत्नी रानी, एक पुत्र और एक पुत्री है। बेटे का विवाह पिछले साल ही कर दिया था, वह भी एक बैंक में अच्छे पद पर कार्यरत है।
मेरे बेटे की पत्नी अदिति भी बहुत सुन्दर और शालीन है, उसने एम बी ए कर रखा है लेकिन कोई जॉब नहीं किया। उसे गृहणी रहते हुए मालकिन बने रहना ज्यादा पसन्द है।
मेरी बिटिया ने बी टेक किया और अब वो भी एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे पद पर है।
बेटी का ब्याह भी अभी तीन दिन पहले ही संपन्न हुआ है।
अब बात उस रात की –
बिटिया का ब्याह और विदा हुए तीसरा दिन था। घर अभी भी मेहमानों से भरा हुआ था। थकावट तो बहुत थी पर मानसिक शांति और सुकून भी बहुत आ चला था।
आप सब तो जानते ही हैं कि शादी ब्याह में इंसान चकरघिन्नी बन के रह जाता है।
काफी कुछ निपट चुका था लेकिन अभी भी बहुत काम बाकी था कई लोगों का हिसाब किताब करना था, शामियाना वाला, केटरर वगैरह!
मन इस उधेड़बुन में उलझा था कि रानी, मेरी पत्नी, की आवाज ने मेरी तन्द्रा भंग की।
‘चाय पियोगे जी?’ वो पूछ रही थी।
दोपहर बाद के चार बजने वाले थे सो चाय पीने का मन तो हो ही रहा था, मैंने उसकी तरफ देख के सहमति दे दी।
‘अभी लाई!’ वो बोली।
कुछ ही देर में वो दो कप चाय लिये आई और मेरे बगल में कुर्सी डाल कर बैठ गई।
मैंने देखा थकान के चिह्न उसके चेहरे पर भी झलक रहे थे।
मैंने चाय की चुस्की ली फिर मुस्कुरा के उसकी तरफ देखा।
‘ऐसे क्यों देख रहे हो? चाय अच्छी नहीं लगी क्या?’
‘चाय तो अच्छी है, लेकिन आज तो मेरा मन हो रहा है एक महीने से ऊपर हो गया!’ मैंने कहा और धीरे से उसकी जांघ पर हाथ रखा।
‘हटो जी, आप को तो एक ही बात सूझती है हमेशा! बच्चे बड़े हो गये, शादियाँ हो गईं लेकिन आप को तो बस एक ही चीज दिखाई देती है!’
‘अब क्या करूं… तुम हो ही ऐसी प्यारी प्यारी!’ मैंने उसे मक्खन लगाया।
‘सब समझती हूँ इस चापलूसी का मतलब!’ कहते हुए उसने मेरा हाथ अपनी जांघ पर से हटा दिया।
‘अरे मान भी जा न। आज बहुत मूड बन रहा है मेरा, मेरा यह छोटू बेचैन है तेरी मुनिया से मिलने को!’
