तलाकशुदा का प्यार-4

(Talaqshuda Ka Pyar- Part 4)

This story is part of a series:

परदों से छन छन के आती रोशनी और चिड़ियों की चहचहाट ने हम दोनों की आंखें खोल दी, एक दूसरे की आँखों में झांक के मुस्कुरा दिए. और मैंने उसके लिप्स को अपने लिप्स में कैद कर लिया एक लम्बे स्मूच के बाद मैंने सिल्क को गुड मॉर्निंग बोला.

सिल्क एक भरे पूरे बदन की मलिका थी … 34 साइज की चूचियां, भरी और मांसल जाँघें, पतली कमर, उठे हुए चूतड़, लाल सुर्ख होंठ, उसके जिस्म में मांस बिल्कुल सही जगह पर सही मात्रा में था, वज़न करीब 50/52 किलो होगा, भूरी आंखें, लम्बे काले लहराते बाल, वो एक भरे बदन की भरपूर महिला थी. या ये कहिये कि वो किसी भी मर्द के लिए एक सम्पूर्ण सम्भोग साथिन थी.

सच कहूँ तो आज सुबह ही उसके नग्न जिस्म का ठीक से दीदार किया था. तभी मैंने आपको ये सब शुरुआत में नहीं बताया था.

सिल्क में एक अच्छी जीवन साथी बनाने के सभी गुण थे. पता नहीं क्यों … उसका तलाक क्यों हुआ? मुझे उसके पूर्व पति में तरस आया कि ऐसी नारी के साथ उसका निर्वाह नहीं हो पाया.

बहरहाल वापिस सुबह पे लौटते हैं.

सिल्की ने भी मेरे गुड मॉर्निग का जवाब एक गरमागरम किस के साथ दिया. किस करने के बाद सिल्क ने अपने ऊपर चादर खींच लिया और उठ के जाने लगी.
पता नहीं क्यों … जब वो पलंग से उतरी तो मैंने उसके चादर खींच ली और उसको वैसे ही नग्न बाथरूम जाने को कहा.

उसने मेरी तरफ पलट के देखा. शर्म तो थोड़ी थी पर मेरा मूड और मेरी आँखों में एक याचना देख कर वो पलट गई और अपने बैग से टॉयलेट बैग निकल कर बाथरूम में चली गई.
उसके पलटते ही मेरे मुँह से आह निकल गई. उसके उठे हुए मांसल चूतड़, उसकी गांड की गहरी खाई को, थिरकते चूतड़ को और बल खाती पतली कमर को देख कर, सिल्क को भी मेरी आह सुनाई दे गई, उसने मुस्कुराते हुए मुझे पलट के देखा और फिर टॉयलेट में घुस गई.

मैं वैसे ही नग्न बिस्तर पे आंख बंद करके लेटा था, लण्ड मेरा सर उठे खड़ा था. मैं सोच रहा था कि इसकी गांड मारने में भी मज़ा आएगा.
और इन ख्यालों में इतना खो गया कि इसका अहसास तब हुआ जब मेरे होंठों पे एक नर्म अहसास हुआ.
देखा तो सिल्क फ्रेश होकर आ चुकी थी; वैसे ही नग्न अवस्था में उसने मुझे किस किया तो उसके भरे गोल सुदृढ़ मांसल 34 साइज की चूचियाँ लटक रही थी मेरे सामने!

मैं उनको अपने हाथों में भर के मसलने लगा. उसके गले में हाथ डाल के पास में खींचा और स्मूच करने लगा. कुछ पल स्मूच के बाद मेरा लण्ड तो टनटनाने लगा.
पर सिल्क ने मेरे सीने पे हाथ रख कर मुझे पीछे धकेला और कहा- जाओ फ्रेश हो लो.
कसम से शादीशुदा होने वाली फीलिंग आई और लगा कि ये हमारा हनीमून है.

मन तो नहीं था पर फ्रेश होकर आया तो देखा कि सिल्क ने होटल का ही बाथरोब पहन लिया था और चाय बना के मेरे इंतज़ार कर रही थी.
मैं कुर्सी में बैठा तो वो चाय से भरा मग लेकर मेरी गोदी में बैठ गई.

