टीचर की यौन वासना की तृप्ति-11
(Teacher Ki Yaun Vasna Ki Tripti- Part 11)
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इस सेक्सी स्टोरी में अब तक आपने पढ़ा कि नम्रता मेरे साथ मेरे घर आ चुकी थी और हम दोनों मेरे घर के बेडरूम में चुदाई के पहले का खेल खेलने लगे थे.
अब आगे:
फिर मैंने उसके पैरों के बीच आकर लंड को चूत के सेन्टर पर रखा और हल्का से धक्का लगते ही लंड सरसराते हुए चूत के अन्दर जाकर खो गया. मैं धक्के ना मारते हुए नम्रता के ऊपर आ गया और उसके होंठों को चूसने लगा. वो भी मेरा साथ अच्छे से देने लगी. पर लंड बेचारा कहां तक बर्दाश्त करता, चूत के अन्दर फुदकने लगा. इससे नम्रता भी अपनी कमर उठाकर मुझे चोदने के लिए उकसाने लगी.
बस फिर क्या था, धक्के लगने शुरू हो गए, मैं थक जाता, तो नम्रता ऊपर आ जाती. नम्रता थक जाती, तो मैं ऊपर आ जाता.
फिर एक दौर आया, जब नम्रता एक बार फिर 69 की पोजिशन में आ गयी. मेरा लंड भी भावुक हो चुका था और कभी भी फुव्वारा छोड़ सकता था. इस बात को समझते हुए नम्रता ने अपनी चूत का मुँह मेरे मुँह पर रख दिया और खुद मेरे लंड के साथ खेलने लगी.
कुछ देर तक लंड बेचारा नम्रता के मुँह के अन्दर बाहर होता रहा. फिर उसका धैर्य जवाब दे गया और उसने नम्रता के मुँह के अन्दर ही उल्टी कर मारी. इधर नम्रता ने भी अपने सब्र का बांध तोड़ दिया और उसकी मलाई मेरे जीभ पर गिरने लगी.
लस्त होने के थोड़ी देर तक नम्रता मेरे जिस्म के ऊपर ही पड़ी रही. फिर मुझसे अलग हो गयी.
थोड़ी देर बाद नम्रता अपने कपड़े सही करते हुए बोली- अपने घर बुला लिया है, दिखाओगे नहीं अपनी बीवी के लिए हुए सेक्सी कपड़े?
मैं- ओह हां यार, तुम्हारा कामक्रीड़ा से युक्त मादक जिस्म मेरे सामने जब से आया है, मैं सब कुछ भूल जाता हूं.
नम्रता- ओह तुमने इस नाचीज से दिखने वाले जिस्म की तारीफ तो खूब कर ली, लेकिन मेरा यह कामक्रीड़ा से युक्त मादक जिस्म तुम्हारे लोहे जैसे सख्त लंड के आगे फीका पड़ जाता है. जब तुम्हारा लंड मेरी चुदाई करता है, तो मेरे जिस्म का पुर्जा-पुर्जा ढीला पड़ जाता है.
ये कहते हुए उसने अपने होंठों को दांतों के बीच दबा लिया.
मैं ‘वाह रे मेरी जान..’ कहते हुए उसके हाथों को ऊपर उठाकर उसकी बगल को सूंघते हुए बोला- लेकिन मेरा लंड लोहे की तरह जब सख्त होता है, जब मैं तुम्हारे बगल से निकलती हुई सुंगध को अपने नथुनों में बसा लेता हूं और बाकी कसर तुम्हारी चूत की महक पूरा कर देती है. फिर अन्त में चाहे मेरा लंड कितना भी लोहे की तरह सख्त हो और कितना ही देर तक तुम्हारी चूत को रौंदे, अन्त में तो उसका ही मान मर्दन ही टूटता है और अपना मुँह लटकाते हुए निकलता है.
नम्रता- तुम सही कह रहे हो, लेकिन चूत का हाल भी वही होता है, त्राहि-त्राहि जब तक करती जाती है, जब तक कि लंड उसकी बजाता है. अच्छा अब चलो अपने बीवी के कपड़े तो दिखाओ.