‘कोई चान्स नहीं है, घर मेहमानों से भरा पड़ा है! कुछ दिन और सब्र कर लो, फिर मिल लेना अपनी मुनिया से!’ वो बोली और उठ कर निकल ली।
मैंने भी वक़्त की नजाकत को समझते हुए अपना ध्यान दूसरी जरूरी बातों पे लगाया और मेहमानों के डिनर और सोने के इंतजाम करने में व्यस्त हो गया।
सब कुछ निपटने के बाद आधी रात से ऊपर ही हो चुकी थी, सब लोग जहाँ तहाँ सोये पड़े थे, मेरा मन भी सोने का हो रहा था, इसी चक्कर में मैंने सारे घर का चक्कर लगा लिया लेकिन कहीं भी कोई गुंजाइश नहीं मिली।
तभी मुझे छत पर बनी कोठरी का खयाल आया। वो कोठरी कोई आठ बाई दस का कमरा था, जिसमें बेकार का सामान पड़ा रहता था जिसे न हम इस्तेमाल में लाते हैं और न ही फेंकते बनता है, जैसे कि सभी के घरों में कोई ऐसी जगह होती है।
मैंने वहीं सोने का सोच के गद्दों के ढेर में से दो गद्दे और तकिये कंधे पे रख लिये और ऊपर छत पर चला गया।
वहाँ कोठरी में भी सब अस्त व्यस्त सा पड़ा था और मुसीबत यह कि वहाँ का बल्ब पता नहीं कब फ्यूज हो चुका था तो रोशनी का कोई इंतजाम नहीं था।
मैंने जैसे तैसे करके वहाँ बिखरे सामान को खिसका कर इतनी जगह बना ली कि गद्दे बिछ जायें।
मैंने अपना बिस्तर बिछा लिया और सोने की तैयारी की।
दरवाजा बंद करने को हुआ तो देखा कि अन्दर से बंद करने को कोई कुंडी चिटकनी वहैरह थी ही नहीं, अतः मैंने किवाड़ यूं ही भिड़ा दिये और लेट गया।
उस दिन पता नहीं क्यों, पूरे बदन में अजीब से मस्ती छाई हुई थी। हालांकि थकान भी काफी थी लेकिन मन कुछ करने का बहुत कर रहा था।
बीवी ने तो पल्ला झाड़ ही लिया था लेकिन अपना हाथ जगन्नाथ तो हमेशा से है ही!
सब लोग नीचे सो रहे थे मैं ऊपर की मंजिल पर उस एकान्त कोठरी में जहाँ किसी के आने की कोई संभावना नहीं थी, टाइम भी रात के बारह बजे से ऊपर का ही हो रहा था।
अतः सब तरफ से निश्चिन्त होकर मैं लेट गया और अपने कसमसाते लिंग को कपड़ों के ऊपर से ही सहलाने लगा।
मेरे छोटू जी भी जल्दी ही तन के खड़े हो गये, मैंने भी उन्हें अपनी मुट्ठी में ले लिया और हौले हौले सहलाने लगा।
धीरे धीरे आहिस्ता आहिस्ता कुछ सोचते हुए तीन उँगलियों से लिंग मुंड की त्वचा को ऊपर नीचे करना मुझे बहुत अच्छा लगता है, हस्त मैथुन करने के लिये मैं शुरुआत ऐसे ही करता रहा हूँ। जब लगता है कि अब मामला बस के बाहर हो गया है, तभी मैं पूरे लिंग को मुट्ठी में जकड़ कर पूरी स्पीड से हस्तमैथुन करता हुआ स्खलित होना पसन्द करता हूँ।
ऐसे में समय भी बहुत ज्यादा लगता है और छूट भी बहुत तेज और आनन्द दायक होती है।
वैसे ही करते करते मैं सारे कपड़े उतार कर पूरी तरह से निर्वस्त्र हो गया और बड़े आराम से धीरे धीरे मुठ मारने लगा।