मैंने अभी भी कोई कपड़ा नहीं पहना था. लण्ड वैसे ही सुबह से सर उठाए खड़ा था. उस पे सिल्क की गांड का नशा … पूछो मत … सिल्क एक नवविवाहिता की भांति हमको अपने हाथों से चाय और कुकीज़ पिला और खिला रही थी.

मेरे हाथ फ्री थे तो मैं बाथरोब के अंदर हाथ डाल के उसकी मांसल चूचियों को मसलने लगा.
सिल्क बोली- उफ्फ … क्या करते हो? रुको अभी!
पर मैं कहाँ रुकने वाला था … मेरा दूसरा हाथ उसके सिल्की से पेट से सरकता हुआ जन्नत के दरवाज़े तक पहुंच गया और चिकनी चमेली चूत … ये क्या … चूत तो गीली हुई पड़ी थी. फटाक से मेरी उंगली चूत में घुस गई.

सिल्क- आह्ह् रु…रुको!
पर अब तो मेरा दिल मान ही नहीं रहा था … मैंने उसको गोद में उठाया और नर्म बिस्तर पे पटक दिया. उसके दोनों हाथ खींच के उसका सर बेड के सिरहाने ला दिया और अपना लण्ड उसके मुँह में घुसेड़ दिया और वहीं उसका मुँह को चूत समझ कर चोदने लगा.

सिल्क के मुँह से गू गू गो गो गो की आवाज़ आ रही थी. मेरा हाथ उसके निप्पल को दो उँगलियों में फंसा कर मसल रहा था, खींच रहा था.
उसका पूरा चेहरा लाल हो गया था तो मैंने लण्ड निकाल लिया और उसको किस करने लगा.

बाथरोब एक तरफ पड़ा था. हम दोनों नग्न अवस्था में एक दूसरे से लिपट गए. मैं सिल्क को धकेल कर उसके ऊपर आ गया, उसकी गर्दन में अपने गर्म होंठ से चूसने लगा.
सिल्क के हाथ मेरे बालों को सहलाने लगे थे.

मैं कभी कान की लौ चूसता तो कभी गर्दन तो कभी चूचियाँ … उनको जितना चूसो उतना और दिल करता चूसने का!
मैं कभी चूत को सहलाता तो कभी कमर … कभी उंगली करता चूत में … कभी गांड में उंगली कर देता.
सिल्क- आअह उफ्फ क्या करते हो? धीरे संदीप … उफ्फ … निशान पड़ जायेगा! ओह्ह हय आह उफ्फ.

इस तरह की आवाज़ मेरे काम को भड़का जाती थी. लण्ड की तो पूछो मत … इस तरह अकड़ गया था कि लोहे का रॉड!

सिल्क मेरे लण्ड से खेल रही थी तो कभी मेरे चूतड़ को दबा देती तो कभी कंधों पर उत्तेज़ना में दांत गड़ा देती. मेरे जिस्म में दर्द की लहर सी दौड़ जाती.

मैं नीचे आकर कामरस से भरपूर चूत को सपड़ सपड़ करके चाटने लगा, चूत से बहते रस को पीने लगा.
सिल्क- आह्हः उह ऊह ऊहएई आई उई धीरे रे रे आअह्ह ऐसे करो हाँ और जोर से आह्हः!

मैंने सिल्क की दोनों टांगों को और खोल दिया और ऊपर उठा के गांड के छेद से चूत तक चाटने लगा.
सिल्क- आह हहह आह हाह करने लगी.

“उफ्फ … ये कैसी मदहोशी है?” सिल्क चूत गीली और चिकनी हो चुकी थी, उसके चूचुक कड़े हो चुके थे … गांड से चूत तक मेरे थूक से और चूत रस से गीली थी.
सिल्क- संदीप बस करो! अब आ जाओ! सहन नहीं होता!

मैं उठकर उसकी टांगों के बीच में आ गया और लण्ड का सुपारा चूत की गहरी दरार में घिसने लगा.
“अं अअ ह्ह्ह … संदीप … हह हय … ऐईईईइ … कुछ करो … उफ्फ क्यों तड़पा रहे हो?”