हां कहते हुए मैंने अलमारी खोल दी और मेरी बीवी ने उन कपड़ों को जिस जगह छुपाकर रखा था, वो हिस्सा दिखाते हुए बोला- इसमें जो पसंद आए ले लो.
कपड़ों के पलटकर देखते हुए बोली- हो तो तुम आशिक मिजाज.
मैं- वो तो हूं ही, नहीं तो मजा नहीं आता. नम्रता- अगर तुम कहो तो मैं एक-एक पहन कर चैक कर लूं.
मैंने भी आशिक मिजाज होते हुए कहा- अरे यार इन कपड़ों पर तुम्हारी नजरें क्या पड़ीं, ये अपने आपको खुश किस्मत समझ रहे होंगे, बिल्कुल तुम पहनो.
नम्रता एक-एक करके सेक्सी पैन्टी-ब्रा, पारदर्शी नाईटी पहनती जाती और तारीफों के पुल बांधती जाती. अन्त में उसने गोटे लगी हुई पारदर्शी लिंगरी निकाली और पहन ली. इस लिंगरी की खासियत यह थी कि यह जालीदार थी. इसमें से उसके निप्पल बाहर आ जा रहे थे और चूत को ढंके हुए थे, पर गांड के हिस्सा खुला हुआ था. उस पर नम्रता ने हाई हील सेन्डिल भी पहन ली थी और कैटवॉक कमरे में करने लगी.
बस फिर क्या था, जैसे-जैसे चूतड़ उसके पैन्डुलम की तरह हिलते-डुलते थे, वैसे-वैसे मेरे लंड भी टनटनाने लगता था. मेरे लंड के इस तरह से उतार-चढ़ाव को देखते हुए नम्रता होंठ को गोल करके सीटी बजाते हुए हंसने लगी.
फिर उसने इस लिंगरी को और साथ ही एक बहुत ही सेक्सी पैन्टी ब्रा को सेलेक्ट किया. उसके बाद वापस वो अपने कपड़े को उठाकर पहनने ही वाली थी.
मैंने नम्रता को कपड़े पहनने से मना किया और थोड़ा सा दूर खड़े होने के लिए कहा.
नम्रता थोड़ा पीछे हटते हुए बोली- ऐसे क्या देख रहे हो?
मैं- कुछ नहीं यार, तुम्हारी चूत को चोदने और गांड मारने में इस कदर खो गया कि इस सेक्सी जिस्म को ध्यान से देख ही नहीं पाया. थोड़ी देर नम्रता इसी तरह से खड़ी रहो.
थोड़ी देर तक मैं उसकी बंद पाव जैसी चूत को देखता रहा, जो बादामी रंग की थी. नम्रता ने दो दिन पहले ही चूत को चिकना किया हुआ था, लेकिन रोएं आ चुके थे. उसकी चूत की फांकों के बीच एक गैप था, जिससे उसका भगनासा साफ-साफ दिखाई दे रहा था. कुल मिलाकर उसकी वो चूत, जिसको मैं दो दिन से चोद रहा था, किसी भी आदमी को पागल करने के लिए काफी थी.
मेरी नजरें वहां से होते हुए ऊपर उसकी गहरी नाभि पर अटक गईं. उस नाभि को मन भर देखने के बाद मेरी नजर थोड़ा और ऊपर उठी.
हां दोस्तों मैं इस बीच नम्रता की एक बात और नोटिस कर रहा था. जहां जहां मेरी नजर उसके उस कामयुक्त जिस्म पर ठहरती, उस जगह पर नम्रता के हाथ चलते जाते. मुझे लगा कि वो मेरी गड़ती हुई नजर का प्रभाव था, जो उसको चुभ रही थी. इसलिए उस अंग को वो मुझसे छुपाने की कोशिश करती.