ऐसे करते करते कुछ ही मिनट हुए होंगे कि तभी कोठरी का दरवाजा धीरे से खुलने की चरमराहट जैसी आवाज आई और साथ में खुशबू का एक झोंका सा अन्दर घुसा।
मैं सन्न रह गया और मेरे हाथ लिंग को पकड़े हुए जहाँ के तहाँ रह गये।
दरवाजे पर कोई साया सा खड़ा था।
तभी उस साए ने भीतर कदम रखा और अपने पीछे दरवाजा वापिस भिड़ा दिया और मेरे पहलू में आ के लेट गया। उसके बदन से उठती भीनी भीनी महक से पूरी कोठरी रच बस गई।
अचानक उस साये ने मेरी तरफ करवट ली और मुझे अपने बाहुपाश में जकड़ लिया।
‘सॉरी जानू, देर हो गई आने में! गुस्सा तो नहीं हो ना?’ कहते हुए वो मेरे नंगे बदन पर चूम चूम के हाथ फिराने लगी।
उसकी आवाज को पहचान कर जैसे मेरे ऊपर वज्रपात हुआ और दिमाग सुन्न सा हो गया।
मेरी इकलौती पुत्रवधू अदिति मेरे नंगे जिस्म को सहलाते हुए बोल रही थी।
मेरी बहू के उरोज मुझसे चिपके हुए थे और वो मुझे गलती से अपना पति समझ कर मुझसे चूमा चाटी करने लगी थी।
कुछेक पल के लिये मैं जड़वत हो गया, साँसें बेतरतीब हो गईं और पसीना आने लगा और लगा कि हार्ट अटैक आ जाएगा।
बहू अदिति लगातार मुझे अपने अंक में समेट रही थी और मेरे सीने पर फिरतीं उसकी हथेलियाँ मुझे जहाँ तहाँ जकड़ने लगीं थीं।
फिर उसने अपना एक पैर उठा के मेरे ऊपर रखा, उसकी मांसल जांघ का उष्ण स्पर्श मुझे अपने सीने पर महसूस हुआ और फिर उसने मेरी कमर के पास अपनी एड़ी अड़ा कर मुझे और कस लिया।
‘पता है गुस्सा हो मुझसे! ग्यारह बजे का बोला था न आपने, अब तो शायद एक बजने वाला होगा। क्या करती वो जबलपुर वाली इंदौर वाली और झांसी वाली भाभियाँ उठने ही नहीं दे रहीं थीं। सब अपने अपने रात के किस्से सुना रहीं थी कि उनके वो कैसे कैसे क्या क्या करते हैं!’
‘हेल्लो जी, कुछ तो कहिये… सच में सो गये क्या.. उठो न पूरे दो महीने होने वाले हैं जब हमने वो किया था। आ भी जाओ अब!’कहते कहते मेरी बहू अदिति ने अपनी बाहों में मुझे कस लिया और चूमने लगी।
‘हे ईश्वर यह कैसी घड़ी आन पड़ी मुझ पे!?!’ मैंने मन ही मन भगवान् का स्मरण किया। अपने जीवन में कभी किसी पर स्त्री को छूना तो दूर, कभी कुदृष्टि से भी नहीं देखा और आज मेरी पुत्रवधू जिसे मैंने हमेशा अपनी बेटी ही समझा, मेरी बेटी जिसका विवाह अभी तीन दिन पहले ही हुआ है, यह अदिति तो उससे भी दो वर्ष छोटी है उम्र में।’
‘क्या करूँ मैं? अदिति को डांट दूँ? बता दूँ उसको कि मैं उसका पति नहीं ससुर हूँ?… नहीं नहीं.. अगर ऐसा किया तो वो शर्म से जीवन भर मुझसे आँख नहीं मिला पाएगी और क्या पता वो लज्जावश और कोई घातक कदम उठा ले तो?’