और फिर एक झटके में मैंने अपने लण्ड को चूत में उतार दिया.
“ऐईईईइ ई ई ईई जानवर …”
ऐसे अचानक प्रहार से सिल्क संभल भी न पाई और पूरा लण्ड उसकी चूत में समा गया. उसकी एक टांग मैंने कंधे पे रखी और उसकी दूसरी की जांघ पकड़ के धीरे धीरे धक्के लगाना शुरू किया.
चूत गीली थी और लण्ड चिकना … फिर भी चूत में फंस फंस के जा रहा था. कसम से सुहागरात जैसा फील हो रहा था! जबकि उजाला हो चुका था.

सिल्क और मैं पसीने से तरबतर थे. सिल्क का चेहरा लाल था, वो अपना चेहरा मेरे हर धक्के पे कभी बायें तो कभी दाएं करती. उसकी दोनों मुट्ठी में चादर थी, वो कभी दांत भींच लेती तो कभी बोलने लगती- आअह संदीप उफ संदीप आआअह आअह उह उह्ह!
वो चूतड़ उछाल उछाल के मेरे लण्ड को अपनी चूत में ले रही थी.

मेरे धक्कों में सिल्क की कामुक आवाज़ों से जोश भरने लगा और मेरे धक्के तेज़ होने लगे.
“आह हहह उफ्फ ह ह आह हह बेबीईईईह हह!”

सिल्क का बदन भी कांपने लगा और मेरे बदन की नसे तन सी गई. मुँह से कामुक आवाजें निकलने लगी- ओह सिल्क लव यू!
मैंने सिल्क की दोनों टांगों को फैला कर नीचे चूतड़ों में हाथ लगा कर उठा लिया. सिल्क के चूतड़ अब हवा में थे और मेरा लण्ड चूत में!

“उफ्फ बेबी अह्ह सिल्क मेरी जान! आअह्ह आह!”

मुझे नीचे खींच के सिल्क मेरे होंठों को चूसने लगी … उसके बदन में थिरकन बढ़ गई. मुझे समझ में आने लगा कि ये चुदाई कुछ पल के मेहमान है. लण्ड अब अपनी जंग जीतने की तरफ है.
सिल्क को भी मेरे अंदाज़ से अंदाज़ा हो गया था कि कभी भी मेरा हो सकता है तो उसने मुझे मेरे होंठों को अपने होंठों से जकड़ कर मुझे कस के बाँहों में लेकर मेरी पीठ पर अपने हाथ कस लिए. उसकी चूचियाँ मेरे सीने में दबकर फ़ैल गई.

मैंने भी अपनी गांड को एक रिदिम में आगे पीछे करना शुरू कर दिया. मेरी गांड और सिल्क की गांड एक दूसरे की लए में लए मिलाते हुए अपने अंत की तरफ बढ़ चले.

तभी मैंने एक आखिरी धक्का लगाया और दोनों का काम तमाम हो गया. मेरी प्रेयसी की चूत ने मेरे लण्ड को जकड़ लिया था. मेरा लण्ड अपना रस सिल्क की चूत के रस पे बौछार कर रहा था.
सिल्क ने झड़ने से पहले जोर के चीखी- संदीप मैं गई ईईई ईईई … आह्ह संदीप!
मुझे लण्ड पे चूत के खुलने और बंद होना महसूस हो रहा था.

मैं भी उसके बदन पे गिर पड़ा. मुझे होश ही नहीं था. सिल्क मुझे मेरे चेहरे और कन्धों को चूमने लगी. हम दोनों की सांसे उखड़ी हुई थी. करीब 20 मिनट की चुदाई ने हम दोनों को पसीने से नहला दिया था.

मैं कुछ पलों के बाद सिल्क के बदन से हटने लगा पर सिल्क ने मुझे हटने नहीं दिया, वैसे ही लिपटाये रही अपने बदन के ऊपर! वो मेरे बालों को एक हाथ से सहला रही थी. कभी कभी चूम भी रही थी.
काफी देर तक मैं वैसे ही सिल्क के बदन पे लेटा रहा. जब भी मैं कोशिश करता हटने की … तो सिल्क और मुझे जकड़ लेती. लण्ड भी बाहर चूत से सटा हुआ था. चूत से मेरा वीर्य और उसके ऱज़ का मिश्रण बह रहा था.