अब मेरी नजर उसकी चूचियों पर जाकर ठहर गयी. इससे पहले मैं उसकी चूचियों को भर नजर देख पाता, वो अपनी चूचियों से खेलने लगी. खेलती भी क्यों नहीं, गोल-गोल खरबूजों से उसकी चूचियां कम न थीं और उन पर वो भूरे रंग का दाना आह.. जिसको वो जीभ लगाकर चाट रही थी और मुझे ललचा रही थी. उसके उन दोनों दानों में तनाव आने लगा था. मेरे मुँह में उसकी खुद के चूची के निप्पल पर जीभ चलाते हुए देख कर पानी आने लगा था. नम्रता को इस तरह निप्पल पर जीभ फेरता देख कर मैं भी अपने होंठों के चारों तरफ जीभ फिराने लगा.
ये खेल कुछ देर तक ऐसे ही चलता रहा, फिर मैंने नम्रता को घूमने का इशारा किया.
नम्रता पीठ मेरी तरफ करते हुए घूम गयी. वाओ, क्या लम्बे-लम्बे बाल थे उसके. उसके लम्बे बालों ने ही उसकी गांड को ढंक रखा था. अभी तक मैंने उसके इन लम्बे बालों पर ध्यान ही नहीं दिया था.
मैंने नम्रता को बालों को आगे करने के लिए कहा. नम्रता के बालों के हटते ही गोल-गोल, उभारदार गोरे-गोरे चूतड़ सामने आ गए. नम्रता की गांड भी उसकी चूची की तरह गोल आकार लिए हुए थी.
अब मेरा मन बेकाबू हो चुका था, मैं पलंग से नीचे उतरकर उसके पास पहुंचा और उसके कूल्हे को कसकस कर मसलने लगा. जी भर के कूल्हे को मसलने के बाद मैंने उसके कूल्हों को फैलाया, तो उसकी काली-भूरी गांड का छेद खुलकर सामने आ गया. बस मैं ठहरा लालची आदमी. मेरी जीभ ने सीधा वहीं दस्तक दी और गांड के छेद के अन्दर बाहर जीभ होने लगी.
कसैला सा स्वाद लिए हुए उसकी गांड को मेरा मन छोड़ने को कर नहीं रहा था. खैर, अपने मन की करने के बाद मैंने अपने मुँह के अन्दर ढेर सारा थूक समेटा और फिर उसकी गांड के अन्दर उड़ेल दिया. फिर उंगली से उस थूक को अन्दर ठेलने लगा.
नम्रता भी मेरे उत्साह को बढ़ाने के लिए हम्म-हम्म की आवाज निकाले जा रही थी.
अब बारी थी नम्रता के अग्र भाग के उस स्वर्ग की.. जहां पर हर आदमी आकर लुट जाता है.
मैंने नम्रता को पलंग पर बैठाया और उसकी एड़ी को उसके कूल्हे से सटाते हुए उसकी टांगों को फैला दिया. फिर नम्रता की पुत्तियों से खेलते हुए उसके बुरमुख को खोल दिया. लाल लालिमा के साथ हल्का सफेदीपन उस जगह दिखायी पड़ रहा था, जहां पर इन दिनों मेरे लंड का आना जाना था.
बस एक बार फिर जीभ ने जल्दबाजी कर दी और बिना इजाजत लिए उस छेद के अन्दर प्रवेश कर गया और अपना काम करना शुरू कर दिया.
नम्रता मेरे बालों को सहलाते हुए हम्म-हम्म करते हुए मेरे जोश को बढ़ा रही थी. इस बार मुझे उसके बुर के साथ थोड़ा कुछ हटकर खेलना था. सो मैं अपनी जीभ के साथ-साथ अपनी उंगली को उसकी चूत के अन्दर डालता और निकालता. फिर उसके भगनासा पर अपनी जीभ चलाते हुए उसकी फांकों को भी चाटता और उसके अनारदाने को चुटकियों से मींजते हुए अपने लंड को भी मसल देता.
नम्रता ने शायद लंड मसलते हुए देख लिया था, इसलिए उसने मुझसे अपने आपको छुड़ाया और मुझे पलंग पर बैठने के लिए बोलकर खुद नीचे बैठ गयी. वो सुपाड़े के खोल को खोलते हुए मेरे मुलायम सुपाड़े पर अपनी जीभ फेरने लगी. हालांकि अपने लंड मैं काफी देर तक मसलता रहा, जिसके कारण लसलसा लगने लगा था.