ये सब सोच के मैंने चुपचाप और निष्क्रिय रहना ही ठीक समझा। मन ही मन भगवान से प्रार्थना भी कर रहा था कि मैं बेक़सूर हूँ, विवश हूँ, मुझे क्षमा करना और जो इस अँधेरी कोठरी में घट रहा है वह सदैव अँधेरे में ही रहे… इसी में हम सबका, इस घर का कल्याण है।
उधर अदिति कामातुरा होकर मुझे अपने से चिपटाए हुए मुझे चूम रही थी।
अचानक उसका हाथ मुझे सहलाते हुए नीचे की तरफ फिसल गया और मेरा तना हुआ कठोर लिंग उसके हाथ से छू गया।
मेरा मन तो बुझा हुआ था और छटपटा रहा था कि इस विवशता से कैसे मुक्ति मिले… लेकिन मेरा लिंग अविचल खड़ा था उस पर मेरा कोई वश नहीं रह गया था।
‘अच्छा जी, आप तो बोल नहीं रहे लेकिन आपके ये लल्लू जी तो कुछ और ही कह रहे हैं। देखो, मेरे आते ही ये कैसे तन खड़े होकर सैल्यूट मार रहा है मुझे! आखिर पहचानता है न मुझे!’ कहते हुए अदिति ने मेरा लिंग अपनी मुटठी में जकड़ लिया और चमड़ी को ऊपर नीचे करते हुए उसे सहलाने लगी, कभी मेरे अन्डकोषों को सहलाती, कभी लिंग के ऊपर उगे हुए बालों में अपनी उंगलियाँ फिराती। उसके कोमल हाथों का स्पर्श और महकते हुए जवान जिस्म की तपिश मुझे बेचैन किये दे रही थी, मैं बस जैसे तैसे खुद पर कंट्रोल रख पा रहा था।
‘सुनो जी, आपका ये लल्लू जी आज कुछ बदला बदला सा क्यों लग रहा है मुझे? जैसे खूब मोटा और लम्बा हो गया हो पहले से?’ वो मुझे चिकोटी काटते हुए बोली।
मैं क्या जवाब देता उसे… मैं तो बस उस पर से ध्यान हटाने की कोशिश में अपनी साँसों पर ध्यान लगाए था।
अचानक वह मुझसे अलग हुई और उसके कपड़ों की सरसराहट मुझे सुनाई दी, मैं समझ गया कि उसने अपने कपड़े उतार दिये हैं।
और फिर उसका नंगा बदन मुझसे लिपट गया।
‘अब आ भी जाओ राजा, और मत तरसाओ मुझे… समा जाओ मुझमें! देखो आपकी ये पिंकी कैसे रसीली हो हो के बह रही है।’ वो बोली और मेरा हाथ पकड़ कर अपनी योनि पर रख कर दबा दिया।
उसकी गुदगुदी पाव रोटी जैसी फूली और योनि रस से भीगे केशों का स्पर्श मुझे भीतर तक हिला गया।
फिर अदिति मेरा हाथ दबाते हुए अपनी गीली योनि पर फिराने लगी, मक्खन सी मुलायम उष्ण योनि ने मेरा स्पर्श पाते ही अपनी फांकें स्वतः ही खोल दीं और मेरी उंगलियाँ बह रहे रस से गीलीं हो गई।
मैं अभी भी क्रियाहीन और अविचल पड़ा था। हालांकि मेरे संस्कारों पर वासना हावी होने लगी थी, रूपसी कामिनी सम्पूर्ण नग्न हो कर मुझसे लिपटी हुई मुझे सम्भोग करने के लिये उकसा रही थी, मचल रही थी, आमंत्रित कर रही थी, झिंझोड़ रही थी।
उसकी गर्म साँसें और परफ्यूम से महकता हुआ बदन मेरे भीतर आग भरने लगा था, मेरी कनपटियाँ तपने लगीं और मेरा बदन भी जैसे विद्रोह करने पर उतारू हो गया।
उधर अदिति अभी भी मेरा हाथ पकड़े हुए अपनी योनि पर फिरा रही थी और मेरी उंगलियाँ योनि रस से भीगी हुईं केशों को ऊपर तक गीला किये दे रहीं थीं।
मैंने अपने मन को फिर पक्का किया और अपना हाथ उससे छुड़ाते हुए अलग कर लिया।
लेकिन बहूरानी तो बुरी तरह से जैसे कामाग्नि में जल रही थी, उसने मेरा हाथ पुनः पकड़ लिया और अपने बाएं नग्न स्तन पर रख दिया।
मेरी हथेली में उसकी कड़क घुंडी और मुलायम रुई के फाहे जैसे मृदु कोमल उरोज का मादक स्पर्श हुआ। एक बार तो मन किया कि दबोच लूं उसे और चूस लूं।
लेकिन पुत्रवधू के रिश्ते का ख्याल आते ही मैं रुक गया।
मेरा हाथ अभी भी बहू के स्तन पर रखा था और उसकी सांसों, धड़कन का स्पंदन मैं अपनी हथेली पर महसूस कर रहा था।
मैंने एक बार फिर अपने जी कड़ा करके सम्बन्धों की मर्यादा तार तार होने से बचाने की कोशिश कि और अदिति से खुद को छुडाया और दूसरी तरफ करवट ले ली।
लेकिन होनी तो प्रबल थी।
बहूरानी पर तो जैसे साक्षात् रति देवी सवार थी उस रात!