यह मेरा आज तक का सबसे बेहतरीन सेक्स अनुभव था.
करीब पंद्रह बीस मिनट के बाद जब मैं उठा तो सिल्क को गौर से देखा … बिखरे बाल, लाल होंठ, दमकते गुलाबी गाल, गले, कंधे और चूचियों पे जगह जगह लाल निशान थे. कुछ ऐसे ही निशाँ मेरे जिस्म पर भी थे. ये उस उन्माद की दास्ताँ बयाँ कर रहे थे जो कुछ पलों पहले हम दोनों पर चढ़ा हुआ था.

तभी अचानक मुझे याद आया कि मैं कल से सिल्क के साथ कई बार असुरक्षित सम्भोग कर चुका था. मेरे चेहरे पे एक तनाव सा आ गया जिसे देख कर सिल्क ने पूछा- क्या हुआ?
मैं- हमने कोई प्रोटेक्शन (कंडोम) नहीं लिया. हमको प्रोटेक्शन लेना चाहिए था.

सिल्क खिलखिला के हंस पड़ी और बोली- तो तुमको क्या परेशानी है? जो होगा मेरे साथ होगा.
मैं- नहीं, ऐसा नहीं है, मैं भी बराबर का जिम्मेदार हूँ.
सिल्क- अरे छोड़ो न … तुम परेशान मत हो, मैं मैनेज कर लूंगी. ये मेरी जिंदगी का सबसे बेतरीन लम्हा था. आज तुमने मुझे एक अहसास कराया कि मैं भी एक औरत हूँ जिसकी कुछ इच्छायें हैं. दिल है. बस तुम मुस्कुराते रहो!

कह कर वो उठी और मेरे मुरझाए बेजान लण्ड को चूमकर बोली- ये बहुत बदमाश है आपका!
और मेरे लण्ड को पकड़ के बाथरूम में ले गई जहाँ हम दोनों ने एक दूसरे को साफ किया और नहलाया.

बाहर आकर सिल्क ने कहा- चलो तैयार हो जाओ. नीचे चल के ब्रेकफास्ट करते हैं. सच पूछो तो जिस रौब और अधिकार के साथ वो बात करती थी, ऐसा लगता था कि वो मेरी बीवी है. पर अधिकार के साथ एक सम्मान भी था मेरे प्रति!

फ्रेश होकर हम दोनों नीचे गए और ब्रेकफास्ट किया. और फिर दिल्ली घूमने निकल गए.

कुछ इस तरह दो दिन निकल गए, पता ही नहीं चला. इस बीच हम दोनों ने दिल्ली घूमी, एक दूसरे को जाना, न जाने कितनी बार बाँहों में लिया, कितनी बार एक दूसरे को चूम के अपने प्यार को दर्शाया. हम दोनों को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था कि कोई हमको देख रहा है.

एक बात और … एक दूसरे के बदन को अच्छे से देखा मतलब … चुदाई … बहुत सारा सम्भोग और प्यार किया. दो दिन में दोनों बेशर्म हो चुके थे. कमरे में घुसते ही हम कपड़े ऐसे उतार फेंकते जैसे कोई बोझ हो. अब सिल्क को भी मेरे सामने नग्न घूमने में कोई परहेज नहीं था. हाँ थोड़ी शर्म दिखती थी. पर वो सम्भोग या चुदाई के नशे में गायब हो जाती थी. सब कुछ किसी हनीमून के जैसा ही था.

फिर हम दोनों अलग हो गए.
ये बिछड़ना हम दोनों के लिए ही दुखदाई था. इस बीच विडियो कॉल, फोन कॉल आदि बहुत हो गए थे, पर मज़े की बात यह थी कि ‘आई लव यू’ किसी ने भी एक दूसरे को नहीं बोला था.