नम्रता ने उस लसलसे रस को अपनी उंगलियों के बीच लिया और उंगलियों को खोलते हुए उस लसलते के बने तारों को दिखाते हुए अपनी जीभ में ले लिया. फिर बारी-बारी से अपनी दोनों उंगलियों को चाटते हुए मेरे लंड पर अपनी जीभ चलाने लगी. वो बीच-बीच में मेरे कोमल सुपाड़े पर दांत चलाती, जिससे मुझे मेरे पेट पर एक अजीब सी गुदगुदी सी महसूस होती.
अब मुझे लगने लगा कि अगर अगले कुछ पल तक नम्रता ऐसे ही मेरे लंड से खेलती रही, तो मेरा माल कभी भी बाहर आ सकता है. मैंने नम्रता को एक बार फिर पलंग पर बैठाया और उसके चूत के साथ खेलने लगा.
हालांकि नम्रता की चूत भी लसलसी हो चुकी थी, फिर भी माल अभी बाहर नहीं निकला था. अब हम दोनों बारी-बारी से ऐसे ही एक दूसरे के अंगों के साथ खेलने लगे. फिर वो भी वक्त आया, जब नम्रता की चूत ने अपने रस को छोड़ दिया और वो सफेद लावा बहता हुआ सीधा मेरे मुँह में आकर गिरने लगा.
नम्रता तो फारिग हो चुकी थी, अब मेरे लंड की बारी थी.
नम्रता मेरे लंड को चाटते हुए लंड को पकड़कर मुठ भी मार रही थी. परिणाम स्वरूप मेरे जिस्म में वो अकड़न आना शुरू हो चुकी थी, जो यह संकेत देता था कि लावा कभी भी बाहर आ सकता था.
मेरा जिस्म अकड़ रहा था, लेकिन नम्रता मेरे लंड के साथ खेलने में इतनी मशगूल थी कि मेरे जिस्म की अकड़न को नहीं देख पायी, जिसके परिणाम स्वरूप मेरे लंड से पिचकारी फूट पड़ी और सीधा नम्रता के पूरे चेहरे पर मेरा लावा चिपक गया. नम्रता ने बिना कोई हड़बड़ी दिखाये, मेरे लंड को चाटकर साफ किया और फिर शीशे के सामने खड़े होकर चेहरे पर लगी मेरी मलाई को उंगली से लेकर चाट चाट कर अपना चेहरा साफ कर लिया.
फिर वो मुँह धोकर आयी और थोड़ा बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोली- पूरे मुँह में छिड़काव करने की क्या जरूरत थी.
बदले में मैंने नम्रता के हाथ को पकड़ा और अपने से चिपकाकर उसके गर्दन पर चुंबन जड़ते हुए उसके चूतड़ को सहलाने लगा.
नम्रता ने भी मेरे सीने पर एक जोर का चुंबन जड़ दिया और मेरी पीठ और चूतड़ को सहलाने लगी.
इन तीन दिनों में हमारा काम केवल और केवल खाना खाना और चुदाई का खेल खेलना ही था.
अभी दोपहर का वक्त होने लगा था और भूख भी लगने लगी थी. मैं खाना लेने के लिए घर के बाहर आ गया. उसके बाद मैंने और नम्रता ने खाना खाया. बाहर आ-जा नहीं सकते थे, सो खिड़की से खड़े होकर हम दोनों बाहर का नजारों का मजा ले रहे थे. बीच-बीच में मैं उसके चुचे दबा देता और वो मेरे अंडकोष को दबा देती.
इस समय नम्रता ने साड़ी और ब्लाउज पहन रखा था और मैंने बनियान और कैफ्री पहन रखा था. साड़ी के ऊपर से ही मैं उसके चूतड़ों को भी सहला देता और अपनी उंगली को उसके चूतड़ों की दरार के बीच घुमा आता.