मेरे करवट लेते ही बहू मेरे ऊपर से लुढ़क कर मेरे सामने की तरफ आ गई।
‘आज क्या हो गया आपको? अब ऐसा भी क्या गुस्सा जी, ऐसे तो कभी भी नहीं किया आपने!’
मैं चुप रहा, बस इसी सोच में था कि जैसे तैसे इस पाप के कुएं से बाहर निकल पाऊं बस!
‘अच्छा ये लो, आज मुंह में लेकर चूसती चूमती हूँ इसे। आप हमेशा कहते थे न कि एक बार मुंह में ले के प्यार कर दो इसे। लेकिन मैंने कभी नहीं मानी आपकी बात…’ बहू बोली और मेरा लंड पकड़ कर उस पर झुक गई और अपनी जीभ की नोक से उसे छुआ, फिर फोरस्किन को नीचे खिसका के सुपारा अपने मुंह में ले लिया।
उस अँधेरी कोठरी में मैं विवश था पर लंड नहीं, वह तो बहू के मुंह में प्रवेश करते ही फूल के कुप्पा हो गया।
बहू ने पूरा सुपारा अपने मुंह में भर लिया और एक बार चूसा जैसे पाइप से कोल्ड ड्रिंक चूसते हैं। एक बार चूस के उसने तुरन्त मुंह हटा लिया, शायद पहली बार होने की वजह से।
बहू ने फिर मेरे लंड की चमड़ी को चार छः बार ऊपर नीचे किया जैसे मुठ मारते हैं और फिर लंड को फिर से अपने मुंह में भर लिया, इस बार उसने पूरा सुपारा मुंह में ले लिया, मुंह को ऊपर नीचे करने लगी जिससे लगभग एक तिहाई लंड उसके मुंह में आने जाने लगा।
कुछ देर ऐसे ही करने में बाद अदिति बहूरानी मेरे ऊपर आ गई और लंड को मेरे पेट पर लिटा दिया और अपनी चूत से लंड को दबा दबा के रगड़ा मारने लगी।
बहू के इस तरह रगड़ने से उसकी चूत के होंठ स्वतः ही खुल गये और मेरा लंड उसकी चूत के खांचे में फिट सा हो गया।
अदिति जल्दी जल्दी अपनी चूत को मेरे लंड पे घिसने लगी, उसकी बुर से रस बहता हुआ मेरे पेट तक को भिगो रहा था।
अचानक उसकी रगड़ने की स्पीड बहुत तेज हो गई और उसके मुंह से सिसकारियाँ निकलने लगीं ‘आह, जानू, कितना अच्छा लग रहा है इस तरह! आपके लल्लू पर अपनी पिंकी ऐसे रगड़ने का मज़ा आज पहली बार मिल रहा है… आह ओह… उई माँ… बस मैं आने ही वाली हूँ मेरे राजा… जानू। इसे एक बार घुसा दो न प्लीज, उम्म्ह… अहह… हय… याह… फिर मैं अच्छे से आ जाऊँगी!
ऐसा कहते हुए अदिति अपनी चूत को कुछ ऐसे एंगल से लंड पर रगड़ने लगी कि वो उसकी चूत में चला जाए।
लेकिन मैंने वैसा होने नहीं दिया इस पर अदिति खिसिया कर पागलों की तरह अपनी चूत को मेरे लंड पर पटक पटक कर रगड़ते हुए मज़ा लेने लगी।
कहानी का अगला भाग: अनोखी चूत चुदाई की वो रात-2
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