बेचैनी मेरे अंदर बहुत थी, मैं एक निर्णय पे पहुंच के अपने माता पिता से मिला और उनको सारी बात बता दी. मेरे माता-पिता को कोई ऐतराज़ न था बल्कि वो तो खुश ही थे.

वहां से निकल कर मैं चंडीगढ़ पंहुचा और सिल्क के घर पहुंच के उनके माता पिता से मिला, उनको भी सारी बात बताई.
फर्क इतना था कि वो मुझे जानते थे कि मैंने कभी उनकी बेटी की दमन में हेल्प की थी.

अब इंतज़ार था सिल्क का जो ऑफिस में थी. और उसको पता नहीं था कि मैं उसके घर में हूँ.
इस बीच उसकी चार कॉल मैं रिजेक्ट कर चुका था.

अन्ततः सिल्क करीब 7 बजे घर आई. मैं दूसरे कमरे में था. तब सिल्क के माता पिता ने उससे मेरे बारे में पूछा. सिल्क को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि उनको ये सब कैसे पता चला.
काफी देर के बाद सिल्क ने उनको बताया कि वो मेरे से कुछ दिन पहले मिली थी और मुझे पसंद करती थी.

वैसे ही उन्होंने सिल्क से पूछा कि क्या वो संदीप को पसंद करती है उसके साथ शादी करेगी?
सिल्क ने भी धीरे से हाँ बोल दी.

अब बारी थी मेरी एंट्री की!
सिल्क तो हैरान सी थी. जैसे ही उसको समझ में आया कि ये सब मेरा किया धरा है तो वो मुँह छिपा के बैठ गई.

फिर कुछ दिनों के बाद हम दोनों ने सादे समारोह में शादी कर ली और इस तरह सिल्क मेरी पत्नी बन गई.

मोरल- मैंने ये कहानी इस लिए आपको सुनाई कि इंसान की ज़िंदगी में बुरा वक़्त आता है. पर हिम्मत से उसका जो मुकाबला करते हैं, उनकी ज़िंदगी में खुशियाँ दोबारा लौट आती हैं.

राहुल श्रीवास्तव- यह कहानी मैं होटल में बिछड़ने के बाद भी ख़त्म कर सकता था. पर मुझे लगा जैसे मुझे एक आम पाठक की तरह की उस कहानी का अंत में दोनों युगल के सम्भोग के बाद क्या हुआ जानने की उत्सुकता बनी, वैसे ही आप सभी पाठकों को भी उत्सुकता होगी कि संदीप और सिल्क के प्रेम का अंत क्या हुआ?

तो कम शब्दों में मैंने ये भी बता दिया कि उनका प्यार अंजाम तक कैसे पंहुचा.

मैं मुंबई में उन दोनों से मिला, दोनों एक खुशहाल जीवन जी रहे हैं. दोनों के दो प्यारे बेटे हैं. सिल्क भी उसी कंपनी में मुंबई ब्रांच में काम करती है.

सिल्क की एक बात मुझे अच्छी लगी कि उसने संदीप के पहले बच्चे को भी अपना लिया. इस तरह उनके दो बेटे थे. क्योंकि निधि भी (संदीप की पहली पत्नी) दोबारा शादी कर चुकी थी और उसके दूसरा पति उस बच्चे को अपनाने को तैयार नहीं था तो वो अपने नाना नानी के साथ रहता था. ऐसे में सिल्क ने ना सिर्फ उस बच्चे को अपनाया और कभी भी दोनों बच्चों में फर्क नहीं किया.

हमारे यहाँ नारी के बहुत से रूप हैं एक निधि का तो दूसरा सिल्क का!
फैसला आपका है कि आपको कौन सा रूप पसंद है.

आप सभी के सुझाव और प्रतिक्रिया सुनने को उत्सुक हूँ. आप मुझे ईमेल कर सकते हैं और किसी भी सोशल मंच पर आप मुझे मिल सकते हैं.
यदि आपके पास भी ऐसी कुछ अलग सी घटना हो तो बेझिझक मुझसे संपर्क कर सकते हैं.

एक बार फिर आप सबका तहे दिल से शुक्रिया.
राहुल श्रीवास्तव
[email protected]

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