हम दोनों को एक दूसरे के उत्तेजक अंगों से खेलते हुए काफी देर हो चुकी थी. मैं नम्रता के पीछे आ गया और उसके दोनों चूचों के पीछे से ही अपने मुट्ठियों में कैद करके भींचने लगा. नम्रता भी अपने हाथ को पीछे करके मेरे लंड को सहलाने लगी.
मैं उसकी नंगी पीठ को चूमते हुए साड़ी के ऊपर से ही उसके चूतड़ों पर दाँत गड़ाने लगा. नम्रता अपने दोनों पैरों को थोड़ा फैलाते हुए साड़ी को उठाकर कमर पर ले आयी. इससे उसके उभारदार चूतड़ खुल कर मेरे सामने आ गए.
मैं उन गोल-गोल चूतड़ों पर अपनी उंगलियां चलाने लगा और बीच-बीच में अपनी उंगलियों को बारी-बारी से दरार के अन्दर भी चला देता. मैं गांड के अन्दर भी घुसेड़ने की कोशिश करता.. तो कभी दाँत से कूल्हों को काट लेता या फिर कूल्हों को मम्मों की तरह मींजने लगता. जब इतने से मन नहीं भरता, तो कूल्हों को फैला देता, इससे उसके गांड का बादामी-भूरा छेद भी खुलकर सामने आ जाता. उसे देख कर मेरी लालची जीभ अपने को रोक नहीं पाई और उस छेद पर लग गई.
आईईईस.. की एक आवाज के साथ नम्रता अपने हाथ मेरे बालों में फेरने लगी. लेकिन मैं अपने काम में लग गया. नम्रता इसी बीच खिड़की का टेक लेते हुए और झुक गयी और अपनी टांगों को और फैला दिया. इससे उसकी चूत भी मेरे निशाने पर आ गयी. अब मेरे लिए क्या था, बस मजे ही मजे लेना बाकी था.
जब मैं अपने काम को कर चुका, तो मैंने अपनी कैफ्री उतार फेंका और तने हुए लंड को नम्रता की तरफ कर दिया. मैं खिड़की से अपनी पीठ टिकाकर खड़ा था और नम्रता घुटने के बल बैठे हुए मेरे लंड को चूसने, सहलाने या मुठ मारने में मगन थी. बीच-बीच में वो मेरे लंड को अपनी चूचियों के बीच फंसाकर अपनी चूचियों की चुदाई करा रही थी.
फिर वो अपनी टांग को मेरी टांग पर चढ़ाकर मेरे लंड को अपनी चूत पर घिसने लगी और लंड को चूत के अन्दर लेने की कोशिश करने लगी. लेकिन जब लंड इस स्टाईल से चूत के अन्दर नहीं गया, तो वो मेरी गोदी में चढ़ गयी और लंड को चूत में गटक लिया. नम्रता उछाल भरने लगी, लेकिन मैं इस बार गांड ही मारना चाहता था.. इसलिए मैंने नम्रता को अपनी गोद से उतारा और उसको खिड़की पर उसी स्टाईल में झुकने के लिए कहा, जिस स्टाईल में अभी कुछ देर पहले वो खड़ी थी. उसके उस पोज में आते ही मैं उसके गांड में लंड पेल दिया.
‘आउच.. मर गई..’ उसके मुँह से इतना ही निकला. लेकिन उसके इस आउच ने मुझे थोड़ा रोक दिया. मैं नम्रता की पीठ से चिपक गया और उसके मम्मों को लेकर हौले-हौले मसलने लगा और फिर धीरे-धीरे उन मम्मों को भींचने की स्पीड तेज हो गयी.
इधर मेरा लंड भी नम्रता की गांड के अन्दर उछाल मार रहा था.. सो मेरे पास अपने लंड के बातों को मानने के अलावा कोई रास्ता नहीं था.
बस फिर क्या था, लंड महराज ने नम्रता की गांड की घिसाई करना शुरू कर दिया. मैं हम्म-हम्म की आवाज के साथ अपने लंड को अन्दर बाहर कर रहा था और उसके मम्मों को भींच रहा था.
मेरी सेक्सी कहानी पर आपके मेल का स्वागत है.
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कहानी जारी है.
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